फ़िरदौस ख़ान
पिछले क़रीब दो दशकों से हरियाणा में मानव तस्करी का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ख़ास बात यह है कि यह सब 'विवाह' की आड़ में किया जा रहा है। जिन राज्यों की लड़कियों को हरियाणा में लाकर बेचा जा रहा है, उनमें असम, मेघालय, पं. बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडू मुख्य रूप से शामिल हैं। पशुओं की तरह खरीदी और बेची जाने वाली इन लड़कियों का सामाजिक और पारिवारिक जीवन तबाह होकर रह गया है। हालत यह है कि इस तरह 'ख़रीद' कर लाई गई लड़की को अपने तथाकथित पति के अलावा उसके अन्य भाइयों के साथ भी शारीरिक संबंध बनाने पड़ते हैं। ऐसा न करने पर उसको मौत की नींद सुला दिया जाता है।
गौरतलब है कि फरवरी 2006 में हरियाणा के जींद जिले के गांव धौला निवासी अजमेर सिंह ने रांची से खरीद कर लाई गई 14 वर्षीय अपनी आदिवासी 'पत्नी' त्रिपला का सिर्फ इसलिए बेरहमी से कत्ल कर दिया कि उसने उसके भाइयों के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इंकार कर दिया था। अजमेर सिंह का कहना था कि उसे उसके सभी भाइयों के साथ 'पत्नी' की तरह रहना होगा। इस मामले को मीडिया ने 'द्रौपदी सिंड्रोम नाम दिया था। त्रिपला बेहद गरीब परिवार की लड़की थी। भुखमरी से परेशान उसकी मां ने उसे अजमेर सिंह के हाथों बेच दिया था। यह कोई इकलौता मामला नहीं है। असम की ही औनू को उसके गरीब माता-पिता ने 20 हजार रुपए में रामफल नाम के एक वृध्द विधुर को बेचा था। हालांकि उसकी विवाह रामफल के साथ हुआ। इसके बावजूद उसे उसके छोटे भाई 45 वर्षीय कृपाल सिंह के साथ भी शारीरिक संबंध बनाने पड़ते हैं।
रामफल और कृपाल सिंह के मुताबिक़ वे छोटे से सब्जी उगाने वाले किसान हैं। उनकी आमदनी इतनी नहीं कि वे अलग-अलग पत्नियां रख सकें। इसलिए उन्होंने एक ही महिला के साथ 'पांडवों' की तरह रहने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने एक दलाल से संपर्क किया, जिसने उन्हें असम में औनू के परिवार से मिलवाया। ऐसा ही वाकिया हरियाणा के राजू का है। वह कहता है कि वह मजूदर है और उसकी आमदनी भी बेहद कम है। ऐसी हालत में कौन उसे अपनी बेटी देना चाहेगा। इसलिए उसने मीनू को ख़रीदा।
इसी तरह, 22 वर्षीय प्रणीता को क़रीब छह साल पहले असम के कामरूप जिले के गांव हाजो से लाकर मेवात में बेचा गया था। इस मामले में उसके माता-पिता करकंतू और राधेदास ने कामरूप के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर अपनी बेटी को ढूंढने की गुज़ारिश की थी। उनका आरोप था कि दीपा दास नाम की एक महिला उनकी बेटी का विवाह कराने का वादा करने उसको अपने साथ ले गई थी, लेकिन एक साल से उसकी कोई खबर नहीं मिली। अपने बेटी को लेकर चिंतित अभिभावकों ने पुलिस से बेटी को वापस दिलाने की गुहार लगाई थी। इस मामले में खास बात यह रही कि प्रणीता ने वापस असम जाने से इंकार कर दिया। उसका कहना था कि अब उसका एक बच्चा है और वह अपने पति पप्पू सिंह अहीर के साथ ही रहना चाहती है। पप्पू सिंह अहीर असम के ही गांव केयाजेनी की लड़की कनिका दास को ख़रीदने के मामले का आरोपी है, जबकि प्रणीता उसे इस मामले में बेकसूर बताती है।
कनिका दास की बहन बबीता ने अपनी बहन को तलाश करने के लिए स्थानीय स्वयंसेवी संस्था दिव्य ज्योति जनकल्याण समिति की मदद ली और बाद में उसे पता चला कि उसकी बहन की मौत हो चुकी है। कनिका दास गर्भवती थी और इसी दौरान गर्भावस्था से संबंधित किसी समस्या के चलते उसकी मौत हो गई। बताया जाता है कि असम की दीपा दास नामक महिला का विवाह मेवात के गांव शबजपुर में हुआ था। वह असम से गरीब परिवारों से संपर्क कर उनके माता-पिता को इस बात के लिए राजी करती थी कि वे अपनी बेटियों की शादी हरियाणा में कर दें।
ग़रीब परिवारों के लिए दो जून की रोटी जुटाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसी हालत में बेटी के विवाह में दहेज देना उनके बूते से बाहर की बात है। बेटी या तो उम्रभर घर में कुंवारी बैठी रहे जा फिर दूसरे राज्य में ऐसी जगह उसका विवाह कर दिया जाए, जहां दहेज की कोई मांग न हो तो जाहिर है, माता-पिता बेटी का विवाह करने को ही तरजीह देंगे। बस इसी मजबूरी का फायदा उठाकर दीपा दास असम से लड़कियां लाती और हरियाणा में बेच देती। उसने कनिका दास को रेवाड़ी में एक व्यक्ति के हाथों मोटी रकम में बेचा। वह प्रणीता और कनिका दास जैसी न जाने कितनी ही मासूम लड़कियों की ज़िन्दगी तबाह कर चुकी है।
असम की 15 वर्षीय लाली को राज सिंह चौधरी ने एक दलाल के माध्यम से ख़रीदा था। लाली अपने जीवन से खुश नहीं है उसका कहना है कि वह वापस असम जाकर फिर से अपनी जिन्दगी की शुरुआत करना चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। राज सिंह चौधरी का कहना है कि वह यहां से असम जाकर भी सुखी नहीं रह सकती, क्योंकि उसे फिर किसी और के हाथ बेच दिया जाएगा।
पशिचम बंगाल की कविता को हिसार जिले के शेर सिंह ने ख़रीदा था। वह छोटे से घर में रहती है और पौ फटने से लेकर देर रात तक घर के कामकाज के अलावा पशुओं को चारा देने, दूध निकालने और उनकी देखभाल करने का काम करती है। घर से सभी लोग उस पर कड़ी नज़र रखते हैं, क्योंकि वह ख़रीदकर लाई गई है इसलिए किसी को उस पर भरोसा नहीं है। इसी तरह इसी साल मार्च में हिसार में बिहार से लाई गई बीना पर उसका पति तरसेम कड़ी नज़र रखता है। हालत यह है कि काम पर जाने से पहले वह उसे आंगन में बिठाकर कमरे को ताला लगा देता है। उसका कहना है कि क्या भरोसा कब यह टीवी और दूसरा सामान समेटकर अपने किसी यार के साथ फरार हो जाए।
मालती की कहानी तो बेहद दर्द भरी है। महिपाल क़रीब 15 साल पहले उसे बिहार से महज़ दो हज़ार रुपए में ख़रीदकर लाया था। दोनों पति-पत्नी सर्दियों के मौसम में रजाई में धागे डालने का काम करते थे और गर्मियों के मौसम में मेहनत-मज़दूरी करके किसी तरह ज़िन्दगी बसर कर रहे थे। मालती के मुताबिक़ उनके दो बच्चे भी हुए, लेकिन विवाह के करीब पांच साल बाद ही महिपाल बिहार से 13 साल की एक और लड़की को ख़रीदकर ले आया। इसके बाद उसकी परेशानियां और बढ़ गईं। महिपाल उसके साथ और ज़्यादा मारपीट करने लगा बेचने की कोशिश की, लेकिन अपने बच्चों के लिए उसने बिकना गवारा न किया। आज वह हर अत्याचार सहकर भी महिपाल और उसकी दूसरी पत्नी के साथ रहने को मजबूर है। वह कहती है कि शायद दूसरा आदमी भी कुछ ही दिन उसे अपने साथ रखकर किसी और के हाथों बेच देता। बार-बार बिकने से तो अच्छा है कि वह मारपीट सहकर यहीं पड़ी रहे। वह किसी पर बोझ थोड़े ही है। दिनभर मेहनत-मज़दूरी करके अपने और अपने बच्चों के लिए दो वक़्त की रोटी तो कमा ही लेती है।
ये लड़कियां सिर्फ एक बार ही नहीं बिकतीं। समय-समय पर इन्हें एक हाथ से दूसरे हाथ बेचा जाता रहता है, जिससे ये पूरी तरह टूट जाती हैं। मगर इन लड़कियों में कुछ ऐसी खुशनसीब लड़कियां भी हैं, जिनकी पहले की ज़िन्दगी तो बहुत कठिनाइयों भरी थी, लेकिन आज वो सम्मान पूर्वक जीवन बसर कर रही हैं और अपनी ज़िन्दगी से खुश भी हैं। पं। बंगाल की 15 वर्षीय सीमा को उससे दोगुनी उम्र के हरियाणा के किसान महावीर सिंह के हाथों बेच दिया गया। सीमा के मुताबिक वह बेहद ग़रीब परिवार की लड़की है। उसके घर एक दिन छोड़कर चावल पकते थे, जबकि यहां अनाज, दूध और सब्जियां सब कुछ है। वह यहां आकर बेहद खुश है। उसके ससुराल के लोग भी उसे स्नेह और सम्मान देते हैं। इसी तरह सुनीता ओर किरण अपने नए जीवन से संतुष्ट हैं, लेकिन ऐसे मामले बहुत ही कम हैं।
एनजीओ शक्ति वाहिनी की वर्ष 2006 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 593 जिलों में से 378 जिलों में 'मानव तस्करी' से प्रभावित हैं। पुलिस अधिकारी मानते हैं कि अन्य राज्यों से विवाह के खरीद कर लाई गई हजारों लड़कियां राज्य में हैं। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि शिकायत मिलने पर जरूरी कार्रवाई की जाती है।समाज शास्त्री मानते हैं कि स्त्री-पुरुष लिंग अनुपात बढ़ने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। बेटे की चाह में भारतीय परिवारों में कन्या भ्रूण हत्या का चलन बड़ी तेजी से बढ़ा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हरियाणा में वर्ष 1991 में एक हज़ार पुरुषों के पीछे 865 महिलाएं थी, जबकि वर्ष 2001 में यह तादाद घटकर 861 रह गई। हालात की गंभीरता को देखते हुए हरियाणा सरकार ने वर्ष 2006 को कन्या बालिका वर्ष घोषित किया था। इसके साथ ही लड़कियों के लिए 'लाडली' योजना शुरू की थी। इसके तहत दूसरी लड़की के जन्म पर उसके परिवार को पांच साल तक हर साल पांच हज़ार रुपए सरकार की ओर से दिए जाते हैं। अगर परिवार में केवल एक ही लड़की हो तो ऐसी हालत में उसके माता-पिता को 55 वर्ष की उम्र के बाद हर महीने तीन सौ रुपए वृध्दावस्था पेंशन के रूप में दिए जाते हैं। राज्य की स्वास्थ्य मंत्री करतार देवी दावा करती हैं कि सरकार की कोशिशों से हरियाणा में स्त्री-पुरुष लिंग अनुपात में घटा है।
दूसरे राज्यों से ख़रीदकर लाई गई लड़कियां यौन प्रताड़ना का शिकार हैं। उनके तथाकथित पति के अलावा उनके भाइयों, अन्य रिश्तेदारों और मित्रों द्वारा उनका बलात्कार किया जाता है। प्रशासन को चाहिए कि वे इस तरह के दंपत्तियों के विवाह को पंजीकृत कराए, ताकि लड़की का जीवन कुछ तो सुरक्षित हो सके और उसे समाज में वह सम्मान भी मिले जिसकी वह हक़दार है।
लड़कियों की तस्करी सभ्य समाज के माथे पर कलंक है। यह एक अमानवीय प्रथा भी है। जहां सरकार को इसके खात्मे के लिए कारगर कदम उठाने होंगे, वहीं समाज को भी लड़कियों के प्रति अपनी मानसिकता को बदलना होगा।
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