खेतों के वैज्ञानिकों ने अपने खेतों में किए नवाचार-अनुसंधान, उनकी इन उपलब्धियों पर हुआ राष्ट्रीय मंथन
राजस्थान राज्य में अपनी किस्म के पहले और देश के ख्यातिप्राप्त किसान वैज्ञानिकों के साथ राज्य के कृषक-पशुपालकों और वैज्ञानिकों का दो दिवसीय राष्ट्रीय मंथन बीकानेर के राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (राजुवास) में 9-10 मार्च को सम्पन्न हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पर्यावरणविद पद्मश्री अनिल प्रकाश जोशी (उत्तराखंड) थे जबकि विशिष्ठ अतिथि पूर्व सिंचाई मंत्री देवीसिंह भाटी थे. इसके अलावा राजुवास कुलपति डॉ (कर्नल) अजयकुमार गहलोत, वरिष्ठ पत्रकार श्याम आचार्य, अमर उजाला समूह के सलाहकार यशवंत व्यास, स्वामी केशवानंद कृषि विवि के कुलपति प्रो. डॉ बीआर छीपा, महाराजा गंगासिंह विवि के कुलपति प्रो. भागीरथ सिंह, राजुवास के वित्त नियंत्रक अरविन्द बिश्नोई, आयोजन सचिव और प्रसार शिक्षा निदेशक प्रो. राजेश कुमार धूड़िया आदि मंच पर मौजूद थे.
अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ ही कार्यक्रम का आगाज हुआ. कार्यक्रम में खेती में नवाचार करने वाले देश के विभिन्न राज्यों से आए 25 किसान वैज्ञानिकों के साथ राज्य के 150 प्रगतिशील किसान और कृषि और पशुचिकित्सा वैज्ञानिकों ने सहभागिता की. उद्घाटन सत्र में अतिथियों ने आयोजन को राजुवास की एक ऐतिहासिक पहल बताते हुए कृषि में पारंपरिक ज्ञान और विज्ञान का एक अद्भुत सम्मेलन बताया. देश के किसान वैज्ञानिकों ने न्यूनतम शैक्षणिक स्तर के बावजूद खेतों में अपनी जरूरतों और प्रयोगों के आधार पर खेती-बाड़ी में नवाचार और मशीनरी को अनुकूल बनाकर उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिसे व्यावसयिक तौर पर अपनाकर आम लोगों तक पहुँचाने की जरूरत बताई गई, इसके लिये ‛दक्ष किसान संगठन’ बनाए जाने को लेकर सहमति बनी. समारोह के उद्घाटन सत्र में पूर्व सिंचाई मंत्री देवीसिंह भाटी ने कहा कि समाज में हर जाति और कौम के लोगों में कौशल विकास में दक्षता रही है, लेकिन सहायता कार्यक्रमों पर निर्भरता बढ़ने के कारण समाज हाशिए पर आ गया है. कृषक वैज्ञानिकों ने अपनी प्रतिभा से कृषि और पशुपालन में उपयोगी नवाचार व अनुसंधान कर समाज को दिए हैं, ऐसे नवाचारों के समुचित प्रचार-प्रसार की जरूरत है. गांवों के विकास के लिए हमारे यहां प्रचलित शून्य आधारित अर्थ व्यवस्था भी कारगर रही है.
पर्यावरणविद् पद्मश्री अनिल प्रकाश जोशी ने देश में कृषकों की दशा पर चिंता जताते हुए कहा कि देश में आर्थिकी का पहला व्यक्ति किसान है. प्राथमिक उत्पाद गांव से हैं अतः देश की तमाम प्रकार की जरूरतों और सुदृढ़ आर्थिक आधार के लिए इनका मजबूत होना जरूरी है. उन्होंने राष्ट्रीय मंथन में 25 कृषक वैज्ञानिकों के सम्मान को एक नई पहल बताया. उन्होंने दक्ष संगठन बनाने का प्रस्ताव किया, जिस पर राजुवास के कुलपति प्रो. गहलोत ने सहमति जताई. यह संगठन ऐसे नवाचार और अनुसंधानों को पूरे देश में व्यावसायिक रूप देने का कार्य करेगा. राजुवास और कृषि विश्वविद्यालय जैविक उत्पादों के पेटेन्ट और प्रसार का कार्य करेंगे. वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ए.के. गहलोत ने स्वागत भाषण में कृषक वैज्ञानिकों के नवाचार और कार्यों को एक अविस्मरणीय कार्यक्रम बताया. उन्होंने कहा कि इन किसानों ने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के अपनी मेहनत और लगन से कृषि में उल्लेखनीय योगदान देकर पूरे देश में सम्मान और पुरस्कार जीतने में अग्रणी भूमिका निभाई है. उन्होेंने बताया कि राजुवास भी जमीन से जुडे़ अनुसंधान पर कार्य करते हुए राज्य के देशी गौवंश सहित पारंपरिक पशुपालन से अतंरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकी का पशुपालन में उपयोग कर रहा है.
नई दिल्ली से आये वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास ने बताया कि कृषक वैज्ञानिकों के कार्यों को देश और दुनिया में वेबसाईट पर पोर्टल बनाकर प्रसारित किया जायेगा. इसके अलावा इनके नवाचार और अनुसंधान पर 10 लोगों का क्रू बनाकर विशेष वृत चित्र भी बनाये जायेंगे. विश्लेषक-स्तंभ लेखक व पत्रकार श्याम आचार्य ने कहा कि पारिस्थितिकी संतुलन के लिये जीव-जंतु और वनस्पति में संतुलन जरूरी है. नई पीढी़ को भी इसमें जोड़ना होगा. उन्होंने राजुवास द्वारा पशुपालन के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों को महत्वपूर्ण बताते हुए निजी-सार्वजनिक सहभागिता पर जोर दिया.
स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. छीपा ने कहा कि खेती-बाड़ी के क्षेत्र में आशातीत प्रगति हुई है. उन्होंने कृषकों को मृदा स्वास्थ्य के प्रति सतर्कता बरतते हुए शून्य आधारित खेती को अपनाने की सलाह दी. महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भागीरथ सिंह ने कहा कृषि में नवाचार, अनुसंधान और नवीन तकनीक जलवायु के अनुकूल होनी जरूरी है, जिससे इसे लाभदायक बनाये रखा जा सके. किसान आयोग के उपसचिव योगेश वर्मा ने कहा कि राज्य में कृषकों के द्वारा स्थापित नये आयामों और कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा. राजस्थान सरकार द्वारा कृषि में नवाचारों को समुचित प्रोत्साहन हेतु राज्य किसान आयोग का गठन किया जाएगा. राष्ट्रीय मंथन कार्यक्रम के सूत्रधार और ‛खेतों के वैज्ञानिक’ पुस्तक के लेखक डॉ. महेन्द्र मधुप ने कहा कि भारत का किसान वैज्ञानिक दुनिया में किसी से कम नहीं है. अपनी पहली पुस्तक में उन्होंने नवाचार करके धूम मचाने वाले 24 किसान वैज्ञानिकों के कार्यों को प्रस्तुत किया है. ये सभी किसान बिना किसी बाहरी सहायता के खेती से अधिकतम लाभ ले रहे हैं. राजुवास के वित्त नियंत्रक अरविन्द बिश्नोई ने भी कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त किये.
आयोजन सचिव और प्रसार शिक्षा निदेशक प्रो. आर.के. धूड़िया ने बताया कि राज्य के 15 जिलों के 150 से भी अधिक प्रगतिशील कृषक और पशुपालक भी इस आयोजन में सहभागी रहे हैं. उन्होंने सभी का आभार जताया. अतिथियों ने डॉ. महेन्द्र मधुप द्वारा लिखित ‛खेतों के वैज्ञानिक’ पुस्तक और प्रसार शिक्षा निदेशालय की मासिक पत्रिका ‛पशुपालन नये आयाम’ के नवीन अंक का विमोचन किया. समारोह में अतिथियों ने 25 कृषक वैज्ञानिकों को शॉल, श्रीफल और स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. अशोक गौड़ और डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा ने किया. समारोह में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, कृषि, वेटरनरी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और संभ्रान्त के नागरिकों ने भाग लिया.
ये हैं खेतों के वैज्ञानिक
1. ईश्वरसिंह कुण्डू
गांव कैलरम, जिला-कैथल, हरियाणा. जैविक खेती में शोध के लिए प्रतिष्ठित. 2013 में महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा द्वारा 44 लाख रूपये की सहायता अनुदान से सम्मानित विश्व के पहले किसान. ‛कमाल-505’ उत्पाद के लिए राष्ट्रपति भवन में डॉ कलाम से सम्मानित. बीसियों सम्मान. लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज. आईसीएआर द्वारा वर्ष 2011 में जगजीवनराम सम्मान.
2. धर्मवीर कम्बोज
गांव दामला, जिला- यमुनानगर, हरियाणा.
उत्पाद प्रसंस्करण मशीन सहित कई मशीनें विकसित की हैं. 2014 में किसान वैज्ञानिक के रूप में राष्ट्रपति भवन में 20 दिन मेहमान रहे हैं. साधारण निर्धन किसान और रिक्शा चालक से ढाई दशक में एक करोड़ रूपये की मशीनें बेचने वाले किसान वैज्ञानिक के रूप में लोकप्रिय.
3. गुरमेलसिंह धौंसी
पदमपुर, जिला-श्रीगंगानगर, राजस्थान.
करीब दो दर्जन कृषि यंत्र विकसित किये हैं. 2014 में राष्ट्रपति भवन में बीस दिन मेहमान रहे हैं. 2012 में राष्ट्रपति भवन में एनआईएफ का 5 लाख रूपये का पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं.
4. रायसिंह दहिया
जयपुर, राजस्थान. दहिया ने बायोमास गैसीफायर विकसित किया है. 2016 में राष्ट्रपति भवन में 15 दिन मेहमान रहे हैं. 2009 में राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय स्तर का द्वितीय वर्मा पुरस्कार मिला.
5. सुंडाराम वर्मा
गांव दांता, जिला-सीकर, राजस्थान.
एक लीटर पानी से एक पेड़ विकसित करने की प्रणाली की खोज करने वाले इकलौते किसान. अनेकों राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार. जिनेवा में वैश्विक सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. आईसीएआर द्वारा भी सम्मानित हो चुके हैं.
6. हरिमन शर्मा
गांव-पनियाला, जिला-बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश.
तपती धरती पर सेब उत्पादन में सफलता प्राप्त की. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 04 मार्च 2017 को 3 लाख रूपये का द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया.
7. श्रवण कुमार बाज्या
गांव-गिरधारीपुरा, जिला-सीकर, राजस्थान.
खरपतवार हटाने की मशीन सहित 6 मशीनें विकसित की हैं. 04 मार्च 2017 को राष्ट्रपति भवन में एनआईएफ का 3 लाख रूपये का पुरस्कार प्रदान प्राप्त कर चुके हैं.
8. राजकुमार राठौर
गांव-जमोनिया टेंक, जिला- सिहोर, मध्यप्रदेश.
अरहर की बारहमासी किस्म ‛ऋचा 2000’ विकसित की है. मोतियों वाले राजकुमार के नाम से भी जाने जाते हैं. राष्ट्रपति भवन में सम्मान सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं.
9. चौधरी परमाराम
तहसील-सुन्दरनगर, जिला-मंडी, हिमाचल प्रदेश.
2006 में बहुउद्देश्य टीलर कम पुडलर बनाया. 2014 में आईसीएआर ने जगजीवनराम अभिनव पुरस्कार प्रदान किया.
10. इस्हाक़ अली
गांव- कछोली, जिला- सिरोही, राजस्थान.‛आबू सौंफ-440’ विकसित की. आईसीएआर द्वारा जगजीवनराम अभिनव पुरस्कार से सम्मानित. ‛सिटा’ द्वारा ‛खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं.
11. मदनलाल कुमावत
गांव- दांता, जिला- सीकर, राजस्थान.
पुराने ट्रैक्टर पर बनाया लोडर. बहु फसल थ्रेसर विकसित किया. राष्ट्रपति द्वारा 04 मार्च 2017 को राष्ट्रपति भवन में सम्मानित. कई राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय सम्मान प्राप्त कर चुके हैं. पहले किसान हैं जिनका नासम 'फोर्ब्स' मैगज़ीन में छप चूका है.
12. जितेन्द्र मलिक
गांव- सींख, जिला- पानीपत, हरियाणा.
मशरुम टर्निंग मशीन विकसित की है. 2015 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने एनआईएफ का 3 लाख रूपये का पुरस्कार प्रदान किया.
13. राजेश खेड़ी
गांव-खेड़ी, जिला- कैथल, हरियाणा.
जैविक खेती में नवाचारों से राष्ट्रीय पहचान बना चुके हैं. आईसीएआर द्वारा ’जैविक हलधर पुरस्कार-2015’ व 2016 में प्रदान किया गया है.
14. भगवती देवी
गांव-दांता, जिला-सीकर, राजस्थान.
फसल को दीमक से बचाने का नुस्खा विकसित किया है. ‛सिटा’ द्वारा 2011 में ‛खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं. महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा ने ‛इण्डिया एग्री अवार्ड-2011’ प्रदान किया है.
15. मोहम्मद मकबूल रैना
गांव- थन्ना मण्डी, जिला- राजौरी, जम्मू कश्मीर.
कृषि नवाचारों से युवाओं को आतंकवादी बनने से रोका है. इनका कहना है कि ‛गन से नहीं हल से मिलेगी आतंकवाद से मुक्ति’. 2011 में ‛सिटा’ द्वारा ‛खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान प्राप्त किया है.
16. अरविन्द सांखला
मारवाड़- मथानिया, जिला-जोधपुर, राजस्थान.
गाजर धुलाई मशीन, मिर्ची ग्रेडिंग एवं सफाई मशीन, जमीन से लहसुन निकालने के लिये ‛कुली’ मशीन आदि विकसित कर चुके हैं. ‛सिटा’ द्वारा ‛खेतों के वैज्ञानिक’ राष्ट्रीय सम्मान से भी सम्मानित हैं.
17. जसवीर कौर
गांव-प्रेमपुरा, जिला- हनुमानगढ़, राजस्थान.
एक साथ सात काम करने वाला उपकरण विकसित किया है. खेती में कई प्रयोग किये हैं. ‛सिटा’ द्वारा ‛खेतों के वैज्ञानिक’ और एनआईएफ द्वारा सम्मानित. इन्होने शारीरिक अशक्तता को शोध में आडे नहीं आने दिया.
18. सुशील कुमार कुंडू
ताखरवाली, पोस्ट-रंगमहल, तहसील- सूरतगढ़, जिला गंगानगर, राजस्थान.
बंजर भूमि को नवाचारों से जैविक किसानों के लिये पर्यटन स्थल बना दिया है. जैविक खेती में निरंतर नये प्रयोग करते रहे हैं. ‛सिटा’ द्वारा ‛खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान प्राप्त कर चुके हैं.
19. सुरेन्द्र सिहं
गांव-धिंगनवाली, तहसील- अबोहर, जिला-फिरोजपुर, पंजाब.
खेती और डेयरी उत्पाद पूरी तरह जैविक हों इस अभियान से पंजाब में विषिष्ट पहचान बनाई है. निरंतर नित नए नये प्रयोग करते रहते हैं.
20. कैलाश चौधरी
गांव-कीरतपुरा, तहसील-कोटपूतली, जिला-जयपुर, राजस्थान.
जैविक खेती और आंवला प्रसंस्करण के लिये राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त किसान हैं. 2016 में राजस्थान सरकार ने 1 लाख रूपये का पुरस्कार प्रदान किया था. आईसीएआर ने भी पुरस्कार देने की घोषणा की है. आईसीएआर ने इन्हें जैविक खेती के 5 प्रशिक्षणों के लिये भी चयनित किया है.
21. मोटाराम शर्मा
जिला-सीकर, राजस्थान.
हाल ही में दसवीं पास की है. मशरुम उत्पादन और प्रसंस्करण में नवाचारों के कारण देशभर में पहचान बना चुके हैं. 2010 में राजस्थान सरकार ने ’कृषि रत्न’ और 50 हजार रूपये सम्मान राशि प्रदान की. 2010 में ‛सिटा’ ने ‛खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान प्रदान किया.
22. जगदीश प्रसाद पारीक
तहसील अजीतगढ, जिला-सीकर, राजस्थान.
फूलगोभी की ‛अजीतगढ़ सलेक्शन’ किस्म विकसित की है. हाल ही में 25 किलो की फूलगोभी मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को भेंट की, विश्व रिकार्ड 26 कि. ग्रा. की गोभी का है. इन्होनें कई मशीनें भी विकसित की हैं. एनआईएफ और सिटा द्वारा सम्मानित हो चुके हैं.
23. झाबरमल पचार
झीगर बड़ी, पोस्ट- झीगर छोटी, जिला- सीकर, राजस्थान.
सलेक्शन पद्धति से तीन फीट लम्बी देशी काली गाजर विकसित की है. एनआईएफ ने इनके बीज को कारगर माना है. इस गाजर की मिठास शक्कर जैसी है. इनकी पत्नी संतोष पचार 15 दिनों तक किसान वैज्ञानिक के रूप में राष्ट्रपति भवन में मेहमान हैं.
24. प्रिन्स कम्बोज
ग्राम एवं पोस्ट- दामला, जिला यमुनानगर, हरियाणा.
किसान-वैज्ञानिक पिता धर्मवीर कम्बोज के साथ किसान- वैज्ञानिक की भूमिका में सक्रीय हैं. कृषि प्रसंस्करण में कई नये प्रयोग किये हैं. इण्डिया-अफ्रीका सबमिट-2015 में नवाचारी किसान शोधकर्ता के रूप में भाग ले चुके हैं. आदिवासियों के लिये सस्ती मशीने बनाने में जुटे हैं. ‛सिटा’ द्वारा ‛खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान प्राप्त कर चुके हैं.
25. कुमारी राज दहिया
जयपुर, राजस्थान की रहने वाली युवा किसान वैज्ञानिक हैं. पिता रायसिंह दहिया द्वारा विकसित बायोमास गैसीफायर का वर्तमान स्वरूप विकसित करने में राज दहिया की महत्वपूर्ण सह-भूमिका रही है. राज ने बायोमास कुक स्टोव विकसित किया है. ‛सिटा’ द्वारा ‛खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं.
26. भंवरसिंह पीलीबंगा
जयपुर, राजस्थान ने जैविक खेती एवं उसके प्रसंस्करण में नवाचारों से अलग पहचान बनाई है. अपने तरीके से ग्रीन हाऊस का मॉडल बनाया है. इसमें बेल वाले टमाटर पर शोध किया. ऑर्गेनिक टमाटर की ऊंचाई 15 फीट है. जैविक खेती के लिये किसानों के बुलाने पर जाकर बिना शुल्क मार्गदर्शन करते हैं.
प्रस्तुति : मोईनुद्दीन चिश्ती, लेखक ख्याति प्राप्त कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार हैं.