समीर पुष्प
बीते युग की कहानी कहती है कि दिल्ली सात बार बसी और सात बार उजड़ी। गाथाओं के सृजन की शक्ति और इतिहास के बदलने के साथ अंग्रेजों की दिल्ली के गौरवशाली 100 वर्ष पूरे हो गये हैं। अनेक असाधारण घटनाओं की गवाह रही दिल्ली कुछेक दु:खद किन्तु यहां के लोगों की असाधारण प्रतिभा के परिणामस्वरूप अक्सर सफलता के हर्षोल्लास और विविध घटनाओं से परिपूर्ण रही है
एक जीवन्त महानगर के रूप में इसके कई किस्से है जो समय के साथ दब गयेकिन्तु उनकी तात्कालिकता अब भी भावपूर्ण है। एक समृद्ध इतिहास, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक एकता के अलावा दिल्ली के पास और भी बहुत कुछ है। दिल्ली एक ऐसी झलक पेश करती है, जिसमें जटिलताएं, विषमताएं, सुन्दरता और एक नगर की गतिशीलता है, जहां अतीत और वर्तमान का अस्तित्व एक साथ कायम है। यहां अनेक शासकों ने राज किया और जिससे इसके जीवन में कई सांस्कृतिक घटकों का समावेश हो गया। एक ओर जहां ऐतिहासिक इमारतें, प्राचीन काल की महिमा का प्रमाण हैं, वहीं दूसरी ओर लम्बे समय से पीडि़त यमुना नदी भी है जो वर्तमान की उपेक्षा की कहानी कहती है। दिल्ली का अस्तित्व बहुस्तरीय है और यह सबसे तेजी से विकसित होते महानगरों में शामिल है। 13वीं और 17वीं शताब्दी में बसे सात नगरों से निकलकर दिल्ली ने अपने नगरीय क्षेत्र का निरंतर विस्तार किया है। इसकी गगनचुम्बी इमारतें, आवासीय कॉलोनियां और तेजी से बढ़ते व्यावसायिक मॉल ये सभी बदलते समय के परिचायक हैं। उर्जा, बौद्धिकता और उल्लास की भावना से ओतप्रोत लोग दिल्ली की आत्मा हैं। करोड़ों लोग अपना आशियाना बसाने और अपनी आशाओं को पूरा करने के उद्देश्य से पूरी जीवन्तता और जोश के साथ यहां काम में जुटे रहते हैं। पिछले कई दशकों से दिल्ली विविध अवधारणाओं अभिनव परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करती रही है। अपने आप को पुनर्जीवित करने की शक्ति और समय की कसौटी पर खरा उतरने की उर्जा दिल्ली को बेजोड़ बनाती है, जो इसकी जीवनचर्या में देखी जा सकती है।
भारत एक महान राष्ट्र है और इसकी राजधानी होने के कारण दिल्ली इस महानता में पुरानी और नई भागीदारी का एक प्रतीक है। आज की दिल्ली एक बहुआयामी, बहु-सांस्कृतिक और बहुविध प्रगतिशील है। यह निरंतर साथ मिलकर चलने की प्रवृति रखती है। बिना किसी हिचक के दिल्ली करोड़ो लोगों का घर और उनकी आशायें है। स्वतंत्रता के बाद दिल्ली में व्यापक सुधार हुए और विकसित राष्ट्र की राजधानियों के साथ-साथ इसका भी जोरदार विकास हुआ। अतीत में कुछ समय से दिल्ली सत्ता का स्थान नहीं था। हालांकि यहां का हरेक पत्थर और यहां की हरेक र्इंट हमारे कानों में इसके लम्बे और गौरवमय इतिहास की कहानी कहते है।
अरावली की क्षीण होती श्रेणियों और यमुना के बीच दिल्ली ने अपने युगों के इतिहास की भूलभुलैया को दफन कर रखा है। दिल्ली ने अपना नाम राजा ढिल्लु से लिया है। दिल्ली का शुरुआती ऐतिहासिक संदर्भ पहली शताब्दी पूर्व से शुरू होता है। इतिहास में दिल्ली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसकी वजह इसकी भौगोलिक अवस्थिति हो सकती है। दिल्ली का मध्य एशिया, उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र और देश के बाकी क्षेत्र के साथ हमेशा सुविधाजनक संपर्क रहा है। प्रसिद्ध मौर्य शासक अशोक के समय का शिलालेख बताता है कि दिल्ली मौर्यों की उत्तरी राजमार्ग पर अवस्थित थी और यह उनकी राजधानी पाटलिपुत्र को तक्षशिला से जोड़ती थी। इसी रास्ते से बौद्ध भिक्षु तक्षशिला जाते थे। इसी मार्ग से मौर्यों के सैनिक भी तक्षशिला और सीमावर्ती विद्रोहियों से निपटने के लिए जाते थे। इस वजह से दिल्ली को सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण स्थान मिला।
दिल्ली की कहानी में कई शहरों के अस्तित्व की कहानी छुपी है। इसका वर्णन नीचे किया जा रहा है:
इन्द्रपस्थ 1450 ई. पू.
स्थल: पुराना किला।
अवशेष: पुरातात्विक साक्ष्य अब यह साबित करते हैं कि वास्तव में यही दिल्ली का सबसे पुराना नगर था। दिल्ली का कोई शख्स इंद्रप्रस्थ का अस्तित्व कभी नकार नहीं पाता। इसके पतन का कारण पता नहीं है।
लाल कोट या किला राय पिथौरा 1060 ई.
स्थल: कुतुब मीनार-महरौली परिसर
अवशेष: मूल लालकोट का बहुत थोड़ा हिस्सा शेष। राय पिथौर किले के 13 दरवाजों में से केवल 3 शेष हैं।
निर्माता: राजपूत तोमर। 12वीं शताब्दी। राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान ने इस पर कब्जा किया और इसका विस्तार किया।
सीरी 1304 ई.
स्थल: हौजखास और गुलमोहर पार्क।
अवशेष: कुछ हिस्से और दीवारें शेष। अलाउद्दीन खिलजी ने सीरी के चारों ओर अन्य चीजों जैसे दरवाजा, कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का दक्षिणी दरवाजा और वर्तमान के हौजखास में जलाशय आदि का निर्माण भी करवाया।
निर्माता: दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी। अलाउद्दीन खिलजी को उसके द्वारा किए गए व्यापारिक सुधारों के लिए जाना जाता है। इसलिए यह बहुत बड़ा कारोबारी केंद्र था।
तुगलकाबाद 1321.23 ई.
स्थल: कुतुब परिसर से 8 किलोमीटर दूर
अवशेष: दीवारों और कुछ भवनों के भग्नावशेष।
निर्माता: गयासुद्दीन तुगलक।
जहानपनाह 14वीं सदी के मध्य
स्थल: सीरी और कुतुबमीनार के मध्य।
अवशेष: रक्षात्मक प्राचीर के कुछ अवशेष।
निर्माता: मोहम्मद-बिन-तुगलक।
फिरोज़ाबाद 1354 ई.
स्थल: कोटला फिरोज़शाहअवशेष: अवशेषों में केवल अशोक स्तम्भ बचा हुआ है। अब वहां क्रिकेट स्टेडियम है जो फिरोजशाह कोटला मैदान के नाम से विख्यात है।निर्माता: फिरोजशाह तुगलक। यह सिकन्दर लोधी के आगरा चले जाने तक राजधानी रहा।
दिल्ली शेरशाही (शेरगढ़) 1534
स्थल: चिडि़याघर के सामने पुराना किले के आसपास।
अवशेष: उंचे द्वार, दीवारें, मस्जिद और एक बड़ी बावड़ी (कुंआ)। काबुली और लाल दरवाज़ा, द्वार और शेर मंडल।द्वारा निर्मित: वास्तव में इस दिल्ली का निर्माण दूसरे मुगल बादशाह हुमायुं द्वारा शुरू किया गया और शेरशाह सूरी ने इसे पूरा किया गया।
शाजहानाबाद 17वीं शताब्दी का मध्यकालस्थल: मौजूदा पुरानी दिल्ली
अवशेष: लालकिला, जामा मस्जिद, पुरानी दिल्ली के मुख्य बाजार जैसे चाँदनी चौक, दीवारों के लम्बे भाग और नगर के कई द्वार। पुरानी दिल्ली भीड़-भाड़ वाली रही होगी, लेकिन यह अभी भी अपना मध्ययुगीन सौंदर्य बनाये हुए है। लोग गर्मजोशी से स्वागत करने वाले हैं। मुगलवंश के पांचवें बादशाह शाहजहां अपनी राजधानी आगरा से यहां ले आए।
भारत की राजधानी न केवल अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए जानी जाती है, बल्कि उत्कृष्ट कला और शिल्पकला के लिए भी प्रसिद्ध है। वास्तव में दिल्ली की कलाएं और शिल्पकलाएं शाही जमाने से संरक्षित है। अपने समय के सांस्कृतिक केंद्र के रूप में दिल्ली ने सर्वोत्तम चित्रकारों, संगीतज्ञों और नर्तकों को आकर्षित किया। ऐसा इसलिए क्योंकि इस शहर की कोई अपनी विशिष्ट पहचान नहीं है। समय बीतने के साथ-साथ भारत के विभिन्न क्षेत्रों से लोग आए और यहां बस गए। इस प्रकार दिल्ली भांति-भांति के लोगों का केंद्र बन गई। धीरे-धीरे दिल्ली ने यहां रहने वाले हर तरह के लोगों की पहचानों को अपना लिया, जिसने इसे बहुरंगी पहचान वाला शहर बना दिया।
दिल्ली की सबसे बड़ी पहचान इसकी विविधता है। इसमें विभिन्न पृष्ठभूमियों जैसे धर्म, क्षेत्र, भाषा, जाति और वर्ग के लोग आकर बस गए, जिनकी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संसाधनों और अवसरों तक मिलीजुली पहुंच है। दिल्ली हमेशा से विविध गतिविधियों का केंद्र रहा है, जिसने बड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं। दिल्ली की हवा वर्तमान की गलतियों और अतीत की सुगंध से भरपूर है, जो नए भारत का मार्ग प्रशस्त करती है।
(समीर पुष्प एक स्वतंत्र लेखक हैं)