सरफ़राज़ ख़ान
पूर्वोत्तर भारत में अरुणाचल प्रदेश के कामेंग जिले में पाखुई बाघ संरक्षित क्षेत्र एक सुरक्षित क्षेत्र है। यहां दूर-दूर तक हरियाली फैली है और विभिन्न वन्य जीव रहते हैं। इस बाघ संरक्षित क्षेत्र का मुख्यालय सीजुसा है, जो असम के साइबारी से 21 किलोमीटर की दूरी पर है। यह बाघ संरक्षित क्षेत्र पश्चिम और उत्तर में कामेंग नदी, पूर्व में पक्के नदी तथा दक्षिण में असम की दुर्गम सीमा से घिरी है। इसमें काफी घने वन हैं। इसमें कई तरह के पर्यावास क्षेत्र, जैसे निचले अर्ध्द सदाबहार, सदाबहार और पूर्वी हिमालय हैं। पूर्वी हिमालय वाले इलाके में चौड़े पत्ते वाले पेड़ पाये जाते हैं। इस बाघ संरक्षित क्षेत्र से असम का नामेरी बाघ संरक्षित क्षेत्र भी लगा हुआ है।
संरक्षित वन से बाघ संरक्षित क्षेत्र
पहले, यह पक्के संरक्षित क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। इसके सीमावर्ती क्षेत्र से कामेंग और पक्के नदियों के बहने के कारण ही इसे सन 1966 में यह नाम दिया गया था। सन 1977 मे इसका नाम बदलकर कोमो अभयारण्य कर दिया गया। बाद में 2002 में इसे पाखुई वन्य जीव संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। अंतत: 18 फरवरी, 2002 को इसे भारत सरकार की प्रोजेक्ट टाइगर स्कीम के अंतर्गत ले आया गया और उसके महज पांच दिन बाद ही इसे पाखुई बाघ संरक्षित क्षेत्र नाम दिया गया।
चैम्पियन एवं सेठ के वर्गीकरण के अनुसार इस संरक्षित क्षेत्र को निम्नलिखित वर्गों में बांटा गया है-
1. असम घाटी उष्णकटिबंधीय अर्ध्द सदाबहार वन
2. उप हिमालयी अल्प कछार अर्ध्द सदाबहार वन (92 बीसी151)
3. पूर्वी छोटी पहाड़ी वाले वन (3152(बी) )
4. ऊपरी असम घाटी उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन ( आईबीसी 2बी )
5. उष्णकटिबंधीय नदी क्षेत्र वन ( 4ईआरएसआई)
6. द्वितीयक नम बांस क्षेत्र ( ई12एसआई )
वनस्पति
इस संरक्षित क्षेत्र का निचला इलाका दलदली तथा वर्षा वाले वनों, बड़े पेड़ों जैसे हुलॉक, बोला तथा बड़े-बड़े बांसों, आकिर्ड, क्लाइम्बर्स (बेंत) आदि से ढका है। इस इलाके में बेंत की कैलामस क्रेक्टस, कैलामस टन्यूस तथा कैलामस पऊलैजेला प्रजातियां पाई जाती हैं।
बांस
यहां खासकर उपरी क्षेत्रों में बड़े-बड़े बांस मिलते हैं। अरूणाचल प्रदेश में बांस की 30 प्रजातियां पायी जाती हैं। डेंड्रोकैलामस हेमिटोन्नी, बंबूसा पेलिडा, स्यूडोस्टाकेम पोलीमारफिज्म बांस की महत्वपूर्ण प्रजातियां हैं। हजार से तीन हजार की ऊंचाई पर पर्णपाती एवं अर्ध्द-पणपाती वन हैं। यहां, अखरोट, बांज, चेस्टनट स्प्रूस और डोडेन्ड्रस जैसे पौधे पाये जाते हैं। 4000 मीटर की ऊंचाई पर छोटे रोडोडेन्ड्रस पाये जाते हैं तथा पांच हजार मीटर की ऊंचाई के आसपास अल्पाइन घास पायी जाती है।
आकिर्ड
आकिर्ड के वन प्रारंभिक, अछूते तथा छेडछाड़ से मुक्त है। एक बहुत बड़े वन यात्री श्रुति रवीन्द्रन लिखते हैं, 'आकिर्ड में ऐसा कुछ है जो हमारे मस्तिष्क में स्त्रियोचित भाव पैदा करता है। यह हमें कस्तूरी के गंध का या गर्मी में भनभनाती मधुमक्खियों-सा भान कराता है। इसकी सुंदरता बहुविध होती है। यह हमें सनसनाती पत्तियों से घोसलें में पड़े कीड़े तक की याद दिलाता है।' दुनियाभर में आकिर्ड की 35000 वन्य प्रजातियां हैं, जिनमें से 1450 प्रजातियां भारत में हैं। इन 1450 प्रजातियों में 900 दुलर्भ एवं उत्तम प्रजातियां अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में पायी जाती हैं। कृषि योग्य बहुविध जलवायवीय अवस्थाएं, उच्च आद्रता और वर्षा एवं सीमावर्ती चीन और बर्मा की प्रजातियों का प्रसार इस इलाके को विभिन्न प्रकार के आकिर्ड के लिए आदर्श पर्यावास बनाते हैं। आकिर्ड जमीन पर उगते हैं। आकिर्ड दो प्रकार के होते हैं। अधिपादप यानि चट्टानों एवं पेड़ों पर उगने वाले आकिर्ड तथा मृतजीवी यानि वन अपशिष्ट पर उगने वाले आकिर्ड। भारत के दुर्लभ आकिर्ड लोस्ट लेडिज स्लीपर तथा नीले वांडा (धारीदार) पेड़ों पर उगते हैं। आकिर्ड साहित्य के अनुसार ब्रिटिश इंडियन आर्मी के एक जवान ने सबसे पहले 19वीं सदी के अंतिम वर्षों में लोस्ट लेडिज स्लीपर देखा था। लाल और नीले वांडा दूसरे दुर्लभ आकिर्ड हैं जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। डिप्लोमेरिस हिरसूट यानि बफीर्लें आकिर्ड को पूर्वी हिमालय में तीन दिनों की यात्रा के बाद देखा जा सकता है।
पेड़ों की प्रमुख प्रजातियों में बड़े पेड़ टर्मिनालिया मायरियोकार्पा (हॉलाक), ऐलांथस इजसेला (बारापेट), दुभानगगरांडिपऊलोरा (खोकान), केनेरियम रेसिनफेरम, ट्रेविया नूडिपऊलोरा, टेट्रोमिलूस नूडिमपऊलोरा, स्टेरकूलिया विल्लोसा, मैक्रोपैनेक्स डेपरमस, सिजिगियमएक्रोकारपम, गार्सिनिया, स्पेशीज, क्यूरकस लामा लियोसा आदि कई प्रकार के वृक्ष शामिल हैं।
वन्य जीव
इस संरक्षित क्षेत्र में बाघ, चीते, बादलों के रंगवाले चीते, जंगली बिल्लियां, जंगली कुत्ते, सियार, भारतीय लोमड़ियां, हमालयी काले भालू, हाथी, गौर, बिटूरोंग, सांभर, पाढा, बाकिर्गं डीयर, स्लो लोरिस, पीले गले वाले अबाबील, मलयालन बड़ी गिलहरी, उड़ने वाली गिलहरी, गिलहरी, मुष्क बिलाव, लंगूर, रियसस मैकेक, असमी मैकेक आदि जानवर पाये जाते हैं। एक अनुसंधानकर्ता ने इस क्षेत्र में पूंछ पर छाप वाले मैकेक के पाये जाने की बात कही है।
चिड़िया
इस संरक्षित क्षेत्र में रंग-बिरंगे पक्षी पाये जाते हैं। उनमें हार्नबिल, सफेद पंख वाले काले बतख, जंगली मुर्गियां, महोख, पंडुक, बसंता, गरूड, बाज आदि शामिल हैं। कुछ सरीसृप जैसे अजगर और करैत सांप भी यहां मिल जाते हैं।
भारत में बाघ अभयारण्य -: नमेरी बाघ अभयारण्य- व्हाईट विंग्ड वुड डक का अंतिम घर
असम का सोनितपुर जिला पूर्वी हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं की तराई में स्थित है, जहां नमेरी बाघ अभयारण्य मौजूद है। यह क्षेत्र पूरी दुनिया में फूल-पौधों और वन्य प्राणियों के खजाने के तौर पर जाना जाता है, लेकिन यह सबसे ज्यादा खतरे में भी है। इस पूरे इलाके को जिया भोरोली और दिजी, दिनाई, दोइगुरंग, नमेरी, दिकोराई, खारी आदि सहायक नदियों से पानी मिलता है। अभयारण्य 200 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इससे बालीपारा संरक्षित वन क्षेत्र भी सटा हुआ है, जिससे इसका क्षेत्रफल बढ़ जाता है। बालीपारा संरक्षित वन क्षेत्र जिया भोरोली की उलटी दिशा में 64 वर्ग किलोमीटर और नदुआर संरक्षित वन क्षेत्र के 80 वर्ग किलोमीटर के इलाके में पड़ता है। यह इलाका ऊंचा-नीचा है। नदी के किनारे-किनारे कहीं-कहीं ऊंचाई 80 मीटर है तो मध्य व उत्तरी हिस्से में ऊंचाई 225 मीटर है।
यह पारिस्थितिकी क्षेत्र नार्थ बैंक लैंडस्केप और ईस्टर्न हिमालयन मेगा बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट का अंग है। पौधों की किस्मों और पौधों की जटिल संरचना के मामले में यह क्षेत्र दुनिया में सबसे ज्यादा मालामाल है। क्षेत्र पर ऊष्णकटिबंधीय वर्षा का खासा प्रभाव है, जहां मौसमी व भारी वर्षा होती है। मई और सितम्बर के बीच औसतन 3400 मिलीमीटर वर्षा होती है। असम की जिया भोरोली नदी अंग्रेजों के समय से ही महासीर मछली पकड़ने के लिए प्रसिध्द रही है। अरुणाचल प्रदेश के कठोर पर्वतों से बल खाती हुई यह नदी असम के भालुकपुंग के मैदान में उतरती है। यह नदी भारतीय नदियों के बाघ के नाम से प्रसिध्द -सुनहरी महासीर का घर है। एचएस थॉमस ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि महासीर अपने वजन और चपलता में मेरे वतन की शानदार सालमन से बहुत बेहतर है।
जंगलों के प्रकार व बनावट
· असम वेली ट्रापिकल एवरग्रीन फॉरेस्ट - आई आरसी 2 बी मेसुआ सब टाइप
· असम ऐल्युवियल प्लेन्स सेमी एवरग्रीन फॉरेस्ट्स - 2 बीसीआईए फोवे-अनूरा एसोशिएसन
· सब-हिमालयन लाइट एल्युवियल सेमी एवरग्रीन फॉरेस्ट्स, 2बीआईएसआई मेकाही सब टाइप
· ईस्टर्न एल्युवियल सेकेन्डरी सेमी एवरग्रीन फॉरेस्ट्स - 2बी2 एस
· केन ब्रेक्स 2बीईआई
· वैट बेम्बू ब्रेक्स 2बीके 2
· नार्दन सेकेन्डरी मोइस्ट मिक्स, डेसीडूअस फॉरेस्ट्स 3सी2 एसआई
· लो एल्यूवियल सवान्ना वुड लैंड - 3आईएसआई
· इर्स्टन हॉल्लॉक फॉरेस्ट्स - 3आईएस 2बी
· 4 डीएसएसआई ईस्टर्न सीजनल स्वॉम्प फॉरेस्ट्स
· ईस्टर्न डिल्लेनिया स्वॉम्प फॉरेस्ट्स 4डीएसएस डिल्लेनिया एल्टिनजिया एसोशिसन
· ईस्टर्न वैट एल्यूवियल ग्रास लैंड 4डी2.5.2.
यह राष्ट्रीय उद्यान असम का दूसरा बाघ अभयारण्य है। नमेरी को 17 अक्तूबर, 1978 को संरक्षित वन घोषित किया गया था। इसकी स्थापना 18 सितम्बर, 1985 को नमेरी अभयारण्य के तौर पर हुई, जिसका रकबा 137 वर्ग किलोमीटर रखा गया जो वास्तव में नदुआर संरक्षित वन का अंग था। इसके बाद इसमें 75 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र जोड़ दिया गया, और इस तरह यह रकबा कुल 212 वर्ग किलोमीटर हो गल। 15 नवम्बर, 1988 को इसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय उद्यान के रूप में गठित किया गया, जिसका रकबा 200 किलोमीटर रखा गया। वर्ष 2002 की गणना के अनुसार अभयारण्य में 26 बाघ हैं।
वर्षा काल के दौरान वहां कुछ झीलें भी बन जाती हैं। वर्षा काल में जब ऊंचाई वाले स्थानों पर लगातार बारिश होती है तो जिया भोरोली और उसकी सहायक नदियां उफन उठती हैं। एक तो यहां पहुंचना कठिन है और दूसरे अगल-बगल भी जंगल है, जिसने नमेरी में वन्य जीवन को फलने-फूलने में मदद की। यहां सांभर, हिरणों की प्रजातियां, जंगली सूअर और गौर जैसे शिकार भी बाघों के लिए उपलब्ध हैं। बाघों और चीतों के लिए लगभग 3000 मवेशी भी उपलब्ध हैं।
पादप
नमेरी का पर्यावास उष्णकटिबंधीय क्षेत्र है, जहां सदैव हरे-भरे रहने वाले वर्षा वन हैं। बांसों और नदियों के किनारे-किनारे तंग खुले घास के मैदान हैं। वर्षा वन में 600 से भी ज्यादा प्रजातियां हैं, जिसमें गामारी, टिटोचोपा, अमारी, बोगीपोमा, अजर, यूरियम पोमा, भेलौ, अगारू, रूद्राक्ष, बोंजोलोकिया, हातीपोलिया अखाकन, एहोलॉक, नाहोर, सिया नाहर, सेमल, बॉनसम आदि शामिल हैं। यहां डेंड्रोबियम, सिमबीडियम, लेडीज स्लीपर आदि ऑर्काइड्स भी हैं। लताओं में ट्री फर्न, लियानास वहां की कुछ विशेषताएं हैं।
प्रमुख पादप प्रजातियों में शामिल हैं - अलबिजिया, लुसीडा, अलबिजिया प्रोकेरा, अमूरा, वालिची, जावानिका, बॉमबैक्स सेबा, कनेरियम स्ट्रिक्टम, कैस्टानोपसिस इंडिका, कॉर्डिया डिकोटोमा, सिनामोमम सेसिकोडाफनिया, डेंड्रोकेलेमस हैमिलटोनी, डिलेनिया इंडिका, दुआबंगा ग्रेडीपऊलोरा, दुआबंगा सोनेरेटायड्स, डाइसोक्सीलम प्रोकेरम, इंडोस्पेरमम चिनेनसे, लागरस्ट्रोमिया फलॉस-रेगिने, लिटसी सेबीफेरा, मेसुआ फेरा, मोरस रॉक्सबरगी, प्रेमना बेंगालेनसिस, सूडोस्टेनियम पोलीमारफम, पेटरोस्परमम एसिरीफोलियम, सेपियम बकैटम, शोरिया असामिका, स्टरकुलिया हेमिलटोनीद्ग, आईजिम कुमिनी, टरमिनालिया सिटरीना, टरमिनालिया मायरिकारपा, ट्रेविया नूडीपऊलोरा और वैटिका लेंसियेफोलिया।
प्राणी
नमेरी वन्य जीवों के मामले में भी मालामाल है। यहां 30 से अधिक स्तनपायी प्रजातियां देखी गई हैं और यह राष्ट्रीय उद्यान बाघों व हाथियों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। अन्य पशुओं में चीता, काला शेर, क्लाउडेड लेपर्ड, लैस्से कैट, स्लॉथ बियर, हिमालयन ब्लैक बियर, इंडियन बाइसन, धोल, सांभर, बाकिर्गं डियर, डॉग डियर, फॉक्स, हिसपिड हेयर, इंडियन हेयर, कैप्ड लंगूर, स्लो लॉरिस, असमीज मैकाक्यू, रेहसस मैकाक्यू, हिमालय यलो थ्रोटेड मार्टिन, मलायन बड़ी गिलहरी, उड़ने वाली गिलहरी, जंगली सूअर आदि आते हैं।
यहां पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां भारी तादाद में हैं। इस समय लगभग 315 प्रजातियां देखी गई हैं और इनकी सूची बढ़ती जा रही है। नमेरी के पक्षियों में सबसे महत्त्वपूर्ण सफेद पंखों वाली बतख है। नमेरी राष्ट्रीय उद्यान को व्हाइट विंग्ड वुड डक के अंतिम आवास के रूप में भी जाना जाता है। वुड डक की खोज बहुत शानदार और निराली है। जंगल के नालों के आस-पास वुड डक की अच्छी खासी तादाद है। यहां इस लुप्तप्राय प्रजाति के 150 जोड़े हैं।
अन्य प्रमुख पक्षियों में व्हाइट चीक्ड पैट्रिज, ग्रेट, वीदेद व रूफोस नेक्ड हार्नबिल, रडी, ब्लू इयर्ड, ओरियंटल डॉर्फ किंगफिशर, ओरियंटल हॉबी, एमुर फॉलकन, जार्डन व ब्लैक बाज़ा, पलास, ग्रे हेडेड व लेसर हेडड फिश ईगल, सिल्वर बैक्ड नीडलटेल, माउंटेन इंपीरियल पिजन, ब्लू नेप्ड पिट्टा, स्लेंडर बिल्ड ओरियोल, हिज ब्लयू पऊलाईकैचर, व्हाईट क्राउन्ड फार्कटेल, सुल्तान टिट, ब्लैक बैलिड टर्न, जर्डन बैबलर, सफोस कैम्ड़ सिबिया, यलो बैलीड पऊलॉवर पैकर, रेड थ्रोटेड पिपिट, लांग बिल्ड प्लोवर, ब्लैक स्टॉर्क किंग वल्चर, लोंग बिल्ड किंग प्लोवर, क्लेज फीसेन्ट, हिल मैना, पिन टेल्ड ग्रीन पिजन, हिमालयन पाइड किंगफिशर, थ्री-टोड किंगफिशर, फेयरली ब्लू बर्ड, कॉमन मर्जनसर आदि।
नमेरी हाथियों के झुंडों के लिए भी प्रसिध्द है । उद्यान में हाथियों की अच्छी खासी तादाद है। 1997 की गणना के अनुसार हाथियों की संख्या 225 थी।
नमेरी रेंगने वाले जीवों का भी घर है। किंग कोबरा, कोबरा, पिट वाइपर, रसेल वाइपर, बैंडेड करैत, पायथन, रैट स्नेक, असम रूफ टर्टल, मलायन बॉक्स टर्टल, कील्ड बॉक्स टर्टल, एशियन लीफ टर्टल, नैरो हैडेड सॉपऊट शैल्ड टर्टल, इंडियन सॉपऊट टर्टल भी यहां रहते हैं। गोल्डन माहसीर, शाओर्ट गिल्ड माहसीर, सिलगोरिया जैसी मछलियां भी यहां के जल में पाई जाती हैं।
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