नए साल की तैयारियां !
आटा गीला पड़ा हुआ है, चिढ़ा रहीं तरकारियां !!

होटलों में जश्न !
कैसे, किसके साथ, कब तलक, हैं बेकार पूछने प्रश्न !!

जापान !
खुद को कुछ भी माने लेकिन, बेवकूफ औरों को मान !!

युकियो हातोयामा !
परमाणु-संधि करने का, हमसे भी करवाएं ड्रामा !!

सीटीबीटी !
अच्छे-भले शब्द की ऐसे, रेढ़ बहुत इंग्लिश ने पीटी !!

हस्ताक्षर !
करने वाले की शैली पर, हंसता हुआ लगे हर अक्षर !!

सवालों के घेरे में !
वो जवाब तेरे अन्दर हैं, जो सवाल हैं मेरे में !!

बन्दर पकड़े !
नेताओं की नक़ल बनाकर, क्या वे नगर-निगम से अकड़े ??

स्वतन्त्रता-संग्राम !
ऐसा लगता है कि जैसे, सुना हुआ सा हो यह नाम !!

स्वतन्त्रता-सेनानी !
नेताओं ने इन लोगों की, कीमत अब चुनाव में जानी !!

हस्तियां !
कुछ दिन बाद चली जाती हैं, ऊपर लेकर मस्तियां !!
-अतुल मिश्र



संतोष जैन पासी/ वंदना सभरवाल
स्तनपान शिशु के लिए प्राकृतिक और सम्पूर्ण आहार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सिफारिश करता है कि सभी शिशुओं को विशेष रूप से छह महीने की आयु तक स्तनपान कराना चाहिए और छह महीने के बाद पर्याप्त मात्रा में अनुपूरक आहार के साथ दो वर्ष का होने तक अथवा उससे भी अधिक समय तक स्तनपान जारी रखना चाहिए। ऐसे समय में जब शिशु के विकास की दर उच्चतम अवस्था में होती है, स्तनपान शिशु को प्राय: सभी पौष्टिक तत्वों की पर्याप्त और उचित मात्रा उपलब्ध कराता है।

मां के दूध में श्वेत रुधिर कणिकाएं (ल्यूकॅसाइट), मैक्रोफेज, और एपिथेलियल कोशिकाएं; लिपिड़ि्स (ट्राइएसिलगाइसरॉल्स, मुक्त वसा अम्ल, फास्फोलाइपिड्स, स्टेरॉल्स, हाइड्रोकार्बन्स और वसा में घुलनशील विटामिन); कार्बोहाइड्रेट्स (दुग्ध शर्करा, गैलेक्टोस, ग्लूकोस, ओलिगोसेकेराइड्स और ग्लाइकोप्रोटीन्स); प्रोटीन (केसीन, +- दुग्ध-एल्युमिन, लैक्टोफैरिन, इम्यूनोग्लोबिन्स जैसे SlgA और अन्य, लाइसोज़ाइम्स, एन्ज़ाइम्स, हार्मोन्स और वृध्दिकारक); नॉन-प्रोटीन नाइट्रोजेनस यौगिक (यूरिया, क्रिएटिन, क्रिएटिनिन, यूरिक अम्ल, ग्लूटामिन सहित एमिनो अम्ल, न्यूक्लिइक अम्ल, न्यूक्लियोटाइड्स और पोलियामाइन्स ); पानी में घुलनशील विटामिन, वृहत पोषक तत्व, अनुज्ञापक तत्व और विभिन्न अपौष्टिक यौगिक (एंटी-माइक्रोबायल कारक, पाचक एंज़ाइम्स और वृध्दि नियंत्रक) होते हैं जो शिशु के वर्धन और विकास को बढ़ावा देते हैं।

हर उम्र में रुग्णता और मृत्यु दर फार्मूला दूध या ऊपर का दूध पिलाने से संबंधित है। हाल ही में बाल उत्तरजीविता संबंधी आंकड़ों से पता चला है कि पहले छह महीनों के दौरान विशेष रूप से स्तनपान तथा 6-11 महीनों तक निरंतर स्तनपान को प्रोत्साहन देना एकमात्र ऐसा उपाय है जो 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर को 13-15 प्रतिशत कम करता है। एक अन्य अध्ययन में, यह पता चला है कि यदि सभी शिशुओं को जन्म के पहले दिन से स्तनपान कराया जाए तो 16 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत को रोका जा सकता है। यदि जन्म के पहले घंटे से ही स्तनपान शुरू कर दिया जाए तो 22 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत को रोका जा सकता है। स्तनपान अतिसार और श्वास संबंधी अनेक संक्रमणों से शिशु की सुरक्षा करता है। इसके अतिरिक्त यह उच्च रक्त चाप, मधुमेह, हृदय रोग जैसी अनेक दीर्घकालिक समस्याओं से भी शिशु को सुरक्षा प्रदान करता है। अनुराग, प्यार और दुलार बढ़ाते हुए यह मां और बच्चे के बीच भावनात्मक रिश्ते को मजबूत करता है! इस प्रकार यह महज आहार ही नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। मां का दूध स्वच्छ और जीवाणुमुक्त होता है। इसमें संक्रमण रोधी कारक होते हैं तथा शिशु के लिए यह हर समय सही तापमान पर उपलब्ध रहता है। इन सब विशेषताओं के साथ यह किफायती और मिलावट रहित है।
स्तनपान कराने से मां को भी स्वास्थ्य संबंधी अनेक फ़ायदे होते हैं। ऐसा करने से प्रसव के बाद रक्तस्राव में कमी होती है जिसके फ़लस्वरूप अरक्तता (अनीमिया) में कमी होती है। स्तनपान कराने वाली माताओं में मोटापा भी कम देखा जाता है क्योंकि स्तनपान से मां को फिर से अपना सामान्य आकार पाने में मदद मिलती है। यह छाती और अण्डाशयी कैंसर से भी संरक्षा प्रदान करता है। स्तनपान कराने के गर्भनिरोधक प्रभाव भी होते हैं। जहां तक शिशु के पालन-पोषण और उसके साथ व्यावहारिक तालमेल बिठाने की बात है, तो जो माताएं स्तनपान कराती हैं, वे अपने शिशुओं के साथ बेहतर तालमेल बिठा लेती हैं। स्तनपान समाज के लिए भी फ़ायदेमंद है क्योंकि यह बच्चों में बीमारी को कम करके स्वास्थ्य संबंधी देखेरेख की लागत में कमी करता है और इस प्रकार परिवार पर वित्तीय तनाव को कम करता है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि मां के दूध का उत्पादन मांग और आपूर्ति पर आधारित होता है। मां जितना अधिक स्तनपान कराती है दूध उतना ही अधिक उतरता है, इसका मतलब है कि मां को निश्चित समय सारिणी के बजाय शिशु के मांगने पर ही स्तनपान कराना चाहिए। शिशु वृध्दिशील भी होते हैं। इसलिए जिस शिशु को हर तीन घंटे में स्तनपान कराया जाता है वह अचानक हर घंटे में दूध पीने की मांग कर सकता है। यह इसलिए नहीं कि दूध की आपूर्ति कम है, बल्कि इसका मतलब है कि शिशु की वृध्दि तेजी से हो रही है।

इस विश्व स्तनपान सप्ताह के दौरान सभी स्वास्थ्य संगठन ”आपातकाल से पहले और बाद में जीवन रक्षक उपाय के रूप में स्तनपान पर विचार करने की आवश्यकता” पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जिस अवधि में रोग (अर्थात महामारी या देशव्यापी बीमारी) फैलने की अधिक आशंका होती है, उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपातकाल के रूप में वर्गीकृत किया है। इस साल स्वाइन फ्लू की घटनाओं के मद्देनज़र, स्तनपान का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। अत: मां के प्यार की तरह मां के दूध का भी कोई विकल्प नहीं है। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)


ग़ज़ल
हम इधर देखें कि उधर देखें,
लोग देखें कि हम जिधर देखें,

तुझको बस,देख के,ऐ पर्दानशीं
सोचते हैं कि अब किधर देखें ?

तेरी नज़रों की शोख़ियों के लिए
दिल यह करता है,ता उमर देखें !

नज़रे-मय उसकी आज पीकर हम
कैसे होता है, क्या असर देखें !

रात भर तेरी याद में जगकर
कैसी होती है फिर सहर देखें !

ये ज़रूरी है मौत से पहले
ज़िन्दगी का सही, सफ़र देखें !

कल तलक तो मरा नहीं था 'अतुल'
आज अखब़ार की ख़बर देखें !
-अतुल मिश्र


कुछ सीढ़ियों का है फ़ासला
वो मिल जाएगा
अपनी शुरुआत का एक सिरा
हाथों में थमा जायेगा
होंगी कुछ बातें हमारे बीच
हमारे आस-पास........
देखते-देखते
फिर होगा कुछ सीढ़ियों का फ़ासला
और वो मिल जाएगा


सिलसिला रुकेगा नहीं
बस हमें थोड़ा रुकना है
आंखों में विश्वास भरकर कहना है
'यह साल तुम्हें ढेरों खुशियां दे जाए'
-रश्मि प्रभा


भरोसेमंद स्रोत
कॉमर्स के प्रोफेसर ने अपने विद्यार्थी से पूछा - व्यवसाय शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त करने का सबसे भरोसेमंद स्रोत कौन सा है ? विद्यार्थी - बीबी के पिताजी यानी ससुर साहब !!
-जौली

प्रेम अंधा होता है
एक प्रेमी जोड़े ने खुदकुशी करने का प्लान बनाया। ऊंचे टीले पर से लड़के ने पहले जंप लगा दी। अब बारी लड़की की थी , पर लड़की ने आंखें बंद कर लीं और पीछे हट गई। लड़की ने कहा, प्रेम अंधा होता है। इसके बाद लड़के ने हवा में पाराशूट खोल लिया और कहा प्रेम कभी मरता नहीं है।
-विजय अरोरा



سٹار نیوز ایجنسی
نیو یارک (امریکا) : امریکا کے شہرنیویارک میں ہزاروں افراد نے غزہ پراسرائیلی دہشت گردی کا ایک سال مکمل ہونے پراسرائیل مخالف احتجاجی جلوس نکالا۔غزہ پر اسرائیلی دہشت گردی کا ایک سال مکمل ہوا،آج امریکا کے شہر نیویارک کے علاقہ مینہیٹن میں ہزاروں افراد نے اہل غزہ کے حق میں اور اسرائیل کے خلاف احتجاجی جلوس نکالا۔ مظاہرین غزہ پر اسرائیل قبضے کے خلاف نعرے بلند کررہے تھے۔ جلوس کئی علاقوں سے گزرکراسرائیلی سفارتخانے کے سامنے پہنچا،مظاہرین پلے کارڈز اور بینرز اٹھائے ہوئے تھے۔ مظاہرے میں یہودی بھی شریک ہوئے،جن کا کہنا تھا کہ اسرائیل کی کارروائیاں تورات کی تعلیمات کے خلاف ہیں۔ستائیس دسمبر دو ہزار آٹھ کو اسرائیل نے غزہ پر جارحیت کی تھی،جس کے نتیجے میں دوہزارشہری شہید ہوئے تھے۔ بائیس روزہ جنگ میں اسرائیل نے فاسفورس بموں کا استعمال کیا،اسپتال تباہ کیے گئے۔



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. अनुसूचित जाति एव अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकार को मान्यता) कानून, 2006 को लागू कर रहा है। विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वन भूमि पर अधिकार के लिए 25 लाख से अधिक दावे दर्ज किए गए हैं और पांच लाख 70 हजार अधिकार पत्र प्रदान किए गए। मंत्रालय ने इस अधिनियम के क्रियान्वयन की स्थिति का आकलन करने के लिए नवंबर में मुख्यमंत्रियों और संबंधित मंत्रियों की बैठक भी बुलायी। प्रधानमंत्री ने राज्यों से इसे पूरी शिद्दत से लागू करने की अपील की।

मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन पर जनजातियों के अनुकूलन ज्ञान को और प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाए। उसने उन क्षेत्रों की पहचान के लिए भी कदम उठाए जहां पर्यावरण की दृष्टि से हस्तक्षेप की आवश्यकता है। उसने जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण नामक स्कीम की समीक्षा भी की तथा जनजातियों की यात्रा, उनके उत्सव के आयोजन, राष्ट्रीय जनजातीय पुरस्कार आदि से संबंधित दिशानिर्देश को भी अंतिम रूप दिया गया। इसके अलावा भी मंत्रालय ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।



सुधा एस नम्बूदरी
दो दिसम्बर 2009 को लुई क्रूज के जहाज एम वी एक्वामैरीन के अपने घरेलू बंदरगाह से कोच्चि से मालदीव की पहली यात्रा पर निकलने के साथ ही केरल विश्व के समुद्री पर्यटन मानचित्र पर आ गया है। यह पहला पर्यटन जलयान है जो भारत से अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह की ओर रवाना हुआ है। अब भारतीय पर्यटकों को हिंद महासागर पर यात्रा करते वक्त विश्वस्तरीय सुविधायें प्राप्त हुआ करेंगी। कोच्चि कुछ वर्षों से अनेक पर्यटन यानों की मेजबानी करता आ रहा है। पिछले वर्ष वोल्वो ओशन रेस के इस बंदरगाह पर रुकने के बाद से कोच्चि ने वैश्विक नौकायन में भी मानचित्र पर अपनी जगह बना ली है ।

कोच्चि में 2 दिसम्बर 2009 को समुद्री पर्यटन का शुभारंभ करते हुए केन्द्रीय पर्यटन, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा कि इससे देश में समुद्री पर्यटन के क्षेत्र में नए युग की शुरूआत होगी और भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को उत्कृष्ट स्तर की भारतीय और यूरोपीय शैली की सत्कार सेवा मिलेगी। उन्होंने कहा कि समुद्री पर्यटन के क्षेत्र में विकास की प्रचुर संभावनायें हैं और यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत अब तक पिछड़ रहा था। कोच्चि को समुद्री पर्यटन का प्रमुख बंदरगाह बनाने के लिए पर्यटन मंत्रालय उसी प्रकार की मदद करेगा जैसी उसने वोल्वो ओशन रेस के समय की थी।

एम वी ऐक्वामैरीन लुई क्रूज़ेज़ की सहायक कंपनी लुई क्रूज़ेज़ इंडिया का जहाज है। लुई क्रूज़ेज़ विश्व का पांचवा सबसे बड़ा क्रूज आपरेटर यानी समुद्री पर्यटन का प्रचालक है। यह जहाज दिसम्बर 09 से अप्रैल 2010 तक कोच्चि बंदरगाह पर ही रहेगा और यहीं से सप्ताह में तीन दिन मालदीव और कोलंबो के त्रिकोणीय पर्यटन पर आना-जाना करेगा। केरल के पर्यटन विभाग ने कोच्चि से समुद्री पर्यटन को बढावा देने के लिये इस कंपनी के साथ अनुबंध किया है। अनुमान है कि इस मौसम में करीब 60 हजार भारतीय पर्यटक इस जहाज से पर्यटन का आनंद लेंगे। जहाज में 1200 यात्रियों को ले जाने की क्षमता है । जहाज के यात्रा कार्यक्रम में कोच्चि-मालदीव-कोच्चि और कोच्चि-कोलंबो-कोच्चि के मार्ग पर पर्यटन के अलावा एक रात खुले सागर में नौकायन कार्यक्रम भी शामिल है। तीन रातों की यात्रा के पैकेज के लिये पांच हजार रुपये प्रति यात्री प्रतिदिन के हिसाब से किराया लिया जाता है। जहाज में 525 आरामदेह कमरों और सूट्स के अलावा अनेक रेस्तरां, स्वीमिंग पूल, फिटनेस सेंटर, मसाज सॉना सुविधायें , कसीनो, और कर मुक्त शापिंग की सुविधायें उपलब्ध हैं। कमरे सभी समुद्र की सतह से ऊपर हैं । जहाज में एक क्रिकेट पिच भी बनाई गई है ताकि भारतीय पर्यटक खुले समुद्र में क्रिकेट खेलने का अनोखा अनुभव प्राप्त कर सकें। जहाज पर जो भोजन और मनोरंजन परोसा जाता है, उसमें भी भारतीय स्वाद रुचि का ध्यान रखा गया है । सात डेक वाले इस जहाज की लंबाई 531 फिट है। तिरासी फिट चौड़े इस जहाज में चार एलीवेटर्स लगे हुए हैं। कुल 25 हजार 611 टन वजनी यह क्रूज़यान 17 नॉट्स की गति से हिंद महासागर पर तैरेगा।

लुई ग्रुप के अधिशासी निदेशक के अनुसार भारत में अपने कारोबार के विस्तार का कंपनी का निर्णय बढते भारतीय पर्यटन बाजार का लाभ उठाने के उद्देश्य से लिया गया है। इसका लक्ष्य परिवारों, हनीमून पर जाने वाले युवा दम्पत्तियों और कार्पोरेट क्षेत्र के लोगों सहित भारत के विशाल पर्यटक जगत को अपनी ओर आकर्षित करना है और उन्हें समुद्री पर्यटन की सुविधा उपलब्ध कराना है। विश्वव्यापी समुद्री पर्यटन गतिविधियों पर संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 में समुद्री पर्यटन की मांग बढक़र लगभग एक करोड़ ट्रिप्स(यात्राओं) तक पहुंच गई थी। विश्वभर में समुद्री पर्यटन की जो मांग उठी थी उसमें से दो तिहाई उत्तरी अमेरिका की यात्रा के लिये थी। इससे इस बात का पता चलता है कि समुद्री पर्यटन के विकास और विस्तार की प्रचुर संभावनायें हैं। पर्यटन मंत्रालय ने क्रिसिल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐडवाइजरी को समुद्री पर्यटन की संभावनाओं और रणनीति का अध्ययन करने को कहा जिसकी रिपोर्ट दिसम्बर 2005 में जारी की गई। भारत में समुद्री पर्यटन की संभावना नाम की यह रिपोर्ट इस बुनियादी तथ्य के इर्द-गिर्द घूमती है कि विदेशों के आकर्षक, मोहक, ऐतिहासिक और सुन्दर स्थानों की यात्रा का यह एक नया अंदाज है।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वोल्वो ओशन रेस के बाद कोच्चि को एम वी एक्वामैरीन के आदर्श गृह बंदरगाह के रूप में चुना गया है। पूर्व-पश्चिम के महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित यह बंदगाह आस्ट्रेलिया, सुदूर पूर्व और यूरोप के मुख्य समुद्री मार्ग से केवल 10 समुद्री मील (नॉटिकल माइल्स) की दूरी पर है और इन देशों के अलावा अन्य स्थानों से अनेक जहाज यहां आते रहते हैं। कोच्चि पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष के अनुसार कोच्चि बंदरगाह देश का पहला बंदरगाह है जिसने समुद्री पर्यटकों और जहाजों की व्यापक आवश्यकताओं को जुटाने के लिए साहसिक प्रयास किये हैं। बंदरगाह (कोच्चि) समुद्री पर्यटन वाले जहाजों के लिये अनेकों सुविधायें-यथा लंगर डालने, रियासती शुल्क और सीमा शुल्क, आव्रजन और पोर्ट स्वास्थ्य की अनुमति देने के लिये एकल खिड़की सेवा मुहैया कराई है। उद्देश्य यह है कि यूरोप से आस्ट्रेलिया के बीच पूर्व-पश्चिम व्यापार मार्ग पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधायें देने वाला यह पोर्ट समुद्री पर्यटन का प्रमुख केन्द्र बन सके।

यदि घरेलू यात्रियों और विदेशी पर्यटकों को समुद्री पर्यटन का चस्का लग गया तो वह दिन दूर नहीं जब तूतीकोरिन, गोवा और मुंबई जैसे अन्य भारतीय बंदरगाह भी होम पोर्ट बन सकेंगे, परन्तु वह तो बाद की बात है। अभी तो कोच्चि को ही लुई के 12 जहाजों के बेड़े का पहला गैर यूरोपीय आधार बनने का गौरव मिला है। पर्यटन मौसम जैसे-जैसे जोर पकड़ रहा है, आशायें बढती ज़ा रही हैं कि अधिक से अधिक पर्यटक विश्व स्तरीय समुद्री पर्यटन का आनंद लेने के लिये पानी में उतरेंगे।

औद्योगिक क्षेत्रों का पर्यावरण संबंधी आकलन
गंभीर रूप से प्रदूषित औद्योगिक क्षेप न कवेल पर्यावरण की दृष्टि से चुनौती हैं बल्कि जनस्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। भारत में 85 प्रतिशत बड़े औद्योगिक क्षेत्र स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं क्योंकि वहां के वायु, जल और भूमि प्रदूषण स्तर मानवीय बस्तियों के लिए उपयुक्त नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देश के 88 औद्योगिक क्षेत्रों को श्रेणीबध्द करते हुए समग्र पर्यावरण आकलन मानदंड अध्ययन जारी किए हैं। इस अध्ययन के तहत जल, भूमि और वायु प्रदूषण के आधार पर समग्र पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक तैयार किया गया। इस तरह के अध्ययन साल में दो बार किए जाते हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली और सीपीसीबी द्वारा संयुक्त रुप से किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि 10 प्रमुख औद्योगिक स्थानों पर पर्यावरण प्रदूषण गंभीर स्तर तक पहुंच गया है। ये स्थान हैं- गुजरात में अंकलेश्वर एवं वापी, उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद और सिंगरौली, छत्तीसगढ में क़ोरबा, महाराष्ट्र में चंद्रपुर, पंजाब में लुधियाना, तमिलनाडु में वेल्लोर, राजस्थान में भिवाड़ी और उड़ीसा में अंगुल तलचर। सीपीसीबी ने पहले 24 गंभीर प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की थी। इसके अलावा उसने 36 और ऐसे ही क्षेत्रों की पहचान की है जहां बहुत अधिक आद्योगिक गतिविधियां थीं और साथ ही पर्यावरण प्रदूषण की समस्याएं है।

वायु गुणवत्ता सूचकांक, जल गुणवत्ता सूचकांक और भूमि गुणवत्ता सूचकांक रिकार्ड किया जा सकता है लेकिन उसमें हमेशा प्रविधि संबंधी त्रुटियों की गुजाइंश बनी रहती है। ऐसे में इस समस्या का पश्चिमी देशों की तरह ईपीआई सूचकांक बेहतर उपाय है जहां साक्षरता, जीवन प्रत्याशा और प्रति व्यक्ति आय को शामिल किया जाता है।

अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों की समस्या बहुत गंभीर है क्योंकि वहां रात उद्योगों से रातों कचरे विसर्जित कर दिये जाते हैं। गुजरात में वापी और अंकलेश्वर के प्रदूषित क्षेत्रों के गांवों में पानी काफी समय से पीने योग्य नहीं है। लोगों में अस्थमा, आखों में खुजली जैसी समस्याएं आम हैं।

सीपीसीबी ने ठोस कदम उठाने के लिए प्रदूषण की दृष्टि से समस्याग्रस्त क्षेत्रों की पहचान के लिए और राष्ट्रीय स्तर पर वायु, पानी की गुणवत्ता में सुधार एवं पारिस्थितिकीय नुकसान को दूर करने के लिए एक कार्यक्रम शुरु किया है। सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्षों और सदस्य सचिवों की मई 1989 में बैठक हुई थी और पानी तथा वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए 10 अति प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की गयी थी। बाद में इस सूची में 14 और क्षेत्र जोड़ दिए गए। अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र में चिह्नित क्षेत्रों के लिए कार्ययोजना तैयार की जाएगी जिससे प्रदूषण के रोकथाम के उपाय तथा पर्यावरण की गुणवत्ता कायम करने में मदद मिलेगी।



سٹار نیوز ایجنسی
لندن (برطانیہ) : :بینظیر بھٹو کی دوسری برسی پر انہیں خراج عقیدت پیش کرنے کے لئے برطانیہ کے مختلف شہروں میں جلسے اور قرآن خوانی کا اہتمام کیا گیا، اس سلسلے میں ایک تقریب پاکستانی ہائی کمیشن میں ہوئی ۔تقریب کا اہتمام پیپلز پارٹی گریٹر لندن نے کیا تھا، تقریب میں مسلم لیگ ن اور ایم کیو ایم کے رہنماؤں نے بھی شرکت کی، بریڈ فورڈاورالفورڈ لین میں بھی تقاریب ہوئیں-ہائی کمیشن کی تقریب میں انصار برنی نے بھی شرکت کر کے بینظیر بھٹو کو خراج عقیدت پیش کیا۔



विजय अरोरा
अगर आपको प्रमोशन चाहिए या बॉस की नजरों में चढ़ना है तो इन नुस्खों को जरूर अपनाएं और गारंटी के साथ फायदा उठाएं।

1. हमेशा आपके हाथ में काम से संबंधित कागज होने चाहिएं-
वह कर्मचारी जिसके हाथ में सदैव काम के कागज या फाइलें होती हैं, तो वह बहुत ही मेहनती माना जाता है ( हालांकि वह मेहनती होता नहीं है)। इसलिए ऑफिस में खाम-ख्चाह घूमते हुए आपके हाथ में हमेशा कोई कागज होना चाहिए। यदि आपके हाथ में कुछ नहीं है तो लोग समझेंगे कि आप कैंटीन जा रहे हैं और यदि आपके हाथ में अखबार है तो ऐसा प्रतीत होता है कि आप टॉयलेट जा रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शाम को ऑफिस से जाते समय कुछ फाइलें घर जरूर ले जाएं, ताकि यह भ्रम बना रहे कि आप ऑफिस का काम घर पर भी करते हैं।

2. व्यस्त दिखने के लिए कंप्यूटर का उपयोग करें-
जब भी आप कंप्यूटर का उपयोग करते हैं तो लोगों को आप बहुत व्यस्त प्रतीत होते हैं। हालांकि मॉनिटर का मुंह ऐसी तरफ रखें, जहां से कोई यह न देख सके कि आप चैटिंग कर रहे हैं और गेम खेल रहे हैं। कंप्यूटर क्रांति के इस अनोखे सामाजिक उपयोग से आप बॉस की निगाह में चढ ज़ाएंगे। यदि भगवान करे आप पकड़े जाएं (और यह तो कभी न कभी होकर रहेगा ही) तो आप बहाना बना सकते हैं कि मैं इस सॉफ्टवेयर को देखकर इससे सीख रहा था, जिससे कंपनी का ट्रेनिंग का पैसा बच सके।

3. काम करने की टेबल हमेशा भरी हुई होनी चाहिए-
आपके काम करने की जगह हमेशा भरी हुई और अस्त-व्यस्त होनी चाहिए। टेबल पर ढेर सारे कागज और फाइलें इधर-उधर बिखरे होने चाहिए। कुछ सीडी, कुछ आधे-अधूरे प्रिंट आउट भी बिखरे हों तो सोने पे सुहागा। जब आपको मालूम हो कि किसी व्यक्ति को आपसे किसी फाइल का काम है, तो उस खास फाइल को एक बड़े ढेर में छपा दीजिए और उसके सामने ही ढूंढिए। हो सके तो कंप्यूटर से संबंधित मोटी-मोटी किताबें कहीं से इकट्ठा कर लें (पढ़ने के लिए नहीं) उससे आपकी इमेज विशिष्ट बनेगी। एक बात याद रखें कि पढ़ने वाले को प्रमोशन नहीं मिलता, झांकी जमाने वाले को मिलता है।

4. वाइस आंसरिंग का अधिकाधिक उपयोग करें-
संचार तकनीक के एक और वरदान आंसरिंग मशीन का अधिक से अधिक उपयोग करें। जब आपका बॉस या कोई सहकर्मी आपको फोन करे तो जरूरी नहीं कि वह काम आवश्यक ही हो। इसलिए भले ही आप फोन के लिए सिर पर बैठे हों, कभी सीधे जवाब न दें, बल्कि यह काम आंसरिंग मशीन को करने दें। फिर थोडी देर बाद सभी संदेशों को सुनें। उसमें से मुख्य और आवश्यक को छांटकर ठीक से लंच टाइम में सामने वाले को फोन करें, ताकि उसे लगे कि आप लंच टाइम में भी ऑफिस वर्क भूलते नहीं हैं।

5. हमेशा असंतुष्ट और तनावग्रस्त दिखें-
काम करते समय हमेशा असंतुष्ट और तनावग्रस्त दिखें। जब भी कोई सहकर्मी आपसे कुछ पूछे तो सबसे पहले एक गहरी सांस लें, ताकि उसे लगे कि आप काम के बोझ से बेहद दबे हुए हैं। साथ ही अपने जूनियर को हमेशा सीख देते रहें और उससे हमेशा असंतुष्ट रहें। जूनियर के चार कामों से तीन में जरूर मीन-मेख निकालें औए एक में -हां ठीक है, कहें।

6. ऑफिस से हमेशा सबसे देर से निकलें-
ऑफिस से हमेशा आपको देर से घर के लिए निकलना चाहिए। खासकर तब जब आपका बॉस ऑफिस में हो। आराम से मैगजीन और किताबें पढ़ते रहें, जब तक कि जाने का समय न हो जाए। ऑफिस टाइम के बाद कोशिश करें कि बॉस के कमरे के सामने से कम से कम दो-तीन बार गुजरें। यदि बॉस की गाड़ी खराब हो जाए और आप उसे उसके घर तक ड्रॉप कर सकें। इससे अधिक पुण्य आपके लिए और कुछ नहीं है। इसलिए हो सके तो साल में तीन बार कुछ ऐसा करें कि बॉस आपकी गाड़ी में लिफ्ट ले। जितनी महत्वपूर्ण ई-मेल हो, उसे हमेशा विषम समय पर ही भेजें, जैसे रात के साढ़ नौ बजे या सुबह सात बजे। बॉस की निगाह जरूर ई-मेल में पड़े समय पर पड़ेगी और वह बेहद इम्प्रेस हो जाएगा।

7. अपना भाषा ज्ञान और व्याकरण बढ़ाएं-
आपको अंग्रेजी के कुछ मुहावरे और लच्छेदार भाषा कंठस्थ करनी होगी। कंप्यूटर और मैनेजमेंट से संबंधित कुछ भारी-भरकम शब्द और वाक्य रचना यदि आप रट सकें तो बेहतर रहेगा और जब भी बॉस के साथ बात करें इन शब्दों का भरपूर उपयोग करें। इस अंदाज में कि बॉस को लगना चाहिए कि यदि यह बात नहीं मानी गई तो कंपनी में प्रलय आ जाएगा।

8. हमेशा दो कोट या जैकेट, जो भी पहनते हों रखें-
यदि आप किसी बड़े ऑफिस में काम करते हैं तो आपको हमेशा दो कोट रखने चाहिएं। एक पहनें और दूसरा आपकी कुर्सी पर टंगा होना चाहिए। इससे एक तो आप आराम से घूम-फिर सकते हैं और दूसरे लोग समझेंगे कि आप आस-पास ही कहीं हैं, या आते ही होंगे। अगर देर हो भी जाए तो आप कह सकते हैं कि जरूरी मीटिंग थी।

तो साहेबान, इन नुस्खों को आज से ही लागू कर दीजिए। फिर देखिए, आपका बॉस तो आपसे खुश रहेगा ही। आपके सहकर्मी भी आपके प्रमोशन को देख-देख जलेंगे। (स्टार न्यूंज एजेंसी)


नारायण दत्त तिवारी !
हम पर जो आरोप लगे हैं, क्या वैसी है उमर हमारी ??

सत्ता की भूख !
इसके लालच में कब्रों के, मुर्दे तलक गए हैं सूख !!

कब्रिस्तान-विवाद !
मुर्दे बोले,"चैन नहीं है, हमको मरने के भी बाद !! "

चाकू मारा !
चाकू ने अपराध स्वयं का, थाने में जाकर स्वीकारा ??

हरित प्रदेश !
'शुष्क प्रदेश' की मांगें इसके, फ़ौरन बाद करेंगे पेश !!

मुद्दा गरमाया !
तापमान कितना है उसका, मुद्दे ने रोकर समझाया ??

गृहमंत्रालय !
समस्याओं का बना हिमालय !!

पी. चिदंबरम !
बीस नए मंत्रालय अपने, मंत्रालय से बनवाएं हम !!

चौटाला !
आरोपों का जूस निकाला ??

आलोचना !
बाहूबालियों की करने से, पहले भी कुछ सोचना !!

सर्दी !
जाड़ों में ही क्यों करती है, शुरू स्वयं की गुंडागर्दी ??
-अतुल मिश्र



चांदनी
हुस्ने-क़त्ल असल में मर्गे-यज़ीद है,
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद...
इस्लामी कैलेंडर यानि हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है. हिजरी सन् का आगाज़ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है. अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है. साथ ही इस माह में रोज़ा रखने की खास अहमियत बयान की गई है. 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है. इस दिन अल्लाह के नबी हज़रत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था.

कर्बला के इतिहास मुताबिक़ सन 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा. सन् 61 हिजरी से उसके जनता पर उसके ज़ुल्म बढ़ने लगे. उसने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इनकार कर दिया तो उसने इमाम हुसैन को क़त्ल करने का फ़रमान जारी कर दिया. इमाम हुसैन मदीना से सपरिवार कुफा के लिए निकल पडे़, जिनमें उनके खानदान के 123 सदस्य यानी 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. यज़ीद सेना (40,000 ) ने उन्हें कर्बला के मैदान में ही रोक लिया. सेनापति ने उन्हें यज़ीद की बात मानने के लिए उन पर दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने अत्याचारी यज़ीद का समर्थन करने से साफ़ इनकार कर दिया. हज़रत इमाम हुसैन सत्य और अहिंसा के पक्षधर थे. हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म के उसूल, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और ईश्वर के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार थे. यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन और उनके खानदान के लोगों को तीन दिनों तक भूखा- प्यास रखने के बाद अपनी फौज से शहीद करा दिया. इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की तादाद 72 थी.

पूरी दुनिया में कर्बला के इन्हीं शहीदों की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है। उसके बाद से यह दिन कर्बला के शहीदों की यादगार मनाने का दिन बन गया और इसी शोक पर्व को भारत में मुहर्रम के नाम से जाना जाता है. इस दिन भारत के अधिकतर शहरों में ताज़िये का जुलूस निकलता है. ताजिया हज़रत इमाम हुसैन के कर्बला (इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा) स्थित रौज़े जैसा होता है. लोग अपनी अपनी आस्था और हैसियत के हिसाब से ताज़िये बनाते हैं और उसे कर्बला नामक स्थान पर ले जाते हैं. जुलूस में शिया मुसलमान काले कपडे़ पहनते हैं, नंगे पैर चलते हैं और अपने सीने पर हाथ मारते हैं, जिसे मातम कहा जाता है. मातम के साथ वे हाय हुसैन की सदा लगाते हैं और साथ ही कुछ नौहा (शोक गीत) भी पढ़ते हैं. पहले ताज़िये के साथ अलम भी होता है, जिसे हज़रत इमाम हुसैन के छोटे भाई हज़रत अब्बास की याद में निकाला जाता है.

मुहर्रम का महीना शुरू होते ही मजलिसों (शोक सभाओं) का सिलसिला शुरू हो जाता है. इमामबाड़ा सजाया जाता है. मुहर्रम के दिन जगह- जगह पानी के प्याऊ और शरबत की शबील लगाई जाती है. भारत में ताज़िये के जुलूस में शिया मुसलमानों के अलावा दूसरे मज़हबों के लोग भी शामिल होते हैं.

विभिन्न हदीसों, यानी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथन व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता और इसकी अहमियत का पता चलता है. ऐसे ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का ज़िक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा है. इसे जिन चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है.

एक हदीस के मुताबिक़ अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि रमज़ान के अलावा सबसे उत्तम रोज़े (व्रत) वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं. यह फ़रमाते वक़्त नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाज़ों के बाद सबसे अहम नमाज़ तहज्जुद की है, उसी तरह रमज़ान के रोज़ों के बाद सबसे उत्तम रोज़े मुहर्रम के हैं.

मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादत का भी बहुत सवाब बताया गया है. सहाबी इब्ने अब्बास के मुताबिक़ हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोज़ा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ़ हो जाते हैं और मुहर्रम के एक रोज़े का सवाब 30 रोज़ों के बराबर मिलता है.
मुहर्रम हमें सच्चाई, नेकी और ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)

फ़िरदौस ख़ान
आज परवीन शाकिर की बरसी है...परवीन शाकिर ने बहुत कम अरसे में शायरी में वो मुकाम हासिल किया, जो बहुत कम लोगों को ही मिल पाता है. कराची (पाकिस्तान) में 24 नवंबर 1952 को जन्म लेने वाली परवीन शाकिर की ज़िन्दगी 26 दिसंबर 1995 को इस्लामाबाद के कब्रस्तान की होने तक किस-किस दौर से गुज़री...ये सब उनकी चार किताबों खुशबू, खुद कलामी, इनकार और माह तमाम की सूरत में हमारे सामने है...माह तमाम उनकी आखिरी यादगार है...

26 दिसंबर 1995 को इस्लामाबाद में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई थी. जिस दिन परवीन शाकिर को कब्रस्तान में दफ़नाया गया, उस रात बारिश भी बहुत हुई, लगा आसमान भी रो पड़ा हो...सैयद शाकिर के घराने का ये रौशन चराग इस्लामाबाद के कब्रस्तान की ख़ाक में मिल गया हो, लेकिन उसकी रौशनी और खुशबू अदब की दुनिया में रहती दुनिया तक कायम रहेगी...
परवीन शाकिर की एक ग़ज़ल

बिछड़ा है जो एक बार तो मिलते नहीं देखा
इस जख़्म को हमने कभी सिलते नहीं देखा

इस बार जिसे चाट गई धूप की ख्वाहिश
फिर शाख पे उस फूल को खिलते नहीं देखा

यक लख्त गिरा है तो जड़े तक निकल आईं
जिस पेड़ को आंधी में भी हिलते नहीं देखा

कांटों में घिरे फूल को चूम आएगी तितली
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा

किस तरह मेरी रूह हरी कर गया आख़िर
वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा...


मन करता है
मैं परिन्दा बन
अम्बर को छू लूं
तेज़ हवा के संग
उड़ जाऊं
और
किसी फल से भरे-भरे
पेड़ पे बैठकर एक-एक
करके अनेक फल का
मजा चख
उड़ जाऊं ची चूं का शोर

मचाऊं और
परिन्दों को इकट्ठा कर
तोता ढोलक बजाता है
का गीत सूना सब
परिन्दों को पेड़ पर बुला के
मन चाही बातें कर अम्बर की
सैर पर जाएं चलो आओ
हम पंख लहराएं
अम्बर की ओर उड़ जाएं
-सरफ़राज़ ख़ान

श्यामल सुमन
शेर की शादी में चूहे को देखकर हाथी ने पूछा - "भाई तुम इस शादी में किस हैसियत से आये हो?" चूहा बोला, " जिस शेर की शादी हो रही है, वह मेरा छोटा भाई है।" हाथी का मुंह खुला का खुला रह गया, बोला, "शेर और तुम्हारा छोटा भाई?" चूहा - "क्या कहूं? शादी के पहले मैं भी शेर ही था।" यह तो हुई मजाक की बात, लेकिन पुराने समय से ही दुनिया का मोह छोड़कर, सच की तलाश में भटकने वाले भगोडों को सही रास्ते पर लाने के लिए, शादी कराने का रिवाज हमारे समाज में रहा है। कई बिगडैल कुंवारों को इसी पद्धति से आज भी रास्ते पर लाया जाता है। हम सबने कई बार देखा-सुना है कि तथाकथित सत्य की तलाश में भटकने को तत्पर आत्मा, शादी के बाद पत्नी को प्रसन्न करने के लिए लगातार भटकती रहती है। कहते भी हैं कि "शादी वह संस्था है जिसमें मर्द अपनी 'बैचलर डिग्री' खो देता है और स्त्री 'मास्टर डिग्री' हासिल कर लेती है।"

प्रायः शादी के पहले की जिंदगी पत्नी को पाने के लिए होती है और शादी के बाद की जिंदगी पत्नी को खुश रखने के लिए। तकरीबन हर पति के लिए पत्नी को खुश रखना एक अहम और ज्वलंत समस्या होती है और यह समस्या चूंकि सर्वव्यापी है, अतः इसे हम चाहें तो राष्ट्रीय (या अंतर्राष्ट्रीय) समस्या भी कह सकते हैं। लगभग प्रत्येक पति दिन-रात इसी समस्या के समाधान में लगा रहता है, पर कामयाबी बिरलों के भाग्य में ही होती है। सच तो यह है कि आदमी की पूरी जिंदगी पत्नी को ही समर्पित रहती है और पत्नी है कि खुश होने का नाम ही नहीं लेती। अगर खुश हो जाएगी तो उसका बीवीपन खत्म हो जाएगा, फिर उसके आगे-पीछे कौन घूमेगा? किसी ने ठीक ही तो कहा है कि "शादी और प्याज में कोई खास अन्तर नहीं - आनन्द और आंसू साथ-साथ नसीब होते हैं।"

पत्नी को खुश रखना इस सभ्यता की संभवतः सबसे प्राचीन समस्या है। सभी कालखंडों में पति अपनी पत्नी को खुश रखने के आधुनिकतम तरीकों का इस्तेमाल करता रहा है और दूसरी ओर पत्नी भी नाराज होने की नई-नई तरकीबों का ईजाद करती रहती है। एक बार एक कामयाब और संतुष्ट-से दिखाई देनेवाले पति से मैंने पूछा-'क्यों भाई पत्नी को खुश रखने का उपाय क्या है?' वह नाराज होकर बोला- 'यह प्रश्न ही गलत है। यह सवाल यूँ होना चाहिए था कि पत्नी को भी कोई खुश रख सकता है क्या?' उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि "शादी और युद्ध में सिर्फ एक अन्तर है कि शादी के बाद आप दुश्मन के बगल में सो सकते हैं।"

जिस पत्नी को सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध हों, वह इस बात को लेकर नाराज रहती है कि उसका पति उसे समय ही नहीं देता। अब बेचारा पति करे तो क्या करे? सुख-सुविधाएं जुटाए या पत्नी को समय दे? इसके बरअक्स कई पत्नियों को यह शिकायत रहती है कि मेरे पति आफिस के बाद हमेशा घर में ही डटे रहते हैं। इसी प्रकार के आदर्श-पतिनुमा एक इंसान (?) से जब मैंने पूछा कि 'पत्नी को खुश रखने का क्या उपाय है?' तो उसने तपाक से उत्तर दिया-'तलाक।' मुझे लगा कि कहीं यह आदमी मेरी ही बात तो नहीं कह रहा है? मैं सोचने लगा " 'विवाह' और 'विवाद' में केवल एक अक्षर का अन्तर है शायद इसलिए दोनों में इतना भावनात्मक साहचर्य और अपनापन है।"

पतिव्रता नारियों का युग अब प्रायः समाप्ति की ओर है और पत्नीव्रत पुरुषों की संख्या, प्रभुत्व और वर्चस्व लगातार बढत की ओर है। यदि इसका सर्वेक्षण कराया जाय तो प्रायः हर दूसरा पति आपको पत्नीव्रत मिलेगा। मैंने सोचा क्यों न किसी अनुभवी पत्नीव्रत पति से मुलाकात करके पत्नी को खुश रखने का सूत्र सीखा जाए। सौभाग्य से इस प्रकार के एक महामानव से मुलाकात हो ही गई, जो इस क्षेत्र में पर्याप्त तजुर्बेकार थे। मैंने अपनी जिज्ञासा जाहिर की तो उन्होंने जो भी बताया, उसे अक्षरशः नीचे लिखने जा रहा हूँ, ताकि हर उस पति का कल्याण हो सके, जो पत्नी-प्रताडना से परेशान हैं -

1. ब्रह्ममुहुर्त में उठकर पूरे मनोयोग से चाय बनाकर पत्नी के लिए 'बेड टी' का प्रबंध करें। इससे आपकी पत्नी का 'मूड नार्मल' रहेगा और बात-बात पर पूरे दिन आपको उनकी झिडकियों से निजात मिलेगी। वैसे भी, किसी भी पत्नी के लिए पति से अच्छा और विश्वासपात्र नौकर मिलना मुश्किल है, इसलिए इसे बोझस्वरूप न लें, बल्कि सहजता से युगधर्म की तरह स्वीकार करें। कहा भी गया है कि "सर्कस की तरह विवाह में भी तीन रिंग होते हैं - एंगेजमेंट रिंग, वेडिंग रिंग और सफरिंग।"

2. अगर आपका वास्ता किसी तेज-तर्रार किस्म की पत्नी से है तो उनके तेज में अपना तेज (अगर अबतक बचा हो तो) सहर्ष मिलाकर स्वयं निस्तेज हो जाएँ। क्योंकि कोई भी पत्नी तेज-तर्रार पति की वनिस्पत ढुलमुल पति को ही ज्यादा पसन्द करती है। इसका यह फायदा होगा कि आप पत्नी से गैरजरूरी टकराव से बच जाएँगे, अब तो जो भी कहना होगा, पत्नी कहेगी। आपको तो बस आत्मसमर्पण की मुद्रा अपनानी है।

3. आपकी पत्नी कितनी ही बदसूरत क्यों न हो, आप प्रयास करके, मीठी-मीठी बातों से यह यकीन दिलाएं कि विश्व-सुन्दरी उनसे उन्नीस पडती है। पत्नी द्वारा बनाया गया भोजन (हलाँकि यह सौभाग्य कम ही पतियों को प्राप्त है) चाहे कितना ही बेस्वाद क्यों न हो, उसे पाकशास्त्र की खास उपलब्धि बताते हुए पानी पी-पीकर निवाले को गले के नीचे उतारें। ध्यान रहे, ऐसा करते समय चेहरे पर शिकायत के भाव उभारना वर्जित है, क्योंकि "विवाह वह प्रणाली है, जो अकेलापन महसूस किए बिना अकेले जीने की सामर्थ्य प्रदान करती है।"

4. पत्नी के मायकेवाले यदि रावण की तरह भी दिखाई दे तो भी अपने वाकचातुर्य और प्रत्यक्ष क्रियाकलाप से उन्हें 'रामावतार' सिद्ध करने की कोशिश में सतत सचेष्ट रहना चाहिए।

5 . आप जो कुछ कमाएं, उसे चुपचाप 'नेकी कर दरिया में डाल' की नीति के अनुसार बिल्कुल सहज समर्पित भाव से अपनी पत्नी के करकमलों में अर्पित कर दें और प्रतिदिन आफिस जाते समय बच्चों की तरह गिडगिडाकर दो-चार रुपयों की मांग करें। पत्नी समझेगी कि मेरा पति कितना बकलोल है कि कमाता खुद है और रूपये-दो रूपयों के लिए रोज मेरी खुशामद करता रहता है। एक हालिया सर्वे के अनुसार लगभग पचहत्तर प्रतिशत पति इसी श्रेणी में आते हैं। मैं अपील करता हूँ कि शेष पच्चीस प्रतिशत भी इस विधि को अपनाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित हो जाएं और सुरक्षित जीवन-यापन करें।

अंत में उस अनुभवी महामानव ने अपने इस प्रवचन के सार-संक्षेप के रूप में यह बताया कि उक्त विधियों को अपनाकर आप भले दुखी हो जाएं, लेकिन आपकी पत्नी प्रसन्न रहेगी और उनकी मेहरबानी के फूल आप पर बरसते रहेंगे। किसी ने बिलकुल ठीक कहा है कि "प्यार अंधा होता है और शादी आंखें खोल देती है।" मेरी भी आंखें खुल गई। कलम घिसने का रोग जबसे लगा, साहित्यिक मित्रों की आवाजाही घर पर बढ़ गई। चाय-पानी के चक्कर में जब पत्नी मुझे पूतना की तरह देखती तो मेरी रूह कांप जाती थी। मैंने इससे निजात पाने का रास्ता ढूंढ ही लिया।

आपने फूल कई रंगों के देखे होंगे, लेकिन सांवले या काले रंग के फूल प्रायः नहीं दिखते। मैंने अपने नाम 'श्यामल' के आगे पत्नी का नाम 'सुमन' जोड लिया। हमारे साहित्यिक मित्र मुझे 'सुमनजी-सुमनजी' कहकर बुलाते हुए घर आते। धीरे-धीरे नम्रतापूर्वक मैंने अपनी पत्नी को विश्वास दिलाने में आश्चर्यजनक रूप से सफलता पाई कि मेरे उक्त क्रियाकलाप से आखिर उनका ही नाम तो यशस्वी होता है। अब मेरे घर में ऐसे मित्रों भले ही स्वागत-सत्कार कम होता हो, पर मैं निश्चिन्त हूँ कि अब उनका अपमान नहीं होगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि "विवाह वह साहसिक-कार्य है जो कोई बुजदिल पुरुष ही कर सकता है।" (स्टार न्यूज़ एजेंसी)



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार कानून, 2009 में संशोधन के लिए संसद में विधेयक लाने का अनुमोदन कर दिया है। छह से चौदह साल के सभी बच्चों को मुपऊत और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए संसद ने इस विधेयक को पास किया था और राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद इस कानून को 27 अगस्त, 2009 को भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया था।

विभिन्न संगठनों (1. विकलांग बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाले, 2. जिन्होंने अल्पसंख्यक संस्थाएं स्थापित की हैं ) ने विद्यालय शिक्षा और साक्षरता विभाग से इस कानून में कुछ संशोधन करने की मांग की थी। इस प्रकार की मांगों का परीक्षण करने के बाद बच्चों को मुपऊत और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार कानून, 2009 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। इस कानून में विकलांग बच्चों को वंचित समूह से संबंधित बच्चों के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थाओं द्वारा कानून के तहत गठित विद्यालय प्रबंधन समिति परामर्श कार्य करेंगी। इस संबंध में संसद में एक विधेयक लाया जाएगा।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कापीराइट कानून, 1957 में संशोधन के लिए विधेयक लाने की मंजूरी दे दी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कुछ बातों को स्पष्ट करने, प्रचालनगत त्रुटियों को दूर करने तथा डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं इंटरनेट के संदर्भ में उभरे नए मसलों से निपटने के लिए इस कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया है।

कापीराइट कानून को विश्व बौध्दिक संपदा संगठन कापीराइट संधि और विश्व बौध्दिक संपदा संगठन कार्यनिष्पादन एवं फोनोग्राम्स संधि जैसी विश्व बौध्दिक संपदा संगठन इंटरनेट संधियों के अनुरूप बनाने के लिए संशोधित करने का प्रस्ताव है। ये संधियां इन क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय मानकों का निर्धारण करती हैं। हालांकि भारत ने अभी तक उक्त संधियों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं लेकिन डिजिटल माहौल में कापीराइट संरक्षण के विस्तार के लिए घरेलू कानून में संशोधन करना आवश्यक है।

शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को ब्रेल लिपि, बात करने वाले पाठ, इलैक्ट्रानिक पाठ, बड़े प्रिंट इत्यादि के प्रारूप में कापीराइट सामग्री तक पहुंच की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए रायल्टी भुगतान संबंधी अतिरिक्त ज़रूरतों के लिए भी कानून में संशोधन का प्रस्ताव है।



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. दस फीसदी हृदयाघात के मामले इमरजेंसी में डायग्नाज ही नहीं हो पाते। ऐसे मरीजों और डॉक्टरों के लिए मिनटों की बहुत अहमियत होती है। इसमें 10 प्रतिशत पॉजिटिव रेट की गिरावट स्वीकार्य है।

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने बताया कि क्रिसमस त्योहार के आस पास हृदयाघात अधिक होते हैं और इस दौरान ईसीजी में चूक हो सकती है क्योंकि हृदयाघात के बाद के पहले छह घंटे में यह सामान्य हो सकती है।

डॉ. अग्रवाल ने जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित अध्ययन का हवाला देते हुए हृदयाघात के फाल्स पॉजिटिव या फाल्स निगेटिव डायग्नासिस में कमी लाने के लिए हर संभव प्रयास किये जाने पर जोर दिया। अध्ययन में हेनरी एंड ग्रुप ने 1,345 लोगों में इमरजेंसी पर लिये गये फैसलों को देखते हुए 2003 से लेकर 2006 तक हृदयाघात के आशंकित चिकित्सीय उपचार के रिकॉर्डों को आधार बनाकर अध्ययन किया।

सभी आशंकित मरीजों में स्टेमी हार्ट अटैक हुआ, जिसे विशिष्ट इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम के जरिए चिन्हित किया। उनमें से 187 लोगों (14 फीसदी) में कोरोनरी आर्टरी का ब्लॉकेज वास्तव में नहीं हुई साथ ही 127 (9.5 फीसदी) में कोरोनरी आर्टरी डिसीज नहीं पायी गई और 149 लोगों में (11.2 फीसदी) कार्डिएक बायोमार्कर टेस्ट के निगेटिव परिणाम सामने आए।

बचने वाले लोगों में महत्वपूर्ण अंतर यह देखा गया कि जिनकी आर्टरी (धमनी) ब्लॉक हुई, उनमें 30 दिवसीय मौत की दर 4.6 फीसदी थी, जबकि बिना ब्लॉकेज वालों में यह दर 2.7 फीसदी रही।


सीमा पर फिर गोलीबारी !
जब मन भर जाए कह देना, ताकि फिर हो शुरू हमारी !!

विमान-अपहरण की धमकी !
धमकी देने का मन हो तो, बोलो क्या दें इससे कम की ??

रक्षक जब भक्षक बन जाए !
जिसमें दिल रक्खा होता है, उसका वो सीना तन जाए !!

छूट और कर !
इतनी छूट मिले कि अफसर, एक और बनवा ले खुद घर !!

लाखों ठगे !
पुलिस-महकमे के हाथों में, कितने-कितने लाख लगे ??

"ईश्वर के हाथों में है देश की सुरक्षा" !
अगर बस चले नेताओं का, ईश्वर की भी ले लें कक्षा !!

क्रिसमस की धूम !
शॉपिंग करने से पहले तू, महंगाई का माथा चूम !!


किंग-मेकर !
ताज किसी को भी दे देता, लेकिन पूरी कीमत लेकर !!


खाकी वर्दी !
शपथ-ग्रहण में, इसकी रक्षा, करने वाली हामी भर दी ??

हिरासत में !
मिला हुआ है पुलिसजनों को, यह अधिकार विरासत में !!

पोलियो !
कितने प्रतिशत सफल रहा है, यह बिलकुल मत बोलियो !!
-अतुल मिश्र


शहरोज़
बौद्ध की धरती मध्यबिहार हमेशा अभाव और विसंगतियों के लिए जाना जाता है। विकास के असमान वितरण के कारण ही असंतोष जन्म लेता है। जिसका लाभ नक्सली उठाते हैं। गया से महज़ चौसठ किलोमीटर के फ़ासले पर है आमस प्रखंड का गांव भूपनगर जहां के युवक इस बार भी अपनी शादी का सपना संजोए ही रह गए कोई उनसे विवाह को राज़ी न हुआ। वह दिल मसोस कर रह गए। वजह है उनकी विकलांगता। इनके हाथ-पैर आड़े-तिरछे हैं, दांत झड़ चुके हैं। बक़ौल अकबर इलाहाबादी जवानी में बुढ़ापा देखा! जी हां! यहां के लोग फलोरोसिस जैसी घातक बीमारी का दंश झेलने को विवश हैं। इलाज की ख़बर यह है कि हल्की सर्दी-खांसी के लिए भी इन्हें पहाड़ लांघकर आमस जाना पड़ता है। भूदान में मिली ज़मीन की खेती कैसी होगी? बराए नाम जवाब है इसका। तो जंगल से लकड़ी काटना और बेचना यही इनका रोज़गार है।

पहले लबे-जीटी रोड झरी, छोटकी बहेरा और देल्हा गांव में खेतिहर गरीब माझी परिवार रहा करता था। बड़े ज़मींदारों की बेगारी इनका पेशा था। बदले में जो भी बासी या सड़ा-गला अनाज मिलता, गुज़र-बसर करते। भूदान आंदोलन का जलवा जब जहां पहुंचा तो ज़मींदार बनिहार प्रसाद भूप ने सन् 1956 में इन्हें यहां ज़मीन देकर बसा दिया और यह भूपनगर हो गया। आज यहां पचास घर हैं। अब साक्षरता ज़रा दिखती है, लेकिन पंद्रह साल पहले अक्षरज्ञान से भी लोग अनजान थे। फलोरोसिस की ख़बर से जब प्रशासन की आंख खुली तो लीपापोती की कड़ी में एक प्राइमरी स्कूल क़ायम कर दिया गया। अचानक कोई लंगड़ा कर चलने लगा तो उसके पैर की मालिश की गई। यह 1995 की बात है। ऐसे लोंगों की तादाद बढ़ी तो ओझा के पास दौड़े। ख़बर किसी तरह ज़िला मुख्यालय पहुंची तो जांच दल के पहुंचते 1998 का साल आ लगा था जब तक ढेरों बच्चे जवान कुबड़े हो चुके थे। चिकित्सकों ने जांच के लिए यहां का पानी प्रयोगशाला भेजा। जांच के बाद जो रिपोर्ट आई उससे न सिर्फ़ गांववाले बल्कि शासन-प्रशासन के भी कान खड़े हो गए। लोग ज़हरीला पानी पी रहे हैं। गांव फलोरोसिस के चपेट में हैं। पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक है। इंडिया इंस्टिट्यूट आफ़ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ के इंजीनियरों ने भी यहां का भूगर्भीय सर्वेक्षण किया था। जल स्रोत का अध्ययन कर रिपोर्ट दी थी। और तत्कालीन जिलाधिकारी ब्रजेश मेहरोत्रा ने गांव के मुखिया को पत्र लिखकर फ़लोरोसिस की सूचना दी थी। मानो इस घातक बीमारी से छुटकारा देना मुखिया बुलाकी मांझी के बस में हो! रीढ़ की हड्डी सिकुड़ी और कमर झुकी हुई है उनकी। अब उनकी पत्नी मतिया देवी मुखिया हैं।

शेरघाटी के एक्टिविस्ट इमरान अली कहते हैं कि राज्य विधान सभा में विपक्ष के उपनेता शकील अहमद ख़ां जब ऊर्जा मंत्री थे तो सरकारी अमले के साथ भूपनगर का दौरा किया था। उन्होंने कहा था कि आनेवाली पीढ़ी को इस भयंकर रोग से बचाने के लिए ज़रूरी है कि भूपनगर को कहीं और बसाया जाए। इस गांवबदर वाली सूचना ज़िलाधिकारी दफ्तर से तत्कालीन मुखिया को दी गई थी कि गांव यहां से दो किलो मीटर दूर बसाया जाना है, लेकिन पुनर्वास की समुचित व्यवस्था न होने के कारण गांववालों ने ‘ मरेंगे जिएंगे यहीं रहेंगे ’ की तर्ज़ पर भूपनगर नहीं छोड़ा। इस बीमारी में समय से पहले रीढ़ की हड्डी सिकुड़ जाती है, कमर झुक जाती है और दांत झड़ने लगते हैं। एक अन्य व्यक्ति एस के उल्लाह ने बताया कि कुछ महीने पहले सरकार ने यहां जल शुद्धिकरण के लिए संयत्र लगाया है, लेकिन सवाल यह है कि जो लोग इस रोग के शिकार हो चुके हैं, उनके भविष्य का क्या होगा? आखि़र प्रशासन की आंख खुलने में इतनी देर क्यों होती है। वहीं मुखिया मतिया देवी की बात सच मानी जाए तो गांव अब भी इस ख़तरनाक बीमारी के चपेट में है। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)

फ़िरदौस ख़ान
क्रिसमस ईसाइयों का प्रमुख त्यौहार है. यह पर्व ईसा मसीह के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाता है. इसे बड़े दिन के रूप में भी मनाया जाता है. क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है. 'क्रिसमस' शब्द 'क्राइस्ट्स और मास' दो शब्दों के मेल से बना है, जो मध्य काल के अंगेजी शब्द 'क्रिस्टेमसे' और पुरानी अंगेजी शब्द 'क्रिस्टेसमैसे' से नकल किया गया है. 1038 ई. से इसे 'क्रिसमस' कहा जाने लगा. इसमें 'क्रिस' का अर्थ ईसा मसीह और 'मस' का अर्थ ईसाइयों का प्रार्थनामय समूह या 'मास' है. 16वीं शताब्दी के मध्य से 'क्राइस्ट' शब्द को रोमन अक्षर एक्स से दर्शाने की प्रथा चल पड़ी. इसलिए अब क्रिसमस को एक्समस भी कहा जाता है. भारत सहित दुनिया के ज़्यादातर देशों में क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाता है, लेकिन रूस, जार्जिया, मिस्त्र, अरमेनिया, युक्रेन और सर्बिया आदि देशों में 7 जनवरी को लोग क्रिसमस मनाते हैं, क्योंकि पारंपरिक जुलियन कैलंडर का 25 दिसंबर यानी क्रिसमस का दिन गेगोरियन कैलंडर और रोमन कैलंडर के मुताबिक 7 जनवरी को आता है. हालांकि पवित्र बाइबल में कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं है कि क्रिसमस मनाने की परंपरा आखिर कैसे, कब और कहां शुरू हुई. एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था. 25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है.शोधकर्ताओं का कहना है कि ईसा मसीह के जन्म की निश्चित तिथि के बारे में पता लगाना काफी मुश्किल है. सबसे पहले रोम के बिशप लिबेरियुस ने ईसाई सदस्यों के साथ मिलकर 354 ई. में 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया था. उसके बाद 432 ई. में मिस्त्र में पुराने जुलियन कैलंडर के मुताबिक 6 जनवरी को क्रिसमस मनाया गया था. उसके बाद धीरे-धीरे पूरे संसार में जहां भी ईसाइयों की संख्या अधिक थी, यह त्योहार मनाया जाने लगा. छठी सदी के अंत तक इंग्लैंड में यह एक परंपरा का रूप ले चुका था.
क्रिसमस का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि ईसा मसीह के जन्म की कहानी का संता क्लॉज की कहानी के साथ कोई संबंध नहीं है. वैसे तो संता क्लॉज को याद करने का चलन चौथी सदी से शुरू हुआ था और वे संत निकोलस थे, जो तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप थे. उन्हें बच्चों से अत्यंत प्रेम था और वे गरीब, अनाथ और बेसहारा बच्चों को तोहफे दिया करते थे.
पुरानी कैथलिक परंपरा के मुताबिक क्रिसमस की रात को ईसाई बच्चे अपनी तमन्नाओं और ज़रूरतों को एक पत्र में लिखकर सोने से पूर्व अपने घर की खिड़कियों में रख देते थे. यह पत्र बालक ईसा मसीह के नाम लिखा जाता था. यह मान्यता थी कि फ़रिश्ते उनके पत्रों को बालक ईसा मसीह से पहुंचा देंगे. क्रिसमस ट्री की कहानी भी बहुत ही रोचक है. किवदंती है कि सर्दियों के महीने में एक लड़का जंगल में अकेला भटक रहा था. वह सर्दी से ठिठुर रहा था. वह ठंड से बचने के लिए आसरा तलाशने लगा. तभी उसकी नजर एक झोपड़ी पर पड़ी. वह झोपडी के पास गया और उसने दरवाजा खटखटाया. कुछ देर बाद एक लकड़हारे ने दरवाजा खोला. लड़के ने उस लकड़हारे से झोपड़ी के भीतर आने का अनुरोध किया. जब लकड़हारे ने ठंड में कांपते उस लड़के को देखा तो उसे लड़के पर तरस आ गया और उसने उसे अपनी झोपड़ी में बुला लिया और उसे गर्म कपड़े भी दिए. उसके पास जो रूख-सूखा था, उसने लड़के को बभी खिलाया. इस अतिथि सत्कार से लड़का बहुत खुश हुआ. वास्तव में वह लड़का एक फरिश्ता था और लकडहारे की परीक्षा लेने आया था. उसने लकड़हारे के घर के पास खड़े फर के पेड़ से एक तिनका निकाला और लकड़हारे को देकर कहा कि इसे ज़मीन में बो दो. लकड़हारे ने ठीक वैसा ही किया जैसा लड़के ने बताया था. लकडहारा और उसकी पत्नी इस पौधे की देखभाल अकरने लगे. एक साल बाद क्रिसमस के दिन उस पेड़ में फल लग गए. फलों को देखकर लकड़हारा और उसकी पत्नी हैरान रह गए, क्योंकि ये फल, साधारण फल नहीं थे बल्कि सोने और चांदी के थे. कहा जाता है कि इस पेड़ की याद में आज भी क्रिसमस ट्री सजाया जाता है. मगर मॉडर्न क्रिसमस ट्री शुरुआत जर्मनी में हुई. उस समय एडम और ईव के नाटक में स्टेज पर फर के पेड़ लगाए जाते थे. इस पर सेब लटके होते थे और स्टेज पर एक पिरामिड भी रखा जाता था. इस पिरामिड को हरे पत्तों और रंग-बिरंगी मोमबत्तियों से सजाया जाता था. पेड़ के ऊपर एक चमकता तारा लगाया जाता था. बाद में सोलहवीं शताब्दी में फर का पेड़ और पिरामिड एक हो गए और इसका नाम हो गया क्रिसमस ट्री अट्ठारहवीं सदी तक क्रिसमस ट्री बेहद लोकप्रिय हो चुका था. जर्मनी के राजकुमार अल्बर्ट की पत्नी महारानी विक्टोरिया के देश इंग्लैंड में भी धीरे-धीरे यह लोकप्रिय होने लगा. इंग्लैंड के लोगों ने क्रिसमस ट्री को रिबन से सजाकर और आकर्षक बना दिया. 19वीं शताब्दी तक क्रिसमस ट्री उत्तरी अमेरिका तक जा पहुंचा और वहां से यह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया. क्रिसमस के मौके पर अन्य त्योहारों की तरह अपने घर में तैयार की हुई मिठाइयां और व्यंजनों को आपस में बांटने व क्रिसमस के नाम से तोहफे देने की परंपरा भी काफी पुरानी है। इसके अलावा बालक ईसा मसीह के जन्म की कहानी के आधार पर बेथलेहम शहर के एक गौशाले की चरनी में लेटे बालक ईसा मसीह और गाय-बैलों की मूर्तियों के साथ पहाड़ों के ऊपर फरिश्तों और चमकते तारों को सजा कर झांकियां बनाई जाती हैं, जो दो हजार वर्ष पुरानी ईसा मसीह के जन्म की घटना की याद दिलाती हैं.

दिसंबर का महीना शुरू होते ही क्रिसमस की तैयारियां शुरू हो जाती हैं . गिरजाघरों को सजाया जाता है. भारत में अन्य धर्मों के लोग भी क्रिसमस के उत्सव में शामिल होते हैं.


प्रदीप श्रीवास्तव
विश्व के सात अजूबों में से एक, प्रेम का प्रतीक ताजमहल और आगरा आज एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. अब ताज भारत का गौरव ही नहीं अपितु दुनिया का गौरव बन चुका है. ताजमहल दुनिया की उन 165 ऐतिहासिक इमारतों में से एक है, जिसे राष्ट्र संघ ने विश्व धरोहर की संज्ञा से विभूषित किया है. इस तरह हम कह सकते हैं कि ताज हमारे देश की एक बेशकीमती धरोहर है, जो सैलानियों और विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. प्रेम के प्रतीक इस खूबसूरत ताज के गर्भ में मुग़ल सम्राट शाहजहां की सुंदर प्रेयसी मुमताज महल की यादें सोयी हुई हैं, जिसका निर्माण शाहजहां ने उसकी याद में करवाया था. कहते हैं कि इसके बनाने में कुल बाईस वर्ष लगे थे, लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि सम्राट शाहजहां की पत्नी मुमताज की न तो आगरा में मौत हुई थी और न ही उसे आगरा में दफनाया गया था. मुमताज महल तो मध्य प्रदेश के एक छोटे जिले बुरहानपुर (पहले खंडवा जिले का एक तहसील था) के जैनाबाद तहसील में मरी थी, जो सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है. इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी पत्नी (जिसे वह अथाह प्रेम करता था) मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर चला गया. उन दिनों मुमताज गर्भवती थी. पूरे 24 घंटे तक प्रसव पीड़ा से तड़पते हुए जीवन-मृत्यु से संघर्ष करती रही. सात जून, दिन बुधवार सन 1631 की वह भयानक रात थी, शाहजहां अपने कई ईरानी हकीमों एवं वैद्यों के साथ बैठा दीपक की टिमटिमाती लौ में अपनी पत्नी के चेहरे को देखता रहा. उसी रात मुमताज महल ने एक सुन्दर बच्चे को जन्म दिया, जो अधिक देर तक जिन्दा नहीं रह सका. थोड़ी देर बाद मुमताज ने भी दम तोड़ दिया. दूसरे दिन गुरुवार की शाम उसे वहीँ आहुखाना के बाग में सुपुर्द-ए- खाक कर दिया गया. वह इमारत आज भी उसी जगह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खड़ी मुमताज के दर्द को बयां करती है. इतिहासकारों के मुताबिक मुमताज की मौत के बाद शाहजहां का मन हरम में नहीं रम सका. कुछ दिनों के भीतर ही उसके बाल रुई जैसे सफ़ेद हो गए. वह अर्धविक्षिप्त-सा हो गया. वह सफ़ेद कपड़े पहनने लगा. एक दिन उसने मुमताज की कब्र पर हाथ रखकर कसम खाई कि मुमताज तेरी याद में एक ऐसी इमारत बनवाऊंगा, जिसके बराबर की दुनिया में दूसरी नहीं होगी. बताते हैं कि शाहजहां की इच्छा थी कि ताप्ती नदी के तट पर ही मुमताज कि स्मृति में एक भव्य इमारत बने, जिसकी सानी की दुनिया में दूसरी इमारत न हो. इसके लिए शाहजहां ने ईरान से शिल्पकारों को जैनाबाद बुलवाया. ईरानी शिल्पकारों ने ताप्ती नदी के का निरीक्षण किया तो पाया कि नदी के किनारे की काली मिट्टी में पकड़ नहीं है और आस-पास की ज़मीन भी दलदली है. दूसरी सबसे बड़ी बाधा ये थी कि तप्ति नदी का प्रवाह तेज होने के कारण जबरदस्त भूमि कटाव था. इसलिए वहां पर इमारत को खड़ा कर पाना संभव नहीं हो सका. उन दिनों भारत की राजधानी आगरा थी. इसलिए शाहजहां ने आगरा में ही पत्नी की याद में इमारत बनवाने का मन बनाया. उन दिनों यमुना के तट पर बड़े -बड़े रईसों कि हवेलियां थीं. जब हवेलियों के मालिकों को शाहजहां कि इच्छा का पता चला तो वे सभी अपनी-अपनी हवेलियां बादशाह को देने की होड़ लगा दी. इतिहास में इस बात का पता चलता है कि सम्राट शाहजहां को राजा जय सिंह की अजमेर वाली हवेली पसंद आ गई. सम्राट ने हवेली चुनने के बाद ईरान, तुर्की, फ़्रांस और इटली से शिल्पकारों को बुलवाया. कहते हैं कि उस समय वेनिस से प्रसिद्ध सुनार व जेरोनियो को बुलवाया गया था. शिराज से उस्ताद ईसा आफंदी भी आए, जिन्होंने ताजमहल कि रूपरेखा तैयार की थी. उसी के अनुरूप कब्र की जगह को तय किया गया. 22 सालों के बाद जब प्रेम का प्रतीक ताजमहल बनकर तैयार हो गया तो उसमें मुमताज महल के शव को पुनः दफनाने की प्रक्रिया शुरू हुई. बुरहानपुर के जैनाबाद से मुमताज महल के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ आगरा ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना दिया गया. इस विशाल जुलूस पर इतिहासकारों कि टिप्पणी है कि उस विशाल जुलूस पर इतना खर्च हुआ था कि जो किल्योपेट्रा के उस ऐतिहासिक जुलूस की याद दिलाता है जब किल्योपेट्रा अपने देश से एक विशाल समूह के साथ सीज़र के पास गई थी. जिसके बारे में इतिहासकारों का कहना है कि उस जुलूस पर उस समय आठ करोड़ रुपये खर्च हुए थे. ताज के निर्माण के दौरान ही शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने उन्हें कैद कर के पास के लालकिले में रख दिया, जहां से शाहजहां एक खिड़की से निर्माणाधीन ताजमहल को चोबीस घंटे देखते रहते थे. कहते हैं कि जब तक ताजमहल बनकर तैयार होता. इसी बीच शाहजहां की मौत हो गई. मौत से पहले शाहजहां ने इच्छा जाहिर की थी कि "उसकी मौत के बाद उसे यमुना नदी के दूसरे छोर पर काले पत्थर से बनी एक भव्य इमारत में दफ़न किया जाए और दोनों इमारतों को एक पुल से जोड़ दिया जाए", लेकिन उसके पुत्र औरंगजेब ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने की बजाय, सफ़ेद संगमरमर की उसी भव्य इमारत में उसी जगह दफना दिया, जहां पर उसकी मां यानि मुमताज महल चिर निद्रा में सोईं हुई थी. उसने दोनों प्रेमियों को आस-पास सुलाकर एक इतिहास रच दिया. बुहरानपुर पहले मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की एक तहसील हुआ करती थी, जिसे हाल ही में जिला बना दिया गया है. यह जिला दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर इटारसी-भुसावल के बीच स्थित है. बुहरानपुर रेलवे स्टेशन भी है, जहां पर लगभग सभी प्रमुख रेलगाड़ियां रुकती हैं. बुहरानपुर स्टेशन से लगभग दस किलोमीटर दूर शहर के बीच बहने वाली ताप्ती नदी के उस पर जैनाबाद (फारुकी काल), जो कभी बादशाहों की शिकारगाह (आहुखाना) हुआ करती थी, जिसे दक्षिण का सूबेदार बनाने के बाद शहजादा दानियाल ( जो शिकार का काफी शौक़ीन था) ने इस जगह को अपने पसंद के अनुरूप महल, हौज, बाग-बगीचे के बीच नहरों का निर्माण करवाया था, लेकिन 8 अप्रेल 1605 को मात्र तेईस साल की उम्र मे सूबेदार की मौत हो गई. स्थानीय लोग बताते हैं कि इसी के बाद आहुखाना उजड़ने लगा. स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार मनोज यादव कहते हैं कि जहांगीर के शासन काल में सम्राट अकबर के नौ रतनों में से एक अब्दुल रहीम खानखाना ने ईरान से खिरनी एवं अन्य प्रजातियों के पौधे मंगवाकर आहुखाना को पुनः ईरानी बाग के रूप में विकसित करवाया. इस बाग का नाम शाहजहां की पुत्री आलमआरा के नाम पर पड़ा. बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हामिद लाहौरी साहब के मुताबिक शाहजहां की प्रेयसी मुमताज महल की जब प्रसव के दौरान मौत हो गई तो उसे यहीं पर स्थाई रूप से दफ़न कर दिया गया था, जिसके लिए आहुखाने के एक बड़े हौज़ को बंद करके तल घर बनाया गया और वहीँ पर मुमताज के जनाजे को छह माह रखने के बाद शाहजहां का बेटा शहजादा शुजा, सुन्नी बेगम और शाह हाकिम वजीर खान, मुमताज के शव को लेकर बुहरानपुर के इतवारागेट-दिल्ली दरवाज़े से होते हुए आगरा ले गए. जहां पर यमुना के तट पर स्थित राजा मान सिंह के पोते राजा जय सिंह के बाग में में बने ताजमहल में सम्राट शाहजहां की प्रेयसी एवं पत्नी मुमताज महल के जनाजे को दोबारा दफना दिया गया. यह वही जगह है, जहां आज प्रेम का शाश्वत प्रतीक, शाहजहां-मुमताज के अमर प्रेम को बयां करता हुआ विश्व प्रसिद्ध "ताजमहल" खड़ा है. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. जापान इंटरनेशल कोऑपरेशन एजेंसी की सहायता से केन्द्र सरकार और उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा दिल्ली राज्य की सरकारों द्वारा यमुना नदी में प्रदूषण उपशमन के लिए यमुना कार्य योजना कार्यान्वित की जा रही है। यमुना कार्य योजना का पहला चरण अप्रैल, 1993 से फरवरी, 2003 तक कार्यान्वित किया गया था। यमुना योजना का द्वितीय चरण दिसम्बर, 2004 में शुरू हुआ था।

पर्यावरण और वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने राज्यसभा में बताया कि दोनों चरणों की कुल अनुमोदित लागत 1339 करोड़ रुपए है। दोनों चरणों के अंतर्गत अब तक 908.89 करोड़ रुपए व्यय किया जा चुका है। यमुना कार्य योजना के दोनों चरणों के अंतर्गत अब तक तीन राज्यों के 21 शहरों में कुल 276 स्कीमें पूरी की जा चुकी हैं और 753.25 मिलियन लीटर प्रतिदिन की सीवेज का इंटर सेप्शन और दिशा परिवर्तन, सीवेज शोधन संयंत्रों की स्थापना, अल्पलागत शौचालयों का निर्माण , विद्युत उन्नत काष्ठ शवदाह गृह और नदी यमुना विकास शामिल है। यमुना कार्य योजना के अतिरिक्त राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार ने भी अन्य संसाधनों से यमुना नदी के लिए प्रदूषण उपशमन कार्य शुरू किए हैं।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में वजीराबाद से ओखला के बीच यमुना नदी का क्षेत्र अत्यधिक प्रदूषित है। यह सूचना मिली है कि दिल्ली से उत्पन्न अपशिष्ट जल की मात्रा, यमुना नदी के किनारों पर स्थित प्रमुख शहरों से उत्पन्न कुल अपशिष्ट जल की मात्रा की लगभग 79 प्रतिशत है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिल्ली के चुनिंदा स्थानों पर की गई भू-जल गुणवत्ता मॉनीटरी से यह पता चलता है कि मानसून से पहले की अवधि के दौरान एक स्थान पर टॉक्सिक मेटल्स की सांद्रता भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित पेय जल गुणवत्ता मानकों से अधिक है। हालांकि मानसून की अवधि के बाद रीचार्ज के कारण भू-जल गुणवत्ता में सुधार हो जाता है।



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में एक कार्यबल बनाया गया है जो फिल्म, वीडियो, केबल और संगीत की चोरी-छिपे नकल करके बेचने से रोकने के उपायों की सिफारिश करेगा। यह कार्य बल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में विशेष सचिव की अध्यक्षता में कार्य करेगा. इसमें यश चोपड़ा ( प्रख्यात फिल्म प्रोडयूसर), मनमोहन शेट्टी (अध्यक्ष फिल्म एवं टेलीविजन प्रोडयूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया) जी.आदिशेषगिरी राव ( पूर्व अध्यक्ष भारतीय फिल्म फेडरेशन), जवाहर गोयल ( अध्यक्ष, इंडियन ब्राडकास्टिंग फेडरेशन), प्रशांत पांडेय (सदस्य, एसोसिएशन आफ रेडियो आपरेटर्स आफ इंडिया) सदस्य होंगे।

कार्यबल अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले राज्य सरकारों तथा दावाधारकों के साथ विचार-विमर्श करेगा। आशा है कि यह ग्रुप छह महीने की अवधि के अंदर जैसे-18 जून, 2010 से पहले अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगा। कार्यबल बनाने का फैसला 5 दिसम्बर को नई दिल्ली में आयोजित 27वें राज्य सूचना मंत्रियों के सम्मेलन की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।


टी. नन्दकुमार (आईएएस) सचिव, कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार
कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। यह राष्ट्रीय आय में लगभग 18 प्रतिशत का योगदान करता है और देश के आधे से अधिक श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराता है। इतने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद आजादी के बाद के पिछले छह दशकों में इसकी प्रगति अनियमित रूप में रही है। यहां तक कि कृषि क्षेत्र के अंतर्गत ही कुछ क्षेत्रों में सराहनीय वृध्दि हुई है तो वही कुछ क्षेत्रों में बहुत धीमी गति देखी गई है। चार वर्ष पूर्व सरकार ने कृषि क्षेत्र में वृध्दि की संभावनाओं-ताकतों और कमजोरियों पर समग्र दृष्टिकोण से विचार करने और इसमें पुन: जागृति लाने के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक दोनों प्रकार के उपायों को अमल में लाने का निश्चय किया।

इसके सम्बध्द मुद्दों की उचित समझ आवश्यक थी — इसलिए सरकार ने प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया। आयोग द्वारा की गई अनेक सिफारिशों पर अमल किया भी जा चुका है और कुछ पर कार्यान्वयन अनेक चरणों में चल रहा है।

राज्यों से विस्तृत विचार-विमर्श के बाद यह महसूस किया गया है कि दसवी योजना में कृषि क्षेत्र की वार्षिक वृध्दि दर लगभग 2.5 प्रतिशत से बढक़र ग्यारहवीं योजना में 4 प्रतिशत तक की जा सकती है, बशर्ते कि केन्द्रित रूप में उन पर कार्य किया जाए। शुरू के दो वर्षों के दौरान 4 प्रतिशत से अधिक की वृध्दि हासिल कर लेने से हमें विश्वास हो गया है कि अगले तीन वर्षों और उसके बाद भी वृध्दि की इस रफ़्तार को जारी रखा जा सकेगा।

कृषि क्षेत्र में समग्र रूप से तीव्र वृध्दि दर का लक्ष्य रखते हुए सूझबूझ के साथ यह निर्णय लिया गया है कि नीति संबंधी सभी पहलों में कृषकों को केन्द्र बिन्दु में रखा जाए। 2007 की नीति में, कृषि क्षेत्र में सभी सरकारी प्रयासों का प्रमुख लाभ प्राप्तकर्ता किसान को माना गया है।

कृषि-उत्पादन बढ़ाने की एक प्रमुख नीति यह रखी गई कि ऐसे जिलों की पहचान की जाए जहां सरकार द्वारा केन्द्रित उपायों के जरिये प्रमुख खाद्यान्न फसलों की उत्पादकता में सुधार लाया जा सके। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए 5000 करोड़ का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन शुरू किया गया। इस मिशन के तहत लगभग 300 चिन्हित जिलों में बढ़िया किस्म के बीजों और उर्वरकों, त्रऽण तथा प्रसार सहयोग उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया। परिणामस्वरूप वर्ष 2012 तक चावल, गेहूँ और दालों की उत्पादकता में वृध्दि हुई। चावल का अतिरिक्त उत्पादन 100 लाख टन, गेहूं का 80 लाख टन और दालों का 20 लाख टन हुआ। इसके कार्यान्वयन के प्रथम वर्ष के दौरान ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं अन्य प्रमुख योजना– राष्ट्रीय कृषि विकास योजना शुरू की गई जिसका उद्देश्य कृषि और अन्य सम्बध्द कार्यकलापों में और अधिक निवेश करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहन देना था। केन्द्र सरकार 11वीं योजना के दौरान कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए राज्यों को 25000 करोड़ रुपए की धनराशि उपलब्ध करा रही है। राज्यों से भी अतिरिक्त धनराशि प्राप्त होने पर कृषि क्षेत्र में पर्याप्त निवेश होने लगेगा, इससे न केवल खाद्यान्नों का उच्चतर उत्पादन होगा बल्कि अन्य फसलों और पशु उत्पादों में भी वृध्दि होगी और इस प्रकार इस क्षेत्र में परिसम्पत्तियों का उत्पादन होगा और इसकी दीर्घकालीन वृध्दि में योगदान मिलेगा।

विभिन्न मौजूदा योजनाओं के विस्तार से पिछले तीन वर्षों के दौरान कृषि एवं सम्बध्द क्षेत्रों में निवेश बढा है। तिलहनों, दालों तथा मक्के के लिए समेकित योजना के लिए व्यय तथा कृषि योजना के वृहद प्रबंधन में उल्लेखनीय वृध्दि हुई है। इस समय किए जा रहे निवेशों के परिणामस्वरूप बेहतर प्रौद्योगिकी अपनाने, निवेशों के और अधिक उपयोग तथा विपणन सुविधाओं के स्थापित होने में सहायता मिलेगी। 11वीं योजना और उसके बाद भी ग्रामीण विकास तथा रोजगार योजनाओं के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में टिकाऊ वृध्दि होगी।

बड़े पैमाने पर एक अन्य हस्तक्षेप है–2008-09 में ऋण वसूली रोक देना और ऋण राहत। एक ही झटके में 71,000 करोड़ रुपए से अधिक रकम लगभग 4 करोड़ रुपए कर्ज से ग्रस्त किसानों के ऋण खातों में चली गई है। इसने न केवल उन किसानों से कर्ज का बोझ हटा लिया है बल्कि जो अपने ऋण चुका नहीं पा रहे थे, बल्कि उसने उन्हें बैंकिंग क्षेत्र से ताजा ऋण लेने के योग्य बना दिया है।

पहले ऋण राहत से मात्र एक बार के लिए सुविधा हो पाती थी परन्तु अब सरकार कृषि क्षेत्र के लिए अधिक से अधिक त्रऽण उपलब्ध कराने के लिए बैंकों को प्रोत्साहन दे रही है। उधार लेने को आसान तथा पारदर्शी बनाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। 300,000 रुपए तक का ऋण 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की ब्याज दर की छूट पर डिस्काउन्टेड दर दी जाती है। इनके अतिरिक्त अन्य प्रयासों के परिणामस्वरूप पिछले पाँच वर्षों में कृषि ऋण में तीन गुनी से अधिक वृध्दि हुई है।


प्र. सरफ़राज़ ख़ान
गणित के आकाश में धूमकेतु की भांति चमकने वाले श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था। रामानुजन के पिता कुष्पुस्वामी श्रीनिवास अभंगार कबाड़ी का काम करते थे। उनकी माता कोमलता अभ्भल गृहिणी थीं। उनके परिवार का गणित विषय से दूर तक का कोई नाता नहीं था। सन 1897 में रामानुजन ने प्राथमिक परीक्षा में जिले में अव्वल स्थान हासिल किया।

इसके बाद अपर प्राइमरी की परीक्षा में अंकगणित में रामानुजन ने 45 अंक में से 42 अंक प्राप्त कर अपने अध्यापकों को चौंका दिया। सन 1903 में रामानुजन ने दसवीं की परीक्षा पास की। इसी साल उन्होंने घन और चतुर्घात समीकरण हल करने के सूत्र खोज निकाले। कुम्बकोणम के राजकीय महाविद्यालय में फैलो ऑफ आर्ट के प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने के बाद ही रामानुजन ने परिमित और अपरिमित श्रेणियों की खोज करना शुरू कर दिया था। वे अपने समय का उपयोग गणित के जटिल प्रश्नों को हल करने में व्यतीत करते थे। समय के साथ रामानुजन का गणित के प्रति रुझान बढ़ता ही गया। फलस्वरूप, एफए के द्वितीय वर्ष की परीक्षा में गणित को छोड़कर वह अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। सन 1905 में उन्होंने अनेक समाकलों व श्रेणियों के बीच संबंधों की खोज की। दिसंबर 1906 में रामानुजन ने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में एफए पास करने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब न हो सके। इसके बाद रामानुजन ने पढ़ाई छोड़ दी। सन 1909 में जानकी श्रीवत्स से उनका विवाह हुआ। वे नौकरी की तलाश में मद्रास चले गए। प्रोफेसर शेष अय्यर ने उनकी सहायता की और उन्हें बंगलूर में तत्कालीन कलेक्टर दीवान छविराम बहादुर आर रामचंद्र राव के पास भेज दिया।

रामानुजन के गणित विज्ञान व गहरी रूचि से वह इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने रामानुजन को गणित के शोध कार्य के लिए आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित किया। सन 1911 में रामानुजन ने सम प्रोपर्टीज ऑफ बारनालीज नंबर्स शीर्ष से अपना प्रथम शोध पत्र भेजा जनरल ऑफ मैथमेटिक्स सोसायटी में प्रकाशन के लिए भेजा। इस शोध की विषय वस्तु एवं शैली अत्यंत जटिल थी। इसे कई बार संशोधन की प्रकिया से गुजरना पड़ा और दिसंबर 1911 में प्रकाशित हो सका।

1912 में रामानुजन ने अकाउंटेंट जनरल मद्रास के कार्यालय में नौकरी में उन्हें 20 रुपए मासिक वेतन था। कुछ समय बाद ही रामानुजन ने यह नौकरी छोड़कर मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में 30 रुपए मासिक की नौकरी कर ली। पोर्ट ट्रस्ट के निदेशक सर फ्रांसिल स्प्रिंग को गणित में गहरी रूचि थी। इसलिए उन्होंने रामानुजन की काफी सराहना की।म्द्रास के इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर सीएलओ ग्रिफिक्स ने रामानुजन ंके शोध पत्र गणित विद्वानों को भिजवाए। प्रोफेशनल ग्रिफिक्स की सलाह पर रामानुजन ने 1913 में तत्कालीन विख्यात गणितज्ञ एवं ट्रिनिटी कॉलेज के फैलो प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिखा, जिसमें 120 प्रमेय और सूत्र शामिल थे। प्रोफेसर हार्डी इस पत्र से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने रामानुजन को कैम्ब्रिज आने की दावत दे डाली। मार्च 1914 को जब रामानुजन लंदन पहुंचे तो प्रोफेसर नाबिला ने उनका स्वागत किया। जल्द ही उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश मिल गया। उनका जीवन संपूर्ण बदल चुका था। अब उन्हें आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता था। यहां से प्रोफेसर लिटिलवुड के साथ मिलकर शोध कार्य में लग गए। इस दौरान जून 1914 में लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी के समक्ष रामानुजन के शोध पर आधारित पत्र पढ़ा गया। रामानुजन को शोध कार्य के आधार पर ही मार्च 1916 ने स्नातक की डिग्री प्रदान की। रामानुजन को क्षय रोग हो गया था। प्रोफेसर हार्डी ने उनसे मिलने अस्पताल में गए। बातचीत के दौरान प्रोफेसर हार्डी ने कहा कि जिस टैक्सी से मैं आया था उसका नंबर अवश्य अशुभ होगा। रामानुजन के पूछने पर उन्होंने टैक्सी का नंबर 13197 बताया। रामानुजन ने तुरंत जवाब दिया कि यह तो वह सबसे छोटी सखी संख्या है, जिसे दो घन संख्याओं के योग के रूप में दो प्रकार से लिखा जा सकता है अर्थात् 1719। इसी प्रकार रामानुजन ने अनेक अवसरों पर अपनी तीक्ष्ण बुध्दि का परिचय देकर लोगों को अचंभित किया। गणित के क्षेत्र में किए गए अनेक शोध कार्यों के लिए 28 फरवरी 1918 को रामानुजन को रॉयल सोसायटी का फैलो मनोनीत किया गया।

रामानुजन वह दूसरे भारतीय थे, जिन्हें फैलो मनोनयन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मार्च 1919 को रामानुजन स्वदेश लौट आए। मद्रास विश्वविद्यालय ने रामानुजन के लिए गणित प्राचार्य का एक विशेष पद स्थापित किया, लेकिन वे ज्यादा दिनों तक कार्य नहीं कर पाए। उनका रोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया और 26 अप्रैल 1920 को रामानुजन इस संसार को छोड़कर सदा के लिए चले गए। रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए।


मैं आसुओं की लड़ी

बागों में फूल न हों,
तो उनकी शोभा क्या ??
हमारे पास दोस्त न हों,
तो हमारी शोभा क्या ??
फूलों के मुरझा जाने पर,
दोस्तों के नाराज हो जाने पर,
क्या है वो हमको,
अच्छा लगता है जो ??
कुछ फूल ऐसे भी हैं,
जो सिर्फ शूल देते हैं !!
कुछ दोस्त भी उन फूल से,
जो देखते हैं राहें शूल सी !!
एक खूबसूरत फूल ऐसा खिला,
बाग़ ने न चाहा उसे छोड़ना !!
मुझे एक दोस्त ऐसा मिला,
मैंने न चाहा उससे रिश्ता तोडना !!
मगर शूल से वे फूल व् दोस्त,
धोखा दे बाग़ व् मुझे गए !!
रुखी सी, मुरझाई सी,
रह गई मैं बनकर 'आसुओं की लड़ी ' !!
-महिमा कपूर


जलवायु-सम्मलेन !
लंच-डिनर में किया सभी ने, जल के साथ वायु का सेवन !!

बयान से पलटा कसाब !
खोजें, किनका रहा दवाब ??

लोकसभा स्थगित !
जनता का क्या है, वो तो हर,घटना में माने अपना हित !!

आलोचक ही मित्र है !
चित्रकार की कमी बताये, ऐसा चित्र विचित्र है !!

महंगाई से राहत नहीं !
सबको राहत मिले, ऐसी चाहत नहीं !!

और अधिकार दें !
अपने भी सब तुमको देकर, खुद को गोली मार दें ??

कोहरे की चादर !
आज सुबह से ढूंढ रही हूं, मिले नहीं बच्चों के फादर !!

लूटमार !
थाने का हिस्सा दें पूरा, उससे यूं ना करें उधार !!

अपहरण !
चल, गुज़ारिश कर, पुलिस के छू चरण !!

चालान !
या तो मन की बात मान ले, या नोटों की भाषा मान !!
-अतुल मिश्र

अपने ही देश भारत में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का किस तरह अपमान किया जाता है. इसकी एक झलक इन तस्वीरों में देखी जा सकती है...

पहले चित्र में राष्ट्र गान के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी बैठी हुई हैं... शायद इनके लिए देश का मतलब सिर्फ़ सत्ता का सुख भोगना भर ही है...

दूसरे और तीसरे चित्र में आध्यात्मिक गुरु और "ईश्वर" होने का दावा करने वाली 'माताजी निर्मला देवी' और उनके आईएएस पति सोफे पर बैठे हैं और उनके क़दमों में 'भारत की आन तिरंगा' बिछा है...
-फ़िरदौस ख़ान


ग़ज़ल
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो, तुम क्या जानो बात मेरी तनहाई की

कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आंख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की

वस्ल की रात न जाने क्यूं इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की

उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफक में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की
-क़तील शिफ़ाई


आस
नेताजी ने दिया बयान।
हुआ शहीदों का अपमान।।

शांति-ज्योति से ध्यान हँटाकर।
किया लिपिस्टिक का वह ध्यान।।

संसद पर जब हुआ था हमला।
भाग गए ले कर जी जान।।

खुद को चतुर सियार मानते।
जनता को बिल्कुल नादान।।

आतुर हैं कुर्सी की खातिर।
छीनी है सबकी मुस्कान।।

भाषण से रोटी न मिलती।
मरते हैं क्यों रोज किसान।।

चप्पा चप्पा लूट लिया जो।
बेच न दे वो हिन्दुस्तान।।

जन जन में अब जगी चेतना।
लौटेगी अपनी पहचान।।

जगत गुरू भारत हो फिर से।
यही सुमन का है अरमान।।
-श्यामल सुमन


भाजपा !
देखो, कहीं, किसी कोने में, अखबारों में नाम छपा ??

कांग्रेस !
एक्सप्रेस है, लोगे रेस ??

विपक्ष ने मांगी सफाई !
कहा पक्ष ने,"आप कहीं भी, इसको कर सकते हैं, भाई !!"

दो स्तरीय वार्ता !
जनता को क्या बतलायेंगे, कि उसमें क्या सार था ??

वायुयान !
बिना किसी टक्कर के अब तो, भरता ही वो नहीं उड़ान !!

अभियान !
महंगाई में नहीं ज़रुरत, अन्दर सब पहनें बनियान !!

टकराव !
इसके बाद इसी मुद्दे पर, पैदा करवाएं सदभाव !!

झटके !
है तबादला-प्रेमी सी. एम., जाने कहां उठाकर पटके ??

आरक्षण !
है चुनाव से पहले, सबको देने का प्रण !!

धरना !
धरना देने के विरोध में, काम वही अबकी से करना !!

आशंका !
लंका का बीमा करवाकर, रावण ना फुंकवा दे लंका !!
-अतुल मिश्र



स्टार न्यूज़ एजेंसी
हम सभी जानते हैं कि ऊर्जा दुर्लभ और महंगी है और ऐसे समय में जब देश ऊर्जा की कमी का सामना कर रहा है, इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। ऊर्जा प्रबंधन ऊर्जा कौशल ऊर्जा क्षेत्र के लिए नवयुगीन मांग है। 2012 तक सभी के लिए ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विकसित नीति के साथ ऊर्जा कौशल को प्रोत्साहन देना और देश में ऊर्जा का संरक्षण शामिल है। यह मांग और आपूर्ति के बीच अंतर को कम करने का सबसे किफायती उपाय है।

ऊर्जा बचत की विशाल क्षमता और ऊर्जा कौशल के लाभों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 पारित किया। इस अधिनियम में केन्द्रीय और राज्य स्तर पर वैधानिक ढांचे, संस्थागत व्यवस्था और नियामक तरीके का प्रावधान है ताकि देश में ऊर्जा कौशल का अभियान चलाया जा सके।

सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के दौरान 10,000 मैगावाट की अतिरिक्त क्षमता के बराबर ऊर्जा की बचत का लक्ष्य रखा है। ऊर्जा मंत्रालय के अधीन स्वायत्तशासी निकाय ऊर्जा कौशल कार्यालय ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए छह राष्ट्रीय योजनाओं की शुरूआत की है। ये विभिन्न क्षेत्र हैं - व्यावसायिक भवन, उपभोक्ताओं के लिए मानक, उपकरण और यंत्र, कृषि और नागरिक मांग प्रबंधन, लघु और मझौले उद्यम, प्रकाश-व्यवस्था और बड़े उद्योगों के लिए ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार।

सभी योजनाएं सरकार द्वारा स्वीकृत हैं और कार्यान्वित की जा रही हैं। ऊर्जा कौशल कार्यालय को प्रदत्त अन्य महत्वपूर्ण भूमिका संस्थागत ऊर्जा बचत की क्षमता को सुदृढ करना है। राज्य स्तर पर गठित ये संस्थाएं राज्य निर्दिष्ट एजेंसियों (एसडीए) के जरिये इन योजनाओं पर नजर रखती हैं। इसका उद्देश्य अपने -अपने राज्यों में ऊर्जा कौशल उपायों का कार्यान्वयन करवाना, अपनी मध्यस्थता से ऊर्जा की बचत का पता लगाना और ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 के प्रावधानों को कार्यान्वित कराना है।

सरकार के ऊर्जा कौशल संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों से ऊर्जा की बचत 2008-09 में करीब 51 लाख टन ईंधन के बराबर रही। यह देश में ऊर्जा की कुल आपूर्ति का लगभग एक प्रतिशत है। विद्युत बचत 6.6 अरब यूनिट यानि देश में बिजली की खपत के एक प्रतिशत के बराबर रही जो पैदा न की गई 1505 मेगावाट बिजली के बराबर थी।
ये बचत ऊर्जा कौशल कार्यालय (बीईई) के तारांकित फ्रिजों और एयर कंडीशनरों की अधिक बिक्री, उद्योग में संवृध्द ऊर्जा कौशल और सरकार द्वारा संचालित सीएफएल कार्यक्रमों के कारण संभव हो पाई है। 2008-09 में बेचे गए कुल फ्रिजों में से करीब 75 प्रतिशत तारांकित थे, जबकि पिछले वर्ष तारांकित फ्रिजों की बिक्री 50 प्रतिशत से भी कम रही थी। जहां तक एयर कंडीशनरों का संबंध है 2008-09 में बेचे गए लेबलशुदा उत्पाद 50 प्रतिशत थे जबकि एक वर्ष पहले इनका प्रतिशत 12 प्रतिशत रहा था। अकेले इन दो उत्पादों से 2.12 अरब यूनिट बिजली की बचत हुई।
बिजली की इस बचत को राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद द्वारा सत्यापित किया गया था। सरकार के ऊर्जा कौशल कार्यक्रमों से संबंधित उत्पादित परिहरित क्षमता 2007-08 में 621 मेगावाट रही। इस प्रकार 11वीं योजना के पहले दो वर्षों के लिए कुल परिहरित क्षमता 2126 मेगावाट रही। चालू वर्ष 2009-10 के लिए लक्ष्य 2600 मेगावाट है और 11वीं पंचवर्षीय योजना का संचित लक्ष्य 10,000 मेगावाट है।

ऊर्जा कौशल कार्यालय (बीईई) के महानिदेशक का कहना है कि ऊर्जा की बचत वास्तव में राष्ट्रीय कार्यक्रम है इसलिए हम सभी को मिलकर भारत को ऊर्जा कौशल अर्थव्यवस्था बनाने का हर संभव प्रयास करना होगा।



प्रफुल्ल पटेल
वर्तमान वैश्विक संकट से एक महत्त्वपूर्ण बात सामने आई है कि यह दुनिया एक नाव है और हम सभी उसमें सवार हैं। शांतिपूर्ण एवं समृध्द भविष्य को हासिल करने की हमारी संभावना हमारे इस एहसास पर निर्भर करती है कि यदि नाव ने यात्रा शुरू की है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम उसके किस हिस्से में हैं। आज हम अपनी नियति को दूसरों की नियति सें अलग नहीं कर सकते और यदि हम अकेले चलने की कोशिश करते हैं तो हम विपदा को न्यौता दे रहे हैं। चाहे कोई देश विशेष के लिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता की बात कर रहा हो या फिर अधिक मान्य वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा की बात कर रहा हो- यह दोनों के लिए सही जान पड़ता है।

उदाहरणस्वरूप, भारत के विमानन क्षेत्र का विकास ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ा है। केवल कुछ महीने पहले ही, तेजी से उभरने वाला भारतीय विमानन क्षेत्र को मंदी का मुँह देखना पड़ा, जबकि वह व्यापक विस्तार की उम्मीद कर रहा था। वैश्विक आर्थिक मंदी ने, मार्च 2008 से विमान ईंधन की लगातार बढती क़ीमत के प्रभाव के चलते किराया महंगा कर दिया, यात्रियों की संख्या काफी घटा दी तथा इस उद्योग की विकास योजना पर बहुत बुरा असर डाला।

इसलिए तेजी से बदलती इस परस्पर निर्भर दुनिया में हम ऊर्जा सुरक्षा यानि ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लिए एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं, जिसके तहत केवल पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा आपूर्ति नहीं बल्कि उचित कीमत पर उत्तम ऊर्जा की आपूर्ति की सुनिश्चितता भी शामिल है। इससे सभी के लिए संपदा सृजन में मदद मिलेगी।

ऊर्जा हमारी अर्थव्यवस्था के लिए जीवनधारा है। उचित कीमत पर उपलब्ध ऊर्जा हमारी प्रतिस्पर्धा तथा जीवन स्तर के लिए केन्द्र बिन्दु है। हमारे समाज की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा अत्यावश्यक है। पानी के बाद ऊर्जा तथा जलवायु परिवर्तन, वैश्विक सुरक्षा एवं विकास के लिए दो महत्त्वपूर्ण मुद्दे के रूप में उभरे हैं।

नागरिक विमानन के क्षेत्र में चाहे हवाई अड्डों का निर्माण और आधुनिकीकरण हो या नयी एयरलाइन सेवा का आंरभ, सभी भारत की विकास की कहानी पेश करते हैं। यदि भारत के विकास को बनाये रखना है तो ज्यादा व्यापार और यात्रा की आवश्यकता है तथा अधिकाधिक लोग यहां से विदेश जाएं और विदेश से यहां आएं। इसे हासिल करने के लिए ऊर्जा की निर्बाध आपूर्ति आधारित अत्याधुनिक अवसंरचनाएं आवश्यक हैं।

हालांकि भारत में तेल और गैस के भंडार बहुत सीमित हैं, लेकिन उत्खनन के जरिए हमेशा ही नये भंडार की खोज की संभावना बनी रहती है। जिस तरह से स्थिति आगे बढ रही है, उसमें कच्चे तेल के आयात पर होने वाले खर्च से अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा बोझ आ जाएगा। ऐसे में ऊर्जा की बढती मांग से निबटने के लिए नई रणनीति ढूंढनी होगी।
इसलिए, विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता की नई व्यवस्था की आवश्यकता है। इस व्यवस्था में कई मुद्दों पर ध्यान देना होगा जैसे-
• ऊर्जा की कम खपत वाला विकास
• गैर-पारम्परिक तथा नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों को अधिकाधिक इस्तेमाल ताकि कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके।
• उत्पादन तथा उपभोग की कार्यकुशलता में सुधार।

ऐसी कोई भी रणनीति समन्वित विकास तथा घरेलू एवं वैश्विक संसाधनों के बुध्दमतापूर्ण इस्तेमाल पर आधारित होनी चाहिए। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में विकसित समेकित ऊर्जा नीति में मौजूदा ऊर्जा संसाधन विस्तार तथा नये एवं उभरते ऊर्जा स्रोतों पर ज्यादा बल दिया गया है। इसलिए, ऊर्जा आपूर्ति और उपलब्धता राष्ट्रीय विकास रणनीति का महत्त्वपूर्ण अंग है।

इस दृष्टि (लक्ष्य) को पाने का मतलब न केवल ऊर्जा मिश्रण विकिसत करना है, बल्कि उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण ऐसे प्रौद्योगिकियों पर बल देना है जो ऊर्जा कुशलता को यथासंभव बढाएं एवं मांग प्रबंधन तथा संरक्षण सुनिश्चित करें। सरकार परमाणु ऊर्जा के विकास के प्रति दृढसंक़ल्प है। जहां तक सौर ऊर्जा का प्रश्न है तो भारत में यह ऊर्जा स्रोत प्रचुर मात्रा में है तथा आने वाले वर्षों में यह प्रमुख ऊर्जा संसाधन हो सकता है। हालांकि सौर ऊर्जा के अधिकाधिक वाणिज्यिक उपयोग के लिए अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र खूब निवेश की आवश्यकता है।

आज मुख्य लक्ष्य है कि एक ऐसे जवाबदेह विकास के लिए काम किया जाए जो आर्थिक विकास का पर्यावरण सुरक्षा के साथ तालमेल सुनिश्चित करे। और इसे पाने के लिए उद्योग जगत को सरकार, गैर सरकारी संगठनों तथा नागरिक समाज के साथ मिलकर बहुत सोच-समझकर योजनाएं बनानी होंगी।

ऊर्जा आत्मनिर्भरता का भविष्य प्रौद्योगिकी में है, चाहे वह तेल, गैस, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत, उपकरण उद्योग, वाहन या विमान का क्षेत्र हो। प्रौद्योगिकी एक दिशादृष्टि प्रदान करती है तथा इस मार्ग की तीन प्राथमिकताएं हैं-

• अभिनवीकरण के जरिए विविधीकरण
• परस्पर निर्भरता
• मानव संसाधन

हाल में कई तेल उत्पादक कंपनियां अपने आपको ऊर्जा उत्पादक के रूप में ढाल रही हैं। सभी तरह की ऊर्जा के लिए कठोर मार्ग का यह चलन मांग और आपूर्ति की असुरक्षा को आपूर्ति तथा मांग की सुरक्षा में बदलने की ओर एक बड़ा कदम है। नवीकरणीय समेत, कोयला, गैस तेल, पन बिजली तथा परमाणु ऊर्जा यानि ऊर्जा के सभी रूपों पर बल दिया जा रहा है। विश्व में ऊर्जा स्रोतों के लिए प्रतिस्पर्धा है। इस समस्या को केवल प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास, तैनाती एवं स्थानांतरण में सहयोग बढाक़र दूर किया जा सकता है।

भविष्य में ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन ऊर्जा कीमतों को बढ़ाने में लगातार महत्त्वपूर्ण कारक बन रहे हैं। वे संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा बढा रहे हैं। वैकल्पिक ऊजाओं में सार्वजनिक एवं निजी निवेश को बढा रहे हैं तथा ऊर्जा मांग, खासकर तेजी से उभर कर भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं में अथक विकास को चुनौती दे रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का प्रचुर मात्रा में वितरण केवल बाजार शक्तियों तथा वाणिज्यिक हितों पर नहीं छोड़ा जा सकता। अन्यथा उन देशों तक स्वच्छ प्रौद्योगिकियां उपलब्ध नहीं होंगी जिन्हें ऊर्जा की सख्त जरूरत है तथा तेजी से उभर रहे हैं।

हमारे सम्मुख दूसरी चुनौती है कि जलवायु परिवर्तन निरीक्षक विकासशील देशों से ऊर्जा खपत तथा विकास को एक दूसरे को अलग रखने की उम्मीद करते हैं। पर भारत जैसे विकासशील देश एक ऐसी प्रणाली चाहते हैं जो उनकी अर्थव्यवस्था को विशेष स्वरूप देने में मदद करे। एक ऐसा स्वरूप जिसमें विकास तथा गरीबी घटाओ लक्ष्यों को बिना कोई नुकसान पहुंचाये अर्थव्यवस्था उत्सर्जन मुक्त हो। इसके लिए प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी निवेश तथा वैकल्पिक ऊर्जा पहल के लिए धन की व्यवस्था करनी होगी। एक ऐसी वित्तीय प्रणाली स्थापित करनी होगी जो स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए धन का प्रबंध कर सके तथा इसी के लिए भारत को वैश्विक सहयोग चाहिए।

अतएव, वैश्विक समुदाय के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती ऊर्जा उत्पादक तथा ऊर्जा उपभोक्ताओं के बीच बेहतर समझ विकसित करना है और इस समझ का आधार यह होना चाहिए कि परस्पर निर्भरता नई वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था का केन्द्र होना चाहिए।

तेल, गैस तथा कोयला पर से विश्व की निर्भरता खत्म करने के लिए मेधा तथा प्रौद्योगिकी की दो पीढियां चाहिए। हालांकि नई मांग व्यवस्था, वैकल्पिक एवं नवीकरणीय स्रोत ही अंतत: प्रमुख होंगे। व्यवहार में ‘संचालन का लाइसेंस’ उन लोगों के पास होगी जो स्वच्छ उपकरणों (तेल कोयला और गैस के साथ) की दूसरी पीढी विकसित करेंगे। सबसे बड़ी चुनौती है कि अंतर्राष्ट्रीय मंच तथा ऊर्जा बाजार में कोई बखेड़ा खड़ा किये बगैर सुरक्षित ढंग से कैसे यहां तक पहुंचा जाए।

मानव संसाधन के मोर्चे पर भारत ऊर्जा कर्मियों की अगली पीढी क़ो प्रशिक्षित करके अपना प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मजबूत कर सकता है। ऊर्जा उद्योग में कर्मियों की औसत आयु 46-49 वर्ष है यानि अन्य उद्योगों की तुलना में पूरे 10 साल अधिक है। तथा अधिकतर कुशल श्रमिक अगले दशक में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इससे बहुत बड़ा ज्ञान खाई पैदा होगा इसलिए कुशल ऊर्जा श्रमिकों के भंडार के नवीकरण के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक है।

अंतत:, ऊर्जा के उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के सम्मुख परस्पर निर्भरता का ही रास्ता होना चाहिए। जलवायु परिवर्तन तथा ऊर्जा आत्मनिर्भरता के आपस में मिलने से बदलाव की चुनौती हर देशों के सम्मुख है। इससे उबरने का उपाय एक ऐसी समझ है जो हितों के बीच संतुलन कायम करे। एक ऐसा संतुलन जो परस्पर निर्भरता तथा विश्वास पर आधारित है। हमें स्वच्छतर प्रौद्योगिकियों की साझेदारी से साझा विकास की आवश्यकता है। विकसित देशों को विकासशील देशों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए धन की व्यवस्थाकर उनके संपोषणीय विकास में योगदान करना चाहिए।

ऊर्जा व्यवसाय की प्रकृति ऐसी है कि हम कल, अगले महीने या अगले साल की बात नहीं कर रहे। विशाल निवेश से भी ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाने में दशकों लग जायेंगे, रातोंरात कुछ बदलने वाला नहीं है। लेकिन इससे यह तथ्य बदल नहीं जाता है कि हम अभी भी जिस ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं वह कठिन और अस्थायी है। ऊर्जा आत्मनिर्भरता विभिन्न देशें के बहुपक्षीय समझौते एवं सहयोग तथा वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिबध्दता से ही आयेगी। सारे प्रयास सभी के लिए ऊर्जा सुरक्षा के वैश्विक ब्लूप्रिन्ट तैयार करने की दिशा में लक्षित होने चाहिए।

[लेखक प्रफुल्ल पटेल भारत सरकार में नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)हैं]



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