-फ़िरदौस ख़ान 
पिछले माह हमने लिखा था- लगता है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के ख़िलाफ़ एक बड़ी साज़िश की जा रही है. इसी के तहत उन पर संगीन आरोप लगाए जा रहे हैं. अब यह हक़ीक़त सामने आ गई है कि राहुल गांधी को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी और इसी साज़िश के तहत ही उन पर बलात्कार का संगीन आरोप लगाया गया था. समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि उसकी पार्टी के आलाकमान ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के लिए उकसाया था.

राहुल गांधी उभरते हुए नेता हैं और देश का युवा उन्हें प्रधानमंत्री देखना चाहता है. ऐसे में उनके ख़िलाफ़ साज़िशें रचे जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है. उन पर लगे बलात्कार के आरोप की भी साज़िश से जोड़कर देखा जा रहा है. बहरहाल, इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने तो पहली ही सुनवाई में राहुल ख़िलाफ़ दाख़िल की गई याचिका को ख़ारिज कर दिया था...साथ ही याचिकाकर्ता पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए उसके ख़िलाफ़ सीबीआई जांच की भी सिफ़ारिश की थी. अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में है...    

बहरहाल, कांग्रेस महासचिव और अमेठी के सांसद राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में एक लड़की और उसके माता-पिता को से बंधक बनाकर रखने और लड़की से बलात्कार के आरोपों से इनकार करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक हलफ़नामा दाख़िल किया है. हलफ़नामे में उन्होंने कहा, "ख़ुद पर लगाए गए बलात्कार और अपहरण के आरोपों से मैं पूरी तरह इनकार करता हूं. ये दोनों आरोप पूरी तरह ग़लत, तुच्छ, परेशान करने वाले और छवि को ख़राब करने के लिए सुनियोजित ढंग से लगाए गए हैं."

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल छह अप्रैल को राहुल गांधी, उत्तर प्रदेश सरकार और चार अन्य लोगों को नोटिस जारी किया था. हलफ़नामे में कहा गया है, "हम आदरपूर्वक कहना चाहते हैं कि इस तरह के आरोपों के मामले गंभीरता से देखे जाने चाहिए." उसी के जवाब में राहुल गांधी ने यह हलफ़नामे दाख़िल किया. इलाहबाद उच्च न्यायालय ने समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच की भी सिफ़ारिश की थी, जिस पर न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर और टीएस ठाकुर की खंड पीठ ने रोक लगा दी थी और सभी पक्षों से चार हफ़्तों में जवाब दाख़िल करने के लिए कहा था. राहुल गांधी ने न्यायमूर्ति एचएल दत्तू और सीके प्रसाद की खंडपीठ के सामने दायर हलफ़नामे में ये सारी बातें कही हैं.

गौरतलब है कि कि मध्य प्रदेश से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते और गजेंद्र पाल सिंह ने  पिछले साल एक मार्च को राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दो अलग-अलग बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थीं, जिनमें कहा गया था कि साल 2006 में राहुल गांधी अपने कुछ विदेशी मित्रों के साथ पार्टी के कार्यकर्ता बलराम सिंह के घर में रुके. उसी दिन से बलराम सिंह, उनकी पत्नी सावित्री और पुत्री सुकन्या ग़ायब हैं. याचिका में आरोप लगाया गया था कि राहुल गांधी ने सभी का अपहरण करके उन्हें बंदी बनाकर रखा है.

अदालत के 4 मार्च, 2011 के आदेश के तहत उत्तर प्रदेश के डीजीपी करमवीर सिंह ने कथित सुकन्या और उसके माता-पिता को अदालत में पेश किया और उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें किसी ने बंधक नहीं बनाया था. सुकन्या बताई जा रही ल़डकी ने अदालत को अपना असली नाम कीर्ति सिंह बताया, जबकि अपने पिता का नाम बलराम सिंह, मां का नाम सुशीला उर्फ़ मोहिनी होने की पुष्टि की. अमेठी थाना प्रभारी ने इन तीनों कथित बंदियों की शिनाख्त की.

इस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर ही 50 लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया. इसके साथ ही खंडपीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि जुर्माने की रक़म एक महीने में जमा की जाए. इसके अलावा अदालत ने याचिकाकर्ताओं की सीबीआई जांच कराने का भी आदेश दिया. जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस सतीश चंद्र की बेंच ने कथित रूप से अमेठी में रहने वाली सुकन्या और उसके माता-पिता को राहुल द्वारा बंदी बना लिए जाने की खबर देने वाली एक वेबसाइट पर भी प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए.




स्टार न्यूज़ एजेंसी 
नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने आज गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश को स्थगित करने से इंकार कर दिया, जिसमें राज्य सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह 2002 के दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों की मरम्मत के लिए भुगतान करे.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थलों की बहाली की योजना तैयार करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ दी. न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ओडिशा सरकार की तर्ज़ पर एक योजना तैयार कर सकती है, जिसने कंधामाल ज़िले में 2008 में हुए ईसाई विरोधी दंगे के दौरान क्षतिग्रस्त चर्चों की बहाली के लिए योजना बनाई थी. गुजरात के अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता ने न्यायालय में कहा कि अदालत के आदेश के क्रियान्वयन के लिए उन्हें मोहलत चाहिए. न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस कथ्य पर भी स्थगन नहीं दिया, जिसमें धार्मिक स्थलों के क्षतिग्रस्त होने के लिए अपर्याप्त कार्रवाई को ज़िम्मेदार ठहराया गया था.




एम. एल. धर
                जम्मू और कश्मीर की आर्द्र भूमि में सर्दी के महीनों में रहने के बाद करीब दस लाख प्रवासी पक्षी अपने महाद्वीपों की ओर चले गए। ये आर्र्द्र भूमि मध्यवर्ती एशियन उड़ान मार्ग में पड़ती है जहां सर्दी में प्रवासी पक्षी आते हैं। ऐसी आर्द्र भूमि परिवेश तथा जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है।
      जैव विविधता को बनाये रखने, जल संरक्षण तथा जल की उपलब्धता के लिए आर्द्र भूमि आवश्यक है। जम्मू और कश्मीर के लोगों की आर्थिक गतिविधियों में आर्द्र भूमि महत्वपूर्ण  भूमिका निभाती है। राज्य की बड़ी आर्द्र भूमि, वुलार लेक का ही मामला लें, जो घाटी में महत्वपूर्ण परिवेश का निर्माण करती है तथा जैव विविधता को सहारा देती है। जल का बड़ा जलाशय, वनस्पति का भंडार होने के अलावा ये प्रवासी पक्षियों को सर्दियों में शरण देता है। इससे घाटी में रहने वाले हजारों लोगों का जीवन यापन होता है तथा घाटी में कुल  मछली पालन का साठ प्रतिशत इससे प्राप्त होता है। इसके अलावा इसके जल से अन्य उत्पादों का भी संरक्षण किया जाता है।
      राज्य में 29 आर्र्द भूमि हैं, कश्मीर में 16, जम्मू में आठ तथा लद्दाख में पांच। पक्षियों की करीब 106 प्रजातियां इन आर्द्र भूमियों में आश्रय लेती हैं इनमें से स्थानीय पक्षियों की 25 प्रजातियां समय-समय पर आती जाती रहती हैं।
      इन आर्द्र भूमियों का महत्व इस लिए भी बढ़ जाता है कि ये प्रवासी पक्षियों को अभय शरण स्थल प्रदान करते हैं। इनमें से कुछ पक्षियों की प्रजातियां पहले ही खतरे में पड़ चुकी हैं। जम्मू और कश्मीर आर्द्र भूमि के सर्वे के अनुसार सफेद-आखों वाले बतख राज्य में सात आर्द्र भूमियों में तथा जम्मू में दो आइबिस पक्षियों यानी इन दो विलुप्ती के करीब प्रजातियों को देखा गया। सर्वेक्षण से यह भी पता जला है कि खतरे मे पड़ी दो प्रजातियों अर्थात् काली गर्दन वाले सारस तथा सारस क्रेन लद्दाख में आर्द्र भूमि में तथा जम्मू क्षेत्र में घराना आर्द्र भूमि में देखे गए।
      मनुष्यों के लोभ तथा बढ़ती जनसंख्या के कारण ऐसी कई आर्द्र भूमियां सिकुड़ रही हैं। "कश्मीर घाटी में 600 छोटी तथा बड़ी आर्द्र भूमियां हुआ करती थीं। अब केवल 10 से 15 आर्द्र भूमि बची हैं तथा वे भी खत्म होने के करीब हैं।" ऐसा सेन्टर फार एनवायरमेंटल ला के वरिष्ठ कर्मी ने कहा।
      जम्मू के बड़े शुष्क क्षेत्र में जिसमें रामगढ़ क्षेत्र में नागा आर्द्र भूमि रिजर्व (1.21 स्केयर कि.मी.) तथा अबदुलियन क्षेत्र में संगराल आर्द्र भूमि रिजर्व (0.68 स्केयर कि.मी.) में स्थिति बेहतर नहीं हैं और ये पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी हैं जबकि कईयों का आकार काफी घट गया है।
      नांगा गांव के सरपंच ने बताया कि अब इस क्षेत्र में प्रवासी पक्षी नहीं आते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 25 साल पहले यहां काफी आर्द्र भूमि थी। यहां बड़ा तालाब था जो कि अब पूरी तरह से सूख गया है। बड़े-बूढ़ों ने बताया कि सर्दियों में प्रवासी पक्षियों के झुंड आया करते थे किंतु समय के साथ-साथ स्थानीय लोगों ने भूमि का उपयोग खेती के लिए करना शुरू कर दिया तथा प्रवासी पक्षियों ने बढ़ती गतिविधियां देख आना बंद कर दिया।

      मनुष्य और प्रकृति के बीच का तनाव इस उजाड़ परिदृश्य के लिए जिम्मेदार है। स्थानीय लोगों का यह मत रहा है कि पक्षियों के आने से वे फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए वे इनके खिलाफ हैं।
            इन जल निकायों को 1981 में संरक्षित आर्द्र भूमि घोषित किए जाने के बावजूद बचाया नहीं जा सका। पर्यावरण पर्यटन के रूप में उभरे घराना आर्द्र भूमि के आसपास के गांव वाले पक्षियों को उड़ा दिया करते थे, लेकिन 2003 से स्थिति में सुधार हुआ है। वन्य जीव विभाग ने भी स्थानीय लोगों को समझाया बुझाया कि वे पक्षियों के आगमन को बाधित न करें। जम्मू के एक वन्य जीव संरक्षक ने बताया कि गांव वालों की तरफ से अधिकतम सहयोग पाने के लिए वन्य विभाग लगातार कोशिश करता रहा है। इसके तहत विभाग ने उन किसानों को हर्जाना देने की भी शुरूआत की जिनके फसल को नुकसान पहुंचता है। इन सभी उपायों का अंतिम उद्देश्य  आर्द्र भूमि को बचाना रहा है जो तेजी से बर्बाद हो रहे हैं।
      विशेषज्ञों का कहना है कि पेड़ों की बेरोक-टोक कटाई से मृदा क्षरण एवं बारिश के साथ मिट्टी का बहाव, जल निकायों के आसपास मानव अतिक्रमण और संबंधित विभागों की उदासीन रवैया एवं अदूरदर्शी नीतियों की वजह से आर्द्र भूमि का क्षरण और संकुचन हो रहा है। उन्होंने बेमिना आवासीय कालोनी का उदाहरण देते हुए कहा कि 19वीं शताब्दी के समापन तक श्रीनगर में यह एक अद्भूत आर्द्र भूमि हुआ करती थी। विशेषज्ञों ने बताया कि इस दिशा में लापरवाही जारी रही। उन्होंने रख अरथ आर्द्र भूमि का उदाहरण भी दिया, जिसे डल झील में रह रहे लोगों के पुनर्वास के लिए भरा जा रहा है।
      व्यक्तिगत स्तर पर सिर्फ लोग ही नहीं बल्कि नियामक स्तर पर सरकार भी आर्द्र भूमि के मामले में दखल देती रही है। उन्होंने भूमि के इस्तेमाल का तरीका न सिर्फ आर्द्र भूमि के अंदर बदला बल्कि जल ग्रहण में भी बदला। व्यक्तिगत और सरकारी स्तर पर दावें की प्रक्रिया भी जारी रही, इससे आर्द्र भूमि सिकुड़ती चली गई और आर्द्र भूमि का पर्यावरण भी बदल गया। जब पर्यावरण बदला, तो आवास भी बदला। केन्द्रीय आर्द्र भूमि नियामक प्राधिकरण के सदस्य ए आर युसूफ ने बताया कि इसका पक्षियों पर भी असर पड़ा जिनकी ये आर्द्र भूमि खास आवास हुआ करते थे।
      राज्य के दो प्रमुख आर्द्र भूमि वुलर झील और मिरगुंड अपने वास्तविक विस्तार से सिकुड़ कर अब क्रमश 58.71 वर्ग किलोमीटर और 1.5 वर्ग किलोमीटर रह गया है। प्रोफेसर युसूफ ने बताया कि वुलर झील को कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली हुई थी लेकिन 1950, 1960 और 1970 के दशक में सरकारी प्राधिकरणों ने इस जल निकाय के चारों ओर बांध बना दिए और झील के एक बड़े क्षेत्र पर दावा करते हुए विली (बेंत की तरह पतली लचकदार डाली वाला पेड़) की रोपाई शुरू की। लोगों ने भी आर्द्र भूमि के इलाके में धान की खेती शुरू कर दी।
      कश्मीर की प्राकृतिक छटा में आकर्षण का विशेष केन्द्र बिन्दु रही डल झील भी मनुष्यों की लालच और अनदेखी का शिकार बनी। यह भी तेजी से सिकुड़ते हुए 75 वर्ग किलोमीटर के विस्तार से हट कर महज 12 वर्ग किलोमीटर तक में रह गया है जबकि एक अन्य आर्द्र भूमि हैगम भी अपनी वास्तविक विस्तार से घटकर आधा 7.25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सिकुड़ गया है। अन्य आर्द्र भूमि भी इसी तरह सिकुड़ रही हैं।
      आर्द्र भूमि पर इस तरह के मंडराते खतरे देख केन्द्र और राज्य सरकार सुधार की दिशा में कदम बढ़ाने को मजबूर हुई। राज्य सरकार ने जल निकायों को उनकी पर्यावरणीय और आर्थिक महत्व को देखते हुए उनके संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार के साथ कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य में पर्यटन को बचाए रखने और आर्थिक संसाधनों को बचाए रखने के लिए जल निकायों का संरक्षण, वन्य संपदा और जैव विविधता का संरक्षण समय की मांग है।
      वूलर झील के विशिष्ट जलीय और सामाजिक-आर्थिक महत्व को महसूस करते हुए केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे अपने आर्द्र भूमि कार्यक्रम में 1986 में राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमि के रुप में शामिल किया। इसके बाद 1990 में रामसर समझौते के तहत इसे राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमि के रुप में नामित किया गया। वूलर और होकेरसर के अलावा जम्मू-कश्मीर में तीन अन्य आर्द्र भूमि – लद्दाख में सोमोरिरि और जम्मू क्षेत्र में मनसर तथा सूरिनसर झील के संरक्षण के लिए इन्हें रामसर समझौते के तहत सूचीबद्ध किया गया है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इसके आस-पास निर्माण, और उद्योगों की स्थापना पर रोक लगाकर तथा उद्योग और इंसानी बस्तियों द्वारा किसी प्रकार के अपशिष्ट को फेंकने अथवा उत्प्रवाही के निस्सरण को वर्जित कर इसे संरक्षित स्थल के रुप में सूचीबद्ध किया है। इस संबंध में देश भर में संरक्षण के लिए आर्द्र भूमि की पहचान के अलावा विस्तृत नियमावली के क्रियान्वयन और समीक्षा के लिए 12 सदस्यीय केन्द्रीय आर्द्र भूमि नियामक प्राधिकरण की भी स्थापना की गई।

      राज्य सरकार भी जल निकायों को बचाने की कोशिश में लगी रही है, जिन्हें मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ‘विरासत के प्रतिरुप’ के रुप में संबोधित किया और इनके संरक्षण के लिए प्रदेश की जनता भी चिंतित है। इन झीलों की समस्याओँ के संदर्भ में हाल के वर्षों में बहुत सी रिपोर्टे और कार्य योजना प्रकाश में आई है।

      स्थिति के महत्व के मद्देनज़र राज्य सरकार ने झील और जलमार्ग विकास प्राधिकरण (एलएडब्ल्यूडीए), वूलर मनसबल विकास प्राधिकरण (डब्ल्यूएमडीए) आदि प्राधिकरणों की स्थापना की है ताकि झीलों की सफाई और उनका संरक्षण किया जा सके। जैसा कि एलएडब्ल्यूडीए मुख्य तौर पर डल झील को पुनः स्थापित करने और डब्ल्यूएमडीए मनसबल झील के संरक्षण में तत्पर है इसलिए राज्य सरकार ने वूलर झील को पुनर्जीवित करने के लिए वूलर विकास प्राधिकरण के गठन का निर्णय किया।

      इन सभी प्रयासों के सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे बशर्ते इसे लोगों का सक्रिय योगदान मिले। मनसबल झील के संरक्षण में यह महत्वपूर्ण कारक रहा था। बड़े पैमाने पर जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है और इस प्रक्रिया में विस्थापित हुए लोगों की समस्याओं के बारे में अधिकारियों को संवेदनशील होना होगा। आधिकारिक प्रयासों की सहायता के लिए गैर सरकारी संगठनों और मीडिया द्वारा सौहार्दपूर्ण जन आंदोलन की भी आवश्यकता है। यह एक लंबा और मुश्किल सफर हो सकता है किंतु स्वस्थ पर्यावरण

 सुनिश्चित करने तथा स्थानीय आबादी के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए ‘विरासत की इन प्रतिमाओं’ को बचाने के रास्ते पर चलना होगा।

फ़िरदौस ख़ान
भारत विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का देश है. प्राचीन संस्कृति के इन्हीं रंगों को देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में बिखेरने में सपेरा जाति की अहम भूमिका रही है, लेकिन सांस्कृतिक दूत ये सपेरे सरकार, प्रशासन और समाज के उपेक्षित रवैये की वजह से दो जून की रोटी तक को मोहताज हैं. 

देश के सभी हिस्सों में सपेरा जाति के लोग रहते हैं. सपेरों के नाम से पहचाने जाने वाले इस वर्ग में अनेक जातियां शामिल हैं. भुवनेश्वर के समीपवर्ती गांव पद्मकेश्वरपुर एशिया का सबसे बड़ा सपेरों का गांव माना जाता है. इस गांव में सपेरों के क़रीब साढ़े पांच सौ परिवार रहते हैं और हर परिवार के पास कम से कम दस सांप तो होते ही हैं. सपेरों ने लोक संस्कृति को न केवल पूरे देश में फैलाया, बल्कि विदेशों में भी इनकी मधुर धुनों के आगे लोगों को नाचने के लिए मजबूर कर दिया. सपेरों द्वारा बजाई जाने वाली मधुर तान किसी को भी अपने मोहपाश में बांधने की क्षमता रखती है.
डफली, तुंबा और बीन जैसे पारंगत वाद्य यंत्रों के जरिये ये किसी को भी सम्मोहित कर देते हैं. प्राचीन कथनानुसार भारतवर्ष के उत्तरी भाग पर नागवंश के राजा वासुकी का शासन था. उसके शत्रु राजा जन्मेजय ने उसे मिटाने का प्रण ले रखा था. दोनों राजाओं के बीच युध्द शुरू हुआ, लेकिन ऋषि आस्तिक की सूझबूझ पूर्ण नीति से दोनों के बीच समझौता हो गया और नागवंशज भारत छोड़कर भागवती (वर्तमान में दक्षिण अमेरिका) जाने पर राजी हो गए. गौरतलब है कि यहां आज भी पुरातन नागवंशजों के मंदिरों के दुर्लभ प्रमाण मौजूद हैं.
स्पेरा परिवार की कस्तूरी कहती हैं कि इनके बच्चे बचपन से ही सांप और बीन से खेलकर निडर हो जाते हैं. आम बच्चों की तरह इनके बच्चों को खिलौने तो नहीं मिल पाते, इसलिए उनके प्रिय खिलौने सांप और बीन ही होते हैं. बचपन से ही सांपों के सानिंध्य में रहने वाले इन बच्चों के लिए सांप से खेलना और उन्हें क़ाबू कर लेना ख़ास शग़ल बन जाता है.

सिर पर पगड़ी, देह पर भगवा कुर्ता, साथ में गोल तहमद, कानों में मोटे कुंडल, पैरों में लंबी नुकीली जूतियां और गले में ढेरों मनकों की माला और ताबीज़ पहने ये लोग कंधे पर दुर्लभ सांप और तुंबे को डाल कर्णप्रिय धुन के साथ गली-कूचों में घूमते रहते हैं. ये नागपंचमी, होली, दशहरा और दिवाली के  मौक़ों पर अपने घरों को लौटते हैं. इन दिनों इनके अपने मेले आयोजित होते हैं.

मंगतराव कहते हैं कि सभी सपेरे इकट्ठे होकर सामूहिक भोज 'रोटड़ा' का आयोजन करते हैं. ये आपसी झगड़ों का निपटारा कचहरी में न करके अपनी पंचायत में करते हैं, जो सर्वमान्य होता है. सपेरे नेपाल, असम, कश्मीर, मणिपुर, नागालैंड और महाराष्ट्र के दुर्गम इलाकों से बिछुड़िया, कटैल, धामन, डोमनी, दूधनाग, तक्षकए पदम, दो मुंहा, घोड़ा पछाड़, चित्तकोडिया, जलेबिया, किंग कोबरा और अजगर जैसे भयानक विषधरों को अपनी जान की बाजी लगाकर पकड़ते हैं. बरसात के दिन सांप पकड़ने के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि इस मौसम में सांप बिलों से बाहर कम ही निकलते हैं.

हरदेव सिंह बताते हैं कि भारत में महज 15 से 20 फीसदी सांप ही विषैले होते हैं. कई सांपों की लंबाई 10 से 30 फीट तक होती है. सांप पूर्णतया मांसाहारी जीव है. इसका दूध से कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन नागपंचमी पर कुछ सपेरे सांप को दूध पिलाने के नाम पर लोगों को धोखा देकर दूध बटोरते हैं. सांप रोजाना भोजन नहीं करता. अगर वह एक मेंढक निगल जाए तो चार-पांच महीने तक उसे भोजन की ज़रूरत नहीं होती. इससे एकत्रित चर्बी से उसका काम चल जाता है. सांप निहायत ही संवेदनशील और डरपोक प्राणी है. वह ख़ुद कभी नहीं काटता. वह अपनी सुरक्षा और बचाव की प्रवृत्ति की वजह से फन उठाकर फुंफारता और डराता है. किसी के पांव से अनायास दब जाने पर काट भी लेता है, लेकिन बिना कारण वह ऐसा नहीं करता.

सांप को लेकर समाज में बहुत से भ्रम हैं, मसलन सांप के जोड़े द्वारा बदला लेना, इच्छाधारी सांप का होना, दुग्धपान करना, धन संपत्ति की पहरेदारी करना, मणि निकालकर उसकी रौशनी में नाचना, यह सब असत्य और काल्पनिक हैं. सांप की उम्र के बारे में सपेरों का कहना है कि उनके पास बहुत से सांप ऐसे हैं जो उनके पिता, दादा और पड़दादा के जमाने के हैं. कई सांप तो ढाई सौ से तीन सौ साल तक भी ज़िन्दा रहते हैं. पौ फटते ही सपेरे अपने सिर पर सांप की पिटारियां लादकर दूर-दराज के इलाक़ों में निकल पड़ते हैं. ये सांपों के करतब दिखाने के साथ-साथ कुछ जड़ी-बूटियों और रत्न भी बेचते हैं. अतिरिक्त आमदनी के लिए सांप का विष मेडिकल इंस्टीटयूट को बेच देते हैं. किंग कोबरा और कौंज के विष के दो सौ से पांच सौ रुपये तक मिल जाते हैं, जबकि आम सांप का विष 25 से 30 रुपये में बिकता है।

आधुनिक चकाचौंध में इनकी प्राचीन कला लुप्त होती जा रही है. बच्चे भी सांप का तमाशा देखने की बजाय टीवी देख या वीडियो गेम खेलना पसंद करते हैं. ऐसे में इनको दो जून की रोटी जुगाड़ कर पानी मुश्किल हो रहा है. मेहर सिंह और सुरजा ठाकुर को सरकार और प्रशासन से शिकायत है कि इन्होंने कभी भी सपेरों की सुध नहीं ली. काम की तलाश में इन्हें दर-ब-दर भटकना पड़ता है. इनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है. बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. सरकार की किसी भी योजना का इन्हें कोई लाभ नहीं मिल सका, जबकि क़बीले के मुखिया केशव इसके लिए सपेरा समाज में फैली अज्ञानता को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. वह कहते हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ वही लोग उठा पाते हैं, जो पढ़े-लिखे हैं और जिन्हें इनके बारे में जानकारी है. मगर निरक्षर लोगों को इनकी जानकारी नहीं होती, इसलिए वे पीछे रह जाते हैं. वह चाहते हैं कि बेशक वह नहीं पढ़ पाए, लेकिन उनकी भावी पीढ़ी को शिक्षा मिले. वह बताते हैं कि उनके परिवारों के कई बच्चों ने स्कूल जाना शुरू किया है.

निहाल सिंह बताते हैं कि सपेरा जाति के अनेक लोगों ने यह काम छोड़ दिया है. वे अब मज़दूरी या कोई और काम करने लगे हैं. इस काम में उन्हें दिन में 100-150 रुपये कमाना पहाड़ से दूध की नदी निकालने से कम नहीं है, लेकिन अपने पुश्तैनी पेशे से लगाव होने की वजह से वह आज तक सांपों को लेकर घूमते हैं.




मनोहर पुरी
       नारी को सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना माना गया है। इसीलिए बेटी ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। बेटी है तो कल है। यदि इन सामाजिक- धार्मिक और अध्यात्मिक मान्यताओं की बात न भी करें तो भी यह स्वीकार किया गया है कि स्वार्थ-विषमता और लालच से भरे इस संसार में नारी सुख पुरूष के जीवन का सर्वोत्तम सुख है। चाणक्य के अनुसार संसार का हर प्राणी नारी को पाने के लिए लालायित रहता है। नारी को यदि भौतिक सौन्दर्य की आत्मा कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इतना होने पर भी आज नारी के अस्तित्व के सम्मुख प्रश्नचिन्ह क्यों। यह कितनी बड़ी त्रासदी है कि जिस नारी के सानिध्य में पुरुष अपने सारे दुःख-निराशा और क्लेश विस्मृत कर देता है उसी नारी को वह वर्षों से प्रताडित करता आ रहा है और अब उसे पूरी तरह से समाप्त करने पर उतारू है। इस संसार में आने से पहले ही नारी को समाप्त कर देने के नित नए नए तरीके खोजे जा रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इसमें वैज्ञानिक खोजों का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। डाक्टर जिन का उद्देश्‍य ही मानव मात्र की सेवा और उन्हें निरोग रहते हुए जीवनदान देना है वह इस में पूरी तरह से भागीदारी कर रहे हैं।
      मानव जीवन का एक मात्र ध्येय सुख है। किसी न किसी प्रकार अधिक से अधिक सुख की प्राप्ति ही मानव जीवन का लक्ष्य है। आश्‍चर्य की बात यह है कि सुख की ओर निरन्तर भागने वाला पुरुष अपने ही इस सुख को समाप्त करने पर तुला है। पुरुष को जन्म देने वाली स्त्री को कोख में ही समाप्त करने के कुत्सित एंव जघन्य अपराध किए जा रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या और नवजात शिशु कन्याओं की हत्या करने का पाश्‍वि‍क कार्य तीव्र गति से किया जा रहा है। देश में लगभग पचास लाख से अधिक कन्या भ्रूणों की हत्या प्रति वर्ष की जा रही है। प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कन्या भ्रूण हत्या को राष्ट्रीय शर्म का विषय बताते हुए कहा है कि यह हमारे सामाजिक मूल्यों पर कलंक है। इन हत्याओं को रोकने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय अभियान चलाने की आवश्‍यकता पर बल दिया है। कन्या भ्रूणों पर यह संकट केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि इस्लामिक देशों में भी दिखाई देने लगा है।
        भारत में आज यह स्थिति इतनी भयानक हो चुकी है कि इसने महामारी का रूप धारण करना शुरू कर दिया है। पुरूषों के अनुपात में स्त्रियों की संख्या में निरन्तर कमी आती जा रही है। पिछली शताब्दि के प्रारम्भ में भारत में प्रति एक हजार पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या 972 थी जो सदी के अन्त में घट कर मात्र 927 ही रह गई है। 2011 की जन गणना के अनुसार गांवों में एक हजार पुरुषों पर 920 महिलाएं हैं जबकि शहरों में उनकी संख्या 855 ही है। छः वर्ष तक की आयु के बच्चों में यह अनुपात 921 से घट कर 914 ही रह गया है। आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि कन्या भ्रूणों की हत्या दूर दराज के पिछड़े क्षेत्रों में होते रहने के कारण यह कमी आई है जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। बेटों की चाह में दिल्ली में बेटियां कम होती जा रही हैं। सन् 2011 की जनसंख्या के अनुसार गत तीन वर्ष में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों का अनुपात 138 कम हो कर केवल 866 रह गया है। हरियाणा और पंजाब जैसे समृद्ध और शि‍क्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों में ये हत्याएं बड़े पैमाने पर हुई हैं और आज भी हो रही हैं। आज हरियाणा में प्रति एक हजार पुरुषों पर 877 महिलाएं हैं तो पंजाब में भी स्थिति लगभग इतनी ही भयानक है। हरियाणा और पंजाब में ऐसे जिले भी हैं जहां यह अनुपात 800 के आस पास ही है। इसका मुख्य कारण यह भी माना जाता है कि यहां पर समाज लड़की को व्यय और लड़के को आमदनी की नजरों से देखने लगा है। इससे समाज में कई प्रकार की विकृतियां उत्पन्न होने का खतरा पैदा होता जा रहा है। इन राज्यों के लिए केरल, बिहार और उडीसा जैसे राज्यों से कन्याओं को विवाह करके लाया जा रहा है।
        यह जघन्य अपराध उस समाज में हो रहे हैं जहां नारी को न केवल सर्वश्रेष्ठ माना गया है बल्कि जहां पर मां को देवताओं से भी अधिक पूज्‍यनीय कहा गया है। तैतिरीय उपनिषद् में मां को ईश्‍वर की भांति पूजनीय बताया गया है। यदि ऐसा ही है तो इस देष में मां की हालत बहुत अच्छी होनी चाहिए। मां के साथ उन नारियों की भी जो भविष्य में मां बनेंगी। इतना ही नहीं हमारे धर्म ग्रंथों में कन्यादान से वंचित रहने वाले व्यक्ति को महापापी की संज्ञा दी गई है। आश्चर्य यह है कि आज इसी देश में कन्या भ्रूण हत्या की समस्या महामारी का रूप ले चुकी है। अधिकांश भारतीय यह जघन्य अपराध अथवा महापाप करने को तैयार दिखाई देते हैं। अल्ट्रासाउंड तकनीक के कारण विज्ञान ने उसके क्रूर पंजों को और भी अधिक धारदार बना दिया है। वही विज्ञान जो मानव के लिए वरदान माना जाता है कन्याओं के लिए अभिशाप बन कर सामने आया है। अब ऐसे उपकरण उपलब्ध हैं जिनसे यह आसानी से ज्ञात हो जाता है कि कोख में पलने वाले भ्रूण का लिंग क्या है। इस घृणित कार्य पर होने वाले व्यय को भी कम से कमतर किया जा रहा है। विडम्बना यह है कि जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर मचाये जाने वाले शोर में  गर्भ में होने वाली हत्याओं को सामाजिक मान्यता मिलने लगी है। महात्मा बुद्ध भगवान महावीर और गांधी के इस देश में हिंसा जीवन का पर्याय बनने लगी है।
         वैज्ञानिक जानकारी में होने वाली बढ़ोतरी से यह आशा की जा रही थी कि अब समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, कुरीतियों और रीति-रिवाजों से नारी को निजात मिलेगी परन्तु हुआ इससे उल्टा ही। हमने इन जानकारियों का प्रयोग प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने के लिए करना प्रारम्भ कर दिया। पहले बेटे को पैदा करने का बोझ औरत पर लादा जाता था और जाने अनजाने प्रकृति अपना कार्य करती रहती थी। जबसे लिंग निर्धारण से सम्बन्धित उपकरण आये हैं तब से तो हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया और नारी की कोख को एक कारखाने की तरह से प्रयोग में लाने लगे हैं। विज्ञान का इससे बड़ा दुरुपयोग तो हो ही नहीं सकता।
      हम एक ओर तो वातावरण में प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए दिन रात भरसक प्रयास कर रहे दूसरी और मानव समाज के संतुलन को बिगाड़ने पर तुले हैं। एक वैज्ञानिक खोज के अनुसार प्रकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए एह हजार कन्याओं के पीछे 1020 लड़कों को जन्म होना चाहिए क्योंकि लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक मात्रा में कालकलवित होते है। प्रसिद्ध विचारक रजनीश अक्सर यह कहा करते थे कि प्रकृति अपना संतुलन बनाये रखने के लिए एक सौ लडकियों के जन्म होने पर एक सौ दस लड़कों को जन्म देती है क्योंकि लड़कों की अपेक्षा लड़कियां दीर्घ आयु वाली होती हैं। प्रकृति के इस संतुलन को अस्त व्यस्त करने के साथ ही हम अपने भविष्य को भी असंतुलित करने में लगे हैं। वे दिन दूर नहीं हैं जब समाज में लड़कियों की इतनी अधिक कमी हो जायेगी कि हमारे पारिवारिक जीवन के सामने संकट की स्थिति पैदा हो जायेगी। बेटी ही नहीं होगी तो बहू कहां से आयेगी और मां बन कर आने वाली सन्तानों को कौन जन्म देगा। इस प्रकार हमने इस तथ्य को ही विस्मृत कर दिया है कि यदि पुरुष को जन्म देने वाली मां ही नहीं रहेगी तो उसका अस्तित्व भी कहां रहेगा। हम अपने पैरों पर नहीं अपनी अपनी गर्दन पर स्वयं कुल्हाड़ी मार कर सीधे सादे शब्दों में आत्म हत्या कर रहे हैं। यह माना जाना कि भारतीय समाज में दहेज जैसी कुरीतियों, उत्तराधिकार से जुड़े कानूनों  और श्राद्ध तथा मोक्ष जैसी परम्पराओं के कारण ऐसी हत्याओं को स्वीकार किया जा रहा है, ठीक नहीं है। आज लड़कियां जीवन के हर क्षेत्र में लड़कों को पीछे छोड़ती जा रही है। भौतिकता की दौड़ में धार्मिक मान्यताएं वैसे ही तिरोहित हो रहीं हैं अन्यथा मोक्ष इत्यादि की बात करने वाले लोग हत्या जैसे जघन्य अपराधों में भागीदार नहीं बनते।
      आर्थिक दृष्टि से भी नारी का भारतीय समाज में बहुत बड़ा योगदान रहा है और आज तो वे घर और बाहर दोनों का ही स्थानों का दायित्व निभा रही है। भारतीय परिवार का ढांचा तो पूरी  तरह से नारी के अस्तित्व पर ही टिका है। घर गृहस्थी चलाने में नारी का  जो आर्थिक योगदान है उसका तो आज तक मूल्यांकन हो ही नहीं पाया। यदि बिना किसी दुराग्रह के यह मूल्यांकन किया जाये कि परिवार की देखभाल करने में औरत का कितना श्रम लगता है तो ज्ञात होगा कि परिवार को चलाने में उसका आर्थिक योगदान उस पुरुष से कहीं अधिक है जो घर के लिए बाहर से कमाई करके लाता है। अवश्यकता इस बात की है कि स्त्री द्वारा किए जाने वाले घरेलू काम काज और परिवार की देखभाल में उसके द्वारा लगाये गये मानव श्रम के घंटों को उसके अर्थ मूल्य के अनुरूप नकद राशि में परिवर्तित करके देखा जाये। यदि ऐसा किया जाए तो वह कमाऊ पुरुष से इक्कीस ही बैठेगी। पुरुष ने स्त्री के इस योगदान को भी कभी नहीं स्वीकारा । नारीं की दुर्दशा और आज की इस भयानक स्थिति के लिए यह भी एक बड़ा कारण है।
        महिलाओं की संख्या में निरन्तर आने वाली गिरावट ने अब सरकार और समाज का ध्यान अपनी ओर खींचा है। नारी की घटती संख्या से पुरुष को अपना अस्तित्व खतरे में दिखाई देने लगा है फिर भी अभी तक वह स्वयं समाधान के लिए सामने नहीं आया क्योंकि प्रत्येक समस्या के समाधान के लिए दूसरों पर आश्रित रहना भारतीयों की पुरानी आदत है। सरकार ने इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये हैं। इस समय भी हमारे देश में पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 है जिसे सन् 2003 में लागू किया गया था। इस अधिनियम के अन्‍तर्गत गर्भाकाल के अनन्तर बच्चे के लिंग के विषय के संबंध में पता करना गैर कानूनी है। ऐसा करने वाले डाक्टर, अल्ट्रासांउड करने वाले और गर्भवती के रिश्‍तेदारों को पांच वर्ष तक के कारावास की सजा और 50 हजार रुपये तक का आर्थिक दंड दिया जा सकता है। परन्तु अभी तक बहुत कम मात्रा में ही व्यक्ति इसके अधीन दंडित हुए हैं। वैसे बेटियों को बचाने की पहल करते हुए दिल्ली और हरियाणा की सरकारों ने पहले से ही लाड़ली योजना बनाई हुई है। केन्द्र सरकार ने इसी आशय से धन लक्ष्मी योजना, राजस्थान ने राज लक्ष्मी योजना और पंजाब ने रक्षक योजना लागू की हुई हैं। इतना ही नहीं हरियाणा में गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासांउड करवाने से पहले परिचय पत्र दिखाना अनिवार्य कर दिया गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने भी व्यापक पैमाने पर बेटी बचाओ अभियान चलाया हुआ है। राजस्थान में भी इस विषय से जुड़े मामलों के लिए फास्ट टैªक कोर्ट बनाने के लिए पहल की जा रही है। स्वयं हरियाणा के मुख्य मंत्री ने भी इस प्रस्ताव की सराहना करते हुए बीबीपुर गांव के विकास के लिए करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया है।  
      हमारे न्यायालय भी इस ओर सक्रिय हुए हैं परन्तु इस बात से किसे इंकार हो सकता है कि ऐसी सामाजिक समस्याएं सरकारों के प्रयासों से समाप्त नहीं की जा सकतीं। इसके लिए पूरे समाज को एकजुट हो कर सामने आना होगा। दहेज जैसी कुरीतियों के विरोध में बने कानून जैसे निष्प्रभावी हैं वैसे ही भ्रूण हत्याओं और लिंग निर्धारण सम्बंधी नियमों की दुर्दशा न हो इसके लिए समाज को जन जागरण करना पड़ेगा। समाज को अपनी कुरीतियों, रीतियों, नीतियों और परम्पराओं को स्वयं ही परिमार्जित करना होगा। सरकार उसमें सहायक हो सकती है। धर्म गुरू पथ प्रदर्शक बन सकते हैं। इसके लिए व्यापक शिक्षा के लिए जोरदार प्रयास किए जा सकते हैं।
         आज नारी के जन्म लेने के अधिकार पर होने वाले अतिक्रमण को इसी परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। लिंग भेद के कारण कन्या शिशु भ्रूण हत्या के विरूद्ध एक व्यापक सामाजिक युद्ध का शंखनाद करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है। एक ऐसी प्रबल सामाजिक चेतना जागृत करके जन जन तक यह सन्देश पहुंचाया जाना चाहिए कि कन्या भ्रूण हत्या अनैतिक और अधार्मिक ही नहीं समाज, राष्ट्र और मानवता के प्रति महापातकी अपराध है जो किसी भी दशा में क्षम्य नहीं है। इस जन्म में ही नहीं भावी जन्मों में भी। इसके दुष्परिणाम न केवल हमें भुगतने होगें बल्कि भावी पीढि़यां भी इससे बुरी तरह से प्रभावित होगीं।




-डॉ. असगर अली इंजीनियर
हाल में म्यानामार के अराकान राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्घों के बीच हुए दंगों की खबर ने पूरे विश्व को चौंका दिया। इन दंगो में 100 से अधिक मुसलमान मारे गये और करोड़ो की संपत्ति नष्ट हो गई। अमन (एशियन मुस्लिम एक्शन नेटवर्क), जिसका फैलाव पूरे एशिया में है, ने इस क्षेत्र में शांति स्थापना की पहल करने का निर्णय लिया। म्यानामार (बर्मा) की छवि एक शांतिपूर्ण देश की है और वहां इस बड़े पैमाने पर दंगे होने की अपेक्षा किसी को नहीं थी।
यह तय किया गया कि म्यानामार के तीनों प्रमुख धार्मिक समुदायों अर्थात बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई, के बीच अंतर्धार्मिक संवाद का आयोजन किया जावे। म्यानामार में मुसलमान, कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत हैं। यांगोन (जिसे पहले रंगून कहा जाता था) में मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत के आसपास है। यांगोन एक समय म्यानामार की राजधानी था परन्तु अब वह देश का सबसे बड़ा व्यावसायिक केन्द्र है। राजधानी अन्यंत्र स्थापित कर दी गई है।
अंतर्धार्मिक संवाद का आयोजन यांगोन में किया गया था। यांगोन मंझोले आकार का एक सुंदर शहर है। यहां खूब साफसफाई है और हरियाली भी बहुत है। यांगोन की आबादी लगभग 60 लाख है अर्थात मुंबई से करीब आधी। यहां मुंबई की तुलना में भीड़भाड़ बहुत कम है और जिंदगी की धीमी रफ्तार और भरपूर हरियाली इसे मुंबई से अलग करती है। मुंबई के विपरीत, यांगोन में गगनचुंबी इमारतें नहीं हैं। सबसे ऊंची इमारतों में दो होटलें शामिल हैं जो 25 मंजिला हैं। अन्य इमारतों में पांच से लेकर पंद्रह मंजिलें तक हैं। एक समय मुसलमान, यांगोन के काफी प्रभावशाली समुदायों में शामिल थे। उनमें से अधिकांश व्यापारी थे। अकेले सूरत शहर से इतनी बड़ी संख्या में मुसलमान वहां गये थे कि यांगोन में आज भी एक सुंदर सूरती मस्जिद है।
म्यानामार का मुस्लिम समुदाय अत्यंत विविधतापूर्ण है। बर्मी मूल के मुसलमानों की संख्या बहुत कम है। अधिकांश मुसलमान भारत के विभिन्न हिस्सों से आये प्रवासी हैं जो उस वक्त म्यानामार में बसे थे जब वह भारत का हिस्सा था। वहां बड़ी संख्या में तमिल, गुजराती, बंगाली और बोहरा मुसलमान हैं। उर्दू बोलने वाले मुसलमानों की संख्या बहुत कम है। अब तो सभी मुसलमान बर्मी भाषा बोलते हैं। अपने मुस्लिम नाम के अतिरिक्त इन सभी के बर्मी नाम भी हैं और सार्वजनिक जीवन में वे अपने बर्मी नाम व मुस्लिम समुदाय में अपने इस्लामिक नाम से जाने जाते हैं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति का बर्मी नाम है चिटको ओ.ओ. और उसी व्यक्ति का इस्लामिक नाम है मो. नसीरउद्दीन। यही परंपरा वहां रह रहे थाईलैंड के मुसलमान भी अपनाते हैं।
यांगोन में दो स्थान सबसे प्रसिद्ध हैं। पहला, मुगल बादशाह बहादुरशाह ज़फर की कब्र और दूसरा, बर्मा का सबसे बड़ा बौद्ध पैगोडा। मैने दोनों स्थल देखे। बहादुरशाह जफर की कब्र अब भारत सरकार द्वारा बनवाई गई एक मस्जिद के अंदर है। उनकी इस असली कब्र का पता तब चला जब 199293 में मस्जिद के निर्माण के लिए खुदाई की जा रही थी। अंग्रेजों ने उन्हे गुप्त रूप से दफनाया था और असली स्थान से कुछ दूरी पर एक बड़ी सी प्रतीकात्मक कब्र बना दी थी। दोनो कब्रें आज भी हैं। मैं बहादुरशाह ज़फर की कब्र पर गया और भारत के इस महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी को श्रद्घांजली दी। इस स्थल की सरकार द्वारा बहुत अच्छी तरह से देखभाल की जा रही है।
गोल्डन बौद्ध पैगोडा, बौद्धों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है और यांगोन का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण भी। असल में यह बहुत सारे बड़ेछोटे पैगोडा का काम्पलेक्स है और यहां हमेशा भीड़ बनी रहती है। अधिकांश इमारतों पर सोने की पर्त च़ी है जिससे ये बहुत सुंदर और आकर्षक लगती हैं। काम्पलेक्स के चारों ओर घनी हरियाली है। यहां बैठ कर अत्यंत शांति का अनुभव होता है। यह दुःखद है कि बुद्ध के इस देश में मानव रक्त अकारण बहाया गया। अब भी कोई नही जानता कि दंगो में कुल कितने लोग मारे गये। भगवान बुद्ध दया और अहिंसा की प्रतिमूर्ति थे परन्तु उनके ही अनुयायियों ने निर्दोषों का खून बहाने में तनिक भी संकोच नही किया। किसी भी धर्म के आदर्शों और उसके अनुयायियों के क्रियाकलापों में हमेशा बड़ा अंतर रहता है।
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं, बर्मा एक शांतिपूर्ण देश है और यहां के तीनों प्रमुख धार्मिक समुदायों के सदस्य आपसी प्रेम और सद्भाव से रहते आये हैं। बर्मा के पश्चिमी प्रांत अराकान में सेना के सत्ता संभालने के बाद समस्याएं शुरू हुईं। यांगोन की अपनी यात्रा के पहले दिन 22 जून को मैं एक ईसाई शिक्षण संस्था में गया। मैंने वहां अंतर्धार्मिक संवाद और उसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। संवाद का लक्ष्य एकदूसरे को समझना है, एकदूसरे का मतांतर करना नहीं। धमांर्न्तरण की तो बात ही नहीं की जानी चाहिए। इससे संवाद की मूल आत्मा ही खतरे में पड़ जाती है। मैंने अंतर्धार्मिक व अंतर्सांस्कृतिक संवाद की अवधारणा पर विस्तृत प्रकाश डाला और इस बात पर जोर दिया कि विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों के बीच सतत संवाद चलते रहने से समस्याएं या तो उत्पन्न ही नहीं होंगी और यदि होंगी भी तो जल्दी ही सुलझ जाएंगी।
हम लोगों ने इस मौके पर रोहिंग्या मुसलमानों के हालात पर चर्चा नहीं की वरन मुख्यतः अंतर्धार्मिक संवाद के सैद्घांतिक पक्ष पर विचार किया। इससे भी कई मुद्दों को स्पष्ट करने में मदद मिली। दंगाप्रभावित प्रांत में मार्शल लॉ लागू है और कफ्र्यू लगा हुआ है। वहां किसी को भी जाने की इजाजत नही है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के
प्रतिनिधि को भी प्रभावित इलाके से बेंरग वापस कर दिया गया था। इस स्थिति में मेरे पास इसके सिवा कोई चारा न था कि मैं इस मुद्दे पर यांगोन के निवासियों से ही चर्चा करुं। यांगोन में काफी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान निवास करते हैं।
मुझे यह बताया गया कि यह आरोप सही नहीं है कि कुछ मुसलमानों ने एक बौद्ध लड़की के साथ बलात्कार किया था। सच तो यह है कि एक मुस्लिम युवक और बौद्ध नवयुवती आपस में प्रेम करते थे। उन्होंने विवाह कर लिया और स्थानीय निवासियों के गुस्से से बचने के लिए अपने घर छोड़ कर भाग गये। दो मुसलमान लड़कों ने इस युगल के विवाह और उसके बाद उनके वहां से भागने में मदद की। ठीक ऐसा ही कुछ जबलपुर में सन 1961 में हुआ था। एक मुसलमान लड़के और हिन्दू लड़की ने विवाह करने का निश्चय किया परन्तु अफवाह यह फैला दी गई कि लड़के ने लड़की के साथ जबरदस्ती की है। इसके बाद भड़के दंगों में 100 से अधिक लोग मारे गये और करोड़ो की संपत्ति स्वाहा हो गई।
यही कुछ राखियान प्रांत में भी हुआ परन्तु यह दंगो की असली वजह नहीं थी। दंगो की असली वजह थी रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता का मसला। मैं इस मुद्दे पर आगे प्रकाश डालूंगा। बहरहाल, शादी करने वाला लड़का और उसकी मदद करने वाले दोनों लड़के पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गये। जिस लड़के ने शादी की थी, वह पुलिस हिरासत में मर गया और कई रोहिंग्या मुसलमानों का यह आरोप है कि उसे शारीरिक यंत्रणा देकर मारा गया।
इससे भी अधिक दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जिन दो लड़कों ने विवाह करने में अपने साथी की मदद की थी उन्हे मृत्युदंड दिया गया है और जल्दी ही उन्हे फांसी दे दी जायेगी। यह केवल सैनिक तानाशाही में ही हो सकता है, किसी भी ऐसे देश मे नहीं, जहां कानून का राज है। किसी व्यक्ति के मामले की सुनवाई चंद दिनों में निपटा कर उसे मृत्युदंड दे देना कैसे न्यायपूर्ण हो सकता है। किसी भी व्यक्ति को मृत्युदंड देने से पहले की न्यायिक कार्यवाही महीनों और कबजब सालों तक चलती है। इस घटना से यह साफ है कि सैनिक तानाशाहों को मानवाधिकारों से कोई मतलब नहीं रहता।
बर्मा के मुसलमानो के लिए अभी सबसे जरूरी है इन दोनों लड़कों की जान बचाना। समुदाय का नेतृत्व इस सिलसिले में गहन विचारविमर्श कर रहा है। मैंने उन्हें सलाह दी कि वे अच्छे वकील की सेवाएं लें और ऊंची अदालतों में अपील करें। मैने उनसे यह भी कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं से भी इस मुद्दे पर अभियान चलाने का अनुरोध किया जा सकता है।
दूसरा महत्वपूर्ण मसला है दंगा पीड़ितों को राहत पहुंचाने का। सरकार किसी को भी दंगा पीड़ित तक सीधे राहत पहुंचाने की इजाजत नही दे रही है। सरकार की यह शर्त है कि राहत सामग्री एक सरकारी संस्था को सौंप दी जाए जो कि उसे प्रभावित लोगों तक पहुंचाएगी। मुसलमानों का कहना है कि उन्हें यह भरोसा नही है कि सरकारी एजेंसी को सौंपी गई राहत सामग्री असली पीड़ितों को मिलेगी। कुल मिलाकर, रोहिंग्या मुसलमान परेशानियां भोग रहे हैं और उन्हें राहत की तुरंत आवश्यकता है। परन्तु स्वयंसेवी संस्थाओं को उन तक राहत पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जा रही है।
आराकान (राखियान) प्रांत में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमान बाहर से आकर यहां बसे हैं ठीक उसी तरह जैसे बर्मा के अन्य इलाकों, विशेषकर रंगून को प्रवासी मुसलमानों ने अपना घर बना लिया है। एक समय अराकान में मुसलमानों का राज था और इसलिए भी वहां बड़ी संख्या में मुसलमान आकर बस गये। परन्तु म्यानामार की वर्तमान सैनिक सरकार का कहना है कि उनमे से अधिकांश पिछले कुछ वर्षों में ही वहां आकर बसे हैं। सरकार उन्हें नागरिक नहीं मानती। दूसरी ओर, रोहिंग्या कहते हैं कि वे पिछले सौ सालों से भी अधिक समय से अराकान में रह रहे हैं।
यह कुछकुछ हमारे देश की असम और बांग्लादेश की समस्या की तरह है। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेताओं का आरोप था कि बांग्लादेशी मुसलमान बड़ी संख्या मे असम में बस रहे हैं और जल्दी ही वे वहां के बहुसंख्यक समुदाय बन जाएंगे। इसी प्रचार के चलते नेल्ली दंगे हुए जिनमें 4,000 बंगाली मुसलमान मारे गये। बंगाली मुसलमानों का भी यह कहना है कि वे घुसपैठिए नहीं हैं वरन पिछली सदी के तीसरे दशक के आसपास असम में आकर बसे थे और यह भी कि उनकी संतानें कई पीयिों से असमिया स्कूलों में पॄ रहीं हैं।
म्यानामार की सैनिक सरकार, रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिक का दर्जा देने को तैयार नही है। इन लोगों का कहना है कि सन 1982 तक कोई समस्या नहीं थी और वे हर चुनाव में अपना मत देते थे। केंद्रीय सरकार में अराकान प्रांत से पांच मंत्री हुआ करते थे। इनमें से कई मुसलमान सऊदी अरब व अन्य देशों में काम कर रहे हैं परन्तु उनके पास बर्मा का पासपोर्ट नहीं है।
वे अवैध रूप से सीमा पार कर पड़ोसी बांग्लादेश मे घुस जाते हैं और वहां से अवैध पासपोर्ट बनवाकर खाड़ी के देशों मे काम करने चले जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सऊदी अरब में वर्क परमिट पर कम से कम पांच लाख रोहिंग्या मुसलमान काम कर रहे हैं। यांगोन मे रहने वाले कई मुसलमानों के पास भी नागरिकता संबंधी दस्तावेज नहीं हैं। उन्हें पहचानपत्र तो दिये गये हैं परन्तु पासपोर्ट नही दिया जाता है। यह भी बर्मा में ब़ते विवाद का एक कारण है।
हिंसा की जड़ में ये सब कारक थे। एक मुस्लिम लड़के और बौद्ध लड़की के भाग जाने की घटना तो मात्र वह चिंगारी थी जिसने पहले से सुलग रही आग को भड़का दिया। स्थानीय बौद्ध, रोहिंग्या मुसलमानों को जरा भी पसंद नही करते। उन्हें वे उसी रूप में देखते हैं जिसमें एएएसयू तथाकथित बांग्लादेशी मुसलमानों को देखती है। परन्तु भारत और म्यानामार में एक बहुत महत्वपूर्ण अंतर यह है कि भारत एक प्रजातंत्र है और म्यानामार, सैनिक तानाशाही। भारत में समस्याओं का हल प्रजातांत्रिक तरीकों से निकाला जा सकता है। इंदिराजी ने ऐसी कोशिश की थी परन्तु उससे न तो बंगाली मुसलमान संतुष्ट हुए और न ही असम के निवासी। म्यानामार में तो प्रजातंत्र ही नही है। और इसलिए आंग सांग सू की ने कहा है कि इस समस्या को तब तक नही सुलझाया जा सकता जब तक कि बर्मा में प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना नही हो जाती और नागरिकता संबंधी अधिकारों का निर्धारण संवैधानिक प्रक्रिया से नहीं होने लगता। अभी तो बर्मा में संविधान ही नहीं है इसलिए ऐसा लगता है कि इस समस्या का जल्द ही कोई हल निकलने वाला नही है।




स्टार न्यूज़ एजेंसी  
प्रणब मुखर्जी राष्‍ट्रपति चुनाव जीत गए हैं. उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार पीए संगमा को करारी शिकस्त दी है. प्रणब मुखर्जी अब 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी कामयाबी है.

प्रणब मुखर्जी को कुल 69 प्रतिशत और पीए संगमा को 31 प्रतिशत वोट मिले. संसद भवन के हॉल नंबर 63 में वोटो की गिनती हुई. प्रणब मुखर्जी को 527 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी पीए संगमा के पक्ष में 206 सांसदों ने वोट डाले. 15 सांसदों के वोट अवैध घोषित किए गए हैं. सांसदों के वोटों की गिनती के बाद विधायकों के वोट गिने गए. प्रणब को मिले वोटों का मूल्‍य 7 लाख 13 हज़ार 763 है, जबकि संगमा को मिले वोटों का मूल्‍य 3 लाख 15 हज़ार 987 है. प्रणब मुखर्जी ने 3 लाख 97 हज़ार 776 मतों से चुनाव जीत लिया.  तृणमूल कांग्रेस का समर्थन मिलने के बाद मुखर्जी की जीत और पुख्ता हो गई थी. प्रणब मुखर्जी को यूपीए के घटक दलों के साथ ही समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, वामपंथी दलों के साथ विपक्षी गठबंधन एनडीए के जद-यू और शिवसेना का भी समर्थन मिला.

राष्ट्रपति चुने जाने पर पहली प्रतिक्रिया देते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इस चुनाव में आम चुनाव जैसा माहौल बन गया था. मैं उन तमाम लोगों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने पार्टी लाइन से आगे बढ़कर मेरा समर्थन किया. अपनी जीत की घोषणा के बाद मीडिया से बात करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि वोटों की गिनती पूरी हो चुकी है. मुझे पता चला है कि मुझे सात लाख से अधिक वोट मिले हैं. मैं इस महान देश के लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं. पिछले एक महीने में मुझे देश के तमाम राज्यों की राजधानियों में जाने का मौक़ा मिला. मेरी बातचीत तो सिर्फ़ इलेक्टोरल कॉलेज के लोगों तक ही सीमित रही, लेकिन मुझे प्यार सभी का मिला. पिछले पांच दशकों के सार्वजनिक जीवन के दौरान मुझे इस दश के लोगों से, यहां की राजनीति से और संसद से बहुत कुछ मिला है. मैंने जितना इस देश को दिया नहीं उससे ज़्यादा मुझे मिला है. अब मुझे देश के राष्ट्रपति के रूप में संविधान की सेवा करने का मौक़ा मिला है. मैं अपने देश के लोगों के हित के लिए काम करने की पूरी कोशिश करूंगा. मैंने श्री पीए संगमा का बधाई संदेश टीवी पर सुना है. मैं उनको भी धन्यवाद करता हूं. राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद से ही प्रणब मुखर्जी के लिए बधाई संदेशों का तांता लगा हुआ है.

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने बेटे और कंग्रेस महासचिव राहुल गांधी के साथ उन्हें मुबारकबाद देने पहुंचीं.  इसके अलावा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और  लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार भी उन्हें बधाई देने पहुंचीं. पश्चिम बंगाल के बीरभूम में उनके पैतृक गांव से लेकर दिल्ली स्थित उनके निवास के बाहर जश्न का माहौल है.


फ़िरदौस ख़ान
मरहबा सद मरहबा आमदे-रमज़ान है
खिल उठे मुरझाए दिल, ताज़ा हुआ ईमान है
हम गुनाहगारों पे ये कितना बड़ा अहसान है
या ख़ुदा तूने अता फिर कर दिया रमज़ान है...
माहे-रमज़ान इबादत, नेकियों और रौनक़ का महीना है। यह हिजरी कैलेंडर का नौवां महीना होता है। इस्लाम के मुताबिक़ अल्लाह ने अपने बंदों पर पांच चीज़ें फ़र्ज क़ी हैं, जिनमें कलमा, नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात शामिल है। रोज़े का फ़र्ज़ अदा करने का मौक़ा रमज़ान में आता है। कहा जाता है कि रमज़ान में हर नेकी का सवाब 70 नेकियों के बराबर होता है और इस महीने में इबादत करने पर 70 गुना सवाब हासिल होता है। इसी मुबारक माह में अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुरआन नाज़िल किया था। यह भी कहा जाता है कि इस महीने में अल्लाह शैतान को क़ैद कर देता है।

इबादत
रमज़ान से पहले मस्जिदों में रंग-रोग़न का काम पूरा कर लिया जाता है। मस्जिदों में शामियाने लग जाते हैं। रमज़ान का चांद देखने के साथ ही इशा की नमाज़ के बाद तरावीह पढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है। रमज़ान के महीने में जमात के साथ क़ियामुल्लैल (रात को नमाज़ पढ़ना) करने को 'तरावीह' कहते हैं। इसका वक्त रात में इशा की नमाज़ के बाद फ़ज्र की नमाज़ से पहले तक है। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमज़ान में क़ियामुल्लैल में बेहद दिलचस्पी ली। आपने फ़रमाया कि ''जिसने ईमान के साथ और अज्र व सवाब (पुण्य) हासिल करने की नीयत से रमज़ान में क़ियामुल्लैल किया उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे।''उन्होंने फ़रमाया कि ''यह ऐसा महीना है कि इसका पहला हिस्सा अल्लाह की रहमत है, दरमियानी हिस्सा मग़फ़िरत है और आख़िरी हिस्सा जहन्नुम की आग से छुटकारा है।'' रमज़ान के तीसरे हिस्से को अशरा भी कहा जाता है। आपने फ़रमाया कि ''रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ (विषम) रातों में लैलतुल क़द्र की तलाश करो।'' लैलतुल क़द्र को शबे-क़द्र भी कहा जाता है। शबे-क़द्र के बारे में कुरआन में कहा गया है कि यह हज़ार रातों से बेहतर है, यानि इस रात में इबादत करने का सवाब एक हज़ार रातों की इबादत के बराबर है। मुसलमान रमज़ान की 21, 23, 25, 27 और 29 तारीख़ को पूरी रात इबादत करते हैं।

फ़रहाना कहती हैं- इस महीने में क़ुरआन नाज़िल हुआ, इसलिए रमज़ान बहुत ख़ास है। हर मुसलमान के लिए यह महीना मुक़द्दस और आला है। हमें इस महीने की अहमियत को समझते हुए ज्यादा से ज्यादा वक्त ऌबादत में गुज़ारना चाहिए। वैसे भी रमज़ान में हर नेकी और इबादत का सवाब साल के दूसरे महीनों से ज्यादा ही मिलता है। वे कहती हैं कि शबे-क़द्र को उनके परिवार के सभी लोग रातभर जागते हैं। मर्द इबादत के लिए मस्जिदों में चले जाते हैं और औरतें घर पर इबादत करती हैं।

वहीं, राशिद कहते हैं कि काम की वजह से पांचों वक्त क़ी नमाज़ नहीं हो पाती, लेकिन रमज़ान में उनकी कोशिश रहती है कि नमाज़ और रोज़ा क़ायम हो सके। दोस्तों के साथ मस्जिद में जाकर तरावीह पढ़ने की बात ही कुछ और है। इस महीने की रौनक़ों को देखकर कायनात की ख़ूबसूरती का अहसास होता है। रमज़ान हमें नेकियां और इबादत करने का सबक़ देता है और हमें अल्लाह के क़रीब करता है।

ज़ायक़ा
माहे-रमज़ान में हर तरफ़ ज़ायक़ेदार व्यंजनों की भरमार रहती है। रमज़ान का ज़िक्र लज़ीज़ व्यंजनों के बग़ैर मुकम्मल नहीं होता। रमज़ान का ख़ास व्यंजन हैं फैनी, सेवइयां और खजला। सुबह सहरी के वक्त फ़ैनी को दूध में भिगोकर खाया जाता है। इसी तरह सेवइयों को दूध और मावे के साथ पकाया जाता है। फिर इसमें चीनी और सूखे मेवे मिलाकर परोसा जाता है। इसके अलावा मीठी डबल रोटी भी सहरी का एक ख़ास व्यंजन है। ख़ास तरह की यह मीठी डबल रोटी अमूमन रमज़ान में ही ज्यादा देखने को मिलती है।

इफ्तार के पकवानों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है। अमूमन रोज़ा खजूर के साथ खोला जाता है। दिनभर के रोज़े के बाद शिकंजी और तरह-तरह के शर्बत गले को तर करते हैं। फलों का चाट इफ्तार के का एक अहम हिस्सा है। ताज़े फलों का चाट रोज़े के बाद ताज़गी का अहसास तो कराती ही है, साथ ही यह पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है। इसके अलावा ज़ायक़ेदार पकौड़ियां और तले मसालेदार चने भी रोज़ेदारों की पसंद में शामिल हैं। खाने में बिरयानी, नहारी, क़ौरमा, क़ीमा, नरगिसी कोफ्ते, सींक कबाब और गोश्त से बने दूसरे लज़ीज़ व्यंजन शामिल रहते हैं। इन्हें रोटी या नान के साथ खाया जाता है। रुमाली रोटी भी इनके ज़ायके को और बढ़ा देती है। इसके अलावा बाकरखानी भी रमज़ान में ख़ूब खाई जाती है। यह एक बड़े बिस्कुट जैसी होती है और इसे क़ोरमे के साथ खाया जाता है। बिरयानी में हैदराबादी बिरयानी और मुरादाबादी बिरयानी का जवाब नहीं। मीठे में ज़र्दा, शाही टुकड़े, फिरनी और हलवा-परांठा दस्तरख़ान पर की शोभा बढ़ाते हैं।

इशरत जहां कहती हैं कि रमज़ान में यूं तो दिन में ज़्यादा काम नहीं होता, लेकिन सहरी के वक़्त और शाम को काम बढ़ जाता है। इफ़्तार के लिए खाना तो घर में ही तैयार होता है, लेकिन रोटियों की जगह हम बाहर से नान या रुमाली रोटियां मंगाना ज़्यादा पसंद करते हैं।

रमज़ान में रोटी बनाने वालों का काम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। दिल्ली में जामा मस्जिद के पास रोटी बनाने वालों की कई दुकानें हैं। यहां तरह-तरह की रोटियां बनाई जाती हैं, जैसे रुमाली रोटी, नान, बेसनी रोटी आदि। अमूमन इस इलाके क़े होटल वाले भी इन्हीं से रोटियां मंगाते हैं।

ख़रीददारी
रमज़ान में बाज़ार की रौनक़ को चार चांद लग जाते हैं। रमज़ान में दिल्ली के मीना बाज़ार की रौनक़ के तो क्या कहने। दुकानों पर चमचमाते ज़री वाले व अन्य वैरायटी के कपड़े, नक्क़ाशी वाले पारंपरिक बर्तन और इत्र की महक के बीच ख़रीददारी करती औरतें, साथ में चहकते बच्चे। रमज़ान में तरह-तरह का नया सामान बाज़ार में आने लगता है। लोग रमज़ान में ही ईद की ख़रीददारी शुरू कर देते हैं। आधी रात तक बाज़ार सजते हैं। इस दौरान सबसे ज्यादा कपड़ों की ख़रीददारी होती है। दर्ज़ियों का काम बढ़ जाता है। इसलिए लोग ख़ासकर महिलाएं ईद से पहले ही कपड़े सिलवा लेना चाहती हैं। अलविदा जुमे को भी नए कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ने का दस्तूर है। हर बार नए डिज़ाइनों के कपड़े बाज़ार में आते हैं। नेट, शिफ़ौन, जॉरजेट पर कुन्दन वर्क, सिक्वेंस वर्क, रेशम वर्क और मोतियों का काम महिलाओं को ख़ासा आकर्षित करता है। दिल्ली व अन्य शहरों के बाज़ारों में कोलकाता, सूरत और मुंबई के कपड़ों की धूम रहती है। इसके अलावा सदाबहार चिकन का काम भी ख़ूब पसंद किया जाता है। पुरानी दिल्ली के कपड़ा व्यापारी शाकिर अली कहते हैं कि बाज़ार में जिस चीज़ का मांग बढ़ने लगती है हम उसे ही मंगवाना शुरू कर देते हैं। ईद के महीने में शादी-ब्याह भी ज्यादा होते हैं। इसलिए माहे-रमज़ान में शादी की शॉपिंग भी जमकर होती है। शादियों में आज भी पारंपरिक पहनावे ग़रारे को ख़ासा पसंद किया जाता है।

चूड़ियों और मेहंदी के बिना ईद की ख़रीददारी अधूरी है। रंग-बिरंगी चूड़ियां सदियों से औरतों को लुभाती रही हैं। चूड़ियों के बग़ैर सिंगार पूरा नहीं होता। बाज़ार में तरह-तरह की चूड़ियों की बहार है, जिनमें कांच की चूड़ियां, लाख की चूड़ियां, सोने-चांदी की चूड़िया, और मेटल की चूड़ियां शामिल हैं। सोने की चूड़ियां तो अमीर वर्ग तक ही सीमित हैं। ख़ास बात यह भी है कि आज भी महिलाओं को पारंपरिक कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां ही ज्यादा आकर्षित करती हैं। बाज़ार में कांच की नगों वाली चूड़ियों की भी ख़ासी मांग है। कॉलेज जाने वाली लड़कियां और कामकाजी महिलाएं मेटल और प्लास्टिक की चूड़ियां ज्यादा पसंद करती हैं, क्योंकि यह कम आवाज़ करती हैं और टूटती भी नहीं हैं, जबकि कांच की नाज़ुक चूड़ियां ज्यादा दिनों तक हाथ में नहीं टिक पातीं।

इसके अलावा मस्जिदों के पास लगने वाली हाटें भी रमज़ान की रौनक़ को और बढ़ा देती हैं। इत्र, लोबान और अगरबत्तियों से महक माहौल को सुगंधित कर देती है। इत्र जन्नतुल-फ़िरदौस, बेला, गुलाब, चमेली और हिना का ख़ूब पसंद किया जाता है। रमज़ान में मिस्वाक से दांत साफ़ करना सुन्नत माना जाता है। इसलिए इसकी मांग भी बढ़ जाती है। रमज़ान में टोपियों की बिक्री भी ख़ूब होती है। पहले लोग लखनवी दुपल्ली टोपी ज्यादा पसंद करते थे, लेकिन अब टोपियों की नई वैरायटी पेश की जा रही हैं। अब तो लोग विभिन्न राज्यों की संस्कृतियों से सराबोर पारंपरिक टोपी भी पसंद कर रहे हैं। इसके अलावा अरबी रुमाल भी ख़ूब बिक रहे हैं। रमज़ान के मौक़े पर इस्लामी साहित्य, तक़रीरों, नअत, हम्द,क़व्वालियों की कैसेट सीटी और डीवीडी की मांग बढ़ जाती है।

यूं तो दुनियाभर में ख़ासकर इस्लामी देशों में रमज़ान बहुत श्रध्दा के साथ मनाया जाता है, लेकिन भारत की बात ही कुछ और है। विभिन्न संस्कृतियों के देश भारत में मुसलमानों के अलावा ग़ैर मुस्लिम लोग भी रोज़े रखते हैं। कंवर सिंह का कहना है कि वे पिछले कई वर्षों से रमज़ान में रोज़े रखते आ रहे हैं। रमज़ान के दौरान वे सुबह सूरज निकलने के बाद से सूरज छुपने तक कुछ नहीं खाते। उन्हें विश्वास है कि अल्लाह उनके रोज़ों को ज़रूर क़ुबूल करेगा। भारत देश की यही महानता है कि यहां सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं। यही जज्बात गंगा-जमुनी तहज़ीब को बरक़रार रखते हैं।




स्टार न्यूज़ एजेंसी
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी जल्द ही सरकार और पार्टी में बड़े किरदार में नज़र आएंगे. उन्हें पार्टी में अहम ज़िम्मेदारी दिए जाने के साथ केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की नसीहत के अगले दिन गुरुवार को राहुल ने कहा कि वह पार्टी या सरकार में बड़ी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसका वक़्त तय करना पार्टी नेतृत्व पर निर्भर करता है. पिछले काफ़ी वक़्त से राहुल गांधी को सरकार और पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपने की मांग उठती रही है.

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह राहुल को कैबिनेट में शामिल होने का न्योता दे चुके हैं. पार्टी में भी यह मांग लगातार जोर पकड़ती रही है कि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी जाए. माना जा रहा है कि राहुल को बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए जल्द केंद्रीय मंत्रिमंडल और पार्टी संगठन में फेरबदल हो सकता है. ऐसा हुआ तो उन्हें संगठन में दूसरे स्थान का ओहदा दिया जाना तय है. हालांकि राहुल ने साफ नहीं किया है कि वह पार्टी संगठन में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं या सरकार में. पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि वह सरकार में भी शामिल होंगे. उन्हें कोर ग्रुप का सदस्य भी बनाया जा सकता है. कांग्रेस कार्यसमिति के बाद कोर ग्रुप पार्टी का सबसे अहम समूह है. प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के बाद कोर ग्रुप में भी एक जगह ख़ाली हो गई है. सरकार में उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रलय या पंचायती राज मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है. बहरहाल, राहुल की बड़ी भूमिका को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में बेहद उत्साह देखने को मिल रहा है.

गौरतलब है कि बुधवार को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि यह फ़ैसला राहुल गांधी को ख़ुद लेना है कि वह कांग्रेस और सरकार में क्या कोई बड़ी ज़िम्मेदारी निभाना चाहते हैं. सोनिया का यह बयान ऐसे वक़्त में आया है, जब कांग्रेस में ही इस तरह की मांग हो रही है कि राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में बड़ी ज़िम्मेदारियां निभानी चाहिए.



जकार्ता (इंडोनेशिया) रमजान के पवित्र इस्लामिक महीने से पहले इंडोनेशिया के संचार और सूचना मंत्रालय ने 10 लाख से अधिक अश्लील वेबसाइट बंद कर दी. मंत्री टिफाटुल सेम्बिरिंग ने बुधवार को कहा कि उनका कार्यालय आने वाले महीने में और वेबसाइटों को निशाना बनाएगा. उन्होंने कहा कि जिन वेबसाइटों को बंद किया गया, वे सभी विदेश से संचालित होते थे.
मंत्री ने कहा कि हम रमजान के समय और ऐसे वेबसाइटों को बंद करेगे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं समझा जाना चाहिए कि साल के बाकी महीने में ये चलेंगी.
मंत्री ने कहा कि लगभग दो अरब वेबसाइट अश्लील सामग्री पड़ोसते है, और इन्हे रोकने के लिए आम लोगों की सहभागिता जरूरी है. ऑनलाइन अश्लील साहित्य एक उद्योग है और प्रस्तुतकर्ता हमेशा पकड़ में आने से बचने का रास्ता खोज लेते है. 




स्टार न्यूज़ एजेंसी 
नई दिल्ली. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि यह फ़ैसला राहुल गांधी को ख़ुद लेना है कि वह कांग्रेस और सरकार में क्या कोई बड़ी ज़िम्मेदारी निभाना चाहते हैं. सोनिया का यह बयान ऐसे वक़्त में आया है, जब कांग्रेस में ही इस तरह की मांग हो रही है कि राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में बड़ी ज़िम्मेदारियां निभानी चाहिए. कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संसद भवन में संवाददाताओं से कहा कि उनकी तरफ़ से कोई दूसरा फ़ैसला नहीं ले सकता. उन्हें ख़ुद फ़ैसला लेना है. उन्होंने यह बात हामिद अंसारी द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन किए जाने के बाद कही. हाल के दिनों में सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी नेताओं ने कहा था कि राहुल गांधी को पार्टी और सरकार का नेतृत्व करना चाहिए, जबकि विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने कहा था कि राहुल को मंत्रिमंडल में शामिल हो जाना चाहिए.




स्टार न्यूज़ एजेंसी 
नई दिल्ली. कांग्रेस पार्टी महासचिव राहुल गांधी को बड़ी जिम्मेदारी देने जा रही है. यह जिम्मेदारी क्या होगी अभी इसका खुलासा नहीं हो पाया है, लेकिन इतना साफ है कि सितंबर के बाद राहुल गांधी नए रंग में नज़र आएंगे.

घोटालों के कारण यूपीए सरकार की छवि खराब हुई है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नेतृत्व अक्षम साबित हुआ है. आर्थिक मोर्चे पर यूपीए सरकार नाकाम होती दिख रही है. बढ़ती महंगाई, रुपये की कीमत में गिरावट जैसी आर्थिक चुनौतियां सरकार के सामने हैं.  तीन रेटिंग एजेंसियों ने भारत की साख गिरा दी है. टाइम मैगजीन ने मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री करार दिया है. यूपीए के घटक दल तृणमूल कांग्रेस आर्थिक सुधार की राह में रुकावट बनी हुई है.

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को फायदा ये होगा कि राहुल गांधी युवा हैं. अगर राहुल गांधी 42 की उम्र में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनते हैं तो कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में फायदा हो सकता है, क्योंकि एनडीए में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर भीषण संघर्ष छिड़ा हुआ है.

भ्रष्टाचार के कारण कांग्रेस की साख गिरी है. पार्टी में गुटबाजी हावी है. ग्रास रूट लेवल पर पार्टी संगठन कमजोर हुआ है. उत्तर प्रदेश और गोवा  विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है.




स्टार न्यूज़ एजेंसी  
गुवाहाटी में सरेआम लड़की से छेड़छाड़ की एक शर्मनाक घटना सामने आई है. मामला दो दिन पहले का है. लड़की जब एक नाइट क्लब से बाहर निकल रही थी, तभी कुछ गुंडों ने उसके साथ जबरदस्ती करनी शुरू कर दी. लड़की ने जब इसका विरोध किया तो गुंडों ने उसे अगवा करने की कोशिश की. लड़की के शोर मचाने पर पहुंची पुलिस ने गुंडों से लड़की को छुड़ाया.

लड़कों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होनें इसका वीडियो बनाया और यूट्यूब पर डाल दिया. गुरुवार को इस मामले में एफआईआर दर्ज कर चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि 11 की पहचान की गई है.

गुवाहाटी के जीएस रोड पर क्लब मिंट के सामने लड़की को 20 लोगों ने सरेआम न सिर्फ बेइज्जत किया, बल्कि छात्रा के बाल पकड़कर सड़क पर घसीटा. जब इससे भी जी न भरा तो इस छात्रा के कपड़े तक फाड़ डाले गए.

इसके बाद तो इन सभी ने हद ही पार कर दी. लड़की की बेइज्जती का ये वीडियो वेबसाइट पर डाल दिया गया. भीड़ के लिए ये एक तमाशा था, सब छात्रा की बेइज्जती देखते रहे लेकिन किसी ने इसे बचाने की कोशिश नहीं की.

आखिर में पुलिस मौके पर पहुंची और छात्रा को किसी तरह से इन गुंडों के चंगुल से छुड़ाया. 8 जुलाई की रात ये वारदात हुई लेकिन पुलिस ने कार्रवाई की 3 दिन बाद यानी 11 जुलाई को. अब भी सिर्फ चार आरोपी ही गिरफ्तार हुए हैं बाकी 16 अब भी गिरफ्त से बाहर हैं.

वीडियो फुटेज देखने के बाद पता चला कि राज्य सरकार की आईटी एजेंसी एमट्रॉन का एक कर्मचारी अमरज्योति कलिता भी लड़की को बेइज्जत करने वाली भीड़ में शामिल था.

इसके बाद कंपनी ने अपने कर्मचारी अमरज्योति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई और उसे नौकरी से निकाल दिया, लेकिन उन सोलह आरोपियों का अब तक कुछ नहीं हुआ, जबकि पुलिस के पास पुख्ता सबूत है.

डीजीपी जयंतो चौधरी ने बताया कि एक से दो दिन में बाकी आरोपियों को पकड़ लिया जाएगा. सरेआम छेड़छाड़ कर उसके कपड़े फाड़ने के आरोप में एक और युवक को गिरफ्तार किया गया है और इसमें शामिल 12 अन्य लोगों की पहचान कर ली गई है.




स्टार न्यूज़ एजेंसी  
नई दिल्ली. रेलवे मंत्रालय ने यह निर्णय लिया है कि रेलवे स्‍टेशनों में रेलवे बुकिंग कार्यालयों पर सिक्‍का उपलब्‍ध कराने वाली मशीनें (सीवीएम) लगाई जाएंगी. इस विषय पर विस्‍तृत मार्ग-निर्देश सभी रेलवे अंचलों को भेज दिए गए हैं. इन मार्ग-निर्देशों के अंतर्गत पहला विकल्‍प भारतीय स्‍टेट बैंक को, तत्‍पश्‍चात्, पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर अन्‍य सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों को मौका दिया जाएगा. इस योजना के नियमों तथा शर्तों के अनुसार रेलवे ऐसी मशीनें लगाने के लिए स्‍थान मुहैया कराएगा, जिसके लिए नाममात्र की एक समय लाइसेंस फीस रु. 1/- होगी. इसके साथ ही बिजली बिना लागत के दी जाएगी. नजदीकी मुख्‍य आपूर्ति बिंदु से मशीन तक बिजली की वायरिंग सेवा प्रदाता द्वारा लगाई जाएगी जिसे एमसीबी द्वारा संरक्षित किया जाएगा.

शुरू में ये मशीनें तीन वर्षों की अवधि के लिए लगाई जाएंगी. मशीनें लगाए जाने के स्‍थान का निर्धारण संबंधित रेलवे डिवीजनों द्वारा किया जाएगा. ए-1 श्रेणी के स्‍टेशनों के प्रत्‍येक बुकिंग कार्यालयों पर अधिकतम चार मशीनें तथा अन्‍य श्रेणी के स्‍टेशनों पर अधिकतम दो मशीनें प्रत्‍येक बुकिंग कार्यालयों पर लगाई जाएंगी. मशीनों का रख-रखाव बैंक अपनी लागत पर करेंगे.

बैंक यह भी सुनिश्चित करेंगे कि हमेशा मशीनों में अपेक्षित राशि के सिक्‍के उपलब्‍ध रहें। सिक्‍कों की कमी होने तथा रख-रखाव की आवश्‍यकताओं हेतु बैंक अपने संपर्क अधिकारी के नाम का भी उल्‍लेख करेंगे। बैंक के नाम और लोगो के अलावा मशीनों पर विज्ञापन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। मशीनें ऐसे स्‍थान पर लगाई जानी चाहिए, जिससे कि यात्रियों की आवाजाही में रुकावट न पड़े।




एस शिव कुमार
      1987 में 5 बिलियन लोगों ने 11 जुलाई को विश्‍व जनसंख्‍या दिवस के रूप में प्रतिष्ठित करने का निर्णय लिया था। अब 20 साल से अधिक समय से यह दिन जनसंख्‍या के रूख तथा इससे संबंधित मुद्दों के महत्‍व को दर्शाने का अवसर बन गया है। विचार-विमर्शों तथा चर्चाओं के माध्‍यम से इसके प्रति सजगता व्‍यक्‍त की जाती है। इस दिवस ने वार्षिक महत्‍व ग्रहण कर लिया है। वर्ष 2011 में विश्‍व जनसंख्‍या 7 बिलियन को पार करने का अनुमान था। यूएनएफपीए (युक्‍त राष्‍ट्र जनसंख्‍या कोष) और इसके सहयोगियों ने इसी दिन एक अभियान चलाया जिसे नाम दिया गया ''7 बिलियन एक्‍सन्‍स’’। वर्ष 2011 के मध्‍य तक नवीनतम आकड़ों के मुताबिक विश्‍व जनसंख्‍या 6,928,198,253 होने का अनुमान था।
यहां से आगे का रास्‍ता :
   मुख्‍य चिंता जनसंख्‍या को स्थिर करना है। जनसंख्‍या स्थिरता केवल संख्‍या न होकर संतुलित विकास है। इसे वृहद सामाजिक-आर्थिक विकास के परिप्रेक्ष्‍य में देखा जाना चाहिए। जरूरी नहीं कि स्थिरता की यह प्रक्रिया 2045 तक पूरी हो जाए, इसे 2050 या 2060 तक भी पूरा किया जा सकता है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि हम जनसंख्‍या स्थिरता के मुद्दे तक कैसे पहुंचे।
     हर कोई जनसंख्‍या स्थिरता को लेकर चिंतित है क्‍योंकि इसके साक्ष्‍य मौजूद हैं कि महिलाएं अधिक बच्‍चे नहीं चाहती हैं। परिवार को सीमित करना अब उनकी प्राथमिकता है। वह अपने परिवेश में मौजूद परिस्थितियों से अपने आप को सशक्‍त बना रही हैं। वह चा‍हती हैं कि उनके बच्‍चे जीवित रहें और अच्‍छा करें। साथ ही परिवार नियोजन के तरीके तथा प्रजनन संबंधी स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं भी उन्‍हें आसानी से मिलें। ये सब सुविधाएं उनकी निजता और मर्यादा को बनाए रख कर ही प्राप्‍त हों। उनकी आय में वृद्धि के उपाय किये जाएं तथा आय पर उनका नियंत्रण सुनिश्चित किया जाए जिससे काफी तब्‍दीली आएगी।

प्रोत्‍साहन का प्रश्‍न
     जनसंख्‍या नियंत्रण के लिए प्रोत्‍साहन और हतोत्‍साहन ने काफी हद तक सहयोग दिया है। क्‍या इस प्रकार के प्रोत्‍साहन या हतोत्‍साहन जरूरी हैं, क्‍या ये कारगर और न्‍यायसंगत हैं? क्‍या ये प्रोत्‍साहन और हतोत्‍साहन गुणात्मक सुधार लाने के साथ ही बराबरी की समस्‍या को इंगित करने तथा विशेषकर महिलाओं की स्‍वास्‍थ सेवाओं के लिए कारगर होगें? क्‍या यह समुदाय के सेवा प्रदाताओं को और जिम्‍मेदार बनाएंगे? प्रोत्‍साहन और हतोत्‍साहन कितने कारगर और प्रासांगिक हैं? ये किस प्रकार लोगों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं। अक्‍सर ऐसे कुछ सवाल बिना सटीक उत्‍तर दिए उठाए जाते हैं।

दो चरम और संतुलित अभिव्‍यक्ति
   प्रबुद्ध राजनेताओं और प्रशासकों ने शिक्षा के महत्‍व, स्‍वास्‍थ्‍य रक्षा सेवाओं तक पहुंच, अधिक जागरूकता और अधिक महत्‍वपूर्ण और समग्र आर्थिक विकास के महत्‍व को समझना शुरू कर दिया है जिससे जनसंख्‍या स्थिरता के लिए बेहद जरूरी परिवर्तन को प्राप्‍त करने में सहायता मिलेगी।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए क़दम   
केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि बढ़ती जनसंख्‍या के कारण विकास का पर्याप्‍त लाभ प्राप्‍त नहीं रहा है। उन्‍होंने कहा कि अधिक उम्र में विवाह तथा दो बच्‍चों में उचित अंतर को बढ़ती हुई जनसंख्‍या के सम्‍भावित समाधान के रूप में विशेष महत्‍व दिया जाना चाहिए। परिवार नियोजन को प्रोत्‍साहन देने के लिए दबाव न बनाया जाए बल्कि छोटे परिवार के लिए वैश्विक स्‍वीकृति की आवश्‍यकता है।
   
गत वर्ष स्‍वास्‍थ्य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय तथा जनसंख्‍या स्थिरता कोष द्वारा आयोजित कार्यक्रम में तीसरी कक्षा की छात्रा रेखा कालिंदी को सम्‍मानित किया गया था, जिसने दस वर्ष की उम्र में शादी करने से इंकार किया था। राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के अनुसूचित जाति तथा जनजाति के दम्‍पत्तियों को भी परिवार नियोजन के प्रतिमान के रूप में सम्‍मानित किया गया था। इन दम्‍पत्तियों को प्रेरणा पुरस्‍कार भी दिए गए थे। आशा (एक्रेडिटिड सोशल हेल्‍थ एक्टिविस्‍ट) के कार्यकर्ताओं द्वारा ग्रामीणों को शिक्षित करने में उनकी भूमिका के लिए विशेष उल्‍लेख किया जाना आवश्‍यक है। अत: विश्‍व जनसंख्‍या दिवस को प्रत्‍येक गांव, ब्‍लॉक‍और जिला स्‍तर पर आयोजित किया जाना चाहिए ताकि यह जन-आंदोलन का रूप ले सके।
   
देश बढ़ती हुर्इ जनसंख्‍या की एक जटिल समस्‍या से ग्रस्‍त है और यह समस्‍या आगे भी जारी रहेगी। जागरूकता भागीदारी तथा जनसंख्‍या नियंत्रण सेवाओं की उपलब्‍धता के साथ-साथ कड़ी सर्तकता और पारदर्शिता से इसकी गंभीरता को कम करने में मदद मिलेगी। जिससे हम सबको सेवा प्रदाताओं और नौकरशाही के रवैये में बदलाव का भी सुझाव दिया गया जो बहुत जरूरी है। यह खुशी की बात है कि लगभग 50 वर्षों के एकतरफा संवाद के बाद सरकार ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक बहस का स्‍वागत किया है।

वैश्विक स्थिति 
      विश्‍व रिपोर्ट में पश्चिम अफ्रीकी देश नाईजर का उल्‍लेख किया गया है जहां पिछले 30 वर्षों में जीवन की प्रत्‍याशा बढ़ी है लेकिन प्रत्‍येक 20 वर्षों में इसकी जनसंख्‍या दुगनी हुई है। वर्ष 2050 तक इसकी कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में 3.9 प्रतिशत की गिरावट आएगी जो एक सकारात्‍मक रूख को दर्शाता है। वर्ष 2050 तक जनसंख्‍या 15.5 से बढ़कर 55.5 मिलियन हो जाएगी। भविष्‍य में नाईजर में भी जनसंख्‍या वृद्धि खाद्य और आवश्‍यक वस्‍तुओं के उत्‍पादन से अधिक होने की संभावना है।

रिपोर्ट के अंत में यह चेतावनी दी गई है कि : ''पृ‍थ्‍वी पर इतनी अधिक जनसंख्‍या कभी नहीं थी। इसकी खपत का  स्‍तर अप्रत्‍याशित है और पर्यावरण में काफी बड़े परिवर्तन भी हो रहे हैं। हमें यह चुनना होगा कि हम संसाधनों का समतामूलक उपयोग करें या इस बारे में कुछ भी न करें और ऐसा करते हुए हम आर्थिक और पर्यावरण की उत्‍तरोत्‍तर बढ़ती समस्‍याओं की गर्त में समाकर, अधिक असमान और असह्य भविष्‍य की ओर बढ़ते चले जाएं’’।




-मनीष देसाई
यूनेस्‍को विश्‍व धरोहर समिति ने 1 जुलाई को भारत के वेस्‍टर्न घाट को विश्‍व धरोहर स्‍थल की फेहरिस्‍त में शामिल किया। रूस के सेंट पीटरस्बर्ग में  विश्‍व धरोहर समिति के 36 वें सत्र में यह फैसला लिया गया। वेस्‍टर्न घाट भूदृश्‍य के कुल 39 स्‍थल उस क्षेत्र का हिस्‍सा हैं जिसे विश्‍व धरोहर की फेहरिस्‍त में जगह दी गई है। इसमें 20 स्‍थलों के साथ केरल सबसे ऊपर है उसके बाद कर्नाटक (10 स्‍थल), तमिलनाडु (5 स्‍थल) और महाराष्‍ट्र (4 स्‍थल) है।
 महाराष्‍ट्र, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में वेस्‍टर्न घाट विश्‍व धरोहर क्‍लस्‍टर की सूची:
महाराष्‍ट्र


कास पठार  
कोयना वन्‍यजीव अभयारण्‍य
चंदोली राष्‍ट्रीय उद्यान 
रधानागरी वन्‍यजीव अभयारण्‍य   


कर्नाटक     


ब्रह्मगिरी वन्‍यजीव अभयारण्‍य   
तालाकावेरी वन्‍यजीव अभयारण्‍य
पदिनालक्‍नाड रिज़र्व फोरेस्‍ट
केर्ती रिजर्व फोरेस्‍ट
अरालम वन्‍य जीव अभयारण्‍य
कुद्रेमुख राष्‍ट्रीय उद्यान

बलाहल्‍ली रिजर्व फोरेस्‍ट


केरल तमिलनाडु   


कालक्‍कड बाघ रिजर्व
शेंदुरने वन्‍य जीव अभयारण्‍य
नेय्यर वन्‍य जीव अभयारण्‍य
पेपरा वन्‍य जीव अभयारण्‍य
कुलाथुपुझा रेंज     
पलोड रेंज
पेरियर बाघ रिजर्व 
रन्‍नी वन डिवीजन     
कोन्‍नी वन डिवीजन
अचांकोविल वन डिवीजन     
श्रीविलिपुत्‍तुर वन्‍य जीव   
तिरूनेलवेली उत्‍तर वन डिवीजन     
ईराविकुलम राष्‍ट्रीय उद्यान
ग्रास पर्वतीय राष्‍ट्रीय उद्यान
कर्यान शोला राष्‍ट्रीय उद्यान
परांभिकुलम वन्‍य जीव अभयारण्‍य
मंकुलम रेंज 
चिन्‍नार वन्‍य जीव अभयारण्‍य
मन्‍नावन शोला     
साइलेंट वेली राष्‍ट्रीय उद्यान
न्‍यू अमरांबलम रिजर्व फोरेस्‍ट
मुकुर्ती राष्‍ट्रीय उद्यान

कालीकावु रेंज
अट्टापडी रिजर्व फोरेस्‍ट
पुष्‍पगिरी वन्‍य जीव अभयारण्‍य




      पर्यावरणविद् जहां खुश हैं कि लगातार अंतरराष्‍ट्रीय समीक्षा से निहित स्‍वार्थों द्वारा वन संपदा के दुरूपयोग को रोका जा सकेगा वहीं राज्‍य सरकारों ने इस पर नपी-तुली प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की है। संशयवादियों को लगता है कि इससे पारिस्थितिकीय तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं जिसे वेस्‍टर्न घाट में लागू कर दिया गया है या प्रस्‍तावित हैं, उन पर अधिक असर नहीं पड़ेगा।

अस्‍वीकृति के बाद पहचान
      वेस्‍टर्न घाट को काफी मशक्‍कत के बाद विश्‍व धरोहर की सूची में रखा गया है। पिछले साल विश्‍व धरोहर के 35वें सत्र में 39 स्‍थलों समेत वेस्‍टर्न घाट के विश्‍व धरोहर के प्रस्‍ताव को नामंज़ूर कर दिया गया था। इस साल प्रस्‍ताव पर फिर से विचार करने के लिए उसे दोबारा सौंपा गया तब भी यह नामंज़ूर किए जाने के कगार पर था। अंतरराष्‍ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने भारत को सुझाव दिया कि उसे प्रस्‍ताव की समीक्षा तथा उसमें सुधार करके वनों को संरक्षित करने के लिए प्रस्‍तावित स्‍थलों की सीमाओं को नए सिरे से परिभाषित करना चाहिए। सेंट पीटरस्बर्ग में भारतीय शिष्‍टमंडल ने हालांकि विश्‍व धरोहर समिति को भारत के प्रस्‍ताव की खूबियों के बारे में समझाने की कोशिश की तथा इस मुद्दे पर समिति के 21 सदस्‍यों के साथ चर्चा भी की। भारत की कोशिश रंग लाई तथा रूस के शिष्‍टमंडल ने प्रस्‍ताव को आगे बढ़ाया जिसे एशिया और अफ्रीका के कई देशों का समर्थन मिला।

वेस्‍टर्न घाट की महत्‍ता
      वेस्‍टर्न घाट हिमालय से भी पुराना तथा जैव-विविधता का खज़ाना है। इसे वन‍स्‍पतियों और जीव-जंतुओ को संरक्षित करने वाले 8 वैश्विक स्‍थानों में से एक के रूप में मान्‍यता दी गई है। वेस्‍टर्न घाट गुजरात के डेंग से शुरू होकर महाराष्‍ट्र, गोवा, कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र, केरल और तमिलनाडु के पहाड़ी मैदानों से गुज़रते हुए कन्‍याकुमारी के नजदीक समाप्‍त होता है।

  घाट में फिलहाल 5000 से ज़यादा पौधे तथा 140 स्‍तनपायी हैं जिसमें से 16 स्‍थानिक यानी केवल उसी क्षेत्रों में पए जाने वाले हैं। वेस्‍टर्न घाट में पाए जाने वाले 179 उभयचर प्रजातियों में से 138 केवल इसी क्षेत्र में ही पाईं जाती हैं। इसमें 508 पक्षियों की प्रजातियां हैं जिसमें से केवल 16 इस क्षेत्र में पाईं जाती हैं।
   वेस्‍टर्न घाट को पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से काफी संवेदनशील क्षेत्र के रूप में देखा जा रहा है जिसमें करीब 56 प्रजातियां लुप्‍त होने के कगार पर हैं। पर्यावास बदलने, अधिक दोहन होने, प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन ऐसे प्रमुख कारण जिससे जैव-विविधता को नुकसान पहुंच रहा है।

     वेस्‍टर्न घाट की पारिस्थितिकी के संरक्षण की आयवश्‍कता से इंकार नहीं किया जा सकता।

यूनेस्‍को का अधिदेश
     यूनेस्‍कों ने वेस्‍टर्न घाट के जैव-विवधता के संरक्षण में उसके वर्तमान प्रयासों की सराहना की लेकिन स्‍पष्‍ट रूप से काफी कुछ किए जाने पर भी ज़ोर दिया। विश्‍व धरोहर समिति ने भारत सरकार को पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल की सिफारिशों पर विचार करने का सुझाव दिया है। इन स्‍थलों के अधिक संरक्षण के लिए समिति ने सरकार से बफर ज़ोन को मज़बूत करने को भी कहा है। समान रूप से लाभ सुनिश्चित करने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र का यह संगठन सामुदायिक भागीदारी के जरिए सहभागिता प्रशासन दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चा‍हता है। पैनल ने कहा है कि स्‍थानीय लोगों की सहमति के बगैर क्षेत्र में कोई औद्योगिक गतिविधि नहीं होनी चाहिए।  
     पर्यावरण और वन मंत्रालय ने जाने-माने पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर माधव गाडगिल की अध्‍यक्षता में फरवरी 2010 में वेस्‍टर्न घाटों के पर्यावरण विशेषज्ञ पैनल का गठन किया था। पैनल ने क्षेत्र में पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील अनेक भागों की पहचान की और सिफारिश की कि इन हिस्‍सों को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया जाए । अपनी सिफारिशों में पैनल ने कर्नाटक के गुंडिया, केरल की अथीरापल्‍ली जल परियोजनाओं को रद्द करने और गोवा के पर्यावरण की दृष्टि से अत्‍यन्‍त संवेदनशील इलाकों में खनन कार्यों को 2016 तक धीरे-धीरे खत्‍म करने का आह्वान किया । इसने यह भी सुझाव दिया कि वैधानिक प्राधिकरण के रूप में वेस्‍टर्न घाट पर्यावरण प्राधिकरण ( डब्‍ल्‍यू जी ई ए ) की स्‍थापना की जाए जिसे पर्यावरण और वन मंत्रालय नियुक्‍त करे। इसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अनुछेद तीन के अंतर्गत शक्तियां प्राप्‍त हों। 24 सदस्‍यीय इस समूह में पर्यावरण विद, वैज्ञानिक, सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि, आदिवासी समूह केन्‍द्रीय पर्यावरण मंत्रालय, योजना आयोग, राष्‍ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी और राज्‍य सरकार के प्रतिनिधि इसके सदस्‍य के रूप में शामिल होंगे।
      कर्नाटक और केरल सरकारों ने अपने-अपने क्षेत्रों में जल परियोजनाओं को समाप्‍त करने की सिफारिश का विरोध किया है। कर्नाटक सरकार वेस्‍टर्न टों को विश्‍व धरोहर का नाम देने का विरोध कर रही है, उसका कहना है कि इन क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले स्‍थानों को विकसित करने में नियंत्रक बाधाएं आ सकती हैं। वेस्‍टर्न घाटों को संरक्षित करने के संबंध में गोवा के सुस्‍त रवैये के परिणामस्‍वरूप उसे 39 की सूची में कोई जगह नहीं मिली। महाराष्‍ट्र सरकार ने वेस्‍टर्न घाटों को विश्‍व धरोहर का दर्जा दिये जाने का स्‍वागत किया है। लेकिन कुछ प्रमुख क्षेत्रों को छोड़कर खनन और उद्योगों पर पूर्ण प्रतिबंध लागू नहीं करने के राज्‍य के वर्तमान रवैये में बदलाव नहीं आयेगा। राज्‍य ने हांलाकि वेस्‍टर्न घाट के गांवों में हरित र्इंधन आंदोलन को प्रोत्साहित किया है। उसने बायोगैस पर 75 प्रतिशत सब्सिडी और कम दूध देने वाले ऐसे मवेशी जो खुले में घास चरने की बजाय चारे पर निर्भर हैं उनके लिये भी 50 प्रतिशत सब्सिडी की व्‍यवस्‍था की है।

यूनेस्‍को विश्‍व धरोहर स्थल का प्रभाव
विश्‍व धरोहर के दर्जे  से इन स्‍थानों में और इनके आस-पास के इलाकों में विकास पर परेशानी आ सकती है क्‍योंकि यूनेस्‍को ने प्राकृतिक विश्‍व धरोहर स्‍थलों के आस-पास अतिरिक्‍त बफर जोन बनाने की व्‍यवस्‍था की है और चुने हुए 39 क्रमिक स्‍थलों के संरक्षण के लिये एक प्राधिकरण रखा है। संरक्षणकर्ताओं को डर है कि पर्यावरण पर्यटन की चाह में इन संवेदनशील इलाकों की तरफ लोगों की भीड़ जायेगी। कर्नाटक में  कुद्रेमुख वन्‍य जन्‍तु फाउंडेशन से जुड़े एक कार्यकर्ता का कहना है ‘’ इससे वेस्‍टर्न घाट में व्‍यावसायिक गतिविधियां, सड़कें, निर्माण, बिजली की लाइनें, और अन्‍य बुनियादी सुविधाओं के लिये निर्माण गतिविधियां–शुरू हो जायेंगी । जिससे इस हरे-भरे क्षेत्र और प्राकृतिक वास को संरक्षित करने के उद्देश्‍य पर असर पड़ेगा ।
      वेस्‍टर्न घाट विशेषज्ञ डॉक्‍टर माधव गा‍डगिल ने यूनेस्‍को की घोषणा का स्‍वागत किया। उन्‍होंने कहा कि इससे 2002 के जैविक विविधता जैसे अधिनियमों को मजबूती मिलेगी जिससे पंचायत जैसे स्‍थानीय संगठन संरक्षण के लिये उचित कदम उठा सकेंगे। संरक्षण के प्रयासों की सफलता और निरन्‍तर विकास का पता लगाने में स्‍थानीय लोगों की भागीदारी महत्‍वपूर्ण होगी।
      पांच राज्‍यों से लगे वेस्‍टर्न घाट में लाखों आदिवासियों ने अपने घर बनाए हैं। नीलगिरी के थोडा, बी आर हिल्‍स के सोलीदास, बेथनगाड़ी के मालेकुदिया, उत्‍तर कन्‍नड़ के हल्‍लाकी वोक्‍कल, कुमता के सिद्धि, वेनाद के पनिया, मालाबार के कटटूनयाकन और गोवा और महाराष्‍ट्र के अनेक अन्‍य आदिवासी इनमें शामिल हैं । जैव विविधता के संरक्षण की योजना 2001-16 में कहा गया है ‘’ आदिवासी समुदाय जैव विविधता का हिस्‍सा हैं और राज्‍य सरकारों को उन्‍हें उनके प्राकृतिक माहौल से बाहर नहीं निकालना चाहिए बल्कि‍ उन्‍हें लोकतांत्रिक दृष्टि से अधिकार सम्‍पन्‍न बनाना चाहिए और उन्‍हें सरकारी सुविधाएं देनी चाहिए।
      वेस्‍टर्न घाट के अधिकतर हिस्‍सों में विकास में लोगों की भागीदारी हितकर है। देश के क्षेत्र में साक्षरता और पर्यावरण संबंधी जागरूकता का स्‍तर बहुत अधिक है। लोकतांत्रिक संस्‍थाएं भी मजबूत हैं और क्षमता निर्माण और पंयायती राज संस्‍थानों को मजबूत बनाने में केरल सबसे आगे है। गोवा ने हाल ही में भूमि के इस्‍तेमाल की नीतियों के बारे में फैसला लेने के लिये ग्राम सभाओं से जानकारी लेने संबंधी काफी दिलचस्‍प कार्य, क्षेत्रीय योजना 2021 को पूरा किया। वेर्स्‍टन घाट देश का एक ऐसा उपयुक्‍त क्षेत्र है जिसका समग्र और पर्यावरण के अनुकूल विकास हो सकता है।


वेस्‍टर्न घाट से संबंधित कुछ तथ्‍य
-डॉ. के. परमेश्‍वरन


·        वेस्‍टर्न घाट एक पर्वतीय श्रृंखला है, जो भारत के पश्चिमी किनारे पर स्थित है।
·        दक्‍कनी पठार के पश्चिमी किनारे के साथ-साथ यह पर्वतीय श्रृंखला उत्‍तर से दक्षिण की तरफ 1600 किलोमीटर लम्‍बी है।
·        यह विश्‍व में जैविकीय विवधता के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण है और इसका विश्‍व में 8वां नंबर है।
·        यह गुजरात और महाराष्‍ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्‍ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्‍याकुमारी में समाप्‍त हो जाती है।
·        इन पहाडि़यों का कुल क्षेत्र 160,000 वर्ग किलोमीटर है।
·        इसकी औसत उंचाई लगभग 1200 मीटर (3900 फीट) है।
·        इस क्षेत्र में फूलों की पांच हजार से ज्‍यादा प्रजातियां, 139 स्‍तनपायी प्रजातियां, 508 चिडि़यों की प्रजातियां और 179 उभयचर प्रजातियां पाई जाती हैं।
·        ऐसी जानकारी प्राप्‍त हुई है कि वेस्‍टर्न घाट में कम से कम 84 उभयचर प्रजातियां और 16 चिडि़यों की प्रजातियां और सात स्‍तनपायी और 1600 फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जो विश्‍व में और कहीं नहीं हैं।
·        वेस्‍टर्न घाट में सरकार द्वारा घोषित कई संरक्षित क्षेत्र हैं। इनमें दो जैव संरक्षित क्षेत्र और 13 राष्‍ट्रीय पार्क हैं।
·        वेस्‍टर्न घाट में स्थित नीलागिरी बायोस्फियर रिजर्व का क्षेत्र 5500 वर्ग किलोमीटर है, जहां सदा हरे-भरे रहने वाले और मैदानी पेड़ों के वन मौजूद हैं।
·        केरल का साइलेंट वैली राष्‍ट्रीय पार्क वेस्‍टर्न घाट का हिस्‍सा है। यह भारत का ऐसा अंतिम उष्‍णकटिबंधीय हरित वन है, जहां अभी तक किसी ने प्रवेश नहीं किया है।
·        अगस्‍त, 2011 में वेस्‍टर्न घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल ने पूरे वेस्‍टर्न घाट को पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया है। पैनल ने इसके विभिन्‍न क्षेत्रों को तीन स्‍तर पर संवेदनशील बताया है।
·        2012 में यूनेस्‍को ने वेस्‍टर्न घाट क्षेत्र के 39 स्‍थानों को विश्‍व धरोहर स्‍थल घोषित किया है।


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