कल्पना पालखीवाला
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 27 जुलाई, 1981 को सागर विकास विभाग का गठन यह देखते हुए ही किया था कि भारत के लगभग 7500 कि.मी. लंबे तटवर्ती क्षेत्र की करीब 37 प्रतिशत जनसंख्या की आजीविका समुद्रों पर ही निर्भर है। शुरू में इसका गठन एक स्वतंत्र वैज्ञानिक विभाग के रूप में किया गया था। फरवरी 2006 में इसका उन्नयन कर सागर विकास मंत्रालय बना दिया गया। यह देखते हुए कि सागर, पर्यावरण, और धरती विज्ञान को एक समेकित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, सरकार ने धरती विज्ञान मंत्रालय (एम ओ ई एस) के गठन का विचार किया और 12 जुलाई 2007 को यह मंत्रालय विधिवत रूप से अस्तित्व में आ गया। इस मंत्रालय के अंतर्गत सागर विकास विभाग, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, भारतीय उष्णकटिबंघीय मौसम विज्ञान संस्थान और राष्ट्रीय मध्यम क्षेत्र मौसम पूर्वानुमान केन्द्र आते हैं।
धरती विज्ञान मंत्रालय का उद्देश्य मौसम विभाग, जलवायु, पर्यावरण और भूकंप विज्ञान के मौजूदा राष्ट्रीय कार्यक्रमों से संबध्द धरती प्रणाली के प्रमुख अवयवों के परस्पर जटिल संबंधों के अध्ययन के लिए एक अनुकूल ढांचा तैयार करना है। मंत्रालय को जो दायित्व सौंपा गया है, उसके अनुसार विश्वस्तरीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संसाधनों का उपयोग करते हुए और मौसम की जानकारियों, सागर की स्थिति, भूकंप, सुनामी और धरती प्रणाली से संबंधित अन्य विलक्षण स्थितियों की संभव श्रेष्ठतम जानकारियां राष्ट्र को प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त, मंत्रालय समुद्री संसाधनों (सजीव और निर्जीव) की खोज और दोहन से जुड़े विज्ञान और प्रौद्योगिकी का कार्य देखता है। इसके साथ ही अंटार्कटिक/र्कटिक तथा दक्षिणी सागर अनुसंधान में केन्द्रीय भूमिका भी निभाता है। समुद्र में तेल के रिसाव, चक्रवात, तूफान तथा सुनामी की चेतावनी देने के मामले में भी इस मंत्रालय की केन्द्रीय भूमिका होती है।
पिछले दो दशकों के दौरान, मंत्रालय को जो कार्य सौंपें गए हैं, उनमें अनेक सफलतायें अर्जित की गई हैं। मंत्रालय भविष्य में भी और ऊँचाइयां छूने के लिए तत्पर है। प्रतिदिन दस लाख लीटर खारे पानी को पीने योग्य बनाने वाले संयंत्र का सफल प्रदर्शन, आई एन सी ओ आई एस, हैदराबाद में सुनामी की पूर्व चेतावनी देने वाले केन्द्र की स्थापना, अंटार्कटिक के 28 सफल वैज्ञानिक अभियान आर्कटिक में वैज्ञानिक अभियान की शुरूआत, समुद्र में गहरी खुदाई का विकास आदि मंत्रालय की कुछ सफल कहानियां हैं।
इस महत्वपूर्ण क्षेत्र के बारे में चेतना पैदा करने और शुरू की जा रही राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं की गतिविधियों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह आवश्यकता महसूस की गई कि प्रति वर्ष 27 जुलाई को मंत्रालय का स्थापना दिवस मनाया जाए। तदनुसार, 2004 से इसी दिन धरती विज्ञान मंत्रालय का स्थापना दिवस मनाया जाता है।
खारे पानी का खारापन दूर कर उसे पीने योग्य बनाना एक महत्वकांक्षी कार्यक्रम है। धरती विज्ञान मंत्रालय ने पानी का खारापन दूर करने के लिए तकनीकी और आर्थिक रूप से उपयोगी समाधान खोजने के क्षेत्र में काफी काम किया है। निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण (एल टी टी डी) और अन्य पारंपरिक विलवणीकरण प्रक्रियाओं के जरिए समुद्री जल का खारापन दूर किया जाता है। मंत्रालय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय सागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एन आई ओ टी) ने 5 एम3 प्रतिदिन क्षमता वाला प्रयोगशाला स्तर का प्रादर्श (मॉडल) लक्षद्वीप के कवारत्ती द्वीप स्थित 100 एम3 प्रतिदिन क्षमता का जमीनी संयंत्र और चेन्नई तट के समुद्र में नौकरूढ़ 1000 एम3 प्रतिदिन क्षमता का संयंत्र स्थापित किया है, जिनमें खारे पानी को पीने योग्य बनाया जाता है।
भारतीय राष्ट्रीय सागर सूचना सेवा केन्द्र (आई एन सी ओ आई एस) सागर विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, अंतरिक्ष अनुप्रयोग, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्थाओं की नेटवर्किंग से प्राप्त वैज्ञानिक ज्ञान को उपयोगी उत्पादों और सेवाओं में परिवर्तित करने का काम करता है। सुनामी की पूर्व चेतावनी देने वाला केन्द्र काम करने लगा है और अब तक 186 बड़े भूकंपों की वैज्ञानिक पड़ताल कर आवश्यक परामर्श जारी कर चुका है। केन्द्र ने सुनामी प्रेक्षण प्रणाली में सुधार भी किया है। सागर की स्थिति का पूर्वानुमान लगाने के काम और तदनुसार परामर्श जारी करने के कार्य में सुधार किया गया है। यह केन्द्र (आई एन सी ओ आई एस) हिंद महासागर क्षेत्र में तो अपनी अग्रणी भूमिका बनाए हुए ही है, हिंद महासागर वैश्विक निगरानी प्रणाली, अंतर्राष्ट्रीय कृषि जनित कार्य, अंतर्राष्ट्रीय महासागरीय आंकड़ा विनिमय आदि जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में भी उल्लेखनीय योगदान दे रहा है। नए आंकड़ों उत्पादों एवं सेवाओं का विकास कर उपभोक्ता समुदायों को दिया गया है।
अंटार्कटिका के अनन्य वातावरण के वैज्ञानिक अनुसंधान और अन्वेषण के लिए 1981 से ही नियमित रूप से वैज्ञानिक अभियान चलाये जाते रहे हैं। यह क्षेत्र एक विशाल नैसर्गिक प्रयोगशाला जैसा है। भारत ने दक्षिण गंगोत्री में 1981 में और मैत्री में 1983 में दो केन्द्र स्थापित किए थे। अब तक 28 अभियान पूरे हो चुके हैं। पिछले अभियान में घंटे घंटे के अंतर पर मौसम का सारपरक प्रेक्षण और ओजोन तथा उसके पूर्ववर्तियों को समुद्र और ध्रुवीयसीमा की परत में व्यवहार का अध्ययन किया गया था। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अलावा पर्यावरण तथा जीव विज्ञान से संबध्द संस्थाओं के साथ-साथ भारतीय वन्य जीव संस्थान ने भी सागर अभियान के दौरान दुर्गम क्षेत्र का मानचित्र तैयार करने के अतिरिक्त सतह के नीचे बर्फ (हिम), मिट्टी (मृदा), जल निकाय, शैवाक और शैवाल का संग्रह तथा पक्षियों और स्तनपायी जीवों का निरीक्षण किया है।
आर्कटिक अभियानों के दौरान आर्कटिक के जल और तलहटी के जल में पाए जाने वाले कीटाणुओं (वैक्टीरिया) की विविधता को दर्शाने वाले वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन भी किया जाता रहा है।
भारत पहला ऐसा अन्वेषक निवेशक देश है जिसे इंटरनेशनल सी-बेड अथारिटी (सी आई ओ वी) ने सेंट्रल इंडियन ओशन बेसिन में 1,50,000 वर्ग किलो मीटर का क्षेत्र आवंटित किया है। सागरों में खनिजों, तेल, भोजन और ऊर्जा के भारी भंडार छिपे होते हैं। भारत ने अधिकतम 5256 मीटर की गहराई तक खोज करने में सफलता हासिल की है और सुदूर नियंत्रित वाहन (आर ओ वी) के जरिए मैंगनीज पिंड के नमूने इकट्ठा किए हैं। यह पहली बार है जब कोई आर ओ वी पांच हजार मीटर से अधिक की गहराई में सेंट्रल इंडियन ओशन बेसिन (मध्य हिंद महासागर के थाले) में गया हो। मंगलोर के तट के पास स्थित सागर अनुसंधान पोत सागरनिधि में पॉली मेटलिक नोडयूल (पी एम एन) का पात्रता परीक्षण पहली अप्रैल 2010 को किया गया और शुरू में आर ओ वी को 1250 मीटर की गहराई में उतार कर उसे आजमाया गया। आर ओ वी जब 5256 की अधिकतम गहराई तक पहुंचा तो कुछ विद्युतीय समस्यायें महसूस की गई, परंतु उन्हे शीघ्र ही दूर कर दिया और आर ओ वी को डेक पर ले आया गया। अल्पावधि जलवायु की भविष्यवाणी और क्लाउड एरोसॉल इंट्रेक्शन और प्रेसिपिटेशन ोरिमेंट सी ए आई पी ई ई एक्स), भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान की ऐसी दो योजनायें हैं जो सागर और पर्यावरण विज्ञान में इसे विश्व के उत्कृष्ट केन्द्र के रूप में स्थापित कर देंगी। मंत्रालय ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आई एम डी), राष्ट्रीय मध्यावधि मौसम पूर्वानुमान केन्द्र (एन सी एम आर डब्ल्यू एफ) और भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आई आई टी एम) को साथ लेकर मौसम विज्ञान के विकास की दिशा में सकारात्मक कदम उठाया है।