कल्पना पालखीवाल
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 पर्यावरण सुरक्षा को विकास प्रक्रिया के अभिन्न अंग और सभी विकास गतिविधियों में पर्यावरणीय प्राथमिकता के रूप में पहचान प्रदान करती है। इस नीति का मुख्य ध्येयवाक्य है कि पर्यावारणीय संसाधनों का संरक्षण जीविका, सुरक्षा और सभी के कल्याण के लिए जरूरी है। इसके साथ ही  संरक्षण के लिए मुख्य आधार यह होना चाहिए कि किन्हीं खास संसाधनों पर आश्रित लोग संसाधनों के क्षरण से नहीं बल्कि उसके संरक्षण से अपनी जीविका चलाएं। यह नीति विभिन्न हितधारकों को अपने संबंधित संसाधन का दोहन करने और पर्यावरण प्रबंधन का जरूरी कौशल हासिल करने के लिए उनके बीच साझेदारी को बढावा देती है। 

पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अधिसूचना, 2006 के तहत विकास परियोजनाओं, गतिविधियों, प्रक्रियाओं आदि के लिए पूर्व पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करना आवश्यक है।

विधायी ढांचा
पर्यावरण संरक्षण के लिए मौजूदा विधायी ढांचा मुख्य रूप से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 , जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम,1974 , जल प्रभार अधिनियम, 1977 और वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 में सन्निहित है। वन और जैव विविधता के प्रबंधन से संबंधित विनियम भारतीय वन अधिनियम, 1927, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ,वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम,1972, और जैवविविधता अधिनियम, 2002 में निहित हैं।  इसके अलावा भी कई और नियम हैं जो इन मूल अधिनियमों के पूरक हैं। 

तकनीकी कौशल एवं निगरानी अवसंरचना के अभाव और पर्यावरणीय नियमों को लागू करने वाले संस्थानों में प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण ये नियम पूरी तरह लागू नहीं हो पा रहे हैं। इसके अलावा सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले स्थानीय समुदाय की भी नियमों के अनुपालन की निगरानी में पर्याप्त भागीदारी नहीं होती है।  निगरानी अवसंरचना में संस्थागत  सार्वजनिक निजी साझेदारी का भी अभाव है।

पंचायती राज संस्थानों और शहरी निकायों को पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं की निगरानी के योग्य बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम चलाए गए तथा कई और कदम भी उठाए गए। इसके साथ ही नगरपालिकाओं को पर्यावरण के मोर्चे पर अपने कार्य की रिपोर्ट पेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। मजबूत निगरानी अवसंरचना खड़ी करने के लिए व्यवहारिक सार्वजनिक निजी साझेदारी पर पर्याप्त बल दिया जाएगा।

अधिसूचना, 2006
पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 देश  के विभिन्न हिस्सों में विकास परियोजनाओं और उनकी विस्तारआधुनिकीरण गतिविधियों को विनियमित करती है। इसके तहत अधिसूचना की अनुसूची में दर्ज परियोजनाओं के लिए पूर्व अनापत्ति ग्रहण करना अनिवार्य है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के उप अनुच्छेद (1) तथा अनुच्छेद 3 के उप अनुच्छेद(2) के तहत प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत ईआईए अधिसचूना जारी की है। ईआईए अधिसूचना, 2006 के प्रावधानों के तहत परियोजना के लिए निर्माण कार्य शुरू या जमीन को तैयार करने से पहले अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करना जरूरी है। केवल भूमि अधिग्रहण इसका अपवाद है। 

चरण
ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत पर्यावरणीय अनापत्ति के चार चरण हैं-जांच, कार्यक्षेत्र, जन परामर्श और मूल्यांकन।

परियोजनाएं
जिन परियोजनाओं के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र आवश्यक हैं उनमें पनबिजली परियोजनाएं, तापविद्युत परियोजनाएं, परमाणु बिजली परियोजनाएं, कोयला और गैर कोयला उत्पादों से संबंधित खनन परियोजनाएं, हवाई अडडे, राजमार्ग, बंदरगाह, सीमेंट, पल्प एंड पेपर, धातुकर्म आदि जैसी औद्योगिक परियोजनाएं शामिल हैं। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ए श्रेणी की परियोजनाओं के लिए विनियामक प्राधिकरण है जबकि राज्य एवं संघशासित स्तरीय पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण अपने अपने राज्यों और संघशासित क्षेत्रों की बी श्रेणी की परियोजनाओं के लिए विनियामक प्राधिकरण हैं। अबतक 23 राज्यों के लिए 22 राज्यसंघशासित पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण अधिसूचित किए गए हैं। उनमें पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मेघालय, कर्नाटक, पंजाब, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, राजस्थान और दमन एवं दीव शामिल हैं।

विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी)
ईएसी बहुविषयक क्षेत्रीय समितियां होती हैं जिसमें विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ होते हैं। इनका गठन क्षेत्र विशेष की परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिए ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत किया जाता है। ये अपनी सिफारिशें देती हैं। 

शीघ्र फैसले के लिए कदम
ईआईए अधिसूचना, 2006 जारी होने के बाद पर्यावरणीय मूल्यांकन के लिए परियोजनाओं की बाढ अा गयी। शीघ्र निर्णय के लिए कई कदम उठाए गए जिनमें लंबित परियोजनाओं की स्थिति की सतत निगरानी, अधिकाधिक परियोजनाओं पर विचार के लिए विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की लंबी बैठकें, प्रक्रिया को सुसंगत बनाना तथा परियोजना स्थिति को आम लोगों के लिए उसे वेबसाइट पर डालना आदि शामिल हैं। 

ईसी के लिए समय सीमा
ईआईए अधिसूचना, 2009 पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए 105 दिनों की समय सीमा तय करती है जिनमें से 65 दिन ईएसी द्वारा मूल्यांकन के लिए तथा 45 दिन जरूरी प्रक्रिया एवं फैसले से अवगत कराने के लिए होते हैं। 

2006 की ईआईए अधिसूचना में दिसंबर, 2009 में संशोधन किया गया था ताकि प्रक्रिया को और आसान एवं सुसंगत बनाया जा सके। 

प्रमोद ताम्बट

दिवाली आ गई है। लच्छूराम बेहद टेन्शन में आ गए हैं, अब बत्तीसी निपोरकर खुश होना पडे़गा। दिवाली चूँकि थोकबंद खुशियों का पारम्परिक त्योहार है, इन्हें अपनी हर वक्त तनी-तनी रहने वालीं चेहरे की मास-पेशियों को ढीला छोड़कर, जबरन पाँच सौ वाट के बल्ब सा जगमगाना पडे़गा। उनकी निजी प्रगतिशीलता की विरोधी यह असंगत बात उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं। ‘‘काहे को खुश हों.......! क्यों निपोरें अपनी पीली दंतपक्ति ! क्या बारात निकल रही है हमारी!’’
    परम्परा है, पुरखों के कंधे पर सवार होकर सदियों से चली आ रही है। लाख दुःखों के बावजूद दिवाली खुशियों का त्योहार रहता चला आया है, बाप-दादे भी यही मानते चले आए  हैं........ चाहे जो हो परम्परा तो निभाना ही है........ हो लो थोड़ा सा खुश, तुम्हारे बाबा का क्या जाता है......! घरवाली लच्छूराम को समझाती हैं, मगर लच्छूराम की भी अपनी परम्पराएँ है, हमेशा धनुष की प्रत्यंचा सा तना रहना, कोई उँगली मार दे तो ‘टंकार’ और देते हैं-‘‘दें क्या रैपट खैंच के अभी!’’
    ‘कू’ कहें, ‘सू’ कहें, उनका तर्क है-‘‘राम का वनवास खत्म हुआ, राम ने लंका फतह की, राम को सीता मिली, राम अयोध्या लौटे, राम को गद्दी मिली......., तो हम क्यों खुश होवें ? क्यों घर की पुताई करवाएँ ? दफ्तर से चार दिन की छुट्टी लेकर पूरे घर का अटाला बाहर निकालें, फिर उसकी चौकीदारी करें, फिर पुताई वालों की चौकीदारी करें, अगले साल तक शर्तिया फिर गंदा होने के लिए पूरे घर में व्हाइटवाश-डिस्टेंपर, पेंट-सेंट करवाएँ, फिर फर्श साफ करते फिरें ! बैठेठाले, बिलावजह हज़ारों रुपए का चूना लगवा लें......, ऐई, पागल कुत्तों ने काटा है क्या ?’’
    ‘‘चलो पुताई मत करवाओ, खुश भी मत हो, दिवाली है, थोड़ा मुँह मीठा करने की व्यवस्था ही कर लो........!’’
    ‘‘क्यों करलें! शादी हो रहीं है क्या हमारी ? दिवाली है तो गाँठ की जमा पूँजी बनियों को दे आएँ ! जबरन सरकार पर घी, तेल, शक्कर का लोड़ बढ़ाएँ ! बेसन-मैंदे के फालतू आयटम खाएँ, पेट खराब करवाएँ। नकली मावा बनाने वालों को बढ़ावा दें, मरें। वैसे ही आजकल मोटापा, बी.पी.,शुगर, हायपरटेन्शन, गठिया, बवासीर सौ बीमारियाँ जी का जंजाल बनी हुई हैं, ये फालतू नमकीन-मिठाइयाँ खा-खिलाकर बिलावजह मुसीबत मोल ले लें। क्या डॉक्टर ने कहा है कि उल्टा-सीधा खाओ, और हमारी इन्कम बढ़ाओ, क्योंकि दिवाली है। यह भी कोई बात हुई, पाँच हज़ार साल पहले कोई बात हो गई, तो हम आज डालडा-घी का लड्डू खाएँ और बीमार पड़े। यह कहाँ की समझदारी है।’’
     ‘‘चलो, न मीठे बनो, ना मीठा खिलाओ, दो-एक जोड़ी पेंट-बुश्शर्ट ही न हो तो रेडीमेड खरीद लाओ बाज़ार से। नहा-धोकर नेक पहन लोगे तो अच्छे लगोगे।’’
    ‘‘क्यों पहने ? क्या घोड़ी पर चढ़ना है हमें ! अलमारी भरी पड़ी है कपड़ों से, मगर फिर भी नए कपड़ों का ढेर लगा लें ! अरे बाज़ार अगर कपड़ों से पटा पड़ा है तो क्या सबरा उठाकर घर ले आएँ ! दिवाली ना हुई कपड़ों का राष्ट्रीय एक्सपो हो गया। इसलिए तो कोई हाड़ तोड़ कमा नहीं रहे कि दिवाली के बहाने कपड़ा कंपनियाँ हमारे कपड़े उतार लें। दिवाली है तो क्या लूटने-ठगने, चौगूने दाम पर कपड़ा बेचकर हमारा दीवाला निकालने की छूट मिली हुई है व्यापरियों को ? क्यों जाएँ हम अपना गला कटवाने, क्या पुराना पजामा पहनकर दिवाली नहीं मनती ?’’
    ‘‘चलो कुछ मत पहनो, नंगे बैठे रहो। बच्चों के लिए सौ-पचास रुपए के फटाखे ही खरीद लाओ.........!’’
    ‘‘पटाखे ! क्या हमारी बारात में आतीशबाजी होने वाली है ! तुम्हारे इन राकेटों बम-पटाखों, सीटियों से सूराख हो गया है आसमान में, कुछ होश है ? ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया मरी जा रही है और हम, अकेले एक दिवाली के दिन इतने आतीशी हो जाएँगे कि पूरा ब्रम्हांड भट्टी हो जाए। इस कदर पटाखा चलाऐंगे कि दूसरे ग्रह पर बैठा ‘जंतु’ भी बहरा हो जाए। पर्यावरण पर्यावरण चिल्ला-चिल्लाकर लोग मरे जा रहे हैं, और हम पर्यावरण वालों की बरसों की मेहनत पर एक घंटे में ‘टेंकरों’ पानी फेर दें। क्या ज़रूरी है कि लंका ध्वंस के समय जितना पर्यावरण प्रदूषित हुआ होगा उतना ही अब भी किया जाए ! ऐसी खुशी किस काम की ? उससे तो अच्छा है दुःखी बने घर में बैठे रहो।’’
    ‘‘चलो, कुछ मत करों। झिलमिल झिलमिल बिजली की दो चाईनीज़ झालरें ही दरवज्जे पर लटका दो। लक्ष्मी जी को पता चले कि इस घर में भी कोई रहता है !’’
    ‘‘क्यों टाँग दें ? क्या बारात आ रही है किसी की इस घर में! बिजली क्या यूनिट मिल रही है पता है ? लूट रहे हैं बिजली विभाग वाले, जैसे इनके बाप का माल हो। और फिर सुना नही ‘सेव एनर्जी’। हम दिवाली की एक रात को ही अगर सारी एनर्जी खर्च कर देंगे तो फिर साल भर क्या भाड़ झोकेंगे ? वो टाँड पर पिछले के पिछले साल के चार दीये पड़े हुए हैं, उन्हें धो-पोछकर, सोयबीन का तेल डालकर दरवज्जे के दोनों ओर एक-एक रख देंगे, एक कीचन की खिड़की पर और एक सन्डास में। हो गई रोशनी। लक्ष्मी जी जहाँ से आना चाहे आवें, कृपा करना है, करें, ना मन हो तो टाटा-बिड़ला-अम्बानी के घर जावें, हमें मतलब नहीं।’’
    घरवाली लच्छूराम के रूखेपन से नाराज़ होकर अपने काम में लग गई, बड़बड़ाती जा रही  है-‘‘और क्या, हम तो जे बैठे अपना मुँह सुजाकर, न लेना एक ना देना दो। हमें तो कछु कहना ही नइये, ज्यादा कुछ कहेंगे तो कहोगे- ‘बंद करती हो या नहीं ये दिवाली दिवाली का तमाशा, या दें कान के नीचे खैंचकर.....!’ यही है तुमाई 'प्रगतशीलता', यही है तुमाई समझदारी.......आग लगे ऐसे समझदारी को। काहे को तो रसोई का तेल दीयों में खर्च करवा रहे हो, कोई लक्ष्मी जी तुमाए लाने तो बैठी नइये उते उल्लू पे ? बिलावजह भभक रहे हो। अपने दिमाग की आग से लगे हो दुनिया को भस्म करने। आग लगे तुमाई ऐसी पढ़ाई लिखाई को जो दो मिनट खुश भी होने न दे। अरे, बच्चों की खुशी के लिए थोड़ा खुश होकर, मीठा खाकर, दो पटाखा चलाकर दिवाली मनाने से क्या तुमाई ये थोथी 'प्रगतशीलता' पाताल में चली जाएगी ?’’


शेष नारायण सिंह 
आर एस एस के एक बड़े नेता पर अजमेर के धमाकों में शामिल होने की साज़िश में मुक़दमा चलेगा. हालांकि इस बात में कीई को शक़ नहीं था कि आर एस एस हिंसा को राजनीतिक का हथियार बनाता रहता है लेकिन आम तौर पर माना जाता है कि उनके बड़े नेता कभी भी सीधे तौर पर किसी भी हमले की साज़िश में शामिल नहीं होते. पूरे देश में आर एस एस के अधीन काम करने वाले करीब साढ़े तीन हज़ार ऐसे संगठन हैं जो सक्रिय रूप से संघी एजेंडे को लागू करने के लिए काम करते हैं . आम तौर जिन कामों में आपराधिक मुक़दमा चल सकता हो , उसमें आर एस एस के बदेनेता खुद शामिल नहीं होते. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि केंद्र में सरकार बना लेने के बाद आर एस एस वाले यह संकोच भी भूल गए हैं . गुजरात का नरसंहार, मालेगांव बम विस्फोट, हैदराबाद के धमाके कुछ ऐसे काम हैं जिनमें आर एस एस के वरिष्ठ नेता खुद ही शामिल पाए गए हैं .मालेगाँव की मस्जिद में बम विस्फोट करने की अपराधी ,साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उनके गिरोह के बाकी आतंकवादियों के ऊपर महाराष्ट्र में संगठित अपराधों को कंट्रोल करने वाले कानून, मकोका के तहत मुक़दमा चलाया जायेगा. मालेगांव के धमाकों के गिरोह को उस वक़्त के महाराष्ट्र के एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के प्रमुख, शहीद हेमंत करकरे ने पकड़ा था . जब करकरे ने हिंदुत्ववादी संगठनों के आंतंकवादी गिरोहों को पकड़ना शुरू किया तो आर एस एस और उस से सम्बद्ध लोगों में हडकंप मच गया था. गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी घबडा गए थे और हेमंत करकरे को हटाने की माग को लेकर बहुत सक्रिय हो गए थे. बाकी देश में भी संघी लोग खासे परेशान हो गए थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था और हेमंत करकरे को मुंबई हमलों के दौरान उनके दुश्मनों ने मार डाला. शहीद हेमंत करकरे की मौत के बाद हिन्दुत्ववादी आतंकवादियों को थोडा सांस लेने का मौक़ा मिल गया वरना स्वर्गीय करकरे के काम की रफ़्तार को देख कर तो लगता था कि बहुत जल्दी वे हिन्दुत्ववादी संगठनों के आतंक को काबू में कर लेगें. 

साध्वी प्रज्ञा और उनके साथियों की गिरफ्तारी भारतीय न्याय प्रक्रिया के इतिहास में एक संगमील माना जाएगा . प्रज्ञा ठाकुर और ले कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित की मालेगांव धमाकों के मामले में गिरफ्तारी ने देश की एकता और अखंडता की रक्षा के मामले में एक अहम भूमिका निभाई थी. मुसलमानों के खिलाफ चल रही संघी ब्रिगेड की मुहिम के तहत संघी भाई कहते फिरते थे कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान होते हैं . जब इन संघी आतंकवादियों को पकड़ा गया तो संघ का मुसलमानों के खिलाफ जारी प्रचार रुक गया था. और एल के आडवाणी सहित सभी संघी जीव बैकफुट पर आ गए थे. दर असल संघी आतंकवाद से भी बड़े एक नए किस्म को भी शहीद हेमंत करकरे ने देश के सामने ला कर खड़ा कर दिया था . मालेगांव धमाकों के अभियुक्तों में ले कर्नल श्रीकांत पुरोहित के शामिल होने के बाद यह पता लग गया था कि संघी आतंकवाद ने मिलटरी इंटेलिजेंस को भी नहीं बख्शा है और अब आतंकवाद ने सेना में भी घुसपैठ कर ली है .. अब बम्बई हाई कोर्ट के आदेश के बाद उन सभी ग्यारह आतंकवादियों पर मकोका कोर्ट में मुक़दमा चलाया जाएगा जिन्हें स्व हेमंत करकरे ने पकड़ा था. इन ग्यारह आतंकवादियों में ए बी वी पी का एक नेता, अभिनव भारत का एक नेता, और सेना का एक अवकाश प्राप्त मेजर शामिल हैं . कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर तो मुख्य अभियुक्त हैं ही. 

गिरफ्तार होने के बाद मीडिया में मौजूद अपने साथियों की मदद से इस गिरोह के मालिकों ने बहुत हल्ला गुल्ला मचाया लेकिन केस इन मज़बूत था कि किसी की एक नहीं चली. शुरू में तो यह लगा था कि यह अति उत्साही टाइप कुछ लोगों की साज़िश भर है लेकिन बाद में जब अजमेर के धमाकों में भी आर एस एस के फुल टाइम कार्यकर्ता और बड़े नेता ,इन्द्रेश कुमार पकडे गए तो साफ़ हो गया कि आर एस एस ने बाकायदा आतंकवाद के लिए एक विभाग बना रखा है. अब बहुत सारे आतंकी मामलों में आर एस और उस से जुड़े संगठनों के शामिल होने की बात के उजागर हो जाने के बाद आर एस एस के नेता लोग घबडाए हुए हैं . अब उन्होंने अपने लोगों को सख्त हिदायत दे दी है कि आतंकवादी गतिविधियों से दूर रहें .यह सख्ती पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िम्मेदार संघ प्रचारकों से सी बी आई की पूछताछ के बाद अपनाई गयी है. कानपुर में अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय से दिनों सी बी आई ने कड़ाई से पूछ ताछ की थी. अशोक बेरी आर एस एस के क्षेत्रीय प्रचारक हैं और आधे उत्तर प्रदेश के इंचार्ज हैं . वे आर एस एस की केंदीय कमेटी के भी सदस्य हैं .अशोक वार्ष्णेय उनसे भी ऊंचे पद पर हैं . वे कानपुर में रहते हैं और प्रांत प्रचारक हैं .. उनके ठिकाने पर कुछ अरसा पहले एक भयानक धमाका हुआ था. बाद में पता चला कि उस धमाके में कुछ लोग घायल भी हुये थे. घायल होने वाले लोग बम बना रहे थे. सी बी आई के सूत्र बताते हैं कि उनके पास इन लोगों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के पक्के सबूत हैं और हैदराबाद की मक्का मस्जिद , अजमेर और मालेगांव में आतंकवादी धमाके करने में जिस गिरोह का हाथ था, उस से उत्तर प्रदेश के इन दोनों ही प्रचारकों के संबंधों की पुष्टि हो चुकी हैं . इसके पहले आर एस एस ने तय किया था कि अगर अपना कोई कार्यकर्ता आतंकवादी काम करते पकड़ा गया तो उस से पल्ला झाड़ लेगें . इसी योजना के तहत अजमेर में २००७ में हुए धमाके के लिए जब देवेन्द्र गुप्ता और लोकेश शर्मा पकडे गए थे तो संघ ने ऐलान कर दिया था कि उन लोगों की आतंकवादी गतिविधियों से आर एस एस को कोई लेना देना नहीं है . वह काम उन्होंने अपनी निजी हैसियत में किया था और नागपुर वालों ने उनके खिलाफ चल रही जांच में पुलिस को सहयोग देने का निर्णय ले लिया था. लेकिन अब वह संभव नहीं है . क्योंकि अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय कोई मामूली कार्यकर्ता नहीं है , वे संगठन के आलाकमान के सदस्य हैं . वे उस कमेटी की बैठकों में शामिल होते हैं जो संगठन की नीति निर्धारित करती है . उनसे पल्ला झाड़ना संभव नहीं है. इसके कारण हैं . वह यह कि अगर इनके साथ आर एस एस की लीडरशिप धोखा करेगी तो कहीं यह लोग बाकी लोगों की पोल-पट्टी भी न खोल दें . इन्द्रेश कुमार से पल्ला झाड़ना आर एस एस के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि वे उनकी संगठन के सर्वोच्च पदाधिकारियों में से एक हैं . उनके ऊपर लगी चार्जशीट से यह साबित हो गया है कि आर एस एस की टाप लीडरशिप आतंकवाद की राजनीति पर ही चलती है


फ़िरदौस ख़ान
हरित क्रांति के लिए अग्रणी हरियाणा को कृषि के क्षेत्र में सिरमौर बनाने में यहां के किसानों की अहम भूमिका है। यहां के किसानों ने न केवल खेतीबाड़ी में नित नए प्रयोग किए हैं, बल्कि तकनीकी क्षेत्र में भी अपनी योग्यता का परचम लहराया है। ऐसे ही एक किसान हैं यमुनानगर ज़िले के गांव दामला के धर्मवीर, जिन्होंने बहु उद्देशीय प्रसंस्करण मशीन बनाकर इस क्षेत्र में एक नई क्रांति को जन्म दिया है। इस मशीन से जूसर, ग्राइंडर, कुकर और मिक्सर का काम एक साथ लिया जा सकता है।

जड़ी-बूटियों की खेती करने वाले धर्मवीर बताते हैं कि उनका कारोबार जड़ी-बूटियों का है। वह अपने खेतों में उगी औषधियों को तैयार करके बाज़ार में बेचते हैं। औषधियों को पीसना, उनका जूस और अर्क़ निकालना बहुत मेहनत का काम है और इसमें समय भी ज्यादा लगता है। साथ ही लेबर का ख़र्च बढ़ने से लागत भी ज्यादा हो जाती है। इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न ऐसी कोई मशीन बनाई जाए, जिससे उनका काम आसान हो जाए। उन्होंने वर्ष 2006 में बहु उद्देशीय प्रसंस्करण मशीन बनाई। उन्होंने क़रीब एक साल तक इस मशीन से जड़ी-बूटियों , गुलाब, ऐलोवेरा (धूतकुमारी), आंवला, जामुन, केला और टमाटर की प्रोसेसिंग करके विभिन्न उत्पाद तैयार किए। गुलाब का अर्क़, केले के छिलके का अर्क़, जामुन का जूस और जामुन की गुठली का पाउडर भी इससे तैयार किया। मशीन में जड़ी-बूटियों और फल-सब्ज़ियों की प्रोसेसिंग करके पांच-छह उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। इन मशीन से एलोवेरा और आंवले की जैली, जूस, शैंपू, चूर्ण, तेल और मिठाई बना सकती है।

उनका कहना है कि छह फ़ीट ऊंची इस मशीन की क़ीमत एक लाख 35 हज़ार रुपये रखी गई है। इस मशीन का कुकर, मिक्सर और ग्राइंडर एक घंटे में क़रीब 150 किलोग्राम जड़ी-बूटियों और फल-सब्ज़ियों की प्रोसेसिंग करने में सक्षम है। मशीन में तीन टैंक लगे हैं, एक बड़ा और दो छोटे टैंक। बड़े टैक्स से जुड़े एक छोटे टैंक में अरंडी का तेल भरा होता है। जड़ी-बूटियां और फल-सब्जियां पकाते समय जलते नहीं हैं, क्योंकि अरंडी तेल से भरा टैंक अतिरिक्त ताप को सोख लेता है। मशीन को चलाने के लिए दो एचपी की मोटर लगी है। इस मशीन को चलाने के लिए पांच-छह लोगों की ज़रूरत होती है। यह मशीन छोटी फूड प्रोसेसिंग इकाइयों के लिए बड़ी उपयोगी हो सकती है। यह मशीन हल्की होने के काण इसे कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2006 में ही उनकी इस मशीन को फूड प्रोडक्ड ऑर्डर (एफपीओ) 1955 के तहत लाइसेंस मिल गया था। इसके अलावा अहमदाबाद के नेशनल इन्नोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) ने भी इस मशीन को उपयोगी माना है। उन्होंने सबसे पहले करनाल के नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीटयूट (एनडीआरआई) में आयोजित किसान मेले में इस मशीन को प्रदर्शित किया था, जहां इसे बहुत सराहा गया। इसके बाद वह हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों में भी इस मशीन का प्रदर्शन करने लगे। वह बताते हैं कि वर्ष 2008 से इस मशीन की कॉमर्शियल बिक्री कर रहे हैं और अब तक 25 मशीनें बेच चुके हैं। उनका कहना है कि यह मशीन हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल सरकार के बागवानी विभागों ने ख़रीदी है, ताकि फूड प्रोसेसिंग से जुड़े उद्यमियों  के सामने इसे प्रदर्शित किया जा सके। वह बताते है कि राज्य में फूड प्रोसेसिंग इकाई संचालित करने वाले एक उद्यमी ने यह मशीन लगाई है।

उन्होंने 20 जून को नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित एसोचैम हर्बल इंटरनेशनल एक्सपो मेले में भी इस मशीन को प्रदर्शित किया था। इसमें आयुष विभाग, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय, राष्ट्रीय औषधि पादक विभाग के दिल्ली, छत्तीसगढ़, गुजरात, बिहार, सिक्किम, पंजाब और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के किसानों व कंपनियों ने अपने-अपने उत्पादों को प्रदर्शित किया। उन्होंने हरियाणा के बाग़वानी विभाग की तरफ़ से मेले का प्रतिनिधित्व किया। इसमें उनके द्वारा निर्मित प्राकृतिक उत्पादनों को प्रदर्शित किया गया। उसके द्वारा निर्मित प्राकृतिक उत्पादनों को देखकर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री दिनेश त्रिवेदी इतने प्रभावित हुए कि कार्यक्रम का सबसे ज्यादा समय हरियाणा के इस स्टॉल पर व्यतीत किया। किसान द्वारा तैयार किए गए हर्बल उत्पादों में गहन रुचि दिखाई। उन्होंने कहा कि यह हमारे देश का ही नहीं, बल्कि विश्व का भविष्य है। धर्मवीर ने बताया कि मेले में आने वाले देश-विदेश से प्रतिनिधि, कंपनियों व अधिकारियों ने उसके द्वारा निर्मित प्रोसेसिंग मशीन में ख़ासी दिलचस्पी ली। उन्होंने इस मशीन को किसानों के लिए 'वरदान' बताते हुए कहा कि इससे किसानों की आर्थिक दशा सुधारने में मदद मिलेगी। इस उपलब्धि के लिए धर्मवीर को पिछले साल 18 नवंबर को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सम्मानित किया था। 


के. परमेश्वरम
किसी भी तीर को यदि लक्ष् बनाकर छोड़ा जाए तो निश्चत रूप से वह सीधा, सुरक्षि और यकीनी तौर पर इच्छि निशाने पर जा लगेगा। इसी प्रकार दूरसंचार मंत्रालय के तहत डाक विभाग ने डाक सेवाओं को तीव्रगामी, सीधे और यकीनी तौर पर लक्ष् तक पहुंचाने के उद्देश् से प्रोजेक् एरोकी परिकल्पना की और इस परियोजना को लागू किया। इस परियोजना के फलस्वरूप ग्राहक डाक सेवाओं के स्तर में नया फर्क महसूस करेंगे।
 तमिलनाडु में अरियालूर देश का पहला डाकघर है जहां प्रोजेक् एरोपहली बार लागू किया गया। दूरसंचार राज् मंत्री श्री डी. राजा ने अगस् 2008 में इस परियोजना का शुभारंभ किया।
प्रोजेक् एरो डाक सेवाओं के एकीकृत आधुनिकीकरण का प्रयास है। इसका उद्देश् ऐसा आधुनिकीकरण है जो डाकघरों द्वारा उपलब् कराई जाने वाली सेवाओं में नज़र आए, महसूस हो और डाक सेवाओं में दक्षता आए। इस परियोजना का उद्देश् डाक विभाग की सेवाओं को सुरक्षि और भरोसे के साथ सीधे लक्ष् तक पहुंचाना भी है। इस परियोजना का नाम प्रोजेक् एरो इसीलि रखा गया है क्योंकि तीर सीधा छोड़ा जाए तो निशाने पर ही लगता है।
परियोजना के उद्देश् हासि करने के लि इसे दो खंडों में विभाजि किया गया है। पहले खंड के तहत डाक सेवाओं की ब्रैंडिन्, आधुनि सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग, मानव संसाधनों का एकीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास किया जा रहा है। यह खंड मूल रूप से डाक सेवाओं को देखने और महसूस करने के मामले में अच्छी बनाने का प्रयास है।
 इस परियोजना के दूसरे पहलू या खंड का उद्देश् डाक सेवाओं के सभी प्रमुख क्षेत्रों में सुधार करना है। इस प्रकार इसका लक्ष् डाक सेवाओं का आधुनिकीकरण करना तथा -मेल एवं बचत बैंक कार्यों की तरह ज्यादा प्रभावी सेवा बनाना है। प्रोजेक् एरो का मकसद डाक सेवा के स्तर में सुधार करके उन्नत ग्राहक सेवा बनाना है।
इस परियोजना के अंग के रूप में अरियालूर सहि ज्यादातर डाकघरों में डाक घर और उसके सेवा क्षेत्र, ग्राहकों, बैंकिंग विवरण इत्यादि के बारे में बुनियादी दस्तावेज तैयार करने की प्रक्रिया जारी है। ये डाकघर परियोजना के पहले चरण में शामि कि गए हैं। इस खंड के तहत भवनों एवं फर्नीचर जैसे नए और बेहतर बुनियादी ढांचे का भी विकास किया जा रहा है। कर्मचारियों को प्रशिक्षि करना और पर्याप् हार्डवेयर का विकास प्रोजेक् एरो के अन् प्रमुख घटक हैं।
शुरू में प्रोजेक् एरो के प्रायोगि चरण के तहत पचास डाकघरों का चयन किया गया। दूसरे चरण में 450 डाकघरों में यह परियोजना लागू की जाएगी। अंति चरण में 4500 डाकघरों का आधुनिकीकरण करने का इरादा है। इस तरह अंति चरण तक देश के सभी भाग इस परियोजना के दायरे में जाएंगे। इस परियोजना को अगले दो वर्षों में ही 4500 डाकघरों में लागू करने का लक्ष् रखा गया है। दक्षिणी क्षेत्र में अब तक 33 डाकघरों में यह परियोजना लागू की गई है। परियोजना के दायरे में लाने के लि 33 और डाकघरों की पहचान की गई है।
उल्लेखनीय है कि प्रोजेक् एरो ग्रीन पहल है। इस परियोजना का उद्देश् काग़ज के उपयोग को न्यूनतम करना है। सभी आंतरि पत्र व्यवहार सिर्फ -मेल के जरि होने के कारण इस परियोजना से पेड़ों और हरियाली के संरक्षण में मदद मिलेगी।
प्रोजेक् एरो का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें कार्यक्रम की विशेषता के स्वतंत्र आकलन की अनुमति है। इसके लि स्वतंत्र रेटिन् एजेंसी को पांच रेटिन् फार्मूले के इस्तेमाल से प्रोजेक् एरो की सेवाओं की रेटिन् करने के लि अधिकृत किया गया है। कार्यक्रम के तहत श्रेष् उपलब्धि हासि करने वालों को उपयुक् पुरस्कार दिया जाएगा और उनकी सेवाओं का सम्मान किया जाएगा।
प्रोजेक् एरो का अंति उद्देश् डाकघरों की सेवाओं के एकीकरण के लि कार्यकारी मॉडल बनाना है। इस परियोजना से ग्राहक डाक सेवाओं के बारे में निश्चि रूप से कुछ नया महसूस करेंगे।


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