अतुल मिश्र 
हिंदी पत्रकारों की पोज़ीशन उस आम आदमी की तरह होती है, जो अपने घरेलू बजट के लिए, स्वतः उत्पन्न हुई महंगाई को दोष ना देकर अपने पूर्वजन्म के किन्हीं पापों को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं. हिंदी-पत्रकारिता का इतिहास बताता है कि शुरूआती दौर में लोगों ने कैसे अपने घर के बर्तन बेचकर अखब़ार निकाले थे और बाद में कैसे वे एक बड़े बर्तन-निर्यातक बन गए ? वे लोग बिना खाए तो रह सकते थे, मगर अखब़ार बिना निकाले नहीं. हिंदी के अखब़ार पढ़ना तब आज की ही तरह बैकवर्ड होने की पहचान थी और लोग अखब़ार खुद ना खरीदकर चने या मूंगफलियां बेचने वालों के सौजन्य से पढ़ लिया करते थे. खुद को विद्वान् मानने वाले कुछ विद्वान् तो यहां तक मानते हैं कि हिंदी के अखबारों में रखकर दिए गए ये चने या मूंगफलियां तब हिंदी-पत्रकारिता को एक नयी दिशा दे रहे थे. इनका यह योगदान आज भी ज्यों का त्यों बरकरार है और अभी भी सिर्फ़ नयी दिशाएं ही देने में लगा हुआ है.
    हिंदी का पहला अखब़ार ' उत्तंग मार्तंड ' जब निकाला गया, तब लोगों ने यह सोचा भी नहीं होगा कि आगे चलकर हिंदी-पत्रकारिता का हश्र क्या होगा ? उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि इसकी आड़ में ' प्रेस-कार्ड ' भी धड़ल्ले से चल निकलेंगे और उन लोगों को ज़ारी करने के काम आयेंगे, जो उन्हें अपनी दवाओं के विज्ञापन दे रहे हैं और समाचार लिखना तो अलग, उनको पढ़ पाना भी वे सही ढंग से नहीं जानते होंगे. हिंदी अखबारों के रिपोर्टर या एडीटर पत्रकारिता के स्तम्भ नहीं माने जायेंगे, बल्कि ये वे लोग होंगे, जो मर्दाना ताक़त की दवाइयों के विज्ञापन देकर देश को भरपूर सुखी और ताक़तवर बनाने में लगे हैं. हिंदी-पत्रकारिता को एक नयी दिशा देकर वे आज भी उसकी दशा सुधार रहे हैं और जब तक उनके पास ' प्रेस कार्ड ' हैं, वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि हिंदी-पत्रकारिता की जो दशा है, वो सुधरी रहे.
हमसे कल कहा गया कि ' हिंदी-पत्रकारिता दिवस ' पर ' पोज़ीशन ऑफ हिंदी जर्नलिज्म ' विषय पर बोलने के लिए इंग्लिश में एक स्पीच तैयार कर लीजियेगा और उसे कल एक भव्य समारोह में पढ़ना है आपको, तो हम खुद को बिना अचंभित दिखाए, अचंभित रह गए. हम समझ गए कि ये लोग इंग्लिश जर्नलिस्ट हैं और हिंदी जर्नालिस्म की ख़राब हो चुकी पोज़ीशन पर मातमपुर्सी की रस्म अदा करना चाहते हैं. हिंदी-पत्रकारिता में चाटुकारिता का बहुत महत्त्व है और इसी की माबदौलत बहुत से लोग तो उन स्थानों पर पहुंच जाते हैं, जहां कि उन्हें नहीं होना चाहिए था और जिन्हें वहाँ बैठना चाहिए था, वे वहाँ बैठे होते हैं, जहां कोई शरीफ आदमी बैठना पसंद नहीं करेगा. लेकिन क्या करें, मज़बूरी है. हिंदी के अखब़ार में काम करना है तो इतना तो बर्दाश्त करना ही पड़ेगा. हिंदी के पत्रकार को पैदा होने से पूर्व ही यह ज्ञान मिल जाता है कि बेटे, हिंदी से प्यार करना है  तो इतना तो झेलना ही पड़ेगा.

हिंदी के किसी पत्रकार को अगर आप ध्यान से देखें, तो ऐसा लगेगा जैसे उसके अन्दर कुछ ऐसे भाव चल रहे हों कि " मैं इस दुनिया में क्यों आया या आ ही गया तो इस आने का मकसद क्या है या ऐसा आख़िर कब तक चलता रहेगा ? " यह एक कड़वा सच है जिस शोषण के ख़िलाफ अक्सर हिंदी के अखब़ार निकलने शुरू हुए, वही अखब़ार प्रतिभाओं का आर्थिक शोषण करने लग जाता है और फिर वे प्रतिभाएं अपनी वेब साइटें बनाकर अपने घर की इनकम में इज़ाफा करती हैं.  क्या करें, हिंदी को इस हिंदुस्तान में पढ़ना ही कितने लोग चाहते हैं ? जो पढ़ना चाहते हैं, उनकी वो पोज़ीशन नहीं कि वे पढ़ सकें. इसलिए हिंदी की दुर्दशा के लिए ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ़ हिंदी ही दोषी हो, विज्ञापन देकर ' प्रेस कार्ड ' हासिल करवाने वालों से लेकर सब वे लोग दोषी हैं, जो हमें हिंदी-पत्रकारिता पर अंग्रेजी में स्पीच देने के लिए निमंत्रित करने आये थे.

फ़िरदौस ख़ान

देश की जनता को क़रीब साढ़े  चार साल पहले मिले सूचना के अधिकार ने काफ़ी  राहत दी है। इस सुविधा के चलते जहां लोगों के कामकाज होने लगे हैं, वहीं ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां सूचना के अधिकार के तहत लोगों को सूचना न मांगने या मांगी गई सूचना का आवेदन वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया है। हैरत की बात तो यह भी है कि भ्रष्टाचार से जनता को निजात दिलाने की गर्ज से शुरू किए गए इस कानून के तहत सूचना देने के लिए रिश्वत मांगने तक की शिकायतें मिली हैं। इन्हीं मुद्दों से संबंधित हरियाणा में आरटीआई से जुड़े कुछ मामलों की बानगी देखिए-

  

एक मामला जो जनहित से जुड़ी जानकारी मांगने का है :

हरियाणा के शिक्षा विभाग में दायर सूचना के अधिकार आवेदन से जानकारी मिली है कि राज्य के लगभग 50 फ़ीसदी स्कूलों में मुख्याध्यापक नहीं हैं। मुख्याध्यापकों के 2004 पदों में से 984 पद रिक्त पड़े हैं। इनमें 607 पद हाईस्कूल और 377 पद मिडिल स्कूल के मुख्याध्यापकों के हैं। जीन्द निवासी सतपाल ने आरटीआई के तहत आवेदन कर शिक्षा विभाग से सरकारी स्कूलों के मुख्याध्यापकों के खाली पदों के बारे में जानकारी मांगी थी। शिक्षा विभाग के मुताबिक मुख्याध्यापकों के 75 फीसदी पद शिक्षकों को पदोन्नत करके भरे जाते हैं, जबकि 25 फीसदी मुख्याध्यापकों की सीधी नियुक्ति होती है। स्कूलों की यह हालत हाल ही में 426 मुख्याध्यापकों की नियुक्ति के बाद है, पहले स्थिति क्या होगी, सहज ही अन्दाजा  लगाया जा सकता है। मिडिल स्कूलों में 377 रिक्त पदों के अलावा 12 सौ अन्य मिडिल स्कूल ऐसे हैं, जिनमें मुख्याध्यापकों की कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि ये स्कूल शिक्षा विभाग के सभी मापदंडों पर खरे उतरते हैं। राज्य में शिक्षा के हालात का अंदाज़ा फ़तेहगढ़ जिले के गोरखपुर गांव के बालिका उच्च विद्यालय को देखकर लगाया जा सकता है। इस स्कूल को लगभग 7 महीने पहले मुख्याध्यापक नसीब हुआ है, वह भी 14 साल बाद। स्थानीय निवासियों और विधायक के दख़ल देने के बाद ही स्कूल को शिक्षक और हेडमास्टर मिल पाए। निकटवर्ती मोची और चोबारा गांव के स्कूलों की दशा भी बेहतर नहीं है। दोनों स्कूल बिना हेडमास्टर के चल रहे हैं। सूचना के अधिकार के ज़रिये इस खुलासे के बाद शिक्षा मंत्री राजन गुप्ता ने खाली पदों को भरने का आश्वासन दे दिया है। हालांकि उन्होंने माना है कि पिछले कई वर्षों से पदोन्नति से भरे जाने वाले पद अभी तक नहीं भरे गए हैं।



दूसरे मामले में सूचना मांगने पर नौकरी ही मिल गई :

आरटीआई से सिर्फ़ सूचना मिलती हो, ऐसा नहीं है। आरटीआई के तहत जवाब मांगने पर कार्रवाई तक होती है। ऐसा ही हुआ रेवाड़ी की सपना यादव के साथ। मामला गुडगांव ग्रामीण बैंक में प्रोबेशनरी अधिकारी की नियुक्ति से जुड़ा है। सपना ने भी इस पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसका चयन नहीं हो पाया। सपना नतीजे से संतुष्ट नहीं थी। इसलिए उसने आरटीआई के तहत आवदेन कर चयन प्रक्रिया से संबंधित सवाल पूछे। 7 दिसंबर 2007 को दाखिल आवेदन में सपना ने लिखित परीक्षा में अपनी मेरिट चयन के लिए साक्षात्कार और शैक्षणिक योग्यता के लिए जानकारी मांगी। सपना को उम्मीद थी कि उसका निश्चित तौर पर चयन हो जाएगा, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उसने इसका कारण्ा आरटीआई की मदद से जानना चाहा। आवेदन के जवाब में बैंक ने जानकारी दी कि मांगी गई सूचनाएं आरटीआई कानून के दायरे में नहीं आती। बैंक अधिकारियों ने कानून की धारा 8 (1) डी की आड़ लेकर सूचना देने से मना कर दिया। पहली अपील भी कोई जवाब नहीं मिला। बाद में सपना में राज्य सूचना आयोग और फ़िर केन्द्रीय सूचना आयोग में अपील की। सीआईसी ने अगस्त 2008 में मामले की सुनवाई की और सपना के पक्ष में फैसला सुनाया। आयोग ने बैंक को सभी सूचनाएं उपलब्ध कराने का आदेश दिया। दिलचस्प रूप से बैंक ने सूचना तो उपलब्ध नहीं कराई, लेकिन 11 सितंबर 2008 को सपना को प्रोबेशनरी अधिकारी के तौर पर नियुक्ति दे दी।





तीसरे मामले में सूचना देने के लिए रिश्वत मांगी गई :

हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं संरचनात्मक विकास निगम द्वारा आरटीआई आवेदनकर्ता एच. आर. वैश्य से मांगी गई सूचना मुहैया कराने के लिए 8 लाख रुपये की मांग की गई थी। वैश्य ने निगम द्वारा गुड़गांव के उद्योग विहार में उद्यमियों को आबंटित किए प्लॉट उसके बदले लिया गया शुल्क और क्षेत्र के विकास में खर्च की गई राशि का ब्यौरा मांगा था। इस पर निगम के लोक सूचना अधिकारी की तरफ से सूचना शुल्क के लिए 8 लाख 27 हजार रुपये की मांग की गई। बताया गया कि 4 लाख रुपये दो हजार प्लॉट के विवरण से संबंधित कागज़ों  के हैं। हर प्लॉट का विवरण 20 पेज में है। 4.27 लाख की राशि अन्य सूचनाओं के लिए मांगी गई। गौरतलब है हरियाणा में आवेदन शुल्क 50 रुपये और छायाप्रति शुल्क 10 रुपये प्रति पेज रखा गया है। आवेदनकर्ता ने निगम से सीडी में सूचना मांगी, लेकिन निगम के लोक सूचना अधिकारी जीवन भारद्वाज ने सीडी में सूचना देने से मना कर दिया और दलील दी कि बहुत से लोग उन्हें तंग करने के लिए सूचना के अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं। उनका कहना था कि वैश्य ने जो सूचना मांगी वो निगम के इतिहास की जानकारी मांगने के बराबर है। हम सीडी में सूचना नहीं दे सकते, क्योंकि सारा डाटा सीडी में देने योग्य नहीं है।



चौथे मामले में आरटीआई के तहत किया आवेदन वापस लेने का दबाव बनाया गया :

हिसार ज़िले के गांव सातरोड खास के निवासी नरेश कुमार सैनी द्वारा आरटीआई के तहत गांव की डिस्पेंसरी से संबंधित जानकारी मांगने के लिए किए गए आवेदन को वापस लेने का दबाव बनाया गया। उसने बताया कि गांव की सरकारी डिस्पेंसरी अकसर बंद पड़ी रहती थी। यहां न तो नियमित तौर पर डिस्पेंसर आता था और न ही यहां पर दवाइयां थीं। गांव में डिस्पेंसरी होने के बावजूद गांव के बीमार लोगों को इलाज के लिए शहर जाना पड़ता था। इसलिए नरेश कुमार सैनी ने गत 1 मई को आरटीआई के तहत आवेदन कर डिस्पेंसरी से संबंधित जानकारी मांगी। जब डिस्पेंसरी से जुड़े लोगों को इस बात का पता चला तो उन्होंने उससे आवेदन वापस लेने को कहा, लेकिन जब वह नहीं माना तो उन्होंने गांव के प्रभावशाली लोगों के साथ मिलकर पंचायत बुलाकर उसे आवेदन वापसे लेने को मजबूर कर दिया। पंचायत में प्रभावशाली लोगों ने उसे आश्वासन दिया कि डिस्पेंसरी की हालत को जल्द ही सुधार दिया जाएगा। पंचायत के दबाव के चलते नरेश कुमार सैनी को अपना आवेदन वापस लेना पड़ा, लेकिन इतना ज़रूर हो गया कि डिस्पेंसरी की हालत कुछ बेहतर हो गई।



काबिले-गौर है कि जागरूक नागरिकों ने आरटीआई के तहत आवेदन करके अपनी कई समस्याओं से निजात पा ली है। हिसार सहित हरियाणा के अन्य हिस्सों में पूजा स्थलों के पास बने शराब के ठेके जो बरसों के आंदोलन के बावजूद नहीं हटाए गए थे, वे आरटीआई के तहत किए गए आवेदनों के चलते रिहायशी इलाकों व पूजा स्थलों के पास से हटा दिए गए हैं। इसके अलावा गली-मोहल्लों की टूटी सड़कों की हालत भी सुधर गई है। आरटीआई कार्यकर्ता विजय गुप्ता का कहना है कि अगर लोग आरटीआई के अपने अधिकार का इस्तेमाल करें तो इससे भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है, क्योंकि जानकारी के अभाव के कारण ही लोग प्रशासनिक लालफीताशाही का शिकार होते हैं। बस जरूरत है अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करने की।



हरियाणा के मुख्य सूचना आयुक्त जी. माधवन का कहना है कि सूचना के अधिकार कानून के तहत अब लोगों को सूचना प्राप्त करने के लिए विभागों के चक्कर नहीं लगाने होंगे। जल्दी ही प्रदेश के सभी जिलों में आरटीआई काउंटर खोले जाएंगे। किसी भी विभाग से संबंधित सूचना लेने के लिए इन काउंटरों पर आवेदन किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि हरियाणा सूचना आयोग ने राष्ट्रीय सूचना आयोग से इसकी सिफारिश की थी। इस पर राष्ट्रीय सूचना आयोग ने हर जिले में स्थित ई.दिशा केंद्र में अलग से आरटीआई काउंटर खोलने की मंजूरी दी है।



उन्होंने कहा कि यह कानून सरकारी कामों में पारदर्शिता लाने के लिए लागू किया गया था और पिछले चार साल से सरकार इसे लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयासरत है। इसके बावजूद अधिकांश लोगों को यह पता नहीं होता कि संबंधित जानकारी किस विभाग से लेनी है और उसका कार्यालय कहां है। इस समस्या को ध्यान में रखकर सूचना आयोग हरियाणा ने प्रथम रिपोर्ट में राष्ट्रीय सूचना आयोग को सुझाव दिया था कि सभी जिलों में स्थित ई-दिशा केंद्रों में आरटीआई के लिए विशेष काउंटर स्थापित कर दिया जाए। ई-दिशा केंद्र में स्थापित होने वाले इस काउंटर पर लोग किसी भी विभाग से जानकारी लेने के लिए आवेदन जमा करा सकेंगे। यहां से आवेदन संबंधित विभाग को भेजा जाएगा और विभाग काउंटर पर ही जानकारी भेज देगा। अगर जानकारी नहीं मिली तो वजह भी बताई जाएगी। फिलहाल सभी विभागों ने आरटीआई एक्ट के तहत सूचना देने के लिए जनसूचना अधिकारी या सहायक जनसूचना अधिकारी की नियुक्ति की है। कई बार लोगों को समय पर अधिकारी नहीं मिलते और उन्हें काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

स्टार न्यूज़ एजेंसी    
नई दिल्ली. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने निर्णय किया है कि जब भी सरकारी अस्पतालों और मंत्रालय के अधीन स्वायत्तशासी संस्थानों में कोई ब्रैंडेड दवा दी जाए तो यह भी ध्यान रखा जाए कि उस दवा के समकक्ष जेनेरिक दवा भी उपलब्ध हो। इस तरह अस्पतालों के पास निर्धारित दवा के साथ साथ उसकी समकक्ष जेनेरिक दवा देने का भी विकल्प होगा।
 
यह निर्णय इस तथ्य के प्रकाश में किया गया कि ब्रैंडेड दवा के मुकाबले जेनेरिक दवाएं बहुधा सस्ती होती हैं। इस कदम से इस प्रवृत्ति पर भी लगाम लगेगी कि किसी विशेष ब्रैंड की दवा के साथ प्राय: उसकी समकक्ष दवा नहीं मंगाई जाती। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय इस आदेश के अनुपालन के लिए उपरोक्त संस्थानों के नुस्खों की नियमित निगरानी करेगा।


सरफ़राज़ ख़ान
नई दिल्ली. मध्यम उम्र महिलाएं जो रोजमर्रा की जिन्दगी में अधिक सक्रिय रहती हैं, उनमें इन्ट्राएब्डामिनल फैट का स्तर कम होता है, जिसका संबंध हृदय सम्बंधी बीमारी से है। 


हार्ट केयर फाउंडेशन   ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल  के मुताबिक़ रोजाना के कामकाज में हल्का सा बदलाव जैसे टीवी देखने में कमी करना या पैदल चलने में बढ़ोतरी करने से आप अपने स्वास्थ्य को लम्बे समय तक बेहतर रख सकते हैं। आंतों से जुड़ा हुआ फैट या पेट अथवा सीने के आस पास का फैट एक साथ जमा हो जाता है और इससे मधुमेह, हाइपरटेंशन और हृदय बीमारी का खतरा बढ़ने लगता है।

अंगों के आस पास फैट के जमा होने को हृदय की बीमारी और मधुमेह के खतरे के रूप में जाना जाता है। अंगो के आस-पास खतरनाक अधिक ''टायर'' जमा होने के लिए महिलाओं का बाहर से मोटा दिखना जरूरी नहीं। लम्बे समय तक व्यायाम करने को उदर के आस पास जमा होने वाले फैट में कमी के तौर पर जाना जाता है।

रत्नेश त्रिपाठी     
बुद्ध पूर्णिमा सिर्फ बौद्ध धर्म का ही नही अपितु समस्त भारतीय परम्परागत का पावन त्यौहार है | यह एक ऐसा अनोखा दिन है जिस दिन तथागत बुद्ध से जुडी तीनो महत्वपूर्ण तिथियों का मेल होता है - प्रथम उनका जन्म द्वितीय आज ही के दिन बोधगया में ज्ञान कि प्राप्ति तथा तृतीय कुशीनगर में आज ही के दिन महापरिनिर्वाण कि प्राप्ति |
इतिहास में ऐसा किसी अन्य किसी महापुरुष के साथ ऐसा संयोग देखने को नहीं मिलता | जहाँ हिन्दू धर्म में तथागत को भगवान विष्णु का अवतार मन कर पूजा जाता है वही सम्पूर्ण विश्व मे अहिंसा व करुणा के कारण पूजनीय स्थान प्राप्त है | आज के पावन दिन को भारत में ही नहीं अपितु  सम्पूर्ण विश्व में अलग अलग रूपों में बौद्ध अनुयायियों तथा भारतीयों द्वारा मनाया जाता है | कुशीनगर  जहाँ तथागत का महापरिनिर्वाण हुआ था,  बुद्ध पूर्णिमा के दिन एक विशाल  मेला लगता है जो पुरे एक महीने तक चलता है | इसी प्रकार श्रीलंका में तथा अन्य बौद्ध धर्मानुयायी देशों में वेसाक (बैसाख) के नाम से त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है |

तथागत बुद्ध ने चार आर्यसत्य बताया है - 1. दुख है, 2. दुःख का कारण है, 3 दुख का निवारण है, 4. दुख निवारण का उपाय है | इस चार आर्यसत्य के माध्यम से तथागत ने जीवन जीने की प्रेरणा दी तथा अंतिम आर्यसत्य जो सभी दुखों का निवारण है, उसे बताते हुए तथागत ने अष्टांगिक मार्ग का सूत्र दिया | ये अष्टांगिक मार्ग है-   यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान , धारणा व समाधि |


विनोद बंसल
बालक सिध्दार्थ अपने चचेरे भाई के साथ जंगल की ओर निकले। भाई देवदत्ता के हाथ में धनुष बाण था। ऊपर उड़ते एक पक्षी को देख देवदत्ता ने बांण साधा और उस पक्षी को घायल कर दिया। पक्षी जैसे ही नीचे गिरा, दोनों भाई उसकी ओर दौड़े। सिध्दार्थ पहले पहुंचे और उसे अपनी हथेली में रखकर बांण को बड़े प्यार से निकाला। किसी जड़ी-बूटी का रस उसके घाव पर लगाकर पानी आदि पिला उसे मृत्यु से बचा लिया। देवदत्ता पक्षी पर अपना अधिकार जमाना चाहता था। उसका कहना था कि मैने इसे नीचे गिराया है अत: इस पर मेरा अधिकार है। सिध्दार्थ का कथन था कि यह केवल घायल हुआ है। यदि मर जाता तो तुम्हारा होता। पर, क्याेंकि मै इसकी सेवा सुश्रुषा कर रहा हूं अत:, यह मेरा हुआ। दोनों में जब विवाद बढ़ा तो मामला न्यायालय तक जा पहुंचा। न्यायालय ने दोनों के तर्कों को ध्यान से सुन कर निर्णय दिया कि जीवन उसका होता है जो उसको बचाने का प्रयत्न करता है। अत: पक्षी सिध्दार्थ का हुआ। बस, यहीं से हुआ बालक सिध्दार्थ का महात्मा बुध्द बनने का कार्य प्रारम्भ।

राजसी ठाट-बाट, नौकर-चाकर, घोड़ा-बग्गी, गर्मी, जाडे व वर्षात के लिए अलग-अलग प्रकार के महल, बडे-बडे उद्यान व सरोवरों में सुन्दर मछलियां पाली गयीं, कमल खिलाये गये। सभी अनुचर व अनुचरी भी युवा व सुन्दर रखे गये। किसी भी बूढ़े, बीमार, सन्यासी व मृतक से उन्हें कोषों दूर रखा गया। यशोधरा नामक एक सुन्दर व आकर्षक युवती से उनका विवाह हुआ। चारों ओर आनन्द ही आनन्द। किन्तु, सारी सुविधाओं से युक्त सिध्दार्थ के मन में तो कुछ और ही पल रहा था।

 एक दिन वे अपने रथ वाहक के साथ बाहर निकल पड़े। बाहर आने पर उन्होंने पहली बार एक बूढ़े व्यक्ति को देखा जिसके बाल सफेद थे, त्वचा मुरझायी और शुष्क थी, दांत टूटे हुए थे, कमर मुड़ी हुई थी और पसलियां साफ दिखाई दे रहीं थी, आंखे अन्दर धंसी हुई थीं और लाठी के सहारे चल रहा था। शरीर की जीर्ण-शीर्ण अवस्था देख सिध्दार्थ कुछ विचलित हुए। उनके मस्तिष्क में हलचल मची और महल की तरफ वापस चल दिये। दूसरे दिन एक बीमार आदमी तथा तीसरे दिन शव यात्रा तथा चौथे दिन एक सन्यासी को देख सिध्दार्थ के मन का दबा हुआ गूढ़ ज्ञान जाग उठा। वे सोचने लगे ''..तो बुढ़ापे का दुख, बीमारी का कष्ट, फिर मृत्यु का दुख, यही मनुष्य का प्राप्य हैं और यही उसकी नित्य गति है। जीवन दु:ख ही दु:ख है। क्या इस दुख से बचने का कोई उपाय नहीं है? क्या मुझे और उन सबको, जिन्हें मैं प्यार करता हूं, बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु का कष्ट भोगना ही पड़ेगा?''                                                                        
 इस सबका उत्तार सोचते-सोचते उन्हें लगा कि 'एक सन्यासी का जीवन ही शांत व निर्द्वंन्द है। लगता है इस संसार के दुख व सुख उसे छू नहीं सकते !' उसी क्षण उन्होंने निश्चय किया कि मैं भी सन्यास ग्रहण करूंगा तथा संसार त्याग कर दुख से मुक्ति पाने का मार्ग ढूढ़ूंगा। यह तय करने के तुरन्त बाद ही महल से उनके पिता राजा शूध्दोधन ने संदेश भिजवाया कि उन्हें (सिध्दार्थ) को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। पुत्र प्राप्ति का मोह भी उन्हें उनके मार्ग से डिगा न सका।

वे सब कुछ छोड़कर कपिलवस्तु से विदा हो लिए। उन्होंने सत्य, अहिंसा, त्याग, बलिदान, करूणा और देश सेवा का जो पाठ पढ़ाया वह जग जाहिर है। पूरे विश्व की रग-रग में महात्मा बुध्द की शिक्षाएं समायी हुई हैं। ऐसे महान संत महात्मा बुध्द को उनकी जयन्ती पर शत-शत नमन्।



सरफ़राज़ ख़ान
नई दिल्ली. रीर में जटिल असर छोड़ने वाली कॉफी का संबंध निर्धारित समय के आधार पर इन्सुलिन और यूरिक एसिड स्तर को कम करने से है।
आर्थराइटिस रिसर्च सेंटर ऑफ कनाडा, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलम्बिया इन कनाडा, ब्रिघम एंड वीमेन्स हास्पिटल, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, बोस्टन के शोधकर्ताओं ने 40 से अधिक उम्र के बिना गाउट के इतिहास वाले 45,869 पुरुषों पर अध्ययन किया। 12 सालों तक किया गया यह अध्ययन आर्थराइटिस एंड रयूमैटिज्म के अंक में प्रकाशित  हुआ जिसमें दिखाया गया है कि पुरुशों में जो चार से इससे अधिक कप कॉफी रोजाना पीतें हैं उनमें अनोखे ढंग से गाउट में कमी होती है।
हार्ट केयर फाउंडेशन   ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल  के मुताबिक़
 
जिन पुरुषों ने रोजाना 4 से 5 कप कॉफी पी उनमें गाउट के खतरे में 40 फीसदी की कमी हुई और जिन्होंने 6 या इससे अधिक कप कॉफी ली उनमें 59 फीसदी की कमी दर्ज की गई बनिस्बत उनके जिन्होंने कभी भी कॉफी नहीं पी। बिना कैफीन की कॉफी लेने का संबंध थोड़ा सा उल्टा है।
 
गाउट को रोकने में बीवरेज के फायदे के साथ कॉफी में कैफीन के अलावा अन्य तत्व भी जिम्मेवार हो सकते हैं। कॉफी में पाया जाने वाला एक एन्टीऑक्सीडेंट फीनोल क्लोरोजेनिक एसिड हो सकता है। शो प्रत्यक्ष रूप से बगैर गाउट के इतिहास वालों 40 या इससे अधिक उम्र वाले पुरुषों जो गाउट से सबसे अधिक प्रभावित होते है पर आधारित है।


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