महंगाई के विरुद्ध
शुरू हो गया नेताओं के, भाषण का उन्मादी युद्ध ??

लड़ाकू विमान में !
बैठ गए सब रुई ठूंसकर, अपने-अपने कान में !!

'क़ानून-दिवस' मनाया !
खुद हम उसको कैसे तोड़ें, इस बारे में भी समझाया ??

तबाही की वो रात !
छब्बिस-ग्यारह के हमलों पर, संसद में क्या उछली बात ??

शहीदों पर नाज !
सिर्फ हमें करना है आज ??

भूख-हड़ताल !
जब तक भूखा ख़त्म नहीं हो, भूख इस कदर लम्बी टाल !!

कार्य-बहिष्कार !
जिन पर कार्य नहीं है उनको, पूरा है इसका अधिकार !!

मशाल-जुलूस !
पिलवाया मांगों का जूस ??

दम तोड़ा !
बीवी-बच्चों को क्या छोड़ा ??

शहीद !
इनके घर क्या दीवाली थी, इनके घर क्या होगी ईद ??

प्रोपर्टी-विवाद में !
'फोटो पर माला चढ़ती है,' इतना रक्खें याद में !!
-अतुल मिश्र


سٹار نیوز ایجنسی
مکہ مکرمہ ( سودی عربیہ): حج کا رکن اعظم وقوف عرفات ادا کرنے کے بعد عازمین مزدلفہ روانہ ہوگئے۔مفتی اعظم شیخ عبدالعزیز آل شیخ نے خطبہء حج میں کہا کہ دہشت گردی کے ذریعے امت مسلمہ کو ٹکڑوں میں تقسیم کیا جارہا ہے، مسلم امہ دہشت گردی سے کسی قسم کا سمجھوتہ نہ کرے۔ مفتی اعظم شیخ عبدالعزیز آل شیخ نے مسجد نمرہ میں خطبہ حج دیتے ہوئے کہا کہ اللہ تعالی نے مسلمانوں کو سچی بات کہنے کا حکم دیا ہے۔ دشمن مسلمانوں کو اخلاقی اعتبار سے پست کرنا چاہتا ہے۔مسلمانوں کو اسلام سے دور کرنے کی سازش کی جا رہی ہے۔ مسلمانوں کو چاہئے کہ وہ غیر مسلموں کے مقابلے میں اتحاد و اتفاق سے کام لیں۔ مستقبل اسلام کی عظمت کا ہے،انسانی حقوق پامال کرنے والوں کا اسلام سے کوئی تعلق نہیں۔اسلام امن کا ضامن ہے۔مفتی اعظم نے کہا کہ اسلامی تعلیمات کو سمجھ کر اتفاق رائے پیدا کرنے میں مسلمانوں کی بھلائی ہے۔ دنیا کو اس وقت دہشت گردی کا چیلنج درپیش ہے۔ دہشت گردی سے امت کے ٹکڑے کرنے کی سازش کی جا رہی ہے۔امت مسلمہ دہشت گردی سے کوئی سمجھوتہ نہ کرے۔امت کی یکجہتی کے لئے میڈیا اپنا کردار ادا کرے۔ میڈیا تعصب اور نفرت سے دور رہ کر اسلام کی خدمت کرے۔موجودہ حالات میں میڈیا پر بہت بڑی ذمہ داری عائد ہوتی ہے۔عازمین نے ظہر اور عصر کی نمازیں مسجد نمرہ میں ایک ساتھ ادا کیں۔ مزدلفہ میں عازمین رات کھلے آسمان تلے بسر کریں گے۔ وہ جمعہ کو رمی کے بعد جانوروں کی قربانی کریں گے، بال کٹوائیں گے اور احرام کھول دیں گے۔ اس کے بعد حجاج واپس مکہ المکرمہ پہنچیں گے۔ طواف زیارت کے بعد حجاج کرام دوبارہ منیٰ جائیں گے اور حج کے دیگر ارکان ادا کریں گے۔جمعرات کی صبح نماز فجر کے بعد کعبہ کو غسل دیا گیا۔ سعودی شاہی خاندان اور کابینہ کے ارکان نے کعبتہْ اللہ کو غسل دیااور غلاف کعبہ تبدیل کردیا گیا۔ ہر سال نو ذوالحج کو کعبتہ اللہ کا غلاف تبدیل کیا جاتا ہے۔ یہ چھ سو ستر کلوگرام خالص سفید ریشم سے تیار کیا جاتا ہے جس پر بعد میں کالا رنگ چڑھایا جاتا ہے۔ غلاف کعبہ کو کِشوہ بھی کہا جاتا ہے۔ غلاف کعبہ پر سونے اور چاندی کے دھاگوں سے سورة اخلاص اور چھ قرانی آیات تحریر ہوتی ہیں۔ غلاف کعبہ پر ایک سو پچاس کلوگرام سونے اور چاندی کے دھاگوں سے کشیدہ کاری کی جاتی ہے ۔اس کی تیاری پر ایک کروڑ ستر لاکھ ریال لاگت آئی ہے۔ بدھ سے شروع ہونے والے پانچ روزہ ایام حج اتوار کو مکمل ہو جائیں گے۔


किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह

बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह

किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चांदनी की तरह

कभी न सोचा था हमने ‘क़तील’ उस के लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह
-क़तील शिफाई



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. रेल राज्यमंत्री केएच मुनियप्पा ने कहा है कि रेल भूमि पर अतिक्रमण करने वालों का पुन:स्थापन तथा पुनर्वास यदि व्यावहारिक हो तो संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में, रेलों ने दिल्ली सरकार की पुन:स्थापन तथा पुनर्वास नीति के अनुसार संरक्षा जोन में रेल भूमि पर स्थित 1998 के पहले से अतिक्रमणों के पुन:स्थापन की आंशिक लागत वहन करने की स्वीकृति दी है। 4359 झुग्गियों के पुनर्वास के संबंध में रेल मंत्रालय द्वारा दिल्ली सरकार के पास 11.25 करोड़ रुपए जमा कराए गए हैं। इस समय, रेल भूमि पर रह रहे झुग्गी वालों को हटाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

आज लोकसभा में एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि रेल के पास 1.13 लाख हेक्टेयर खाली भूमि है । इसमें रेल के अपने विकास कार्यों के लिए चिन्हित भूमि जैसे दोहरीण, आमान परिवर्तन, यार्ड के ढांचे में परिवर्तन ओर यातायात सुविधा कार्यों, फैक्ट्रियों की स्थापना, डीएफसीसीआईएल परियोजना और रेलपथ की सर्विसिंग के लिए अपेक्षित भूमि की संकरी पटटी शामिल है। रेल के निकट भविष्य में परिचालनिक आवश्यकताओं के लिए अनपेक्षित खाली भूमि का वाणिज्यिक विकास सहित वैकल्पिक उपयोग किया जाता है । रेल ने लगभग 4336 एकड़ रेल भूमि की परिमाप वाले 139 स्थलों की पहचान की है जिसकी निकट भविष्य में परिचालनिक उपयोग के लिए जरूरत नहीं है। 133 स्थलों में से, 3744 एकड़ भूमि खाली पड़ी रेल भूमि के वाणिज्यिक विकास के लिए संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित प्राधिकरण रेल भूमि विकास प्राधिकरण को सौंपी गई है।



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने आज मुम्बई हमलों में शहीद हुए लोगों के सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम में शहीदों के पांच परिवारों को पेट्रोलियम उत्पादों की डीलरशिप के पत्र सौंपे। शहीदों के आश्रितों की पूर्ण देखभाल की सरकार की वचनबध्दता को पूरा करने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र क़ी कपंनी अपने ही खर्च पर उनको डीलरशिप मुहैया करा रही है।

डीलरशिप के ये पत्र स्व. अशोक मारूतराव काम्टे की पत्नी विनीता अशोक काम्टे (पुणे), स्व. विजय मधुकर खांडेकर की पत्नी श्रध्दा वी. खांडेकर (पुणे), स्व. जयवंत हनुमंत पाटिल की पत्नी प्रतिभा जे. पाटिल (किकवे, सतारा में) को दिए गए. स्व. प्रकाश पांडुरंग मोरे की पत्नी माधवी वी. मोरे को एलपीजी डीलरशिप (खरगर, नवी मुम्बई में) और स्व. गजेंद्र सिंह की पत्नी विनीता सिंह को हरिद्वार में एलपीजी डीलरशिप का पत्र सौंपा।

केंद्रीय पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवरा ने इस अवसर पर कहा कि भारत सरकार सामान्य तौर पर तथा पेट्रोलियम मंत्रालय विशेष तौर पर शहीदों के परिवारों को राहत तथा पुनर्वास सहायता करने में सबसे आगे है। उन्होंने बताया कि उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की जल्द से जल्द विभिन्न तेल कंपनियों के महाप्रबंधकों से इन रिटेल आउटलेटों के कार्य को जल्द से जल्द पूरा कराने के लिए निगरानी रखे। उन्होंने कहा कि देश शहीदों के परिवारों का सम्मान करने की न केवल ज़िम्मेदार बल्कि उनके भविष्य की देखभाल की भी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि देशवासियों को इन शहीदों से कर्तव्य परायणता का सबक सीखना चाहिए। यही इन शहीदों के प्रति देशवासियों की सच्ची श्रध्दांजलि होगी।

26/11 के शहीदों के परिवारों की आय के ज़रिये को सुरक्षित बनाए रखने के लिए पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने शहीदों के परिवारों को पेट्रो-डीज़ल, एलपीजी तथा सीएनजी की 18 डीलरशिपें देने का फैसला किया है। एक मामले में शहीदों के एक परिवार ने इस प्रकार की सहायता स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। बाकी के 17 आवंटनों के मामलों में से 9 डीलरशिपों ने कार्य आरंभ कर दिया है और दो सीएनजी स्टेशन दिसम्बर, 2009 तक कार्य करना आरंभ कर देंगे तथा बाकी के 6 मामलों काफी प्रगति हो चुकी है।



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) ने निम्न तापमान वाली तापीय विलवणीकरण प्रणाली (एलटीटीडी) पर आधारित समुद्र जल को पेयजल में बदलने की विलवणीकरण प्रौद्योगिकी का देश में डिजाइन तैयार कर उसका प्रदर्शन किया है। यह प्रौद्योगिकी भारत के द्वीप प्रदेशों के लिए कार्यक्षम तथा उपयुक्त है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, प्रधान मंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने आज राज्यसभा में एक एक सवाल के जवाब में बताया कि कावाराती संयंत्र के उत्पादन की आरंभिक अनुमानित लागत विद्युत के प्रभारों के आधार पर 10 पैसे प्रति लीटर थी। प्रदर्शन संयंत्र के उत्पादन की अनुमानित लागत में पूंजी और अन्य स्थायी लागतें शामिल हैं। उत्पादन की प्रचालनात्मक लागत 6-7 पैसे प्रति लीटर है।

उन्होंने बताया कि लक्षद्वीप समूह के कावाराती में एक लाख लीटर प्रतिदिन स्वच्छ जल की उत्पादन क्षमता वाले एलटीटीडी संयंत्र ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है और स्थानीय जनता की जरूरतों को काफी हद तक पूरा कर रहा है। इस संयंत्र ने अब तक 155 मिलियन लीटर से अधिक स्वच्छ जल तैयार कर लिया है। उन्होंने बताया कि एनआईओटी लक्षद्वीप द्वीप समूह में एक लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले 3 अन्य संयंत्र अगाती, एण्ड्रोथ और मिनिकॉय में, प्रत्येक में एक-एक स्थापित कर रहा है। अगाती में एक संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य मार्च, 2010 में तथा एक अन्य एलटीटीडी संयंत्र मार्च, 2009 में उत्तरी चेन्नै ताप बिजली केन्द्र, चेन्नै में भी स्थापित किया गया, जो बिजली संयंत्र से निकलने वाली अपशिष्ट ऊष्मा का उपयोग करता है।


बौना हूं मैं , कोई खिलौना नहीं
चलता हूं जब भी मैं सड़कों पे, तो नज़रे खुद-ब-खुद झुक जाती हैं,

जब उठती है, तो देखता हूं की इंसान की नज़रें किस तरह से सताती है,
भूल जाते हैं वो कि

बौना हूं मैं, कोई खिलौना नहीं !
हंसते हैं वे मुझपे, जैसे मैं कोई एक नुमाइश हूं ,

याद दिलाओ उन्हें, कि मैं भी खुदा की पैदाइश हूं ,
कभी नाटा-नाटा,तो कभी बौना-बौना कह कर चिड़ाते हैं,

भूल जाते हैं वो कि
बौना हूं मैं, कोई खिलौना नहीं !!

शुक्र है, क्योंकि इस नाम पे ही तो मैं अपनी ज़िन्दगी बिताता हूं ,
हंसाता हूं उन्हें सर्कस मैं, और बौना-बौना कहलाता हूं ,

दो वक़्त की रोटी मिल जाती है, पर ज़िन्दगी तडपाती है
फ़रियाद करता हूं ,खुदा से और बोलता हूं उस इंसान से

कि क्यों भूल जाता है तू कि
बौना हूं मैं कोई खिलौना नहीं !!
-अमित तनेजा


अतुल मिश्र
शराब पीना स्वास्थ्य के लिए भले ही हानिकारक हो, मगर हमारी सरकार के लिए बहुत लाभदायक है! लोग अगर वाकई शराब पीना बंद कर दें कि लो, आज से पीनी बंद, तो सरकार का तो भट्टा ही बैठ जाएगा! एक ओ़र तो शराब पीने पर इस अंदाज़ में दीवारों पर लिखी मनाही कि 'बाप शराब पियेंगे, बच्चे भूखे मरेंगे', और दूसरी ओ़र जिन गावों में बिजली-पानी तक अभी नहीं पहुंचे हैं, वहां भी सरकारी तौर पर ठेके खोल दिए गए हैं कि बेटे, जितनी पी सकते हो, पियो!
'शराब पीना एक सामाजिक अभिशाप है', जैसे नारों की मार्फ़त हर एक किलोमीटर पर सरकार की तरफ से अभिशाप भी दिया जा रहा है और बराबर में ही ठेके भी खोल दिए गए हैं! सरकार की जो नीतियाँ हैं, वो हमेशा दोगली होती हैं! एक तरफ तो वह शराब के ठेके और बार खुलबाती है कि आदमी जो है, वो नशे में धुत्त पड़ा रहे और दूसरी ओ़र जब वह सड़कों पर निकले तो उसका सारा नशा ही हिरन हो जाए कि 'जो शराब का हुआ शिकार, उसने फूंक दिया घर-बार'! अब शिकार हुआ आदमी खुद को गालियाँ दे या सरकार को, यह उसकी समझ में नहीं आता और वह सोचने के झंझट से मुक्ति पाने के लिए फिर से हट्टी या बार में चला जाता है और सरकारी नीतियाँ अपनी सफलता पर खुश होकर जश्न मनाती हैं!
एक कोई 'मद्य-निषेध विभाग' है, जो आबकारी विभाग से अलग किसी ख़ुफ़िया जगह पर मौजूद है! कहाँ मौजूद है, यह कोई नहीं जानता! हाँ, इस विभाग की ओ़र से जारी किये गए भयानक नारे ज़रूर पढ़ने को मिल जाते हैं, जिनसे यह सूचना मिलती है कि 'जो कुछ हम बिकवा रहे हैं, वह खरीदना तो है, मगर उसके अंजाम क्या होंगे यह भी पढ़ लो!' इस किस्म के नारे किसी भी शराबी को आधा तो वैसे ही मार देते हैं, रही-सही कसर सरकार द्वारा परोसी जा रही शराब पूरी कर देती है!
आंकड़े बताते हैं कि भारत-सरकार को सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा उस शराब से होता है, जो लोगों के घर-बार फूंक देती है या जो एक सामाजिक अभिशाप है! इसी से सरकार की नीयतों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है! यह बिलकुल वैसा ही है, जैसे शराब पिलाने के बाद 'स्वास्थ्य के लिए हानिकारक' वाला मन्त्र कान में फूंक देना! किसी ने आज तक सरकारी नुमाइंदों से यह नहीं पूछा कि जब आपकी नीयत की तरह शराब भी खराब है तो उसकी जगह सिंथेटिक दूध के ही ठेके क्यों नहीं खोले जा रहे? उनसे भी तो भारी मात्रा में राजस्व अर्जित किया जा सकता है!


सभी संतों ने सिखलाया, प्रभु का नाम है जपना।
सुनहरे कल भी आयेंगे, दिखाते रोज एक सपना।
वतन आजाद वर्षों से बढ़ी जनता की बदहाली,
भले छत हो न हो सर पे, ये सारा देश है अपना।।

कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊं क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊं क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊं क्या?

मचलना चाहता है मन, नहीं फिर भी मचल पाता।
जमाने की है जो हालत, कि मेरा दिल दहल जाता।
समन्दर डर गया है देखकर आंखों के ये आंसू,
कलम की स्याह धारा बनके, शब्दों में बदल जाता।।

लिखूं जन-गीत मैं प्रतिदिन, ये सांसें चल रहीं जबतक।
कठिन संकल्प है देखूं, निभा पाऊंगा मैं कबतक।
उपाधि और शोहरत की ललक में फंस गई कविता,
जिया हूं बेचकर श्रम को, कलम बेची नहीं अबतक।।

खुशी आते ही बाहों से, न जाने क्यों छिटक जाती?
मिलन की कल्पना भी क्यों, विरह बनकर सिमट जाती?
सभी सपने सदा शीशे के जैसे टूट जाते क्यों?
अजब है बेल कांटों की सुमन से क्यों लिपट जाती?
-श्यामल सुमन


(श्यामल सुमन टाटा स्टील, जमशेदपुर में प्रशासनिक पदाधिकारी हैं)

स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. संसदीय कार्य एवं जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा है कि देश की नदियों को जोड़ने की व्यवहार्यता का व्यापक आकलन के पश्चात यह निर्णय लिया गया कि प्रायद्वीपीय नदियों पर जोर देते हुए नदी को जोड़ने संबंधी कार्यक्रम को जारी रखा जाए। संबंधित राज्य सरकारों के बीच सहमति के आधार पर उनकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआरएस) तैयार करने के लिए प्राथमिकता संपर्कों के रूप में प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत पाचं संपर्कों नामत: 1. केन-बेतवा, 2. पारबती-काली सिंध-चम्बल, 3. दमनगंगा-पिंजाल, 4. पार ताप्ती -नर्मदा और 5. गोदावरी (पोलावरम)-कृष्णा (विजयवाड़ा) की पहचान की गई थी। केन-बेतवा परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना की सूची में शामिल किया गया है और यह 90 प्रतिशत केन्द्रीय सहायता की पात्र है।

आज लोकसभा में एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि इसके अलावा एनडब्ल्यूडीए ने दूसरे दो प्राथमिकता संपर्कों नामत: पार- तापी-नर्मदा और दमनगंगा-पिंजाल की डीपीआरएस की तैयारी प्रारंभ कर दी है और जिसे दिसम्बर 2011 तक पूरा कर लिए जाने की योजना है।

उन्होंने बताया कि गोदावरी (पोलावरम)-कृष्णा (विजयवाड़ा) संपर्क आंध्र प्रदेश की पोलावरम परियोजना का हिस्सा है । योजना आयोग ने पोलावरम परियोजना का निवेश की स्वीकृति दे दी है और आंध्र प्रदेश सरकार ने उसके प्रस्ताव के अनुसार संपर्क घटक सहित परियोजना का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया है । इसके अतिरिक्त संबंधित राज्यों ने पारबती-कालीसिंध-चंबल संपर्क परियोजना की डीपीआर प्रारंभ करने के लिए सहमति नहीं दी है।

उन्होंने बताया कि नदियों को आपस में जोड़ने संबंधी परियोजनाओं की डीपीआर तैयार करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों के बीच सहमति बनाने के उद्देश्य से अध्यक्ष, केन्द्रीय जल आयोग की अध्यक्षता में एक सहमति दल का गठन किया गया है। भारत के संविधान के तहत जल राज्य का विषय हे और संबंधित राज्य सरकारें जल संसाधन मंत्रालय की तकनीकी सलाहकार समिति से टेक्नो-आर्थिक स्वीकृति और योजना आयोग के निवेश से स्वीकृति प्राप्त करने के पश्चात नदियों को आपस में जोड़ने संबंधी परियोजनाओं का कार्य प्रारंभ करती हैं।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. जल संसाधन राज्य मंत्री वींसेंट एच.पाला ने कहा है कि वैज्ञानिक पत्रिका 'नेचर' के अंक में प्रकाशित राष्ट्रीय विमान-विज्ञान एवं अंतरिक्ष प्रशासन (एनएएसए) और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिकों के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भारत में राजस्थान, पंजाब और हरियाणा (दिल्ली सहित) में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है।

आज लोकसभा में एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि सरकार ने देश में भूमिगत जल स्तर को बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए हैं, मसलन

  • सीजीडब्ल्यूबी द्वारा देश में प्रदर्शनात्मक कृत्रिम पुनर्भरण परियोजनाओं का कार्यान्वयन।

  • 7 राज्यों अर्थात आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात एवं मध्य प्रदेश में भूजल संसाधन के लिए 'डगवेलों के माध्यम से भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण' संबंधी स्कीम का कार्यान्वयन।

  • जल स्रोतों की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनरूध्दार के लिए स्कीम का कार्यान्वयन स्कीम के उद्देश्यों में भूजल पुनर्भरण का संवर्धन शामिल है।

  • जल संरक्षण पध्दतियों के संबंध में जागरूकता फैलाने के लक्ष्य से किसान सहभागिता कार्य अनुसंधान कार्यक्रम का कार्यान्वयन।

  • भूजल विकास के नियमन एवं नियंत्रण के लिए उचित कानून अधिनियमित करने में राज्योंसंघ राज्य क्षेत्रों को सक्षम बनाने हेतु 'आदर्श विधेयक' का परिचालन।

  • देश में भूजल प्रबंधन एवं विकास के नियमन के उद्देश्य से केन्द्रीय भूमि जल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) की स्थापना।

  • जल प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण संबंधी जन जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन।

  • राज्यों को वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया गया है। इसकी अनुपालन में 18 राज्यों और 4 संघ राज्य क्षेत्रों में भवन उप नियमों के अंतर्गत वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बना दिया है।

  • राज्योंसंघ राज्य क्षेत्रों को भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए एक मास्टर योजना का परिचालन।

  • लोगों की सहभागिता से भूजल संवर्धन और कृत्रिम पुनर्भरण की नूतन पध्दतियां अपनाने को प्रोत्साहन देने हेतु भूमिजल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार का संस्थापन।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. संघ लोक सेवा आयोग ने अगस्त, 2009 में आयोजित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी तथा नौसेना अकादमी परीक्षा (2) की लिखित परीक्षा का परिणाम घोषित कर दिया है। रक्षा मंत्रालय का सेवाएं चयन बोर्ड राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के थलसेना, नौसेना और वायुसेना विंग में 30 जून, 2010 से आरंभ होने वाले 124वें पाठयक्रम तथा नौसेना अकादमी 10/2 (कार्यकारी शाखा ) के 44वें पाठयक्रम में दाखिले के लिए साक्षात्कार आयोजित करेगा।

सभी उम्मीदवारों की उम्मीदवारी जिनके रोल नंबर सूची में दिये गये हैं अनंतिम है। परीक्षा में दाखिले के लिए उनकी स्थिति के अनुसार उन्हें अपनी आयु तथा शैक्षणिक मूल प्रमाण पत्र सीधे ही ' अतिरिक्त महानिदेशक (भर्ती), निकट जनरल ब्रांच, संयुक्त मुख्यालय, रक्षा मंत्रालय (आर्मी), पश्चिम खंड-3, विंग-1, आर. के. पुरम, नई दिल्ली-110066 को जमा करा दें। मूल प्रमाण पत्र संघ लोक सेवा आयोग को भेजने की आवश्यकता नहीं है। अन्य किसी सूचना के लिए उम्मीदवार आयोग के सुविधा केंद्र से व्यक्तिगत रूप से या दूरभाष नम्बरों 011-23385271 / 011-23381125 / 011-23098543 पर कार्य दिवसों के दौरान संपर्क कर सकते हैं। परिणाम आयोग की वेबसाईट http://www.upsc.gov.in . पर भी देख सकते हैं।
आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी। जो उम्मीदवार अपनी अंक तालिका की प्रिंटिड कापी लेना चाहते है उन्हें आयोग से परिणाम घोषित होने के 30 दिन के भीतर अनुरोध कराना होगा। उसके बाद किसी भी प्रकार अनुरोध स्वीकार नहीं किया जाएगा।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. श्रम और रोजगार राज्य मंत्री हरीश रावत ने कहा है कि भारत के महापंजीयक द्वारा कराई गई जनगणना ही कामकाजी बच्चों की संख्या संबंधी सूचना का एकमात्र स्रोत है। जनगणना 2001 के अनुसार देश में कामकाजी बच्चों की संख्या 1.26 करोड़ है।

आज राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि सरकार, बाल श्रम के सभी स्वरूपों के उन्मूलन के लिए प्रतिबध्द है। सरकर ने कामकाजी बच्चों को कार्य से हटाने और पुनर्वासित करने के लिए जोखिमकारी व्यवसायों/प्रक्रियाओं में कार्यरत बच्चों से प्रारम्भ करके और बाद में अन्य व्यवसायों में कार्यरत बच्चों को कवर करते हुए एक क्रमिक तथा आनुक्रमिक दृष्टिकोण अंगीकार किया है। जोखिमकारी सूची में शामिल किए गए व्यवसायों और प्रक्रियाओं की संख्या की समय-समय पर समीक्षा की जाती है तथा वर्तमान में 16 व्यवसायों और 65 प्रक्रियाओं को कवर करने के लिए इनका विस्तार किया गया है । इस दिशा में, सरकार देश के 271 जिलों में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) स्कीम क्रियान्वित कर रही है। इस स्कीम के अंतर्गत, कार्य से हटाए गए बच्चों को विशेष स्कूलों में दाखिला दिलाया जाता है जहां उन्हें ब्रिजिंग शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, छात्रवृत्ति, पोषाहार और स्वास्थ्य देख-रेख सुविधाएं आदि उपलब्ध करवाई जाती हैं।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस के अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बेटियों के प्रति दृष्टिकोण में व्यापक परितर्वन के लिए आज यहां 'दहेज के खिलाफ बेटियां' अभियान का शुभारंभ किया।

दहेज के कारण महिलाओं के उत्पीड़न की बढती घटनाओं पर चिंता प्रकट करते हुए केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने कहा कि केवल कानून से ही दहेज की इस कुप्रथा से मुक्ति नहीं मिल सकती, बल्कि इस कुरीति के खिलाफ लड़ाई के वास्ते नागरिक समाज को व्यापक जन अभियान के लिए भी आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि अभियान के तहत स्कूलों की लड़कियों में दहेज के खिलाफ संघर्ष की भावना पैदा की जाएगी जो न केवल हर तरह के दहेज के खिलाफ संकल्प लेंगी बल्कि अपने मात-पिता को इस मुद्दे पर जागरूक करेंगी।

इस अवसर पर केन्द्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि महिलाओं और बालिकाओं के विरूध्द हिंसा बिल्कुल अनुचित और अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि समाज के पढे लिखे और शिक्षित तबके को आगे आकर इसके खात्मे के लिए सक्रिय प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि समाज दहेज प्रथा के अंत के लिए 'विवाह' के संबंध में नये विचार विकसित कर सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि नई पीढ़ी ख़ासकर लड़कियां दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ संघर्ष छेड़ेंगी।

इस अवसर पर करीब 500 लड़कियों को उनके शिक्षकों के साथ इस कुरीति के खिलाफ जागरूक बनाया गया। उन्हें दहेज रोकथाम अधिनियम के क्रियान्वयन के तौर तरीके बताए गए। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। मंत्री बाल विवाह के रोकथाम पर एक पुस्तिका भी जारी की गई.


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन राज्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि सभी मत्रालयों और विभागों को अनुदेश जारी किए गए हैं कि सभी भर्ती बोर्ड 10 रिक्तियों से अधिक पदों के लिए अनिवार्य रूप से एक महिला सदस्य को भर्ती करेंगे.

आज लोक सभा में एक सवाल के जवाब में चव्हाण ने बताया सभी मंत्रालयों/विभागों को अनुदेश जारी किए गए हैं कि सभी भर्ती विज्ञापनों में एक संदेश होगा कि सरकार ऐसे कार्यबल के लिए प्रयास करती है जिसमें लैंगिक संतुलन परिलक्षित होता हो तथा महिला अभ्यर्थियों को आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. उन्होंने बताया कि सीधी भर्ती विभागीय प्रतियोगी परीक्षाओं/साक्षात्कार द्वारा सीधी भर्ती में संघ लोक सेवा आयोग कर्मचारी चयन आयोग द्वारा संचालित प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महिला अभ्यर्थियों को शुल्क के भुगतान से छूट प्रदान की गई है.

उन्होंने बताया कि उपलब्ध आंकड़े केन्द्रीय सरकारी सेवा में महिलाओं की भर्ती में कोई कमी नही दर्शाते हैं. सरकार केन्द्रीय सरकारी नौकरियों में महिलाओं की भर्ती को बढ़ाने तथा सरकारी सेवा में महिलाओं को दी जाने वाली सुविधाओं एवं रियायतों में सुधार करने के लिए कई उपाय कर रही है.


सीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यूं है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूं है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंडे
पत्थर की तरह बे-हिस-व-बेजान-सा क्यूं है

तन्हाई की यह कौन-सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता हददे-नज़र एक बयाबान-सा क्यूं है

हम ने तो कोई बात निकाली नही ग़म की
वह ज़ूद-ए-पशीमान, पशीमान-सा क्यूं है
-शहरयार



سٹار نیوز ایجنسی
واشنگٹن (امریکہ): امریکی صدر براک حسین اوباما نے کہا ہے کہ خطے میں امن کے قیام کے لیے پاکستان کا کردار انتہائی اہم ہے،دہشت گردی کے خلاف پاکستان کی کوششیں قابل تحسین ہیں۔واشنگٹن میں بھارتی وزیراعظم من موہن سنگھ سے ملاقات کے بعد نیوز کانفرنس سے خطاب میں صدر اوباما نے کہا کہ امریکا چاہتا ہے کہ پاکستان اور بھارت خطے میں امن کے قیام کے لیے آپس کے تنازعات مل بیٹھ کر حل کریں۔دونوں ممالک میں ترقی کا عمل تیز ہونا چاہئے۔پاک بھارت تنازعات کے حل کی ذمے داری امریکا پر عائد نہیں ہوتی۔ صدر اوباما نے کہا کہ پاک فوج دہشتگردوں کے خلاف کامیاب کارروائی کررہی ہے،جو قابل تحسین ہیں۔امریکی صدر نے کہا کہ بھارت کے ساتھ مل کر معیشت سمیت دیگر شعبوں میں کام کریں گے۔انہوں نے کہا کہ من موہن کے ساتھ بات چیت مفید رہی۔عالمی ایٹمی عدم پھیلاوٴ میں بھارت امریکا سے تعاون کرے گا۔بھارتی وزیراعظم من موہن سنگھ نے نیوز کانفرنس میں کہا کہ دو طرفہ تعلقات مضبوط بنانے میں صدر اوباما کی کوششوں کو سراہتے ہیں۔ من موہن نے امید ظاہر کی کہ دہشتگردی کے خلاف بھارت امریکا تعاون جاری رہے گا۔ انہوں نے کہا کہ عالمی ایٹمی عدم پھیلاوٴ کے لیے بھی امریکا کی کوششوں میں ساتھ دیں گے۔


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली.
मैसूर के शेर के नाम से मशहूर टीपू सुल्तान ने रॉकेट का आविष्कार किया था और वे इसके कुशल योजनाकार भी थे.  इतना ही नहीं उन्हें अपने वक़्त के आधुनिक हथियारों की भी अच्छी जानकारी थी.

यह कहना है पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का. उनके मुताबिक़ टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में कई सड़कों का निर्माण कराया और सिंचाई व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए. टीपू ने एक बांध की नींव भी रखी थी. इतिहासकारों के मुताबिक़ टीपू सुल्तान भारत के एक आदर्श शासक थे. उन्होंने कई बार फिरंगियों को परास्त किया. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रॉकेट का इस्तेमाल कर यह दिखा दिया कि हिन्दुस्तानी किसी भी मामले में पीछे नहीं.


आकाश को मुठ्ठी में भर लो ..
तुम्हें देखा
तो वह लड़की याद आई
जो फूलोंवाली फ्रॉक पहन
बसंत का संदेशा देती थी
आम्र मंजरों में
कोयल की कूक बन
मुखरित होती थी
जेठ की दोपहरी में
आसाढ़ के गीत गुनगुनाती
रिमझिम बारिश में
कलकल नदी की रुनझुन धार-सी
किसानों के घर की सोंधी खुशबू में ढल जाती थी
शरद चांदनी बन धरती पर उतरती थी ............
आंखें तुम्हारी ख़्वाबों का खलिहान आज भी हैं
गेहूं की बालियां अब भी मचलती हैं आंखों में
पर वक़्त ने शिकारी बन
तुम्हें भ्रमित किया है !
एक बात कहूं?
वक़्त की ही एक सौगात मैं भी हूं
जागरण का गीत हूं
जागो
और फिर से अपने क़दमों पर भरोसा करो
उनकी क्षमताएं जानो
और आकाश को मुठ्ठी में भर लो
-रश्मि प्रभा

बक़ौल रश्मि प्रभा... मैं रश्मि प्रभा , सौभाग्य मेरा कि मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूं और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियां मेरे नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन" , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है. अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहां तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं.....
इन शब्दों की यात्रा तब से आरम्भ है, जब मन एक उड़ान लेता है और अचानक जीवन अपनी जटिलता , अनगिनत रहस्य लिए पंखों को तोड़ने लगती है.....

जी हां ऐसे में पन्त की रचना ही सार्थक होती है-
"वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान"



अनुराग मुस्कान
सन् दो हजार की बात है। ताजमहल के पार्श्व में एक म्यूजिकल टीवी शो की रिकार्डिंग चल रही थी। एक सदी की विदाई और दूसरी सदी के स्वागत की थीम पर आधारित इस कार्यक्रम में संगीत और सिनेमा जगत की कई जानी-मानी हस्तियां शिरकत कर रही थीं। मैं, अन्य लोगों के साथ इस कार्यक्रम की यूनीट को स्थानीय स्तर पर सहयोग कर रहा था। इस कार्यक्रम की शूटिंग में एक दिन शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत गायन और वादन की प्रस्तुतियों के लिए तय कर दिया गया था। इसमें शास्त्रीय संगीत में गायन और वादन से जुड़ी तमाम अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हस्तियों के साथ उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब की प्रस्तुति भी होनी थी। दर्शक दीर्घा में भीड़ कुछ उद्दंड थी। संभवतः मनमोहक नृत्य अथवा सुगम संगीत प्रस्तुतियों की उम्मीद में बैठे लोग शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियों को हजम नहीं कर पा रहे थे और कलाकारों द्वारा बार-बार तवज्जो की गुजारिश के बावजूद लगभग सभी को हूट कर रहे थे। ऐसे में उस्ताद की बारी आई। उस्ताद ने किसी से तवज्जो की भीख नहीं मांगी बल्कि मंच पर आते ही बड़ी शालीनता के साथ माइक संभाला और बोले, 'मैं ज्यादा तो बोलता नहीं, शहनाई की जुबान जानता हूं, बस इतना ही कहना चाहता हूं की मेरा नाम बिस्मिल्लाह खां है, माफी चाहूंगा मैं अब शहनाई बजाने जा रहा हूं, आप चाहें तो कानों में रुई ठूंस सकते हैं।' उस्ताद के इतना कहते ही सन्नाटा पसर गया और फिर कम से कम उस्ताद की प्रस्तुति के दौरान कोई हो-हल्ला नहीं हुआ। यही नहीं कार्यक्रम के अंत में जब बेशुमार तालियां बजीं तो उस्ताद ने यही कहा कि, 'मुझ से पहले भी जो कलाकार आए उनकी प्रस्तुति मुझसे भी बेहतर थी लेकिन उनकी बदनसीबी रही कि आप उन्हे तवज्जो न दे सके।' मैंने दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों को पानी-पानी होते देखा। दर्शकों की भीड़ को नियंत्रित करने का जो काम आयोजक, सुरक्षाकर्मी और व्यवस्थापक नहीं कर पाए वह काम उस्ताद ने दो शब्द कह कर दिखाया। यकीन जानिए, यह उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ही कर सकते थे। इस संस्मरण को लिखने के बाद उनके व्यक्तित्व का विशलेषण करने आवश्यकता नहीं रह जाती।

उस्ताद के अंदर छिपे इंद्रधनुष को रेखांकित करना पृष्ठों पर संभव नहीं है। इसी कार्यक्रम की समाप्ति के बाद मुझे कुछ दूर तक उस्ताद की व्हील चेयर चलाने का सौभाग्य भी मिला। दरअसल जमुना की रेत पर बने कृत्रिम रास्ते से उन्हे ताजमहल के पश्चिमी गेट पर तैनात वाहन तक छोड़ने जाने का मौका था यह। अपना परिचय देने और उनसे बात करने के उत्साह और क्रम में इतना तल्लीन हो गया कि फिर उस्ताद की डांट से ही तंत्रा भंग हुई। अबे साले, गड्डे में गिरा के जान लेगा क्या हमारी?' अगर उस्ताद न चीखते तो व्हील चेयर मेरी लापरवाही से रेत में बने एक गड्डे में गिर सकती थी। हालांकि उस्ताद की डांट में नानाजी और दादाजी सरीखा स्नेह था लेकिन फिर भी घबराहट में मेरे पसीने छूट गए। मैंने उस्ताद से माफी मांगी। उस्ताद मेरी हालत देखकर हंस पड़े। बोले, 'बेटा, हमारा क्या है, तुम लोग भले ही हमें गड्डे में डाल दो, हम वहां भी शहनाई बजाना नहीं छोडेंगे।', 'आपको चाहने वाले वहां भी आपको सुनने चले आएंगे सर।', मैंने गुस्ताखी ही सही लेकिन बड़ी हिम्मत करके उन्हे जवाब दिया। उस्ताद खुलकर हंस पड़े। मेरी जान में जान आई। लेकिन नौ साल बाद आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं तो उनकी इस बात का कि तुम लोग भले ही हमें गड्डे में डाल दो का मर्म समझ में आ रहा है। उन वजहों की तलाश करने को जी चाहता है जिनके चलते उस्ताद को उनकी सादगी का सिला नहीं मिला।

उस्ताद के सुपुर्द-ए-खाक होने पर इलाहाबाद के सुविख्यात शास्त्रीय गायक प्रो.रामआश्रय झा को सुन रहा था। चौदह साल की उम्र में उस्ताद ने इलाहबाद में ही अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति दी थी। उसके कुछ सालों बाद एक कार्यक्रम के लिए जब रामआश्रय जी उन्हे आमंत्रित करने वाराणसी पहुंचे तो उस्ताद की ओर से अपनी प्रस्तुति का पारिश्रमिक चालीस हजार रुपये मांगा गया लेकिन रामआश्रय जी के यह याद दिलाने पर कि यह वही मंच है जहां उस्ताद ने अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति दी थी और चूंकि इलाहाबाद के सुधि श्रोता उनके पुनः आगमन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, उस्ताद मुफ्त में शहनाई बजाने चल पड़े। उस्ताद की इसी जिंदादिली का आगे चल कर कुछ लोगों ने अवांछित लाभ भी उठाया। प्यार के दो बोल में बिक जाने वाले उस्ताद इस दुनिया से जाते वक़्त इसी तरह की कई शिकायतें भी दिल में जज्ब करके ले गए। कितने ही सरकारी कार्यक्रमों का पारिश्रमिक तो उस्ताद को मरते दम तक नहीं मिल सका, अपने कई साक्षात्कारों में उस्ताद इसके प्रति नाराजगी भी जाहिर करते रहे। उनके जाने के बाद भले ही झंडे आधे झुका दिए जाएं, राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर दिया जाए, उनकी याद में कागज पर लिखा शोक संदेश पढ़ने की औपचारिकता निभाई जाए मगर इस सत्य को नहीं झुठलाया जा सकता कि जीते-जी सरकारों ने उस्ताद को नजरअंदाज किया। हालांकि सरकारी उपेक्षा से उस्ताद का कद जरा भी नहीं घटता। वह तो संगीत समझने वालों के मुरीद थे और सियासत करने वाले संगीत की भाषा क्या समझेंगे।

शहनाई की बात पर हमेशा उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब का नाम लिया गया लेकिन फिर भी मंदिर में बैठकर शहनाई बजाने वाले और गंगा के प्रवाह से जुगलबंदी करने वाले इस मुसलमान की बारी अपने समकालीन कलाकारों के मुकाबले सबसे बाद में आई। सर्वसुख-सुविधा संपन्न अपने समकालीन साथी कलाकारों की तुलना में उस्ताद हमेशा दयनीय हाल में रहे। उस्ताद चाहते तो अपने लिए बंगला, गाड़ी, नौकर-चाकर और क्या कुछ नहीं जुटा सकते थे। सिर्फ संगीत साधना को ही अपनी जिंदगी का मकसद बना देने के जुनून की यह एक मिसाल भी है। इसे बेमिसाल कहें तो शायद ज्यादा उपयुक्त रहेगा। इंडिया गेट पर एक बार शाहनाई बजाने की हसरत उस्ताद अपने साथ ही ले गए, इसे उस्ताद का नहीं, इस देश का दुर्भाग्य कहा जाएगा। कोई कलाकार अपने से उम्र में बड़ा हो, बराबर का हो अथवा छोटा हो, खां साहब ने कभी उसकी तारीफ में कसीदे कढ़ने में देर नहीं की, फिर चाहे इसके लिए उन्हे उस कलाकार के पास खुद ही उठ कर क्यों न जाना पड़े। उस्ताद इस देश के हर आमो-खास के सुख-दुख के साथी रहे। छब्बीस जनवरी और पंद्रह अगस्त की सुबह का इस्तकबाल अपनी शहनाई से निकली मंगन ध्वनि से करने वाले और हर दुखःद पल पर शोक धुन बजा कर संबल देने वाले इस महान शहनाई वादक के जाने पर किसी ने कुछ नहीं बजाया, न तबला, न सारंगी, न सितार, न संतूर, न जलतरंग, न वीणा, न सरोद, न बांसुरी और न उस्ताद की पसंदीदा कजरी ही गाई। उनके जाने पर भी पृष्ठभूमि में उन्ही की शहनाई रोई। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां केवल शहनाई को ही बेवा नहीं कर गए बल्कि हर उस उम्मीद को बेवा कर गए जो उनसे बाबस्ता थीं।

(लेखक स्टार न्यूज़ में न्यूज़ एंकर हैं)


स्टार न्यूज़ एजेंसी
हिसार (हरियाणा). अभी कुछ देर पहले हिसार की महावीर कॉलोनी में क्षेत्रवासियों की सजगता से जयपुर जैसा भीषण अग्निकांड होने से बच गया. इलाक़े में आग लगे ही लोगों की सांसें थम गई थीं. नज़र के सामने जयपुर के अग्निकांड की दर्दनाक तस्वीरें ही घूम रही थीं.

हुआ यूं की अभी कुछ देर पहले हिसार की महावीर कॉलोनी में एक गैस सिलेंडर में आग लग गई. आग की लपटे उठते देख इलाक़े के लोग इकट्ठे हो गए. इसी दौरान एक व्यक्ति ने अग्निशमन विभाग को फ़ोन कर हादसे की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही अग्निशमन की गाड़ी फ़ौरन आ गई और अग्निशमन दल के लोगों ने आग पर क़ाबू पा लिया.

क़ाबिले-गौर है जिस जगह सिलेंडर में आग लगी, वहीं पर कुछ क़दम की दूरी पर पेट्रोल के टैंक हैं, जिनमें इतना तेल है कि यहां पर हुआ कोई भी हादसा पूरे शहर को तबाह कर सकता है. इतना ही नहीं पेट्रोल के इस ज़खीरे के साथ ही रेलवे स्टेशन भी है.


سٹار نیوز ایجنسی
لندن (برطانیہ ) : تحریک انصاف برطانیہ کے کارکنوں نے لندن میں پاکستان ہائی کمیشن کے سامنے گمشدہ افراد اور ڈاکٹر عافیہ صدیقی کی بازیابی کے لیے مظاہرہ کیا۔مظاہرین نے ہائی کمیشن کے سامنے این آر او اور چینی کے خلاف بھی کتبے اٹھا رکھے تھے اور نعرے بھی لگائے۔اس موقع پر انسانی حقوق کی رہ نما ایوان ریڈلی بھی شامل تھیں۔تحریک انصاف کے مقامی رہ نما رابعہ ضیا نے جیونیوز سے گفت گو کرتے ہوئے کہا کہ پاکستان میں انتخابات کے موقع پر ہر پارٹی نے گمشدہ افراد کو بازیاب کرانے کا وعدہ کیا تھا مگر ابھی تک اس پر عمل درآمدنہیں ہوا۔


سٹار نیوز ایجنسی
سنگاپور : امریکی صدر براک حسین اوباما نے کہا ہے کہ ایران کے ایٹمی تنازع کے سفارتی حل کا وقت تیزی سے ختم ہورہا ہے۔ سنگاپور میں روسی صدر سے ملاقات کے بعد براک حسین اوباما نے کہا کہ ان کی روسی صدر سے بات چیت مثبت رہی۔ امریکا اور روس اس بات پر متفق ہیں کہ عالمی یقین دہانیاں پوری کرنے کیلئے ایران پر دباوٴ ڈالنے کا سلسلہ جاری رکھا جائے گا۔ اگر ایران نے دنیا سے کئے گئے وعدے پورے نہ کئے تو اس کے خلاف دیگر ذرائع استعمال کئے جاسکتے ہیں تاہم روسی صدر دمتری میدویدیف نے کہا کہ دیگر ذرائع اسی وقت استعمال کئے جاسکتے ہیں جب مذاکرات کا کوئی نتیجہ نہ نکلے۔براک اوباما نے روسی صدر کے علاوہ انڈونیشیا کے صدر سوسیلو بمبانگ سے بھی ملاقات کی اور دوطرفہ تعلقات اور علاقائی صورتحال پر تبادلہ خیال کیا۔ بعد میں وہ چین کے پہلے دورے پر شنگھائی پہنچ گئے۔



फ़िरोज़ बख्त अहमद
मौलाना आजाद न केवल आपसी भाईचारे के प्रतीक थे, बल्कि राष्ट्रीय सौहार्द का जीता-जागता उदाहरण थे। यदि आज विश्व में भारतीय इस्लाम को एक आदर्श के तौर पर दर्शाया जा रहा है तो इस का श्रेय मौलाना आज़ाद, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी, मौलाना अब्दुल वहीद सिद्दीकी आदि जैसे देशभक्त नेताओं को जाता है। मौलाना आज़ाद की लेखनी में एक ऐसा जादू था, जो सर चढ़कर बोलता था।

उनके लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वर्षों पूर्व उन्हें इस बात का आभास हो गया था कि यदि भारत का विभाजन हुआ तो उससे न तो पाकिस्तान में मुसलमान और न ही भारत में हिन्दू वर्ग खुश रहेगा। वे मानते थे कि भारत का 95 प्रतिशत हिन्दू धर्मनिरपेक्ष और सौहार्द की भावना में विश्वास रखता है।

लिखने-पढ़ने का चाव आज़ाद को पागलपन की हद तक था। जब वे ‘दर्स-ए-निज़ामी’ के छात्र थे तो सन् 1900 में ही उन्होंने अपना अख़बार ‘अहसन’ निकाला, मगर यह अधिक दिन तक न चल सका। फिर भी बारह वर्ष की आयु में ऐसा कार्य करने पर उन्हें बड़ी शाबाशी दी गई। इसी उम्र में वे प्रकाशक बन गये थे तथा सन् 1900 में ‘नौरंगे-आलम’ नामक कविताओं की एक पत्रिका निकाली, जो आठ मास तक निकलती रही। 16 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपने ही एक पत्र ‘लिसानुस-सिदक़’ का संपादन शुरू किया, जिसका प्रमुख लक्ष्य समाज सुधार को बढ़ावा देना, उर्दू विकास करना तथा साहित्यिक रुचि जाग्रत करना था।

इसके पश्चात् उन्होंने भिन्न पत्रिकाओं व समाचार पत्रों के लिये लेख लिखने प्रारम्भ किये। 1902 में ‘मुख़ज़िन’ (लाहौर) के अंक में जब उर्दू पत्रकारिता पर उनका लेख, ‘फ़ने अख़बार नवीसी’ काफी चर्चित हुआ। उस समय के जाने-माने आलिम व लेखक अल्लामा शिब्ली नोमानी ने उनके लेख पढ़े तो बड़े प्रभावित हुए। एक लेखक सम्मेलन में जब उन्होंने मौलाना आज़ाद को देखा तो समझे कि उनके पुत्र हैं और बोले, ‘बरख़ुरदार! आपके पिता मौलाना आज़ाद क्यों नहीं पधारे?’ पास खड़े लोगों ने जब वास्तविकता बताई तो शिब्ली आश्चर्यचकित रह गये कि इतनी छोटी आयु में इतना ज्ञान।

यह मौलाना आज़ाद के लिखने-पढ़ने का चाव ही था कि उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। वास्तव में 1912 में आज़ाद ने एक उर्दू साप्ताहिक, ‘अल-हिलाल’ शुरू किया। इसमें भिन्न प्रकार के लेख प्रकाशित हुआ करते थे। विशेष रूप से देश-प्रेम के लेख और भारत को अंग्रेजों के चुंगल से छुड़ाने के। गांधीजी को मौलाना का यह कार्य बहुत पसंद आया। इस अखबार को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया, परंतु 1916 में पुन: ‘अल-बलाग’ के नाम से इसे मौलाना ने प्रकाशित किया और उस समय इसकी प्रसार संख्या 29,000 पहुंच गई। अंग्रेजों ने एक बार फिर उसे बंद कर दिया। दो-देश वाले फार्मूले के मसीहा मुहम्मद अली जिन्नाह के भड़काऐ लोगों से अनेक बार आज़ाद ने आग्रह किया कि जिन्नाह का सौदा घाटे का सौदा है। पर तब कई लोग होश की नहीं, जोश की बात कर रहे थे। उनकी बात को वज़न नहीं दिया गया। उधर जिन्नाह ने अपने धुंआधार भाषणों व व्याख्यानों से कई लोगों की बुद्घि भ्रष्ट कर दी थी। जिस समय विभाजन हुआ, मौलाना आज़ाद ने जामा मस्जिद की सीढ़ियों से दिल्ली के ही नहीं अपितु पूर्ण भारत के मुस्लिम सम्प्रदाय से एक दिल को छू लेने वाले भाषण में आग्रह किया कि जो लोग पाकिस्तान चले गए, सो गए। उन्हें भूलना ही बेहतर है। उनके भाषण को सुन कुछ लोगों ने अपने पैर रोक दिये थे, पर अधिकतर लोग फिर भी चले गए।

‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ में आजाद ने लिखा था कि विभाजन का सपना 25-30 वर्ष में ही टूट जायेगा। ऐसा हुआ भी, क्योंकि यह विभाजन अप्राकृतिक था। उन मुसलमानों से मौलाना बड़े नाराज़ थे, क्योंकि उन्होंने बजाये उनके और गाँधीजी के इब्रुलवक्त (अवसरवादी) जिन्नाह का साथ दिया। अपने एक संस्मरण में वयोवृद्घा स्वतन्त्रता सेनानी अरूणा आसफ़ अली ने लिखा है कि जब भारत को आज़ादी मिली तो 14 अगस्त 1947 की रात को दूसरे नेता तो ख़ुश थे, मगर मौलाना आज़ाद रो रहे थे क्योंकि उनके निकट यह विभाजन बड़ा भयानक था।

यूं तो आजादी के बाद वे शिक्षामंत्री बने और 1952 में रामपुर व 1957 में गुड़गांव से चुनाव जीते, मगर उन में उत्साह समाप्त हो चुका था। फिर भी उन्होंने अनेक संगीत, नाटक अकादमियां, विज्ञान विभाग व महाविद्यालय खोले। 22 फ़रवरी 1958 को उनका देहान्त हुआ तो पण्डित नेहरू ने कहा कि मौलाना आज़ाद जैसा व्यक्ति अब कभी पैदा नहीं होगा।

(लेखक अध्यापक हैं)


बीस घरों के राग रंग में अस्सी चूल्हे बन्द हुए क्यों?
लोकतंत्र के प्रायः प्रहरी इतने आज दबंग हुए क्यों?
दुबक गए घर बुद्धिजीवी खुद को मान सुरक्षित।
चहुं ओर है धुंआ-धुंआ ही यह क्यों नहीं परिलक्षित?
दग्ध हुई मानवता जिसको मिलकर नहीं सहलायेंगे।
तो इस आग में हम भी जल जायेंगे।।

जन के ही सर पग धर कोई लोकतंत्र के मंदिर जाता।
पद पैसा प्रभुता की खातिर अपना सुर और राग सुनाता।
उनकी चिन्ता किसे सताती जो जन राष्ट्र की धमनी है।
यही व्यवस्था की निष्ठुरता उग्रवाद की जननी है।
राष्ट्रवाद उपहास बनेगा गर कुछ न कर पायेंगे।
तो इस आग में हम भी जल जायेंगे।।

बना हिन्द बाजार जहां नित गिद्ध विदेशी मंडराते हैं
यहीं के श्रम और साधन से परचम अपना फहराते हैं।
विश्व-ग्राम नहीं छद्म-गुलामी का लेकर आया पैगाम।
आजादी के नव-विहान हित अलख जगायें हम अविराम।
सजग रहे माली उपवन का तभी सुमन खिल पायेंगे।
या इस आग में हम भी जल जायेंगे।।
-श्यामल सुमन

(श्यामल सुमन टाटा स्टील, जमशेदपुर में प्रशासनिक पदाधिकारी हैं)



सामग्री : 300 ग्राम पालक, 125 ग्राम पनीर, थोड़ा-सा चीज़, 1 बड़ा चम्मच अदरक-लहसुन पेस्ट, 2 हरी मिर्च, 1 टमाटर (कटा हुआ), 2 प्याज (कटे हुए), पाव छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, आधा छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, आधा छोटा चम्मच गरम-मसाला, नमक स्वादानुसार, आधा छोटा चम्मच कटा हरा-धनिया, एक बड़ा चम्मच क्रीम, 1 चम्मच मक्खन और 2 बड़े चम्मच तेल.

विधि : पालक को अच्छी तरह धोकर काट लें. कुकर में कटा पालक डालें. फिर उसमें टमाटर और हरी मिर्च डालकर 5 मिनट पका लें. इसे ठंडा करें और बाउल में डालें. प्याज (कटा हुआ) और मलाई डालकर बारीक़ पेस्ट तैयार कर लें. अब कड़ाही में तेल और मक्खन गरम करें. फिर ज़ीरा डालें. उसके बाद अदरक-लहसुन पेस्ट डालें और अच्छी तरह भूनें. अब इसमें हल्दी, लाल मिर्च पाउडर और नमक डालकर अच्छी तरह भूनें. अब इसमें पालक पेस्ट मिलाकर थोड़ी देर पकाएं. जब ग्रेवी तेल छोड़ने लगे तो उसमें क्रीम डालकर पनीर के टुकड़े डालें. फिर 3 से 4 मिनट के लिए कवर कर दें. जैसे ही कड़ाही के किनारों में तेल दिखने लगे तब उसमें गरम-मसाला छिड़क दें. ज़ायकेदार पालक-पनीर तैयार है.

अब इसे सर्विंग बाउल में निकालकर चीज़ और हरे धनिये से सजाएं. 


साईं बाबा (28 सितंबर, 1835– 15 अक्तूबर, 1918) प्रसिद्ध संत हैं. उनका जीवन शिरडी (महाराष्ट्र) में बीता. उन्होंने लोक कल्याणकारी कार्यों को बढ़ावा दिया और जनमानस में भक्ति प्रकाश फैलाया. देश-विदेश में उनके अनुयायी बसते हैं. साईं बाबा के कारण ही शिरडी को धर्म नगरी माना जाता है.


तेरी यादों से टकराती हैं आंखें
तुझे न पाकर बह जाती हैं आंखें

नज़र उसकी है मुझ पे जब भी उसकी
मेरे जीवन को महकाती हैं आंखें

तेरी राहों को अकसर देखती हैं
मगर तुझको नहीं पाती हैं आंखें

गये लम्हों के गुलदस्ते सजाकर
बिन सोचे चली आती हैं आंखें
-सरफ़राज़ ख़ान



प्र. सरफ़राज़ ख़ान
नारियल का पेड़ प्राचीनतम पौध प्रजातियों में से एक से संबंधित है। यह पेड़ पूरे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाया जाता है। नारियल का पेड़ पूरे विश्व में व्यापक रूप से उगने वाला पेड़ है जो जीवन के लिए प्रत्येक आवश्यक चीजें हमें प्रदान करता है। नारियल का पेड़ पूरी तरह सुडौल और गोलाकार होने के साथ-साथ 20 से 30 मीटर ऊंचा होता है जो लगभग 100 वर्षों तक जिंदा रहकर प्रतिवर्ष 70 से लेकर 100 नारियल पैदा करता है। इंडोनेशिया, फिलीपीन, भारत और श्रीलंका नारियल के प्रमुख उत्पादक हैं और इन देशों के लिए यह आय के प्रमुख स्रोतों में से एक है। खाद्य और पेय के अलावा नारियल के पेड़ के विभिन्न हिस्सों का इस्तेमाल पायदान, दरी, फर्नीचर, चारकोल आदि बनाने में किया जाता है।

नारियल रेशे को इसके फल के छिलके से निकाला जाता है। इसके बाद निकाले गए रेशे को धुनकर धागा तैयार किया जाता है और नारियल रेशे के विभिन्न उत्पादों को तैयार करने के लिए करघे पर बुनाई की जाती है। नारियल रेशे के विशेष गुणों के कारण इसके उत्पाद पर्यावरण हितैषी और जैविक अवमूल्यन के गुणों से युक्त होते हैं।

नारियल रेशा
नारियल के फल के छिलके में विभिन्न लंबाई वाले 20 से 30 प्रतिशत रेशे पाए जाते हैं। छिलके को पीसकर रेशे प्राप्त किए जाते हैं। नारियल के फल का छिलका काफी मजबूत होता है और समुद्री जल से इसे कोई नुकसान नहीं होता जिसके कारण यह फल कई महीने तक सुरक्षित रहता है तथा बीज के उगने के लिए आवश्यक अन्य पोषक तत्व भी इसमें मौजूद रहते हैं। इन्हीं गुणों के कारण नारियल रेशा पायदान, चटाइयां, बगीचे में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएं, एक्वेरियम फिल्टर, रस्सियां आदि बनाने के लिए उपयुक्त है। नारियल रेशे के दो प्रकार हैं- पहला उजला रेशा और दूसरा भूरा रेशा।

उजला रेशा
नदी अथवा जल से भरे गङ्ढे में 8-10 महीने तक अपरिपक्व-मुलायम छिलकों को डालकर छोड़ दिया जाता है और इस प्रक्रिया के माध्यम से उजला रेशा प्राप्त किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान सूक्ष्मजीव रेशे के आस-पास के वानस्पतिक ऊतकों को तोड़कर अलग हटाते हैं। इसके बाद छिलके को हाथ से पीटकर अथवा मशीन के द्वारा लंबे रेशों को अलग किया जाता है और फिर उन्हें सुखाकर साफ किया जाता है। इस प्रकार साफ किए गए रेशे कताई के लिए तैयार हो जाते हैं , तकली से कताई करके इनका धागा बनाया जाता है ताकि रस्सी, चटाई एवं दरी जैसे विभिन्न उत्पाद तैयार किए जा सकें।

भूरा रेशा
पूरी तरह परिपक्व नारियल फल के छिलके को तीन से पांच दिनों तक जल में डुबाकर रखा जाता है और इसके बाद उसे हाथ से अथवा मशीन की सहायता से तोड़कर भूरा रेशा प्राप्त किया जाता है। अगली प्रक्रिया में लंबे रेशों को छोटे रेशों से अलग किया जाता है। ये रेशे काफी लचीले होते हैं और टूटे बिना ही मुड़ सकते हैं। भूरे रेशे का इस्तेमाल मुख्य रूप से ब्रशों और बगीचों में इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं को तैयार करने में किया जाता है।

नारियल रेशे के गुण
नारियल का रेशा किसी अन्य प्राकृतिक रेशे की तुलना में अधिक मजबूत होता है और आयतन में किसी फैलाव के बिना ही अधिकतम 200 प्रतिशत जल अवशोषित करता है। यह एक बहुविध प्राकृतिक रेशा है जो 10 से 20 एमएम व्यास वाले और 1.3 एमएम से कम लंबाई वाले धागों से बना होता है। अत्यधिक आर्द्रता की स्थिति में अपने वजन के 15 प्रतिशत तक नमी धारण करते हुए यह आर्द्रता घटाने वाले एक कारक के रूप में काम करता है। अपनी सतह पर सल्फर डायऑक्साइड और कार्बन डायऑक्साइड जैसी भारी गैसों को अवशोषित करके यह कमरे की हवा को शुध्द रखता है। नारियल का रेशा ज्वलन को कम करने वाला होता है और आसानी से जलता नहीं है। यह ताप और ध्वनि का एक बेहतरीन अवरोधक है।

लिगनिन और सेल्यूलोज नारियल रेशे के प्रमुख घटक हैं। इसके रेशे में 45 प्रतिशत लिगनिन पाया जाता है जो इसे प्राकृतिक रेशों में से सबसे मजबूत बनाता है। टिकाऊ होने के साथ-साथ इसका जैविक अवमूल्यन आसानी से हो जाता है। कीट-रोधी होने के साथ-साथ यह फफूंद-रोधी और सड़नरोधी भी है। यही कारण है कि नारियल रेशे का बहुविध औद्योगिक इस्तेमाल होता है।

नारियल रेशे का इस्तेमाल
नारियल रेशे की विशेषताओं के कारण कृषि और मृदा संरक्षण सहित विभिन्न क्षेत्रों में इसका व्यापक इस्तेमाल किया जाता है।

नारियल की रस्सी
नारियल की रस्सी सामान्य रूप से दो लड़ियों वाली होती है जिसे हाथ से अथवा कताई मशीनों के इस्तेमाल से तैयार किया जाता है। इस्तेमाल में लाए गए रेशे की गुणवत्ता, ऐंठन की प्रकृति, अशुध्दता आदि के आधार पर इनकी कई श्रेणियां होती हैं और यह कई रूपों में पायी जाती हैं जिनका इस्तेमाल विभिन्न औद्योगिक और कृषि संबंधी कार्यों में होता है।

नारियल रेशा एक जैविक रेशा
नारियल रेशा एक जैविक अवशिष्ट है जो पर्यावरण अनुकूल होने के साथ ही बड़े पैमाने पर मृदा क्षरण और मृदा अपरदन का प्राकृतिक समाधान है। नारियल रेशा एक ऐसा जैविक रेशा है जो काफी मजबूत होने के साथ-साथ काफी मात्रा में जल का अवशोषण करता है। नारियल रेशे में नमी काफी समय तक कायम रहती है और यह जल अवशोषित करके और मिट्टी को सूखने से बचाकर नई वनस्पति के पनपने और उसके विकास में सहायक होता है। नारियल रेशे का जैविक आवरण चार से पांच वर्षों के लिए पौधों को मिट्टी का सहारा प्रदान करता है। नदी के किनारों को बचाने, सड़क निर्माण करने और भूमि में सुधार लाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

नारियल रेशे का मज्जा
इसका मज्जा वह पदार्थ है जो नारियल रेशे को छिलके में जोड़ता है । अब तक इसे एक समस्यामूलक कचरा माना जाता था किन्तु हाल में इसकी मांग काफी बढ़ी है, क्योंकि इसका इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता को सुधारने और पौधों को विकसित करने के लिए किया जाता है । नारियल रेशे का मज्जा अपने वजन की तुलना में 8 से 10 गुणा अधिक जल अवशोषित कर सकता है और इस गुण के कारण पौधशाला में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कॉयर बोर्ड द्वारा विकसित एक सरल प्रौद्योगिकी के माध्यम से नारियल के मज्जे को जैविक खाद (सी-पॉम) के रूप में बदला जा सकता है। इस प्रकार कम्पोस्ट किए गए नारियल रेशे का मज्जा मिट्टी के जैविक अवयव के रख-रखाव के लिए किफायती होने के साथ-साथ जैविक कार्बन का स्रोत है, जिसका जैविक खेती में व्यापक इस्तेमाल हो सकता है।

नारियल रेशे की चटाई
नारियल रेशे की चटाइयां हथकरघों, बिजली से चलने वाले करघों (पावरलूम) पर बनाई जाती हैं। सामान्य तौर पर निर्मित चटाइयों में फाइबर मैट, क्रील मैट, रॉड मैट, कारनेटिक मैट आदि शामिल हैं। नारियल रेशे की बुनी हुई और विभिन्न डिजाइनों में तैयार की गई चटाइयां पायदानों के रूप में इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हैं। इन चटाइयों को फिसलन मुक्त बनाने के लिए इनमें लैटेक्स लगाया जाता है।

नारियल रेशे की दरी
नारियल रेशे की दरियां पारंपरिक हथकरघा अथवा पावरलूम पर बनायी जाती हैं और ये विभिन्न डिजाइनों और रंगों में उपलब्ध हैं। मुख्य रूप से इनका इस्तेमाल फर्श को ढकने के साथ -साथ छत और दीवार में लगाने के लिए भी किया जाता है।

बगीचे की वस्तुएं
बगीचे में काम आने वाले अधिकांश उत्पाद नारियल रेशे से तैयार किए जा सकते हैं। नारियल रेशे से बने गमले, लटकती हुई सजावटी टोकरियों आदि का इस्तेमाल सामान्य रूप से बगीचे में किया जाता है। पहले इनके स्थान पर प्लास्टिक की बनी चीजें प्रयोग में लाई जाती थीं जिनके कारण पर्यावरण संबंधी कठिनाइयां उत्पन्न होती थीं। नारियल की भूसी का इस्तेमाल बागवानी संबंधी विभिन्न कार्यों में किया जाता है।

कॉयर कंपोजिट
कॉयर कंपोजिट की मजबूती और टिकाऊपन के कारण लकड़ी के एक विकल्प के तौर पर इसका व्यापक इस्तेमाल किया जाने लगा है। कॉयर कंपोजिट पर्यावरण अनुकूल और किफायती होता है। कॉयर कंपोजिटों का इस्तेमाल रूफ शीट, फर्नीचर ट्रे, दरवाजे, खिड़की, पैकिंग बॉक्स आदि बनाने में किया जाता है।

चूंकि नारियल का रेशा जैविक अपशिष्ट होने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल भी है, इसलिए विशिष्ट रासायनिक और भौतिक गुणों के कारण यह बहुविध इस्तेमाल के लिए उपयुक्त पाया गया है। नारियल का रेशा सबसे मजबूत प्राकृतिक रेशा है और यह एकमात्र ऐसा रेशा है जो खारे जल का भी प्रतिरोधक है। नारियल रेशा एक जैविक रेशा है जो मृदा क्षरण और मृदा अपरदन का प्राकृतिक समाधान है तथा इसके मज्जे का इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता बढाने में किया जाता है। कॉयर कंपोजिट को लकड़ी के एक विकल्प के रूप में बेहतर ढंग से स्वीकार किया गया है, जिसके प्रयोग से वनों के घटते क्षेत्रफल को रोका जा सकता है।



आज 'दैनिक जागरण' में बिहार के परसथुआं में 35 हिन्दुओं द्वारा ईसाई धर्म स्वीकार किए जाने के बारे में एक ख़बर शाया हुई है...

परसथुआं (रोहतास)। स्थानीय गिरीश नारायण मिश्र महाविद्यालय के प्रांगण में मंगलवार को 35 हिन्दुओं को बतीस्मा पिला इसाई धर्म स्वीकार कराया गया। धर्म परिवर्तन करने वालों में दलित व गरीब हैं। सभी को गोरिया नदी में पवित्र स्नान कराया गया।

बर्न आउट रिच नेटवर्क पटना के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में कैमूर व भोजपुर जिले के अलावा कई जगहों से धर्म परिवर्तन के लिए लोग जुटे थे। पास्टर कन्हैया राम ने कहा कि प्रभू यीशु ने उन्हें दुष्ट आत्मा से मुक्ति दिला इसाई धर्म कबूल करवाया। भोजपुर के रविकुमार, काराकाट के बेतिया देवी, सफरौली के एकादशी राम, सुरेन्द्र पाल, मानिक पासवान, उपेन्द्र साह, रणविजय राय, रामकिशोर सिंह सहित 35 लोगों ने धर्म परिवर्तन किया। मिशन इतना गुप्त रखा गया कि पुलिस को भी भनक नहीं लगी। कोल बहादुर व विनोद कुमार ने बाइबिल का पाठ सुनाकर उन्हें ईसाई बनाया। खुढ़हरिया, खुढ़नू, सकरौली सहित कई गांवों के दलितों ने भी धर्म परिवर्तन किया। प्राचार्य डा. उमाशंकर द्विवेदी ने कहा कि वे महाविद्यालय कार्य से बाहर थे। कार्यक्रम की अनुमति किसने दी इसकी जांच की जाएगी।

थाने की बजती रही घंटियां..
परसथुआं : थाने की बजती रही घंटियां और थानाध्यक्ष का मोबाइल स्वीच आफ रहा। स्थानीय बाजार में इसाई मिशनरीज द्वारा आयोजित धर्म परिवर्तन सभा में थाना से न तो चौकीदार पहुंचा और न हीं थानेदार। लोग थाने के नम्बर पर फोन करते रहे, लेकिन कोई नहीं उठाया। थक-हारकर लोगों ने थानाध्यक्ष के मोबाइल पर फोन किया वह भी स्वीच आफ रहा। कुछ लोगों ने थानाध्यक्ष तारणी प्रसाद यादव को जानकारी दी। श्री यादव ने कहा कि सभा करने की कोई सूचना थाना को नहीं दी गयी है। धर्म परिवर्तन कब और कहां हुआ इससे भी वे सिरे से इंकार गए।



स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्यों को सलाह दी है कि वे आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को एक बार से अधिक भोजन दें, जिसमें दूध, केला, अंडा, मौसमी फल पर आधारित सुबह का नाश्ता हो और उसके बाद गरमा-गरम भोजन दिया जाए। राज्यों को यह सलाह भी दी गई है कि वे तीन से छह वर्ष आयु वर्ग के कमजोर बच्चों को शक्तिवर्धक खाद्य भी नियमित भोजन के साथ दें।

आज यहां महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने अपने मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति के सदस्यों को यह बताया। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने यह भी फैसला किया है कि बच्चों की बढ़त और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य की निगरानी करने की प्रणाली को मजबूत किया जाए। उन्होंने बताया कि एकीकृत बाल विकास सेवाओं और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए माता एवं बालक सुरक्षा कार्ड शुरू किए जाएंगे।

बच्चों के पोषण संबंधी भरोसेमंद आंकड़ों के बारे में सांसदों द्वारा दिए गए सुझावों पर मंत्री महोदया ने कहा कि उनके मंत्रालय ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से आग्रह किया है कि वह कुपोषण को मद्देनजर रखते हुए कम से कम उन ग्यारह राज्यों में प्रतिवर्ष सर्वेक्षण जरूर कराए जहां स्थिति शोचनीय है।

बैठक में भाग लेने वाले सांसदों ने एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रमों की निगरानी का मुद्दा उठाया और निगरानी प्रणाली में जन प्रतिनिधियों को सम्मिलित करने का सुझाव दिया। सदस्यों ने आंगनबाड़ी के लिए इमारतों के निर्माण और उनकी गतिविधियों में महिला संगठनों तथा पंचायतों को शामिल किए जाने का भी सुझाव दिया। चर्चा में सुष्मिता बौरी, एकनाथ एम. गायकवाड़, जयश्री बेन पटेल, झांसी लक्ष्मी बोटचा, अनंत कुमार हेगड़े, कमला देवी पाटले और निखिल कुमार चौधरी ने हिस्सा लिया।


स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. न्यूमोनिया के पहले 24 घंटों में एक्स-रे नॉर्मल हो सकता है. यह जानकारी मूलचंद अस्पताल में कल 150 से अधिक डॉक्टरों को संबोधित करते हुए हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने दी.

उन्होंने कहा कि न्यूमोनिया समुदाय में हो सकता है और इसके लिए अस्पताल की ज़रूरत होती है. समुदाय में न्यूमोनिया होता है और न्यूमोनिया समुदाय में किसी को भी हो सकता है. भले ही उसका इससे स्वास्थ्य संबंधी संपर्क न हो और इसका आसान-सी एंटीबायोटिक्स से इलाज किया जा सकता है. अगर किसी व्यक्ति को अस्पताल में दाखिल होने के 48 घंटों के बाद या फिर 48 घंटों के एंडोट्रैकियल इन्टयूबेषन के बाद न्यूमोनिया होता है तो उसे अस्पताल में होने वाले या वेंटिलेटर सम्बंधी न्यूमोनिया के नाम से जाना जाता है और इसमें महंगी एंटीबायोटिक्स की जरूरत होती है।

उन्होंने कहा कि एचसीएपी स्वास्थ्य सेवा संबंधी न्यूमोनिया होता है और यह गैर अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों में होता है, लेकिन तब होता है जब आप हेल्थकेयर के गहरे सम्पर्क में आते हैं। अब यह एक नई अवधारणा है और आम लोगों को इस बारे में अनिवार्य रूप से जानना चाहिए कि वे यूं ही अस्पताल के चक्कर न लगाएं, क्योंकि एक बार न्यूमोनिया होने पर महंगे एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ सकती है।

एचसीएपी की आशंका उसमें होती है अगर एक मरीज ने पिछले एक महीने में इंट्रावीनस थेरेपी ली हो; और वह अपने जख्म को दिखाने के लिए डॉक्टर के पास जा रहा हो; इंट्रावीनस केमोथेरेपी ली हो; हीमोडायलसिस क्लीनिक के लिए अस्पताल जाता हो। उसमें भी इसकी आशंका होती है जो एक्यूट केयर फेसिलिटीज के लिए पिछले तीन महीनों में अस्पताल में दाखिल हुआ हो।

गैर जटिल कम्युनिटी एक्वायर्ड न्यूमोनिया (सीएपी) का उपचार क्लीनिक पर किया जा सकता है और इसमें मौत की दर बहुत कम होती है, लेकिन जिनमें अस्पताल में दाखिल होने की जरूरत होती है, उनमें मृत्यु दर 37 फीसदी होती है। उच्च आशंका वाले कम्युनिटी एक्वायर्ड न्यूमोनिया के मरीजों को फॉर्मूला सीयूआरबी 65 याद रखना चाहिए - यहां सी से मतलब कंफ्यूजन (एनॉक्सिया) से है, यू से तात्पर्य यूरिया का 20 (प्री रीनल एजोटेमिया) से अधिक होना, आर का मतलब रेस्पायरेटरी रेट 30 (एनॉक्सिया) से ज्यादा होना और बी का मतलब ब्लड प्रेषर नीचे का 60 ( CO2 रीटेंशन) से कम होना है।

समुदाय में कोई भी मरीज जिसे न्यूमोनिया हो और उसने 72 घंटे तक पर इस पर ध्यान नहीं दिया तो उसे उच्च आषंकित मरीज के तौर पर उपचार किया जाना चाहिए। न्यूमोनिया के मरीजों में मृत्यु दर तब कम होती है जब वे लोग न्यूमोनिया/फ्लू का टीका पहले ही लगवा चुके हों। समुदाय से होने वाले न्यूमोनिया के उपचार के लिए इसके लक्षण और एक्स-रे का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। लेकिन अगर स्वास्थ्य कर्मियों से सम्बंधी न्यूमोनिया हो तो ऐसे मामले में स्प्यूटम कल्चर एग्जामिनेषन की जरूरत होती है।

सांस न आना या खांसी का लगातार आते रहने में एक्स-रे को उपचार के तौर पर न अपनाएं। खांसी न्यूमोनिया से हो सकती है और यह एक हफ्ते में खत्म हो जाती है और एक्स-रे की जरूरत चार हफ्तों में हो सकती है जो किसी एक नॉर्मल भी हो सकता है और वयस्कों में 12 हफ्तों में भी सामान्य हो सकता है। अगर जरूरी हो तो अस्पताल से छुट्टी मिलने के हफ्ते भर बाद दोबारा से एक्स-रे करवाएं। मगर इसके अगले एक्स-रे के लिए 8 से 12 हफ्तों की जरूरत होती है जिनसे से न्यूमोनिया का समाधान निकाला जाता है और इसमें कुपोशण के षिकार लोग शामिल नहीं होते।

सामान्य स्वास्थ्य कर्मियों से सम्बंधित न्यूमोनिया जिसमें एमडीआर आषंकित नहीं होता तो उसका उपचार आईवी 2 जी ऑफ सेफ्ट्रियाक्सोन या लीवोफ्लोंक्सिन 750 एमजी रोजाना या एम्पिसिलिन सल्बैक्टम 3 जी इन्ट्रावीनस हर छह घंटो में ली जानी चाहिए। सबसे बढ़िया उपचार रोजाना 750 एमजी की लीवोफ्लोक्सेसिन रोजाना दी जानी चाहिए।



स्टार न्यूज़ एजेंसी
अंबाला (हरियाणा). महिला से लिए अमूमन महिला, नारी या स्त्री शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि संस्कृत में 'महिला' के लिए 352 पर्यायवाची शब्द मौजूद हैं. यह कहना है अंबाला कैंट निवासी पीयूष अग्रवाल का.

पीयूष के मुताबिक़ 'महिला' के लिए जो पर्यायवाची शब्द खोजे हैं, उनमें प्रज्ञा, कोटवी, दूति:, कात्यायनी, सौरिंध्रि:, निन्दु:, निर्वीरा, श्रवणा, आत्रेयी, रजस्वला, मलिनी, आभीरी, श्यालिका,श्रद्धालु:, दोहदवती, निष्फला, विगतार्तवा, कानीन:, विजाता, प्रजाता, प्रसूतिका, यंत्रिणी, जीवत्पति:, वचस्या, असती, इत्वरी, चर्षणी, पांसुला, अविनीता, असिता, गणिका, शंभली, अवि: आदि शामिल हैं. उन्होंने महिला के इन पर्यायवाची शब्दों को त्रिकांडशेष कोश, हलायुधकोश, अभिधानचिंतामणि वाचस्पत्यम्, आप्टे आदि ग्रंथों से एकत्रित किया है.

टिम्बर मार्केट से जुड़े पीयूष इन दिनों यूजीसी के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और उन्हें संस्कृत से बेहद लगाव है.


फ़िरदौस ख़ान
बिहार के किशनगंज ज़िले के टप्पू नामक अति पिछड़े ग़ांव में स्थित मिल्ली गर्ल्स स्कूल साम्प्रदायिक सद्भावना की एक ज़िंदा मिसाल है। दिल्ली की ऑल इंडिया तालिमी वा मिल्ली फ़ाउंडेशन द्वारा स्थापित इस स्कूल के निर्माण में मुसलमान ही नहीं, हिन्दुओं की भी अहम भूमिका रही। दिलचस्प बात यह है कि स्कूल के लिए फ़ाउंडेशन को एक इंच भी ज़मीन ख़रीदनी नहीं पड़ी। ग़ांव के बाशिंदे अब्दुल हफ़ीज़, मेरातुल हक़, गुलतनलाल पंडित, मास्टर सुखदेव और मुखिया किशनलाल दास ने फ़ाउंडेशन को यह भूमि दान में दी। क़रीब 35 लाख रुपए से साढ़े तीन एकड़ में बने इस स्कूल में खेल का मैदान भी है। स्कूल की इमारत के समीप ही दो मंज़िला हॉस्टल और स्टाफ क्वार्टर भी बनाए गए हैं।

आठ दिसंबर 2002 को इस स्कूल की विधिवत् शुरुआत की गई। उस समय स्कूल में केवल 35 छात्राएं थीं, लेकिन अब इनकी तादाद बढ़कर 355 हो गई है। स्कूल में हिन्दू लडक़ियां भी पढ़ रही हैं। दूर-दराज के इलाकों से यहां आकर शिक्षा ग्रहण करने वाली 160 छात्राएं हॉस्टल में रहती हैं जिनमें नौ हिन्दू लडक़ियां शामिल हैं। सीबीएससी से मान्यता प्राप्त सातवीं कक्षा तक के इस स्कूल का उद्देश्य गरीब लड़कियों को शिक्षित करना है। इसलिए हर छात्रा से ट्यूशन फीस के मात्र एक सौ रुपए लिए जाते हैं और हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं से सात सौ रुपए लिए जाते हैं। जिनके अभिभावक यह फीस देने में समर्थ नहीं होते उन लडक़ियों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। इस समय स्कूल में 109 ऐसी छात्राएं हैं, जिनसे फीस नहीं ली जाती। स्कूल में लडक़ियों के स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। नाश्ते और भोजन में पौष्टिक तत्वों से भरपूर व्यंजन दिए जाते हैं। हफ्ते में एक दिन मांसाहारी भोजन परोसा जाता है जिसमें अंडा, मछली, चिकन और मटन शामिल है। चूंकि हॉस्टल में हिन्दू लडक़ियां भी रहती हैं, इसलिए 'बड़े' का मीट यहां वर्जित है। स्कूल में शिक्षा के साथ सांस्कृतिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया जाता है।

दिल्ली की संस्था ने स्कूल बनाने के लिए आखिर इतनी दूर बिहार के किशनगंज ज़िले के टप्पू गांव को ही क्यों चुना? इसकी भी एक रोचक दास्तां है। फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद इसरारुल हक़ कासिमी बताते हैं कि 1996 में मुसलमानों में शिक्षा की हालत को लेकर एक सर्वे आया था जिसके मुताबिंक बिहार के मुसलमानों में शिक्षा का प्रतिशत बहुत कम था। सर्वे में कहा गया था कि किशनगंज ज़िले में मुसलमानों की आबादी क़रीब 65 फ़ीसदी है। एक बड़ा वोट बैंक होने के कारण अमूमन सभी सियासी दल यहां से मुसलमानों को ही अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में उतारते हैं।

नतीजतन, यहां से मुसलमान ही सांसद चुने जाते रहे हैं। इसके बावजूद यहां के मुसलमानों की हालत बेहद दयनीय है। रिपोर्ट के मुताबिक़ यहां केवल 37 फ़ीसदी मुसलमान ही शिक्षित थे। इनमें भी अधिकांश प्राइमरी स्तर तक ही शिक्षा हासिल करने वाले थे, जबकि दसवीं तक आते-आते यह आंकड़ा इकाई अंक तक नीचे आ गया। इनमें सबसे बुरी हालत महिलाओं की थी। यहां सिंर्फ 0.2 फ़ीसदी यानि एक फ़ीसद से भी कम महिलाएं साक्षर थीं। यहां महिलाओं में उच्च शिक्षा की कल्पना करना तो अमावस की रात में सूरज तलाशने जैसा था।

बस, इसी सर्वे की रिपोर्ट को पढक़र मौलाना साहब के ज़ेहन में किशनगंज के किसी गांव में ही स्कूल खोलने का विचार आया। मगर धन के अभाव में वे ऐसा नहीं कर पाए। वर्ष 2000 में उन्होंने ऑल इंडिया तालिमी वा मिल्ली फ़ाउंडेशन का गठन कर शिक्षा के क्षेत्र में काम शुरू किया। फ़ाउंडेशन को लोगों का भरपूर सहयोग मिला। फाउंडेशन ने जगह-जगह स्कूल खोले। इस समय बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में फ़ाउंडेशन 63 स्कूल चला रही है। उनकी योजना स्कूल को बारहवीं कक्षा तक करने की है। इसके अलावा शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े इलाकों में इसी तरह के तीन और स्कूल खोलने के प्रयास जारी हैं।

फ़ाउंडेशन की यह कोशिश अशिक्षा के अंधेरे में रौशनी की किरण बनकर फूटी है। इसी तरह ज्ञान के दीप जलते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस इलाके से निरक्षरता का अभिशाप हमेशा के लिए मिट जाएगा और हर तरफ़ शिक्षा का उजाला होगा।


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