स्टार न्यूज़ एजेंसी
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) . कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी पर तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने को देश के आम युवाओं का सपना है. उन्होंने कहा कि 'हम प्रभावी लोकपाल (संवैधानिक दर्जा वाला) को लाकर रहेंगे'.

उत्तर प्रदेश में अपने तीसरे जनसंपर्क अभियान के पांचवें और आख़िरी दिन शुक्रवार को राहुल गांधी ने सहारनपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, "मैंने संसद में खड़े होकर कहा था कि लोकपाल सबसे प्रभावी तभी होगा जब उसे संवैधानिक दर्जा मिलेगा. मैंने कहा कि इसे चुनाव आयोग की तर्ज़ पर ताक़तवर और प्रभावी बनाकर पारित कराने में मदद कीजिए, लेकिन विपक्षी दलों ने लोकसभा में सबसे मज़बूत लोकपाल को हराया." राहुल ने कहा कि जब हमने उनसे (भाजपा) पूछा कि आपने लोकसभा में संवैधिनाक दर्जे वाले लोकपाल को क्यों नहीं पारित होने दिया, तो उन्होंने कहा कि क्योंकि यह राहुल गांधी का सपना था इसलिए इसे हराया.

जनता को विश्वास दिलाते हुए राहुल गांधी ने कहा, "मैं आपको बता देना चाहता हूं कि यह राहुल गांधी का नहीं, बल्कि पूरे देश के युवाओं का सपना है. इसलिए संवैधानिक दर्जा वाला लोकपाल हम लाकर रहेंगे." उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता केवल भ्रष्टाचार को लेकर संसद के बाहर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जब लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की बात आई तो उन्होंने इसे पारित नहीं होने दिया. भाजपा के नेता नहीं चाहते हैं कि मज़बूत लोकपाल विधेयक पारित हो.
मायावती सरकार पर प्रहार करते हुए राहुल ने कहा, "हमने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी अधिनियम) सहित विभिन्न योजनाओं के लिए हज़ारों  करोड़ रुपये भेजे. कहां गए वो पैसे. जादुई हाथी खा गया. मायावती द्वारा जादू करके लखनऊ में बनाया गया हाथी घास-फूस नहीं, बल्कि ग़रीबों का पैसा खाता है."

राहुल गांधी ने कहा, "हमने मनरेगा लाकर हर जाति और धर्म के लोगों को रोज़गार का अधिकार दिया. इससे ग्रामीण इलाक़ों में पलायन रुका." मायावती पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, "मनरेगा से सबसे ज़्यादा दलितों को फ़ायदा हुआ. देश के हर राज्य में दलितों को इस योजना से फ़ायदा हुआ, लेकिन उत्तर प्रदेश के दलितों को नहीं हुआ, क्योंकि यहां हाथी मनरेगा का सारा पैसा खा गया." राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध करने के लिए मायावती की आलोचना करते हुए राहुल ने कहा, "जब हमने भोजन के अधिकार की बात की तो मनरेगा की तरह मायावती ने कहा कि इससे किसी को फ़ायदा नहीं होगा. हम चाहते हैं कि देश में कोई भूखा न रहे, लेकिन मायावती कह रही हैं कि ये कांग्रेस का नाटक है. मैं कहता हूं कि लखनऊ में हाथी जो पैसा खा रहा है वो है नाटक." राहुल ने कहा, "मायावती सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज के पैसे में लूट की. बुंदेलखंड जाकर वहां के लोगों का हाल देखकर मैं प्रधानमंत्री को वहां ले गया और हज़ारों करोड़ रुपये का पैकेज दिलवाया, लेकिन सारा पैसा बसपा सरकार के मंत्री खा गए. ग़रीबों के लिए वहां कोई काम नहीं हुआ." 

समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह पर तीखा प्रहार करते हुए राहुल गांधी ने कहा, "जब हम आरक्षण लाए तो मुलायम ने कहा कि जितना हुआ वो कम है. मेरा सवाल है कि जब आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो आपने मुसलमानों के लिए क्यों कुछ नहीं किया?" कांग्रेस को मुसलमानों का हितैषी बताते हुए राहुल गांधी ने कहा, "हम चाहते हैं कि आप लोग भी आगे बढ़ें. हमने ग़रीब मुसलमान छात्रों के लिए वज़ीफ़ा का प्रावधान किया. दूसरे राज्यों में छात्रों को इससे फ़ायदा हुआ,  लेकिन उत्तर प्रदेश में छात्रों को वज़ीफ़ा नहीं मिला."

भाजपा, सपा और बसपा पर उत्तर प्रदेश को पिछड़ेपन की तरफ़ ले जाने का आरोप लगाते हुए राहुल ने लोगों से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार लाने की अपील की. उन्होंने लोगों से कहा, "आप जानते हैं कि प्रदेश आगे कैसे बढ़ेगा, पर मायावती सरकार ने पांच साल से आपके हाथ बांध रखे हैं. आप अपने हाथ खोलिए और प्रदेश में बदलाव लाइए. ग़रीबों की बात करने वाली और विकास लाने वाली सरकार चुनिए."
जनसंपर्क अभियान में राहुल गांधी को सभी धर्मों और वर्गों का भारी समर्थन मिल रहा है. 

स्टार न्यूज़ एजेंसी 
पीलीभीत (उत्तर प्रदेश). कांग्रेस के महासचित राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में रही गैर कांग्रेसी सरकारों पर प्रदेश को बदहाल करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इन दलों ने जाति और धर्म के नाम पर वोट बटोरकर अपना भला किया और प्रदेश को पिछड़ेपन की तरफ़ धकेल दिया. 

यहां एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा कि पहले भारतीय जनता पार्टी के लोग आपके पास आए और बोले कि राम के नाम पर वोट दो. उन्होंने आपको धर्म के नाम पर धोखा दिया. फिर समाजवादी पार्टी के लोग आए और बोले कि विकास लाएंगे, लेकिन सपा सरकार में गुंडे पुलिस थाने चलाने लगे. फिर बहुजन समाज पार्टी ने आपसे वोट मांगे और आपने उन्हें जिताया. मगर बसपा सरकार में जनता के पैसे की जमकर लूट हुई. आज आप देख रहे हैं कि सरकार का आधा मंत्रिमंडल जेल में है. मायावती पर प्रहार करते हुए राहुल ने कहा, "मुख्यमंत्री ने पहले चार मंत्रियों को बर्ख़ास्त किया, फिर कल दो और मंत्रियों को बर्खास्त किया, जबकि चार साल से ये मंत्री जनता का पैसा लूट रहे थे. मगर उन्हें तब न हटाकर अब चुनाव के एक महीने पहले क्यों हटाया गया. दिलचस्प बात यह है कि आपकी मुख्यमंत्री ने कुछ ख़ास विभाग उन वरिष्ठ मंत्रियों को दिए जो सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं."

उत्तर प्रदेश में अपने तीसरे जनसम्पर्क अभियान के चौथे दिन राहुल गांधी ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध करने के लिए मायावती पर निशाना साधते हुए कहा, "आपकी मुख्यमंत्री ख़ुद को दलितों का मसीहा कहती हैं, लेकिन केंद्र सरकार की इस योजना से सबसे ज़्यादा फ़ायदा दलितों को होगा. उन्हें इस बात का पता नहीं है, क्योंकि वह आप लोगों के बीच नहीं जाती हैं. उन्हें पता ही नहीं है कि ग़रीब कैसे जीता है."

वरुण गांधी के संसदीय क्षेत्र में भाजपा नेताओं पर ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिफ़ न होने का ज़िक्र करते हुए राहुल ने कहा, "2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान हमारे विरोधी दल ने कहा कि भारत चमक रहा है. एयरकंडीशन कमरों में बैठने और लम्बी गाड़ियों में घूमने वाले इन नेताओं को टीवी पर एक इश्तहार अच्छा लगा और वहीं से 'इंडिया शाइनिंग' का नारा दे दिया."

उन्होंने विकास के लिए प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने की अपील करते हुए कहा, "आपने विरोधी दलों को 22 साल दिए, हमें पांच साल दीजिए हम आपको बदलाव लाकर दिखाएंगे."
राहुल गांधी यहां एक स्थानीय नेता की मां के जनाज़े में भी शामिल हुए. इससे पहले सुबह को सैर के दौरान उन्होंने बच्चों से बातें की और बच्चों ने उनसे पूछा कि आप प्रधानमन्त्री कब बनोगे. बच्चों के इस सवाल पर वह मुस्करा दिए. राहुल को उनकी इस चुनावी मुहीम के दौरान भारी जनसमर्थन मिल रहा है.  


सतपाल

दिल्ली जो एक शहर है, हर शक्स की पसंद
चर्चे इस शहर के हमेशा रहे बुलन्द।
किसी भी दौर में यह वीराना नहीं होता
शहर-ए-दिल्ली, कभी पुराना नही होता।

                आज चर्चा है दिल्ली के सौ साल पूरे होने की मगर तथ्य पर गौर करें तो पता चलेगा कि यह सत्य नहीं हैं। दिल्ली का इतिहास कई हजार साल पुराना है। कहते है कि पांडवों की दिल्ली का नाम इन्द्रप्रस्थ था। इस बीच का कई सैकडों वर्ष का विवरण गुमनाम है मगर, सात बार उजड़ने और बसने की कहानी आज भी लोगों को याद है। इन सात शहरों के नाम और खंडहर तो अपने काल का हाल चाल सुना रहे हैं।  दिल्ली हमेशा से देश की राजधानी रही ।  हर साम्राज्य ने दिल्ली को देश का दिल समझकर इसे राजधानी बनाना पसंद किया।  मुगल साम्राज्य भी अपनी राजधानी आगरा और फतेहपुर सीकरी से लेकर दिल्ली आया और ख्वाबों के हसीन शहर शाहजहांनाबाद की तामीर कराई। यमुना नदी के किनारे बसा शहर समूचे संसार में मशहूर हुआ और कई विदेशी राजा इससे ईष्र्या करने लगे।  अंग्रेजों को भी यहां के ईमानदार और मेहनती लोग और यहां का भूगोल और हरा-भरा इलाका पसंद आया और उन्होंने 1911 में अपने दरबार में अपने इण्डिया की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा कर दी।  उन्होंने यह घोषणा तब के तमाम राजा, महाराजाओं, नवाबों और बादशाहों की उपस्थिति में की ताकि हरेक आम और खास को इसकी जानकारी मिल जाए और राजधानी के इस बदलाव का संदेश देश के कोने-कोने में पहुंच जाए।  इस तरह यह सौ साल फिर से दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान करने से संबंधित है।  मुगलों के कमजोर हो जाने और ईस्ट इण्डिया कम्पनी की राजधानी के रूप में कलकत्ता का महत्व बढ़ जाने के बाद अंग्रेजों ने यह जरूरी समझा कि देश की पुरातन, सनातन राजधानी यानि ऐतिहासिक शहर दिल्ली को राजधानी बनाया जाए ताकि वह एक ऐसे शहर से समूचे भारत पर लम्बे से लम्बे समय तक राज कर सकें, जहां से मुगल सल्तनत का हुक्म देश के कोने-कोने तक सम्मान और गर्व के साथ सुना जाता था।
            कुछ लोग इसे नई दिल्ली के सौ साल होने का दावा कर रहे है।  गौर किया जाए तो, पता चलेगा कि यह भी सत्य नहीं है।  न तो 1911 में नई दिल्ली की नींव पड़ी और न ही इस साल नई दिल्ली का उद्घाटन किया गया।  नई दिल्ली का उद्घाटन तो 1931 में हुआ जिसके बाद दिल्ली एक नगर से महानगर बनना शुरू हो गया।
            यह सच है कि आज ज्यादातर दिल्ली का भाग नया है मगर जो शहर कभी दीवारों के बीच सटा हुआ था और मिली-जुली तहजीब का मरकज माना जाता था वह भी तो नया ही महसूस होता है, क्योंकि वहां का रहन-सहन पूरी तरह बदला तो नहीं मगर आधुनिकता के साथ घी और शक्कर की तरह मिल कर और भी समृद्ध हो गया है।
            अंग्रेजों ने जब राजधानी दिल्ली बनाने की घोषणा की तो उन्होंने सिविल लाइन्स में राजधानी के लिए जरूरी इमारतें बनानी शुरू की और कश्मीरी गेट को मुख्य बाजार और रिज की दहलीज के चारों ओर सत्ता के गलियारे बनाने शुरू किए।  लेकिन जब उन्हें यमुना जो कभी बारहमासी नदी हुआ करती थी, उसका रौद्र रूप दिखाई दिया तो वह भयभीत हो गए और इस इलाके को निचला क्षेत्र मानकर एक उंचे स्थान पर राजधानी बनाने की तलाश में निकल पड़े।  मगर, दिल्ली की सबसे पुरानी चर्च कश्मीरी गेट और चांदनी चौक में अब भी विद्यमान हैं और किसी लिहाज से पुरानी नहीं लगती।  इसी तरह पुराना सचिवालय तो अंग्रेजों की पहली संसद थी और इसी के सभागार में दिल्ली यूनिवर्सिटी की पहली कन्वोकेशन हुई थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी का वी0सी0 ऑफिस कभी वायसरॉय निवास था।  कहां बदला है ये सब कुछ।  पहले से कहीं ज्यादा रौनक और ताजगी है वहां।
      अंग्रेजों ने जब नई दिल्ली का निर्माण शुरू किया तो न जाने कितनी इमारतें बनाई गई।  लुटियन के नक्शे के हिसाब से खुला-खुला, हरा-भरा नया शहर यानी नई दिल्ली सामने आई।  इसकी हर इमारत ऐतिहासिक है मगर इस्तेमाल की दृष्टि से नई भी है और सुविधा सम्पन्न भी।  क्या नई दिल्ली की शान पुरानी हुई है?  नहीं, कभी नहीं हो सकती।  एक समय आया जब अंग्रेजों का बनाया कनॉट प्लेस व्यापार की दृष्टि से महत्व खोने लगा मगर जब मेट्रो का जादू चला तो यहां की रौनक लौट आई और व्यापारी भी फिर प्रसन्न होने लगे।  यह साबित करता है कि दिल्ली कभी न तो बूढ़ी होगी और न ही पुरानी।
            अगर हम तब और अब की ट्रांसपोर्ट की चर्चा करें तो आप महसूस करेंगे कि अंग्रेजों के जमाने के ट्रांसपोर्ट के छोड़े गए निशान पर आज हमारी पब्लिक ट्रांसपोर्ट दौड़ रही है।  अंग्रेजों ने 1903 में चांदनी चौक से ट्राम का सफर शुरू किया था। यह ट्राम 1963 तक चली और इसका किराया एक टका यानी आधा आना और एक आना हुआ करता था।  आज उसी स्थान के नीचे चांदनी चौक, चावड़ी बाजार और सब्जी मण्डी, बर्फखाने में भूमिगत और एलिवेटिड मेट्रो दौड़ रही है।  कभी अंग्रेजों ने रायसीना हिल्स तक निर्माण के लिए पत्थर पहुंचाने के मकसद से रेल लाइन बिछाई थी वहां जमीन के नीचे आज मेट्रो की दो लाइनें सेंट्रल सेक्रेट्रियट स्टेशन से निकल रही इतना ही नहीं अंग्रेजों ने 1911 में अपने दरबार तक जाने के लिए एक रेल लाइन बिछाई थी जो आजाद पुर तक दौड़ती थी।  उसी लाइन के एक स्टेशन तीस हजारी की जगह पर ही आज दिल्ली मेट्रो का तीस हजारी स्टेशन है। 
            आज भी लोग कुतुब मीनार को दिल्ली की पहचान मानते हैं। यह बात और है कि कई किताबों में बहाई टेम्पल यानी लोटस टेम्पल को दिल्ली की नई पहचान मानकर दिखाया जाता है मगर कुतुब मीनार अपनी बुलंदी की वजह से हर काल में नई पहचान ही बना रहेगा।  कभी यहां तक जाने के लिए लोग पुरानी दिल्ली से तांगों पर जाया करते थे। हरियाली के बीचों बीच संकरी सड़क से होकर तांगे में बैठे मुसाफिरों को एअर कंडीशन सवारी का आनन्द मिलता था और आज वहां तक जाने के लिए एअर कंडीशन मेट्रो है।  कह सकते है कि वही दिल्ली, वही कुतुब मीनार, वही एअर कंडीशन सफर तो कौन कहता है कि दिल्ली पुरानी हुई है।  दिल्ली का दिल एक ऐसे नौजवान की तरह धड़कता है जिसे हर दम आगे बढ़ने की ललक होती है।  इसी तरह दिल्ली हर पल, संवरती, निखरती, बदलती, सुधरती दिखाई देती है तो कौन कहेगा कि यह शहर पुराना होता है।
            इस शहर के हर दम नया रहने के तो ये कुछ संकेत है।  अगर हजारों साल की इस दिल्ली के इतिहास में नएपन का मजा लेना हो तो दिल से दिल्ली वाला बनना होगा।
दिल्ली नहीं है शहर, एक मिजाज का नाम है
यह  खास, इस कदर है कि इसका सलाम है


(लेखक दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सूचना अधिकारी हैं)

स्टार न्यूज़ एजेंसी
आख़िर लोकसभा में लोकपाल बिल पास हो गया है. बहस पूरी होने के बाद मतदान शुरू होते ही बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने लोकसभा से वॉक आउट कर दिया. लोकपाल बिल पास होने के विरोध में लेफ्ट, एआईडीएमके और बीजेडी ने भी सदन से वॉकआउट किया. 

सरकार ने लोकपाल विधेयक में दस संशोधन प्रस्ताव पेश किए हैं. सरकार के दस में से सात प्रस्ताव पास हो गए. मतदान के दौरान कार्पोरेट और मीडिया को लोकपाल के दायरे में लाने का प्रस्ताव गिर गया. भाजपा ने तीन संशोधन प्रस्ताव पेश किए, लेकिन तीनों ही मतदान में गिर गए. सीपीएम और बीजेडी द्वारा पेश किए गए संशोधन प्रस्ताव भी मतदान में गिर गया. विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज द्वारा लाए गए सभी प्रस्ताव भी लोकसभा में  औंधे मुंह में  गिर गए.  संशोधन प्रस्तावों पर अभी तक की मतदान से सरकार का लोकपाल पास हो गया है. मतदान से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के 43 सांसद बाहर है.  

स्टार न्यूज़ एजेंसी
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा के लोकपाल विधेयक पर बहस के दौरान कहा, एक राष्ट्र के जीवन में कुछ क्षण बहुत ही विशेष होते हैं. यह ऐसा ही विशेष अवसर है। राष्ट्र बड़ी बेताबी से प्रतीक्षा कर रहा है कि लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 पर बहस के अंत में मतदान द्वारा इस सदन का सामूहिक विवेक प्रतिबम्बित होगा.

इस विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर जनता में और राजनीतिक दलों द्वारा काफी बहस हुई है. मेरा यह सच्चा विश्वास है कि यह विधेयक जो इस समय सदन के सामने हैं, उस वचन पर खरा उतरता है जो इस सदन के सदस्यों ने इस देश के लोगों को 27 अगस्त 2011 को सदन की भावना के रूप में बहस के अंत में सामूहिक रूप से पेश किया था. कानून बनाने का कार्य बड़ा गंभीर मामला है और यह अंततः हम सब के द्वारा किया जाना चाहिए, जिन्हें यह संवैधानिक रूप से सौंपा गया है। अन्य लोग भी बहस कर सकते हैं और उनकी आवाज सुनी जाएगी, लेकिन,  निर्णय हमे ही करना है. इसके साथ-साथ हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि भ्रष्टाचार और उसके परिणामों ने राजनीति को खराब किया है. हमने देखा है कि पिछले एक वर्ष में जनता का क्रोध किस प्रकार बढ़ा है. इसलिए आइये हम इस विधेयक का इसके प्रस्तावित रूप में समर्थन करें. इस विधेयक का प्रारूप तैयार करने में हमने बड़े पैमाने पर सलाह मशविरा किया है. राजनीतिक दलों के विचारों से हमारा ज्ञान वर्धन हुआ है और सभी प्रकार के सुझावों को ध्यान में रखा गया है.

मैं यह कहना चाहता हूं कि जब मेरी सरकार चुनी गई थी, हम अपनी नीतियां जनता की भलाई के अनुरूप बनाना चाहते थे. हम पारदर्शी और खुले प्रशासन में विश्वास करते हैं और आम प्रशासन के प्रति हमारी सैद्धांतिक वचनबद्धता के कारण ही हम सन् 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम लाया. जनोन्मुखी नीतियों को और बढ़ावा देने के लिए हमने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 पारित किया. बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 वंचित और हाशिए पर खडे लोगों को सशक्त बनाने की हमारी इच्छा का सबूत है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निदान के लिए है. हमने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के जरिये अपने शहरों को नया रूप देने का प्रयास किया है. राजीव आवास योजना का उद्देश्य शहरों में गरीब और बेघर लोगों को आवास प्रदान करना है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2011 का प्रस्तुत किया जाना गरीब और कुपोषित लोगों को भूखमरी और प्रवंचना के परिणामों से सुरक्षित करने की दिशा में एक अन्य उपाय है. भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक 2011 किसानों और रोजगार से वंचित लोगों के बीच समानता लाने के उद्देश्य से लाया गया है. हमने अधिक समतावादी और समावेशी भारत का निर्माण करने का प्रयास किया है, जिसमें कम सुविधा प्राप्त लोगों तक विकास के लाभ पहुंचाना है। यह मेरी सरकार का मिशन है और यह आगे भी जारी रहेगा.

भ्रष्‍टाचार पर हमारी सरकार ने निर्णायक कदम उठाए हैं. पिछले एक साल में हम कई ऐतिहासिक कानूनों पर कार्य कर रहे हैं. नागरिकों को सामान एवं सेवाओं की समयबद्ध उपलब्धता का अधिकार तथा उनकी शिकायत निवारण से संबंधित विधेयक, 2011 सदन के समक्ष है. जनहित में प्रकटीकरण और प्रकटीकरण करने वाले व्यक्तियों को संरक्षण देने संबंधी विधेयक, 2010 और लोकपाल और लोकायुक्‍त विधेयक, 2011 को अभी आपकी मंज़ूरी मिलनी बाकी है. न्‍यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010 को स्‍थायी समिति द्वारा मंजूरी मिल चुकी है और इस पर सरकार द्वारा विचार किया जाना बाकी है. सेवाओं की इलैक्‍ट्रॉनिक रूप से उपलब्धता संबंधी विधेयक, 2011 को पेश किया जा रहा है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि जन सेवाएं इलेक्‍ट्रॉनिक तरीकों से लोगों तक पहुंचे. यह ऐतिहासिक और अभूतपूर्व विधेयक हैं. प्रशासनिक क्षेत्र में हमारी सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों के साथ निर्णय प्रक्रिया को सरल बनाना चाहती है. हम खरीद के विषय में सार्वजनिक नीति उपाय बना रहे हैं. मंत्रियों के समूह ने जहां तक मुमकिन हो प्रशासनिक विषयों में अधिकार को खत्‍म करने की सिफारिश की है. यह कार्य प्रगति पर है. हमने सूचना का अधिकारी कानून के साथ शुरूआत की थी. हम लोकपाल और लोकायुक्‍त विधेयक के साथ ही भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लडा़ई समाप्‍त नहीं होने देंगे.

हमें भ्रष्‍टाचार के खिलाफ संपूर्ण रूप से लड़ाई करनी चाहिए. यदि हम अपने प्रयास में वास्‍तव में ईमानदार हैं तो हमारे कानूनों का असर सर्वव्‍यापी होना चाहिए. राज्‍य विधानसभाओं को प्रस्‍तावित मॉडल कानून अपनाने और इसे लागू करने में देरी करने संबंधी दलीलों को स्‍वीकार नहीं किया जा सकता. भ्रष्‍टाचार, भ्रष्‍टाचार है चाहे वह केंद्र में हो या राज्‍यों में. इसका कोई वैधानिक रंग नहीं है. मैं सभी पार्टियों के नेताओं से आह्वान करता हूं कि वह राजनीतिक पक्षपात से ऊपर उठें और लोगों को बताए कि यह सदन भ्रष्‍टाचार के प्रयासों के विरुद्ध संघर्ष करने के प्रति वचनबद्ध है. हम सभी इस प्रस्‍ताव के समर्थन में है जिसमें सदन की भावना भी झलकती है कि हम लोकपाल के साथ राज्‍यों में लोकायुक्‍त बनाने के प्रति वचनबद्ध हैं. यदि हम संविधान के अनुच्‍छेदों का हवाला देकर लोकायुक्‍त की व्‍यवस्‍था प्रदान नहीं करते तो यह सदन के द्वारा राष्‍ट्र को दिए गए वादे को तोड़ना होगा. ऐसी क्रियाविधि से संसद की भावना का ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. मैं ससंद में अपने सहयोगियों से आह्वान करता हूं कि वह इस विधेयक को पास करने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठें. केंद्र सरकार नागरिकों को सीधे तौर पर सीमित सार्वजनिक सेवाएं मुहैया कराने के लिए जिम्‍मेदार है. मुख्‍य समस्‍या राज्‍य सरकारों के क्षेत्रों में है, जहां आम आदमी हर रोज़ किसी न किसी तरीके से भ्रष्‍टाचार का सामना करता है. इसी वजह से ग्रुप सी और ग्रप डी के कर्मचारियों को राज्‍यों में लोकायुक्‍त के दायरे में लाया गया है. स्‍थानीय के साथ-साथ राज्‍य प्राधिकरण आम आदमी को अनिवार्य सेवाएं प्रदान करने के लिए अधिकृत है. यहां पर भ्रष्‍टाचार के शाप से निपटने की ज़रूरत है. पानी, बिजली, नगरपालिका सेवाएं, परिवहन, राशन की दुकानें ऐसे कुछ उदाहरण हैं, जहां राज्‍य और स्‍थानीय प्राधिकरणों द्वारा ज़रूरी सेवाएं प्रदान की जाती हैं और जिससे आम आदमी की जिंदगी प्रभावित होती है. राज्‍यों में लोकायुक्‍त की स्‍थापना से इससे होने वाली निराशा को कम किया जा सकेगा.

केन्द्र सरकार की प्रमुख फ्लैगशिप योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकार के अधीन कार्यरत कार्यकारी अधिकारियों द्वारा ही किया जाता है. लोकसभा तथा अन्य सदन में सदस्य प्रतिदिन हमारी केन्द्रीय योजनाओं को राज्यों द्वारा लागू किए जाने पर मोहभंग जाहिर करते हैं. हमें इसका उपचार करना होगा. जब तक लोकायुक्तों को स्थापित नहीं किया जाता तब तक भ्रष्टाचार का कैंसर फैलता रहेगा. हमें इस मुद्दे को अब और अधिक लंबित नहीं करना चाहिए. भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में संघवाद बाधा नहीं बन सकता.

हम मानते हैं कि सीबीआई को सरकारी निर्देशों के बगैर बिना किसी व्यवधान के कार्य करना चाहिए. लेकिन कोई भी संस्थान और कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे जवाबदेही से मुक्त नहीं होना चाहिए. सभी सांस्थानिक संरचनाओं को हमारे संविधान के साथ सुसंगत होना चाहिए. आज हमें यह मानने को कहा जा रहा है कि जिस सरकार का जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रुप से चुनाव किया गया है और जो उसके प्रति जवाबदेह है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता, किंतु एक संस्था जिसे जनता से प्रत्यक्ष तौर पर औचित्य प्राप्त नहीं हुआ है अथवा उसके प्रति जवाबदेह नहीं है उस पर सम्मान और विश्वास के साथ उसकी अपरिमित शक्ति पर भरोसा किया जा सकता है. हमारे संवैधानिक संरचना के साथ किसी अन्य भिन्न संस्था का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए और बिना किसी जवाबदेही के मुश्किल कार्यकारी उत्तरदायित्व का प्रभार नहीं दिया जाना चाहिए. मूलभूत विश्लेषण में, संवैधानिक संरचना के अंतर्गत सभी संस्थान संसद और केवल संसद के प्रति जवाबदेह है. इस कानून को लागू करने में हमारी उत्सुकता में हमें लडखडाना नहीं चाहिए. मेरा यह मानना है कि सीबीआई को लोकपाल से स्वतंत्र होकर कार्य करना चाहिए. मेरा यह भी मानना है कि सीबीआई को सरकार से भी स्वतंत्र होकर कार्य करना चाहिए, लेकिन स्वतंत्रता से अभिप्राय जवाबदेही की अनुपस्थिति का नहीं है. इसलिए हमने सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति के लिए ऐसी प्रक्रिया का प्रस्ताव रखा है, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायधीश अथवा उनके द्वारा मनोनीत व्यक्ति और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता शामिल हो. किसी को भी इस प्रक्रिया की ईमानदारी के प्रति संदेह नहीं होना चाहिए. जहां तक लोकपाल के तहत सीबीआई के कार्यशील होने का मुद्दा है, हमारी सरकार मानती है कि इससे संसद के बाहर एक ऐसी कार्यकारी संरचना का निर्माण होगा जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है. यह संवैधानिक सिद्धांतों के लिए अभिशाप है. मेरा मानना है कि जो विधेयक अभी सदन के सम्मुख है, उसमें कार्यात्मक स्वायत्ता और सीबीआई की जवाबदेही का न्यायसंगत मिश्रण है. मुझे विश्वास है कि इस सदन का विवेक विधेयक में प्रतिबिंबित हमारी सरकार के प्रस्ताव का समर्थन देने के लिए आगे आएगा.

इस चर्चा के दौरान नौकरशाही पर काफी आरोप लगे. हालांकि मैं इससे सहमत हूं कि सार्वजनिक अधिकारियों को निष्कपट होना चाहिए और अपराधियों के साथ शीघ्रता और निर्णयात्मक रुप से निपटा जाना चाहिए, मुझे उन बहुत से जन सेवकों के प्रति गहरी सराहना प्रकट करनी होगी जो अविश्वास के माहौल में अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करते हैं. मुझे नहीं लगता कि सभी जन प्रतिनिधियों को एक ही नज़रिए से देखा जाना चाहिए जैसे कि हर राजनेता को हम भ्रष्ट नहीं मान सकते. बगैर एक कार्यशील, प्रभावी प्रशासन प्रणाली, कोई भी सरकार अपनी जनता के लिए कार्य नहीं कर सकती. हमें एक ऐसी प्रणाली को स्थान नहीं देना चाहिए, जिसमें जन सेवक हिचकिचाहट के कारण डर कर उस बात को दर्ज न करा सके जिसे वह सोचते हैं और इस प्रक्रिया में कुशल प्रशासन की आत्मा को खतरा उत्पन्न होगा. जन सेवकों के आचरण की परख करते हुए हमें स्पष्ट गैर-कानूनी आचरणों तथा अनजाने में और गलती से हुई भूलों में अंतर करने की ज़रुरत को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कई बार हमारे जनसेवकों को अनिश्चय की स्थितियों में निर्णय लेना पडता है. एक सहज अनिश्चयात्मक भविष्य में यह संभव है कि कोई प्रक्रिया जो शुरु में प्रत्याशित रूप से न्यायसंगत लगे वही बाद में ठीक न लगे. पुरस्कारों और दंड की हमारी प्रणाली में हमें इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए.

शासन की सभी प्रणालियां विश्वास पर आधारित होनी चाहिए. यह लोगों का भरोसा है, जिसे सरकार में हम प्रतिबिंबित और संरक्षित करते हैं. सभी प्राधिकारियों पर अविश्वास लोकतंत्र की नींव को खतरे में डालती है. विशाल आकार और विविधता के हमारे राज-शासन को एक साथ तभी बनाए रखा जा सकता है जब हम उन संस्थानों में अपना भरोसा और विश्वास बनाए रखेंगे, जिन्हें हमने वर्षों में बेहद सावधानी के साथ निर्मित किया है. मतदाताओं की शक्ति वह मूलभूत अधिकार है, जो हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों में जवाबदेही लाती है. लोकतंत्र को खतरे में डालकर हम केवल अव्यवस्था की उन ताकतों के लिए राह प्रशस्त करेंगे, जहां भावनाओं को दलीलों के स्थान पर जगह मिलेगी.

हम वर्तमान की कमियों की प्रतिक्रियास्वरुप भविष्य के लिए कुछ निर्मित कर रहे हैं. जब हम भविष्य की ओर देखते हैं तो हमें इसमें छिपी हुई दिक्कतों पर भी ध्यान देना चाहिए. भ्रष्टाचार को समाप्त करने के नाम पर हमें ऐसा कुछ भी निर्मित नहीं करना चाहिए, जिससे उसका नाश हो जाए जिसे हमने संजोया है.

जनता के प्रतिनिधि होने के नाते हमें उस विश्वास को पुनः निर्मित करने की एक अन्य यात्रा की शुरुआत करने के लिए अभी तत्पर होना होगा, जो एक मजबूत और गुंजायमान भारत के लिए आवश्यक है.

स्टार न्यूज़ एजेंसी
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश).
उत्तर प्रदेश में अपने तीसरे जनसंपर्क अभियान के दूसरे दिन कांग्रेस महासिचव राहुल गांधी ने कहा है कि बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के विकास के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने कहा कि जब तक उत्तर प्रदेश आगे नहीं बढ़ेगा, तब तक देश नहीं चमकेगा.

आज यहां एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कभी उत्तर प्रदेश, देश को रास्ता दिखाता था, लेकिन आज वह ख़ुद दिशाहीन है. आज वह विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि पिछले 22 साल से यहां आपने बसपा, सपा और भाजपा को चुना. क्या मिला आपको? कुछ भी नहीं. इन दलों की सरकारों ने आपके लिए न सड़कें बनाईं, न बिजलीघर बनाए और न ही उद्योग लगाए. रोज़गार के अवसर बढ़ाने के लिए भी कुछ नहीं किया. लोगों से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें आपने 22 साल दिए हैं, हमें पांच साल दीजिए. बदलाव क्या होता, यह हम आपको दिखाएंगे. केंद्र की यूपीए सरकार की उपलब्धियों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार के मंत्रियों ने केंद्र सरकार द्वारा विकास के लए भेजे गए धन को केवल लूटा है. कुछ पूर्व मंत्रियों के ख़िलाफ़ सीबीआई  की जांच चल रही है. वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी भ्रष्टाचार के घेरे में हैं. भ्रष्टाचार का ख़ुलासा इसलिए हो रहा है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने आपको सूचना का अधिकार दिया है. 

स्टार न्यूज़ एजेंसी
सीतापुर (उत्तर प्रदेश).  कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी इन दिनों उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं. उन्होंने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर हमला जारी रखते हुए कहा कि ये नेता ग़रीबों के बीच नहीं जात, इसीलिए इन्हें ग़रीबों के दर्द का अहसास नहीं है.

सीतापुर में जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा,"मैं आपके घर जाता हूं. कुएं का गंदा पानी पीता हूं. बीमार होता हूं. क्या पिछले पांच साल में आपकी मुख्यमंत्री (मायावती) आपके गांव आईं? आपके कुएं का गंदा पानी पिया? गांव में बिना बिजली के सोईं? बहुत मच्छर काटते हैं. जिस दिन सोएंगी उन्हें आपके दर्द और तकलीफ़ों का अहसास हो जाएगा."

राहुल ने कहा कि मुलायम सिंह यादव कभी ज़मीनी नेता हुआ करते थे. लोगों के बीच जाते थे, लेकिन अब वह बदल गए हैं. आपके बीच नहीं आते. आपसे बात नहीं करते. अब आप ऐसे लोगों को चुनिए जो आपके बीच आए. आपकी बात करें.

मायावती और मुलायम पर रोजगार सृजन के लिए ठोस क़दम न उठाने का आरोप लगाते हुए राहुल गांधी ने कहा कि पिछले 22 साल आपने उन्हें दिए. यहां कुछ नहीं हुआ. 22 साल बर्बाद हुए. हमें आप पांच साल दीजिए, दिखाते हैं कि बदलाव क्या होता है. दस साल में आंध्र प्रदेश, केरल और दिल्ली जैसा विकास करके दिखाएंगे. आपके बच्चों के भविष्य का सवाल है. उन्होंने लोगों से सवाल करते हुए कहा कि क्या पूरी जिंदगी दूसरे राज्यों में जाकर काम करोगे? क्या उत्तर प्रदेश में आपको रोज़गार का अधिकर नहीं है? दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करके उन्हें आगे बढ़ाते हो, लेकिन यहां आपके हाथ बंधे हुए हैं, क्योंकि यहां ग़रीबों की सरकार नहीं बनती. 

प्रदेश सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र जो भी पैसा विकास कार्यों के लिए भेजता है, प्रदेश में उसे हाथी खा जाता है. कांग्रेस शासित राज्यों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उन प्रदेशों में विकास कार्यों से वहां की ग़रीब जनता संतुष्ट है. उन्होंने मनरेगा योजना का ज़िक्र करते हुए कहा कि इसे कांग्रेस गरीबों के लिए लेकर आई है. ग़रीबों के लिए इससे पहले कोई प्रभावकारी योजना नहीं थी. उन्होंने कहा कि जहां भी कांग्रेस की सरकार है, वहां मनरेगा से ग़रीब लोगों को काफ़ी फ़ायदा हुआ है. 


समीर पुष्‍प
    बीते युग की कहानी कहती है कि दिल्‍ली सात बार बसी और सात बार उजड़ी। गाथाओं के सृजन की शक्ति और इतिहास के बदलने के साथ अंग्रेजों की दिल्‍ली के गौरवशाली 100 वर्ष पूरे हो गये हैं। अनेक असाधारण घटनाओं की गवाह रही दिल्‍ली कुछेक दु:खद किन्‍तु यहां के लोगों की असाधारण प्रतिभा के परिणामस्वरूप अक्‍सर सफलता के हर्षोल्‍लास और विविध घटनाओं से परिपूर्ण रही है
   एक जीवन्‍त महानगर के रूप में इसके कई किस्‍से है जो समय के साथ दब गये‍किन्‍तु उनकी तात्‍कालिकता अब भी भावपूर्ण है। एक समृद्ध इतिहास, समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत, सांस्‍कृतिक विविधता और धार्मिक एकता के अलावा दिल्‍ली के पास और भी बहुत कुछ है। दिल्‍ली एक ऐसी झलक पेश करती है, जिसमें जटिलताएं, विषमताएं, सुन्‍दरता और एक नगर की गतिशीलता है, जहां अतीत और वर्तमान का अस्तित्‍व एक साथ कायम है। यहां अनेक शासकों ने राज किया और जिससे इसके जीवन में कई सांस्‍कृतिक घटकों का समावेश हो गया। एक ओर जहां ऐतिहासिक इमारतें, प्राचीन काल की महिमा का प्रमाण हैं, वहीं दूसरी ओर लम्‍बे समय से पीडि़त यमुना नदी भी है जो वर्तमान की उपेक्षा की कहानी कहती है। दिल्‍ली का अस्तित्‍व बहुस्‍तरीय है और यह सबसे तेजी से विकसित होते महानगरों में शामिल है। 13वीं और 17वीं शताब्‍दी में बसे सात नगरों से निकलकर दिल्‍ली ने अपने नगरीय क्षेत्र का निरंतर विस्‍तार किया है। इसकी गगनचुम्‍बी इमारतें, आवा‍सीय कॉलोनियां और तेजी से बढ़ते व्‍यावसायिक मॉल ये सभी बदलते समय के परिचायक हैं। उर्जा, बौद्धिकता और उल्‍लास की भावना से ओतप्रोत लोग दिल्‍ली की आत्‍मा हैं। करोड़ों लोग अपना आशियाना बसाने और अपनी आशाओं को पूरा करने के उद्देश्‍य से पूरी जीवन्‍तता और जोश के साथ यहां काम में जुटे रहते हैं। पिछले कई दशकों से दिल्‍ली विविध अवधारणाओं अभिनव परम्‍पराओं का प्रतिनिधित्‍व करती रही है। अपने आप को पुनर्जीवित करने की शक्ति और समय की कसौटी पर खरा उतरने की उर्जा दिल्‍ली को बेजोड़ बनाती है, जो इसकी जीवनचर्या में देखी जा सकती है।
     भारत एक महान राष्‍ट्र है और इसकी राजधानी होने के कारण दिल्‍ली इस महानता में पुरानी और नई भागीदारी का एक प्रतीक है। आज की दिल्‍ली एक बहुआयामी, बहु-सांस्‍कृतिक और बहुविध प्रगतिशील है। यह निरंतर साथ मिलकर चलने की प्रवृति रखती है। बिना किसी हिचक के दिल्‍ली करोड़ो लोगों का घर और उनकी आशायें है। स्‍वतंत्रता के बाद दिल्‍ली में व्‍यापक सुधार हुए और विकसित राष्‍ट्र की राजधानियों के साथ-साथ इसका भी जोरदार विकास हुआ। अतीत में कुछ समय से दिल्‍ली सत्‍ता का स्‍थान नहीं था। हालांकि यहां का हरेक पत्‍थर और यहां की हरेक र्इंट हमारे कानों में इसके लम्‍बे और गौरवमय इतिहास की कहानी कहते है।
  अरावली की क्षीण होती श्रेणियों और यमुना के बीच दिल्‍ली ने अपने युगों के इतिहास की भूलभुलैया को दफन कर रखा है। दिल्‍ली ने अपना नाम राजा ढिल्‍लु से लिया है। दिल्‍ली का शुरुआती ऐतिहासिक संदर्भ पहली शताब्‍दी पूर्व से शुरू होता है। इतिहास में दिल्‍ली की महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है। इसकी वजह इसकी भौगोलिक अवस्थिति हो सकती है। दिल्‍ली का मध्‍य एशिया, उत्‍तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र और देश के बाकी क्षेत्र के साथ हमेशा सुविधाजनक संपर्क रहा है। प्रसिद्ध मौर्य शासक अशोक के समय का शिलालेख बताता है कि दिल्‍ली मौर्यों की उत्‍तरी राजमार्ग पर अवस्थित थी और यह उनकी राजधानी पाटलिपुत्र को तक्षशिला से जोड़ती थी। इसी रास्‍ते से बौद्ध भिक्षु तक्षशिला जाते थे। इसी मार्ग से मौर्यों के सैनिक भी तक्षशिला और सीमावर्ती विद्रोहियों से निपटने के लिए जाते थे। इस वजह से दिल्‍ली को सामरिक लिहाज से महत्‍वपूर्ण स्‍थान मिला।
दिल्‍ली की कहानी में कई शहरों के अस्तित्‍व की कहानी छुपी है। इसका वर्णन नीचे किया जा रहा है:

इन्‍द्रपस्‍थ 1450 ई. पू.
स्‍थल: पुराना किला।
अवशेष: पुरातात्विक साक्ष्‍य अब यह साबित करते हैं कि वास्‍तव में यही दिल्‍ली का सबसे पुराना नगर था। दिल्‍ली का कोई शख्‍स इंद्रप्रस्‍थ का अस्तित्‍व कभी नकार नहीं पाता। इसके पतन का कारण पता नहीं है।

लाल कोट या किला राय पिथौरा 1060 ई.
स्‍थल: कुतुब मीनार-महरौली परिसर
अवशेष: मूल लालकोट का बहुत थोड़ा हिस्‍सा शेष। राय पिथौर किले के 13 दरवाजों में से केवल 3 शेष हैं।
निर्माता: राजपूत तोमर। 12वीं शताब्‍दी। राजपूत शासक पृथ्‍वीराज चौहान ने इस पर कब्‍जा किया और इसका विस्‍तार किया।

सीरी 1304 ई.
स्‍थल: हौजखास और गुलमोहर पार्क।
अवशेष: कुछ हिस्‍से और दीवारें शेष। अलाउद्दीन खिलजी ने सीरी के चारों ओर अन्‍य चीजों जैसे दरवाजा, कुव्‍वत-उल-इस्‍लाम मस्जिद का दक्षिणी दरवाजा और वर्तमान के हौजखास में जलाशय आदि का निर्माण भी करवाया।
निर्माता: दिल्‍ली सल्‍तनत के अलाउद्दीन खिलजी। अलाउद्दीन खिलजी को उसके द्वारा किए गए व्‍यापारिक सुधारों के लिए जाना जाता है। इसलिए यह बहुत बड़ा कारोबारी केंद्र था।

तुगलकाबाद 1321.23 ई.
स्‍थल: कुतुब परिसर से 8 किलोमीटर दूर
अवशेष: दीवारों और कुछ भवनों के भग्‍नावशेष।
निर्माता: गयासुद्दीन तुगलक।

जहानपनाह 14वीं सदी के मध्‍य
स्‍थल: सीरी और कुतुबमीनार के मध्‍य।
अवशेष: रक्षात्‍मक प्राचीर के कुछ अवशेष।
निर्माता: मोहम्‍मद-बिन-तुगलक।

फिरोज़ाबाद 1354 ई.
स्‍थल: कोटला फिरोज़शाहअवशेष: अवशेषों में केवल अशोक स्‍तम्‍भ बचा हुआ है। अब वहां क्रिकेट स्‍टेडियम है जो फिरोजशाह कोटला मैदान के नाम से विख्‍यात है।निर्माता: फिरोजशाह तुगलक। यह सिकन्‍दर लोधी के आगरा चले जाने तक राजधानी रहा।


दिल्‍ली शेरशाही (शेरगढ़) 1534
स्‍थल: चिडि़याघर के सामने पुराना किले के आसपास।
अवशेष: उंचे द्वार, दीवारें, मस्जिद और एक बड़ी बावड़ी (कुंआ)। काबुली और लाल दरवाज़ा, द्वार और शेर मंडल।द्वारा निर्मित: वास्‍तव में इस दिल्‍ली का निर्माण दूसरे मुगल बादशाह हुमायुं द्वारा शुरू किया गया और शेरशाह सूरी ने इसे पूरा किया गया।

शाजहानाबाद 17वीं शताब्‍दी का मध्‍यकालस्‍थल: मौजूदा पुरानी दिल्‍ली
अवशेष: लालकिला, जामा मस्जिद, पुरानी दिल्‍ली के मुख्‍य बाजार जैसे चाँदनी चौक, दीवारों के लम्‍बे भाग और नगर के कई द्वार। पुरानी दिल्‍ली भीड़-भाड़ वाली रही होगी, लेकिन यह अभी भी अपना मध्‍ययुगीन सौंदर्य बनाये हुए है। लोग गर्मजोशी से स्‍वागत करने वाले हैं। मुगलवंश के पांचवें बादशाह शाहजहां अपनी राजधानी आगरा से यहां ले आए।
भारत की राजधानी न केवल अपनी ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि के लिए जानी जाती है, बल्कि उत्‍कृष्‍ट कला और शिल्‍पकला के लिए भी प्रसिद्ध है। वास्‍तव में दिल्‍ली की कलाएं और शिल्‍पकलाएं शाही जमाने से संरक्षित है। अपने समय के सांस्‍कृतिक केंद्र के रूप में दिल्‍ली ने सर्वोत्‍तम चित्रकारों, संगीतज्ञों और नर्तकों को आकर्षित किया। ऐसा इसलिए क्‍योंकि इस शहर की कोई अपनी विशिष्‍ट पहचान नहीं है। समय बीतने के साथ-साथ भारत के विभिन्‍न क्षेत्रों से लोग आए और यहां बस गए। इस प्रकार दिल्‍ली भांति-भांति के लोगों का केंद्र बन गई। धीरे-धीरे दिल्‍ली ने यहां रहने वाले हर तरह के लोगों की पहचानों को अपना लिया, जिसने इसे बहुरंगी पहचान वाला शहर बना दिया।

दिल्‍ली की सबसे बड़ी पहचान इसकी विविधता है। इसमें विभिन्‍न पृष्‍ठभूमियों जैसे धर्म, क्षेत्र, भाषा, जाति और वर्ग के लोग आकर बस गए, जिनकी अपने लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए संसाधनों और अवसरों तक मिलीजुली पहुंच है। दिल्‍ली हमेशा से विविध गतिविधियों का केंद्र रहा है, जिसने बड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं। दिल्‍ली की हवा वर्तमान की गलतियों और अतीत की सुगंध से भरपूर है, जो नए भारत का मार्ग प्रशस्‍त करती है।

(समीर पुष्‍प एक स्‍वतंत्र लेखक हैं)


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