एम.एल.धर
वैश्वीकरण के कारण बेहद प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में ठेके पर मजदूरी आज समय की मांग हो गई है । रोजगार के ढांचे में दुनियाभर में बदलाव आ रहा है और श्रम बाजार में लचीलेपन पर जोर दिया जा रहा है ।
बदलते परिदृश्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ देश अपने श्रम बाजारों को उदार बनाने के लिए श्रम कानूनों में संशोधन कर रहे हैं । भारत भी इनमें शामिल है । ठेके पर मजदूरी विषय पर 43 वें भारतीय श्रम सम्मेलन के दौरान प्रमुखता से चर्चा हुई, जहां प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने का समय आ गया है । उन्होंने कहा हमें अपने कुछ श्रम कानूनों की भूमिका पर विचार करने की जरूरत है जो श्रम बाजार में कड़ाई बरत रहे हैं, जो बड़े पैमाने पर रोजगार के विकास में बाधा पहुंचाते हैं ।
ठेके पर मजदूरी नियामक और उन्मूलन कानून,1970 में ठेके पर एक श्रमिक को ऐसे श्रमिक के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसे किसी संस्थान का नियोक्ता, किसी विशेष कार्य के लिए ठेकेदार के जरिये रखता है । इस कानून में ठेके पर मजदूरों के लाभ के लिए न्यूनतम मजदूरी का भुगतान, कार्यस्थल पर कुछ स्वास्थ्य और सफाई सुविधाएं, भविष्य निधि के लाभ जैसे कुछ कल्याणकारी प्रावधान किये गए हैं ।
यह कानून किसी भी ऐसे संस्थान पर लागू होता है, जिसने पिछले एक वर्ष के दौरान किसी भी दिन 20 या अधिक लोगों को ठेके पर रोजगार दिया है । ऐसे सभी ठेकेदार जिन्होंने इससे पहले के बारह महीनों के किसी भी दिन 20 या अधिक लोगों को रोजगार दिया है, इस कानून के दायरे में आएंगे । इस तरह के संस्थानों के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह प्रमुख नियोक्ताओं के रूप में पंजीकृत हों । इन नियामक प्रावधानों को छोड़कर, सरकार किसी भी संस्थान या किसी प्रक्रिया/संचालन में ठेके पर मजदूरी पर रोक लगा सकती है । यह इस बात पर निर्भर करता है कि संस्थान के लिए कार्य की प्रकृति स्थायी है या आकस्मिक।
केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड की सिफारिशों पर विभिन्न उद्योगों में अनेक नौकरियों में ठेके पर मजदूरी प्रणाली समाप्त कर दी और अब तक 70 अधिसूचनाएं जारी की जा चुकी हैं । उल्लंघनों का पता लगाने के लिए कानून में सरकारी निरीक्षण का प्रावधान है ।
इन सभी प्रावधानों के बावजूद, अक्सर देखा गया है कि कानून विभिन्न कारणों से पूरा संरक्षण नहीं देता । ठेके पर मजदूरी अधिकतर असंगठित क्षेत्र में है, ठेके पर पहला काम करने वालों के लिए श्रमिक के रूप में अपनी पहचान साबित करना मुश्किल है क्योंकि कानून के अंतर्गत मालिक-नौकर के संबंध तय नहीं हैं ।
दूसरा, श्रम कानूनों को मात देने के लिए कई तरह के रोजगार के ढांचे बनाए गए हैं क्योंकि वैश्वीकरण के कारण स्थायी नौकरियां गैर परम्परागत पार्ट टाइम कैजुअल और ठेके के रोजगार में तब्दील हो गई हैं, इससे श्रमिकों के लिए नौकरियों में सुरक्षा और सामूहिक मोलभाव पर असर पड़ता है ।
श्रम कल्याण महानिदेशक के अनुसार ‘’ठेके पर मजदूरी करने वालों के नाम आमतौर पर पे रोल या हाजिरी रजिस्टर पर दर्ज नहीं होते । कोई भी संस्थान जो ठेकेदारों को काम आउटसोर्स करता है, उसके मजदूरों के बारे में सीधी जिम्मेदारी नहीं लेता । आमतौर से तय मजदूरी दे दी जाती है और काम करने की शर्तों का पालन करने की बात समझौते में होती है, लेकिन वास्तव में इनका कड़ाई से पालन नहीं होता है ।‘’
कुछ विकासशील देशों में देखा गया है कि ठेके पर काम करने की प्रथा के साथ कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा प्रभावित हुई है और श्रमिकों को अक्सर लाभ दिये बिना नौकरी से निकाल दिया जाता है । यहां तक कि दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग ने कहा कि जिन अनेक केन्द्रों का उसने दौरा किया, वहां देखा गया कि ठेके पर काम कर रहे लोगों के वेतन से सामाजिक सुरक्षा के लिए उनका योगदान काट लेने के बाद ठेकेदार फरार हो गया और वह परेशानी में पड़ गए ।
संस्थानों पर वैश्वीकरण के दबाव और ठेके पर काम करने वालों की खराब स्थिति को ध्यान में रखकर श्रम पर दूसरे राष्ट्रीय आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि संगठनों में इतना लचीलापन होना चाहिए कि वे आर्थिक दक्षता के आधार पर श्रमिकों को समायोजित कर सकें । इसमें स्थायी प्रमुख सेवाओं को अन्य एजेंसियों या संस्थानों को हस्तांतरित करने से रोकने का प्रावधान है । इसमें यह भी सिफारिश की गई है कि ठेके पर काम करने वालों को उसी तरह का काम कर रहे नियमित कर्मचारियों को तरह प्रोत्साहन राशि दी जाए और नियोक्ता सुनिश्चित करे कि ठेके पर काम करने वाले को निर्धारित सामाजिक सुरक्षा और अन्य लाभ मिलें । केन्द्र सरकार ने ठेके पर मजदूरी कानून में संशोधन करने का फैसला किया है और इस बारे में सुझावों के लिए एक कार्य बल की नियुक्ति की है । श्रम और रोजगार मंत्री एम. मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि श्रमिकों को नौकरी में सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिए कानून में संशोधन किया जा रहा है । इस बात को स्वीकार करते हुए कि श्रमिकों की आउटसोर्सिंग से काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है, खड़गे ने कहा ‘’नियोक्ताओं द्वारा आउटसोर्सिंग का सहारा लेने के कारण कर्मचारियों को कम वेतन जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ।‘’
संशोधन का सुझाव देने से पहले कार्य बल को देखना होगा कि कानून में जो कुछ भी देने की बात की गई है, उसे अमल में लाया जाए । उसे यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि ठेके पर मजदूरी और आउटसोर्सिंग रोजगार के प्रमुख स्वरूप के रूप में उभरे हैं । इसलिए कार्यबल को श्रम बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मक विश्व के लिए जरूरी लचीलापन, रोजगार पैदा करने और नौकरियों में सुरक्षा तथा मजदूरों के सामाजिक सुरक्षा के लाभ के बीच संतुलन बनाना होगा ।