दिलीप घोष
शेष विश्व की तरह भारत खासकर देश के मौसमविज्ञानी भी 23 मार्च, 2010 को विश्व मौसम दिवस मना रहे हैं। सन् 1950 में आज के दिन संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई के रूप में विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) की स्थापना हुई थी और जिनेवा में इसका मुख्यालय खोला गया था। संगठन की स्थापना का उद्देश्य मानव के दुखदर्द को कम करना और संपोषणीय विकास को बढावा देना है। इस वर्ष विश्व मौसम दिवस का ध्येयवाक्य मानवजाति की सुरक्षा और कल्याण के लिए 60 वर्षों से सेवा में है।
पहले के विपरीत आज मौसम विज्ञान में केवल मौसम संबंधी विधा शामिल नहीं है बल्कि इसमें पूरा भू-विज्ञान है। इसका इस्तेमाल बाढ, सूखा और भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदा का अनुमान लगाने के लिए किया जा रहा है। इसका उपयोग नाविकों, समुद्री जहाजों और उन लोगों द्वारा भी किया जा रहा है जो सड़क एवं विमान यातायात का प्रबंधन संभालते हैं। ये सारी बातें मौसम पर्यवेक्षण टावरों, मौसम गुब्बारों, रडारों, कृत्रिम उपग्रहों, उच्च क्षमता वाले कंप्यूटरों और भिन्न-भिन्न अंकगणितीय मॉडलों से भी संभव हो पायी हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि महान मौसम विज्ञानियों को पैदा करने वाला भारत वर्तमान में भी मौसम विज्ञान के विकास में अहम योगदान दे रहा है।
यह सुविदित है कि भारतीय उपग्रहों के मौसम संबंधी आंकडें कई देश इस्तेमाल कर रहे हैं। अगस्त, 1983 , जब इनसैट श्रृंखला का पहला उपग्रह इनसैट-1बी प्रक्षेपित किया गया था, के बाद अबतक भारत ने अंतरिक्ष में मौसम पर्यवेक्षण के लिए 10 इनसैट उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। केवल इनसैट-1ए का प्रक्षेपण विफल रहा था। बाद में सितंबर, 2002 में इसरो ने समर्पित मौसम उपग्रह कल्पना-1 भूस्थैतिक कक्षा में भेजा। इसके अलावा भारत ने 10 सुदूर संवेदी उपग्रह भी प्रक्षेपित किए हैं जिनमें एक हाल का ओसियनसैट 2 भी है। यह उपग्रह पिछले वर्ष 23 सितंबर को बंगाल की खाड़ी में स्थित श्रीहरिकोटा में इसरो के प्रक्षेपण केंद्र से अलग अलग देशों के छह अन्य उपग्रहों के साथ प्रक्षेपित किया गया था। ओसियनसैट की अवधि पांच साल तय की गयी है। यह उपग्रह अंतरिक्ष यान पीएसएलवी के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा गया था। ओसियनसैट मछली की बहुलता वाले क्षेत्रों की पहचान और समुद्र की दशा के अनुमान और मौसम अनुमान के जरिए मछुआरों की मदद करता है तथा तटीय क्षेत्र के अध्ययन और जलवायु अध्ययन में अहम भूमिका भी निभाता है। इस उपग्रह के आंकड़े तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और केरल में स्थानीय भाषाओं में मत्स्य केंद्रों पर उपलब्ध कराए जाते हैं। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक डॉ. के राधाकृष्णन कहते हैं, इन तीनों राज्यों में मछली पकड़ने वाली 700 नौकाओं पर किए गए अध्ययन से पता चलता है कि ओसियनसैट के आंकडों ने मछलियों की बहुलता वाले स्थान का पता लगाकर उनके ईंधन और समय की बचत की है। उन्होंने कहा, न्न औसतन एक नौका पर सालभर में एक से छह लाख रूपए की बचत हुई। न्न
मौसम पर्यवेक्षण के लिए अंतरिक्ष में बड़ी संख्या में उपग्रह तैनात करने के अलावा भारतीय वैज्ञानिक मौसम और जलविज्ञान अध्ययन के लिए 1981 से ही अंटार्कटिका पर जाते रहे हैं। सागरीय प्रक्रियाओं को समझने के लिए और उससे प्राप्त अनुभवों का हिंद महासागर क्षेत्र के लोगों तक लाभ पहुंचाने के लिए भारत ने वैश्विक समुद्री पर्यवेक्षण तंत्र (आईओजीओओएस) के हिंद महासागर अवयव की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिलहाल वह हिंद महासागर पर एक अंतराष्ट्रीय परियोजना के साथ भी तालमेल स्थापित कर रहा है। इस परियोजना के तहत तापमान का नियतकालिक खांका तैयार किया जाएगा और महासागर में 2000 मीटर की गहराई तक लवणता का अध्ययन किया जाएगा ताकि यह पता चल सके कि ऊपरी समुद्र जलवायु परिवर्तन को कैसे प्रभावित करता है। इस परियोजना का महत्व इस बात में है कि हालांकि सागर जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाता है लेकिन सागर और वायुमंडल के बीच परस्पर संबंध खासकर तापमान और भूखंड के संदर्भ में, अब भी अच्छी तरह नहीं समझा जा सका है।
आईओजीओओएस की भांति ही डब्ल्यूएमओ भी दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की परिघटना को बेहतर ढंग से समझने के लिए कई अन्य कार्यक्रमों को प्रायोजित कर रहा है। इसके कार्यक्रमों के तीन लक्ष्य हैं। पहला है- व्यवस्थित मौसम एवं जलवायु पर्यवेक्षण में सुधार और पिछली जलवायु अवधियों का पुनर्निर्माण। दूसरे और तीसरे लक्ष्य क्रमश हैं- दीर्घकालीन जलवायु अनुमान में विद्यमान अनिश्चितता को घटाने के लिए जलवायु मॉडलों का पुनर्परिभाषित करना और यह सुनिश्चत करना कि जलवायु विज्ञान में प्रगति संपोषणीय विकास में योगदान करे।
डब्ल्यूएमओ ने सावधान भी किया है कि पिछले 15 सालों में जल से पैदा होने वाली आपदाओं की संख्या बहुत बढ गयी है। दुनियाभर में बार बार पड़ने वाले सूखे और मरूद्यानीकरण के कारण 1.7 अरब लोगों की जीविका खतरे में पड़ गयी है। ये लोग अपनी अधिकांश आवश्यकताओं के लिए जमीन पर ही निर्भर हैं। संगठन के अनुसार पिछले कुछ दशकों में जलवायु में हुआ परिवर्तन हमारे जीवन के सम्मुख स्वास्थ्य समेत कई गंभीर और अत्यावश्यक चुनौतियां खड़ा करता रहेगा। संगठन के एक दस्तावेज के अनुसार दुनियाभर के देशों ने अबतक इस बात का एहसास नहीं किया है कि जलवायु की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम नहीं उठाये जाने से भविष्य में जो कीमत अदा करनी पड़ेगी वह अभी की कीमत से कितनी भारी होगी। हालांकि प्रशांत महासागर में अल नीनों जैसी परिघटना है और सूर्य 11 वर्षों के लिए उष्ण दौरे में प्रवेश कर रहा है लेकिन मानव भी जीवाश्म ईंधन जलाकर विश्व का तापमान काफी बढा रहा है। डब्ल्यूएमओ के पूर्व महासचिव प्रो. ओ पी ओबासी ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के उपशमन के लिए जिन कदमों पर विचार किया गया है वे हमारी भावी जलवायु को बचाने के लिए नाकाफी हैं। वह इस बात पर बल देते हैं कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में उचित कमी लाने एवं महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक मुददों के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन प्रारूप संधिपत्र और क्योटो प्रोटोकॉल के साथ मिलकर एकजुट प्रयास करना चाहिए।
इस दिवस पर देश के विभिन्न हिस्सों में बैठकें, संगोष्ठियां और अन्य कार्यक्रम हो रहे हैं जिनमें मौसमविज्ञानी आपस में विचार एवं अनुभव बाटेंगे तथा इसपर चर्चा करेंगे कि इस उभरते विज्ञान के ज्ञान का न केवल भारतीयों बल्कि मानवजाति के कल्याण के लिए कैसे बेहतर उपयोग किया जाए।