लिमटी खरे
राष्ट्रमण्डल खेल की तैयारियों में विलंब को लेकर सन्देह के दायरे में आई शीला सरकार के हाथ पैर फूलना स्वाभाविक ही है। तीन चार साल तक सोने के बाद जब समय कम बचा तब कम समय में युद्ध स्तर पर कार्यवाही को अंजाम देने के लिए काम कराया जा रहा है , जिससे दिल्लीवासियों का दम फूलने लगा है। समूची दिल्ली का सीना खुदा पडा है। जहां तहां तोडफोड और गेन्ती फावडे , जेसीवी मशीन का शोर सुनाई पड रहा है। हालात इतने बदतर हैं कि स्वास , किडनी और लीवर के रोगियों की तादाद में आने वाले समय में तेजी से इजाफा हो सकता है।
प्रदूषण के लिए दिल्ली का नाम सबसे उपर ही आता है। एक समय में डीजल पेट्रोल से चलने वाले वाहनों ने लोगों का जीना दुश्वार कर रखा था। दिल्ली में सडक किनारे लगे पेड पौधे तक काले पड गए थे। न्यायालय के आदेश के बाद दिल्ली में डीजल पेट्रोल के व्यवसायिक वाहनों को सीएनजी के माध्यम से चलाने का निर्णय लिया गया। उस समय भी खासी हायतौबा मची थी। शनै : शनै : मामला पटरी पर आया और दिल्ली में प्रदूषण का स्तर कुछ हद तक काबू में आ गया।
कामन वेल्थ गेम्स इसी साल के अन्त में होने हैं। 2006 में इसकी तैयारियां आरम्भ कर दी गईं थीं। विडम्बना देखिए कि पांच सालों तक दिल्ली की गद्दी पर राज करने वाली शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली सरकार सोती रही और जब अन्तिम समय आया तब जागकर इसकी तैयारियों के लिए कमर कस रही है। आज हालात यह है कि दिल्ली के किसी भी इलाके में अगर साफ प्लेट रख दी जाए तो बमुश्किल घंटे भर के अन्दर ही उस पर गर्त चढी हुई मिलेगी।
दिल्ली के दिल कहलाने वाले कनाट सर्कस ( कनाट प्लेस ) में पिछले साल रंगरोगन और निखारने का काम आरम्भ हुआ था। साल भर से यहां खुदाई और तोडफोड का काम चल रहा है। समय की कमी के चलते कनाट प्लेस के तीनों सिर्कल का काम एक साथ ही आरम्भ किया गया था। इससे लोगों को बेहद असुविधा का सामना करना पड रहा है। यहां चलने वाले निर्माण कार्य के चलते कनाट प्लेस के आउटर सिर्कल में वाहन रेंगते ही नज़र आते हैं। इन वाहनों से निकलने वाला धुंआ भी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना नहीं है।
दिल्ली के दिल में वायू प्रदूषण के चलते नई दिल्ली महानगर पलिका निगम ने इटली की एक कंपनी के सहयोग से यहां सिस्टम लाईफ ( सीआईटीटीए ) नामक मशीन संस्थापित की। यह मशीन वातावरण के वायू प्रदूषण को खींचकर वातावरण में स्वच्छ हवा को छोडती है। कहा जाता है कि उक्त मशीन 95 फीसदी तक प्रदूषण मुक्त कर देती है। इस साल 06 मार्च को लगी इस मशीन के बारे में कहा जाता है कि यह मशीन चालीस एकड क्षेत्र की आबोहवा को साफ कर देती है।
27 अप्रेल को जब इटली की कंपनी ने मशीन में एकत्र हुए जहरीले और हानिकारक तत्वों के बारे में मोडेना विश्वविद्यालय इटली में हुए शोध के परिणामों को उजागर किया तो सभी की सांसे थम गईं। प्रतिवेदन बताता है कि कनाट सर्कस की आबोहवा में पाए गए तत्व इंसान के लिए बहुत ही ज्यादा घातक हैं। पीएम एक , दो दशमलव पांच और दस की श्रेणी में विभाजित इन तत्वों में पीएम एक सबसे अधिक नुकसानदेह बताया जाता है। बताते हैं कि सूक्ष्म कण ( पीएम एक ) की अधिकतम मात्रा 60 होनी चाहिए जो कनाट प्लेस में बीस हजार है।
जानकार चिकित्सकों का कहना है कि इतनी अधिक मात्रा में सूक्ष्म कण के पाए जाने से इंसान के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस तरह के कण सीधे सीधे स्वशन तन्त्र , तन्त्रिका तन्त्र , लीवर , फेंफडे , दिल , किडनी पर सीधा हमला करते हैं। इससे आम आदमी को लीवर , रक्त और फैंफडों के कैंसर के होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। सबसे ज्यादा फजीहत तो यहां काम करने वाले श्रमिकों की है , जिन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सीधे मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। इसके अलावा कनाट प्लेस और आसपास काम करने वाले कर्मचारियों के साथ ही साथ यहां के दुकानदार मुनाफे में ही इस तरह की संगीन बीमारियों को गले लगाने पर मजबूर हैं। कमोबेश यही आलम समूची दिल्ली का है।
हमारा कहना महज इतना ही है कि जब समय था तब अगर मन्थर गति से ही सही तैयारियां की जातीं तो आज सरकार को आनन फानन में दिल्ली को एक साथ नहीं खोदना पडता। दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य की कीमत पर राष्ट्रमण्डल खेल करान कहां की समझदारी है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि आखिर दिल्ली और केन्द्र सरकार को दिल्ली के निवासियों और बाहर से आने जाने वाले लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड करने का लाईसेंस किसने दिया। वह तो भला हो सिस्टम लाईफ मशीन का जिसने इस खतरे से आगाह कर दिया , वरना सरकार तो लोगों को बीमार बनाने का पुख्ता इन्तजाम कर चुकी थी। वैसे मशीन के चेताने से भी भला क्या होने वाला है , सरकार को अपना काम करना है , ठेकेदार को अपना , पर सदा की तरह पिसना तो आम जनता को ही है।