कल्पना पालकीवाला
विश्व मौसम संगठन प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को अपने 189 सदस्यों एवं वैश्विक मौसम समुदाय के साथ मिलकर विश्व मौसम दिवस मनाता है । अंतर्सष्ट्रीय मौसम संगठन की स्थापना वर्ष 1873 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में आयोजित पहली अंतरराष्ट्रीय मौसम कांग्रेस में की गयी थी । इस संगठन का उद्देश्य मौसम स्टेशन नेटवर्क की स्थापना करना था । यह नेटवर्क टेलीग्राफ लाइन से जोड़ा गया और जहाजरानी सेवा सुरक्षा के लिए इन्होनें मौसम संबंधी जानकारियां उपलब्ध करायीं ।
23 मार्च वर्ष 1950 में इसका नाम बदल कर विश्व मौसम संगठन कर दिया गया और अगले वर्ष से इसने संयुक्त राष्ट्र की मौसम विशेषज्ञ व आपरेशनल हाइड्रोलॉजी तथा   भूभौतिक  विज्ञानों से संबंधित एजेंसी के रूप में कामकाज प्रारंभ कर दिया ।

विश्व मौसम संगठन लोगों की सुरक्षा व कल्याण तथा खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है । इस वर्ष इसका नारा है जलवायु आपके लिए।

जलवायु के दो भौतिक और सूचनात्मक पक्ष हैं । भौतिक पक्ष में प्राकृतिक साधनों की उपलब्धता जैसे नवीकरणीय ऊर्जा आदि चीजें शामिल हैं । सूचनात्मक पक्ष में विशेषकर सामाजिक आर्थिक निर्णय की प्रक्रिया शामिल है । विस्तृत रूप से जलवायु एक ऐसा संसाधन है जिसका अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर गहरा असर होता है खासकर कृषि उत्पादन, जल प्रबंधन, स्वास्थ्य और कई अन्य महत्वपूर्ण प्रयोगों में इसका व्यापक प्रभाव है ।

हाल के वर्षों में विश्व मौसम दिवस के नारे इस प्रकार रहे हैं- वर्ष 2009 में वेदर, क्लाइमेट. एडं द एयर वी ब्रीथ; वर्ष 2008 में आब्जरविंग आवर प्लानेट फार ए वेटर पऊयूचर; वर्ष 2007 में पोलर मीटरोलाजी: अंडरस्टैंडिंग ग्लोबल इम्पैक्टस; वर्ष 2006 में प्रिवेंटिग एडं मिटीगेटिंग नेचुरल डिजास्टर;  वर्ष 2005 में वेदर, क्लाइमेट वाटर एडं सस्टेनिबल डेवलपमेंट; वर्ष 2004 में वेदर, क्लाइमेट वाटर इन द इन्फोरमेशन एज तथा वर्ष 2003 में आवर पऊयूचर क्लाइमेट ।

विश्व मौसम दिवस को मौसम निगरानी केंद्रों की स्थापना के लिए वैश्विक सहयोग को बढावा देने,  हाइड्रोलॉजीकल व जियोफिजीकल निगरानी केंद्रों की स्थापना इन केंद्रो के पुनर्निमाण एवं रखरखाव तथा शोध के लिए उपकरण मुहैया कराने, मौसम में तेजी से आ रहे बदलावों और संबंधित सूचनाओ के लिए तंत्र की स्थापना एवं रखरखाव तथा मौसम व संबंधित निगरानी के लिए मानकीकरण व आंकड़ो तथा निगरानी से जुडी सूचनाओं के एकरूप आंकडों के प्रकाशन, मौसम की सूचनाओं के प्रयोग को जहाजरानी, विमानन, जल संबंधी समस्यायों, कृषि व अन्य मानवीय  क्रियाकलापों में  एवं इस क्षेत्र में शोध एवं प्रशिक्षण को बढावा देने आदि के रूप मे मनाया जाता है । 

इसके अलावा इस दिवस को लोगों की जलवायु के बदलते स्वभाव के बारे में समझ का विस्तार करना,  पर्यावरण पर मौसम के प्रभाव और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के निपटारे के लिए उपाय सुझाने के रूप में भी मनाया जाता है। विश्व मौसम संगठन के क्रियाकलापों को जलवायु के क्षेत्र में आज महत्वपूर्ण् स्थान प्राप्त है । इस संगठन को मानवीय सुरक्षा को बढावा देने के अलावा सभी देशों के आर्थिक लाभ को बढाने के रूप में भी जाना जाता है ।


आलोक देशवाल
दुनिया की दो अद्भुत प्राचीन सभ्यताओं, भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंध दो शताब्दी से ज्यादा पुराने हैं। दोनों देश प्राचीन रेशम मार्ग के माध्यम से जुड़े थे। लेकिन भारत से चीन गये बौद्ध धर्म का परिचय आपसी संबंधों के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम था जिसने चीन में बौद्ध कला और वास्तुकला के निर्माण और चीनी बौद्ध भिक्षुओं जैसे फा-जियान, जुनजांग और इजिंग की भारत यात्रा को एक नये संबंध से जोड़ दिया। 

दोनों देशो के बीच ऐतिहासिक मित्रता के आदान-प्रदान को और बढ़ाने के लिए वर्ष 2006 को भारत-चीन मित्रता वर्ष के रूप में घोषित किया गया था। इस वर्ष के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तौर पर, वर्ष 2006-07 के दौरान चीन के चार प्रमुख शहरों- बीजिंग, झेंग्झौ चूंगकींग, और गुआंगज़ौ में "प्राचीन चीन की निधि" पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी में चीन के लोगों के लिए उनके ही घर में भारतीय कला से जुड़ी सौ कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद, वर्ष 2011 में भारत के चार शहरों- नई दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता में भी "प्राचीन चीन की निधि" पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी का आयोजन संयुक्त रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और चीन के सांस्कृतिक विरासत प्रशासन द्वारा किया गया। इस प्रदर्शनी के दौरान निओलिथिक से क्विंग राजवंश की विभिन्न कलाओं से जुड़ी सौ प्राचीन काल की वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया। चीनी वस्तुओं की विभिन्न श्रेणियों जैसे आभूषणों, सजावटी वस्तुओं,मिट्टी और धातु आदि से बने बर्तनों का प्रदर्शन नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में फिलहाल जारी प्रदर्शनी में किया गया। यह प्रदर्शनी 20 मार्च, 2011 तक चली। 

इस प्रदर्शनी का उद्देश्य दोनों देशों के लोगों के बीच मित्रता के संबंध को और मजबूत बनाना है। चीन हमेशा से अपनी संस्कृति, कला, वास्तुकला, विश्वास, दर्शन आदि के लिए दुनिया में आकर्षण का एक केन्द्र है। पेकिंग मानव के अवशेषों के साक्ष्य के साथ यह आदिम मानव के विकास का भी गवाह रहा है। नवपाषाण युग में, इसे व्यवस्थित जीवन शैली की शुरूआत के रूप में परि‍भाषि‍त किया गया जो बाद में जटिल सभ्यता के रूप में अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचा। 

ताओवाद और कन्फ्यूशियस विद्यालयों के विचार विश्व की दो प्रमुख दार्शिनक धाराओं को चीन के उपहार थे। "मृत्यु के बाद जीवन 'की अवधारणा पर निर्मित   प्राचीन चीनी सम्राटों के मकबरे बेमिसाल हैं। चीन ने एक आश्चर्यजनक वास्तुकला के रूप में बनाई गयी अपनी "चीन की महान दीवार" जैसे निर्माण से दुनिया को हैरान कर दिया। कागज, रेशम, मृतिका - शिल्प और कांस्य से बनी हुई कुछ उल्लेखनीय श्रेणी की वस्तुएं हैं जिनपर इतिहास के प्रारंभिक काल में चीन का पूरी तरह से अधिकार था। गुणवत्ता, विविधता और प्राचीन सांस्कृतिक स्मृति चिन्हों   की समृद्धि और इनसे जुड़ी शानदार प्रौद्योगिकियों के मामले में, चीन का दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में महत्वपूर्ण स्थान है। 

चीन में करीब 12 हजार वर्ष पूर्व प्रारंभ हुए नवपाषण युग ने (सभाओं, मछली पकड़ने और शिकार करने ) जैसी अर्थव्यवस्था से उत्पादन रूपी अर्थव्यवस्था में होता बदलाव देखा । इस संदर्भ में, मध्य चीन में पीलगंग संस्कृति, लियांगझू संस्कृति और यांगशाओ संस्कृति महत्वपूर्ण रही हैं। व्यवस्थित कृषि के  विकास ने बर्तनों और औजारों सहित  विभिन्न संबंधित गतिविधियों में भी मदद प्रदान की। पत्थर के टुकड़ो से बने हथियारों की जगह अच्छी तरह से तराशे गये उपकरणों ने ले ली। 

कृषि और उससे संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए कुदाल, चक्की के पाट, दरांती, हलों के फल, कुल्हाड़ी, बसूली जैसे पत्थरों के औजार थे। 

समय बीतने के साथ प्राचीन लोगों ने बर्तनों का उत्पादन किया और काफी हद तक अपने दैनिक जीवन में सुधार कर लिया। विभिन्न रंगों से चित्रित मिट्टी के बर्तनों ने अपनी खास छटा बिखेरी। रंगों से चित्रित कलाओँ ने लोगों की गतिविधियों के साथ साथ प्रारंभिक युग की कलात्मक प्रतिभा को भी प्रस्तुत किया। 
खासतौर पर शांग और झोउ राजवंशों ने (18 वीं सदी ईसा पूर्व से तीसरी सदी बीसीई तक) प्राचीन दुनिया के उत्कृष्ट धातु शिल्प में विशेष उपलब्धि हासिल की। प्राचीन चीन में बनाये गये कांस्य के अनेक पात्र वास्तव में आश्चर्यजनक हैं। कांस्य पर की जाने वाली पालिश के बाद यह चमकीले सुनहरे रंग की आभा देता है और देखने में बहुत खूबसूरत लगता है। लेकिन चीन की क्षारीय मिट्टी कांस्य के लिए उपयुक्त है और इसको आकर्षक हरे और नीले रंग में परिवर्तित करने के बाद यह आंखों को मूल धातु से ज्यादा सुन्दर लगता है। हथियारों के लिए  कांस्य का उपयोग प्रारम्भ हो गया (कुल्हाड़ी, बरछी, कटार, तलवारें) छेनी, बसूला, आरी और खेती के उपकरण फावड़ों, फावड़ियों, दंराती, मछली हुक को भी बनाया जाने लगा। कब्र में मिलने वाले हथियार इनके स्वामियों की शक्ति को दर्शाते हैं और साथ ही यह भी पता चलता है कि दैनिक जीवन में इनका उपयोग होता था लेकिन खाना पकाने-बनाने के बर्तन, खाना रखने के कन्‍टेनर, मदिरा और जल आदि‍ रखने के बर्तन और उनकी सुंदरता एवं उच्च शिल्प ने चीन और विदेशों का सबसे ज्यादा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वे इनका उपयोग अपने देवताओं और पूर्वजों को बलिदान करने में किया करते थे और बाद में इन्हें मृत व्यक्ति के साथ दफना दिया जाता था। 

कांस्य को ढाल कर वस्तुओं का निर्माण भारी गोल बर्तनों को बनाने में किया जाता था। चीनी कांसे का उपयोग संगीत वाद्ययंत्र, वजन और माप यंत्र, रथ  एवं घोड़े का साजो-सामान, गहने और दैनिक उपयोग की विविध वस्‍तुओं को बनाने में भी करते थे। उनको अति‍रि‍क्‍त घुंडि‍यों, हैडिंलों और घनी सजावट के साथ बनाया जाता था।   

कांसे के मामले में एक पृथक उत्‍कृष्‍ट श्रेणी कांस्‍य दर्पण है। इसके सामने का हि‍स्‍सा काफी चमकदार है और पि‍छला हि‍स्‍सा वि‍भि‍न्‍न सजावटी डि‍जायनों और शि‍लालेखों से ढका है। अधि‍कांश गोल है तो कुछ चौकोर और कुछ का आकार फूलों की पंखुड़ि‍यों जैसा है तो कुछ हैंडि‍ल के साथ हैं। ये अधि‍कांशत: हान राजवंश और तांग राजवंश की युद्धरत अवधि‍ से संबंधि‍त हैं।    
    
 चीनी कला वस्‍तुओं में हरि‍ताश्‍म से बनी वस्‍तुओं का एक वि‍शेष स्‍थान है। हरि‍ताश्‍म एक हल्‍का हरा, सलेटी और भूरे रंग का खूबसूरत सघन पत्‍थर है। इस प्रकार से  यह ना सि‍र्फ आंखों को भाता है बल्‍कि‍ स्‍पर्श करने में भी अच्‍छा है। इसकी शुरूआत नवपाषाण युग में पत्‍थर उद्योग के वि‍स्‍तार के रूप में हुई। चीनी हरि‍ताश्‍म को पुण्‍य और भलाई के पत्‍थर के रूप में मानते थे और उनका वि‍श्‍वास था कि‍ इस तरह के गुणों को अपने स्‍वजनों को दि‍या जा सकता है। इसलि‍ए, हरि‍ताश्‍म का उपयोग वि‍शेष अनुष्‍ठानों और संस्‍कार क्रि‍या-कलापों में आमतौर पर कि‍या जाता था लेकि‍न इसका उपयोग गहनें, पेंडेंट और छोटे पशुओं की आकृति‍ बनाने में भी कि‍या जाता था। आमतौर पर, हरि‍ताश्‍म से बनी वस्‍तुओं को संस्‍कार के लि‍ए बनी वस्‍तुओं, धारण और दफनाई जाने वाली वस्‍तुओं की श्रेणी में बांटा जा सकता है। 

इसका तकनीकी कारण यह भी था कि‍ हरि‍ताश्‍म के भारी गोल आकार में होने के कारण इसे पतले, तीखे और घुमावदार आकारों में नहीं ढाला जा सकता था। चीनी मि‍ट्टी से बने बर्तन चीन की सजावटी कला का सबसे स्‍थाई पहलू हैं और जि‍समें उच्‍च गुणवत्‍ता वाली मुल्‍तानी मि‍ट्टी की उपलब्‍धता को प्रमुख महत्‍व दि‍या गया था। वे अपनी बेहतर सतह और शानदार रंगों के लि‍ए उल्‍लेखनीय हैं जि‍न्‍हें अग्‍नि‍ की अत्‍याधुनि‍क तकनीक से प्राप्‍त कि‍या गया है। थोड़े से आयरन ऑक्‍साईड को मि‍लाकर उच्‍च ताप से हरि‍त रोगन तैयार कि‍या जाता और आमतौर पर सीलाडॉन ग्‍लेज कहे जाने वाले एक हल्‍के ताप के वातावरण में बर्तन को पकाया जाता था। 

चीनी के बर्तनों की उपस्‍थि‍ति‍ के साथ चीन में चीनी बर्तनों के इति‍हास में एक नये युग की शुरूआत हुई। करीब 3500 वर्ष पूर्व, शांग काल में, एक सफेद पत्‍थर उपयोग में आया जो चीनी मि‍ट्टी के बर्तनों के ही समान था और बाद में इसका वि‍कसि‍त उपयोग पूर्वी हान, तांग, संग, युआंन, मिंग और किंग राजवंशों
में कि‍या गया। 
मि‍ट्टी के बर्तनों के बाद आदि‍म सफेद मि‍ट्टी के बर्तनों बने और सफेद मि‍ट्टी के बर्तनों का बदलाव नीले और सफेद ग्‍लेज मि‍श्रि‍त बर्तनों में हुआ। ग्‍लेज मि‍श्रि‍त लाल रंग से रंगे मि‍ट्टी के बर्तन भी प्रचलन में रहे। इसके बाद, वि‍वि‍ध रंगों से बने मि‍ट्टी के बर्तन प्रचलि‍त हुए। चीन में बने चीनी के बर्तन अपने वि‍भि‍न्‍न आकारों और डि‍जाइनों, गहनों की चमक और इसके कपड़े अपनी अनुकूलता और उज्‍जवलता के लि‍ए जाने जाते हैं। मि‍ट्टी के बर्तनों के मामले में चीनी बर्तन उद्योग ने चीन को वि‍श्‍वभर में प्रसि‍द्धि‍ दी।

तांग राजवंश के वि‍वि‍ध रंगों से बने बर्तनों में शीशे और आकार के बीच मनोहर पंक्‍ति‍यों को उकेरने पर जोर दि‍या गया। लेकि‍न इस समयावधि‍ को आमतौर पर उल्‍लेखनीय रूप से तीन रंगों से मि‍श्रि‍त कांच कला युक्‍त मि‍ट्टी के बर्तनों की उत्‍कृष्‍ट श्रेणी के रूप में जाना जाता है। इन्‍हें गहरे नीले आकाश, बैंगनी, गहरे पीले और गेरूएं, गहरे और हल्‍के हरे और लाल रंग से सजाया जाता था इन रंगों को अग्‍नि‍ के हल्‍के तापमान से बनी उपयुक्‍त धातु ऑक्‍साइड के मि‍श्रण से तैयार कि‍या जाता था। वि‍वि‍ध रंगों के संगम ने ति‍रंगे बर्तनों को वि‍शेष आकर्षक बना दि‍या और ये तांग राजवंश के काल में दफनाने वाली वस्‍तुओं में सबसे लोकप्रि‍य बन गये। इस श्रेणी के मि‍टटी के बर्तनों में मानव और पशुओं की आकृति‍यां इनकी सर्वश्रेष्‍ठ अभि‍व्‍यक्‍ति‍ हैं। 

किंन और हांन राजवंशों से मृतक लोगों के साथ बड़ी मात्रा में शानदार समानों और मि‍ट्टी के बर्तनों को दफनाने की प्रथा आरंभ हुई। चीनी सम्राटों का मानना था कि‍ मरने के बाद लोग एक नई दुनि‍या में जीवन जीने के लि‍ए जाते हैं और इसलि‍ए उनके मरने के बाद वे सबकुछ अपने साथ ले जाना चाहते थे जि‍सका उपयोग उन्‍होंने अपने जीवनकाल में कि‍या था। इसलि‍ए, सम्राट के मकबरे का एक बड़ा टीला सा बन जाता था जि‍समें बहुत से बर्तनों, अनाज के भंडार, हथि‍यार, पशु, दैनि‍क उपयोग की वस्‍तुओं, घोड़ों, रथों और मुहरों आदि‍ को दफन कि‍या जाता था। टेराकोट्टा सेना और टेराकोट्टा योद्धा मृतक और उसके बाद के जीवन को मानने वालों में प्राचीन चीनी अंति‍म संस्‍कार के सबसे स्‍पष्‍ट उदाहरण हैं। उन्‍होंने शाही अंति‍म संस्‍कार की रस्‍मों को पूरी तरह से नि‍भाया। भूमि‍गत कब्रों में अपने भारी कवच के साथ दफनाए गये योद्धाओं के हाथों में उनके हथि‍यार यह दि‍खाते थे कि‍ वे अपने सम्राट की रक्षा के लि‍ए कि‍सी भी समय अपनी जान कुर्बान करने के लि‍ए तैयार हैं। अपने खूबसूरत रेशम के लि‍बास के साथ हजारों की संख्‍या में महि‍ला गणि‍काएं नृत्‍य कर रही हैं और सुअरों, घोड़ो, पशु, भेड़, बकरि‍यों, कुत्‍तों और मुर्गि‍यों को उनके भोजन के लि‍ए उनके साथ बांध दि‍या जाता था।     

भारत से  चीन आए बौद्ध धर्म का परिचय धार्मिक प्रति‍माओं के रूप में सामने आया जो अंततः स्‍वयं के एक वर्ग के रूप में विकसित हुआ और वेई, सुई, तांग, संग, मिंग और किंग राजवंशों के उत्‍कृष्‍ट काल तक पहुँचा।  इन बौद्ध मूर्तियों को उत्‍कृष्‍ट शिल्प कौशल के माध्‍यम से पत्‍थर के साथ-साथ कांसे से बनाया गया और तांग काल में यह अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंची। अपने वि‍कास के दौरान, चीनी मूर्तिकला को विविधता प्रदान करने के लि‍ए नये रूपों और शैलि‍यों को आत्‍मसात कि‍या गया। द यून गंग, द लांगमेन और दाजू ग्रोटोज इस क्षेत्र की कृति‍यों के सि‍र्फ कुछ एक उदाहरण हैं।  


कल्पना पालखीवाला 
दुनियाभर में वनों को महत् देने के लि हर साल 21 मार्च को विश् वानिकी दिवस मनाया जाता है। वसंत के इस दि दक्षिणी गोलार्ध में रात और दि बराबर होते हैं। यह दि वनों और वानिकी के महत् और समाज में उनके योगदान के तौर पर मनाया जाता है। रियो में भू-सम्मेलन में वन प्रबंध को मान्यता दी गई थी तथा जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से निपटने के लि वन क्षेत्र को वर्ष 2007 में 25 प्रतिशत तथा 2012 तक 33 प्रतिशत करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

संयुक् राष्ट्र महासभा ने 2011 को अंतर्राष्ट्रीय विश् वन वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है। इसलि दुनियाभर की सरकारों, स्वयं सेवी संगठनों, निजी क्षेत्र और सार्वजनि क्षेत्र को संयुक् राष्ट्र के साथ मिलकर काम करने को कहा गया है। कुल मिलाकर अंतर्राष्ट्रीय विश् वन वर्ष का उद्देश् वन संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लाभ के लि सभी तरह के वनों के टिकाऊ प्रबंध, संरक्षण और टिकाऊ विकास को सुदृढ़ बनाना है। वर्ष के दौरान जल ग्रहण क्षेत्र संरक्षण, पौधों को पर्यावास उपलब् कराने, पुनर्सृजन के लि क्षेत्रों, शिक्षा और वैज्ञानि अध्ययन तथा लकड़ी एवं शहद सहि अनेक उत्पादों के स्रोत जैसे समुदाय को होने वाले लाभ पर बल दिया जाएगा। विश् वानिकी दिवस का लक्ष् लोगों को यह अवसर उपलब् कराना भी है कि वनों का प्रबंध कैसे किया जाए तथा अनेक उद्देश्यों के लि टिकाऊ रूप से उनका कैसे सदुपयोग किया जाए।

      जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद ने हरि भारत के लि भारत के राष्ट्रीय मिशन को फरवरी 2011 में स्वीकृतिदे दी यह मिशन जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत आठ मिशनों में से एक है। इस मिशन का उद्देश् वन क्षेत्र की गुणवत्ता तथा मात्रा को बढ़ाकर 10 मिलियन हेक्टेयर करना तथा कार्बन डाई ऑक्साइड के वार्षि उत्सर्जन को 2020 तक 50 से 60 मिलियन टन तक लाना है।

     इसके तहत अपने वन क्षेत्र की गुणवत्ता को बढ़ाने के लि वन क्षेत्र की मात्रा बढ़ाने  पर ध्यान देने के पारंपरि नजरि में बुनियादी बदलाव लाने का प्रस्ताव है। वन क्षेत्र या वनों का दायरा बढ़ाने एवं अपने मध्यम दर्जे का वन घनत् बढ़ाने तथा विकृत वन क्षेत्र को दुरूस् करने पर मुख् रूप से ध्यान दिया जा रहा है।

     इस मिशन के तहत यह प्रस्ताव है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष् हासि करने के लि केवल वृक्षारोपण के बजाय वानिकी को समग्र दृष्टिकोण के रूप में लिया जाए। जैव विविधता को संरक्षि रखने और बढ़ाने तथा चारागाह/झाड़ियों, मैनग्रोव वनों तथा दलदली भूमि सहि अन् पारिस्थितिकी एवं पर्यावासों को पहले जैसी स्थिति में लाने पर भी स्पष् रूप से ध्यान देने का प्रस्ताव है।

      मिशन के कार्यान्वयन में स्थानीय प्रशासन संस्थाओं को शामि करने के लि विकेंद्रीकृत एवं सूझ-बूझ भरा प्रयास करने पर मुख् रूप से ध्यान दिया जाएगा। हम यह नहीं भूल सकते कि वन हमारे देश में 20 करोड़ से भी अधि लोगों की आजीविका का मुख् स्रोत हैं। इसलि हमारे वनों के संरक्षण तथा उनकी गुणवत्ता में सुधार का कोई भी प्रयास स्थानीय समुदायों की सक्रि भागीदारी के बिना कामयाब नहीं हो सकता।

इस मिशन के डिज़ाइन में आम नागरिकों एवं नागरि संस्थाओं को भी जोड़ने की योजना है। इस मिशन के तीन प्रमुख उद्देश् हैं:-
भारत में वनरोपण/पर्यावरण अनुकूल ढंग से वनों को पहले की स्थिति में लाने के लि क्षेत्र को बढ़ाकर अगले दस वर्षों में दुगुना करना और कुल वनरोपण/ पर्यावरण अनुकूल ढंग से वनों को पहले की स्थिति में लाने के लि क्षेत्र को 2 करोड़ हेक्टेयर करना (अर्थात एक करोड़ हेक्टेयर वन/ गैर-वन क्षेत्र को अतिरिक् माना जाएगा, जबकि एक करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र को विभिन् कार्यक्रमों के तहत वन विभाग और अन् एजेंसियों का कार्य होगा)
भारत के वार्षि कुल ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को वर्ष 2020 तक 6.35 प्रतिशत करने के लि भारत के वनों द्वारा ग्रीन हाउस गैस को दूर करने की प्रक्रिया में वृद्धि करना। इसके लि एक करोड़ हेक्टेयर वनों/पारिस्थितिकी के भूमि के ऊपर और नीचे जैव ईंधन को बढ़ाने की ज़रूरत होगी, जिसके फलस्वरूप हर साल एफ 43 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के कार्बन पर रोक लगाने की प्रक्रिया में वृद्धि होगी।
मिशन के तहत शामि वनों/पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को बढ़ाना जलवायु में हो रहे बदलाव को आत्मसात करने के लि स्थानीय समुदायों की मदद करने के लि समावेश, भूजल संभरण, जैव विविधता, सेवाओं (ईंधन लकड़ी, चारा, एनटीएफपी इत्यादि‍) का प्रावधान बढ़ाना।


समीर पुष्प
औद्योगिक  विकास की प्रक्रिया आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन किसी भी औद्योगिक विकास के  साथ-साथ पर्यावरण का ह्रास भी दिखाई पड़ता है। पर्यावरण का नुकसान कम करने के लिए कई दशकों से चले आ रहे परंपरागत तरीक़ों का इस्तेमाल केवल लक्षणों का उपचार साबित हुआ है। विश्व इस समय पर्यावरण क्षति के रोग से जूझ रहा है और इसके असाध्य होने की संभावना का डर है। समय आ गया है कि प्रदूषण की आपात समस्या से निपटने के लिए,  तकनीकी उपायों के मेल से कचरे को उत्पन्न होने से रोकने या उसके बहुमूल्य पदार्थों को पुनः इस्तेमाल के लिए प्रभावी क़दम उठाए जाएं। भारत में, हम, इस बढ़ती समस्या के प्रति सतर्क हैं और जागरूकता बढ़ाने तथा व्यावहारिक समाधान के रूप में पर्यावरण  क्षरण के प्रभाव को कम करने के प्रयास शुरू कर चुके हैं। इस विश्वास  को सुदृढ़ करने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत, राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद  12 से 18 फ़रवरी, 2011 के बीच उत्पादकता सप्ताह मना रहा है, जिसका विषय है- 'सतत ऊर्जा और पर्यावरण के लिए हरित उत्पादकता'। उत्पादकता सप्ताह 'हरित उत्पादकता (जीपी)' की मूल अवधारणा पर केंद्रित होगा। 
एक नया प्रतिमान

हरित उत्पादकता स्थायी निर्माण में एक नया प्रतिमान है जिसमें संसाधन संरक्षण और अपशिष्ट न्यूनीकरण की रणनीति पर्यावरण का प्रदर्शन और उत्पादकता बढ़ाने में मददगार है। उद्योगों की सततता के प्रति  उत्पादकता का यह दृष्टिकोण, स्वच्छ उत्पादन प्रौद्योगिकी और उत्पाद के जीवन चक्र को निर्माण के विविध स्तरों पर, निरंतर सुधार की नीति के साथ, पर्यावरण के प्रदर्शन को मापने के लिए उचित संकेतकों और उपकरणों के विकास को अपनाने की मांग करता है। विश्लेषण में समस्त जीवन चक्र के बढ़ते प्रभावों का विस्तार, सुधार रणनीतियों और संकेतकों की जानकारियों को भी शामिल किया जा सकता है। 

हरित उत्पादकता एक बेहतरीन  सामाजिक-आर्थिक विकास है जो कि पर्यावरण को कम से कम या बगैर कोई क्षति पहुंचाए मानव जीवन की गुणवत्ता में सतत सुधार पर जोर देता है।  उपयुक्त उत्पादकता और पर्यावरण प्रबंधन उपकरणों, तकनीकों और प्रौद्योगिकियों, जो कि किसी  संगठन की लाभप्रदता और प्रतिस्पर्धी लाभ को बढ़ाने के साथ उसकी गतिविधियों, उत्पादों और सेवाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते है, उनका यह एक संयुक्त अनुप्रयोग है। 

हरित विकास गतिशीलता 
उत्पादकता सप्ताह का ज़ोर पारिस्थितिकी दक्षता के विचारों और ऊर्जा दक्षता दृष्टिकोणों  के प्रति जागरूकता पैदा करना है, जो कि पारिस्थितिकी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों द्वारा समर्थित और पर्यावरण के वित्तपोषण और निवेश तथा प्रति चक्रों के समीकरणों पर केंद्रित होगा। उपभोक्ताओं सहित कंपनियों और हितधारकों की उद्देश्यपूर्ण कार्रवाई तेजी से उत्पाद सुधार तथा  उत्पाद को नया स्वरूप देने सहित पर्यावरणीय रूपरेखा की पहल पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य भविष्य में हरित उपभोक्तावाद और हरित विकास गतिशीलता तथा हमारे ग्रह की सीमाओं में  पर्यावरणीय संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए पर्यावरण अनुकूल शहरों और पर्यावरण अनुकूल औद्योगिक पार्कों को उभारने की संभावनाओं को तलाशना है।

                 एक सिद्धांत और रणनीति के रूप में हरित उत्पादकता को व्यापक समझ और मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ है, और अंततः स्थाई सामाजिक -आर्थिक विकास के लिए उत्पादकता और पर्यावरण के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए इसे लागू किया जा रहा है। अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के दोहन के कारण जहां एक ओर प्राकृतिक ऊर्जा की निधियों में कमी आ रही है वहीं, दूसरी ओर इसके अत्यधिक और असंतुलित प्रयोग के कारण, दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग जैसी कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरणीय क्षति के प्रभावों के कुछ उदाहरणों में  समुद्र के स्तर में वृद्धि, वर्षा में उतार चढ़ाव और अक्सर सूखे की स्थिति शामिल हैं। इन सभी चिंताओं ने हमें स्थिति का आकलन करने पर मजबूर किया और इससे सतत विकास के लिए हरित उत्पादकता की अवधारणा के जन्म को दिशा मिली।

पर्याप्त लाभ
 उत्पादकता का मुख्य ध्यान  लागत में कमी के जरिए कीमतों में कमी लाने, गुणवत्ता सुधारने और ग्राहक संतुष्टि को सुनिश्चित करने पर केंद्रित था। अब इन के साथ, उत्पादकता सुधार कार्यक्रमों से पर्यावरण के मुद्दों को एकीकृत करने की भी अपेक्षा है। जीपी कंपनी की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है और यह केवल निर्माण में ही नहीं बल्कि, सेवाओं और सूचनाओं तथा कृषि क्षेत्र के साथ सरकारी और समुदायिक आर्थिक विकास पर भी लागू है। गुणवत्ता के माध्यम से, समृद्धि में बढ़ोतरी के रुप में उत्पादकता, पर्यावरणीय सुरक्षा और सामुदायिक  वृद्धि में तब्दील हो गई है।

ऊर्जा और पर्यावरणीय मुद्दों को समाविष्ट करने वाली सतत विकास की राह पर पर्याप्त चुनौतियां हैं। भविष्य में आकलित, जनसंख्या वृद्धि  से जुड़ी समस्याओं को ऊर्जा प्रबंधन और प्रदूषण में कमी लाने वाली तकनीक काफी हद तक दूर कर देगी। इसलिए, हरित उत्पादकता को लाभ में वृद्धि, स्वास्थ्य और सुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के निर्माण, पर्यावरण संरक्षण को प्रसारित करने, विनियामक अनुपालन, कंपनी की छवि निर्माण और कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने के मुख्य उद्देश्यों के साथ शुरू किया गया था जिससे अंततः समग्र और पूर्ण विकास को बढ़ावा मिलेगा।

महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, " इंसान की जरूरतों की संतुष्टि के लिए प्रकृति पर्याप्त है लेकिन आदमी के लालच के लिए पर्याप्त नहीं है।" वैश्वीकरण की इस भयंकर दौड़ में, दुनिया के देशों ने जरूरत और लालच के बीच के अंतर  की समझ को  खो दिया है। वे तेजी से भौतिकवाद के रेतीले गर्त में फंसते जा रहे हैं और इस तरह विभाजक रेखा को खींचने में असमर्थ हो रहा हैं। इस धुंधलके के परिणामस्वरुप उपभोक्तावादी अवधारणा अपव्यय को प्रदर्शित कर रही है जिससे माल और सेवाओं में बेतहाशा तरीके से विवेकहीन वृद्धि हुई है।

उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। किसी राष्ट्र की प्रतिस्पर्धा उत्पादकता वृद्धि के साथ जुड़ी होती है और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाने के लिए राष्ट्र की क्षमता को परंपरागत आर्थिक मापदंड के अलावा पर्यावरणीय  प्रदर्शन से मापा जाता है। पर्यावरण सरंक्षण को एक एकाकी तत्व बनाने की बजाय इसे प्रमुख व्यापार सिद्धांत बनाने में हरित उत्पादकता की अवधारणा एक सरल किंतु सुरुचिपूर्ण समाधान है। उत्पादकता सप्ताह-2011 का चयनित विषय ̎सतत ऊर्जा और पर्यावरण के लिए हरित उत्पादकता̎ समय की आवश्यकता है।


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