स्टार न्यूज़ एजेंसी
भोपाल (मध्य प्रदेश).  पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ बेग का कहना है कि उर्दू अपने घर में ही बेगानी हो चुकी है। सियासत ने इन सालों में सिर्फ देश को तोड़ने का काम किया है। अब भारतीय भाषाओं का काम है कि वे देश को जोड़ने का काम करें। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में उर्दू पत्रकारिताः चुनौतियां और अपेक्षाएं विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ सत्र में मुख्यअतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। उनका कहना था कि देश को जोड़ने वाले सूत्रों की तलाश करनी पड़ेगी, भाषाई पत्रकारिता इसमें सबसे खास भूमिका निभा सकती है।

आयोजन के मुख्य वक्ता प्रमुख उर्दू अखबार सियासत (हैदराबाद) के संपादक अमीर अली खान ने कहा कि उर्दू अखबार सबसे ज्यादा धर्म निरपेक्ष होते हैं। उर्दू पत्रकारिता का अपना एक रुतबा है। लोकिन उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या अच्छे अनुवादकों की कमी है। संगोष्ठी में स्वागत उदबोधन करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि इस संगोष्ठी का लक्ष्य उर्दू पत्रकारिता के बारे में एक समान कार्ययोजना का मसौदा तैयार करना है। उर्दू किसी तबके , लोगों की जबान नहीं बल्कि मुल्क की जबान है। मुल्क की तरक्की में उर्दू की महती भूमिका है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सेकुलर कयादत के संपादक कारी मुहम्मद मियां मोहम्मद मजहरी (दिल्ली) ने कहा कि उर्दू पत्रकारिता गंगा-जमनी तहजीब की प्रतीक है।
प्रथम सत्र में उर्दू पत्रकारिता की समस्याएं और समाधान पर बोलते हुए दैनिक जागरण भोपाल के समाचार संपादक सर्वदमन पाठक ने कहा कि उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या पाठकों व संसाधनों की कमी है। उर्दू – हिंदी पत्रकारों में तो समन्वय है परंतु इन दोनों भाषायी अखबारों में समन्वय की भारी कमी है। आकाशवाणी भोपाल के सवांददाता शारिक नूर ने कहा कि एक समय में भोपाल की सरकारी जबान उर्दू थी व भोपाल उर्दू का गढ़ था। उर्दू सहाफत(पत्रकारिता) को बढ़ाना है तो उर्दू की स्कूली तालीम को बढ़ावा देना होगा।

स्टार न्यूज़ एजेंसी (दिल्ली) की संपादक सुश्री फ़िरदौस ख़ान ने कहा कि हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी अखबारों की सोच में बुनियादी फ़र्क है, उर्दू भाषा की तरक्की उर्दू मातृभाषी लोगों व सरकार दोनों पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि उर्दू अख़बारों को वक़्त के साथ चलना होगा। उन्होंने उर्दू अख़बारों के इतिहास, उनके उदय-पतन, उनकी समस्याओं और चुनौतियों पर भी रौशनी डाली। बरकतउल्ला विवि, भोपाल की डा. मरजिए आरिफ ने कहा की उर्दू पत्रकारिता में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। उन्होंने उर्दू पत्रकारिता का पाठ्यक्रम शुरु करने की आवश्यकता बताई। वरिष्ठ पत्रकार तहसीन मुनव्वर (दिल्ली) ने कहा की उर्दू अखबारों में प्रमुख समस्या संसाधनों भारी कमी है। उर्दू अखबारों में मालिक, संपादक, रिपोर्टर, सरकुलेशन मैनेजर व विज्ञापन व्यवस्थापक कई बार सब एक ही आदमी होता है। सहारा उर्दू रोजनामा (नई दिल्ली) के ब्यूरो चीफ असद रजा ने कहा कि हिंदी व उर्दू पत्रकारिता करने के लिए दोनों भाषाओं को जानना चाहिए। उर्दू अखबारों को अद्यतन तकनीकी के साथ साथ अद्यतन विपणन ( लेटेस्ट मार्केटिंग) को भी अपनाना चाहिए। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात हिंदी आलोचक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि देश में शक्तिशाली लोगों को केवल अंग्रेजी ही पसंद है। हिंदी व उर्दू को ये लोग देखना नहीं चाहते और यही लोग दूसरे लोगों के बच्चों को मदरसे बुलाते हैं परंतु अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजते हैं।सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने उर्दू में एक सक्षम न्यूज एजेंसी की स्थापना पर बल दिया और अंग्रेजियत से मुक्त होने की अपील की। उन्होंने घोषणा कि पत्रकारिता विवि में मास्टर कोर्स में वैकल्पिक विषय के रूप में उर्दू पत्रकारिता पढ़ाने का प्रस्ताव वे अपनी महापरिषद में रखेंगें। साथ ही उर्दू मीडिया संस्थानों को प्रशिक्षित करने के लिए वे सहयोग देने के लिए तैयार हैं। विवि मप्र मदरसा बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम बनाने और संचालित करने में मदद करेगा। सत्रों में आभार प्रदर्शन राघवेंद्र सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव एवं प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार रेक्टर चैतन्य पुरुषोत्म अग्रवाल, आरिफ अजीज प्रो. एसके त्रिवेदी, दीपक शर्मा, शिवअनुराग पटैरया, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. माजिद हुसैन, सौरभ मालवीय, लालबहादुर ओझा, डा. राखी तिवारी आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।

सुमन गज़मेरपुरस्‍कार विजेता कृषक धनपति सपकोटा ने हाल ही में गंगटोक में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय पुष्‍प समारोह के दौरान सब्‍जी उगाओ प्रतियोगिता में डेढ लाख रूपये का नकद पुरस्‍कार जीता है । पूर्व सिक्‍किम के असम लिंजे में छोटा सिंगटाम के इस प्रगतिशील किसान को मुख्‍यमंत्री ने नकद पुरस्‍कार और प्रशस्‍ति पत्र प्रदान किये ।

धनपति सपकोटो को एक गैर सरकारी संगठन ने भी भास्‍कार कृषि सम्‍मान प्रदान किया है । यह सम्‍मान तकसांग स्‍थित सागर प्रकाशन ग्रामीण प्रतिभा संरक्षण समिति द्वारा दिया गया है । इससे पूर्व पक्‍योंग में आयोजित स्‍वतंत्रता दिवस समारोह में भी राज्‍य के बागवानी विभाग ने उन्‍हें डेढ़ हजार रूपये, प्रशस्‍ति पत्र, कृषि उपकरण और विभिन्‍न बागवानी फसलों के बीजों के पैकेट देकर सम्‍मानित किया था ।

सपकोटा ने घरेलू उपयोग के लिये धान और मकई की पारम्‍परिक फसलों से अलग हटकर अपनी दो एकड़ जमीन में बागवानी फसल लेने की शुरूआत की थी । इसके लिये उन्‍होंने मारचक में तीन दिनों का प्रशिक्षण लिया था । इसके अतिरिक्‍त उन्‍होंने उत्‍तराखंड में आयोजित जैविक कृषि कार्यशैली में भी 11 दिनों का प्रशिक्षण प्राप्‍त किया था । राज्‍य के बागवानी विभा्ग ने इसके लिये सहायता की थी।

इस प्रशिक्षण और आम विश्‍वास के कारण सपकोटा ने आश्‍चर्यजनक परिणाम दिये हैं । उन्‍होंने 1900 बीजों से उसी वर्ष 1 लाख 52 हजार रूपये मूल्‍य की 19 क्‍विंटल लाल मिर्च का उत्‍पादन करने में सफलता प्राप्‍त की । इस सफलता ने बागवानी को अपनाने के लिये उन्‍हें और भी प्रेरित किया । उन्‍होंने फूल गोभी, टमाटर, पत्‍तागोभी और हरी गोभी की भी फसल लेनी शुरू कर दी ।

समकोटा ने अपनी जमीन पर संरक्षित उत्‍पादन के जरिये एक पौधे से 40 किलो टमाटर की पैदावार ली । इस वर्ष इस आदर्श किसान ने तकनीकी मिशन के अंतर्गत राज्‍य के बागवानी विभाग से रोमियो प्रजाति के बीज लेकर बेमौसमी टमाटर की पैदावार ली है । उन्‍होंने 1 लाख 94 हजार रूपये मूल्‍य का 97 क्‍विंटल टमाटर बेचा । उन्‍होंने 64 हजार रूपये मूल्‍य की 8 क्‍विंटल फूलगोभी 96 हजार रूपये मूल्‍य की लाल मिर्च भी बेची है । सपकोटा का कहना है कि मजदूरों की मजदूरी के भुगतान और अन्‍य जरूरी खर्चों को निकालकर मुझे बागवानी से प्रतिवर्ष ढाई लाख रूपय की आय होती है । वे तकनीकी मिशन के तहत सब्‍जियों की मिली जुली फसलें भी ले रहे हैं । राज्‍य का बागवानी विभाग तकनीकी मिशन के तहत सब्‍जियां उगाने के क्षेत्र में विस्‍तार के लिये प्रयासरत है ।

विभाग की ओर से सपकोटा को बीज, जैविक खाद और कीटनाशक दवाओं तथा अन्‍य सहायता दी जाती है ।सपकोटा का दावा है कि उन्‍होंने सिक्‍किम में जुकुनी फारसी का उत्‍पादन लेना शुरू किया है । यह ककड़ी के आकार का जुकुनी प्रजाति का कद्दू होता है । इस क्षेत्र में जुकुनी फारसी की पैदावार लेने वाले वे पहले किसान हैं, इसलिए असम लिंग्‍जे के लोगों ने उनके कद्दू का नाम सपकोटा फारसी रख दिया है । वे बताते हैं कि उन्‍होंने जुकुनी फारसी का बीज 2004 में काठमांडू से खरीदा था । उन्‍होंने बताया कि सबसे पहले कद्दू की यह प्रजाति उन्‍होंने भक्‍तपुर में राणा के कृषि फार्म में देखी थी । जुकुनी फारसी की पैदावार लेने से सपकोटा को 90 हजार रूपये की आय हुई ।

इस प्रगतिशील किसान की जैविक खेती की कहानी यहीं समाप्‍त नहीं होती । वे पशुपालन और पशुधन प्रबंधन में भी योगदान दे रहे हैं । इसके लिये उन्‍होंने कारफेक्‍टर जोरथांग से प्रशिक्षण भी प्राप्‍त किया है । इस समय उनके पास पाँच गायें हैं, जिनमें से तीन दुधारू हैं । वे प्रतिदिन 20 लीटर दूध 20 रूपये प्रति लीटर की दर से बेच रहे हैं ।

सपकोटा को अपने खेतों के लिये खाद भी इन गायों से मिलता है । बागवानी विभाग के सहयोग से उन्‍होंने केंचुआ कम्‍पोस्‍ट खाद की इकाई भी लगाई हुई है । जहां तक उपज की बिक्री का प्रश्‍न है, सपकोटा का कहना है कि यह सच है कि अधिकांश किसानों को अपना माल बेचने में दिक्‍कतें आती हैं । परन्‍तु यह समस्‍या तब तक हल नहीं होगी जब तक हम पर्याप्‍त मात्रा में उत्‍पादन नहीं करते और बाजार की मांग को पूरा नहीं करते ।

उनके प्रगतिशील कार्य से प्रभावित होकर राज्‍य बागवानी विभाग ने तकनीकी मिशन के अंतर्गत फार्म हैंडलिंग इकाई का निर्माण किया है जो उनके उत्‍पादों की बिक्री में मददगार रही है । अब उन्‍हें अपना माल लेकर बाजार नहीं जाना पड़ता, क्‍योंकि उनके सभी उत्‍पाद इसी इकाई द्वारा बेचे जाते हैं ।

सपकोटा इस समय अपने उत्‍पादों को फरवरी 2011 में सरम्‍सा गार्डेन में होने वाले राज्‍य बागवानी प्रदर्शनी में प्रदर्शित करने की तैयारियों को लेकर व्‍यस्‍त हैं ।


समीर पुष्
भारत इस समय विश् की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। उसका लक्ष् प्रति वर्ष स्थायी रूप से 9-10 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर हासिल करना है। अंत: यह आवश्यक है कि विनिर्माण क्षेत्र लंबे अरसे तक 13 से 14 प्रतिशत की दर से विकास करे। परंतु पिछले दो दशकों से विनिर्माण क्षेत्र का योगदान जीडीपी. में 16 प्रतिशत के आसपास ही बना हुआ है। एशिया के अन् देशों के विनिर्माण क्षेत्र में आए परिवर्तनों को देखते हुए भारत के विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति विशेष रूप से चिंता पैदा करने वाली हो जाती है। इस अपेक्षाकृत अल् योगदान से पता चलता है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई गतिशीलता से उत्पन् अवसरों का पूरा-पूरा लाभ उठाने में असमर्थ रहा है।

एक युवा देश होने के नाते हम एक तरह से लाभ की स्थिति में हैं-हमारी 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 15 से 59 वर्ष के कार्यशील आयु-समूह में है। सामाजिक-आर्थिक नजरिये से इसका प्रकट रूप यह बताता है कि हमारी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर हद से ज्यादा निर्भर है, बेरोजगारी, विशेष रूप से शहरी बेरोजगारी का प्रच्छन् कारण भी यही है। विश् में सबसे अधिक युवा जनसंख्या वाले हमारे देश में यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। अत: यह जरूरी है कि हम विनिर्माण क्षेत्र में अधूरे कार्य और अनुत्पादक श्रमबल को काम में लाएं ताकि 10 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर को हासिल किया जा सके। इसीलिए रोजगार सृजन के लिए भारत विनिर्माण क्षेत्र को एक ढाल के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। विनिर्माण क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की सम्पन्नता का जनक होता है और रोजगार के सृजन पर इसका गुणात्मक प्रभाव पड़ता है। विनिर्माण क्षेत्र का विकास हमारे प्राकृतिक और कृषि संसाधनों के मूल् संवर्धन के लिए भी महत्वपूर्ण है। हमारी महत्वपूर्ण नीतिगत आवश्यकताओं को पूरा करने और संपोषणीय विकास की दृष्टि से भी विनिर्माण क्षेत्र का संवर्धन जरूरी है। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग ने एक राष्ट्रीय विनिर्माण नीति तैयार करने का प्रस्ताव रखा है।

प्रस्तावित राष्ट्रीय विनिर्माण नीति के उद्देश् और मुख् विशेषतायें 2022 तक जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का अंशदान बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक ले जाना, क्षेत्र में रोजगार के वर्तमान अवसरों को दोगुना करना, घरेलू मूल् संवर्धन को बढ़ाना, क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना और देश को विनिर्माण क्षेत्र का अंतर्राष्ट्रीय हब (केन्द्र स्थल) बनाना है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, नीति का लक्ष् विश्वस्तरीय औद्योगिक ढांचा, एक अनुकूल व्यापारिक वातावरण, तकनीकी नवाचार हेतु एक पर्यावरण प्रणाली-विशेषकर हरित विनिर्माण के क्षेत्र में, उद्योगों के लिए जरूरी कौशल के उन्नयन हेतु संस्थाओं और उद्यमियों के लिए सुलभ-वित् की व्यवस्था का निर्माण करना है।

नीति के तहत जो उपाय प्रस्तावित हैं, उनमें राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्रों की स्थापना, व्यापार के नियमों को युक्तिसंगत और सरल बनाना, बीमार इकाइयों को बंद करने की व्यवस्था को सुगम बनाना, हरित प्रौद्योगिकी सहित प्रौद्योगिकी विकास हेतु वित्तीय और संस्थागत ढांचा तैयार करना, औद्योगिक प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के उपाय बढ़ाना और विनिर्माण इकाइयों और संबंधित गतिविधियों में अशंधारिता/पूंजी लगाने के लिए प्रोत्साहन देना शामिल हैं।

राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्रों (एनएमआइजेड) की स्थापना औद्योगिक रणनीति का प्रमुख आधार स्तंभ होगा। उनका विकास क्षेत्रीय आधार पर नवीनतम सुविधाओं से युक् ढांचे के साथ एकसमेकित औद्योगिक टाउनशिप के रूप में किया जाएगा। इनका आकार-कम से कम 2000 हेक्टेयर का होगा, और इनके विकास तथा प्रबंधन के लिए विशेष तंत्रों (स्पेशल परपज वेहिकल्) की स्थापना की जाएगी। प्रत्येक एसपीवी एनएमआईजेड के विकास, उन्नयन परिचालन और प्रबंधन का काम करेगी। एमआईजेड के भीतर और बाहर विनिर्माण उद्योगों का त्वरित विकास, उपयुक् नीतिगत उपायों के जरिए होगा। सरकार ने पहला राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्र राजस्थान में प्रस्तावित दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे (डीएमआईसी) परियोजना के साथ-साथ स्थापित करने का निर्णय लिया है। इससे विनिर्माण क्षेत्र को भारी बढ़ावा मिलेगा। सरकार-का इरादा इस तरह के एम.एम.आईजेड का विकास करना है जो केवल आवश्यक ढांचागत सुविधायें प्रदान करे बल्कि देश में विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान कर सके।

राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (एनएमपी) पर एक चर्चा पत्र औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग की वेबसाइट पर 31 मार्च, 2010 को प्रकाशित किया गया था ताकि सभी संबंधित पक्षों के विचारों से अवगत हुआ जा सके। औद्योगिक संगठनों, तकनीकी विशेषज्ञों और सलाहकारों सहित सभी संबंधित पक्षों से व्यापक चर्चा कर एनएमपी का प्रारूप तैयार कर अंतमर्त्रंलाय परामर्श के लिए वितरित किया गया है। प्रारूप को अद्यतन करते हुए केन्द्रीय वाणिज् और उद्योग मंत्री श्री आनंद शर्मा ने कहा कि हम सचिवों की समिति गठित कर सकते हैं। नई नीति में भारत को विश् की कार्यशाला बनाने विशेष कर सौर-ऊर्जा जैसे उभरते हरित उद्योगों की ओर खास ध्यान दिया जाएगा।


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