स्टार न्यूज़ एजेंसी
सीतापुर (उत्तर प्रदेश).  रिएसा के मवेशीबाजार मैदान में सभा को संबोधित करने पहुंचे राहुल गांधी की नज़र क़रीब छह साल के बच्चे पर गई, जो उन्हें सुनने के लिए बैठे हुए हज़ारों लोगों की भीड़ में खड़ा होकर एकटक उन्हें देख रहा था. अचानक ही राहुल गांधी ने सुरक्षा जवानों से उस बच्चे को मंच पर बुलाने के लिए कहा. जब सुरक्षा जवान उस बच्चे को बुलाने के लिए भीड़ में पहुंचे तो शुरू में बच्चे ने काफ़ी संकोच किया, लेकिन अपने परिजनों और बाक़ी लोगों द्वारा उसके लिए ताली बजाए जाने पर बच्चे ने हिचकते हुए सभा के मंच पर बैठे हुए कांग्रेस महासचिव की ओर धीरे-धीरे अपने क़दम बढ़ाए. इसके बाद पुलिसकर्मियों ने उस बच्चे को गोद में उठाकर सुरक्षा घेरे के दूसरी तरफ़ मौजूद एसपीजी कमांडो के साथ मंच तक पहुंचाया. राहुल गांधी ने उस बच्चे को अपने साथ वाली कुर्सी पर बैठाकर उससे काफ़ी देर तक बात की. इसके बाद उन्होंने बच्चे की हेलीकॉप्टर को नज़दीक से देखने की इच्छा पूरी करने के लिए एसपीजी जवानों के साथ उसे हेलीकॉप्टर की ओर भेज दिया.
राहुल गांधी ने सीतापुर ज़िले की इस विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए बताया कि उन्होंने उस बच्चे से उसके भविष्य के सपनों के बारे में बात की, जिसका उस बच्चे के पास कोई उत्तर नहीं था. उन्होंने उत्तर प्रदेश की बदहाल व्यवस्था का ज़िक्र करते हुए विरोधी दलों पर कटाक्ष किया और कहा कि इस बच्चे को इसके भविष्य के बारे में कुछ भी नहीं पता, क्योंकि यह बच्चा जानता है कि उत्तर प्रदेश का यही हाल रहा तो बड़े होने के बाद इसे अपने ही प्रदेश में रोज़गार तक नसीब नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि मैंने अपनी पढ़ाई इंग्लैंड में की, लेकिन मै वहां रहकर इतना नहीं सीख पाया, जितना मैंने उत्तर प्रदेश की जनता से सीखा है. उन्होंने जनता से कहा कि आप लोग सोचते हो कि आपके नेताओं को आपसे ज़्यादा समझ है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. असली समझ तो आप लोगों को है.
राहुल गांधी ने लखनऊ में बैठे जादू के हाथी की ख़ुराक पर उंगली उठाते हुए कहा कि दिल्ली से जनता के विकास के लिए भेजा जाने वाला सारा पैसा वही जादू का हाथी खा जाता है. मुलायम सिंह को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन कुछ नहीं किया. पुलिस स्टेशनों में उस वक़्त गुंडाराज था, लोगों की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती थी.
उन्होंने कहा कि चार बार मायावती और तीन बार ही बीजेपी के लोगों ने प्रदेश की सत्ता संभाली, लेकिन किसी ने भी उत्तर प्रदेश का विकास नहीं किया, क्योंकि ये लोग सपने नहीं देखते, जबकि मैं सपने देखता हूं कि किसी भी व्यक्ति को काम की तलाश में उत्तर प्रदेश से बाहर दूसरे राज्य में नहीं जाना पड़े.
राहुल गांधी ने सभी विपक्षी दलों की आलोचना करते हुए कहा कि पिछले 22 सालों में उत्तर प्रदेश में कोई कारख़ाना  नहीं लगा और कहते हैं कि बिजली देंगे. उन्होंने सवाल किया कि क्या बिजली आसमान से लाएंगे? विपक्षी आसमान का रंग भी बदलकर हरा करने को तैयार हो जाएंगे. लेकिन जिस दिन सरकार बन जाएगी, उस दिन के बाद आपके पास नहीं आएंगे. सब कुछ भूल जाएंगे.
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि 2004 में एनडीए ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दिया. वे नारों की बात इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि नारों से ही पार्टी की सोच झलकती है और उस सोच को समझना पड़ता है. राहुल गांधी ने कहा कि एनडीए के नेता आप लोगों के बीच नहीं आए, आपसे बात नहीं की, बस एक चमकते हुए सूट को देखकर अपना नारा तैयार कर लिया और कह दिया कि हिंदुस्तान चमक रहा है. अगर उनके नेता जनता के बीच गए होते और उनकी हालत देखी होती तो उन्हें यह बात बोलने में शर्म आती.
उन्होंने कहा कि 2004 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हम सबसे पहले आपके पास आए और आप लोगों से बात करके मनरेगा योजना लागू की और काम करने वाले हर व्यक्ति को साल में 100 दिन तक 120 रुपये के हिसाब से 12 हज़ार रुपये देने का क़ानून बनाया. यह योजना कांग्रेस पार्टी की सोच नहीं थी और न ही पत्रकारिता जगत की. यह सोच आम आदमी की थी, जिसने हमें बताया कि गांव में भी शहरों की तरह रोज़गार मिलना चाहिए. उसके बाद हमने किसानों से बात की. किसानों ने हमें बताया कि उनके लिए बैंक के दरवाज़े बंद पड़े हैं. इसके बाद हमने किसानों का 60 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ माफ़ किया और एक बार फिर किसानों के लिए बैंक के दरवाज़े खोले. हमने यह सब बंद एसी कमरों में बैठकर नहीं किया, इसके लिए हम आप लोगों के पास आए, आपसे पूछा.
राहुल गांधी ने सपा और बसपा को निशाने पर लेते हुए कहा कि जब बुंदेलखंड में सूखा पड़ा था और हज़ारों किसान बदहाल थे, वहां से लगातार पलायन हो रहा था, तो वहां समाजवादी पार्टी के लोग नहीं गए. उन्होंने कहा कि मैंने मायावती जी से भी कहा कि एक बार वहां जाकर किसानों की हालत देखिए, लेकिन राहुल गांधी ने यह बात कही, इसलिए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री वहां नहीं गईं, सिर्फ़ कांग्रेस के लोग वहां गए. हमने इस बारे में प्रधानमंत्री जी से भी बात की और उन्होंने तुरंत हज़ारों करोड़ रुपये का राहत पैकेज दिया.
मयावती जी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री हैं, क्या किसी ने भी पिछले 5 सालों में उन्हें किसी गांव में देखा है?  इस पर वहां मौजूद जनता ने एक सुर में जवाब दिया, नहीं. उन्होंने कहा कि मायावती जी के घरों में 20-20 फुट ऊंची दीवारें हैं और वह हमेशा ही अपने घर के अंदर रहती हैं. जब वह कभी घर से बाहर ही नहीं निकलतीं, तो प्रदेश में विकास कैसे होगा? उत्तर प्रदेश में नेता मुख्यमंत्री बन जाते हैं और बाद में जनता को भूल जाते हैं. अगर ग़रीब के घर जाएं, वहां एक रात सोएं और मच्छर रात भर काटें, तो उन्हें समझ में आ जाए कि ग़रीब को किस तरह से रहना पड़ता है.
राहुल गांधी ने कहा कि हमने जनता को मनरेगा, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, सूचना का अधिकार, बुंदेलखंड पैकेज, बुनकर पैकेज दिया और अब हम जनता को खाने का अधिकार देना चाहते हैं, जिसके तहत उन्हें 35 किलोग्राम अनाज दिया जाएगा. लेकिन इंडिया शाइनिंग वाले नेता संसद में सवाल कर रहे हैं कि पैसा कहां से आएगा? राहुल गांधी ने कहा कि मैं यही सवाल उन नेताओं से करता हूं कि वो बताएं पैसा कहां से आया?  तरक्क़ी कहां से आई?
उन्होंने कहा कि जब आप लोग किसी राज्य में काम करते हो तो वहां का विकास होता है और उस विकास के ज़रिये सरकार को टैक्स मिलता है, जो आप ही का पैसा होता है. हम आपका पैसा आप ही तक वापस भेजने का काम करते हैं. उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है, इसलिए यहां सबसे ज़्यादा पैसा भेजते हैं.
मायावती जी कहती हैं कि यह कांग्रेस का नाटक है. हम खाने का अधिकार देने की बात कर हैं. हम कह रहे हैं कि देश में तरक्क़ी हुई है. सरकार के पास पैसा आ गया है. अब ग़रीबों को भोजन भी दिया जाना चाहिए, ताकि कोई भी भूखा न रहे. इस पर मायावती जी कहती हैं कि कांग्रेस पार्टी का नाटक है. हज़ारों करोड़ देना नाटक है. अगर ग़रीबों के हित की बात करना, उनके भले के लिए सोचना नाटक है, तो हम हमेशा यह नाटक करते रहेंगे.
आरक्षण के मुद्दे पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने सच्चर कमीशन की स्थापना की और उसकी रिपोर्ट के बाद मुस्लिम वर्ग के लोगों के विकास के लिए पैसा भेजा, बच्चों के लिए छात्रवृति भेजी, लेकिन किसी को नहीं मिली. जब कांग्रेस पार्टी ने अल्पसंख्यकों को साढ़े चार फ़ीसदी आरक्षण दिया तो मायावती जी ने कह दिया कि उन्होंने प्रधानमंत्री जी को चिट्ठी लिखी थी. राहुल गांधी ने कहा कि मायावती जी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री हैं, उन्हें इसके लिए चिट्ठी लिखने की क्या ज़रूरत है, वह यह काम ख़ुद भी कर सकती थीं. मुलायम सिंह जी कहते हैं कि आरक्षण कम दिया गया, ज़्यादा देना चाहिए था. जब पत्रकारों ने उनसे शुरू में पूछा था तो उस वक़्त वह कुछ नहीं बोले, जब कांग्रेस पार्टी ने दे दिया, तो कह रहे हैं कि कम दिया, ज़्यादा देना चाहिए था.
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि 2009 में समाजवादी पार्टी ने समझौते का प्रस्ताव देते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी केवल 5 सीटों पर ही चुनाव लड़े और बाक़ी सीटें समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ दे. इसके एवज में सपा दिल्ली की सरकार को समर्थन देगी, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने उनसे कोई समझौता नहीं किया. क्योंकि कांग्रेस पार्टी विकास के ख़िलाफ़ समझौते नहीं करती और न ही करेगी. इसके बाद उन्होंने कल्याण सिंह को गले लगा लिया.
राहुल गांधी ने कहा कि मैं यहां उत्तर प्रदेश को बदलने आया हूं और जब तक यह प्रदेश बदलेगा नहीं, मैं यहीं खड़ा रहूंगा. उन्होंने कहा कि मैं 2007 से राजनीति कर रहा हूं और अभी तक आप लोग मुझे पूरी तरह से पहचान नहीं पाए हो. अभी आप लोगों ने मुझे थोड़ा ही पहचाना है, काफ़ी पहचानना अभी बाक़ी है. उन्होंने कहा कि आप लोग मेरे शब्दों पर विश्वास न करें, मेरे काम पर विश्वास करें. कांग्रेस महासचिव ने कहा कि मैं सपनों की बात करता हूं. सपने देखे बिना कुछ नहीं हो सकता. जो लोग अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़े, उन्होंने भी अंग्रेजों को देश से भगाने का सपना देखा था और भगा दिया. अब उत्तर प्रदेश के युवाओं को भविष्य की बात करनी है. जिस दिन उत्तर प्रदेश खड़ा हो गया, उस दिन सारी दुनिया उत्तर प्रदेश को देखेगी.

स्टार न्यूज़ एजेंसी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश). कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2012 के लिए आज अपना घोषणा-पत्र जारी किया. घोषणा-पत्र स्पष्ट यह बताने की कोशिश की गई है कि उत्तर प्रदेश में विकास बहाल करने के लिए कांग्रेस पार्टी की सरकार ज़रूरी है. यह क़ानून-व्यवस्था, सुशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, खाद्य सुरक्षा, विद्युत, सड़क, कृषि, उद्योग और व्यापार, शहरी और ग्रामीण विकास, पर्यावरण और जल सहित 26 विभिन्न क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश के लिए कांग्रेस पार्टी की ओर से विस्तृत प्रतिबद्धताओं को पेश करता है. घोषणा पत्र समाज के हर वर्ग, विशेष रूप से ग़रीबों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों, विशेष रूप से अति दलितों, अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी), विशेष रूप से सबसे पिछड़े वर्गों (एमबीसी) और अनुसूचित जनजातियों की ज़रूरतों पर ख़ास ज़ोर देता है.
अपने घोषणा पत्र में की गई प्रतिबद्धताओं के प्रति गंभीरता प्रदर्शित करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि वह मुख्यमंत्री कार्यालय में एक विशेष चुनाव घोषणा-पत्र कार्यान्वयन प्रकोष्ठ स्थापित करेगी और अपने काम के आधार पर हर साल अपना रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने पेश करेगी.
घोषणा-पत्र वरिष्ठ राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय नेताओं द्वारा हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में उत्तर प्रदेश के 10 शहरों में जारी किया गया. घोषणा-पत्र पार्टी की उत्तर प्रदेश चुनाव वेबसाइट http://www.congressforup.org/ पर भी उपलब्ध है.

कांग्रेस चुनाव घोषणा-पत्र के कुछ ख़ास बिंदु

क़ानून-व्यवस्था
(क) पुलिस स्टेशनों को हर नागरिक के लिए सुलभ बनाना और पुलिस स्टेशनों में सूचना पटल के साथ संवेदनशील पुलिसिंग सुनिश्चित करना.
(ख) हर ज़िले में कम से कम एक महिला पुलिस स्टेशन को सुनिश्चित करना और हर समय, हर पुलिस स्टेशन में कम से कम एक महिला अधिकारी की मौजूदगी सुनिश्चित करना.
भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन
(क) लोकायुक्त की स्वतंत्रता और दक्षता बढ़ाना तथा मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में लाना.
(ख) प्रति वर्ष मुख्यमंत्री और राज्य सरकार के सभी मंत्रियों एवं उनके परिवार के सदस्यों की आमदनी और सम्पत्तियों के विवरण का प्रकाशन सुनिश्चित करना.
(ग) प्रत्येक सरकारी कार्यालय में प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना. राज्य शिकायत निवारण आयोग स्थापित करना. यह सुनिश्चित करना कि हर सरकारी कार्यालय में एक प्रभावी नागरिक चार्टर हो.
शिक्षा
(क) ‘हर घर में पढ़ाई’ सुनिश्चित करने के लिये हर गांव में एक स्कूल और प्रत्येक 2500 परिवारों पर एक इंटरमीडिएट कॉलेज (इंटर कॉलेज) सुनिश्चित करना.
(ख) ग़रीबी रेखा से नीचे (बीपीएल), अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग (विशेष रूप से अति पिछड़े वर्ग) के छात्रों के लिए आंध्र प्रदेश मॉडल पर आवासीय विद्यालय की शुरुआत करना.
(ग) उत्तर प्रदेश में 500 नए मॉडल स्कूलों की शुरुआत करना जो यूपीए सरकार की राष्ट्रीय नीति के तहत होंगे.
(घ) 1 लाख से ज़्यादा शैक्षणिक रिक्तियों को भरना सुनिश्चित करना, जिसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को प्राथमिकता मिले.
स्वास्थ्य
(क) यह सुनिश्चित करना कि हर गांव में पैदल दूरी पर चालू हालत में कार्यशील नागरिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी/सीएचसी) डॉक्टर के साथ उपलब्ध हों।
(ख) प्रदेश भर के हर ज़िला अस्पताल का उन्नयन एवं आधुनिकीकरण.
(ग) राज्य भर में प्रभावी और सक्षम आपात एंबुलेंस सेवा उपलब्ध कराना.
रोज़गार
(क) राज्य के युवाओं को रोजगारोन्मुखी कौशल प्रदान करने के लिए उत्तर प्रदेश कौशल और रोज़गार मिशन की शुरुआत करना. अगले 5 वर्षों में इस मिशन के माध्यम से 20 लाख युवाओं को प्रशिक्षित करना और नौकरियों में रखना.
(ख) उत्तर प्रदेश में आईटीआई और पॉलिटेक्निक प्रणाली का व्यापक सुधार और इसमें बीपीएल, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग (विशेष रूप से अति पिछड़े वर्ग) के युवाओं पर विशेष ध्यान देना.
खाद्य सुरक्षा
(क) भुखमरी के खात्मे के लिए यूपीए सरकार द्वारा पेश नया खाद्य सुरक्षा विधेयक लागू करना.
(ख) राज्य में पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी सार्वजनिक वितरण प्रणाली का पुनर्गठन.
(ग) मध्याह्न भोजन योजना के वितरण में सुधार, यह सुनिश्चित करना कि हर बच्चे को पोषक तत्वों जैसे लौह तत्व एवं पेट के कीड़े मारने की गोलियों सहित गर्म और पका हुआ भोजन मिले.
महिला
(क) यह सुनिश्चित करना कि अगले 5 वर्षों में ग़रीबी रेखा से नीचे की सभी ग्रामीण महिलाओं को बैंक से जुड़े स्वयं सहायता समूह का सदस्य बनाया जाए. 
(ख) उत्तर प्रदेश में राज्य महिला बैंक/कोष की स्थापना, जो महिला स्वयं सहायता समूह, महिला संगठनों और महिला उद्यमियों को आसान ऋण दे सके.
अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण
(क) अति-दलितों के लिए उप-कोटा संभावनाओं का अन्वेषण, ताकि उन्हें सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में और अधिक अवसर मिल सकें.
(ख) सभी अनुसूचित जाति के ग्रामीणों को मुफ्त क़ानूनी सहायता उपलब्ध कराना, जो भूमि, भवन और संपत्ति से संबंधित मामलों का सामना कर रहे हैं.
(ग) पूरे उत्तर प्रदेश में लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए दलित छात्रावास (दलित हॉस्टल) का सुधार, जो बसपा सरकार में पूर्ण उपेक्षा का शिकार हैं.
अति पिछड़े वर्ग सहित अन्य पिछड़ा वर्ग
(क) जनसंख्या के अनुरूप अति पिछड़े वर्गों के लिए उप-कोटा की शुरुआत.
(ख) राज्य सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्ग कोटा के तहत सभी रिक्तियों को भरना सुनिश्चित करने के लिए विशेष अभियान.
अल्पसंख्यक
(क) केंद्र सरकार की अन्य पिछड़े वर्ग श्रेणी के अंतर्गत सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 प्रतिशत आरक्षण नीति के पूर्ण और समयबद्ध क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के लिए जनसंख्या के अनुरूप उप-कोटा/आरक्षण देने का लक्ष्य.
(ख) पूरे प्रदेश में अल्पसंख्यक शिक्षा और कौशल विकास के लिए एक नई सक्रिय नीति, जिसमें अल्पसंख्यक शिक्षकों की भर्ती, छात्रवृत्ति, व्यावसायिक प्रशिक्षण और नए स्कूलों की स्थापना के माध्यम से बढ़ावा देना.
सामाजिक न्याय
(क) उत्तर प्रदेश में ‘संपूर्ण वित्तीय समावेशन’, जिसके ज़रिये हर नागरिक को बैंक खाता, आसान ऋण और ग़रीबों को सूदखोरों के चंगुल से मुक्ति मिले.
(ख) उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की जाने वाली ख़रीद में कम से कम 25 प्रतिशत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक स्वामित्व वाले उद्यमों से हो, यह सुनिश्चित किया जाएगा. यह केंद्र सरकार की 7000 करोड़ रुपये की अधिमानी ख़रीद नीति के अतिरिक्त होगी.
आधारभूत संरचना
(क) उत्तर प्रदेश में प्रत्येक बीपीएल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के घरों में रोशनी पहुंचाने के लिए मुफ़्त मीटरयुक्त विद्युत संयोजन उपलब्ध कराना.
(ख) यूपीए सरकार की फ्लैगशिप योजना राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के ज़रिये उत्तर प्रदेश में शत प्रतिशत ग्रामीण घरों तक बिजली संयोजन.
(ग) पांच सालों में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत उत्तर प्रदेश के सभी गांवों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना.
(घ) प्रत्येक ब्लॉक को नियमित बस सेवा के ज़रिये ज़िला मुख्यालय से जोड़ने के लिए राज्य बस नेटवर्क को उन्नत किया जाएगा.
(ङ) बुंदेलखंड पैकेज की तर्ज़ पर राज्य के पिछड़े इलाक़ों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए विशेष पैकेज.
कृषि
(क) राज्य सरकार द्वारा भुगतान दरों में बढ़ोत्तरी, ताकि किसानों को अपने उत्पाद की सबसे अच्छी क़ीमत मिल सके.
(ख) अधिकाधिक किसान-सुलभ बनाने के लिए मंडी प्रणाली में सुधार. सरकारी ख़रीद प्रणाली को आधुनिक बनाना, ताकि किसान फ़सल सीधे बेच सकें, बर्बादी घटे और उन्हें फ़सल की अधिक क़ीमत मिले.
(ग) किसानों को आसानी से 6 फ़ीसदी ब्याज दर पर कृषि ऋण मिलना सुनिश्चित किया जाएगा. 
(घ) किसानों को सही समय और क़ीमत पर रबी और ख़रीफ़ दोनों मौसमों में सही उर्वरक मिलना सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक वितरण प्रणाली में व्यापक सुधार.
(ङ) जल संरक्षण को ध्यान में रखते हुए नई सिंचाई नीति की शुरुआत, ताकि हर किसान को जल की प्रभावी उपलब्धता सुनिश्चित हो सके.
(च) कृषि के प्रमुख क्षेत्रों-दाल, बाग़वानी खाद्य तेल में विकास को गति देने के मक़सद से अलग से विशेष ‘मिशनों’ की शुरुआत.
(छ) दुग्ध उत्पादों के मामले में उत्तर प्रदेश को दुग्ध आधिक्य राज्य बनाने तथा छोटे व सीमांत किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए अमूल की तर्ज़ पर उत्तर प्रदेश दुग्ध मिशन की शुरुआत.
औद्योगिक विकास
(क) राज्य में सार्वजनिक और निजी निवेश के लिए सूक्ष्म, लघु और मझोले (एमएसएमई) उद्यमों पर विशेष ध्यान देते हुए नई औद्योगिक नीति की शुरुआत.
(ख) नई तकनीक का प्रवाह कर पारंपरिक समूहों को बढ़ावा देने और नए समूहों की स्थापना के माध्यम से उत्तर प्रदेश में औद्योगिक पुनरुद्धार. उत्तर प्रदेश भर में 40 से अधिक समूहों का निर्माण या आधुनिकीकरण किया जाएगा.
शहरी एवं ग्रामीण विकास
(क) तीन सालों में राज्य के सभी भू-अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण.
(ख) दिल्ली मेट्रो रेल के सफल मॉडल की तर्ज़ पर लखनऊ, कानपुर, आगरा, मेरठ, वाराणसी और इलाहाबाद में विश्वस्तरीय सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं का निर्माण.
पर्यावरण एवं जल
(क) पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यापक अधिकार संपन्न मिशन ‘स्वच्छ उत्तर प्रदेश’ की शुरुआत.
(ख) नदियों की सफ़ाई के काम की युद्ध स्तर पर शुरुआत, ख़ास तौर पर गंगा, यमुना, गोमती, सरयू, घाघरा समेत दोआब क्षेत्र की नदियों की सफ़ाई.

फ़िरदौस ख़ान 
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार की बागडोर संभाले हुए हैं. अपनी जनसभाओं में वह जिस तरह सांप्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार और अपराध को लेकर भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी को निशाना बनाए हुए हैं, उससे सभी दलों के होश उड़े हुए हैं. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी विपक्षियों पर सधे राजनीतिक अंदाज़ में हमले कर रहे हैं. एक संजीदा वक्ता की तरह तार्किक ढंग से वह विरोधी दलों की चुन-चुन कर व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब दे रहे हैं. उनके इसी अंदाज़ से विपक्षी दलों में बौखलाहट पैदा हो गई है. वे समझ नहीं पा रहे हैं कि राहुल के ‘आम आदमी’ का कौन सा तोड़ निकालें.

राहुल गांधी भाजपा के 'इंडिया शाइनिंग' और लोकपाल पर उसके चरित्र की जमकर बखिया उधेड़ रहे हैं. वह भाजपा द्वारा बाबू सिंह कुशवाहा जैसे भ्रष्टाचारी नेताओं से हाथ मिलाने पर लोगों से सवाल करते हैं, तो उन्हें भीड़ से खुलकर जवाब भी मिलते हैं. उन्हीं जवाबों को आगे बढ़ाते हुए मंच से राहुल गांधी लोगों को बताते हैं कि ग़रीबों का मसीहा बनने वाले विपक्षी नेता कहते हैं कि राहुल गांधी पागल हो गया है, और इसके बाद वह आक्रामक हो जाते हैं. अपनी आस्तीनें चढ़ाकर हमलावर अंदाज़ में कहते हैं- ‘‘हां, मैं ग़रीबों का दुख-दर्द देखकर, प्रदेश की दुर्दशा देखकर पागल हो गया हूं. कोई कहता है कि राहुल गांधी अभी बच्चा है, वह क्या जाने राजनीति क्या होती है. तो मेरा कहना है कि हां, मुझे उनकी तरह राजनीति करनी नहीं आती. मैं सच्चाई और साफ़ नीयत वाली राजनीति करना चाहता हूं. मुझे उनकी राजनीति सीखने का शौक़ भी नहीं है. मायावती कहती हैं राहुल नौटंकीबाज़ है. तो मेरा कहना है कि अगर ग़रीबों का हाल जानना, उनके दुख-दर्द को समझना, नाटक है तो राहुल गांधी यह नाटक ताउम्र करता रहेगा.’’

राहुल गांधी अपनी पाठशाला में उत्तर प्रदेश को दो दशकों के राजनीतिक पिछड़ेपन, बदहाली से निकालने के लिए युवाओं से साथ का हाथ बढ़ाते हैं. इस दौरान राहुल यह बताना नहीं भूलते कि वह यहां चुनाव जीतने नहीं, उत्तर प्रदेश को  बदलने आए हैं. यह उनकी इस साफ़गोई का सपा, बसपा और भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राहुल गांधी की बातों में दम है. उत्तर प्रदेश में अभी तक जितने भी काम हुए मसलन बुनकरों को राहत देने के लिए बुनकर पैकेज का ऐलान हो, बुंदेलखंड को दुर्दशा से निकालने के लिए बुंदेलखंड पैकेज का भारी-भरकम पैसा उपलब्ध कराना हो या फिर उत्तर प्रदेश के युवाओं के लिए राजनीति के दरवाज़े खोलने के लिए एशिया की सर्वोत्तम यूनिवर्सिटी बीएचयू में युवा राजनीति का अखाड़ा छात्र संघ बहाली का प्रयास हो, इन सब में राहुल की कोशिश और उनकी ईमानदारी के कारण ही कामयाबी मिली है.

यह हक़ीक़त है कि पिछले पांच सालों में वह हवाई नेताओं की तरह आसमान में नहीं उड़े और न ही किसी पंचतारा सेलिब्रिटी की तरह रथ पर चढ़कर ज़िलों का दौरा किया. उन्होंने खाटी देसी अंदाज़ में गांवों में रात रात बिताई. पगडंडियों पर कीचड़ की परवाह किए बिना चले और आम आदमी से बेलाग संवाद स्थापित करने की कोशिश की. आम आदमी को नज़दीक से जानने-समझने और अपना हाथ उसके हाथ में देने की पहल की.

राहुल गांधी एक परिपक्व राजनेता हैं. इसके बावजूद उन्हें अमूल बेबी कहना उनके ख़िलाफ़ एक साज़िश का हिस्सा ही कहा जा सकता है. भूमि अधिग्रहण मामले को ही लीजिए. राहुल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर जिस तरह पदयात्रा की, वह कोई परिपक्व राजनेता ही कर सकता है. हिंदुस्तान की सियासत में ऐसे बहुत कम नेता रहे हैं, जो सीधे जनता के बीच जाकर उनसे संवाद करते हैं. नब्बे के दशक में बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने गांव-गांव जाकर पार्टी को मज़बूत करने का काम किया था, जिसका फल बसपा को सत्ता के रूप में मिला. चौधरी देवीलाल ने भी इसी तरह हरियाणा में आम जनता के बीच जाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. दक्षिण भारत में भी कई राजनेताओं ने पद यात्रा के ज़रिये जनता में अपनी पैठ बनाई और सत्ता हासिल की.

कुल मिलाकर राहुल गांधी ऐसे क़द्दावर नेताओं की फ़ेहरिस्त में शुमार हो चुके हैं, जिनके तूफ़ान से विपक्षी सियासी दलों के  हौसले  पस्त हो जाते हैं. हालत यह हो गई है कि कोई सियासी दल दाग़ी को ले रहा है, तो कोई दग़ाबाज़ी को सहारा बना रहा है. अब कोई चारा न देखकर कुछ सियासी दल राहुल पर व्यक्तिगत प्रहार करने में जुट गए हैं.  मगर इससे राहुल गांधी को कोई नुक़सान नहीं होगा, क्योंकि राजनीति की विरासत को संभालने वाला यह युवा नेता अब युवाओं, और अन्य वर्गों के साथ-साथ बुजुर्गों का भी चहेता बन चुका है. राहुल गांधी की जनसभाओं में दूर-दूर से आए बुज़ुर्ग यही कहते हैं कि लड़का ठीक ही तो कह रहा है, यही कुछ करेगा. महिलाओं में तो राहुल गांधी लेकर काफ़ी क्रेज है. यह बात तो विरोधी दलों के नेता भी बेहिचक क़ुबूल  करते हैं. वे तो मज़ाक़ के लहजे में यहां तक कहते हैं कि अगर महिलाओं को किसी एक नेता को वोट देने को कहा जाए तो सभी राहुल गांधी को ही देकर आएंगी. राहुल युवाओं ही नहीं बच्चों से भी घुलमिल जाते हैं. कभी किसी मदरसे में जाकर बच्चों से बात करते हैं, तो कभी किसी मैदान में खेल रहे बच्चों के साथ बातचीत शुरू कर देते हैं. यहां तक कि गांव-देहात में मिट्टी में खेल रहे बच्चों तक को गोद में उठाकर उसके साथ बच्चे बन जाते हैं.

जब भ्रष्टाचार और महंगाई के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का चौतरफ़ा विरोध हो रहा था, ऐसे वक़्त में राहुल गांव-गांव जाकर जनमानस से एक भावनात्मक रिश्ता क़ायम कर रहे थे. राहुल लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते. पिछले साल में वह भट्टा-पारसौल गांव गए. उन्होंने आसपास के गांवों का भी दौरा कर ग्रामीणों से बात की, उनकी समस्याएं सुनीं और उनके समाधान का आश्वासन भी दिया- इससे पहले भी 11 मई की सुबह वह मोटरसाइकिल से भट्टा-पारसौल गांव जा चुके हैं. उस वक़्त मायवती ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया था. इस बार भी वह गुपचुप तरीक़े से ही गांव गए. न तो प्रशासन को इसकी ख़बर थी और न ही मीडिया को इसकी भनक लगने दी गई. हालांकि उनके दौरे के बाद प्रशासन सक्रिय हो गया. इसी तरह बीती 29 जून को वह लखीमपुर में पीड़ित परिवार के घर गए और उन्हें इंसाफ़ दिलाने का वादा किया.

भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा निकाली गई पदयात्रा से सियासी हलक़ों में चाहे जो प्रतिक्रिया हो रही हो, लेकिन यह हक़ीक़त है कि राहुल गांधी ने ग्रेटर नोएडा के ग्रामीणों के साथ जो वक़्त बिताया, उसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे. इन लोगों के लिए यह किसी सौग़ात से कम नहीं है कि उन्हें कांग्रेस के युवराज के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला. अपनी पदयात्रा के दौरान पसीने से बेहाल राहुल ने शाम होते ही गांव बांगर के किसान विजय पाल की खुली छत पर स्नान किया. फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने घर पर बनी रोटी, दाल और सब्ज़ी खाई. ग्रामीणों ने उन्हें पूड़ी-सब्ज़ी की पेशकश की, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. गांव में बिजली की क़िल्लत रहती है, इसलिए ग्रामीणों ने जेनरेटर का इंतज़ाम किया, लेकिन राहुल ने पंखा भी बंद करवा दिया. वह एक आम आदमी की तरह ही बांस और बांदों की चारपाई पर सोये. यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब राहुल गांधी इस तरह एक आम आदमी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. इससे पहले भी वह रोड शो कर चुके हैं और उन्हें इस तरह के माहौल में रहने की आदत है. कभी वह किसी दलित के घर भोजन करते हैं तो कभी किसी मज़दूर के  साथ ख़ुद ही परात उठाकर मिट्टी ढोने लगते हैं. राहुल का आम लोगों से मिलने-जुलने का यह जज़्बा उन्हें लोकप्रिय बना रहा है. राहुल जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने के लिए, उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है. हालत यह है कि लोगों से मिलने के लिए वह अपना सुरक्षा घेरा तक तोड़ देते हैं.

राहुल समझ चुके हैं कि जब तक वह आम आदमी की बात नहीं करेंगे, तब तक वह सियासत में आगे नहीं ब़ढ पाएंगे. इसके लिए उन्होंने वह रास्ता अख्तियार किया, जो बहुत कम लोग चुनते हैं. वह भाजपा की तरह एसी कल्चर की राजनीति नहीं करना चाहते. राहुल का कहना है कि उन्होंने किसानों की असल हालत को जानने के लिए पदयात्रा शुरू की, क्योंकि दिल्ली और लखनऊ के एसी कमरों में बैठकर किसानों की हालत पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता है, उनकी समस्याओं को न तो जाना जा सकता है और न ही उन्हें हल किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता रामकुमार भार्गव कहते हैं कि राहुल गांधी को भारी जनसमर्थन मिल रहा है, जिससे पार्टी कार्यकर्ता बहुत उत्साहित हैं. दरअसल, राहुल गांधी कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं. हर उम्मीदवार यही चाहता है कि वह उसके लिए जनसभा को संबोधित करें. उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में भी वह चुनाव प्रचार कर रहे हैं.  

बहरहाल, उत्तर प्रदेश के सियासी माहौल से तो यही लग रहा है कि जनता अब बदलाव चाहती है. लोग कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश के विकास के सपने को सच करने के लिए कितना उनका साथ दे पाते हैं, यह तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन इतना ज़रूर है कि इस युवराज ने यहां के बाशिंदों को विकास एक ऐसा सपना ज़रूर दिखा दिया है, जिसमें पलायन के लिए कोई जगह नहीं है. 

डॉ. सौरभ मालवीय
जब मैं ‘हिन्दी समाचार पत्रों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्रस्तुति का अध्ययन’, इस विषय पर शोध कर रहा था तब हिन्दी समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विषयवस्तु के तुलनात्मक अध्ययन की ओर गहराई से विश्लेषण करने का अवसर प्राप्त हुआ। यह विश्लेषण रोचक तो था ही राष्ट्रीय मुद्दों पर कुछ महत्त्वपूर्ण सत्यों को उजागर करने वाला भी था। आगे बढ़ने से पहले हमें पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विशेषताओं को संक्षेप में जान लेना चाहिये।

पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद और सास्कृतिक राष्ट्रवाद-
पूंजीवाद उत्पादक शक्तियों के स्वामित्व और संचालन की वह पद्धति है जिसके अतर्गत उत्पादक शक्तियों और व्यक्तियों को अपनी क्षमता तथा प्रतिभा के अनुसार पूंजी उत्पादन, संग्रहण, विनियोग और व्यापार पर सामान्यत: कोई प्रतिबन्ध नहीं होता। समाजवाद वह सामाजिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत जीवन और समाज के सभी साधनों पर संपूर्ण समाज का स्वामित्व होता है – जिसका उपयोग पूर्ण समाज के कल्याण और विकास की भावना को लक्ष्य करके किया जाता है। साम्यवाद का ध्येय समाज में सर्वहारा और शोषित वर्ग के बीच पूंजी, अवस्था, व्यवस्था और अवसरों की समान उपलब्धता सुनिश्चित करना है। इसके समकक्ष सांस्कृतिक राष्ट्रवाद वह परिकल्पना है जिसमें राष्ट्र की रचना का आधार आर्थिक या राजनैतिक न होकर सांस्कृतिक होता है।

लेखों का अध्ययन
इस शोध कार्य में कुल १३ राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों और दो प्रमुख राष्ट्रीय पत्रिका सहित कुल १५ पत्र और पत्रिकाओं का अध्ययन किया गया। शोध विधि के रूप में अन्तर्वस्तु विश्लेषण और अक्रमिक (रैंडम) सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया। निष्कर्षों से पता चला कि पूंजीवाद पर सर्वाधिक लेख दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुए। पत्र में इन्हें सर्वाधिक ४६ प्रतिशत स्थान प्राप्त हुआ। साम्यवाद पर सर्वाधिक लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हुए। पत्र में इन्हें २५ प्रतिशत स्थान प्राप्त हुआ। समाजवाद पर सर्वाधिक ४६ प्रतिशत लेख जनसत्ता में प्रकाशित हुए हैं। तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से सम्बंधित सर्वाधिक लेखों को दैनिक जागरण में स्थान मिला है। पत्र ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को ३३ प्रतिशत स्थान दिया है।

संपादकीय लेखों का अध्ययन
 इन पत्र-पत्रिकाओं के संपादकीय को देखें तो पूंजीवाद पर सर्वाधिक सम्पादकीय इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया में समान रूप से ३६-३६ प्रतिशत प्रकाशित हुए, साम्यवाद पर सर्वाधिक सम्पादकीय दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुए हैं पत्र में इन्हें २१ प्रतिशत स्थान दिया गया, समाजवाद से संबंधित सर्वाधिक संपादकीय दैनिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता और पायनियर में ३६-३६ प्रतिशत प्रकाशित हुए, जबकि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित सम्पादकीय दैनिक जागरण में (२० प्रतिशत) प्रकाशित हुए।

संपादक के नाम पत्रों का अध्ययन
संपादक के नाम पत्रों का अध्ययन करने से निष्कर्ष मिला कि पूंजीवाद से संबंधित सर्वाधिक संपादक के नाम पत्र (३६ प्रतिशत) इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुए, साम्यवाद से संबंधित संपादक के नाम पत्र को सर्वाधिक स्थान दैनिक ट्रिब्यून में २१ प्रतिशत मिला, समाजवाद से संबंधित सर्वाधिक संपादक के नाम पत्र दैनिक हिन्दुस्तान, टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिन्दू तथा इंडियन एक्सप्रेस ने ३५-३५ प्रतिशत प्रकाशित किया जबकि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित सर्वाधिक संपादक के नाम पत्र २० प्रतिशत दैनिक जागरण में प्रकाशित हुए।

चित्रों का अध्ययन
चित्रों के अध्ययन के अनुसार पूंजीवाद से संबंधित सर्वाधिक चित्र इंडियन एक्सप्रेस में ३६ प्रतिशत प्रकाशित हुए, साम्यवाद से संबंधित सर्वाधिक चित्रों को दैनिक ट्रिब्यून (२१ प्रतिशत) में स्थान मिला, समाजवाद से संबंधित चित्रों को सर्वाधिक स्थान टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस में ३५-३५ प्रतिशत प्राप्त हुआ जबकि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित सर्वाधिक चित्रों को १८ प्रतिशत स्थान साप्ताहिक पत्रिका इंडिया टुडे में मिला है।

विश्लेषणात्मक समाचारों का अध्ययन
 पूंजीवाद से संबंधित सर्वाधिक विश्लेषणात्मक समाचार इंडियन एक्सप्रेस में ३६ प्रतिशत प्रकाशित हुए, साम्यवाद से संबंधित सर्वाधिक विश्लेषणात्मक समाचार इंडियन एक्सप्रेस हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी तथा दैनिक हिन्दुस्तान में २०-२० प्रतिशत संख्यात्मक रूप से स्थान प्राप्त हुए, समाजवाद से संबंधित सर्वाधिक विश्लेषणात्मक समाचार इंडियन एक्सप्रेस में ३६ प्रतिशत प्रकाशित हुए और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित सर्वाधिक विश्लेषणात्मक समाचार साप्ताहिक पत्रिका इंडिया टुडे में १८ प्रतिशत प्रकाशित हुए हैं।

पाठकों की रुचि का सर्वेक्षण
शोध से प्राप्त निष्कर्ष के अनुसार एक चौथाई पाठक राजनीतिक समाचारों में तुलनात्मक तौर पर अधिक रूचि रखते हैं, जबकि शेष पाठकों की रूचि प्रान्तीय और स्थानीय समाचारों में है। केवल १० प्रतिशत पाठकों की रूचि विचार प्रधान समाचारों में नहीं है। और लगभग एक तिहाई पाठक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित समाचारों को पढ़ना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह कि पत्रों व पत्रिकाओं में पाठकों की अभिरूचि के अनुसार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित खबरों को गुणात्मक तौर पर पर्याप्त स्थान नहीं मिल रहा है, लगभग ३० प्रतिशत पाठक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा से परिचित नहीं हैं। और लगभग दो तिहाई पाठकों का मानना है कि पत्र-पत्रिकाओं में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित समाचारों को वर्तमान से अधिक महत्व मिलना चाहिए। शोध का निष्कर्ष यह है कि जिस मात्रा में पाठक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित पाठय सामग्री और विषयवस्तु को पढ़ना चाहते हैं, पत्र-पत्रिकाओं में अपेक्षात्या काफी कम संख्या में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित समाचार, विश्लेषण, लेख, चित्र संपादकीय व संपादक के नाम पत्र प्रकाशित होते हैं। यह असंतुलन इस शोध में बार-बार उभर कर सामने आया है।

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आवश्यकता
पत्रकारिता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में एक अन्योन्याश्रित संबंध है। ऊपर किए गए विश्लेषण से भी यह साफ हो जाता है कि राष्ट्रवाद वास्तव में सांस्कृतिक ही होता है। राष्ट्र का आधार संस्कृति ही होती है और पत्रकारिता का उद्देश्य ही राष्ट्र के विभिन्न घटकों के बीच संवाद स्थापित करना होता है। देश में चले स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही भारतीय पत्रकारिता का सही स्वरूप विकसित हुआ था और हम देख सकते हैं कि व्यावसायिक पत्रकारिता की तुलना में राष्ट्रवादी पत्रकारिता ही उस समय मुख्यधारा की पत्रकारिता थी। स्वाधीनता के बाद धीरे-धीरे इसमें विकृति आनी शुरू हो गई। पत्रकारिता का व्यवसायीकरण बढ़ने लगा। देश के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में भी काफी बदलाव आ रहा था। स्वाभाविक ही था कि पत्रकारिता उससे अछूती नहीं रह सकती थी। फिर देश में संचार क्रांति आई और पहले दूरदर्शन और फिर बाद में इलेक्ट्रानिक चैनलों पदार्पण हुआ। इसने जहां पत्रकारिता जगत को नई ऊंचाइयां दीं, वहीं दूसरी ओर उसे उसके मूल उद्देश्य से भी भटका दिया। धीरे-धीरे विचारों के स्थान पर समाचारों को प्रमुखता दी जाने लगी, फिर समाचारों में सनसनी हावी होने लगी और आज समाचार के नाम पर केवल और केवल सनसनी ही बच गई है।

समाचार पत्रों द्वारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उपेक्षा
भाषा और तथ्यों की बजाय बाजार और समीकरणों पर जोर बढ़ गया है। ऐसे में यदि पत्रकारिता में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उपेक्षा हो रही है तो यह कोई हैरानी का विषय नहीं है। जैसा कि ऊपर किए गए अध्ययन में हम देख सकते हैं कि देश के प्रमुख मीडिया संस्थान सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति उदासीन बने हुए हैं। कई मीडिया संस्थान तो विरोध में ही कमर कसे बैठे रहते हैं। ऐसा नहीं है कि यह सब कुछ पाठकों को पसंद हो। ऊपर प्रस्तुत सर्वेक्षण के परिणामों में हमने देखा है कि पाठकों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति पर्याप्त रूचि है लेकिन वे न केवल विवश हैं, बल्कि आज के बाजार केंद्रित पत्रकारिता जगत में उनकी बहुत सुनवाई भी नहीं है। एक समय था जब पाठकों की सुनी जाती थी। यह बहुत पुरानी बात भी नहीं है। १५-१६ वर्ष पूर्व ही इंडिया टूडे द्वारा अश्लील चित्रों के प्रकाशन पर पाठकों द्वारा आपत्ति प्रकट किए जाने पर उन चित्रों का प्रकाशन बंद करना पड़ा था। परंतु इन १५-१६ वर्षों में परिस्थितियां काफी बदली हैं। आज पाठकों की वैसी चिंता शायद ही कोई मीडिया संस्थान करता हो।

आशा की किरण
बहरहाल एक ओर हम जहां यह पाते हैं कि आज के मीडिया जगत में काफी गिरावट आई है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का स्वर कमजोर पड़ा है तो दूसरी ओर आशा की नई किरणें भी उभरती दिखती हैं। आशा की ये किरणें भी इस संचार क्रांति से ही फूट रही हैं। आज मीडिया जगत इलेक्ट्रानिक चैनलों से आगे बढ़ कर अब वेब पत्रकारिता की ओर बढ़ गया है। वेब पत्रकारिता के कई स्वरूप आज विकसित हुए हैं, जैसे ब्लाग, वेबसाइट, न्यूज पोर्टल आदि। इनके माध्यम से एक बार फिर देश की मीडिया में नए खून का संचार होने लगा है। इस नए माध्यम का तौर-तरीका, कार्यशैली और चलन सब कुछ परंपरागत मीडिया से बिल्कुल अलग और अनोखा है। जैसे, यहां कोई भी व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत पत्रकारिता कर सकता है। वह ब्लाग बना सकता है और वेबसाइट भी। हालांकि इन नए माध्यमों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रभाव का अध्ययन किया जाना अभी बाकी है लेकिन अभी तक जो रूझान दिखता है, उससे कुछ आशा बंधती है। पत्रकारिता की इस नई विधा को परंपरागत पत्रकारिता में भी स्थान मिलने लगा है और इसकी स्वीकार्यता बढ़ने लगी है। परिवर्तन तो परंपरागत मीडिया में भी होना प्रारंभ हो गया है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रभाव समाचारों और विचारों में झलकने लगा है। नई-नई पत्र-पत्रिकाएं इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए शुरू हो रही हैं। स्थापित पत्र-पत्रिकाएं में भी ऐसे स्तंभ और स्तंभकारों को स्थान मिलने लगा है। आशा यही की जा सकती है कि जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपनी जड़ों से कट कर नहीं रह सकता, वैसे ही पत्रकारिता भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से कट कर नहीं रह पाएगी और शीघ्र ही वह स्वाधीनता से पहले के अपने तेवर में आ जाएगी।

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का भविष्य
आज पत्रकारिता एक अत्यंत प्रबल माध्यम बन चुका है। विश्व में कोई भी समाज इसको दुर्लक्षित नहीं कर सकता। हम यदि इस अत्यंत सबल माध्यम में भारत का चिरन्तन तत्व भर सकें तो भारत की मृत्युंजयता साकार हो उठेगी। साथ ही साथ हम राष्ट्र ऋण से भी स्वयं को उऋण करने का प्रयास कर सकते हैं। अपनी भावी पीढ़ी को हम यदि गौरवशाली अतीत का भारत बतायेंगे तो वही पीढ़ी भविष्य के सर्वसत्ता सम्पन्न भारत का निर्माण करेगी और हमारी भारतमाता परमवैभव के सिंहासन साधिकार विराजमान होगी। जगद्गुरूओं का देश भारत फिर मानवता को जाज्वल्यमान आलोक देगा इसी में जन-जन का कल्याण सन्निहित है क्योंकि जो संस्कृति अभी तक दुर्जेय सी बनी है, जिसका विशाल मन्दिर आदर्श का धनी है। उसकी विजय ध्वजा ले हम विश्व में चलेंगे।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय, भोपाल में प्रकाशन अधिकारी हैं) 

स्टार न्यूज़ एजेंसी
सोनभद्र (उत्तर प्रदेश).
पांच दिवसीय जनसंपर्क के अभियान के आख़िरी दिन आज कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने सोनभद्र के दुद्धी क्षेत्र में विशाल रैली को संबोधित करते हुए कहा कि जब उड़ीसा के नियामगिरी में आदिवासियों से उनकी ज़मीन छीनने की कोशिश की जा रही थी तो कांग्रेस ने वहां जाकर इस मुद्दे को उठाया और उनके हक़  की लड़ाई लड़ी. कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रद्वेश में भी आदिवासियों के हक़ के लिए लड़ेगी.
उन्होंने कहा कि आप लोगों के जिस हक़ के लिए स्वर्गीय इंदिरा गांधी लड़ती थीं, उस हक़ को हम आपको दिलवाकर रहेंगे. आदिवासी समुदाय के लोग हमारे पास आए और कहा कि हमारे लिए क़ानून बनाइए, हमने जनजातीय (ट्राइबल) क़ानून बनाया, जिसे पूरे देश में लागू किया गया. उन्होंने रैली में उमड़े जनसैलाब से पूछा कि क्या यहां कोई भी ऐसा शख्स मौजूद है, जिसे इस क़ानून का फ़ायदा मिला हो? आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों की भीड़ में से जब कोई हाथ नहीं उठा, तो राहुल गांधी  मायूस होकर कहा कि देखिए आपमें से एक को भी इस क़ानून का फ़ायदा नहीं मिल सका.
बसपा और भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जब 2004 में कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्होंने टीवी वाले नेताओं की तरह हिंदुस्तान चमकने की बात नहीं की, अगर वो लोगों यहां सभा में मौजूद अदिवासी महिलाओं के बीच आए होते और आप लोगों से बात करते तो क्या वो कह सकते थे कि हिंदुस्तान चमक रहा है? रैली में मौजूद हज़ारों लोगों ने एक साथ ‘नहीं’ में जवाब दिया.
राहुल गांधी ने कहा कि हमने सबसे पहला काम आप लोगों के लिए मनरेगा क़ानून बनाने का किया,क्योंकि हम आप लोगों के बीच आए और आप लोगों से आपकी समस्याओं के बारे में बात की. आप लोगों ने ही हमें बताया कि रोज़गार सबसे बड़ी समस्या है, आपने कहा कि जिस तरह से शहरों में रोज़गार मिलता है. अगर उसी तरह से गांवों में भी रोज़गार की व्यवस्था हो जाए तो आप लोगों को काफ़ी सहूलियत मिल जाएगी. इसलिए हमने यह काम किया, हमने ऐसी व्यवस्था की है कि हिंदुस्तान का कोई भी व्यक्ति अगर काम करना चाहता है तो उसे गांव और घर के नज़दीक ही रोज़गार मिलेगा. हमने हर काम करने वाले के लिए 100 दिन, 120 रुपये के हिसाब साल में 12,000 रुपये देने की व्यवस्था की. लेकिन, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जी ने कहा कि इससे किसी को फ़ायदा नहीं हुआ, हमारे विपक्ष में बैठे बीजेपी के लोगों ने सवाल उठाया कि पैसा कहां से आएगा? जब भी ग़रीबों, दलितो, आदिवासियों के हक़ की बात होती है तो ये लोग ऐसे सवाल उठाते हैं. वहीं अगर किसी अमीर, बिल्डर को ज़मीन देनी हो तो कोई सवाल नहीं होता. लेकिन हमने दिखा दिया कि पैसा कहां से आएगा.
किसानों के विषय में बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा कि हमने किसानों का 60 हज़ार करोड़ रुपये का क़र्ज़ माफ़ किया और उनके लिए एक बार फिर से बैंक के दरवाज़े खोले, लेकिन विपक्ष के लोगों ने कहा कि नाटक हो रहा है. क्या हज़ारों करोड़ रुपये की क़र्ज़ माफ़ी नाटक लगती है? उन्होंने कहा मुझे आश्चर्य होता है कि यहां के नेताओं में दूर-दृष्टि नहीं है, विकास की सोच नहीं है; यह नेता सिर्फ़ धर्म और जाति की राजनीति करना जानते हैं.
इससे पहले इलाहाबाद के बारा क्षेत्र में एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अब समाजवादी पार्टी मुफ्त में लैपटॉप देने की घोषणा कर रही है, मगर जिस पार्टी के राज्य में घोर अराजकता रही हो, ऐसे में कौन उनकी बात पर यकीन करेगा? राहुल गांधी ने कहा कि जब तक किसान को पेट भर खाना नहीं मिलता और ख़ुशहाली उसके दरवाज़े पर नहीं आती, वे चैन से नहीं बैठेंगे.

स्टार न्यूज़ एजेंसी
अर्तरा (उत्तर प्रदेश).
कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने है कहा कि ‘अब समय आ गया है कि हाथी और साइकिल को हटाकर कांग्रेस को लाया जाए. 22 साल से उत्तर प्रदेश के लोगों का भविष्य साइकिल और हाथी के बीच पिस रहा है. साइकिल चलती गई और हाथी मोटा होता गया, मगर विकास कहीं भी नहीं हुआ.
आज बुंदेलखंड के अर्तरा में जनसंपर्क अभियान के दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि 2004 में कांग्रेस ने सिर्फ़ एक वादा किया-- कांग्रेस पार्टी की सरकार आम आदमी, अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ों की सरकार होगी, और कांग्रेस ने यह वादा पूरा किया. जब 2004 में हमारी सरकार बनी तो विश्व का सबसे बड़ा रोज़गार कार्यक्रम मनरेगा शुरू किया गया. जब हमने मनरेगा शुरू की तो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा. अगर फ़ायदा देखना है तो कांग्रेस शासित प्रदेशों में जाइये और देखिये. मनरेगा ने लोगों की ज़िन्दगी बदल दी, उनको आत्मसम्मान दिया और पलायन भी रोका है. उत्तर प्रदेश में मनरेगा का फ़ायदा इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि यहां सारा पैसा तो हाथी खा गया और मोटा हो गया.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने लोगों तो शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और रोज़गार का अधिकार दिया और अब भोजन का अधिकार देने जा रही है, जिससे हर ग़रीब परिवार को 35 किलो अनाज हर महीने मिलेगा और कोई भूखा नहीं रहेगा. हो सकता है कि अगर हाथी रहा, तो आपको इसका फ़ायदा फायदा न मिले. भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अगर उनके नेता बुंदेलखंड आए होते तो इंडिया शाइनिंग जैसे नारे देने में उन्हें शर्म आती.
उन्होंने कहा कि जब दो साल पहले वह बुंदेलखंड आए थे और यहां के हालत देखे, तो जनता का एक प्रतिनिधि मंडल लेकर प्रधानमंत्री से मिले प्रधानमंत्री ने बुंदेलखंड के लोगों को समस्या से उबारने के लिए 8000 करोड़ रुपये का पैकेज देने में थोड़ा भी समय नहीं लगाया. उन्होंने सवाल किया कि मगर क्या वो पैसा आप तक पहुंचा? क्या आपको कुंए मिले? नहीं! क्योंकि सारा पैसा लखनऊ में बैठा हाथी खा गया.
समाजवादी पार्टी पर हमला करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र ने रोज़गार के लिए पैसा भेजा था, मगर चुनाव के कुछ महीने पहले उस पैसे से समाजवादी पार्टी ने बेरोज़गारी भत्ता बांट दिया. हम रोज़गार भेजते थे, वो बेरोज़गारी बांटते थे. उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी की उम्मीद की साइकिल पंक्चर हो चुकी है. आपने सपा को तीन मौक़े दिए, मगर आपकी उम्मीद पंक्चर हो गई. पुलिस भर्ती घोटाला सपा के समय हुआ, जिसमें  आपने नौकरी पाने के लिए पैसे दिए, भाजपा, सपा, और बसपा ने आपको धर्म बेचा, जाति बेची; मगर आपको कुछ नहीं मिला.
राहुल गांधी ने कहा कि अब बदलाव का समय आ गया है और उत्तर प्रदेश को अपनी पुरानी शान वापस पानी होगी. उन्होंने कहा कि मैं यहां सिर्फ़ चुनाव जीतने नहीं आया हूं, बल्कि उत्तर प्रदेश को बदलने आया हूं. कांग्रेस को वोट देकर आप आम आदमी की सरकार चुनिए, ऐसी सरकार जो आपकी हो, और आपके लिए काम करे.
हम रोज़गार भेजते थे, समाजवादी पार्टी बेरोज़गारी बांटती थी : राहुल गांधी

अंबरीश कुमार
लखनऊ (उत्तर प्रदेश).
उत्तर प्रदेश में दागी और बागी उम्मीदवार मायावती के गले की हड्डी बन गए है। सूबे के दर्जनों जिलों में टिकट को लेकर हो रही बगावत से सत्तारूढ़ दल के रणनीतिकारों के हाथ पांव फूल गए है। पूरब से लेकर पश्चिम तक बहुजन समाज पार्टी बागियों से जूझ रही है। कानपुर, बहराइच, बरेली, जौनपुर, हरदोई, महोबा, उरई, गोंडा, श्रावस्ती, महाराजगंज जैसे कई जिलों में बसपा का अंदरूनी विवाद सड़क पर आ चुका है। दूसरी तरफ बसपा के दागी उम्मीदवारों में शामिल मायावती ने सौ से ज्यादा सिटिंग विधायकों के टिकट काटकर दूसरों को दिए है, जिससे पार्टी को अपने ही नेताओं से जूझना पड़ रहा है। इनमे कई के टिकट पहले तो कई के अंतिम दौर में काटे गए है। टिकट काटने के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने दावा किया कि जो दागी थे उनके टिकट काटे गए पर सही बात तो यह है बसपा से जहाँ बिना दाग वाले उम्मीदवार मैदान में है तो बहुत से दाग वाले भी है। दूसरे कई जिलों में बसपा के विधायक और मंत्रियों ने लूट, खसोट, हत्या और बलात्कार के रिकार्ड कायम किए है, वहां के लोग इस पार्टी के बिना दाग वाले उम्मीदवारों को भी बख्श देने को तैयार नहीं है। यह बसपा के लिए बड़ा संकट है और मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पर यह भारी पड़ने वाले है। इनमे कई सजायाफ्ता है तो कई सजा के इंतजार में, तो कई जांच के घेरें में। शेखर तिवारी और पूर्व मंत्री आनंद सेन सजा पा चुके है। इनके चलते पार्टी को उनके इलाके में जो शोहरत मिल चुकी है उसकी भरपाई भी इसी चुनाव में होनी है। इसलिए बसपा के हाथी का रास्ता इस बार आसान नहीं है जो पिछली बार चढ़ गुंडों की छाती पर -मुहर लागों हाथी पर के नारे के साथ सत्ता में आई और सूबे के सभी छंटे हुए बदमाशों और बाहुबलियों को हाथी पर सवार करा दिया।
अब मायावती के दागी उम्मीदवारों का जायजा ले लें। बुलंदशहर के हाजी आलिम बलात्कार के मामले में नाम कम चुके है और पुलिस के रिकार्ड में फरार है। प्रतापगढ़ के मनोज तिवारी हत्या के अभियुक्त है और उनके खिलाफ भी गैर जमानती वारंट है। मुजफ्फरनगर ने नूर सलीम राणा भी हत्या के अभियुक्त है और वे भी मैदान में है। सुल्तानपुर के मोहम्मद ताहिर का भी पुराना आपराधिक रिकार्ड है। गोसाईगंज के इन्द्र प्रताप तिवारी उर्फ़ खब्बू तिवारी भी आपराधिक रिकार्ड वले है और मैदान में है। उतरौला के के धीरेन्द्र प्रताप और कर्नलगंज के अजय प्रताप भी इसी श्रेणी के उम्मीदवार है। यह बानगी है, बसपा के बचे खुचे दागी उम्मीदवारों की संख्या कम नहीं है। इसलिए यह कहना कि मायावती ने सिर्फ बेदाग़ लोगों को मैदान में उतरा है मुगालता है। रंगनाथ मिश्र जैसे कई मशहूर नेताओं का तो अभी भी नहीं लिया गया है। ऐसे उम्मीदवार किसी सोशल इंजीनियरिंग के बूते चुनाव जीत जाएंगे, यह ग़लतफ़हमी पार्टी के लोगों को ही हो सकती है बाकी को नहीं। इसके अलावा जो जातियों के नेता बाहर गए है उनकी बिरादरी भी बसपा के खिलाफ वोट कर सकती है, इसे जरुर ध्यान रखना चाहिए। कुशवाहा उदाहरण है।
राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -जनता की याददाश्त इतनी भी कमजोर नहीं होती है कि सब भूल जाए। यह भूल जाए कि मुख्यमंत्री के जन्मदिन का चंदा न देने पर किस तरह एक इंजीनियर को तडपा तडपा कर मार दिया गया। किस तरह सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने मासूम लड़कियों की इज्जत लूटी और थाने में बलात्कार हुआ। किस तरह हजारों करोड़ के घोटाले में दो दो सीएमओ दिन दहाड़े मार डाले गए। और लोगों को यह भी याद है कि मायावती ने बाहुबली मुख़्तार अंसारी का चुनाव प्रचार करते हुए कहा था - यह मजलूमों के मसीहा है। आम लोग मुलायम से नाराज हुए तो मीडिया के चाहने के बावजूद उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। अब मायावती की बारी है।
उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग के मामले में मुलायम सिंह यादव भी बहुत मजबूत माने जाते थे, पर जब छवि पर बट्टा लगा तो अहिरों के गढ़ इटावा से लेकर फिरोजाबाद तक हारे। अपने गढ़ में मुलायम सिंह ने अपने पुत्र की सीट से बहू डिम्पल यादव को मैदान में उतारा था और जीत गए राजबब्बर। इसलिए जातियों की सोशल इंजीनियरिंग भी तभी मदद करेगी जब माहौल हो। जिलों से बसपा संगठन में जिस तरह सिर फुटव्वल की खबरे आ रही है वे पार्टी के लिए गंभीर है।
कानपुर के महाराजपुर विधान सभा सीट से पहले अजय प्रताप सिंह को टिकट दिया गया बाद में उसे काटकर एनआरएचएम घोटाले वाले मंत्री अंतू मिश्र की पत्नी शिखा मिश्र को दे दिया गया। सीसामऊ से फहीम अहमद का टिकट काटकर हाजी वसीक अहमद को दे दिया गया ।बहराइच में बार बार उम्मीदवार का नाम बदलने से दर्जनों कार्यकर्त्ता नेता पार्टी छोड़ चुके है। ऎसी ही खबरे गोंडा, बरेली, महाराजगंज, महोबा उरई जैसे कई जिलों से आ रही है। कई जगह जहाँ असरदार मंत्री पार्टी से बाहर हुए है वे समूची इकाई भी साथ ले गए है। यही वजह है क्योकि पार्टी दागी के साथ बागी उम्मीदवारों से भी जूझ रही है।
(लेखक जनसत्ता से जुड़े हैं)

स्टार न्यूज़ एजेंसी
महोबा (उत्तर प्रदेश).
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा कि 22 साल से उत्तर प्रदेश के लोगों का भविष्य साइकिल और हाथी के बीच पिस रहा है. साइकिल चलती गई और हाथी मोटा होता गया, मगर विकास कहीं नहीं हुआ.
बुंदेलखंड में आज कई जनसभाओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने भाजपा नेता उमा भारती पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब बुंदेलखंड रो रहा था, तब कहां थीं वो? तब क्यों नहीं आईं आप के पास. और क्यों नहीं पूछा आपका हाल? यहां सूखा पड़ा, पलायन हुआ-- कहां थीं वो? अब चुनाव को 15 दिन बचे हैं, तो यहां आ गईं.
भाजपा पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अगर उनके नेता बुंदेलखंड आए होते तो इंडिया शाइनिंग जैसे नारे देने में उन्हें शर्म आती. उन्होंने कहा कि जब दो साल पहले वह बुंदेलखंड आए थे और यहां के हालत देखे, तो उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल लेकर प्रधानमंत्री से मुलाक़ात  की और यहां के बारे में बताया. प्रधानमंत्री ने तुरंत दो दिन के अंदर 8000 करोड़ रुपये का रहत पैकेज दिया. मगर क्या वो पैसा आप तक पहुंचा? क्या आपको कुंए मिले? नहीं, क्योंकि सारा पैसा लखनऊ में बैठा हाथी खा गया. हमने आपके लिए ट्रेक्टर भेजे, मगर यहां के मंत्री ने अपने बेटों को दे दिए.
उन्होंने मुलायम सिंह यादव के बेरोज़गारी भत्ता देने के चुनावी, शिगूफ़े पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि मुलायम सिंह जी ने तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी बेरोज़गारी भत्ता दिए जाने के लिए कोई क़ानून नहीं बनाया, जिससे सपा की सरकार नहीं रहने पर भी बेरोज़गारोंको अनवरत भत्ता मिलता रहे.  उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी पर हमला करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र ने रोज़गार के लिए पैसा भेजा था, मगर चुनाव के कुछ महीने पहले उस पैसे से बेरोज़गारी भत्ता दिया गया. हम रोज़गार भेजते थे, वो बेरोज़गारी बांटते थे.
राहुल गांधी ने कहा कि समाजवादी पार्टी की उम्मीद की साइकिल पंक्चर हो चुकी है. आपने सपा को तीन मौक़े दिए मगर, आपकी उम्मीद पंक्चर हो गई. पुलिस भर्ती घोटाला सपा के समय हुआ, जिसमें आपने नौकरी के लिए पैसे दिए. भाजपा, सपा, और बसपा ने आपको धर्म बेचा, जाति बेची; मगर आपको कुछ नहीं मिला.
उन्होंने कहा की जब 2004 में हमारी सरकार बनी तो वो आम आदमी की सरकार थी और विश्व का सबसे बड़ा रोज़गार कार्यक्रम शुरू किया--मनरेगा. जब हमने मनरेगा शुरू किया तो मायावती ने कहा कि इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा. अगर फ़ायदा देखना है तो कांग्रेस शासित प्रदेशों में जाइये और देखिये. मनरेगा ने लोगों की ज़िन्दगी बदल दी, उनको आत्म-सम्मान दिया और पलायन भी रोका है. यहां इसका फ़ायदा इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि यहां सारा पैसा तो हाथी खा गया और मोटा हो गया.
राहुल गांधी ने कहा कि जो अच्छी सड़कें यहां दिखाई देती हैं, वे सभी केंद्र द्वारा बनवाई गई हैं. कांग्रेस ने लोगों को शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और रोज़गार का अधिकार दिया और अब भोजन का अधिकार देने जा रही है, जिससे हर ग़रीब परिवार को 35 किलो अनाज हर महीने मिलेगा और कोई भूखा नहीं रहेगा. हो सकता है कि अगर हाथी रहा, तो आपको इसका फ़ायदा न मिले.
उन्होंने कहा कि अब बदलाव का समय आ गया है और उत्तर प्रदेश को अपनी पुरानी शान वापस लानी होगी. उन्होंने कहा कि मैं यहां सिर्फ़ चुनाव जीतने नहीं आया हूं, उत्तर प्रदेश को बदलने आया हूं. कांग्रेस को वोट देकर आप अपनी सरकार चुनिए--सरकार जो आपकी हो और आपके लिए काम करे.


स्टार न्यूज़ एजेंसी 
उरई (उत्तर प्रदेश). बुंदेलखंड में अपने जनसंपर्क अभियान के दूसरे दिन कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने बेहद आक्रामक अंदाज़ में सपा, बसपा और भाजपा पर हमला बोल दिया.  उन्होंने कहा कि मनरेगा, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य यहां तक कि उत्तर प्रदेश की ख़स्ताहाल सड़कों के बीच चमचमाते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग जैसे विकास कार्य और योजनाएं कांग्रेस पार्टी की देन है. इन योजनाओं में हम जब आपका पैसा, आपके लिए भेजते हैं तो विपक्ष सवाल उठाता है कि इतना पैसा कहां से आएगा. आप दिन-रात मेहनत करते हैं, आपको भोजन का पूरा अधिकार है. हमने जब प्रत्येक परिवार को हर महीने 35 किलो भोजन का अधिकार देने वाला क़ानून संसद में रखा और उसे देने जा रहे हैं, तो समाजवादी पार्टी के लोग इसे अपनी योजना बताने लगे.

कांग्रेस महासचिव ने पूरे विपक्ष को चुनौती देते हुए कहा कि बुंदेलखंड में सूखा पड़ने के बाद जब मैं आपके घरों और आपके बीच आया, तो विपक्षी कहते हैं कि मैं नौटंकी कर रहा हूं. अगर विपक्ष में हिम्मत हो तो वह आपके बीच जाकर यही 'नौटंकी' करके दिखाए. हम बुंदेलखंड के किसानों, मज़दूरों को कभी नहीं भूलेंगे.  

राहुल गांधी ने मुलायम सिंह यादव के बेरोज़गारी भत्ता देने के चुनावी, शिगूफ़े पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि मुलायम सिंह जी ने तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी बेरोज़गारी भत्ता दिए जाने के लिए कोई क़ानून नहीं बनाया, जिससे सपा की सरकार नहीं रहने पर भी बेरोज़गारों को अनवरत भत्ता मिलता रहे.

राहुल गांधी ने सपा और बसपा पर एक और तीर छोड़ते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने के सवाल पर सन्नाटे में आए मुलायम सिंह ने कांग्रेस पार्टी द्वारा आरक्षण दे देने के बाद धीरे से कहा कि 'कम है', जबकि वह तीन बार मुख्यमंत्री थे और मायावती पिछले पांच साल तक मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन इस दिशा में दोनों ने कुछ नहीं किया. सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी की योजनाओं को अपनी योजना बताते रहे और चिट्ठी लिखते रहे.

उन्होंने हमलावर अंदाज़ में सवाल किया कि जब बुंदेलखंड में लोग भूख से तड़प रहे थे, भट्टा पारसौल में किसानों पर अत्याचार हो रहा था तब सपा, बसपा और भाजपा के नेता कहां थे? कोई नहीं आया आपके बीच, सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी ने ही आपके बीच जाकर आम आदमी की लड़ाई लड़ी.

राहुल गांधी ने याद दिलाया कि जब बुंदेलखंड में सूखा पड़ा था, तो उस समय मुख्यमंत्री मायावती जी से मैंने कहा कि आप वहां कम से कम एक बार जाएं और जनता का दुख-दर्द देखें, तो वह बोलीं कि 'राहुल गांधी नाटक कर रहा है', जबकि उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ एक ही नाटक हो रहा है, 'जादू का हाथी ग़रीबों के पैसे खा जाता है.
उन्होंने प्रदेश में जनता के पैसों की खुलेआम चोरी का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी ने बुंदेलखंड के सूखा पीडि़त किसानों के लिए हजारों करोड़ रुपया भेजा, सच्चर कमीशन गठित करके हज़ारों करोड़ रुपया वज़ीफ़े     के लिए भेजा, लेकिन एक भी पैसा किसी को नहीं मिला. इसी तरह रोज़गार, स्वास्थ्य योजनाओं के लिए पैसा भेजा, लेकिन सारा पैसा चोरी हो गया.

इतना कहने के बाद राहुल गांधी ने आक्रामक ढंग से कहा कि उत्तर प्रदेश को अब बदलना है. कभी सपा, कभी भाजपा, कभी बसपा के बीच सिर्फ़ यूपी की जनता पिस रही है. अब चोरों की सरकार हटानी है और कांग्रेस पार्टी की सरकार बनवानी है, जो आम आदमी, अल्पसंख्यक और कमज़ोर वर्ग को एक साथ लेकर चलती है.

राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी को आम लोगों से ही मालूम हुआ कि रोज़गार की कमी सबसे बड़ी समस्या है. तो सरकार ने मनरेगा क़ानून बनाकर 100 दिन के रोज़गार की गारंटी दी. हर एक ग़रीब को चाहे वह किसी भी जाति का हो या किसी भी प्रदेश का,12000 रुपये देने ’की गारंटी दी. उत्तर प्रदेश में बसपा के लोगों और मायावती ने कहा, मनरेगा से किसी को फ़ायदा नहीं होगा.

कांग्रेस महासचिव ने नसीहत देते हुए कहा कि आंध्र प्रदेश, केरल, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र जाकर कोई भी पता कर ले कि मनरेगा से क्या मिला? तो वहां सबसे कमज़ोर आदमी बताएगा कि पहली बार गांवों में रोज़गार पहुंचा, सरकार ने हाथ पकड़ा और इज्ज़त मिली. उन्होंने कहा कि मैं सभी लोगों से और तमाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कह रहा हूं कि खड़े हो जाओ, लड़ जाओ, क्योंकि कांग्रेस की सरकार बन रही है. हम सबको साथ लेकर इस प्रदेश को बदलेंगे और एक बार फिर इसे नंबर एक पर लाकर खड़ा कर देंगे.


अंबरीश कुमार 
रायबरेली (उत्तर प्रदेश). प्रियंका नहीं, यह तो कांग्रेस की दूसरी इंदिरा गांधी है । यह बात रायबरेली पहुंची प्रियंका गांधी से आज सलोन विधान सभा क्षेत्र मिलने आए पिचहत्तर साल के जगदंबा प्रसाद ने कही । यह टिपण्णी प्रियंका गांधी के राजनैतिक करिश्मा की एक बानगी है । प्रियंका गांधी आज दोपहर मुंशीगंज से यहाँ पहुंची और राजीव गांधी ट्रस्ट के अतिथि गृह में विभिन्न विधान सभा क्षेत्रों से आए पार्टी कार्यकर्ताओं से मिली । अंदाज वही पुराना,जिसमे लोग उनके भीतर इंदिरा गांधी देखते है । हावभाव वही ,बालों की शैली वही और भीड़ में उसी तरह लोगों के बीच बिना किसी झिझक पहुँच जाना। मुस्कुराते हुए लोगों से उनका हाल चाल लेना और जो दिक्कते आ रही है उनकी जानकारी लेना। इससे पहले प्रियंका ने यह भी कहा कि वे रायबरेली अमेठी की जिम्मेदारी निभाएंगी पर अगर राहुल गांधी कहेंगे तो आगे की भी सोची जाएगी । पर कांग्रेस के जानकारों के मुताबिक पार्टी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को सत्ता का दूसरा केंद्र नही बनाएगी । प्रियंका गांधी कांग्रेस का अंतिम ब्रह्मास्त्र है इसलिए फिलहाल मौजूदा चुनाव में भी उनकी सीमा रेखा तय है । प्रियंका गांधी सिर्फ रायबरेली अमेठी तक सीमित रहेंगी पर वे समूचे प्रदेश की नजरों में बनी रहेंगी यह भी सच है ।
कांग्रेस के मीडिया प्रबंधन के सर्वेसर्वा राजबब्बर ने जनसत्ता से कहा -यह बात सही है कि आगे बढती कांग्रेस के चुनाव प्रचार में प्रदेश के बहुत से चुनाव क्षेत्रों से प्रियंका गांधी को प्रचार में भेजने की मांग हो रही है पर इस बारे में पार्टी ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है। वे परंपरागत रूप से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्र का काम संभालती रही है और इस बार भी वहा वे पुरानी जिम्मेदारी निभा रही है । राजबब्बर इसके आगे इस विषय पर कुछ बोलने को तैयार नहीं थे । इसी से यह अंदाज लगया जा सकता है यह मामला कितना संवेदनशील है ।
वैसे भी जब मामला राहुल ,सोनिया और प्रियंका गांधी का आता है तो कांग्रेस के प्रवक्ता हाथ खड़े कर देते है । पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा -उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे देश में में सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी पार्टी में सत्ता का केंद्र है । ऐसे में अगर प्रियंका गांधी को भी मैदान में उतार दिया गया तो सत्ता का एक अलग केंद्र बन जाएगा और राहुल गांधी के लिए राजनैतिक मोर्चे पर दिक्कत पैदा हो जाएगी । मीडिया से लेकर विपक्ष तक राहुल और प्रियंका के राजनैतिक करिश्मे की तुलना कर विवाद पैदा कर देगा । इसलिए प्रियंका गांधी को रायबरेली और अमेठी तक सीमित करने का फैसला पार्टी और परिवार दोनों के लिए बेहतर है । खुद प्रियंका गांधी भी इस सीमा के पक्ष में रही है । पिछले लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने इस संवाददाता से कहा था -मै राजनीति में नही हूँ ,पर अपने परिवार की मदद करने आई हूँ और आगे भी आती रहूंगी । प्रदेश के दूसरे हिस्सों में प्रचार करने के बारे में पूछे गए सवाल पर प्रियंका ने कहा, मैं अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है। इस वक्त मैं यहां कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने आई हूं। बाद में मैं और भाई :राहुल: मिल बैठकर तय करेंगे।पर प्रियंका गांधी ने आगे यह भी जोड़ा -अपने भाई की मदद करने के लिये मैं कुछ भी करूंगी। वह जो कहेंगे मैं करूंगी।
प्रियंका को लेकर रायबरेली के लोग काफी संवदनशील है ।उनमे लोगों को इंदिरा गांधी नजर आती है । सिर्फ शक्ल सूरत ही नही हावभाव और तेवर में भी । ऐसा आक्रामक तेवर जो इंदिरा गांधी में दिखता था । वर्ष १९९९ में जा कांग्रेस के दिग्गज नेता अरुण नेहरु गांधी परिवार के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे । तब प्रियंका गांधी ने रायबरेली में कुछ जनसभाए की । हरचंदपुर की जनसभा में प्रियंका गांधी ने नाराज होकर लोगों से कहा था -आप लोगों ने इस गद्दार को यहाँ घुसने कैसे दिया । यह वही अंदाज था जो रायबरेली के लोग इंदिरा गांधी में देखते थे और आज प्रियंका गांधी में देख रहे है । यही वजह है कि प्रियंका गांधी स्टार प्रचारकों पर भारी पद रही है और उनकी मांग बढ़ रही है ।
(लेखक जनसत्ता से जुड़े हैं)

स्टार न्यूज़ एजेंसी
रुड़की (उत्तराखंड).
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज उत्तराखंड में रुड़की और नई टिहरी में दो जनसभाओं को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि यह शहर आईआईटी रुड़की का शहर है, जहां कल का भारत बनाने वाले आज शिक्षा पा रहे है. उत्तराखंड आकर सबको ही यह लगता होगा कि यहां के रहने वाले प्रकृति के बड़े चहेते और लाड़ले है, क्योंकि धरती तो सभी जगह सुंदर है. लेकिन उत्तराखंड की प्रकृति जितनी सुंदर है, उसका बखान शब्दों में मुश्किल है. मगर यह कहते हुए दुख होता है कि जहां प्रकृति ने उत्तराखंड पर दिल खोल कर अपना ख़ज़ाना लुटाया था, वहीं कुछ लोग प्रकृति के इस ख़ज़ाने को दोनों हाथों से लूट रहे हैं, बर्बाद कर रहे हैं और यह सब प्रकृति के नाम पर हो रहा है. प्रगति का विरोध तो कोई नहीं करेगा. अगर प्रगति का मतलब है लोगों के पास रोटी और रोज़गार हो. राज्य में सड़कें हों, बिजली हो, हर बच्चे को स्कूल और अच्छी शिक्षा मिल सके. हर परिवार को इलाज की सहूलियत हो, हर एक को अपना अधिकार मिल सके. किसान हो, दलित हो, पिछड़ा हो, अल्पसंख्यक हो, महिलाएं हों, अल्पसंख्यक हो हर किसी को पूरी इज्ज़त के साथ उसका हक़ मिले, लेकिन अगर प्रगति का मतलब कोई यह निकालें कि उत्तराखंड की ज़मीन, मिट्टी, पानी और पहाड़ियां प्रगति के नाम पर ग़ैर ज़रूरी लोगों को मामूली दाम पर बेच दी जाएं, या फिर ठेके पर दे दी जाएं तो यह प्रगति नहीं है. उत्तराखंड के साथ सिर्फ़ धोखा हुआ है और मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है. आप सब अच्छी तरह जानते हो कि पिछले कई वर्षों से यह धोखा उत्तराखंड के लोगों को दिया जा रहा है. इस लूट और बेईमानी को तरह-तरह के झूठ से छिपाने की कोशिश भी की जा रही है. मगर आप सबने देखा, इस लूट के पैर इतने लंबे हो गए हैं कि राज्य सरकार की झूठ की चादर भी छोटी पड़ गई है. जब बेईमानी के पैर झूठ की चादर से पूरी तरह बाहर आ गए हैं, और उस समय के मुख्यमंत्री के चेहरे पर लगा ईमानदारी का मुखौटा भी कुंभ के मेले में खो गया. तभी यहां की सत्ताधारी पार्टी ने अपनी करतूत नहीं बदली, सिर्फ़ मुख्यमंत्री बदलकर आपको धोखा देने की नाकाम कोशिश की कि अब हम बदल गए हैं. मगर सच यह है कि कुछ नहीं बदला, न लूट, न बेईमानी. एक तरह यहां केंद्र ने जो कुछ मनरेगा के अंतर्गत भेजा था, वो सिर्फ़ दस प्रतिशत लोगों तक पहुंचा. राज्य सरकार की लापरवाही की हद यह है कि लोगों के रोज़गार के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पैसे का केवल चालीस प्रतिशत ही उपयोग हुआ है, और यहां के नौजवान बेरोज़गार घूम रहे हैं. समझने वाली बात यह है कि उत्तराखंड के परिवारों की रक्षा करनी है. यहां कि नदियों, झरनों, पहाड़ियों और लूट-खसोट से बचाना है. अगर आम आदमी के जीवन में ख़ुशहाली और सहूलियतें लानी हैं. अगर उत्तराखंड के हर नागरिक, हर महिला, हर पुरुष, हर बच्चे को, हर बड़े को, उनका अधिकार, उनका गौरव, उनका उत्तराखंड वापस दिलाना है, तो मुख्यमंत्री को बदलनें से काम नहीं चलेगा. आपको उत्तराखंड की सरकार बदलनी होगी. आपको अगर उत्तराखंड पर छाए हुए, ख़तरे के ये बादल हटाने हैं तो भाजपा को ही हटाना होगा. यह काम आप अपने वोट द्वारा कर सकते हैं. और मुझे विश्वास है कि आप वही करेंगे. कांग्रेस को भारी बहुमत देंगे. बहनों और भाइयों हमारी केंद्र सरकार ने समाज के सभी वर्गों के हित में बहुत काम किया है और कर रही है. ख़ासकर दलित, आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं और कार्यक्रम बनाए और उन्हें लागू किया है. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, जिससे हर गांव और हर घर को बिजली मिलनी चाहिए, मिलती है. जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण के माध्यम से आवास. सड़क, पानी जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी होती हैं. ग्रामीण स्वास्थ्य योजना द्वारा लोगों को गांव में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्कूलों के बच्चों को दोपहर का भोजन, 14 साल तक के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का अधिकार, अल्पसंख्यक बच्चों ख़ासकर लड़कियों के लिए वज़ीफ़ा, अल्पसंख्यकों के लिए अलग से मंत्रालय और सच्चर कमीशन की सिफ़ारिशों पर अमल, महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह का गठन, कम ब्याज़ पर क़र्ज़ जैसी कुछ मिसालें हैं. यहां की सरकारें जनता के प्रति जागरूक नहीं हैं. देश में जहां-जहां सरकारें जनता के प्रति जागरूक हैं. वहां के भाई-बहनों को उनका फ़ायदा ख़ूब मिल रहा है. उनकी ज़िन्दगी में ख़ुशहाली आ रही है, लेकिन उत्तराखंड की सरकार की उदासीनता के कारण आप सबको इनका फ़ायदा नहीं मिला. हमने उत्तराखंड के विकास का हमेशा ख़ास ध्यान रखा है. आज उत्तराखंड में जो कुछ दिखाई दे रहा है, सब कांग्रेस की सरकारों ने ही दिया है. आईआईटी, आईआईएम, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, होटल मैनेजमेंट जैसे संस्थान, ऋषिकेश में एम्स का निर्माण, ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल लाइन का शिलान्यास, जैसी कुछ मिसालें हैं. वैसे हमें आपकी समस्याओं का पता है, इसलिए कांग्रेस के घोषणा पत्र में, जो भी कुछ है और आपकी तरक्क़ी के लिए बहुत है. लेकिन उसके कुछ मुद्दों को मैं आपके सामने रखना चाहती हूं. उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनने पर मैदानी इलाक़ों में गन्ने के कोल्हू लगाने पर लाइसेंस ख़त्म किया जाएगा. किसानों को गन्ने के दाम के तुरंत भुगतान की व्यवस्था भी की जाएगी. प्रदेश में अल्पसंख्यक मंत्रालय तथा उर्दू, फ़ारसी बोर्ड का गठन किया जाएगा. मदरसों में सरकारी ख़र्च पर छात्रों को कंप्यूटर की पढ़ाई कराई जाएगी और छात्रों को आईआईटी, पॉलिटेक्निक और तकनीकि संस्थानों में मुफ्त ट्रेंनिग दी जाएगी. हरिद्वार, हेमकुंड और कलियर शरीफ़ मेले को राज्यस्तरीय मेले की मान्यता दी जाएगी. हम इसी तरह के काम सभी के लिए हर वर्ग के लिए ख़ासकर किसानों के लिए और आगे बढ़ाने चाहते हैं, जिससे आपके इस ख़ूबसूरत प्रदेश के विकास के साथ-साथ आपके जीवन में भी उत्थान हो, ख़ुशहाली आए और देश के दूसरे राज्यों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर उन्नति करें, इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि चुनाव के दिन अपना एक-एक वोट कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों को देकर उन्हें भारी बहुमत से जिताएं, और उत्तराखंड के विकास, उत्तराखंड की ख़ुशहाली में अपनी भूमिका निभाएं और इन्हीं शब्दों के साथ मैं आप सब को दूर-दूर से इस सभा में आने के लिए धन्यवाद देती हूं. धन्यवाद जयहिंद.

अंबरीश कुमार
लखनऊ (उत्तर प्रदेश).
उत्तर प्रदेश के मौजूदा चुनावी माहौल में समाजवादी पार्टी फिलहाल आगे बढती नजर आ रही है । बुंदेलखंड ,मध्य उत्तर प्रदेश के बाद पूर्वांचल की विभिन्न सभाओं में समाजवादी पार्टी की सभाओं में सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ रही है । मुलायम सिंह यादव ,आजम खान और अखिलेश यादव की सभाओं को मिल रहे जनसमर्थन से बमबम पार्टी ने आज दावा किया कि पूरे प्रदेश में सपा की लहर है । मुलायम सिंह यादव कल से तीन दिन के दौरे पर निकल रहे है जिसकी पार्टी ने जोरदार तैयारी की है । दूसरी तरफ अखिलेश यादव अब हेलीकाप्टर से प्रदेश के ज्यादा से ज्यादा जगहों पर पहुँचने की कोशिश करेंगे । उनका भी दौरा लगातार तीन दिन का है । प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से मिल रही ख़बरों से समाजवादी पार्टी बम बम है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव अबतक दो सौ से ज्यादा विधान सभा क्षेत्र का दौरा कर चुके है और हर तरफ उनकी सभाओं में भीड़ जुट रही है। इस संवादददाता ने बुंदेलखंड दौरे में ललितपुर से उरई तक उनकी सभाओं में जो भीड़ देखी वह दूसरे दलों की सभाओं से कही ज्यादा थी। इसकी बाद मध्य उत्तर प्रदेश और फिर पूर्वांचल में भी अखिलेश यादव की सभाओं में भीड़ जुट रही है । समाजवादी क्रांति रथ लेकर निकाले अखिलेश यादव ने कहा -अब उत्तर प्रदेश में बदलाव तय है । मौजूदा भ्रष्ट सरकार जा रही है और अगली सरकार हमारी है ।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की जन सभाओं और समाजवादी क्रांति रथ यात्रा को मिल रहे व्यापक जन समर्थन से साफ़ है कि जनता ने विकल्प तय कर लिया है । बुंदेलखंड के ललितपुर में एक लाख लग अखिलेह यादव की सभा में आए तो बाकि सभी जगह दस बीस और पच्चीस हजार की सभाए हो रही है । किसी भी राजनैतिक दल को इस तरह का समर्थन नहीं मिला है ।
चौधरी की बात काफी हद तक सही है क्योकि चुनाव प्रचार के पहले दौर में कुशवाहा को लेकर भाजपा बचाव की मुद्रा में आ गई थी तो बसपा साभी दलों के निशाने पर । राहुल गांधी के चलते कांग्रेस आगे बढ़ रही है और लोकदल से गठबंधन कर उसकी सीटें भी बढेंगी लेकिन कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि कांग्रेस की सरकार बन सकती है । ऐसे में समाजवादी पार्टी को मजबूत विकल्प का फायदा मिलता दिख रहा है। दूसरे अखिलेश यादव वह युवा चेहरे है जो इस प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते है और पार्टी की मुख्य कमान वे संभाल भी रहे है । जबकि सभी जानते है कि राहुल गांधी को कांग्रेस प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बनाने जा रही है । इसी वजह से अखिलेश यादव प्रदेश की राजनीति में राहुल गांधी से भारी भी पड़ेंगे।
समाजवादी पार्टी अगर बहुमत में आई तब भी और किस का समर्थन लिया तब भी अखिलेश यादव के ही मुख्यमंत्री बनने की ज्यादा संभावना है। इस बारे में जो भी अटकले है उनपर अखिलेश यादव धीरे धीरे विराम लगाते भी जा रहे है । मोहन सिंह को प्रवक्ता पद से हटाना दरअसल दूसरे क्षत्रपों को भी सन्देश देना था जो कई दागी उम्मीदवारों के लिए लामबंदी कर रहे थे जिसमे कई बाहुबली भी है । इस फैसले साथ ही अखिलेश यादव ने पार्टी संगठन पर अपनी पकड़ भी मजबूत की है । अब वे पार्टी के स्टार प्रचारक भी है । गौरतलब ही कि समाजवादी पार्टी हाल के सालों में पहली बार बिना फ़िल्मी सितारों के चुनाव लड़ रही है और भीड़ भी जुट रही है । इसकी एक वजह पिछले चार साल तक मायावती सरकार की सत्ता से टकराना भी रहा जिसके चलते लखनऊ से लेकर विभिन्न जिलों में पार्टी के कार्यकर्त्ता मारे पीटे गए औ जेल गए । उस दौर का संघर्ष अब पार्टी का समर्थन बनकर सामने आ रहा है।
(लेखक जनसत्ता से जुड़े हैं)

चांदनी
लोहड़ी उत्तर भारत विशेषकर हरियाणा और पंजाब का एक प्रसिद्ध त्योहार है. लोहड़ी के की शाम को लोग सामोहिक रूप से आग जलाकर उसकी पूजा करते हैं. महिलाएं आग के चारों और चक्कर काट-काटकर लोकगीत गाती हैं. लोहड़ी का एक विशेष गीत है. जिसके बारे में कहा जाता है कि एक मुस्लिम फ़कीर था. उसने एक हिन्दू अनाथ लड़की को पाला था. फिर जब वो जवान हुई तो उस फ़कीर ने उस लड़की की शादी के लिए घूम-घूम के पैसे इकट्ठे किए और फिर धूमधाम से उसका विवाह किया. इस त्यौहार से जुड़ी और भी कई किवदंतियां हैं. कहा जाता है कि सम्राट अकबर के जमाने में लाहौर से उत्तर की ओर पंजाब के इलाकों में दुल्ला भट्टी नामक एक दस्यु या डाकू हुआ था, जो धनी ज़मींदारों को लूटकर गरीबों की मदद करता था.
जो भी हो, लेकिन इस गीत का नाता एक लड़की से ज़रूर है. यह गीत आज भी लोहड़ी के मौके पर खूब गया जाता है.
लोहड़ी का गीत
सुंदर मुंदरीए होए
तेरा कौन बचारा होए
दुल्ला भट्टी वाला होए
तेरा कौन बचारा होए
दुल्ला भट्टी वाला होए
दुल्ले धी ब्याही होए
सेर शक्कर पाई होए
कुड़ी दे लेखे लाई होए
घर घर पवे बधाई होए
कुड़ी दा लाल पटाका होए
कुड़ी दा शालू पाटा होए
शालू कौन समेटे होए
अल्ला भट्टी भेजे होए
चाचे चूरी कुट्टी होए
ज़िमींदारां लुट्टी होए
दुल्ले घोड़ दुड़ाए होए
ज़िमींदारां सदाए होए
विच्च पंचायत बिठाए होए
जिन जिन पोले लाई होए
सी इक पोला रह गया
सिपाही फड़ के ले गया
आखो मुंडेयो टाणा टाणा
मकई दा दाणा दाणा
फकीर दी झोली पाणा पाणा
असां थाणे नहीं जाणा जाणा
सिपाही बड्डी खाणा खाणा
अग्गे आप्पे रब्ब स्याणा स्याणा
यारो अग्ग सेक के जाणा जाणा
लोहड़ी दियां सबनां नूं बधाइयां

यह गीत आज भी प्रासंगिक हो, जो मानवता का संदेश देता है.

अंबरीश कुमार
लखनऊ (उत्तर प्रदेश).
मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में बसपा के बागी क्षत्रप ही पलीता लगा रहे है। पिछला विधान सभा चुनाव मायावती बहुजन के साथ सर्वजन को खड़ा कर जीती थी। अबकी सर्वजन ने अलग रास्ता पकड़ लिया है। इसमे सर्वजन का समर्थन जुटाने वाले बसपा के ज्यादातर क्षत्रप बागी हो चुके है। यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को इस चुनाव में अपनों से ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है खासकर जो अबतक उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे और पिछली बार उनकी ऐतिहासिक जीत के हिस्सेदार थे। मायावती अबतक सौ से ज्यादा विधायकों का टिकट काटकर ज्यादातर को बाहर का रास्ता दिखा चुकी है और बहुत से खुद ही बाहर हो गए है या दल बदल लिया है। ऐसे मंत्रियों की संख्या दो दर्जन से ज्यादा है जिसमे कई मायावती सरकार के बहुत ही महत्वपूर्ण मंत्री और सरकार के रणनीतिकार भी रहे है।महत्वपूर्ण मंत्रियों में बाबू सिंह कुशवाहा, अनंत कुमार उर्फ़ अंतु मिश्र, दद्दन मिश्र, दद्दू प्रसाद, राजेश त्रिपाठी, अवध पाल सिंह यादव, राकेश धर त्रिपाठी, अवधेश कुमार कुमार, अब्दुल मन्नान, राजपाल त्यागी, सुभाष पांडेय, अनीस अहमद खान उर्फ़ फूल बाबू, बादशाह सिंह और फ़तेह बहादुर सिंह शामिल है। यह सूची लम्बी है जिसमे बड़ी संख्या में विधायक और सांसद भी है। प्रदेश स्तर के बाहुबली भी है तो इलाके के डान भी। इनमे अगड़े है ,पिछड़े है तो अति पिछड़े भी है जो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में पलीता लगा रहे है।
इन मंत्रियों में कई मंत्री, विधायक और सांसद अपनी ही नही बल्कि आसपास की अन्य सीटों को जातीय समीकरण और अपने आभा मंडल के चलते प्रभावित कर रहे है, जिसकी वजह से बहुत कम अंतर से पिछली बार बसपा ने जो लगभग सौ सीटें जीती थी वे इस बार हाथ से निकल सकती है यह एक बड़ा खतरा बसपा पर मंडरा रहा है। पूर्वांचल में मायावती सरकर में मंत्री रहे फ़तेह बहादुर सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता ,पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के पुत्र है। वीर बहादुर सिंह का पूर्वांचल की राजनीति में अलग स्थान रहा है और इसका फायदा भी फ़तेह बहादुर लेते रहे है । अब उनकी बगावत से बसपा के वोटों पर असर पड़ना तय है। जिन मंत्रियों के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान के चलते इस बार माहौल माकूल नहीं था वे भी सरकार से बाहर होने के बाद कुछ राहत महसूस कर रहे है  क्योकि अब वे सत्ता का हिस्सा नहीं है। ऐसे में वे अपनों से फिर ताकत हासिल कर रहे है। मायावती पिछली बार जब पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई थी तो उस समय दलितों के साथ उन्हें अगड़ी और अन्य पिछड़ी जातियों का भी वोट मिला था जिसने सत्ता का समीकरण बानाया। इसमे अंतिम समय में मिलने वाला दो तीन फीसद वह वोट भी था जिसने मुलायम सिंह को हराने के लिए उन्हें वोट किया। यह वही वर्ग था जिसका सबसे पहले मायावती से मोहभंग हुआ और इसका असर पिछले २००९ के लोकसभा चुनाव में दिखा जब विधान सभा सीटों के हिसाब से मायावती लगभग सौ सीटे गंवा चुकी । मायावती की राजनीति को सबसे बड़ा झटका तभी लग चुका था जिसका फायदा कांग्रेस खासकर राहुल गांधी साफ सुथरे उम्मीदवारों को टिकट देकर उठाया था। कांग्रेस को दूसरा बड़ा फायदा समाजवाद पार्टी में शामिल हुए कल्याण सिंह के चलते हुआ क्योकि मुसलमान सपा से नाराज होकर कांग्रेस की तरफ आया। इसमे आजम खान ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। ऐसे में बसपा का आकलन पिछले विधान सभा सीटों की बजाय लोकसभा में बची हुई विधान सभा सीटों के लिहाज से किया जाना चाहिए। इन सीटों में भी दलितों के साथ अन्य जातियों का समीकरण बना था जो अब टूट रहा है। कही पर बागी नेताओं की जाति इस समीकरण को तोड़ रही है तो कही ऊनका निजी असर। पूर्वांचल में अगर फ़तेह बहादुर सिंह उदहारण है तो बुंदेलखंड में बाबू सिंह कुशवाहा से लेकर बादशाह सिंह। इसी तरह पश्चिम और मध्य उत्तर प्रदेश के कई नेता बसपा का जनाधार कमजोर कर चुके है। हरदोई के नरेश अग्रवाल ऐसे ही उदाहरण है। इस तरह सत्तर से ज्यादा सीटों पर बसपा को अपने बागियों से मुकाबला करना पड़ रहा है। ये बागी खुद जीतें या न जीते बसपा को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। मायावती को ज्यादा मशक्कत इन नेताओं की वजह से करनी पड़ रही है।


अंबरीश कुमार 
आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश).  उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी अब मायावती और मुलायम को सीधी चुनौती दे रहे है। पूर्वांचल दौरे पर निकले राहुल गांधी की भाषा तेवर और अंदाज अब बदल चुके है। अब वे इंदिरा गांधी की तरह विरोधियों पर सीधा हमला कर रहे है। राहुल ने जब राजनीति में कदम रखा और उत्तर प्रदेश के राजनैतिक अखाड़े में उतरे तब से इस संवाददाता को उनकी राजनीति को करीब से देखने का मौका मिला है। अब न उन्हें बाबा कहा जा सकता है और न ही राजनीति में बच्चा माना जा सकता है। आज आजमगढ़ की जनसभा में जिस अंदाज में उन्होंने मुसलमानों के सवाल पर प्रदेश के दोनों बड़े नेताओं को घेरा वह बेमिसाल था। राहुल गांधी ने मुसलमानों के आरक्षण का सवाल उठाते हुए कहा -हमने जब आरक्षण दिया तो ये कह रहे है कम है अठारह फीसद देना चाहिए। मै पूछता हूँ जब ये सत्ता में थे ,तीन बार थे तो क्यों नहीं आरक्षण दिया। मायावती ने क्यों नहीं दिया। देना है तो अपने घोषणा पत्र में लिखे कि सत्ता में आने के बाद मुसलमानों को अठारह फीसद आरक्षण देंगे। राहुल गांधी की बात लोग इसलिए भी गंभीरता से ले रहे है क्योकि आजादी के बाद कांग्रेस के संभवत पहले बड़े नेता है जो गांव ,गरीब और किसान की सिर्फ बात नहीं कर रहे है बल्कि उनके बीच जाकर राजनीति का ककहरा भी सीख रहे है।
राहुल गांधी के तेवर में यह बदलाव लोगों को भीतर तक छू जा रहा है। राहुल गांधी अपनी सभाओ में कहते है -क्या आपने कभी मायावती जी को अपने गांव में अपने बीच देखा है, अपने बीच में कभी पाया है। जो नेता आम लोगों के बीच नहीं जाएगा, गरीबों के बीच जाएगा वह गरीबों का दुखदर्द क्या समझेगा। राहुल गांधी की नई छवि व्यवस्था से नाराज नौजवान की है जो अब काफी आक्रामक तेवर में अपनी बात को लोगों के सामने रख रहा है। राहुल गांधी ने जब राजनीति में कदम रखा था तो जो शैली उनकी थी उसपर लखनऊ विश्विद्यालय के राजनीति विभाग के प्रोफ़ेसर आशुतोष मिश्र ने कहा था -उत्तर प्रदेश जिस सामजिक उठा पटक से गुजरा है उसमे यहां मार डालों,काट डालों वाली राजनीती हावी रही है ऐसे में राहुल गांधी की एनजीओ वाली शैली ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाएगी। इसलिए उन्हें आक्रामक शैली अपनानी चाहिए। यह टिपण्णी कुछ साल पुरानी है और अब राहुल गांधी जिस अंदाज में हमला कर रहे है उससे विरोधी काफी जल्दी विचलित हो जा रहे है । आज राहुल गांधी ने आजमगढ़ की सभा मी जब मनरेगा का हवाला देते हुए कहा कि यह हमने किसी जाति के लिए नहीं क्या तो तालियों से जनसभा गूंज गई । राहुल गांधी ने गरीबों, वंचितों और ग़रीबों का सवाल उठाया कहा -जो पैसा इन योजनाओं में आता है वह मनमोहन सिंह का पैसा नहीं है ,आडवानी का पैसा नहीं है ,मायावती का पैसा नहीं है। यह तो आपका पैसा है, आपके खून पसीने का पैसा है जो आपको ही हम लौटा रहे है। इस टिपण्णी पर राहुल गांधी जिंदाबाद के नारे से माहौल गूंज उठा। राहुल गांधी ने आगे कहा - हम चाहते है एक बच्चा भी भूखा न सोने पाए।
पहले तो मायावती राहुल गांधी के हर दौरे के बाद लम्बा चौड़ा बयान जारी करती । पर अब तो प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य उनके भाषणों का लगता है इन्तजार करते है और फ़ौरन प्रतिक्रिया देते है। पूर्वांचल में राहुल गांधी की दो टिपण्णी बहुत मशहूर हो चुकी है। राहुल गांधी ने गोरखपुर में कहा था -भाजपा ने पहले राम को बेचा अब बाबू सिंह कुशवाहा ने उसे खरीद लिया है। इस बयान पर भाजपा किस कदर बिगड़ी थी वह उनके नेताओं की टिपण्णी से सामने आ चुका है। इससे पहले राहुल गांधी का -लखनऊ में बैठा जादुई हाथी पैसा खा जाता है, काफी लोकप्रिय हो चुका है। राहुल गांधी अब धारा प्रवाह बोलते है जो लिखा हुआ भाषण तो नहीं हो सकता।जिसमे बीच बीच में राजनैतिक चुटकुले और गांवों में बिताए समय के अनुभव भी होते है। जबकि मायावती आज भी आमतौर पर लिखित भाषण पढ़ती है जो इतनी क्लिष्ठ हिंदी में होता है कि कई बार लोग समझ नहीं पाते। दूसरे वे अपने अनुभव नही बल्कि जो जानकारी दी जाती है उसके आधार पर बोलती है। मायावती जहां दलितों की जातीय गोलबंदी का प्रयास करती है वही राहुल हर तरह की जातीय गोलबंदी को तोड़ने का प्रयास करते है। फिरोजाबाद में यही हुआ था और यादवों के गढ़ में राजबब्बर जीते थे। इसलिए राहुल गांधी लोगों को पसंद आ रहे है।
(लेखक जनसत्ता से जुड़े हैं)


स्टार न्यूज़ एजेंसी 
मऊ (उत्तर प्रदेश). कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी  ने कहा कि केंद्र सरकार ने न केवल बुनकरों की क़र्ज़ माफ़ी कर सहायता की, बल्कि सरकार ने बुनकर समुदाय के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कई योजनाओं के साथ अपना क़दम बढ़ाया है.
मऊ के बुनकर बाहुल्य वाले इलाक़े में एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘जब बुनकर समुदाय से कुछ लोग हमारे पास आए  और अपनी परेशानियों के बारे में बताया तो वे उन्हें लेकर प्रधानमंत्री के पास गए, और प्रधानमंत्री जी ने बुनकरों की समस्याओं को दूर करने के लिए बिना एक मिनट भी गंवाये विशेष बुनकर पैकेज का ऐलान कर दिया.’’

उन्होंने कहा कि ‘बुनकरों ने मुझसे कहा कि पैकेज की धनराशि समितियों के माध्यम से मत दीजिये, क्योंकि इससे पैसा बुनकरों के पास नहीं पहुंचेगा. हम इस बात पर सहमत हुए और अब पैसा सीधे उनके खातों में जा रहा है.’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘बुनकरों ने उन्हें बताया कि उनका पैसा लखनऊ में बैठा जादुई हाथी खा जाएगा तो हमने योजना में बदलाव किया और पैसा सीधा बुनकरों के खातों में भिजवाया.’’

राहुल गांधी ने अल्पसंख्यक आरक्षण के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह को भी जमकर घेरा. उन्होंने कहा कि ‘‘मुलायम सिंह यादव ने तीन बार इस प्रदेश पर मुख्यमंत्री के रूप में राज किया, मगर अल्पसंख्यक आरक्षण के मसले पर कुछ नहीं किया और अब कांग्रेस की आलोचना कर रहे हैं.’’ उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा कि ‘‘मुलायम सिंह जी कहते हैं कि 4.5 प्रतिशत आरक्षण कम है. वह तीन बार मुख्यमंत्री बने  तब उन्होंने मुसलमानों को आरक्षण क्यों नहीं दिया? क्या वह अपने चुनाव घोषणा पत्र में यह वादा करेंगे कि सत्ता में आने पर वो मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देंगे? गांधी बोले, ‘‘वह ऐसा कभी नहीं कहेंगे और कभी नहीं करेंगे.’’ राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘समाजवादी पार्टी ने लोगों की ‘उम्मीद की साइकिल’ को पंचर कर दिया.’’
उन्होंने कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश के लोगों ने समाजवादी पार्टी को सरकार बनाने के लिए तीन मौक़े दिए,  मगर सपा लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में नाकाम रही. समाजवादी पार्टी की सरकार के ज़माने में पुलिस थानों में आम आदमी की एफआईआर तक नहीं लिखी जाती थी. थानों में गुंडों ने क़ब्ज़ा कर रखा था. महिलाएं भी अत्याचार की शिकार हो रही थीं और प्रदेश का कोई विकास नहीं हो रहा था.’’

राहुल गांधी ने लोगों को बताया कि ‘‘2009 में समाजवादी पार्टी के लोग गठबंधन करने के लिए उनके पास आए, मगर हमने उन्हें मना कर दिया, क्योंकि हम राजनीतिक फ़ायदे के लिए कल्याण सिंह जैसे लोगों से कोई समझौता नहीं कर सकते. उस समय समाजवादी पार्टी के लोग बोले कि कांग्रेस को पांच से ज़्यादा सीटें नहीं मिलेंगी. लोकसभा चुनाव में हमें 22 सीटें मिलीं,  मगर सपा को 21 सीटें ही मिलीं.’’

उन्होंने कहा कि ‘‘कांग्रेस ने कभी जाति और धर्म पर आधारित राजनीति नहीं की, बल्कि उसने सभी को साथ लेकर चलने की राजनीति की है. उन्होंने कहा कि ‘‘कांग्रेस ने मनरेगा शुरु की, जो रोज़गार के अधिकार से जुड़ी है, ‘‘लेकिन मायावती जी कहती हैं कि इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा. वह सही थीं, क्योंकि उत्तर प्रदेश में मनरेगा से किसी को कोई फ़ायदा नहीं होता, उनका हाथी सारे पैसे खा कर हज़म कर जाता है. उनका हाथी पैसे ही नहीं खाता, बल्कि ज़मीन और जो कुछ भी उसकी आंखों के सामने आता है उसे हज़म कर जाता है. आज दूसरे प्रदेशों में मनरेगा से देश के लाखों लोगों को फ़ायदा हुआ है, उनकी ज़िन्दगी में बदलाव आया है. मनरेगा ने उन्हें रोज़गार और आत्म-सम्मान दिया; और अब हम खाद्य सुरक्षा क़ानून लाने जा रहे हैं, जो यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भूखा ना रहे, मगर मायावती जी कहती हैं कि यह बेकार है.’’

राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘भाजपा ने इंडिया शाईनिंग जैसा नारा इसलिए दिया, क्योंकि वे ज़मीनी हक़ीक़त से वाकिफ़ नहीं थे.' उन्होंने कहा कि ‘‘केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में विकास कार्यक्रमों के लिए हज़ारों करोड़ रुपये भेजे, मगर मायावती जी के जादुई हाथी ने सब निग़ल लिए. अगर  कोई हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली या केरल जाकर देखे तो उसे पता चलेगा कि केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पैसों से कितना विकास हुआ है. उत्तर प्रदेश में अगर इस तरह की सरकारें रहीं तो यहां कभी विकास नहीं हो पाएगा.’’

उन्होंने कहा कि ‘‘मैं यहां चुनाव जीतने नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश को बदलने आया हूं और मैं तब तक यहां से नहीं जाऊंगा, जब तक बदलाव नहीं होता- चाहे इसमें पांच साल लगें, 10 या 15 साल लगें.’’


स्टार न्यूज़ एजेंसी 
आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश). कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी  ने समाजवादी पार्टी पर हमला बोलते हुए कहा कि जब कांग्रेस ने पिछड़े मुसलमानों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की तो मुलायम सिंह यादव ने उसकी आलोचना की. उन्होंने मुसलमानों को बरगलाने की कोशिश की. 'मुलायम सिंह ने कहा कि 4.5 प्रतिशत आरक्षण कम है. वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं - उन्होंने मुसलमानों को क्यों नहीं दिया आरक्षण? अब क्या वे अपने चुनाव घोषणा पत्र में यह वादा करेंगे कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वे मुसलमानों तो 18 प्रतिशत आरक्षण देंगे?”  
आजमगढ़ में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उम्मीद की साइकिल पंचर हो चुकी है. “उत्तर प्रदेश के लोगों ने तीन-तीन बार सपा को सरकार बनाने का मौक़ा दिया, मगर उन्होंने आपकी आशाओं और उम्मीदों को पूरा नहीं किया. सपा के शासन में आम आदमी पुलिस थानों में अपनी शिकायत भी नहीं लिखा सकता था, क्योंकि थाने गुंडों के क़ब्ज़े में थे. लोगों की रिपोर्ट थाने में दर्ज नहीं होती थी, महिलाओं पर अत्याचार हो रहा था, राज्य का विकास नहीं हुआ,” 
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि 2009 में समाजवादी पार्टी के लोगों ने कांग्रेस पार्टी से संपर्क किया और कहा कि उनसे समझौता कर लिया जाए, लेकिन कांग्रेस ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि आप अपना रास्ता चलिए और कांग्रेस अपने रास्ते चलेगी. इसके बाद उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अकेले केवल पांच ही सीटें मिलेंगीं, जिस पर हमने कहा कि स्वीकार है, लेकिन कल्याण सिंह के गले नहीं लगेंगे. समाजवादी पार्टी ने राजनीतिक फ़ायदे के लिए कल्याण सिंह को गले लगाया. लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को 22 सीटें दीं, जबकि समाजवादी पार्टी को 21 सीटें मिलीं. 
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी कभी किसी धर्म या फिर किसी ज़ात की बात नहीं करती, केवल विकास की बात करती है, क्योंकि हमारे लिए सब एक हैं. बुनकरों की बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस ने बुनकरों को आर्थिक सहायता दी, मगर बुनकरों ने कहा कि यह पैसा भी हाथी खा जाएगा. बुनकरों ने हमसे कहा कि ये पैसे राज्य सरकार को मत भेजिए तो हमने व्यवस्था की है कि पैसे सीधे उनके बैंक खाते में जाएंगे.
उन्होंने कहा कि “मैं यहां चुनाव जीतने नहीं आया हूं.  मैं उत्तर प्रदेश बदलने आया हूं और मैं तब तक यहां से नहीं जाऊंगा,  जब तक मैं उत्तर प्रदेश को बदल नहीं लेता - चाहे कांग्रेस को दो सीटें मिलें या फिर 200 सीटें.” राहुल गांधी ने कहा कि 2004 में हमने वादा किया था कि हम ऐसी सरकार देंगे जो आम आदमी की बात करेगी और हमने यह वादा पूरा किया. देश अब तरक्क़ी कर रहा है और सरकार ग़रीब,  दलित, शोषित, किसान, आदिवासी और उपेक्षित वर्ग के लिए काम कर रही है.
उन्होंने कहा कि '' केंद्र सरकार ने मनरेगा कार्यक्रम शुरू किया जो सीधे काम के हक़ से जुडा हुआ है.  “जब मनरेगा शुरू हुआ तो मायावती ने कहा कि यह बेकार है. उन्होंने सही कहा, क्योंकि उत्तर प्रदेश में उनका हाथी इस योजना का सारा पैसा खा गया. आज अन्य प्रदेशों में मनरेगा लाखों लोगों के जीवन में बदलाव ला रहा है. इससे उन्हें रोज़गार और आत्म-सम्मान मिला है. अब हम खाद्य सुरक्षा क़ानून ला रहे हैं, तो मायावती जी कहती हैं कि यह भी बेकार है. इस क़ानून के बाद किसी को भूखा नहीं रहना होगा और हर परिवार को 35 किलो अनाज मिलेगा. राहुल गांधी ने कहा कि अगर किसी को सफल नेता बनना है तो उसे गांव में जाना होगा, लोगों से मिलना होगा, उनसे बात करके उनकी समस्याओं को सुनना होगा. तभी उसका समाधान हो सकता है. बिना ऐसा करे सरकार नहीं चलती और न ही कोई काम होता है.
उन्होंने कहा कि मै ऐसा इसलिए करता हूं, ताकि मैं लोगों का दुख-दर्द समझ सकूं. विपक्ष के लोग मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में पिछले 22 सालों में रही सरकार के लोगों ने ऐसा नहीं किया. इसीलिए आज उत्तर प्रदेश इतना पिछड़ गया है. 
राहुल गांधी गांधी ने कहा कि, “मैं सात सालों से राजनीति में हूं. मैं दिल्ली में बैठता हूं, अधिकारियों से बात करता हूं, गांवों  में जाता हूं, लोगों से बात करता हूं. जितनी जानकारी मुझे आप लोगों से मिली है, उतनी किसी और से नहीं मिली. आप लोगों ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. मैं आप लोगों का हाथ पकड़ कर विकास का काम करना चाहता हूं“
बीजेपी पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के लोग एसी कमरों में बैठकर कह देते हैं कि हिंदुस्तान चमक रहा है, लेकिन अगर किसी ने एक बार अपनी आंखों से गांव देख लिया तो उसे ऐसी बात करने में शर्म आएगी. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के लोगों के विकास के लिए कई योजनाओं के तहत हज़ारों करोड़ रुपये भेजे, लेकिन मायावती जी ने कहा कि किसी को फ़ायदा नहीं हुआ. अगर कोई महाराष्ट्र, हरियाणा, केरल या दिल्ली जाकर देखें तो उन्हें पता चल जाएगा कि विकास योजनाओं से उन राज्यों के लोगों को फ़ायदा हुआ है या नहीं. जब तक उत्तर प्रदेश में ऐसी सरकार रहेगी, तब तक किसी को फ़ायदा नहीं हो सकता.
राहुल गांधी ने कहा कि आप लोगों ने 22 साल ऐसी सरकारें चुनी हैं, जो विकास को छोड़ कर बाक़ी सब बातें करती हैं. अब पांच साल के लिए कांग्रेस को चुनिए और फ़र्क़ देखिए. केंद्र में आपकी सरकार है और अगर यूपी में भी आपकी सरकार होगी तो तेज़ी से विकास होगा. 

स्टार न्यूज़ एजेंसी
देवरिया/बलिया (उत्तर प्रदेश).
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने  कहा कि समाजवादी पार्टी की उम्मीद की साइकिल पंचर हो गई है. उत्तर प्रदेश के नेता ज़ात की बात करते है. मुलायम सिंह लोगों से कहते हैं कि उम्मीद की साइकिल को वोट दें, जबकि जनता ने उन्हें तीन- तीन बार मुख्यंमंत्री बनाया, लेकिन हर बार वही उम्मीद की साइकिल पंचर हो गई.
थाने में एफआईआर दर्ज नहीं होती थी, महिलाओं पर अत्याचार हो रहा था, राज्य का विकास नहीं हो रहा था तो लोगों ने ग़ुस्सा होकर 2007 में मायावती को सत्ता सौंप दी, लेकिन वहां भी उम्मीद पूरी नहीं हुई. उन्होंने विपक्षी राजनीतिक दलों से सवाल किया कि अब उनसे किस बात की उम्मीद की जाए? क्या उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश की जनता बेवकूफ़ समझती है? तभी जनता के बीच से आवाज़ आई, ‘गुंडाराज की उम्मीद, कल्याण सिंह की उम्मीद.’
देवरिया ज़िले के सलेमपुर में बापू इंटर कॉलेज से सटे मैदान में राहुल गांधी ने कहा कि सात साल से मैं राजनीति में हूं, मैं गांवों में जाता हूं, अधिकारियों से बात करता हूं. जितनी जानकारी हिन्दुस्तान के गांवों में है, उतनी जानकारी कहीं नहीं है. यदि राजनीति में कामयाबी हासिल  करनी है तो केवल जनता के बीच जाकर उनकी बात सुननी चाहिए. लेकिन यहां के नेता सोचते हैं कि यूपी की जनता को कुछ नहीं मालूम. मायावती जी आपसे नहीं सीखतीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जितना वह जानती, उससे ज़्यादा जानने की ज़रूरत नहीं है.”
सलेमपुर के बाढ़ प्रभावित इलाक़े की हालत के बारे में कांग्रेस महासचिव ने लोगों से कहा कि आप लोगों के क्षेत्र में बाढ़ आती है, केंद्र सरकार आप लोगों की मदद के लिए जो भी पैसा भेजती है, उसे मायावती जी का लखनऊ में बैठा जादुई हाथी हज़म कर जाता है.
बलिया ज़िले की एक सभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने जनता से सवाल किया कि क्या कोई बता सकता है कि पिछले 22 सालों में उत्तर प्रदेश के लोगों को यहां की सरकार से क्या मिला? भीड़ ने जवाब दिया बेरोज़गारी और हाथी.
उन्होंने कहा कि अगर किसी को कामयाब नेता बनना है तो उसे गांव में जाना होगा, लोगों से मिलना होगा, उनसे बात करके उनकी समस्याओं को सुनना होगा, तभी विकास होगा. बिना ऐसा करे सरकार नहीं चलती और न ही कोई काम होता है. आप लोग अमेरिका, इंग्लैंड में जाकर देख सकते हैं. वहां के लोगों के पास सब कुछ है, वहां के युवा मौज-मस्ती करते हैं. उन्हें काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है, जितनी यहां के युवाओं को है. उत्तर प्रदेश में जब युवा काम मांगता है तो उसे नहीं मिलता, अस्पताल मांगता है तो अस्पताल नहीं मिलता, विकास मांगता है तो विकास नहीं मिलता, क्योंकि यहां इन सबका पैसा चोरी हो रहा है.
कांग्रेस महासचिव ने लोगों को बताया कि 2009 में समाजवादी पार्टी के लोगों ने कांग्रेस पार्टी से संपर्क किया और कहा कि उनसे समझौता कर लिया जाए, लेकिन कांग्रेस ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि आप अपना रास्ता चलिए और कांग्रेस अपने रास्ते चलेगी. इस पर मुलायम सिंह ने कहा कि "उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अकेले केवल पांच ही सीटें मिलेंगी, जिस पर हमने कहा कि पांच ही सही, उसी से शुरुआत करेंगे. लेकिन कल्याण सिंह के गले नहीं लगेंगे." समाजवादी पार्टी ने राजनीतिक फ़ायदे के लिए कल्याण सिंह को गले लगाया. लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को समाजवादी पार्टी से ज़्यादा सीटें दीं.
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि कांग्रेस पार्टी आम आदमी को, ग़रीब को विकास में शामिल करना चाहती है. वहीं विपक्षी पार्टियां टीवी पर सूट का विज्ञापन देखकर उल्टे-सीधे नारे देती हैं. चाहे मुलायम सिंह जी हों या मायावती जी हों, एक बार भी आपके बीच नहीं जाते. पांच सालों से मायावती जी मुख्यमंत्री हैं, क्या किसी ने एक बार भी उन्हें गांव में देखा है? लेकिन वह गांव में जाने से शर्माती हैं। यहां के गांवों में पानी नहीं है, लाईट नहीं है, सड़क नहीं है. जब तक आपके नेता आपके बीच नहीं जाएंगे,  आपका हाथ नहीं पकड़ेंगे, तब तक यह प्रदेश आगे नहीं जाएगा.
राहुल गांधी ने एक वाक़िया सुनाते हुए कहा कि कुछ दिनों पहले अपने दौरे में मैंने देखा कि सड़क के किनारे इंडिया शाईनिंग की तरह अस्पताल चमकाने के लिए पेंटिंग हो रही थी. मैंने पूछा कि "अंदर जा सकता हूं तो वो बोले कि आप सांसद हैं, अंदर जा सकते हैं, आपका अधिकार है."  राहुल गांधी ने चुटकी ली कि मगर यहां आम आदमी को अस्पताल के अंदर जाने का अधिकार नहीं है.
उन्होंने बताया कि अस्पताल में डॉक्टर नहीं थे, मरीज़ भी नहीं थे. अस्पताल के अंदर तीन-चार कुत्ते घूम रहे थे. शायद मायावती जी को पता भी नहीं है कि यूपी में अस्पताल चल रहे हैं कि नहीं. जनता के बीच से आवाज़ आई कि उन्हें कमीशन का पता है. इस पर राहुल गांधी ने मुस्कुराते हुए कहा कि ‘‘ज़रूर पता होगा. हम हज़ारों करोड़ रुपये भेजते हैं. पढ़ाई को ले लीजिये. हमने कहा कि अमीरों के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, ग़रीबों के बच्चो को भी पढ़ना चाहिए. हमने उन्हें शिक्षा का अधिकार दिया, स्कूल में भोजन दिया. सूचना का अधिकार दिया. अब हम खाने का भी अधिकार देना चाहते हैं. हर ग़रीब परिवार को 35 किलो अनाज देना चाहते हैं. विपक्ष कहता है कि पैसा कहां से आएगा?"
राहुल गांधी ने कहा कि "हमने रोज़गार का अधिकार मनरेगा दिया, क्या यह किसी जाति के लिए है? हर जाति-वर्ग के व्यक्ति को 12000 रुपये प्रति वर्ष रोज़गार के लिए देते हैं, तो मायावती जी खड़ी हो जाती हैं और कहती हैं कि मनरेगा से किसी को फ़ायदा नहीं. वहीं केरल, हरियाणा जाकर पूछिये तो लोग बताएंगे कि मनरेगा से पहली बार गांवों में रोज़गार आया. जब तक उत्तर प्रदेश में ऐसी सरकार रहेगी, तब तक किसी को फ़ायदा नहीं हो सकता."
राहुल गांधी ने बताया कि "कांग्रेस ने सच्चर कमीशन बनाया और उसकी रिपोर्ट लागू की. सच्चर कमीशन की रिपोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक भाइयों को मदद की ज़रूरत है. उनके बच्चों को छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए. क्या किसी को मिली? क्या पैसा आप तक पहुंचा? नहीं. विपक्षी कहते हैं कि पैसा कहां से आएगा? और जब ये पैसा हम देते हैं तो यहां पैसा चोरी हो जाता है, इससे नुक़सान यूपी की जनता का होता है."
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि "हमने अल्पसंख्यकों को साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण दिया, तो मुलायम सिंह जी ने कहा कि कम है, 18 प्रतिशत होना चाहिए. जबकि इससे पहले पत्रकारों ने मुलायम सिंह जी से इस बारे में सवाल किया था, तो वे कुछ नहीं बोले, सिर्फ़ ख़ामोशी थी. अब जब हमने लागू कर दिया तो कह रहे हैं कि कम है. अगर उनको लगता है कि साढ़े चार प्रतिशत कम है और इसे 18 प्रतिशत होना चाहिए तो वह इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल क्यों नहीं करते? लेकिन मुलायम सिंह जी ऐसा करेंगे नहीं. "हम जो कहते हैं, वो करते हैं.  किसानों की बात की, उन्हें साठ हज़ार करोड़ रुपये क़र्ज़ की माफ़ी दी. उनके लिए बैंक का रास्ता दोबारा खोला. बुनकरों की बात की, तीन हज़ार करोड़ रुपये का पैकेज दिया. मनरेगा की बात की, पैसा दिया और दे रहे हैं. ये पैसा हमारा नहीं है, आपके पसीने की कमाई का पैसा है. हिन्दुस्तान में प्रगति आसमान से नहीं आई, अमेरिका, जापान के लोग नहीं लाए, यह प्रगति यहां का ग़रीब आदमी दिन-रात काम करके लाता है. भट्टा-पारसौल में किसानों की लड़ाई लड़ी. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने क्या किया? कुछ नहीं."
राहुल गांधी ने किसानों का ज़िक्र करते हुए कहा कि "वहीं किसान अपनी ज़मीन की सही क़ीमत मांगता है तो उस पर गोली चलती है, महिलाओं पर अत्याचार होता है. अधिकारी मुझसे कहते हैं कि यहां क्यों आये, यहां किसान नहीं नक्सली हैं. बाक़ी लोगों ने कहा कि यहां कुछ हुआ ही नहीं. उन्होंने बताया कि जब मैंने कहा कि यहां पर महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ है तो इस बात को ग़लत बताया गया, जबकि बाद में ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा."
उन्होंने कहा कि "आप लोग महाराष्ट्र में काम करने जाते हो, तो शिव सेना के लोग मारते हैं. उत्तर प्रदेश के नेता सिर्फ़ आज की सोचते हैं, पैसा लूटने की सोचते हैं. मनरेगा का पैसा दिया, स्वास्थ्य के लिए पैसा दिया, करोड़ों खा गए. महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा दिल्ली सहित दूरदराज के लद्दाख, में भी यूपी के युवा काम करते मिलते हैं, मगर उन्हें यहां काम नहीं मिलता."
कांग्रेस पार्टी की दूरदृष्टि के बारे में बताते हुए उन्होंने लोगों से कहा कि "जिस मोबाईल का इस्तेमाल आज तमाम लोग कर रहे हैं,  उसकी योजना सन 1985 में स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी द्वारा तैयार की गई थी. बिना दूर की सोच के बदलाव नहीं हो सकता और न ही देश का विकास हो सकता है."
राहुल गांधी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अभी युवाओं के हाथ बंधे हुए हैं और जिस दिन युवाओं के हाथ खुल जाएंगे, जिस दिन लोगों तक उनके हक़  का पैसा पहुंचने लगेगा, उस दिन से उत्तर प्रदेश बहुत तेज़ गति से विकास करने लगेगा. लोग पूछेंगे कि यहां अस्पताल कहां से आए, रोज़गार कहां से आया और विकास कैसे हुआ? आप लोग भी देखेंगे.
उन्होंने कहा कि मुझे जितना प्यार उत्तर प्रदेश की जनता से मिला है, वो न तो पहले कभी मिला था और शायद न ही कभी मिलेगा. उन्होंने कहा कि "मैं यहां मौजूद तमाम युवाओं के साथ खड़ा होने के लिए आया हूं और जब तक उत्तर प्रदेश पूरी तरह से बदलेगा नहीं, तब तक मै हटूंगा नहीं. उत्तर प्रदेश में अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो यहां के लोगों के लिए, केंद्र सरकार के लिए, उनकी अपनी ख़ुद की उत्तर प्रदेश की सरकार भी काम करेगी."


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