-फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जल्द ही पार्टी संगठन और सरकार में एक बड़ी भूमिका में नज़र आएंगे. पार्टी संगठन में उनकी बड़ी भूमिका पर काम शुरू हो चुका है. अब तक राहुल ने सिर्फ़ उत्तर प्रदेश तक ही ख़ुद को सीमित रखा था, लेकिन अब वह इस साल होने वाले तीन राज्यों गुजरात, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा के विधानसभा चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाएंगे. उन्होंने इन राज्यों में टिकटों के वितरण से लेकर चुनावी रणनीति तय करने में अपनी युवा टीम को ज़िम्मेदारी सौंप कर इसके साफ़ संकेत दे दिए हैं कि इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में उनका पूरा दख़ल रहेगा. हिमाचल प्रदेश के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी में शीला दीक्षित को अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि लंबे वक़्त तक राहुल के साथ संबद्ध सचिव रहे गृह राज्यमंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को सदस्य के तौर पर रखा गया है. इसी तरह त्रिपुरा में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग राज्यमंत्री जितिन प्रसाद टिकट बटवारे का काम देखेंगे. गुजरात में स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री डॉ. सीपी जोशी को बनाया गया है, जबकि टीम राहुल के प्रमुख सदस्य पेट्रोलियम राज्यमंत्री आरपीएन सिंह इसमें सदस्य के तौर पर रहेंगे.
वहीं, सरकार में सोनिया गांधी की ख्वाहिश के मुताबिक़ राहुल के प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री के नए किरदार को मंज़ूर करने पर फ़िलहाल मंथन जारी है. पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती हैं कि राहुल अब सरकार में प्रशासनिक अनुभव भी लें. राहुल संगठन में पिछले आठ साल से सक्रिय हैं. आगामी लोकसभा चुनाव से पहले वह प्रशासनिक स्तर पर भी अनुभवी हो जाएं तो बेहतर है. इस नज़रिये से सोनिया और उनके सलाहकार चाहते हैं कि राहुल को प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री के तौर पर भूमिका निभानी चाहिए. इससे उन्हें सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यप्रणाली और उनकी ज़िम्मेदारियों का अनुभव होगा. प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा उनके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का विकल्प भी तलाशा गया है, मगर राहुल सरकार में किस स्वरूप में शामिल होंगे, इस पर अभी फ़ैसला नहीं हो सका है.
कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अलावा अब पार्टी के वरिष्ठ नेता भी यह चाहते हैं कि राहुल गांधी जल्द ही सरकार और संगठन में बड़ी भूमिका निभाएं. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तो पहले ही साफ़ कह चुकी हैं कि यह फ़ैसला राहुल को करना है. सोनिया गांधी के इस बयान के बाद राहुल ने भी कह दिया कि वह कोई भी बड़ी ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं. अब यह फ़ैसला पार्टी और सरकार को करना है कि वे राहुल को क्या ज़िम्मेदारी देना चाहते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाए जाने की मांग का समर्थन किया है. चिदंबरम ने कहा है कि वह राहुल गांधी को किसी भी पद पर आसीन किए जाने का स्वागत करेंगे. उन्होंने केरल के एक प्रमुख समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि राहुल गांधी सरकार, पार्टी या सदन में कोई भी पद स्वीकार कर सकते हैं. मुझे यक़ीन है कि वह इनमें से किसी भी पद पर अच्छा काम करेंगे. चिदंबरम ने कहा कि गांधी को किस पद पर नियुक्त किया जाएगा, इसका फ़ैसला कांग्रेस अध्यक्ष को प्रधानमंत्री की सलाह से करना है. उधर, राहुल गांधी को बड़ी भूमिका देने बढ़ती मांग के बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का कहना है कि 2014 लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए उन्हें संगठन में आना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस वक़्त हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती आम चुनाव है. इसलिए राहुल को सरकार की बजाय चुनाव की तैयारी के लिए पार्टी संगठन में आना चाहिए.
गौरतलब है कि हाल में कांग्रेस के दस सांसदों ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर राहुल गांधी को लोकसभा का नेता बनाए जाने की मांग की है. सांसदों ने पत्र में लिखा है कि यह वक़्त की ज़रुरत है, क्योंकि मौजूदा मुद्दों पर राहुल सबसे अधिक प्रभावी तरीक़े से बोल सकते हैं. सदन के बाहर और भीतर उनकी बेहद ज़रूरत है. सांसदों ने कहा है कि देश की पचास फ़ीसदी से ज़्यादा युवा आबादी किसी युवा को ही अपना नेता देखना चाहती है. हाल के वर्षों में राहुल सबसे अधिक स्वीकार्य नेता के रूप में उभरे हैं. ऐसे में पार्टी अध्यक्ष को फ़ौरन फ़ैसला करना चाहिए. चिट्ठी में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद राहुल को नेतृत्व सौंपना और ज़रूरी हो गया है.
सीएनएन-आईबीएन और सीएनबीसी-टीवी 18 टीवी नेटवर्क के सर्वे के मुताबिक़ ज़्यादातर लोगों की राय है कि राहुल गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री बनना चाहिए. देश के 20 राज्यों में किए गए इस सर्वे के मुताबिक़ कांग्रेस शासित राज्यों के 42 फ़ीसदी लोग चाहते हैं कि राहुल देश की कमान संभालें, जबकि 32 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि जल्द ही मनमोहन सिंह की जगह ले लेनी चाहिए. कुल 39 हज़ार लोगों में से महज़ 22 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद पर बने रहना चाहिए. वहीं 54 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि राहुल ग़रीबों के हितैषी और भरोसेमंद नेता हैं. उनके सामने कांग्रेस पार्टी का कोई नेता नहीं टिक पाया.
दरअसल, राहुल की सादगी ही उन्हें लोकप्रिय और ख़ास बनाती है. महलों में रहकर भी वह आम आदमी के बीच घुलमिल जाते हैं. जब भ्रष्टाचार और महंगाई के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का चौतरफ़ा विरोध हो रहा था, ऐसे वक़्त में राहुल ने गांव-गांव जाकर जनमानस से एक भावनात्मक रिश्ता क़ायम किया. राहुल ने लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं छो़ड़ा. भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर राहुल गांधी द्वारा निकाली गई पदयात्रा से सियासी हलक़ों में चाहे जो प्रतिक्रिया हुई हो, लेकिन यह हक़ीक़त है कि राहुल ने ग्रामीणों के साथ जो वक़्त बिताया, उसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे. इन लोगों के लिए यह किसी सौग़ात से कम नहीं था कि उन्हें युवराज के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला.
अपनी पदयात्रा के दौरान पसीने से बेहाल राहुल ने शाम होते ही गांव बांगर के किसान विजय पाल की खुली छत पर स्नान किया. फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने घर पर बनी रोटी, दाल और सब्ज़ी खाई. ग्रामीणों ने उन्हें पूड़ी-सब्ज़ी की पेशकश की, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. गांव में बिजली की क़िल्लत रहती है, इसलिए ग्रामीणों ने जेनरेटर का इंतज़ाम किया था, लेकिन राहुल ने पंखा भी बंद करवा दिया. वह एक आम आदमी की तरह ही बांस और बांदों की चारपाई पर सोए. यह कोई पहला मौक़ा नहीं था, जब राहुल गांधी इस तरह एक आम आदमी की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे. इससे पहले भी वह रोड शो कर चुके हैं और उन्हें इस तरह के माहौल में रहने की आदत है. कभी वह किसी दलित के घर भोजन करते हैं तो कभी किसी मज़दूर से साथ ख़ुद ही परात उठाकर मिट्टी ढोने लगते हैं. राहुल का आम लोगों से मिलने-जुलने का यह जज़्बा उन्हें लोकप्रिय बना रहा है. राहुल जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने के लिए, उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि "हां, मैं ग़रीबों का दुख-दर्द देखकर, प्रदेश की दुर्दशा देखकर पागल हो गया हूं. कोई कहता है कि राहुल गांधी अभी बच्चा है, वह क्या जाने राजनीति क्या होती है. तो मेरा कहना है कि हां, मुझे उनकी तरह राजनीति करनी नहीं आती. मैं सच्चाई और साफ़ नीयत वाली राजनीति करना चाहता हूं. मुझे उनकी राजनीति सीखने का शौक़ भी नहीं है. मायावती कहती हैं राहुल नौटंकीबाज़ है. तो मेरा कहना है कि अगर ग़रीबों का हाल जानना, उनके दुख-दर्द को समझना, नाटक है तो राहुल गांधी यह नाटक ताउम्र करता रहेगा.’’
राहुल के विरोधी तर्क देते हैं कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा में कोई करिश्मा नहीं कर पाए. इनका ऐसा सोचना सही नहीं है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस की जो हालत है, उसे देखते यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि अगर यहां राहुल ने प्रचार न किया होता तो, कांग्रेस के लिए खाता खोलना भी मुश्किल हो जाता. उन्होंने 48 दिन उत्तर प्रदेश में गुज़ारे और 211 जनसभाएं कीं. अगर राहुल हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते तो कहा जा सकता था कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक होने के बावजूद उन्होंने पार्टी उम्मीदवारों के लिए कुछ नहीं किया. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का यह कहना बिलकुल सही था कि अगर उत्तर प्रदेश में चुनाव नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आते हैं, तो इसके लिए राहुल गांधी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि एक नेता माहौल बनाता है. इस माहौल को वोट और सीटों में तब्दील करना उम्मीदवारों और संगठन का काम है. इस चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत मेहनत की है. इसे किसी भी सूरत में झुठलाया नहीं जा सकता है. राहुल के हाथ में कोई जादू की छड़ी तो नहीं है कि वह पल भर में हार को जीत में बदल दें. उत्तर प्रदेश कांग्रेस में जिस तरह से सीटों के बंटवारे को लेकर बवाल हुआ. बाहरी उम्मीदवारों को लेकर सवाल उठे और अपनों को टिकट दिलाने को लेकर अंदरूनी गुटबाज़ी सामने आई. हालांकि राहुल ने हालात को बहुत संभाला. राहुल ही बदौलत ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार बढ़ा. पार्टी के वोट बैंक में इज़ाफ़ा हुआ. क़ाबिले-गौर यह भी है कि कांग्रेस नेताओं की फ़िज़ूल की बयानबाज़ी और अति आत्मविश्वास ने भी पार्टी को नुक़सान पहुंचाया. तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि अगर कांग्रेस को उम्मीद के मुताबिक़ कामयाबी मिल जाती तो पार्टी नेता और ज़्यादा मगरूर हो जाते. ऐसे में 2014 के लोकसभा में कांग्रेस को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता.
बहरहाल, कांग्रेस को इस हार से सबक़ लेते हुए पार्टी संगठन को मज़बूत बनाना चाहिए. राहुल को यह नहीं भूलना चाहिए कि जंग जांबाज़ सिपाहियों के दम पर जीती जाती है, मौक़ापरस्तों के सहारे नहीं. कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को कांग्रेस की बुनियाद मज़बूत करनी होगी. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर कांग्रेसी बिना किसी परेशानी के उनसे मिल सके. उनके सामने अपनी बात रख सकें. उन्हें उन कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतना होगा, जो किसी भी वजह से पार्टी से दूर होते जा रहे हैं... अगर राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को मज़बूत करने में कामयाब हो गए तो फिर कांग्रेस के लिए आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतना मुश्किल नहीं है.