फ़िरदौस ख़ान
ये कहानी है दिल्ली के ’शहज़ादे’ और हिसार की ’शहज़ादी’ की. उनकी मुहब्बत की... गूजरी महल की तामीर का तसव्वुर सुलतान फ़िरोज़शाह तुगलक़ ने अपनी महबूबा के रहने के लिए किया था...यह किसी भी महबूब का अपनी महबूबा को परिस्तान में बसाने का ख़्वाब ही हो सकता था और जब गूजरी महल की तामीर की गई होगी...तब इसकी बनावट, इसकी नक्क़ाशी और इसकी ख़ूबसूरती को देखकर ख़ुद वह भी इस पर मोहित हुए बिना न रह सका होगा...
हरियाणा के हिसार क़िले में स्थित गूजरी महल आज भी सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की अमर प्रेमकथा की गवाही दे रहा है. गूजरी महल भले ही आगरा के ताजमहल जैसी भव्य इमारत न हो, लेकिन दोनों की पृष्ठभूमि प्रेम पर आधारित है. ताजमहल मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज़ की याद में 1631 में बनवाना शुरू किया था, जो 22 साल बाद बनकर तैयार हो सका. हिसार का गूजरी महल 1354 में फ़िरोज़शाह तुग़लक ने अपनी प्रेमिका गूजरी के प्रेम में बनवाना शुरू किया, जो महज़ दो साल में बनकर तैयार हो गया. गूजरी महल में काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है, जबकि ताजमहल बेशक़ीमती सफ़ेद संगमरमर से बनाया गया है. इन दोनों ऐतिहासिक इमारतों में एक और बड़ी असमानता यह है कि ताजमहल शाहजहां ने मुमताज़ की याद में बनवाया था. ताज एक मक़बरा है, जबकि गूजरी महल फिरोज़शाह तुग़लक ने गूजरी के रहने के लिए बनवाया था, जो महल ही है.
गूजरी महल की स्थापना के लिए बादशाह फ़िरोज़शाह तुग़लक ने क़िला बनवाया. यमुना नदी से हिसार तक नहर लाया और एक नगर बसाया. क़िले में आज भी दीवान-ए-आम, बारादरी और गूजरी महल मौजूद हैं. दीवान-ए-आम के पूर्वी हिस्से में स्थित कोठी फ़िरोज़शाह तुग़लक का महल बताई जाती है. इस इमारत का निचला हिस्सा अब भी महल-सा दिखता है. फ़िरोज़शाह तुग़लक के महल की बंगल में लाट की मस्जिद है. अस्सी फ़ीट लंबे और 29 फ़ीट चौड़े इस दीवान-ए-आम में सुल्तान कचहरी लगाता था. गूजरी महल के खंडहर इस बात की निशानदेही करते हैं कि कभी यह विशाल और भव्य इमारत रही होगी.
सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की प्रेमगाथा बड़ी रोचक है. हिसार जनपद के ग्रामीण इस प्रेमकथा को इकतारे पर सुनते नहीं थकते. यह प्रेम कहानी लोकगीतों में मुखरित हुई है. फ़िरोज़शाह तुग़लक दिल्ली का सम्राट बनने से पहले शहज़ादा फ़िरोज़ मलिक के नाम से जाने जाते थे. शहज़ादा अकसर हिसार इलाक़े के जंगल में शिकार खेलने आते थे. उस वक़्त यहां गूजर जाति के लोग रहते थे. दुधारू पशु पालन ही उनका मुख्य व्यवसाय था. उस काल में हिसार क्षेत्र की भूमि रेतीली और ऊबड़-खाबड़ थी. चारों तरफ़ घना जंगल था. गूजरों की कच्ची बस्ती के समीप पीर का डेरा था. आने-जाने वाले यात्री और भूले-भटके मुसाफ़िरों की यह शरणस्थली थी. इस डेरे पर एक गूजरी दूध देने आती थी. डेरे के कुएं से ही आबादी के लोग पानी लेते थे. डेरा इस आबादी का सांस्कृतिक केंद्र था.
एक दिन शहज़ादा फ़िरोज़ शिकार खेलते-खेलते अपने घोड़े के साथ यहां आ पहुंचा. उसने गूजर कन्या को डेरे से बाहर निकलते देखा, तो उस पर मोहित हो गया. गूजर कन्या भी शहज़ादा फ़िरोज़ से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. अब तो फ़िरोज़ का शिकार के बहाने डेरे पर आना एक सिलसिला बन गया. फ़िरोज़ ने गूजरी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, तो उस गूजर कन्या ने विवाह की मंज़ूरी तो दे दी, लेकिन दिल्ली जाने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वह अपने बूढ़े माता-पिता को छोड़कर नहीं जा सकती. फ़िरोज़ ने गूजरी को यह कहकर मना लिया कि वह उसे दिल्ली नहीं ले जाएगा.
1309 में दयालपुल में जन्मा फ़िरोज़ 23 मार्च 1351 को दिल्ली का सम्राट बना. फ़िरोज़ की मां हिन्दू थी और पिता तुर्क मुसलमान था. सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक ने इस देश पर साढ़े 37 साल शासन किया. उसने लगभग पूरे उत्तर भारत में कलात्मक भवनों, क़िलों, शहरों और नहरों का जाल बिछाने में ख्याति हासिल की. उसने लोगों के लिए अनेक कल्याणकारी काम किए. उसके दरबार में साहित्यकार, कलाकार और विद्वान सम्मान पाते थे.
दिल्ली का सम्राट बनते ही फ़िरोज़शाह तुग़लक ने महल हिसार इलाक़े में महल बनवाने की योजना बनाई. महल क़िले में होना चाहिए, जहां सुविधा के सब सामान मौजूद हों. यह सोचकर उसने क़िला बनवाने का फ़ैसला किया. बादशाह ने ख़ुद ही करनाल में यमुना नदी से हिसार के क़िले तक नहरी मार्ग की घोड़े पर चढ़कर निशानदेही की थी. दूसरी नहर सतलुज नदी से हिमालय की उपत्यका से क़िले में लाई गई थी. तब जाकर कहीं अमीर उमराओं ने हिसार में बसना शुरू किया था.
किवदंती है कि गूजरी दिल्ली आई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद अपने घर लौट आई. दिल्ली के कोटला फ़िरोज़शाह में गाईड एक भूल-भूलैया के पास गूजरी रानी के ठिकाने का भी ज़िक्र करते हैं. तभी हिसार के गूजरी महल में अद्भुत भूल-भूलैया आज भी देखी जा सकती है.
क़ाबिले-ग़ौर है कि हिसार को फ़िरोज़शाह तुग़लक के वक़्त से हिसार कहा जाने लगा, क्योंकि उसने यहां हिसार-ए-फ़िरोज़ा नामक क़िला बनवाया था. 'हिसार' फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है 'क़िला'. इससे पहले इस जगह को 'इसुयार' कहा जाता था. अब गूजरी महल खंडहर हो चुका है. इसके बारे में अब शायद यही कहा जा सकता है-
हरियाणा के हिसार क़िले में स्थित गूजरी महल आज भी सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की अमर प्रेमकथा की गवाही दे रहा है. गूजरी महल भले ही आगरा के ताजमहल जैसी भव्य इमारत न हो, लेकिन दोनों की पृष्ठभूमि प्रेम पर आधारित है. ताजमहल मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज़ की याद में 1631 में बनवाना शुरू किया था, जो 22 साल बाद बनकर तैयार हो सका. हिसार का गूजरी महल 1354 में फ़िरोज़शाह तुग़लक ने अपनी प्रेमिका गूजरी के प्रेम में बनवाना शुरू किया, जो महज़ दो साल में बनकर तैयार हो गया. गूजरी महल में काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है, जबकि ताजमहल बेशक़ीमती सफ़ेद संगमरमर से बनाया गया है. इन दोनों ऐतिहासिक इमारतों में एक और बड़ी असमानता यह है कि ताजमहल शाहजहां ने मुमताज़ की याद में बनवाया था. ताज एक मक़बरा है, जबकि गूजरी महल फिरोज़शाह तुग़लक ने गूजरी के रहने के लिए बनवाया था, जो महल ही है.
गूजरी महल की स्थापना के लिए बादशाह फ़िरोज़शाह तुग़लक ने क़िला बनवाया. यमुना नदी से हिसार तक नहर लाया और एक नगर बसाया. क़िले में आज भी दीवान-ए-आम, बारादरी और गूजरी महल मौजूद हैं. दीवान-ए-आम के पूर्वी हिस्से में स्थित कोठी फ़िरोज़शाह तुग़लक का महल बताई जाती है. इस इमारत का निचला हिस्सा अब भी महल-सा दिखता है. फ़िरोज़शाह तुग़लक के महल की बंगल में लाट की मस्जिद है. अस्सी फ़ीट लंबे और 29 फ़ीट चौड़े इस दीवान-ए-आम में सुल्तान कचहरी लगाता था. गूजरी महल के खंडहर इस बात की निशानदेही करते हैं कि कभी यह विशाल और भव्य इमारत रही होगी.
सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की प्रेमगाथा बड़ी रोचक है. हिसार जनपद के ग्रामीण इस प्रेमकथा को इकतारे पर सुनते नहीं थकते. यह प्रेम कहानी लोकगीतों में मुखरित हुई है. फ़िरोज़शाह तुग़लक दिल्ली का सम्राट बनने से पहले शहज़ादा फ़िरोज़ मलिक के नाम से जाने जाते थे. शहज़ादा अकसर हिसार इलाक़े के जंगल में शिकार खेलने आते थे. उस वक़्त यहां गूजर जाति के लोग रहते थे. दुधारू पशु पालन ही उनका मुख्य व्यवसाय था. उस काल में हिसार क्षेत्र की भूमि रेतीली और ऊबड़-खाबड़ थी. चारों तरफ़ घना जंगल था. गूजरों की कच्ची बस्ती के समीप पीर का डेरा था. आने-जाने वाले यात्री और भूले-भटके मुसाफ़िरों की यह शरणस्थली थी. इस डेरे पर एक गूजरी दूध देने आती थी. डेरे के कुएं से ही आबादी के लोग पानी लेते थे. डेरा इस आबादी का सांस्कृतिक केंद्र था.
एक दिन शहज़ादा फ़िरोज़ शिकार खेलते-खेलते अपने घोड़े के साथ यहां आ पहुंचा. उसने गूजर कन्या को डेरे से बाहर निकलते देखा, तो उस पर मोहित हो गया. गूजर कन्या भी शहज़ादा फ़िरोज़ से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. अब तो फ़िरोज़ का शिकार के बहाने डेरे पर आना एक सिलसिला बन गया. फ़िरोज़ ने गूजरी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, तो उस गूजर कन्या ने विवाह की मंज़ूरी तो दे दी, लेकिन दिल्ली जाने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वह अपने बूढ़े माता-पिता को छोड़कर नहीं जा सकती. फ़िरोज़ ने गूजरी को यह कहकर मना लिया कि वह उसे दिल्ली नहीं ले जाएगा.
1309 में दयालपुल में जन्मा फ़िरोज़ 23 मार्च 1351 को दिल्ली का सम्राट बना. फ़िरोज़ की मां हिन्दू थी और पिता तुर्क मुसलमान था. सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक ने इस देश पर साढ़े 37 साल शासन किया. उसने लगभग पूरे उत्तर भारत में कलात्मक भवनों, क़िलों, शहरों और नहरों का जाल बिछाने में ख्याति हासिल की. उसने लोगों के लिए अनेक कल्याणकारी काम किए. उसके दरबार में साहित्यकार, कलाकार और विद्वान सम्मान पाते थे.
दिल्ली का सम्राट बनते ही फ़िरोज़शाह तुग़लक ने महल हिसार इलाक़े में महल बनवाने की योजना बनाई. महल क़िले में होना चाहिए, जहां सुविधा के सब सामान मौजूद हों. यह सोचकर उसने क़िला बनवाने का फ़ैसला किया. बादशाह ने ख़ुद ही करनाल में यमुना नदी से हिसार के क़िले तक नहरी मार्ग की घोड़े पर चढ़कर निशानदेही की थी. दूसरी नहर सतलुज नदी से हिमालय की उपत्यका से क़िले में लाई गई थी. तब जाकर कहीं अमीर उमराओं ने हिसार में बसना शुरू किया था.
किवदंती है कि गूजरी दिल्ली आई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद अपने घर लौट आई. दिल्ली के कोटला फ़िरोज़शाह में गाईड एक भूल-भूलैया के पास गूजरी रानी के ठिकाने का भी ज़िक्र करते हैं. तभी हिसार के गूजरी महल में अद्भुत भूल-भूलैया आज भी देखी जा सकती है.
क़ाबिले-ग़ौर है कि हिसार को फ़िरोज़शाह तुग़लक के वक़्त से हिसार कहा जाने लगा, क्योंकि उसने यहां हिसार-ए-फ़िरोज़ा नामक क़िला बनवाया था. 'हिसार' फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है 'क़िला'. इससे पहले इस जगह को 'इसुयार' कहा जाता था. अब गूजरी महल खंडहर हो चुका है. इसके बारे में अब शायद यही कहा जा सकता है-
सुनने की फुर्सत हो तो आवाज़ है पत्थरों में
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियां बोलती हैं...