फ़िरदौस ख़ान
बाल्मीकि बाघ अभयारण्य भारत का 18वां बाघ अभयारण्य और बिहार के पश्चिमी चम्पारन ज़िले के धुर उत्तरी भाग में स्थित बिहार का दूसरा बाघ अभयारण्य है. यह पर्यटन के लिए यह एक आकर्षण का केंद्र है. साल 1950 के शुरू तक बाल्मीकि नगर का विस्तृत वन क्षेत्र बत्तीहा राज और रामनगर राज के स्वामित्व में था. 1989 में मुख्य क्षेत्र को राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया. बिहार सरकार ने 1978 में 464.60 वर्ग किलोमीटर को बाल्मीकि वन्य जीव शरण स्थल अधिसूचित किया था. बाद में 1990 में 419.18 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र इस शरण स्थल में जोड़ दिया गया. इस प्रकार बाल्मीकि वन्यजीव शरण स्थल कुल 880.78 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है.
बाल्मीकि भू-भाग फटा-फटा और असमतल क्षेत्र है. यहां अकसर अत्याधिक भू-वैज्ञानिक संरचनाएं बनती रहती हैं. यहां खड़ी घाटियां हैं, चाकू के किनारे जैसी पर्वत श्रेणियां और प्रपाती दिवारें हैं जो कि जमीन के फिसलन और भूमि के कटाव से बनती हैं.
यहां बहने वाली छोटी-छोटी नदियों का सारा पानी इकट्ठा होकर महान गंडक और मसान नदियों में जमा होता है. ये नदियां और नाले एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर अपने मार्ग बदलते रहते हैं. किनारों की कटाव संभावित रेतीली और कच्ची जमीन के कारण पंचवाद, मानोर, बापसा और कापन जैसी मौसमी नदियां एक स्थान पर कटाव और दूसरे स्थान पर लाई हुई उस मिट्टी के जमाव का विचित्र स्वरूप प्रस्तुत करती हैं.
बाल्मीकि बाघ अभयारण्य भारत का 18वां बाघ अभयारण्य और बिहार के पश्चिमी चम्पारन ज़िले के धुर उत्तरी भाग में स्थित बिहार का दूसरा बाघ अभयारण्य है. यह पर्यटन के लिए यह एक आकर्षण का केंद्र है. साल 1950 के शुरू तक बाल्मीकि नगर का विस्तृत वन क्षेत्र बत्तीहा राज और रामनगर राज के स्वामित्व में था. 1989 में मुख्य क्षेत्र को राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया. बिहार सरकार ने 1978 में 464.60 वर्ग किलोमीटर को बाल्मीकि वन्य जीव शरण स्थल अधिसूचित किया था. बाद में 1990 में 419.18 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र इस शरण स्थल में जोड़ दिया गया. इस प्रकार बाल्मीकि वन्यजीव शरण स्थल कुल 880.78 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है.
बाल्मीकि भू-भाग फटा-फटा और असमतल क्षेत्र है. यहां अकसर अत्याधिक भू-वैज्ञानिक संरचनाएं बनती रहती हैं. यहां खड़ी घाटियां हैं, चाकू के किनारे जैसी पर्वत श्रेणियां और प्रपाती दिवारें हैं जो कि जमीन के फिसलन और भूमि के कटाव से बनती हैं.
यहां बहने वाली छोटी-छोटी नदियों का सारा पानी इकट्ठा होकर महान गंडक और मसान नदियों में जमा होता है. ये नदियां और नाले एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर अपने मार्ग बदलते रहते हैं. किनारों की कटाव संभावित रेतीली और कच्ची जमीन के कारण पंचवाद, मानोर, बापसा और कापन जैसी मौसमी नदियां एक स्थान पर कटाव और दूसरे स्थान पर लाई हुई उस मिट्टी के जमाव का विचित्र स्वरूप प्रस्तुत करती हैं.
0 Comments