पूरा दुख और आधा चांद

Posted Star News Agency Wednesday, March 10, 2010

पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद

किस मक़तल से गुजरा होगा
ऐसा सहमा-सहमा चांद

यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तनहा चांद

मेरे मुंह हो किस हैरत से
देख रहा है भोला चांद

इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चांद

इतने रोशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चांद

जब पानी में चेहरा देखा
तूने किसको सोचा चांद

बरगद की एक शाख हटाकर
जाने किसको झांका चांद

रात के शाने पर सर रखे
देख रहा है सपना चांद

सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चांद

रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चांद
-परवीन शाकिर

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