ईश्वर धामु
चंडीगढ़. हरियाणा में स्थानीय निकाए चुनावों की प्रक्रिया आज से शुरू हो गई है। प्रदेश का सत्तासीन दल कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी पार्टी इनेलो ने नगर परिषदों के चुनाव पार्टी चिन्ह पर न लड़ने का ऐलान कर दिया है, लेकिन इन चुनाव में सक्रिए परोक्ष भागीदारी बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने वार्ड स्तर तक तालमेल कमेटियां गठित करने का निर्णय लिया है। इन दोनो प्रमुख राजनीतिक दलों की पार्टी स्तर पर प्रत्यक्ष भागीदारी न होने के कारण स्थानीय निकाए चुनावों में राजनीतिक हलचल कम ही रहेगी, लेकिन इस बार इन चुनावों में प्रदेश में तेजी से बढ़ता अग्रवाल वैश्य समाज नामक नव गठित सामाजिक संगठन अवश्य  सक्रिए भूमिका निभाएगा। अग्रवाल वैश्य समाज मतदाताओं को राजनीति की एक नई परिभाषा देने के प्रयास में दिखाई दे रहा है। समाज का प्रयास है कि अग्रवाल-वैश्य समाज की राजनीति में भागीदारी बढ़े। अपने लक्ष्य को पाने के दृढ़ संकल्प का इसी से पता लग जाता है कि अग्रवाल वैश्य समाज ने अपने गठन के केवल छह महीनों में ही प्रदेश की 90 विधानसभा क्षेत्रों में प्रधानों की नियुक्ति कर इकाईयों का गठन कर दिया है। यह संगठन विभिन्न अग्रवाल संस्थाओं से राष्ट्रीय स्तर पर जुड़े और हरियाणा के मुख्यमंत्री के मीडिया को-ऑर्डिनेटर रहे अशोक बुवानीवाला के नेतृत्व में एक नई विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहा है। अभी तक हरियाणा के सामाजिक संस्थाओं के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी संगठन की इकाईयों का गठन विधानसभा क्षेत्र से मंडल स्तर तक किया गया हो? यहां यह भी कहना होगा कि अधिकांश संगठन तो किसी व्यक्ति विशेष के हित विशेष तक के लिए बनाए जाते हैं और हित पूरे होने के बाद संगठन का नाम लेने वाला कोई नहीं होता? मिली जानकारी के अनुसार ऐसा भी पहली बार हुआ है कि इस संस्था के संस्थापकों के अल्प प्रयासों से ही सदस्यता पाने के लिए वैश्य समाज के प्रतिष्ठित लोग स्वंय आगे आ रहे हैं।

      अग्रवाल वैश्य समाज का मानना है कि जब तक समाज की राजनीति में सक्रिए भागीदारी नहीं होगा तब तक समाज का समुचित विकास सम्भव नहीं है । यह दुर्भाग्य माना जा रहा है कि एक समय में सत्ता का केन्द्र बिन्दू रहे अग्रवाल समाज की समय के साथ प्राथमिकताएं बदलती चली गई और परिणामतया पूरा समाज राजनीति के हासिए पर आ गया। हरियाणा में कभी अग्रवाल-वैश्य समाज के कभी 14 विधायक होते थे परन्तु आज यह संख्या मात्र छह के आंकड़े  पर आकर  सिमट गई। अग्रवाल समाज ने अपने को व्यापार तक सिमित कर लिया। इसका भुगतान समाज को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक शोषण के रूप में चुकाना पड़ रहा है। अग्रवाल वैश्य समाज के नेतृत्व का कहना है कि जब तक समाज की राजनीति में भागीदारी नहीं बढ़ेगी, तब तक यें शोषण इसी तरह चलता रहेगा। संगठन ने केंद्र बिंदू युवा पीढ़ी को रखा है। इससे यह तो साफ हो जाता है कि अग्रवाल वैश्य समाज दीर्धकालिन योजनाओं पर काम कर रहा है। ऐसे में इनका राजनैतिक जागरूकता का लक्ष्य भी सही जान पड़ता है। इन्ही लक्ष्यों और मान्यताओं को लेकर समाज विभिन्न शहरों में प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन कर रहा है। समाज अभी तक भिवानी, जगाधरी और फतेहाबाद में राजनीति पर कार्यशालाओं का सफल आयोजन कर चुका है। अब चोथी कार्यशाला 9 मई को गुड़गांव में आयोजित की जा रही है। इन कार्यशालाओं के चर्चा विषयों में राजनीति शब्द का अवश्य समावेश रहता है। इन कार्यशालाओं में प्रतिभागी वैश्यजनों को राजनीति पर टिप्स् देने के लिए राजनीति, साहित्य और शैक्षणिक क्षेत्रों से जानीमानी हस्तियां पहुंची हैं। इन कार्यशालाओं में एक विशेषता यह देखने में आई कि विषय वक्ता की अपनी व्यक्तिगत विचारधारा चाहे कोई भी रही है, परन्तु समाज के मंच पर आ कर उसने अपने को खुद की विचारधारा से दूर रख कर समाज कल्याण की बात की है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त साहित्यकार, पत्रकार एंव राजनीतिक चिंतक डाक्टर वेद प्रताप वैदिक ने तीन फरवरी को भिवानी में आयोजित पहली कार्यशाला में वैश्य समाज को एक नया विचार-सूत्र दिया कि अगर राजनीति में अपनी भागीदारी चाहते हों तो अपने वोट का प्रयोग अवश्य करें। उनका मानना था कि वैश्य समाज अकेला एक ऐसा समाज है, जिसके लोग अपने वोट का प्रयोग करने से बचते हैं। इस मानसिकता के पीछे चाहे उनकी सोच कोई भी हो? आसमान छू कर जमीन की राजनीति करने आए हरियाणा के गृह रायमंत्री गोपाल कांडा का कहना है कि अग्रवाल-वैश्य समाज के हर परिवार से एक व्यक्ति को राजनीति में अवश्य आना चाहिए।  इसी तरह पंजाब प्रदेश के पूर्व युवा कांग्रेस के अध्यक्ष एंव वर्तमान में सांसद विजय इंदर का मत है कि अग्रवाल समाज के लोग राजनीति में लक्ष्य पाने के लिए मेहनत नहीं करते, लेकिन जब राजनीतिक लाभ की बात आती है तो ऐसे व्यक्ति अपना बाया डॉटा हाथ में लिए लाईन में दिखाई अवश्य दे जाएंगे। युवा अग्र-वैश्य को इस मानसिकता को छोड़ मेहनत करनी होगी, तभी समाज को राजनीति में कुछ मिल सकता  है।

वैश्य समुदाय की राजनीति में सक्रिए भूमिका एंव भागीदारी का पक्षधर अग्रवाल वैश्य समाज के सामने अब स्थानीय निकाय के चुनाव किसी भी बड़ी चुनौति से कम नहीं है। दूसरे शब्दों में यें चुनाव समाज की यह पहली अग्नि परीक्षा हैं, क्योंकि संस्था के गठन को अभी यादा समय नहीं हुआ है और संगठन अपने शैशवकाल से ही गुजर रहा है। ऐसे में इन स्थानीय निकाय चुनावों में अग्रवाल वैश्य समाज अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाने में भी कामयाब हो जाता है तो यह वैश्य समाज के लिए किसी इतिहास से कम नहीं होगा।

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