सलीम अख्तर सिद्दीकी
मुसलमानों के लिए आंसू बहाने वाली सरकार की खुफिया एजेंसियों को मुसलमानों के चरित्र पर संदेह है। शायद इसीलिए वे मुसलमानों पर नजर रखने के लिए उनके फोन सुनती है, वह भी बगैर किसी इजाजत के। इस काम के लिए वह भारी भरकम रकम भी खर्च करती है। पिछले दिनों कुछ सत्ताधारी और विपक्षी नेताओं के फोन टेप होने की खबरें आयीं थी। इन खबरों पर खूब हंगामा हुआ। इसे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन बताया गया। लेकिन सच किसी ने नहीं बताया। सच यह है कि फोन टेप करने के सिस्टम मुस्लिम बाहुल्य शहरों में लगाने के लिए खरीदे गए थे। यह बात नहीं भी खुलती अगर कुछ नेताओं के फोन टेप होने की बात सामने नहीं आई होती। दरअसल, कारगिल युद्ध के बाद एक खुफिया संस्था 'नेशनल टैक्निकल रिसर्च ऑर्गनाईजेशन' (एनटीआरओ) 14 अप्रैल 2006 को वजूद में लायी गयी थी। इस खुफिया संस्था का मुख्य कार्य खुफिया जानकारी जुटाने के लिए तकनीकी सहायता करना है। यह खुफिया संस्था ऑफ-द-एयर जीएसएम मॉनीटरिंग उपकरण के जरिए फोन टेप करती है। यह उपरण दो किलोमीटर के दायरे में किसी भी मोबाइल फोन को टेप कर सकता है। इस उपकरण का कहीं भी प्रयोग किया जा सकता है। इस अनैतिक फोन टेप प्रणाली की खूबी यह है कि इसमें किसी की इजाजत लेने की जरुरत नहीं पड़ती। इस प्रणाली से एक्सचेन्ज को दरकिनार करके मोबाइल और टॉवर के बीच के सिगनल पकड़ कर फोन टेपिंग की जा सकती है। 7 करोड़ रुपए की लागत वाला यह सिस्टम केवल आवाज के नमून के आधार वार्तालाप को पकड़ने की क्षमता रखता है। अब क्योंकि खुफिया एजेंसियां बिना किसी अनुमति के फोन टेप करती हैं, इसलिए वे किसी के प्रति जवाबदेह भी नहीं है। हाय-हल्ला होने पर टेप किए गए फोन को डिलीट कर सकती हैं।
भारत में फोन टेप करने के इस तरह के उपकरण खरीदने की शुरुआत 2005-2006 में हुई थी। आज की तारीख में एनटीआरओ के पास कम से कम 6 ऐसे उपकरण मौजूद हैं, जिन्हें उसने दिल्ली में लगाया हुआ है। केन्द्रीय खुफिया एजेंसी (आईबी) के पास भी इस तरह के 8 उपकरण हैं। सवाल यह है कि क्या एक लोकतांत्रिक सरकार में किसी की बातचीत को सुनना मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है ? सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट के बहाने मुसलमानों को बहलाने वाली सरकार जवाब दे कि क्यों मुसलमानों के फोन सुने जा रहे हैं ? क्या यूपीए सरकार भी सभी मुसलमानों के चरित्र को संदिग्ध मानती है ? हमारा संविधान लोगों की आजादी और जिंदगी में हस्तक्षेप करने की बिल्कुल भी इजाजत नहीं देता। लेकिन हमारी खुफिया एजेंसियों को इससे कोई मतलब नहीं है। यहां तो खुफिया एजेंसियां धड़ल्ले से पूरे समुदाय को ही संदेह के घेरे में लेकर उनके फोन टेप कर रही है। हैरत की बात तो यह है कि मुसलमानों के फोन टेप एनटीआरओ नाम की वह संस्था कर रही है, जिसका स्वयं का चरित्र संदेहों के घेरे में है। एनटीआरओ पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के कई गंभीर आरोप है। सम्भवतः एनटीआरओ भारत की पहली खुफिया संस्था है, जिस पर लगे आरोपों की जांच महालेखा नियंत्रक वित्तीय अंकेक्षण कर रहा है।
मुसलमानों के लिए आंसू बहाने वाली सरकार की खुफिया एजेंसियों को मुसलमानों के चरित्र पर संदेह है। शायद इसीलिए वे मुसलमानों पर नजर रखने के लिए उनके फोन सुनती है, वह भी बगैर किसी इजाजत के। इस काम के लिए वह भारी भरकम रकम भी खर्च करती है। पिछले दिनों कुछ सत्ताधारी और विपक्षी नेताओं के फोन टेप होने की खबरें आयीं थी। इन खबरों पर खूब हंगामा हुआ। इसे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन बताया गया। लेकिन सच किसी ने नहीं बताया। सच यह है कि फोन टेप करने के सिस्टम मुस्लिम बाहुल्य शहरों में लगाने के लिए खरीदे गए थे। यह बात नहीं भी खुलती अगर कुछ नेताओं के फोन टेप होने की बात सामने नहीं आई होती। दरअसल, कारगिल युद्ध के बाद एक खुफिया संस्था 'नेशनल टैक्निकल रिसर्च ऑर्गनाईजेशन' (एनटीआरओ) 14 अप्रैल 2006 को वजूद में लायी गयी थी। इस खुफिया संस्था का मुख्य कार्य खुफिया जानकारी जुटाने के लिए तकनीकी सहायता करना है। यह खुफिया संस्था ऑफ-द-एयर जीएसएम मॉनीटरिंग उपकरण के जरिए फोन टेप करती है। यह उपरण दो किलोमीटर के दायरे में किसी भी मोबाइल फोन को टेप कर सकता है। इस उपकरण का कहीं भी प्रयोग किया जा सकता है। इस अनैतिक फोन टेप प्रणाली की खूबी यह है कि इसमें किसी की इजाजत लेने की जरुरत नहीं पड़ती। इस प्रणाली से एक्सचेन्ज को दरकिनार करके मोबाइल और टॉवर के बीच के सिगनल पकड़ कर फोन टेपिंग की जा सकती है। 7 करोड़ रुपए की लागत वाला यह सिस्टम केवल आवाज के नमून के आधार वार्तालाप को पकड़ने की क्षमता रखता है। अब क्योंकि खुफिया एजेंसियां बिना किसी अनुमति के फोन टेप करती हैं, इसलिए वे किसी के प्रति जवाबदेह भी नहीं है। हाय-हल्ला होने पर टेप किए गए फोन को डिलीट कर सकती हैं।
भारत में फोन टेप करने के इस तरह के उपकरण खरीदने की शुरुआत 2005-2006 में हुई थी। आज की तारीख में एनटीआरओ के पास कम से कम 6 ऐसे उपकरण मौजूद हैं, जिन्हें उसने दिल्ली में लगाया हुआ है। केन्द्रीय खुफिया एजेंसी (आईबी) के पास भी इस तरह के 8 उपकरण हैं। सवाल यह है कि क्या एक लोकतांत्रिक सरकार में किसी की बातचीत को सुनना मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है ? सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट के बहाने मुसलमानों को बहलाने वाली सरकार जवाब दे कि क्यों मुसलमानों के फोन सुने जा रहे हैं ? क्या यूपीए सरकार भी सभी मुसलमानों के चरित्र को संदिग्ध मानती है ? हमारा संविधान लोगों की आजादी और जिंदगी में हस्तक्षेप करने की बिल्कुल भी इजाजत नहीं देता। लेकिन हमारी खुफिया एजेंसियों को इससे कोई मतलब नहीं है। यहां तो खुफिया एजेंसियां धड़ल्ले से पूरे समुदाय को ही संदेह के घेरे में लेकर उनके फोन टेप कर रही है। हैरत की बात तो यह है कि मुसलमानों के फोन टेप एनटीआरओ नाम की वह संस्था कर रही है, जिसका स्वयं का चरित्र संदेहों के घेरे में है। एनटीआरओ पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के कई गंभीर आरोप है। सम्भवतः एनटीआरओ भारत की पहली खुफिया संस्था है, जिस पर लगे आरोपों की जांच महालेखा नियंत्रक वित्तीय अंकेक्षण कर रहा है।
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