फ़िरदौस ख़ान
भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में डेयरी उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है। हरियाणा में डेयरी उद्योग खासा फलफूल रहा है। हालांकि राज्य में दूध के प्रसंस्करण का अधिकतर काम निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। राज्य में इस समय दूध को प्रसंस्कृत करने के छोटे-बड़े 32 डेयरी प्लांट काम कर रहे हैं, जिनमें चार प्लांट सहकारी क्षेत्र और 28 निजी क्षेत्र के प्लांट हैं। राज्य का कुल दूध उत्पादन पिछले साल करीब 55 लाख मीट्रिक टन रहा है। हरियाणा पशुपालन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक राजय में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 660 ग्राम है, जो कि देश के औसत से काफी बेहतर है।
डेयरी विकास बोर्ड के प्लानिंग और प्रोक्योरमेंट विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि हरियाणा में डेयरी फार्म को दूध के लिए 280 प्रतिकिलोग फैट की कीमत दी जा रही है, जो उत्तर भारत में दूध के लिए सबसे अधिक है। राज्य में हर रोज 6 लाख लीटर से ज्यादा दूध पैदा करने की योज योजना बनाई गई है। इसके लिए जहां पशु पालकों और दूध उत्पादकों के लिए प्रोत्साहन योजनाएं चालू की गई हैंए वहीं दूध खरीदने के लिए हाई टेक डेयरियां स्थापित की जा रही हैं। इससे दूध की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार होगा।
कृषि पशुपालन मंत्री हरमोहिंदर सिंह चट्ठा के मुताबिक 6 करोड़ रुपये की लागत से आधुनिक तकनीक के प्रयोग वाली 400 हाई टेक डेयरियां स्थापित की जाएंगी। पिछले साल हरियाणा में हर रोज औसतन 5.14 लाख लीटर दूध का उत्पादन होता था। वैसे अधिकतम एक दिन में 8.61 लाख लीटर तक भी दूध का उत्पादन हुआ। अब इसे बढ़ाकर 9 लाख लीटर तक करने का प्रयास किया जाएगा। हाई टेक डेयरी योजना का उद्देश्य दुधारू पशुओं का पालन प्रबंधन वैज्ञानिक तरीकों से करते हुए शुध्द दूध उत्पादन करना और स्व-रोजगार के अवसरों को बढ़ाना है। इस योजना से परंपरागत डेरी व्यवसाय करने वाले छोटे डेयरी मालिकों को आधुनिक तरीकों का लाभ होगा। हाई टेक डेयरी इकाई स्थापित करने वालों को कम से कम 20 दुधारू पशु रखने होंगे। दूध उत्पादकों को बैंकों से लोन दिलवाने के लिए पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा प्रबंध किए गए हैं। एक डेयरी पर डेढ़ लाख रुपये तक या 15 फीसदी लोन सब्सिडी दी जाएगी। दूधारू पशुओं की बीमा किस्त पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाएगी।
राज्य में डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए गांवों में प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कर किसानों और पशुपालकों को विशेषज्ञों द्वारा पशुधन के संबंध में विस्तार से जानकारी दी जाती है। हरियाणा डेयरी डवलपमेंट कॉर्पोरेशन के महाप्रबंधक के. एल. अरोड़ा ने बताया कि इन प्रशिक्षण शिविरों में महिलाएं भी आती हैं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण महिलाओं के लिए डेयरी फार्मिंग एक बेहतर व्यवसाय है, जिसे अपनाकर वे अच्छी आमदनी हासिल कर सकती हैं। अनेक उपलब्धियों के बावजूद डेयरी उद्योग के समक्ष कुछ चुनौतियां भी हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के उद्देश्यों से पारंपारिपक तरीको के स्थान पर अत्याधुनिक उपकरण एवं तकनीक अपनाई जा रही है, ताकि दूध की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में वृध्दि हो सके। इतना ही नहीं दूध की खरीदए उत्पादन, रख-रखाव, गुणवत्ता नियंत्रण, शीतल भंडारण, पैकेजिंग, प्रसंस्करण, मार्केटिंग एवं प्रबंधन के लिए डेयरी टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं, जिसकी वजह से डेयरी टेक्नोलॉजी के डिग्रीधारको की मांग काफी बढ़ गई है।
डेयरी उद्योग जिसे वर्तमान समय मे भारत का स्पेशलाइज्ड क्षेत्र माना जाता है। इसके तहत डेयरी प्रोडक्ट इनकी प्राप्ति, संचय, प्रसंस्करण और वितरण शामिल है। इसमें मुख्य रोजगार उत्पादन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में है। उत्पादन प्रक्रिया के तहत दूध का संग्रह दुग्ध उत्पादक पशुओं की देखरेख आदि माने जाते हैं। उत्पादन प्रक्रिया के सुचारू प्रबंधन के लिए डेयरी वैज्ञानिक को की सेवाएं ली जाती हैं। ये वैज्ञानिक दुग्ध उत्पादन की मात्राए गुणवत्ताएवं पोषक तत्वों का मूल्यांकन एवं विभिन्न प्रकार के चारे और पर्यावरण परिस्थितियों के इस पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण करते हैं। ये डेयरी उत्पादक पशुओं के प्रबंधनए प्रजनन आदि पर शोध करते हैं। प्रसंस्करण का क्षेत्र वितरण या डेयरी उत्पादों के रूपांतरण से जुड़ा है। दुग्ध के प्लांट तक पहुंचने के बाद प्रसंस्करण का काम शुरू होता है। डेयरी तकनीक मुख्तय: प्रसंस्करण के तकनीकी और क्वालिटी कंट्रोल पक्ष से संबंधित तकनीक उत्पाद संरक्षण तथा दुग्ध के उपयोग को विकसित करने की तकनीक से भी संबंधित मानी जाती है। पारंपरिक तौर पर डेयरी टेक्नोलॉजी पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन के पाठयक्रम का हिस्सा था, लेकिन अब इसमें विविधता आ चुकी है और ऐसे कई संस्थान स्थापित हो चुके हैं जो डेयरी टेक्नोलॉजी के तहत डिप्लोमा, स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के पाठयक्रम संचालित कर रहे हैं। कई कृषि विश्वविद्यालय बी.एससी. के स्तर पर डेयरी साइंस को एक वोकेशनल विषय के रूप में पढ़ाते हैं। राज्य के करनाल में स्थित नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीटयूट में डेयरी उद्योग से संबंधित व्यावसायिक कोर्स कराए जाते हैं ।
प्रदेश में डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए डेयरी विभाग ने एक्शन प्लान तैयार किया है जिसके तहत सरकार ने आगामी वर्षो में सहकारी संस्थाओं द्वारा दूध की खरीद और प्रतिशत वृध्दि करने का लक्ष्य है। डेयरी विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि दूग्ध समितियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए महिला सहकारी समितियां बनी हैं। दूग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहन देने के लिए पिछले साल अप्रैल से मिल्क सब्सिडी देने का फैसला लिया गया है। ग्रामीण युवाओं को दूध उत्पादन क्षेत्र में रोजगार देने की योजना के तहत रिसोर्स पर्सन रुपये बतौर प्रतिधारण राशि के रूप में दिए जाते हैं। डेयरी सहकारिता की श्वेत कार्ड योजना के तहत तीन साल से लगातार दूध की आपूर्ति करने वाले छोटे और सीमांत दुग्ध उत्पादकों को चयनित बैंकों से एक लाख रुपए तक के ऋण की सुविधा भी प्रदान की गई है।
यह कहना कतई गलत न होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में किसी व्यक्ति की संपन्नता को पशुधन से आंका जाता रहा है। इसलिए ग्रामीण आंचल में यह कहावत प्रचलित है कि 'जिसके घर में काली, उस घर सदा दिवाली।' हरियाणा के हिसार जिले के गांव मुकलान के किसान पशुधन के महत्व को समझते हुए आज भी इस कहावत को चरितार्थ किए हुए हैं और इस दिशा में ग्रामीणों का नेतृत्व कर रहे हैं ओम डेयरी मुकलान के मालिक ओमप्रकाश।
हरियाणा दुनिया की सबसे अच्छी मुर्राह भैंस के लिए विख्यात है। हरियाणा सरकार भी इस नस्ल को भैंस के संरक्षण व विकास के लिए सतत् प्रयास कर रही है। सरकार के इस प्रयास को सफल करते हुए और किसानों को खेती के अलावा अतिरिक्त आमदनी का रास्ता दिखाते हुए ओमप्रकाश ने अपने घर को भी इस बेहतरीन नस्ल की भैंसों का पालन करके संपन्न बनाया है।
मुर्राह जाति की विश्व प्रसिध्द भैंसों के पालन के लिए इस क्षेत्र में ओमप्रकाश आज मुकलान व आसपास के गांवों के युवकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने हुए हैं। प्रदेश सरकार की विशेष पुरस्कार योजना के तहत मुर्राह नस्ल की भैंसों के लिए अनेक अनेक पुरस्कार जीत चुके हैं। गौरतलब है कि इस पुरस्कार योजना के तहत प्रदेश सरकार की ओर से 15 से 18 किलोग्राम दूध देने वाली मुर्राह भैंस पालक को पांच हजार रुपए और 18 किलोग्राम से ज्यादा दूध देने वाली मुर्राह भैंस के पालक को छह हजार रुपए दिए जाते हैं।
में मात्र एक मुर्राह भैंस से अपनी डेयरी शुरू करने वाले ओमप्रकाश के गांव मुकलान में करीब हर घर में अब मुर्राह नस्ल की भैंस पाली जा रही है। ओमप्रकाश दूध और बछड़े बेचकर अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं। नतीजतन, आज इस गांव की पहचान मुर्राह भैंस पालने के रूप में बन चुकी है। इस गांव से मुर्राह भैंस के कटडे नस्ल सुधार के लिए पशुपालन विभाग के माध्यम से प्रदेशभर में ग्राम पंचायतों को आवंटित किए जाते हैं। इसके अलावा देश के अन्य प्रदेशों के पशुपालक भी नस्ल सुधार के लिए इस गांव के कटड़े खरीदने के लिए आते हैं।
ओमप्रकाश का मानना है कि अगर मुर्राह नस्ल की भैंसों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाए तो हरियाणा दूध-दही के खाने वाला प्रदेश पुन: बन सकता है। अलबत्ता, आज भी ग्राम) राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले कई गुना ज्यादा है। फिर भी किसान अगर खेती के साथ-साथ पशुपालन और उसमें भी मुर्राह भैंस पालन को ज्यादा महत्व दें तो वे न केवल मात्र खेती पर निर्भरता से बचेंगे, बल्कि राष्ट्रीय राजधानी के समीप होने का लाभ उठाते हुए प्रदेश की आय में भी काफी बढ़ोतरी कर सकते हैं, साथ ही सरकार की मुर्राह भैंस दुग्ध उत्पादन योजना के पुरस्कार के भी अधिकारी बन सकते हैं। हरियाणा का कोई भी ऐसा गांव नहीं जहां इतने पुरस्कार विजेता हों। मुकलान प्रदेश का पहला ऐसा गांव है जहां ग्रामीणों में मुर्राह नस्ल की अधिक दूध देने वाली भैंस पालन की होड लगी हुई है। इनमें महेंद्र, रणधीर, सुनील, जयसिंह, जिले सिंह, दलजीत, अनूप कुमार, साधुराम, सुमेर सिंह, दलेल, शंकर, राजेंद्र, बलराज, बदलू, श्रीराम, मोहनलाल, सरजीत, महावीर, विश्नसिंह, धनपत, रमेश, विजय, धर्मवीर, शक्तिदेश, सूबे सिंह और जगदीश आदि शामिल हैं।
ओमप्रकाश ने अपने पशुओं विशेषकर मुर्राह भैंस के रखरखाव व देखभाल के लिए आधुनिक डेयरी का निर्माण किया है, जहां पशुओं के गोबर, मलमूत्र आदि की निकासी की वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्था की है। डेयरी के साथ ही अब तो ओमप्रकाश ने बडा गोबर गैस संयंत्र स्थापित किया है जिससे डेयरी की सफाई व्यवस्था को कायम रखा गया है वहीं इस गैस से डेयरी में ईंधन, खाद और रौशनी की व्यवस्था मुमकिन होने से बिजली की भी बचत हो रही है।
ओमप्रकाश प्रदेश में कम होते चारागाह को भी दूध उत्पादन की बढ़ोतरी में एक रुकावट मानते हैं जिससे दूध की गुणवत्ता में भी कमी आ रही है। अगर इसके समाधान के लिए वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप पशुओं को चारा देना जरूरी है। वे अपनी भैंसों को उचित मात्रा में हरे सूखे चारे के साथ बिनौला, खल चने की चूरी और सरसों का तेल भी दें जिससे पशु आहार की पौष्टिकता बरकरार रहे और दुग्ध उत्पादन में भी अपेक्षाकृत बढ़ोतरी होगी।
पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग में संयुक्त सचिव दिलीप रथ के मुताबिक विश्व के दुग्ध उत्पादक देशों में भारत का पहला स्थान है। लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए दुग्ध व्यवसाय आय का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। रोजगार प्रदान करने और आय के ग्राम थी। पिछले तीन दशकों में योजना के अंत तक दुग्ध उत्पादन की विकास दर करीब 4 प्रतिशत थी जबकि भारत की जनसंख्या की वृध्दि दर लगभग 2 प्रतिशत थी। दुग्ध उत्पादन में वृध्दि के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक योजनाओं के फलस्वरूप यह संभव हो सका है।
उनका कहना है कि स्वतंत्रता के बाद इस दिशा में जो प्रगति हुई है, वह बहुत चमत्कार लाख टन पहुंच गया। देश में सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने में इसे एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखा जाता है। भारत में दुग्ध व्यवसाय को कृषि के सहायक व्यवसाय के रूप में देखा जाता है। खेती किसानी से बचे कचरे, घास-फूस के इस्तेमाल और परिवार के लोगों के श्रम के जरिये ही इस व्यवसाय की साज-संभाल होती है। देश के करीब 7 करोड़ ग्रामीण प्रतिशत मवेशी छोटे, मझौले और सीमान्त किसानों के पास हैं, जिसकी पारिवारिक आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा दूध बेचने से प्राप्त होता है। सरकार दुग्ध उद्योग क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनायें चला रही है। दुग्ध व्यवसाय की प्रगति हेतु सरकार में शुरू किए गए आपरेशन फ्लड योजना के तहत आई श्वेत क्रान्ति से हुई। इस योजना ने सहकारी क्षेत्र में दुग्ध व्यवसाय को अपना कर किसानों को अपने विकास का मार्ग प्रशस्त से अधिक शहरों और कस्बों में उपभोक्ताओं तक दूध पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे बिचौलिए की आवश्यकता पूरी तरह समाप्त हो गई है और इस कारण हर मौसम में दूध के मूल्यों में जो उतार-चढ़ाव हुआ करता था, वह भी समाप्त हो गया है। सहकारी ढांचे में कारण दुग्ध और उससे बने पदार्थों र्का उत्पादन और वितरण किसानों के लिए लाख कृषक परिवारों को लाभ हुआ। 'आपरेशन फ्लड' के समाप्त होने पर दुग्ध उत्पादन जिलों को शामिल किया गया था। इसके अलावा सरकार दुग्ध व्यवसाय को लोकप्रिय बनाने और इससे जुड़े पहले छूट गए अन्य क्षेत्रों को सम्मिलित करने के लिए राष्ट्रीय मवेशी (गोधन) और भैंस प्रजनन परियोजना, सघन डेयरी विकास कार्यक्रम, गुणवत्ता संरचना सुदृढ़ीकरण एवं स्वच्छ दुग्ध उत्पादन, सहकारिताओं को सहायता, डेयरी पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड, पशु आहार, चारा विकास योजना और पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम जैसी अनेक परियोजनाओं पर काम कर रही है।