वो रात
दिवाली की रात थी
हर सिम्त
रौशनी बिखरी थी
स्याह आसमान में
सितारे जगमगा रहे थे
और
ज़मीन पर
दीयों की जगमग थी
लगता था
क़ुदरत ने
मुट्ठी भर रौशनी
सारी कायनात में
छिटक दी हो
और
कायनात रौशनी का
त्यौहार मना रही हो
मगर
मेरे घर-आंगन में अंधेरा था
हमेशा की तरह...
-फ़िरदौस ख़ान