सुषमा सिंह
भारत में रेडियो प्रसारण 1920वें दशक की शुरुआत में प्रारंभ हुआ। बॉम्बे रेडियो क्लब ने 1923 में पहला कार्यक्रम प्रसारित किया। इसके बाद एक प्रसारण सेवा की शुरूआत हुई, जिसके द्वारा उस समय की भारत सरकार और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड नामक कंपनी के बीच एक समझौते के तहत 23 जुलाई 1927 को प्रायोगिक तौर पर बम्बई और कलकत्ता में प्रसारण शुरू किया गया। जब यह कंपनी 1930 में निस्तारण में चली गई तो प्रसारण नियंत्रक विभाग के अंतर्गत इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस को जून 1936 में ऑल इंडिया रेडियो का नया नाम दिया गया। ऑल इंडिया रेडियो को 1956 से आकाशवाणी के नाम से जाना जाने लगा।

जब भारत ने 1947 में आजादी हासिल की उस समय ऑल इंडिया रेडियो का 6 केन्द्र और 18 ट्रांसमीटरों का नेटवर्क था। इसकी पहुंच 2.5 प्रतिशत क्षेत्रों तथा केवल 11 प्रतिशत आबादी तक थी। आज आकाशवाणी के 231 केन्द्र और 373 ट्रांसमीटर हैं और इसकी पहुंच क्षेत्र के लिहाज से 91.79 प्रतिशत् तथा आबादी के लिहाज से 99.14 प्रतिशत तक हो गई है। भारत जैसे बहु संस्कृति, बहु भाषी देश में आकाशवाणी से 24 भाषाओं तथा 146 प्रान्तीय भाषाओं में इसकी घरेलू सेवा में प्रसारण होता है। आकाशवाणी अपनी प्रसारण सेवा का संचालन मीडियम वेव, शॉर्ट वेव और एफएम पर करती है। एफएम सेवा के लिये एक वृहत्त बैंड विंडथ उपयोग किया जाता है ताकि कार्यक्रमों की गुणवत्ता उच्च स्तर की तथा कम शोरगुल वाली हो। आकाशवाणी ने एफएम नेटवर्क की शुरूआत अपने चैनलों जैसे एआईआरएफएम गोल्ड तथा एआईआरएफएम रेनबो के साथ की।

उद्देश्य
आकाशवाणी अपने कार्यक्रमों की तैयारी और अन्य गतिविधियों में बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के लक्ष्य से निर्देशित होता है, जिसका उद्देश्य सूचना शिक्षा एवं मनोरंजन के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों की प्रसन्नता तथा कल्याण को प्रोत्साहित करना है। अपने दायित्व को समझते हुए आकाशवाणी ने त्रिस्तरीय प्रसारण पध्दति - राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं स्थानीय को अपनाया है। यह देश भर में फैले अपने विविध केन्द्रों के माध्यम से लोगों तक उनकी बड़ी संचार आवश्यकताओं को पहुंचाता है। वे संगीत, उच्चरित शब्द, समाचार एवं अन्य कार्यक्रमों को उपलब्ध कराते हैं। स्थानीय केन्द्र श्रोताओं की क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

इस समय आकाशवाणी अपने प्रसारणों के निम्नलिखित चैनलों के द्वारा चलाता है-
• मुख्य चैनल
• विज्ञापन प्रसारण सेवा (विविध भारती)
• एम एम चैनल (रेनबो एवं गोल्ड)
• स्थानीय रेडियो स्टेशन (एलआरएस)
• राष्ट्रीय प्रसारण
• डीटीएच
• विदेश सेवा प्रसारण
• अन्य प्रमुख चैनल -अमरूथा वार्षिणी
आपदा से बचने के लिये जीवन रक्षक उपायों की विश्वसनीय जानकारी तथा इसके घट जाने के बाद किये जा रहे बचाव कार्यों की सूचना देने के मामले में प्रसारण काफी महत्वपूर्ण माध्यम है। जापान ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे कि किसी आकस्मिक घटना की स्थिति में एक स्लिपिंग रेडियो सेट अपने आप चालू हो जाता है। आकाशवाणी मीडियम वेवएफएम ट्रांसमीटरों पर इस तकनीक का परीक्षण पहले ही कर चुका है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ मिलकर इस दिशा में और आगे काम करने का प्रस्ताव है।

आकस्मिक चेतावनी प्रसारण पध्दति (ईडब्ल्यूबीएस)

इस अवधि के बीच मीडियम और शॉर्ट वेव पर प्रसारण सेवाओं का संचालन करते हुए आकाशवाणी ने उच्च विश्वसनीयता और कम शोरगुल वाले कार्यक्रमों की सेवा उपलब्ध कराने के लिये बड़े बैंडविड्थ के क्षेत्र में कदम रखा और ऐसे में एफएम युग का सूत्रपात हुआ।

निजी सहभागिता के माध्यम से एफएम का विस्तार
भारत में उदारीकरण के आगमन के साथ ही भारत सरकार ने 1999 में निजी एजेंसियों की भागीदारी के माध्यम से एफएम रेडियो नेटवर्क के विस्तार के लिए एक नीति बनाई तथा एकबार फिर 2005 में एक संशोधित नीति आयी। उसी के तहत पहले चरण में विभिन्न राज्यों में 21 चैनलों तथा दूसरे चरण में 236 चैनलों ने काम करना शुरू कर दिया है जबकि इनके सहित 266 चैनलों को लाइसेंस दिया गया है। सरकार ने 2007-08 में इन चैनलों से लाइसेंस शुल्क के रूप में लगभग 35.53 करोड़ रुपये प्राप्त किए।

भारत में सामुदायिक रेडियो का ढांचा
एफएम रेडियो प्रसारण की सफलता के बाद भारत सरकार ने आईआईटीआईएम, कृषि विकास केन्द्रों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों जैसे अच्छी तरह से स्थापित शिक्षा संस्थानों के अलावा लोक समाज तथा सहायता संगठनों जैसे गैर-मुनाफेवाले न्न संगठनों के लिए सामुदायिक रेडियो केन्द्रों की स्थापना के लिए लाइसेंस को स्वीकृति देने हेतु एक नीति को मंजूरी दी।

सामुदायिक रेडियो प्रसारणों का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक कार्यक्रमों के प्रसारण में उनको शामिल कर सेवा क्षेत्र में सामुदायिक हित में सेवा प्रदान करना है। शिक्षण संस्थानों, लोक सामाजिक संगठनों आदि द्वारा स्थापित इन छोटे रेडियो केन्द्रों द्वारा 10-15 किमी के दायरे में लोगों की आवश्यकताओं का पता लगाना तथा समुदाय के तात्कालिक महत्व वाले कार्यक्रमों का प्रसारण करना है। मुख्य जोर विकासात्मक, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, सामाजिक कल्याण, समुदाय के विकास तथा सांस्कृतिक विकास से जुड़े कार्यक्रमों पर होना चाहिए। कार्यक्रमों के निर्माण में स्थानीय समुदाय की आवश्यकता और विशेष रूचियों का ध्यान रखना चाहिए और कम से कम 50 प्रतिशत सामग्री को उन स्थानीय समुदाय की सहभागिता के माध्यम से तैयार करना चाहिए, जिनके लिए केन्द्र की स्थापना की जाएगी।

आकाशवाणी के लिए चुनौती : तकनीकी आधुनिकीकरण
एफएम रेडियो में निजी चैनलों के प्रवेश के साथ ही सार्वजनिक प्रसारणकर्ता के एकाधिकार को चुनौती मिली है। आ रहे चैनलों से मुकाबले तथा आकाशवाणी बड़े समुदाय तक अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए नई तकनीकों और प्रौद्योगिकी को अपना रहा है। मोबाइल फोन सेवा पर एसएमएस समाचार सेवा उपलब्ध करवाकर आकाशवाणी ने अपने खाते में एक और उपलब्धि दर्ज की है। कोई भी व्यक्ति 5676744 नम्बर पर NEWS लिखकर तथा भेजकर ताजा समाचार जान सकता है। आकाशवाणी द्वारा प्रस्तुत की गयी न्नन्यूज ऑन फोन न्न सेवा भी एक और मील का पत्थर है। कोई भी व्यक्ति एक निर्धारित नम्बर पर केवल एक फोन कर ताजा खबरें हासिल कर सकता है तथा अंग्रेजी, हिन्दी तथा स्थानीय भाषा में राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचार सुन सकता है । देश भर में यह सेवा दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, हैदराबाद, पटना, जयपुर, अहमदाबाद, बंगलोर तथा तिरूवनंतपुरम सहित 14 शहरों में कार्य कर रही है।

प्रौद्योगिकीय क्षेत्र में आए बदलाव का उपयोग करते हुए आकाशवाणी ने समाचार के चाहने वालों के लिए अपनी वेबसाइट भी शुरू की है। आकाशवाणी के समाचारों तक समाचार सेवा प्रभाग की वेबसाइट के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

आकाशवाणी द्वारा इंटरनेट प्रसारण की शुरूआत के साथ ही अमरीका, कनाडा, पश्चिम एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे दुनिया के कुछ हिस्सों के इसके श्रोता इंटरनेट पर आकाशवाणी की सेवाओं का 24 घंटे उपयोग कर सकते हैं। आकाशवाणी के 21 चैनल दूरदर्शन की डीटीएच सेवा के माध्यम से भी उपलब्ध हैं।

विदेश प्रसारण प्रभाग ने नये प्रसारण केन्द्र में अपने नये सेटअप की स्थापना कर डिजिटल प्रसारण शुरू कर दिया है। अधिक से अधिक श्रोताओं को आकर्षित करने के लिए सभी आधुनिक यंत्रों और विधियों का उपयोग किया जा रहा है।

आकाशवाणी के 76 केन्द्रों में कम्प्यूटर हार्ड डिस्क आधारित रिकार्डिंग, एडिटिंग और प्लेबैक पध्दति पहले ही उपलब्ध करायी जा चुकी है जबकि 61 केन्द्रों में ये सुविधाएं लागू किए जाने की अवस्था में हैं। आकाशवाणी के 48 प्रमुख केन्द्रों पर हार्ड डिस्क आधारित पध्दति का प्रावधान भी इस समय प्रगति पर है। आकाशवाणी के केन्द्रों तथा कार्यालयों में कम्प्यूटरीकरण की प्रक्रिया जारी है ताकि सूचनाओं को ऑन लाइन आदान-प्रदान की सुविधा उपलब्ध हो सके तथा क्षमता में सुधार हो।

आकाशवाणी लेह, देहरादून, मैसूर, जयपुर तथा तपांग केन्द्रों पर रिकार्डिंग, डबिंग, एडिटिंग, प्लेबैक आदि सुविधाओं के लिए डिजिटल यंत्रों तथा कम्प्यूटर युक्त हार्ड डिस्क आधारित कार्य केन्द्र स्थाई स्टूडियो के साथ उपलब्ध कराये गए हैं।

प्रसारण के क्षेत्र में सलाहकार एवं महत्वपूर्ण समाधान उपलब्ध कराने के लिए आकाशवाणी ने अपनी एक व्यावसायिक शाखा शुरू की है। इसकी वर्तमान गतिविधियों में निम्नलिखित बातें शामिल हैं-
देश के 40 स्थानों पर इग्नू को उसके ज्ञानवाणी चैनल के लिए एफएम ट्रांसमीटरों की स्थापना के लिए यह महत्वपूर्ण समाधान उपलब्ध करवा रहा है। ज्ञानवाणी केन्द्रों को पट्टे पर भूमि, भवन एवं टावर जैसी बुनियादी सुविधाएं भी दी गई हैं। ज्ञानवाणी के 26 केन्द्र पहले से ही कार्यरत हैं। सभी ज्ञानवाणी केन्द्रों के संचालन और रख-रखाव का कार्य भी अब तक किया जा चुका है।

लगभग सारी आबादी तक अपनी पहुंच के माध्यम से आकाशवाणी लगातार इस प्रयास में जुटा हुआ है कि सरकार द्वारा आम लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए की जा रही पहल के बारे में जागरूकता का प्रसार किया जाए। आजादी के बाद केवल शास्त्रीय संगीत के साथ जुड़े चैनल की छवि बदल कर इसने अपना विस्तार शैक्षिक-सह-मनोरंजन चैनल के रूप में कर लिया है तथा एक बार फिर निजी प्रसारकों के हाथों हाल में खोये अपने धरातल को वापस हासिल करने की कोशिशों में जुटा है।

(लेखिका वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं और भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में सचिव रही हैं)


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