जगदीश्वर चतुर्वेदी
इन दिनों मीडिया से इंटरनेट तक आई पेड की धूम मची है । यह भी हवा बनाई जा रही है कि आईपेड के आने के साथ ही कागजरहित शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आएंगे। आई पेड की संभावनाओं में एक नयी छलांग विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में आ सकती है। तीन विश्वविद्यालयों ने तय किया है कि वे अपने विद्यार्थियों और शिक्षकों को आईपेड देंगे।
ये विश्वविद्यालय हैं - सेटोन हिल यूनीवर्सिटी,जॉर्ज फॉक्स यूनीवर्सिटी और एविलेनी क्रिश्चियन यूनीवर्सिटी । ये तीनों विश्वविद्यालय यह प्रयोग करना चाहते हैं कि आखिरकार इस तकनीक का शिक्षा में क्या परिणाम आता है। वे देखना चाहते हैं कि कक्षा की पढ़ाई में आई पेड किस रुप में तब्दीलियां लाता है।
इन तीनों विश्वविद्यालयों के अधिकारियों का मानना है कि आईपेड, किताब को पूरी तरह अप्रासंगिक बना देगा। बच्चों को किताबों का बोझाभरा बस्ता नहीं ढ़ोना पड़ेगा। आईपेड में बच्चों की किताबें रहेंगी और वे उनके जरिए बेहतर शिक्षा पाएंगे। अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो निश्चित रुप में शिक्षा में एक नए वातावरण की सृष्टि होगी।
असल में शिक्षा में बुनियादी बदलाव आने का भी सपना परोसा जा रहा है। उपकरणों के माध्यम से शिक्षा में मदद मिलती है लेकिन शिक्षा में इजाफा नहीं होता यदि ऐसा होता तो अमेरिका के दो-तिहाई विश्वविद्यालयों में तीसरी दुनिया के देशों की खासी भीड़ जमा नहीं हो जाती। अमेरिका के आम छात्रों में उच्चशिक्षा में न जाने का रुझान बढ़ा है। यह सारी प्रक्रिया संचार क्रांति के स्वर्ण युग में घटी है।
अभी आईपेड शिक्षा में सफल हो पाएगा इसमें सन्देह है। क्योंकि ई पाठ्यपुस्तकों का अभाव है। स्वयं अमेरिका में कोई भी प्रकाशक ई पाठ्यपुस्तक तैयार करने के काम में पैसा लगाना नहीं चाहता। दूसरी समस्या यह है कि ई बुक के पांच बड़े प्रकाशक हैं जिनके यहां ई बुक हैं और उसमें कथा और गैरकथा साहित्य ही है और किसी ने अभी तक पाठ्यपुस्तकें नहीं छापी हैं। जिन 5 ई बुक प्रकाशकों से ई बुक ली जा सकती हैं उनके पास मात्र 10 हजार किताबें हैं। ये किताबें भाड़े पर ही प्राप्त की जा सकती हैं। चूंकि इन तीनों विश्वविद्यालयों में अभी यह प्रयोग के रुप में आईपेड का पढ़ने पढ़ाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है तो हम तो यही चाहेंगे कि यह प्रयोग सफल हो ।
अंत में यही कहेंगे संचार क्रांति से नहीं क्रांति से अशिक्षा दूर होगी। समाजवादी देशों से लेकर केरल तक शिक्षा में लंबी छलांग संचार क्रांति के बिना ही हो पायी है। अमेरिका के पास ही छोटा सा देश हे क्यूबा ,उसकी शिक्षा के क्षेत्र में सफलताएं अचम्भित करने वाली हैं। उल्लेखनीय है क्यूबा अभी ब्रॉडबैण्ड युग में प्रवेश करने की तैयारी कर रहा है।
कहने का तात्पर्य यह है कि संचार तकनीक के उपकरण शिक्षा को सजा सकते हैं ,शिक्षित समाज का निर्माण नहीं कर सकते। शिक्षित समाज से तात्पर्य है अच्छे मनुष्य का निर्माण। हमें सोचना चाहिए अमेरिकी शिक्षा में ऐसा क्या है जिसके कारण वहां शिक्षा ,राजनीति और समाज मे फंड़ामेंटलिज्म बढ़ा है। खासकर संचार क्रांति के दौर में अमेरिकी समाज ज्यादा फंडामेंटलिस्ट बना है। खासकर ईसाई फंडामेंटलिज्म का व्यापक विस्तार हुआ है। अमेरिका के बाहर अमेरिकी प्रशासन और बहुराष्ट्रीय निगमों ,खासकर संचार कंपनियों ने सभी रंगत के फंडामेंटलिस्टों की फंडिंग की है।
(लेखक वामपंथी चिंतक और कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हैं)