अहमद नूर खान
विकास के प्रति अपने मौजूदा दृष्टिकोण से हमने मूल वनों को साफ करने, आर्द्र भूमि को नष्ट करने, मत्स्य भंडार के तीन चौथाई को निगलने तथा आगामी कई शताब्दियों तक इस ग्रह को गर्म रखने वाली गैसों का उत्सर्जन किया है।
फलस्वरूप, हम अपने अस्तित्व की आधारशिला को ही नुकसान पहुंचाकर उसे खतरे में डाल रहे हैं। हमारे ग्रह पर जीवन की विविधता, जिसे जैवविविधता के नाम से जाना जाता है, से हमे भोजन, कपड़े, ईंधन, दवाइयां और उससे भी कहीं ज्यादा चीजें मिलती हैं। जीवन के इस जटिल जाल से जब एक भी प्रजाति बाहर निकाल ली जाती है तो उसका परिणाम बहुत भयावह हो सकता है। इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2010 को जैव विविधता वर्ष घोषित किया है और दुनियाभर में लोग अहस्तांतरणीय प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा एवं जैवविविधता क्षय को कम करने में जुटे हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस 2010 की मेजबानी रवांडा करेगा और यह समारोह वहां के न्न क्विता इजिना (बेबी गोरिल्ला का नामकरण)न्न समारोह के साथ मनाया जाएगा। इसका ध्येयवाक्य न्न कई प्रजातियां, एक ग्रह, एक भविष्य न्न है और यह कार्यक्रम विरूंगा पहाड़ियों के पास मनाया जाएगा जो रवांडा, डीआरसी और उगांडा तीनों क्षेत्रों में स्थित है। रवांडा दुनिया के 750 संकटापन्न पहाड़ी गोरिल्लों के एक तिहाई हिस्से का आवास है। सन् 2005 से अबतक 103 गोरिल्लों को नाम दिया गया है और इस दिवस के अवसर पर 11 गोरिल्ला को नाम दिया जाएगा।
जैविक विविधता में पेड़ों, जीव-जंतुओं एवं सूक्ष्मजीवों की सभी प्रजातियां, पारिस्थितिकी तंत्र तथा पारिस्थितिकी प्रक्रियाएं, जिनका वे हिस्सा हैं, आती हैं। यह पृथ्वी पर जीवन का आधार प्रदान करती हैं। इन संसाधनों के मौलिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक महत्व को धर्म, कला और अबतक के साहित्यों में स्वीकार किया गया है। जंगली प्रजातियों और इनकी जेनेटिक विविधता कृषि, औषधि एवं उद्योग के विकास में अहम योगदान देती हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कई प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के स्थिरीकरण, आर्द्रक्षेत्रों की सुरक्षा, नर्सरियों एवं प्रजनन आधार की सुरक्षा में काफी मायने रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि विश्व के मौजूदा सूक्ष्मजीव संसाधनों जैसे शैवाल, बैक्टीरिया, कवक, लाइकन, विषाणु और प्रोटोजोवा के मात्र 13 प्रतिशत हिस्से ही ज्ञात हैं। सूक्ष्मजीवों की जैवविविधता का संरक्षण कल्चर संग्रहण के माध्यम से किया जाता है और यह धातुओं के खान, कोयला खानों से मिथेन निकालने, ऑयल रिसाव को दूर करने, इत्र बनाने, वायु प्रदूषण की निगरानी, कीट और पतंगों पर नियंत्रण और जमीन में कीटनाशक को नष्ट करने आदि कार्यों में काफी उपयोगी है।
इसके बाद भी, देश की तीन से पांच करोड़ प्रजातियों में 100 प्रजातियां हर दिन कृषि योजनाओं, शहरों, औद्योगिक विकास और बांधों के निर्माण या प्रदूषण या अपरदन आदि में नष्ट हो जाती हैं। फिलहाल 17,291 प्रजातियों के बारे में कहा जा रहा है कि वे विलुप्त होने के कगार पर हैं, इनमें बहुत कम ज्ञात पेड़ों और कीटों से लेकर पक्षी और स्तनधारी शामिल हैं। कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं जो पता चलने से पहले ही विलुप्त हो गयीं। मानव उन गिनी चुनी प्रजातियों में से है जिनकी जनसंख्या बढती ज़ा रही है, जबकि अधिकतर जीव जंतु और पेड़ पौधे दुर्लभ और घटते जा रहे हैं।
मानव को हमेशा से जैवविविधता आकर्षित करती रही है। आदिम काल में शिकारी मानव गुफाओं में तस्वीर बनाते थे। गौतम बुध्द का जन्म पवित्र शाल वन में हुआ था और उन्हें पीपल पेड़ के नीचे ध्यान योग से ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। राजस्थान के बिश्नोई समुदाय ने हिरण को अपना भाई समझकर उनके संरक्षण की योजना चलाई और राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने नेशनल पार्कों के माध्यम से अमेरिकी वन्यभूमि के संरक्षण का अभियान चलाया। इसके साथ ही लोगों ने विविध प्रकार के जीवों का बड़ी निर्दयता से सफाया भी कर दिया। अंतिम हिम युग के दौरान शिकारी मानव ने विशालकाय हाथी को समूल नष्ट कर दिया और श्वेत वासियों ने अमेरिकी प्रेयरियों से गवल का सफाया कर दिया।
लोगों ने युगों तक जैवविविधता का उपयोग और दुरूपयोग दोनों किया लेकिन विविधता पर दुनियाभर में कभी भी उपयुक्त ध्यान नहीं दिया गया। वैश्विक समुदाय में धनी और शक्तिशाली ने इसके व्यापक आर्थिक क्षमता का पूरा दोहन किया।
प्राचीन ग्रंथों में सभी जीवों के अस्तित्व के बारे में सर्वत्र कहा गया और उसे उचित ठहराया गया है। सम्राट अशोक की पर्यावरण के प्रति चेतना, राजस्थान के बिश्नोई समुदाय की परंपरा तथा चिपको आंदोलन की भावना ये सभी आम आदमी की जागरूकता प्रदर्शित करती हैं। हालांकि लोगों की पर्यावरण जागरूकता पर अक्सर गरीबी और जीवन जीने की मूल आवश्यकताओं का प्रतिकूल असर भी पड़ता है। उनकी ईंधन की दैनन्दिन आवश्यकता के कारण वनों की कटाई होती है। बाघ, हिरण, मगरमच्छ, रिनसेरा तथा अन्य वन्यजीव नष्ट होते जा रहे हैं। संकटापन्न जीवों का व्यापार कुछ लोगों की संजने संवरने की इच्छा की वजह से लगातार जारी है।
जैवविविधता पर लगातार बढता दबाव मानव की बढती ज़नसंख्या को परिलक्षित करता है। जबतक जनसंख्या स्थिर न हो जाती , तबतक यह दबाव बढता ही रहेगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सन् 2050 से सन् 2070 के बीच जनसंख्या का 10 अरब पर स्थिर हो जाने का अनुमान है। यह स्थिरीकरण तभी हासिल किया जा सकता है जब जनसंख्या वृध्दि को रोकने का मौजूदा प्रयास पूरे लगने से जारी रहे।
विश्व पर्यावरण दिवस-2010 का ध्येयवाक्य कई प्रजातियां, एक ग्रह, एक भविष्य हमारे ग्रह पर जीवन की विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देता है। जैवविविधता के बगैर दुनिया का भविष्य बहुत ही क्षीण है। इस ग्रह पर लाखों लोग तथा प्रजातियां रहती हैं और साथ मिलकर ही हम सुरक्षित एवं समृध्द भविष्य की आशा कर सकते हैं।
विकास के प्रति अपने मौजूदा दृष्टिकोण से हमने मूल वनों को साफ करने, आर्द्र भूमि को नष्ट करने, मत्स्य भंडार के तीन चौथाई को निगलने तथा आगामी कई शताब्दियों तक इस ग्रह को गर्म रखने वाली गैसों का उत्सर्जन किया है।
फलस्वरूप, हम अपने अस्तित्व की आधारशिला को ही नुकसान पहुंचाकर उसे खतरे में डाल रहे हैं। हमारे ग्रह पर जीवन की विविधता, जिसे जैवविविधता के नाम से जाना जाता है, से हमे भोजन, कपड़े, ईंधन, दवाइयां और उससे भी कहीं ज्यादा चीजें मिलती हैं। जीवन के इस जटिल जाल से जब एक भी प्रजाति बाहर निकाल ली जाती है तो उसका परिणाम बहुत भयावह हो सकता है। इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2010 को जैव विविधता वर्ष घोषित किया है और दुनियाभर में लोग अहस्तांतरणीय प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा एवं जैवविविधता क्षय को कम करने में जुटे हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस 2010 की मेजबानी रवांडा करेगा और यह समारोह वहां के न्न क्विता इजिना (बेबी गोरिल्ला का नामकरण)न्न समारोह के साथ मनाया जाएगा। इसका ध्येयवाक्य न्न कई प्रजातियां, एक ग्रह, एक भविष्य न्न है और यह कार्यक्रम विरूंगा पहाड़ियों के पास मनाया जाएगा जो रवांडा, डीआरसी और उगांडा तीनों क्षेत्रों में स्थित है। रवांडा दुनिया के 750 संकटापन्न पहाड़ी गोरिल्लों के एक तिहाई हिस्से का आवास है। सन् 2005 से अबतक 103 गोरिल्लों को नाम दिया गया है और इस दिवस के अवसर पर 11 गोरिल्ला को नाम दिया जाएगा।
जैविक विविधता में पेड़ों, जीव-जंतुओं एवं सूक्ष्मजीवों की सभी प्रजातियां, पारिस्थितिकी तंत्र तथा पारिस्थितिकी प्रक्रियाएं, जिनका वे हिस्सा हैं, आती हैं। यह पृथ्वी पर जीवन का आधार प्रदान करती हैं। इन संसाधनों के मौलिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक महत्व को धर्म, कला और अबतक के साहित्यों में स्वीकार किया गया है। जंगली प्रजातियों और इनकी जेनेटिक विविधता कृषि, औषधि एवं उद्योग के विकास में अहम योगदान देती हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कई प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के स्थिरीकरण, आर्द्रक्षेत्रों की सुरक्षा, नर्सरियों एवं प्रजनन आधार की सुरक्षा में काफी मायने रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि विश्व के मौजूदा सूक्ष्मजीव संसाधनों जैसे शैवाल, बैक्टीरिया, कवक, लाइकन, विषाणु और प्रोटोजोवा के मात्र 13 प्रतिशत हिस्से ही ज्ञात हैं। सूक्ष्मजीवों की जैवविविधता का संरक्षण कल्चर संग्रहण के माध्यम से किया जाता है और यह धातुओं के खान, कोयला खानों से मिथेन निकालने, ऑयल रिसाव को दूर करने, इत्र बनाने, वायु प्रदूषण की निगरानी, कीट और पतंगों पर नियंत्रण और जमीन में कीटनाशक को नष्ट करने आदि कार्यों में काफी उपयोगी है।
इसके बाद भी, देश की तीन से पांच करोड़ प्रजातियों में 100 प्रजातियां हर दिन कृषि योजनाओं, शहरों, औद्योगिक विकास और बांधों के निर्माण या प्रदूषण या अपरदन आदि में नष्ट हो जाती हैं। फिलहाल 17,291 प्रजातियों के बारे में कहा जा रहा है कि वे विलुप्त होने के कगार पर हैं, इनमें बहुत कम ज्ञात पेड़ों और कीटों से लेकर पक्षी और स्तनधारी शामिल हैं। कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं जो पता चलने से पहले ही विलुप्त हो गयीं। मानव उन गिनी चुनी प्रजातियों में से है जिनकी जनसंख्या बढती ज़ा रही है, जबकि अधिकतर जीव जंतु और पेड़ पौधे दुर्लभ और घटते जा रहे हैं।
मानव को हमेशा से जैवविविधता आकर्षित करती रही है। आदिम काल में शिकारी मानव गुफाओं में तस्वीर बनाते थे। गौतम बुध्द का जन्म पवित्र शाल वन में हुआ था और उन्हें पीपल पेड़ के नीचे ध्यान योग से ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। राजस्थान के बिश्नोई समुदाय ने हिरण को अपना भाई समझकर उनके संरक्षण की योजना चलाई और राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने नेशनल पार्कों के माध्यम से अमेरिकी वन्यभूमि के संरक्षण का अभियान चलाया। इसके साथ ही लोगों ने विविध प्रकार के जीवों का बड़ी निर्दयता से सफाया भी कर दिया। अंतिम हिम युग के दौरान शिकारी मानव ने विशालकाय हाथी को समूल नष्ट कर दिया और श्वेत वासियों ने अमेरिकी प्रेयरियों से गवल का सफाया कर दिया।
लोगों ने युगों तक जैवविविधता का उपयोग और दुरूपयोग दोनों किया लेकिन विविधता पर दुनियाभर में कभी भी उपयुक्त ध्यान नहीं दिया गया। वैश्विक समुदाय में धनी और शक्तिशाली ने इसके व्यापक आर्थिक क्षमता का पूरा दोहन किया।
प्राचीन ग्रंथों में सभी जीवों के अस्तित्व के बारे में सर्वत्र कहा गया और उसे उचित ठहराया गया है। सम्राट अशोक की पर्यावरण के प्रति चेतना, राजस्थान के बिश्नोई समुदाय की परंपरा तथा चिपको आंदोलन की भावना ये सभी आम आदमी की जागरूकता प्रदर्शित करती हैं। हालांकि लोगों की पर्यावरण जागरूकता पर अक्सर गरीबी और जीवन जीने की मूल आवश्यकताओं का प्रतिकूल असर भी पड़ता है। उनकी ईंधन की दैनन्दिन आवश्यकता के कारण वनों की कटाई होती है। बाघ, हिरण, मगरमच्छ, रिनसेरा तथा अन्य वन्यजीव नष्ट होते जा रहे हैं। संकटापन्न जीवों का व्यापार कुछ लोगों की संजने संवरने की इच्छा की वजह से लगातार जारी है।
जैवविविधता पर लगातार बढता दबाव मानव की बढती ज़नसंख्या को परिलक्षित करता है। जबतक जनसंख्या स्थिर न हो जाती , तबतक यह दबाव बढता ही रहेगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सन् 2050 से सन् 2070 के बीच जनसंख्या का 10 अरब पर स्थिर हो जाने का अनुमान है। यह स्थिरीकरण तभी हासिल किया जा सकता है जब जनसंख्या वृध्दि को रोकने का मौजूदा प्रयास पूरे लगने से जारी रहे।
विश्व पर्यावरण दिवस-2010 का ध्येयवाक्य कई प्रजातियां, एक ग्रह, एक भविष्य हमारे ग्रह पर जीवन की विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देता है। जैवविविधता के बगैर दुनिया का भविष्य बहुत ही क्षीण है। इस ग्रह पर लाखों लोग तथा प्रजातियां रहती हैं और साथ मिलकर ही हम सुरक्षित एवं समृध्द भविष्य की आशा कर सकते हैं।