सरफ़राज़ ख़ान
हिसार (हरियाणा). चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों को बताया है कि वे गेहूं की फसल में पीलापन आने पर इसके कारणों को जानकर ही इस समस्या का निवारण करें न कि कृषि रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग शुरू कर दें। उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों से बीजोपचार के बावजूद भी बिजाई के 6-7 सप्ताह बाद गेहूं की फसल में पीलेपन की समस्या देखी जा रही है परंतु किसान इससे निजात पाने के लिए यूरिया या अन्य कृषि रसायनों का अनावश्यक व अंधाधुंध प्रयोग करते हैं जोकि मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिहाज से ठीक नहीं। इससे इन रसायनों में होने वाले खर्च से किसानों को भी अनावश्यक आर्थिक नुकसान होता है।
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. आर.पी. नरवाल ने कहा है कि गेहूं की फसल में पीलापन कई कारणों से हो सकता है। किसानों को चाहिए कि वे कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर ही इसके निदान हेतु कोई कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि फसल में नाईट्रोजन, फास्फोरस, जस्ता, लोहा व मैग्ीा जैसे पोषक तत्वों की कमी के अतिरिक्त खेत में दीमक के प्रकोप के चलते फसल में यह समस्या पैदा हो सकती है। मौसम भी इसका कारण हो सकता है क्योंकि सर्दियों में कई दिन तक धूप का न निकलना, बादल व कोहरा छाया रहना व मौसम में अत्यधिक ठंड व नमी का होना फसल में पीलापन ला सकता है जो मौसम साफ होने तथा तापमान बढ़ने से संभवत: ठीक हो जाता है।
डॉ. नरवाल के मुताबिक गेहूं की फसल में पीलापन कच्ची गोबर की खाद के प्रयोग की वजह से भी हो सकता है। गेहूं की डब्ल्यू.एच.-147, पी.बी.डब्ल्यू.-343 व डब्ल्यू.एच.-283 कुछ किस्में ऐसी हैं जिनमें बिजाई के 6-7 सप्ताह बाद पीलापन आना उनका जातीय गुण है लेकिन यह भी अपने आप ठीक हो जाता है। इसके अतिरिक्त पीला रतुआ तथा मोल्या रोग के प्रकोप के कारण भी गेहूं की फसल में पीलापन पैदा हो जाता है। इसलिए किसानों को फसल में पीलापन के कारण व लक्षण पहचान कर ही उपाय करना चाहिए। इसके लिए उन्होंने किसानों को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केन्द्रों या प्रदेश के कृषि विभाग के विशेषज्ञों से संपर्क कर उनका मार्गदर्शन प्राप्त करने की सलाह दी है।