प्रदीप श्रीवास्तव
पंद्रह अगस्त को जहाँ हम स्वतंत्रता दिवस कि 63वीं की वर्षगांठ मना रहे होंगे वहीँ दूसरी ओर अपने राष्ट्रीय झंडे क़ी संरचना करने वाले पिंगली वेंकैया को कोई भी याद तक नहीं करेगा.राष्ट्रीय ध्वज की डिजाईन तैयार करने वाले स्वर्गीय पिंगली वेंकैया  का जन्म आन्ध्र प्रदेश के कृष्ण जिले के दीवी तहसील के भटाला पेनमरू  नामक गाँव में दो अगस्त 1878 को हुई थी.  उनके पीटा का नाम पिंगली ह्न्मंत रायडू एवम माता का नाम वेंकटरत्न्म्मा था. पिंगली वेंकैया ने प्रारंभिक शिक्षा भटाला पेनमरू व मछलीपट्टनम से प्राप्त करने के बाद 19 वर्ष कि उम्र में मुंबई चले गए. वहाँ जाने के बाद उन्होंने सेना में नौकरी  कर ली जहाँ से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया. सन 1899 से 1902  के बीच दक्षिण अफ्रीका के बायर  युद्ध में उन्होंने  भाग लिया.
इसी बीच वहाँ पर वेंकैया साहब क़ी मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हो गई. वे उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए, स्वदेश वापस लौटने  पर मुंबई (तब मुंबई कों बम्बई कहा जाता था) में रेलवे में गार्ड की नौकरी में लग गए. इसी बीच मद्रास (जिसे चेन्नई के नाम से पुकारते हैं) में प्लेग नामक महामारी के चलते कई लोंगों की मौत हो गई जिससे उनका मन व्यथित हो उठा, और उनहोने वह नौकरी भी छोड़ दी. वहाँ से मद्रास में प्लेग रोग निर्मूलन इन्स्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए. स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या का संस्कृत, उर्दू व हिंदी आदि भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी. इसके साथ ही वे   भू-विज्ञानं एवम कृषि के अच्छे जानकर भी थे. बात सन 1904 की है जब जापान ने रूस को हरा दिया था. इस समाचार से वे इतना प्रभावित हुए की उन्हों तुरंत जापानी भाषा सीख ली. उधर महात्मा गाँधी जी का खड़ी आन्दोलन चल ही रहा था. इस आन्दोलन ने भी पिंगली वेंकैया के मन को बदल दिया. उस समय उन्होंने अमेरिका से कम्बोडिया नामक कपास की बीज का आयात ओउर इस बीज को भारत के कपास बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया, जिसे (उनके इस शोध कार्य के लिये ) बाद में वेंकैया कपास के नाम से जाना जाने लगा. उधर ब्रिटिश सरकार ने स्वर्गीय पिंगली वेंकैया को रायल एग्रीकल्चरल सोसायटी ऑफ़ लन्दन का सदस्य के रूप में मनोनीत कर उनके गौरव को बढाया. सन 1906 में भातीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसकी अध्यक्षता ग्रेंड ओल्ड मैन के नाम से जाने जाने वाले दादा भाई नौरोजी ने की थी. इस सम्मेलन में दादा भाई नौरोजी ने स्व.पिंगली वेंकैया के द्वारा निःस्वार्थ भाव से किये गए कार्यों की सरहना की. बाद में उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य मनोनीत कर दिया गया. कांग्रेस के इस अधिवेशन में यूनियन  जैक का झंडा फहराया गया था, जिसे देखकर स्व.पिंगली वेंकैया का मन द्रवित हो उठा. उसी दिन से वे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की संरचना में लग गए.1916 में उन्होंने ए नेशनल फ्लैग फार इंडिया नामक एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें  उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के तीस नमूने प्रकाशित किये थे. 
पांच साल बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक सन 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमे महात्मा गाँधी जी ने सभी कों स्व.पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी. इसी बैठक  में स्व.पिंगली वेंकैय्या जी द्वारा बनाये गए राष्ट्रीय ध्वज क़ी डिजाईन कों महात्मा गाँधी ने मान्यता दी. इस सन्दर्भ में महात्मा गाँधी ने यंग इंडिया नामक अख़बार के सम्पादकीय में आवर नेशनल फ्लैग शीर्षक से लिखा कि"राष्ट्रीय ध्वज के लिये हमें बलिदान देने को तैयार रहना चाहिए,वे आगे लिखते हैं कि मछलीपट्टनम के आन्ध्रा कालेज के पिंगली वेंकैया ने देश का झंडा के सन्दर्भ एक पुस्तक प्रकाशित क़ी है, जिसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज से सम्बंधित अनेकों चित्र प्रकाशित कियर हैं ,जिसके लिये में उनके श्रम कों देखते हुए उनका आदर करता हूँ ". गाँधी जी अपने सम्पादकीय में आगे लिखते हैं कि "जब मैं विजयवाड़ा के दौरे पर था उस दौरान पिंगली वेंकैय्या ने मुझे हरा एवम लाल रंगों से बने बिना चरखों वाले केई चित्र बनाकर दिए थे. हर झंडे की रूपरेखा पर उन्हें कम से कम तीन घंटे तो लगे ही थे.मैं ने उन्हें एक झंडे मैं बीच मैं सफ़ेद  रंग की पट्टी डालने की सलाह दी, जिसका उद्देश्य था कि सफ़ेद रंग सत्य व अहिंसा का होता है. उन्होंने इसे तुरंत मान लिया.
इसी के बाद पिंगली वेंकैय्या द्वारा किये गए झंडे का नाम झंडा वेंकैया लोगों के बीच लोक प्रिय हो गया. चार जुलाई 1963 को श्री पिंगली वेंकैया का निधन हो गया. भारतीय डाक-तार विभाग ने 12 अगस्त 2009 कों यानि उनके निधन के पूरे 46 साल बाद स्वर्गीय पिंगली वेंकैया पर एक पांच रुपये का डाक टिकट जारी किया. सीमित संख्या मैं जारी इस डाकटिकट कों महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के वरिष्ट  पत्रकार एवम डाक-टिकट संग्रहक मोती चाँद मुथा के पास देखा जा सकता है. दुख तो इस बात कि है कि स्वर्गीय पिंगली वेंकैया द्वारा किये गए कार्य कि न तो भारत सरकार ने न ही कांग्रेस ने सही ढंग आदर दिया है.


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