संतोष जैन पासी / आकांक्षा जैन  
हैपेटाइटिस : हैपेटाइटिस संक्रमण के कारण फैलने वाला यकृत (लिवर) संबंधी रोग है. वर्ष 2015 में इससे दुनियाभर में लगभग 13.4 लाख लोगों की मौत हो गई थी. (यह संख्या क्षय रोग से होने वाली मौतों के बराबर थी). हैपेटाइटिस से होने वाली मौतों में से ज्यादातर का कारण पुरानी यकृत बीमारी/यकृत कैंसर का प्राथमिक स्वरूप रहा. (सिरोसिस के कारण होने वाली मौतें – 7,20,000 और  हैप्टो सेल्यूलर कार्सिनोमा के कारण होने वाली मौतें – 4,70,000).  अभी भी समय के साथ हैपेटाइटिस संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही हैं.  

हैपेटाइटिस संक्रमण : हैपेटाइटिस संक्रमण एक जन स्वास्थ्य समस्या है. यह इन 5 में से किसी भी एक हैपेटोट्रोपिक विषाणु से हो सकती है. इसमें शामिल हैं हैपेटाइसिस ए, बी, सी, डी और ई. ये अपनी संरचना, जानपदिक, प्रसार प्रणाली, अंडे सेने की अवधि, लक्षण, रोग की पहचान, बचाव और उपचार के विकल्प के संबंध में एक-दूसरे से बहुत अधिक भिन्न होते हैं.

विश्व में 24 करोड़ लोग लंबे समय से हैपेटाइसिस बी और 13-15 करोड़ लोग हैपेटाइसिस सी के संक्रमित है. वैश्विक हैपेटाइसिस रिपोर्ट 2017 बताती है कि इन लोगों में से अधिकतर संख्या उन लोगों की है जिनकी पहुंच जीवन रक्षक जांच और उपचार तक नहीं है. इसके परिणामस्वरूप इन में से अधिकतर क्रॉनिक लिवर रोग और कैंसर के खतरे से जूझ रहे हैं. जिससे अंतत: उनकी मौत हो जाती है. जन स्वास्थ्य के इस खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक मार्ग्रेट चान ने सभी देशों से वर्ष 2030 हैपेटाइटिस संक्रमण को दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाने और विश्व को इस जानलेवा बीमारी से मुक्त करने का अनुरोध किया है. सतत विकास उद्देश्य 3 - लक्ष्य 3 (सीडीजी 3.3) हैपेटाइटिस संक्रमण, जल जनित, और अन्य संक्रामक रोगों का सामना करने के लिए विशिष्ट कदम उठाने का आह्वाहन करता है.

भारत में संक्रामक हैपेटाइटिस (ए से ई तक) बड़ी जन स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है. जिसमें हैपेटाइटिस बी के रोगियों की संख्या अधिक है. एक आकलन के अनुसार 4 करोड़ लोग इससे ग्रसित हैं जो विद्यमान जनसंख्या का 3 से 4 प्रतिशत है. हालांकि इसकी भौगोलिक मौजूदगी में विभिन्नता है. अरूणाचल प्रदेश और अंडमान के निवासियों में सर्वाधिक है.

विश्व हैपेटाइटिस दिवस (28 जुलाई) प्रतिवर्ष मनाया जाता है. यह संक्रामक हैपेटाइटिस के संबंध में वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ इसकी रोकथाम, रोग की पहचान और उपचार को प्रोत्साहित करने राष्ट्रीय/ अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है. ताकि वर्ष 2030 तक इसका उन्मूलन किया जा सके. जेनेवा में 69वीं विश्व स्वास्थ्य परिषद में 194 सरकारों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अगले 13 वर्षों में संक्रामक हैपेटाइटिस पर स्वास्थ्य क्षेत्र की पहली वैश्विक रणनीति (2016-2021) को हैपेटाइटिस बी और हैपेटाइटिस सी के उन्मूलन के लक्ष्य के साथ स्वीकार किया है. समुदाय ने वर्ष 2030 तक संक्रामक हैपेटाइटिस के उन्मूलन के पहले वैश्विक आंदोलन को लेकर ‘नो हैप’ का शुभारंभ किया है. वर्ष 2017 की थीम ‘हैपेटाइटिस उन्मूलन’ है.

हैपेटाइटिस संक्रमण के प्रतिजन में विभिन्न्ता के बावजूद, रोग के विकट चरण के दौरान ज्यादातर लक्षण सामान्य हैं. जिसमें बुखार, थकान, अरूचि, जी मचलाना, उल्टी, दस्त, पेट दर्द, जोड़ों का दर्द और  पीलिया शामिल है. हालांकि इनके संचरण की प्रणाली भिन्न है. हैपेटाइटिस ए और ई का संचरण मौखिक और मल के द्वारा होता है, वहीं हैपेटाइटिस बी, सी और डी का संचरण असुरक्षित खून चढ़ाने, दूषित सुई, सिरींज, यौन संचरण या मां से बच्चे को संचरण के द्वारा होता है. हैपेटाइटिस डी और और ई की तुलना में हैपेटाइटिस ए, बी और सी अधिक सामान्य है.

हैपेटाइटिस ए विषाणु (एचएवी) प्राय: इससे संक्रमित व्यक्ति के मल में उपस्थित होता है और सामान्यत: दूषित पानी/भोजन और कई बार असुरक्षित यौन संबंधों (15 से 50 दिनों की प्रजनन के अवधि के दौरान) के जरिए फैलता है. ज्यादातर मामलों में संक्रमण हल्का और स्वास्थ्य लाभ पूरा नहीं मिल पाता, बल्कि इससे प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है. कई बार गंभीर संक्रमण जानलेवा साबित होते हैं. रोगी को समुचित आहार प्रबंधन और उपचार  की आवश्यकता होती है. अस्वच्छ पर्यावरणीय परिस्थितियों में रहने वाले लोग इस संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. हालांकि इससे बचाव के लिए सुरक्षित और प्रभावकारी टीके उपलब्ध हैं.

हैपेटाइटिस बी विषाणु (एचबीवी) सामान्यत: संक्रमित रक्त, शुक्राणुओं और शरीर के अन्य द्रव्यों के जरिए फैलता है. खासतौर पर खून /खून उत्पादों को चढ़ाने के दौरान, दूषित सुइयों/ सिरींज के इस्तेमाल (खासकर दवा के रूप में उपयोग) या संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंध बनाने, कई बार संक्रमित माताओं से उनके नवजात बच्चों को जन्म के समय 45-160 दिनों की प्रजनन अवधि के दौरान होता है. भारत में इस संक्रमण के कारण 30 प्रतिशत लीवर सिरोसिस और 40 से 50 प्रतिशत लिवर कैंसर के मामले सामने आते हैं. रोगी को समुचित नियमित जांच व निगरानी की आवश्यकता होती है. कुछ को जीवाणुरोधी उपचार की आवश्यकता पड़ती है. इस संक्रमण से उपचार के भी प्रभावकारी और सुरक्षित टीके उपलब्ध हैं.

हैपेटाइटिस सी विषाणु (एचसीवी) भी संक्रमित रक्त, शुक्राणुओं और शरीर के अन्य द्रव्यों के जरिए फैलता है. इसके संचरण की प्रणाली और उपचार के विकल्प एचबीवी के समान ही हैं. इसके प्रजनन की अवधि 14-180 दिनों की होती है. वर्ष 2014 में लीवर एंड बिलेरी साइंसिस संस्थान ने बताया कि लगभग 1.2 करोड़ लोग लंबे समय से हैपेटाइसिस सी से संक्रमित हैं. पंजाब, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, पुदुचेरी, अरूणाचल और मिजोरज राज्यों में इसके रोगियों की संख्या अधिक है. हालांकि इसके विषाणु से सुरक्षा के लिए अभी तक कोई भी टीका उपलब्ध नहीं है.

लंबे समय से हैपेटाइटिस बी और सी से संक्रमित अधिकतर रोगी संक्रमण से अनभिज्ञ होते हैं. इसलिए उनको सिरोसिस और यकृत कैंसर होने का गंभीर खतरा बना रहता है.

हैपेटाइटिस डी विषाणु (एचडीवी) एक आरएनए विषाणु है जो हैपेटाइटिस बी की जगह लेता है. इसलिए यह एचबीवी से संक्रमित रोगियों को ही अपनी चपेट में लेता है. विश्वभर में लगभग 1.2 करोड़ लोग लंबे समय से चली आ रही बीमारी एचबीवी और एचडीवी से एक साथ संक्रमित हैं. यह दोहरा संक्रमण अधिक गंभीर और घातक साबित हो सकता है. इसका संक्रमण लगभग एचबीवी के संक्रमण के समान है. केवल इसमें माता से बच्चे संक्रमण के बेहद कम मामले सामने आते हैं. हालांकि एचडीवी के प्रभावकारी विषाणुरोधी उपचार उपलब्ध है. हैपेटाइटिस बी का टीका इस संक्रमण में भी सुरक्षा और बचाव का काम करता है.  

हैपेटाइटिस ई विषाणु (एचईवी) एक छोटा विषाणु है. इसका संक्रमण सामान्यत: दूषित पानी और भोजन से होता है. इसके प्रजनन की अवधि 2-10 सप्ताह की होती है. विश्वभर में लगभग 2 करोड़ लोग एचईवी से संक्रमित हैं. इससे प्रतिवर्ष 56,600 लोग मारे जाते हैं. हालांकि यह विश्वभर में विद्यमान है लेकिन दक्षिणी- पूर्वी एशिया में इसके सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. हैपेटाइटिस ई संक्रमित गर्भवती महिलाओं को खासकर दूसरी और तीसरी तिमाही में लि वर खराब होने, गर्भपात या मृत्यु का गंभीर खतरा बना रहता है. यह संक्रमण कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में अधिक सामान्य होता है. खासकर अंग प्रत्यार्पण और प्रतिरक्षा प्रणाली की दवाओं का सेवन करने वाले लोगों में यह संक्रमण अधिक होता है. गुणवतापूर्ण जलापूर्ति, मानव मल का समुचित निष्कासन, आहार सुरक्षा और प्रभावकारी तरीकों को अपनाकर इस संक्रमण से बचाव संभव है. चीन को छोड़कर भारत या किसी अन्य देश में इसका टीका उपलब्ध नहीं है.

भारत दुनिया के उन 11 देशों में शामिल है जो लंबे समय से चली आ रही बीमारी हैपेटाइटिस के वैश्विक बोझ का 50 प्रतिशत वहन करता है. खासकर हैपेटाइटिस बी के खतरों को महसूस करते हुए वर्ष 2004 में आरंभिक योजना के तहत लगभग 12 लाख भारतीय बच्चों को हैपेटाइटिस बी की 3 खुराक प्रदान की गई. इसके बाद सरकार ने वर्ष 2007-08 में हैपेटाइटिस बी के टीकाकरण को सार्वभौमिक प्रतिरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत विस्तार प्रदान किया. इसके बाद भारत सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय हैपेटाइटिस संक्रमण नियंत्रक और बचाव कार्यक्रम की शुरूवात की. इसके पश्चात सरकार ने रोग नियंत्रण राष्ट्रीय केंद्र के अधीन 30 करोड़ की अनुमानित बजट के साथ राष्ट्रीय हैपेटाइटिस संक्रमण निगरानी कार्यक्रम की शुरूवात की.

भारत को एचएवी टीकाकरण को पुन: और अधिक युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है. वहीं  एचसीवी और एचईवी टीकों की उपलब्धता और विकास को प्रमुखता देने की आवश्यकता है. स्वच्छ भारत अभियान के तहत सुरक्षित पेयजल और समुचित स्वच्छता के संगठित प्रयासों के बावजूद को इसे और अधिक प्रमुखता देने की आवश्यकता है. रक्त चढ़ाते समय, सुई लगाते समय सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करना हैपेटाइटिस संक्रमण से बचाव में अहम भूमिका निभाता है. हैपेटाइटिस संक्रमण के मुददों का समाधान करने के लिए समर्पित, प्रशिक्षित जन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की अत्यंत आवश्यकता है.

देश में हैपेटाइटिस संक्रमण से बचाव, प्रबंध और उन्मूलन कई चुनौतियों के बावजूद सभी हितधारकों के सामूहिक समन्वय और विस्तृत कार्य योजना से निश्चित तौर पर भारत को हैपेटाइटिस संक्रमण मुक्त राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में मदद मिलेगी.


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