अंबरीश कुमार
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों पर उप चुनाव की राजनीतिक तैयारी के बीच बीजेपी खेमे से यह खबर आ रही है कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली वापस बुलाकर फूलपुर संसदीय सीट का उप चुनाव टाल दिया जाए. उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटें खाली हैं, क्योंकि गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, तो फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं.
इनमें फूलपुर की सीट बीजेपी को ज्यादा जोखिम वाली लग रही है. यह सिर्फ इसलिए, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती कहीं फूलपुर संसदीय सीट से विपक्ष की साझा उम्मीदवार न बन जाएं. ऐसा हुआ, तो मायावती का यह चुनाव भी चिकमंगलूर से इंदिरा गांधी और इलाहाबाद से विश्वनाथ प्रताप सिंह के उप चुनाव की तरह महत्वपूर्ण बन जाएगा.
हालांकि बीएसपी कभी उप चुनाव नहीं लड़ती है और मायावती को राष्ट्रीय जनता दल से राज्यसभा भेजने का ऐलान लालू प्रसाद कर चुके हैं. बावजूद इसके, बीजेपी आशंकित नजर आ रही है.
दरअसल अगर मायावती उप चुनाव के जरिए लोकसभा पहुंच गईं, तो यह विपक्षी एकता की बड़ी जीत होगी. साथ ही सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ा झटका भी. यही वजह है कि उप राष्ट्रपति चुनाव के नाम पर बीजेपी फिलहाल इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से किसी टिप्पणी से बचना चाह रही है. पर विपक्ष को सत्तारूढ़ दल की कमजोर नस मिल गई है.
इस बारे में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा:
बीजेपी तो उप चुनाव से भाग रही है. अगर उप चुनाव हुआ, तो वह लोकसभा की दोनों सीटें हार जाएगी. अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद चुनाव लड़ें, तो वे भी पूर्व मुख्यमंत्री टीएन सिंह की तरह उप चुनाव हार सकते हैं.
साल 1971 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह मानीराम विधानसभा क्षेत्र से उप चुनाव हार गए थे. विपक्ष अगर यह याद दिला रहा है, तो उसके पीछे एकजुटता से बढ़ा आत्मविश्वास है.
एकजुट विपक्ष बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाल में ही राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर एकजुट होकर विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार को वोट दिया था. सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश में बिहार की तरह ही विपक्षी एकता के लिए ठोस पहल कर रही हैं, जिसमें एसपी और बीएसपी को साथ लाकर वे बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करना चाहती हैं.
समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का पहले से ही समझौता है. बीएसपी के साथ आने के बाद इन दोनों लोकसभा सीटों पर बीजेपी का रास्ता आसान नहीं होगा. प्रदेश का मौजूदा राजनीतिक माहौल भी सत्तारूढ़ दल के खिलाफ हो रहा है. सरकार कई मोर्चों पर विफल होती नजर आ रही है, खासकर कानून-व्यवस्था, बिजली-पानी और किसानों की बदहाली को लेकर. ऐसे में उप चुनाव में पार्टी के लिए संकट पैदा हो सकता है.
प्रदेश सरकार में करीब आधा दर्जन मंत्री ऐसे हैं, जो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं, न विधानसभा के, न ही विधान परिषद के. इनमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा, मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और मोहसिन रजा शामिल हैं. इन्हें छह महीने के भीतर चुनाव लड़ना है.
विधान परिषद में एक सीट खाली है, एक और खाली हो सकती है. ऐसे में 3 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है. लोकसभा की दोनों सीटों को लेकर बीजेपी में मंथन चल रहा है. एसपी और बीएसपी के साथ आने के बाद बीजेपी के लिए इन पर चुनाव जीतना आसान नहीं होगा. इसी वजह से केशव प्रसाद मौर्य को वापस लोकसभा में लाने की अटकलें लगाई जा रही हैं.
दरअसल खुद मायावती चुनाव न भी लड़ें, तो भी विपक्ष का साझा उम्मीदवार बीजेपी पर भारी पड़ सकता है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले लोकसभा का कोई भी उप चुनाव हारना बीजेपी के लिए संकट पैदा कर सकता है.
दूसरी तरफ ऐसे ही उप चुनाव से इंदिरा गांधी भी माहौल बना चुकी हैं, तो 1988 में वीपी सिंह भी विपक्षी एकता की धुरी बन चुके हैं. इसलिए यूपी के दोनों उप चुनाव राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं.
(अंबरीश कुमार सीनियर जर्नलिस्ट हैं)
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों पर उप चुनाव की राजनीतिक तैयारी के बीच बीजेपी खेमे से यह खबर आ रही है कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली वापस बुलाकर फूलपुर संसदीय सीट का उप चुनाव टाल दिया जाए. उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटें खाली हैं, क्योंकि गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, तो फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं.
इनमें फूलपुर की सीट बीजेपी को ज्यादा जोखिम वाली लग रही है. यह सिर्फ इसलिए, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती कहीं फूलपुर संसदीय सीट से विपक्ष की साझा उम्मीदवार न बन जाएं. ऐसा हुआ, तो मायावती का यह चुनाव भी चिकमंगलूर से इंदिरा गांधी और इलाहाबाद से विश्वनाथ प्रताप सिंह के उप चुनाव की तरह महत्वपूर्ण बन जाएगा.
हालांकि बीएसपी कभी उप चुनाव नहीं लड़ती है और मायावती को राष्ट्रीय जनता दल से राज्यसभा भेजने का ऐलान लालू प्रसाद कर चुके हैं. बावजूद इसके, बीजेपी आशंकित नजर आ रही है.
दरअसल अगर मायावती उप चुनाव के जरिए लोकसभा पहुंच गईं, तो यह विपक्षी एकता की बड़ी जीत होगी. साथ ही सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ा झटका भी. यही वजह है कि उप राष्ट्रपति चुनाव के नाम पर बीजेपी फिलहाल इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से किसी टिप्पणी से बचना चाह रही है. पर विपक्ष को सत्तारूढ़ दल की कमजोर नस मिल गई है.
इस बारे में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा:
बीजेपी तो उप चुनाव से भाग रही है. अगर उप चुनाव हुआ, तो वह लोकसभा की दोनों सीटें हार जाएगी. अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद चुनाव लड़ें, तो वे भी पूर्व मुख्यमंत्री टीएन सिंह की तरह उप चुनाव हार सकते हैं.
साल 1971 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह मानीराम विधानसभा क्षेत्र से उप चुनाव हार गए थे. विपक्ष अगर यह याद दिला रहा है, तो उसके पीछे एकजुटता से बढ़ा आत्मविश्वास है.
एकजुट विपक्ष बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाल में ही राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर एकजुट होकर विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार को वोट दिया था. सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश में बिहार की तरह ही विपक्षी एकता के लिए ठोस पहल कर रही हैं, जिसमें एसपी और बीएसपी को साथ लाकर वे बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करना चाहती हैं.
समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का पहले से ही समझौता है. बीएसपी के साथ आने के बाद इन दोनों लोकसभा सीटों पर बीजेपी का रास्ता आसान नहीं होगा. प्रदेश का मौजूदा राजनीतिक माहौल भी सत्तारूढ़ दल के खिलाफ हो रहा है. सरकार कई मोर्चों पर विफल होती नजर आ रही है, खासकर कानून-व्यवस्था, बिजली-पानी और किसानों की बदहाली को लेकर. ऐसे में उप चुनाव में पार्टी के लिए संकट पैदा हो सकता है.
प्रदेश सरकार में करीब आधा दर्जन मंत्री ऐसे हैं, जो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं, न विधानसभा के, न ही विधान परिषद के. इनमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा, मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और मोहसिन रजा शामिल हैं. इन्हें छह महीने के भीतर चुनाव लड़ना है.
विधान परिषद में एक सीट खाली है, एक और खाली हो सकती है. ऐसे में 3 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है. लोकसभा की दोनों सीटों को लेकर बीजेपी में मंथन चल रहा है. एसपी और बीएसपी के साथ आने के बाद बीजेपी के लिए इन पर चुनाव जीतना आसान नहीं होगा. इसी वजह से केशव प्रसाद मौर्य को वापस लोकसभा में लाने की अटकलें लगाई जा रही हैं.
दरअसल खुद मायावती चुनाव न भी लड़ें, तो भी विपक्ष का साझा उम्मीदवार बीजेपी पर भारी पड़ सकता है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले लोकसभा का कोई भी उप चुनाव हारना बीजेपी के लिए संकट पैदा कर सकता है.
दूसरी तरफ ऐसे ही उप चुनाव से इंदिरा गांधी भी माहौल बना चुकी हैं, तो 1988 में वीपी सिंह भी विपक्षी एकता की धुरी बन चुके हैं. इसलिए यूपी के दोनों उप चुनाव राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं.
(अंबरीश कुमार सीनियर जर्नलिस्ट हैं)