अतुल मिश्र
किसी का ऐसा शौहर मर गया, जो एक आदर्श शौहर था. आदर्श वह इस मायने में था कि वह मोहल्ले कि औरतों को कन्नी निगाहों से भले ही देखता हो, आंखें उठाकर कभी नहीं देखता था. इसीलिए कन्नी निगाहों से देखने वालों में उसका अच्छा-खासा सम्मान था .आज मोहल्ले के तमाम वे लोग उसके घर शोक ज़ाहिर करने पहुँच गए थे, उसके जिंदा रहते जिनकी मजाल नहीं थी कि उसके दरवाजे की तरफ निगाहें उठाकर भी देख लें. बड़ी तादाद में वे औरतें भी उसके जनाजे कि तैयारियों में मौजूद थीं और उसके शरीफ होने के हवाले दे रही थीं, जिन्हें वह सिर्फ कन्नी निगाहों से ही देखकर अपने काम पर निकाल लिया करता था.
शौहर की लाश के पास ही उसकी ताजा-ताजा बेवा हुई बीवी भी बैठी थी और इतने सुर और लय-ताल के साथ रो रही थी कि अगर यही सुर-ताल वह अपनी कर्कश आवाज में रखती तो यकीनन उसका शौहर अभी और जिंदा रह लेता. शौहर की खामोश पड़ी लाश पर वह बार-बार अपने दोनों हाथ मारकर जिन चूड़ियों को पहले ही तोड़ चुकी थी, अब उनका कचूमर निकाल कर रोने में व्यस्त थी.
"हाय, क्या हो गया तुम्हें ? कुछ बोलते क्यों नहीं ? मुझे भी अपने साथ ही ले जाते..... मुझे क्यों छोड़ गए? हाय, अब मेरा क्या होगा ? "
हमारे मुल्क में लाश के सीने पर दस-बीस घूंसे जब तक उसकी बीवी न मार ले, तब तक लगता नहीं कि मातम की रस्म पूरी तौर पर निभा ली गई है. इसी पारंपरिक भावना के तहत बीवी ने शौहर के सीने पर इतने घूंसे अबतक मार लिए थे कि अगर शौहर की लाश में थोड़ी सी भी गैरत मौजूद होती तो फ़ौरन उठकर अपनी बीवी कि गर्दन पकड़ लेती कि " कमबख्त, चैन से मरने भी नहीं देगी अब? "
"चलिए अब जो हो गया, सो हो गया. ऊपर वाले को शायद यही मंज़ूर हो ! " ऊपर वाले कि मंजूरी में अपने लिए कुछ नई संभावनाएं तलाश रहे पड़ौसी ने मृतक की बीवी को अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाते हुए तसल्ली दी.
".......अब मेरा क्या होगा.........हाय ? " लाश के सीने पर अब धीरे से हाथ मारकर बात कर रही बीवी ने पड़ौसी की ओर देखते हुए अपनी पीड़ा ज़ाहिर की.
अपने शौहर के मातम पर उसकी लाश से यह सवाल करने वाली बीवी एक महीने बाद उसी पड़ौसी के साथ किसी मॉल में अपने लिए शौपिंग करती हुई देखी गई.
शौहर की लाश से पूछा गया सवाल अब हल हो चुका था.
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