स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. वातावरण में डीजल की वजह से शरीर पर असर पड़ता है और इससे लोगों में हृदयाघात और स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है। यह जानकारी हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने दी।
एक अध्ययन में यूरोप के वैज्ञानिकों ने दिखाया कि ऐसे लोगों में रक्त के थक्के कहीं ज्यादा बनते हैं जो भले ही स्वस्थ क्यों न हों अगर वे कुछ समय तक ही डीजल इंजन का सामना करते हैं तो उसकी वजह से नसें ब्लॉक हो जाती हैं और हृदयाघात या स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है।
गैस इंजन की तुलना में डीजल इंजन से कहीं ज्यादा प्रदूषण होता है। हृदय और धमनी की बीमारी के शिकार लोगों को ट्रैफिक सम्बंधी प्रदूषण से बचना चाहिए। अध्ययन में 20 स्वस्थ पुरुषों को जो 21 से 44 उम्र के थे, शामिल किया गया। उन्होंने फिल्टर एयर और व्यस्त सड़क पर एक स्तर के कार्बन के वातावरण पर डाइल्यूटिड डीजल में भी सांस ली। फिल्टर एयर पर सांस लेने वालों की तुलना में जिन्होंने डीजल वाले क्षेत्र में सांस ली, उनमें इस दौरान थक्का बनने की संभावना 20 से 25 फीसदी बढ़ी। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि इससे रक्त में प्लेटलेट एक्टीवेशन भी बढ़ता है। थक्का बनने में प्लेटलेट की अहम भूमिका होती है।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के समान समूह में दर्शाया है कि हृदयाघात के शिकार लोगों में स्पष्ट फर्क देखा जा सकता है जिसमें कि वे डीजल वाले वातावरण में सांस लेते हैं। उन्होंने पाया कि हृदयाघात के बाद बचने वाले लोगों की तादात हृदय व्यायाम करने के दौरान कहीं ज्यादा स्वच्छ ऑक्सीजन लेने वालों की होती है बनिस्बत दूषित वातावरण में सांस लेने वालों के।
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