सलीम अख्तर सिद्दीकी
पाकिस्तान लम्बे अर्से से आतंकवाद से कराह रहा है। इस्लाम के नाम पर गैर इस्लामी हरकतों की वजह से इस्लाम पूरी दुनिया में बदनाम हो रहा है। आखिर वे लोग कौन हैं, जो मस्जिदों में नमाजियों को गोलियों से भून रहे हैं ? आत्मघाती हमलों से बेगुनाह लोगों की खून से जमीन को लाल कर रहे हैं ? उनका क्या उद्देश्य है ? उनका ये कौनसा इस्लाम है ? पता नहीं वे मुसलमान हैं भी या नहीं ? इस्लाम तो पूरी दुनिया को भलाई की तरफ ले जाने के लिए अल्लाह ने क़ुरआन के जरिए जमीन पर भेजा था। जिस इस्लाम में पड़ोसी के भूखा रहने पर खाना हराम करार कर दिया हो। जो इस्लाम शिक्षा के लिए चीन तक जाने की बात करता हो। जो इस्लाम औरतों की इज्जत करने की हिदायत देता है। जो इस्लाम एक बेगुनाह के कत्ल को पूरी इंसानियत का कत्ल होने की बात करता हो। उस इस्लाम के बारे में कुछ लोगों की करतूतों से पूरी दुनिया में यह संदेश गया है कि इस्लाम एक दकियानूसी और खून-खराबे वाला धर्म है। इससे उन लोगों को फायदा पहुंचा है, जो जमीन पर इस्लाम का नामो निशान मिटाना चाहते हैं। और समय-समय पर इस्लाम को बदनाम करने की साजिशें रचते हैं। पता नहीं पाकिस्तान के हुक्मरानों ने अमेरिका की शह पर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बच्चों को कौनसा इस्लाम पढ़ाया कि वे सही इस्लाम को भूलकर गैरइस्लामी हरकतें कर रहे हैं। जेहाद की असल व्याख्या की जगह यह समझा दिया गया कि पेट पर बम बांध कर लोगों को मारोगे तो सीधे जन्नत मिलेगी। मानव बम बनने वालों का क्या पता कि मासूम और बेगुनाह लोगों को मारोगे तो जन्नत नहीं दोजख की आग मिलेगी। अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद से तालिबान के अन्दर ऐसे ही जहर भरकर रुस के खिलाफ जेहाद कराया। अमेरिका कामयाब भी हुआ। अफगानिस्तान से रुस चला गया। अमेरिका का काम पूरा हो गया। अब तालिबान उसके किसी के काम के नहीं रहे। लेकिन तालिबान को ऐसे इस्लाम का पाठ पढा+ गया, जो कुरआन में कहीं नजर नहीं आता। अब तालिबान को पढ़ाया गया इस्लाम पूरी दुनिया को परेशान कर रहा है।
तालिबान इतना ताकतवर हो गया है कि पाकिस्तानी फौजें भी पस्त हो गयी हैं। अमेरिका के माथे पर पसीना आ गया है। अफगानिस्तान से लगे पाकिस्तान के वजीरिस्तान में तो हुकूमत ही तालिबान की चलती है। कुछ महीने पहले ही पाकिस्तान सरकार ने वहां तालिबान शासन को मान्यता देकर अपनी हार कबूल कर ली थी। अफगानिस्तान में हामिद करजई प्रभावहीन हैं। हामिद करजई का तालिबान से पार पाना बेहद मुश्किल काम है। इस समय पाकिस्तान की हालत 'इधर कुआं, उधर खाई' वाली हो चुकी है। उसे समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे ? तालिबान पाकिस्तान से इसलिए नाराज है कि वह अमेरिका का पिछलग्गू क्यों बना हुआ है। इधर, आतंकवाद के खिलाफ जंग में पाकिस्तान का अमेरिका के साथ खड़े होना जरुरी है। अमेरिका कह ही चुका है कि जो हमारे साथ नहीं है, वह हमारा दुश्मन है। इस तरह से पाकिस्तान के वजूद को दोनों तरफ से खतरा ही खतरा है। इसलिए पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक उलेमाओं से गुहार लगा रहे हैं कि वे आतंकवाद के विरुद्ध फतवा जारी करें।
पाकिस्तान के उलेमा आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी करेंगे या नहीं, ये तो मालूम नहीं। लेकिन भारत के उलेमा तो मुंबई हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी कर चुके हैं। अभी हाल ही में जमीयत-ए-उलेमा हिन्द ने अपने इजलास में भी आतंकवाद के खिलाफ काफी मुखर हो कर बोला है। जब पूरी दुनिया में एक ही इस्लाम है। एक ही कुरआन है तो फिर भारत के उलेमाओं के फतवे को पाकिस्तान में प्रचारित करना चाहिए। क्या पाकिस्तान और भारत के उलेमा कुरआन की अलग-अलग व्याख्या करेंगे ? वैसे भी ऐसा तो होगा नहीं कि भारत के उलेमा के फतवे की खबर तालिबान या पाकिस्तान के अन्य आतंकवादियों तक नहीं पहुंची होगी। पता नहीं फतवे का असर आतंकवादियों पर हुआ है या नहीं ? चलिए मान लेते हैं कि पाकिस्तान के मुसलमानों में भारत के उलेमाओं के फतवे की कोई मान्यता नहीं है। यदि पाकिस्तान के उलेमा फतवा जारी कर भी देंगे तो क्या हो जाएगा। क्या फतवा जारी होने से सभी आतंकवादी हथियार डाल कर सूफी-संत बन जाएंगे ? क़ुरआन में तो साफ लिखा है कि 'जिसने भी किसी एक बेगुनाह को कत्ल किया, समझो उसने पूरी इंसानियत का कत्ल किया।' क्या इस बात को समझने के लिए किसी फतवे की जरुरत है ? लेकिन आतंकवादी सही इस्लाम को समझें तो बात बने। पाकिस्तान ने जैसा बीज बोया है, वैसी ही फसल काट रहा है। पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए कि तालिबान उसके वजूद के लिए हमेशा के लिए खतरा बन चुका है। यदि पाकिस्तानी हुक्मरानों को शांति चाहिए तो उसे सबसे पहले भारत के खिलाफ चलाए जा रहे अघोषित युद्ध को रोकना होगा। ठीक है तालिबान उसके बस में नहीं हैं, लेकिन वह इतना तो कर ही सकता है कि वह अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई, जो मुंबई जैसी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के लिए आतंकवादी तैयार करता है, उन पर रोक तो लगा ही सकता है। पाकिस्तान का हित भारत से दोस्ती करने में है, दुश्मनी करने में नहीं।
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