स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. पिछले पांच दशकों की जनगणना आंकड़ों के मुताबिक जनसंख्या में स्वाभाविक वृध्दि के कारण शहरी आबादी में 2.7 से 3.8 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृध्दि हुई है। यह मृत्यु दर की तुलना में जन्म दर के अधिक होने और रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीण इलाकों से शहरी क्षेत्रों में लोगों के आ जाने के कारण है।
11वीं योजना के दस्तावेज में शहरी आवास की समस्या पर बताया गया है कि शहरी आवास की आवश्यकता शहरों व कस्बों की वृध्दि के तौर-तरीकों और बस्तियों के वर्तमान स्तर तथा गुणवत्ता से सम्बध्द है। तेज गति से बढ़ रहे शहरों और कस्बों को विकसित करने और आवासों की तेज़ गति से आपूर्ति की आवश्यकता है। बढ़ते गरीब वर्गों के लिए अतिरिक्त आवासों की आवश्यकता आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (इडब्ल्यूएस) (एलआईजी) वर्गों द्वारा उसकी कीमत अदा न कर पाने के कारण मांग के रूप में परिवर्तित नहीं हो पाती। इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में शहरी आबादी सरकारी नगरपालिका की भूमि पर बसने लगती है और इस प्रकार स्लम तैयार होते हैं।
आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने शहरों में मकानों की कमी का जायजा लेने के लिए, 2006 में एक तकनीकी समूह गठित किया। उसने अनुमान लगाया है कि 10वीं पंचवर्षीय योजना के अंत (2007-08) में देश में मकानों की कुल कमी 247.1 लाख थी । 11वीं योजना के लिए अतिरिक्त 18.2 लाख आवासीय इकाइयों की आवश्यकता दिखाई गई है। इस प्रकार 11वीं योजना अवधि के दौरान कुल 265.3 लाख आवास इकाइयों की आवश्यकता होगी।
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