अशोक हांडू
एक जाने माने आर्थिक विचार-मंडल भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (सीएमआईई) ने अनुमान लगाया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 9.2 फीसदी की दर से वृध्दि करेगी। यह अनुमान सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों से कहीं बहुत ज्यादा है। सीएमआईई का कहना है कि उसका यह अनुमान औद्योगिक तथा उससे संबध्द क्षेत्रों के साथ साथ कृषि क्षेत्र के बेहतर निष्पादन की आशा पर आधारित है। हालांकि उसने साथ ही यह भी कहा है कि बहुत कुछ इस वर्ष मानसून अच्छा रहने पर निर्भर करेगा।
यह आकलन सरकार द्वारा जारी प्राथमिक आंकड़ों के अनुरूप ही है। वित्त मंत्रालय ने मौजूद वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 8.9 फीसदी की वृध्दि की आशा व्यक्त की थी। यह मार्च 2010 में समाप्त हुए पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में 0.3 फीसदी अधिक है। उद्योग जगत ने अप्रैल में 17.6 फीसदी वृध्दि दर्ज की जो पिछले 20 वर्ष में दिसंबर, 2009 में दर्ज 17.7 फीसदी की रिकार्ड वृध्दिदर के लगभग बराबर है। यह सशक्त वृध्दि पूंजीगत और उपभोक्ता दोनों तरह के जींसों में देखी गयी है।
मई में निर्यात 35 फीसदी बढक़र 16.1 अरब डालर तक पहुंच गया। हालांकि आयात में भी 19.8 फीसदी की वृध्दि हुई और वह 27.4 अरब डालर हो गया है। आयात और निर्यात में 11.3 अरब डालर का अंतर है। अप्रैल में भी निर्यात में करीब 35 फीसदी की बढोत्तरी हुई थी। इन सभी बातों से उम्मीद की किरण दिखती है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को सुहाना बताया है। उन्होंने इसे कम अस्थिरता के साथ ठोस वित्तीय क्षेत्र की संज्ञा दी है।
हालांकि मुद्रास्फीति और वित्तीय घाटे के मोर्चे पर चिंता भी है। मई के आंकड़े बताते हैं कि मुद्रास्फीति दर 10.2 फीसदी थी। इसका हल किया जाना बहुत जरूरी है लेकिन यह रातोंरात नहीं हो सकता। सरकार आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों पर ध्यान देते हुए सुव्यवस्थित ढंग से स्थिति से निबट रही है। रिजर्व बैंक ने खाद्य मुद्रास्फीति को थामने एवं उसे विनिर्मित वस्तुओं तक फैलने से रोकने के लिए इस वर्ष दो बार महत्त्वपूर्ण दरों में वृध्दि की है। सौभाग्य से, खाद्य मुद्रास्फीति दिसंबर की 20 फीसदी से घटकर अब 16 फीसदी हो गयी है। रिजर्व बैंक 27 जुलाई को स्थिति की समीक्षा करेगा।
आपूर्ति पक्ष के लिए राष्ट्र ने इस वर्ष अच्छे मानसून पर अपनी उम्मीदें टिका रखी हैं। मौसम विभाग ने भी इस वर्ष सामान्य मानसून का अनुमान व्यक्त किया है। अबतक के मानसून की स्थिति पर गौर करने से यह अनुमान सही जान पड़ता दिख रहा है।
सरकार ने बाजार में अपनी आपूर्ति बढाने के लिए कुछ जींसों के शुल्कमुक्त आयात की भी अनुमति दी है।
लेकिन अंतत: कृषि क्षेत्र ही वृध्दि लक्ष्यों को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की हाल की कृषि उत्पाद वृध्दि दो फीसदी से बढाक़र चार फीसदी करने की अपील को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। योजना आयोग ने वर्ष 2012 से शुरू होने वाली 12 वीं पंचवर्षीय योजना पर काम करना शुरू कर दिया है और वह 12 फीसदी की वृध्दि लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह ग्यारहवीं योजना में 8.1 फीसदी की लक्षित वृध्दि की पृष्ठभूमि में ही होगा। पहले ग्यारहवीं योजना के लिए वृध्दि दर 9 फीसदी तय की गयी थी लेकिन वैश्विक आर्थिक संकट के मद्देनजर इसे नीचे लाना पड़ा।
कृषि क्षेत्र में मंद वृध्दि के कारणों में एक उसकी वर्षों तक सतत उपेक्षा भी है। पिछले दो योजनाएं कृषि क्षेत्र में वांछित वृध्दि हासिल करने में विफल रहीं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी इस बात से सहमत हैं कि हमें इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ करना है। सरकार ने भी इस बात को समझा है। इसकी पुष्टि हाल ही में कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृध्दि से होती है। सरकार ने यह फैसला किसानों के हित में लिया है। हालांकि कुछ लोगों की यह दलील है कि इससे पहले से मंहगे कृषि जींसों के दाम और बढेंग़े। लेकिन ऐसा कुछ समय तक ही होगा। दीर्घकाल में जैसे ही कृषि कार्य लाभकारी बन जाएगा, आपूर्ति पक्ष सुधरेगा और कीमतें नीचे आएंगी।
आपको यह स्वीकारना होगा कि उच्च मुद्रास्फीति भारत के लिए कोई अजीब बात नहीं है। चीन में 19 महीनों में मई में सर्वाधिक मुद्रास्फीति रही। लेकिन यह हमारे लिए तसल्ली वाली बात नहीं है। मुद्रास्फीति पांच फीसदी के अंदर लाया जाना है तथा वित्तीय घाटा भी काफी कम किया जाना है।
यह संतोष की बात है कि सरकार को विश्वास है कि वह इस साल के अंत तक उच्च वृध्दि और निम्न मुद्रास्फीति दोनों मोर्चे पर सफल रहेगी और नया वित्त वर्ष की शुरूआत काफी अच्छी होगी। यदि ऐसा होता है तो देश और उसकी जनता के लिए आर्थिक विकास का नया परिदृश्य सामने आ जाएगा।
एक जाने माने आर्थिक विचार-मंडल भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (सीएमआईई) ने अनुमान लगाया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 9.2 फीसदी की दर से वृध्दि करेगी। यह अनुमान सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों से कहीं बहुत ज्यादा है। सीएमआईई का कहना है कि उसका यह अनुमान औद्योगिक तथा उससे संबध्द क्षेत्रों के साथ साथ कृषि क्षेत्र के बेहतर निष्पादन की आशा पर आधारित है। हालांकि उसने साथ ही यह भी कहा है कि बहुत कुछ इस वर्ष मानसून अच्छा रहने पर निर्भर करेगा।
यह आकलन सरकार द्वारा जारी प्राथमिक आंकड़ों के अनुरूप ही है। वित्त मंत्रालय ने मौजूद वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 8.9 फीसदी की वृध्दि की आशा व्यक्त की थी। यह मार्च 2010 में समाप्त हुए पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में 0.3 फीसदी अधिक है। उद्योग जगत ने अप्रैल में 17.6 फीसदी वृध्दि दर्ज की जो पिछले 20 वर्ष में दिसंबर, 2009 में दर्ज 17.7 फीसदी की रिकार्ड वृध्दिदर के लगभग बराबर है। यह सशक्त वृध्दि पूंजीगत और उपभोक्ता दोनों तरह के जींसों में देखी गयी है।
मई में निर्यात 35 फीसदी बढक़र 16.1 अरब डालर तक पहुंच गया। हालांकि आयात में भी 19.8 फीसदी की वृध्दि हुई और वह 27.4 अरब डालर हो गया है। आयात और निर्यात में 11.3 अरब डालर का अंतर है। अप्रैल में भी निर्यात में करीब 35 फीसदी की बढोत्तरी हुई थी। इन सभी बातों से उम्मीद की किरण दिखती है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को सुहाना बताया है। उन्होंने इसे कम अस्थिरता के साथ ठोस वित्तीय क्षेत्र की संज्ञा दी है।
हालांकि मुद्रास्फीति और वित्तीय घाटे के मोर्चे पर चिंता भी है। मई के आंकड़े बताते हैं कि मुद्रास्फीति दर 10.2 फीसदी थी। इसका हल किया जाना बहुत जरूरी है लेकिन यह रातोंरात नहीं हो सकता। सरकार आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों पर ध्यान देते हुए सुव्यवस्थित ढंग से स्थिति से निबट रही है। रिजर्व बैंक ने खाद्य मुद्रास्फीति को थामने एवं उसे विनिर्मित वस्तुओं तक फैलने से रोकने के लिए इस वर्ष दो बार महत्त्वपूर्ण दरों में वृध्दि की है। सौभाग्य से, खाद्य मुद्रास्फीति दिसंबर की 20 फीसदी से घटकर अब 16 फीसदी हो गयी है। रिजर्व बैंक 27 जुलाई को स्थिति की समीक्षा करेगा।
आपूर्ति पक्ष के लिए राष्ट्र ने इस वर्ष अच्छे मानसून पर अपनी उम्मीदें टिका रखी हैं। मौसम विभाग ने भी इस वर्ष सामान्य मानसून का अनुमान व्यक्त किया है। अबतक के मानसून की स्थिति पर गौर करने से यह अनुमान सही जान पड़ता दिख रहा है।
सरकार ने बाजार में अपनी आपूर्ति बढाने के लिए कुछ जींसों के शुल्कमुक्त आयात की भी अनुमति दी है।
लेकिन अंतत: कृषि क्षेत्र ही वृध्दि लक्ष्यों को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की हाल की कृषि उत्पाद वृध्दि दो फीसदी से बढाक़र चार फीसदी करने की अपील को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। योजना आयोग ने वर्ष 2012 से शुरू होने वाली 12 वीं पंचवर्षीय योजना पर काम करना शुरू कर दिया है और वह 12 फीसदी की वृध्दि लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह ग्यारहवीं योजना में 8.1 फीसदी की लक्षित वृध्दि की पृष्ठभूमि में ही होगा। पहले ग्यारहवीं योजना के लिए वृध्दि दर 9 फीसदी तय की गयी थी लेकिन वैश्विक आर्थिक संकट के मद्देनजर इसे नीचे लाना पड़ा।
कृषि क्षेत्र में मंद वृध्दि के कारणों में एक उसकी वर्षों तक सतत उपेक्षा भी है। पिछले दो योजनाएं कृषि क्षेत्र में वांछित वृध्दि हासिल करने में विफल रहीं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी इस बात से सहमत हैं कि हमें इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ करना है। सरकार ने भी इस बात को समझा है। इसकी पुष्टि हाल ही में कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृध्दि से होती है। सरकार ने यह फैसला किसानों के हित में लिया है। हालांकि कुछ लोगों की यह दलील है कि इससे पहले से मंहगे कृषि जींसों के दाम और बढेंग़े। लेकिन ऐसा कुछ समय तक ही होगा। दीर्घकाल में जैसे ही कृषि कार्य लाभकारी बन जाएगा, आपूर्ति पक्ष सुधरेगा और कीमतें नीचे आएंगी।
आपको यह स्वीकारना होगा कि उच्च मुद्रास्फीति भारत के लिए कोई अजीब बात नहीं है। चीन में 19 महीनों में मई में सर्वाधिक मुद्रास्फीति रही। लेकिन यह हमारे लिए तसल्ली वाली बात नहीं है। मुद्रास्फीति पांच फीसदी के अंदर लाया जाना है तथा वित्तीय घाटा भी काफी कम किया जाना है।
यह संतोष की बात है कि सरकार को विश्वास है कि वह इस साल के अंत तक उच्च वृध्दि और निम्न मुद्रास्फीति दोनों मोर्चे पर सफल रहेगी और नया वित्त वर्ष की शुरूआत काफी अच्छी होगी। यदि ऐसा होता है तो देश और उसकी जनता के लिए आर्थिक विकास का नया परिदृश्य सामने आ जाएगा।
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