प्रो. एम नागनाथन
तमिलनाडु के कोयंबटूर में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय शास्त्रीय तमिल सम्मेलन होने जा रहा है। इस महीने 23 तारीख से शुरू हो रहा यह पांच दिवसीय साहित्यिक-सांस्कृतिक समारोह आधुनिक तमिलनाडु के इतिहास में सबसे बड़ा समागम है। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल तमिल भाषा और संस्कृति की जानी मानी अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के सम्मुख इस साहित्यिक-सांस्कृतिक समारोह का उद्धाटन करेंगी। इन हस्तियों में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री डॉ. एम करूणानिधि भी शामिल हैं।
तमिल भाषा का 2000 सालों से भी अधिक पुराना इतिहास रहा है लेकिन सन् 2004 में जब केन्द्र सरकार ने उसे शास्त्रीय भाषा घोषित की तब ही उसे उचित पहचान मिली। इस पहचान से ही 21वीं सदी की ज्ञान क्रांति के सदंर्भ में तमिल भाषा तथा उसके काव्य एवं साहित्य के विकास के पूनर्मूल्यांकन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
इसी पृष्ठभूमि में , इस बात पर एक दृष्टिपात करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि विदेशी मिशनरियों एवं विद्वानों ने कैसे तमिल भाषा और संस्कृति को गले लगाया। जिन विद्वानों ने तमिल साहित्य, तमिल व्याकरण एवं काव्य की अनोखी पुरातनता एवं धरोहर की पहचान के साथ विविधता एवं समृध्दि के लिए कई व्याख्याएं दी हैं, उनमें कई जाने माने ईसाई मिशनरी एवं विद्वान हैं जो ऐतिहासिक काल के विभिन्न कालावधियों में दक्षिण भारत आए।
इतालवी जेसूट मिशनरी रोबर्टो डि नोबिलि सन् 1605 में तमिलनाडु के दक्षिणी हिस्से में आए। उन्होंने संस्कृत और तमिल साहित्य का गहन अध्ययन किया और तमिल काव्य के संवर्ध्दन में उल्लेखनीय योगदान दिया। तमिल भूमि पर ईसाईयत का प्रचार करने के दौरान उन्होंने तमिल साहित्य को कई तमिल शब्द दिए। कोविल यानी मंदिर, अरूल यानी कृपा, पोसाई यानी जनसमूह या आराधना जैसे शब्दों का ईजाद उन्होंने ही किया। अतएव वह तमिल काव्य लेखन के अग्रगामी समझे जाते हैं।
जर्मन लूथेरन जीगेनबाल्ग सन् 1709 में तमिलनाडु के थ्रांगमपादी न्न त्राणकुबेर न्न पहुंचे। वह भारत आने वाले पहले प्रोटेस्टैंट मिशनरी थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम प्रिटिंग प्रौद्योगिकी में तमिल भाषा का पर्दापण कराया। उनके द्वारा न्यू टेस्टामेंट का तमिल अनुवाद सन् 1715 में प्रकाशित हुआ। यह दावा किया जाता है कि उन्होंने ही 1716 में एशिया में पहली अंग्रेजी किताब लायी थी। उन्होंने तमिल शब्दकोश और व्याकरण की भी रचना की।
जीगनबाल्ग के बाद दूसरी इतालवी रेव. फादर बेसची सन् 1711 में मदुरै पहुंचे। उन्होंने भी तमिल का गहन अध्ययन किया और कई कृतियों की रचना की तथा व्याकरण भी लिखा। बाद में उन्होंने न्नचतुरकराति न्न नामक लोकप्रिय विशाल शब्दकोष तैयार किया। उनके इस उल्लेखनीय कार्य से कई पश्चिमी एवं पूर्वी विद्वानों का ध्यान शास्त्रीय तमिल की ओर आकर्षित हुआ। तमिल के प्रति उनके इस चिरस्थायी योगदान को उनके असाधारण महाकाव्य न्न थेम्बवाणी न्न में देखा जा सकता है जिसमें संत जोसेफ के जीवन के ऊपर 3615 छंद हैं।
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी फ्रांसीस व्हाइट इलियस सन् 1810 में मद्रास में बस गए और वह सन् 1819 में अपने देहांत तक वहीं रहे। उन्होंने संस्कृत के अलावा द्रविड़ भाषाओं - तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ पर गहन शोध किया। उन्हें तुलनात्मक द्रविड़ भाषा विज्ञान के क्षेत्र में पहला विद्वान समझा जाता है।
बिशप रॉबर्ट काल्डवेल ईसाई मिशनरी के रूप में तिरूनेलवेल्ली में कार्य किया। द्रविड़ भाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण के बाद उन्होंने न्न द्रविड़ भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण न्न जैसी प्रसिध्द रचना का निर्माण किया। इस रचना से व्यापक बौध्दिक बहस हुआ और विद्वानों को तमिल, द्रविड़ और भारतीय भाषाओं की गहराई में जाने की प्रेरणा मिली।
रेव. फादर, जार्ज उग्लाव पोप ( सन् 1820-1908) इसाई गुरू थे और उन्हें जी यू पोप के नाम से जाना जाता था। वह अपने धर्म के प्रचार के लिए आए थे। वह तमिल के प्रकांड पंडित तथा न्न थिरूकुरल न्न के व्याख्याता बन गए। वल्लुवर की विद्वता से आकर्षित होकर पोप ने कहा था, न्न कुरल काव्यात्मक रूप की वजह से अपनी लोकप्रियता के लिए जाना जाता है। न्न कुरल एक प्रकार का दोहा होता है जिसमें संशोधित और जटिल रूप में स्पष्ट, पूर्ण और अनोखा विचार होता है। उन्होंने वल्लुवर के मौलिक संदेशों को पहली बार अंग्रेजी में अपने तरह से प्रचार करने का प्रयास किया। उन्होंने विश्व साहित्य के प्रति वल्लुवर के अमर योगदान को पहचान दी और उन्हें यश प्रदान कराया।
विभिन्न यूरोपीय तमिल विद्वानों में प्रो. गिलबर्ट स्लेटर इंगलैंड के पहले अर्थशास्त्री थे जिन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में सन 1915 में प्रोफेसर और अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष का पद दिया गया था। उन्होंने अर्थशास्त्र में क्षेत्राध्ययन का सूत्रपात किया और अपने छात्रों को तत्कालीन दक्षिण आर्कट जिले के इरूवेली पत्तिनम और चेंगुलपुट जिले के सेलैयूर गांव ले गए। बहुभाषी विद्वान के रूप में उन्होंने प्रसिध्द शोध पुस्तक न्न द द्रविड़ियन एलीमेंट्स इन इंडियाज कल्चर न्न लिखी। वह इस बात को रूपायित करने वाले पहले विद्वान थे कि तमिल भाषा और सभ्यता की प्राचीनता 3500 वर्ष से अधिक पुरानी है। उनका न्न द्रविड़ न्न शब्द की व्याख्या भी आदर्श और अनोखा है। डॉ. गिलबर्ट ने तमिलों के अर्थशास्त्र को आधुनिक व्याख्या प्रदान की।
उन्होंने तमिल की यूरोप की शास्त्रीय भाषाओं लातिन और यूनानी भाषाओं से तुलना की थी और कहा था, न्न तमिल छंद रचना यूनानी और लातिन की तरह की मात्रा आधारित है, इसमें तुकबंदी होती है लेकिन छंद के प्रारंभ में न कि अंत में। इसमें अनुप्रास भी होता है लेकिन वह छंद के अंदर ही होता है न कि छंदों को जोड़ने के लिए। तमिल संगीत चतुष्कोणीय नाद पर आधारित होती है यानि आठ सुरों के अंतरा में सात के बजाय 28 खंड होते हैं। अपने व्यवस्थित एवं सूक्ष्म दार्शनिक विचारों की विशिष्ट खासियत के साथ भारतीय संस्कृति ऐसे ही लोगों से पनपी होगी जो इसका सृजन करने में समर्थ रहे होंगे। यह क्षमता स्वभाविक रूप से भाषा के विकास में भी दिखाई देती है और विशुध्द द्रविड़ भाषा किसी भी अन्य भारतीय भाषा की तुलना में इसे ज्यादा निखरता के साथ प्रदर्शित करती है । न्न
यूरोपीय विद्वानों के योगदान ने तमिल भाषा, गद्य एवं काव्य का न केवल तमिलनाडु में बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में भी शोध फिर शुरू करवाने में मदद पहुंचाया। तमिल में चार लाख से अधिक शब्द हैं। महान विद्वान वैयापुरी पिल्लई द्वारा तैयार और मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित तमिल शब्दकोश में 1.25 लाख से अधिक शब्द हैं और उसमें उनकी व्याख्याएं भी दी गयी हैं। महान विद्वान पवान्नार द्वारा तैयार और तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रकाशित तमिल शब्दकोष में हर शब्द व्युत्पत्तिशास्त्र के साथ दिया गया है। इस महती प्रयास को जारी रखते हुए तमिल विकास विभाग, तमिलनाडु सरकार ने तमिल शब्दों के व्युत्पत्तिशास्त्र को लेकर अबतक 20 खंड प्रकाशित किए हैं। इसमें हर संभव विवरण के साथ शब्दों के उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया गया है। तमिल विश्वविद्यालय, तंजावूर ने न्न डिक्शनरी ऑफ टेक्नीकल टर्म्स फ्रोम इंगलिश टू तमिल न्न प्रकाशित की और इसका सपांदन प्रसिध्द विद्वान डॉ. अरूली ने किया है। कई निजी प्रकाशनों के भी तमिल से तमिल, अंग्रेजी से तमिल और तमिल से अंग्रेजी शब्दकोश हैं। ये तमिल प्रतिष्ठा, अभिव्यक्ति की आधुनिकता एवं इसकी शास्त्रीय पहचान की जीता जागता सबूत हैं।
इस संदर्भ में कोयंबटूर में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय शास्त्रीय तमिल सम्मेलन 21 वीं सदी में तमिल भाषा के विकास एवं संवर्ध्दन में एक मील का पत्थर सिध्द होगा। अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त महान विद्वान, कवि, उपन्यासकार, प्रकांड धार्मिक विद्वान, और भाषा विज्ञानी इस पांच दिवसीय समागम में अपना शोध पत्र पेश करेंगे और अपना विचार रखेंगे।
नि:संदेह सम्मलेन के प्रतिफल से दुनियाभर में तमिल भाषा की महक, अनोखापन, समृध्दि और धरोहर का संवर्ध्दन और प्रचार प्रसार होगा और भारत की समग्र विकास प्रक्रिया में नया आयाम जुड़ेगा।
तमिलनाडु के कोयंबटूर में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय शास्त्रीय तमिल सम्मेलन होने जा रहा है। इस महीने 23 तारीख से शुरू हो रहा यह पांच दिवसीय साहित्यिक-सांस्कृतिक समारोह आधुनिक तमिलनाडु के इतिहास में सबसे बड़ा समागम है। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल तमिल भाषा और संस्कृति की जानी मानी अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के सम्मुख इस साहित्यिक-सांस्कृतिक समारोह का उद्धाटन करेंगी। इन हस्तियों में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री डॉ. एम करूणानिधि भी शामिल हैं।
तमिल भाषा का 2000 सालों से भी अधिक पुराना इतिहास रहा है लेकिन सन् 2004 में जब केन्द्र सरकार ने उसे शास्त्रीय भाषा घोषित की तब ही उसे उचित पहचान मिली। इस पहचान से ही 21वीं सदी की ज्ञान क्रांति के सदंर्भ में तमिल भाषा तथा उसके काव्य एवं साहित्य के विकास के पूनर्मूल्यांकन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
इसी पृष्ठभूमि में , इस बात पर एक दृष्टिपात करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि विदेशी मिशनरियों एवं विद्वानों ने कैसे तमिल भाषा और संस्कृति को गले लगाया। जिन विद्वानों ने तमिल साहित्य, तमिल व्याकरण एवं काव्य की अनोखी पुरातनता एवं धरोहर की पहचान के साथ विविधता एवं समृध्दि के लिए कई व्याख्याएं दी हैं, उनमें कई जाने माने ईसाई मिशनरी एवं विद्वान हैं जो ऐतिहासिक काल के विभिन्न कालावधियों में दक्षिण भारत आए।
इतालवी जेसूट मिशनरी रोबर्टो डि नोबिलि सन् 1605 में तमिलनाडु के दक्षिणी हिस्से में आए। उन्होंने संस्कृत और तमिल साहित्य का गहन अध्ययन किया और तमिल काव्य के संवर्ध्दन में उल्लेखनीय योगदान दिया। तमिल भूमि पर ईसाईयत का प्रचार करने के दौरान उन्होंने तमिल साहित्य को कई तमिल शब्द दिए। कोविल यानी मंदिर, अरूल यानी कृपा, पोसाई यानी जनसमूह या आराधना जैसे शब्दों का ईजाद उन्होंने ही किया। अतएव वह तमिल काव्य लेखन के अग्रगामी समझे जाते हैं।
जर्मन लूथेरन जीगेनबाल्ग सन् 1709 में तमिलनाडु के थ्रांगमपादी न्न त्राणकुबेर न्न पहुंचे। वह भारत आने वाले पहले प्रोटेस्टैंट मिशनरी थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम प्रिटिंग प्रौद्योगिकी में तमिल भाषा का पर्दापण कराया। उनके द्वारा न्यू टेस्टामेंट का तमिल अनुवाद सन् 1715 में प्रकाशित हुआ। यह दावा किया जाता है कि उन्होंने ही 1716 में एशिया में पहली अंग्रेजी किताब लायी थी। उन्होंने तमिल शब्दकोश और व्याकरण की भी रचना की।
जीगनबाल्ग के बाद दूसरी इतालवी रेव. फादर बेसची सन् 1711 में मदुरै पहुंचे। उन्होंने भी तमिल का गहन अध्ययन किया और कई कृतियों की रचना की तथा व्याकरण भी लिखा। बाद में उन्होंने न्नचतुरकराति न्न नामक लोकप्रिय विशाल शब्दकोष तैयार किया। उनके इस उल्लेखनीय कार्य से कई पश्चिमी एवं पूर्वी विद्वानों का ध्यान शास्त्रीय तमिल की ओर आकर्षित हुआ। तमिल के प्रति उनके इस चिरस्थायी योगदान को उनके असाधारण महाकाव्य न्न थेम्बवाणी न्न में देखा जा सकता है जिसमें संत जोसेफ के जीवन के ऊपर 3615 छंद हैं।
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी फ्रांसीस व्हाइट इलियस सन् 1810 में मद्रास में बस गए और वह सन् 1819 में अपने देहांत तक वहीं रहे। उन्होंने संस्कृत के अलावा द्रविड़ भाषाओं - तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ पर गहन शोध किया। उन्हें तुलनात्मक द्रविड़ भाषा विज्ञान के क्षेत्र में पहला विद्वान समझा जाता है।
बिशप रॉबर्ट काल्डवेल ईसाई मिशनरी के रूप में तिरूनेलवेल्ली में कार्य किया। द्रविड़ भाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण के बाद उन्होंने न्न द्रविड़ भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण न्न जैसी प्रसिध्द रचना का निर्माण किया। इस रचना से व्यापक बौध्दिक बहस हुआ और विद्वानों को तमिल, द्रविड़ और भारतीय भाषाओं की गहराई में जाने की प्रेरणा मिली।
रेव. फादर, जार्ज उग्लाव पोप ( सन् 1820-1908) इसाई गुरू थे और उन्हें जी यू पोप के नाम से जाना जाता था। वह अपने धर्म के प्रचार के लिए आए थे। वह तमिल के प्रकांड पंडित तथा न्न थिरूकुरल न्न के व्याख्याता बन गए। वल्लुवर की विद्वता से आकर्षित होकर पोप ने कहा था, न्न कुरल काव्यात्मक रूप की वजह से अपनी लोकप्रियता के लिए जाना जाता है। न्न कुरल एक प्रकार का दोहा होता है जिसमें संशोधित और जटिल रूप में स्पष्ट, पूर्ण और अनोखा विचार होता है। उन्होंने वल्लुवर के मौलिक संदेशों को पहली बार अंग्रेजी में अपने तरह से प्रचार करने का प्रयास किया। उन्होंने विश्व साहित्य के प्रति वल्लुवर के अमर योगदान को पहचान दी और उन्हें यश प्रदान कराया।
विभिन्न यूरोपीय तमिल विद्वानों में प्रो. गिलबर्ट स्लेटर इंगलैंड के पहले अर्थशास्त्री थे जिन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में सन 1915 में प्रोफेसर और अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष का पद दिया गया था। उन्होंने अर्थशास्त्र में क्षेत्राध्ययन का सूत्रपात किया और अपने छात्रों को तत्कालीन दक्षिण आर्कट जिले के इरूवेली पत्तिनम और चेंगुलपुट जिले के सेलैयूर गांव ले गए। बहुभाषी विद्वान के रूप में उन्होंने प्रसिध्द शोध पुस्तक न्न द द्रविड़ियन एलीमेंट्स इन इंडियाज कल्चर न्न लिखी। वह इस बात को रूपायित करने वाले पहले विद्वान थे कि तमिल भाषा और सभ्यता की प्राचीनता 3500 वर्ष से अधिक पुरानी है। उनका न्न द्रविड़ न्न शब्द की व्याख्या भी आदर्श और अनोखा है। डॉ. गिलबर्ट ने तमिलों के अर्थशास्त्र को आधुनिक व्याख्या प्रदान की।
उन्होंने तमिल की यूरोप की शास्त्रीय भाषाओं लातिन और यूनानी भाषाओं से तुलना की थी और कहा था, न्न तमिल छंद रचना यूनानी और लातिन की तरह की मात्रा आधारित है, इसमें तुकबंदी होती है लेकिन छंद के प्रारंभ में न कि अंत में। इसमें अनुप्रास भी होता है लेकिन वह छंद के अंदर ही होता है न कि छंदों को जोड़ने के लिए। तमिल संगीत चतुष्कोणीय नाद पर आधारित होती है यानि आठ सुरों के अंतरा में सात के बजाय 28 खंड होते हैं। अपने व्यवस्थित एवं सूक्ष्म दार्शनिक विचारों की विशिष्ट खासियत के साथ भारतीय संस्कृति ऐसे ही लोगों से पनपी होगी जो इसका सृजन करने में समर्थ रहे होंगे। यह क्षमता स्वभाविक रूप से भाषा के विकास में भी दिखाई देती है और विशुध्द द्रविड़ भाषा किसी भी अन्य भारतीय भाषा की तुलना में इसे ज्यादा निखरता के साथ प्रदर्शित करती है । न्न
यूरोपीय विद्वानों के योगदान ने तमिल भाषा, गद्य एवं काव्य का न केवल तमिलनाडु में बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में भी शोध फिर शुरू करवाने में मदद पहुंचाया। तमिल में चार लाख से अधिक शब्द हैं। महान विद्वान वैयापुरी पिल्लई द्वारा तैयार और मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित तमिल शब्दकोश में 1.25 लाख से अधिक शब्द हैं और उसमें उनकी व्याख्याएं भी दी गयी हैं। महान विद्वान पवान्नार द्वारा तैयार और तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रकाशित तमिल शब्दकोष में हर शब्द व्युत्पत्तिशास्त्र के साथ दिया गया है। इस महती प्रयास को जारी रखते हुए तमिल विकास विभाग, तमिलनाडु सरकार ने तमिल शब्दों के व्युत्पत्तिशास्त्र को लेकर अबतक 20 खंड प्रकाशित किए हैं। इसमें हर संभव विवरण के साथ शब्दों के उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया गया है। तमिल विश्वविद्यालय, तंजावूर ने न्न डिक्शनरी ऑफ टेक्नीकल टर्म्स फ्रोम इंगलिश टू तमिल न्न प्रकाशित की और इसका सपांदन प्रसिध्द विद्वान डॉ. अरूली ने किया है। कई निजी प्रकाशनों के भी तमिल से तमिल, अंग्रेजी से तमिल और तमिल से अंग्रेजी शब्दकोश हैं। ये तमिल प्रतिष्ठा, अभिव्यक्ति की आधुनिकता एवं इसकी शास्त्रीय पहचान की जीता जागता सबूत हैं।
इस संदर्भ में कोयंबटूर में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय शास्त्रीय तमिल सम्मेलन 21 वीं सदी में तमिल भाषा के विकास एवं संवर्ध्दन में एक मील का पत्थर सिध्द होगा। अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त महान विद्वान, कवि, उपन्यासकार, प्रकांड धार्मिक विद्वान, और भाषा विज्ञानी इस पांच दिवसीय समागम में अपना शोध पत्र पेश करेंगे और अपना विचार रखेंगे।
नि:संदेह सम्मलेन के प्रतिफल से दुनियाभर में तमिल भाषा की महक, अनोखापन, समृध्दि और धरोहर का संवर्ध्दन और प्रचार प्रसार होगा और भारत की समग्र विकास प्रक्रिया में नया आयाम जुड़ेगा।
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