पेशकश : सरफ़राज ख़ान
टोटकों का चलन पुराना और अंधविश्वास से जुडा है। मगर हैरत की बात तो यह भी है कि अनेक विश्व विख्यात लेखक भी इन पर यकीन करते थे और लेखन के समय इनका नियमित रूप से पालन करते थे, जो बाद में उनकी आदत में शुमार भी हो गया। महान फ्रांसीसी लेखक एलेक्जेंडर डयूमा का विचार था कि सभी प्रकार की रचनाएं एक ही रंग के कागज पर नहीं लिखनी चाहिए। उनके मुताबिक उपन्यास आसमानी रंग के कागज़ पर और अन्य रचनाएं गुलाबी रंग के कागज़ पर लिखनी चाहिए।
मगर प्रख्यात हिन्दी लेखक रांगेय राघव को फुलस्केप आकार का कागज भी बेहद छोटा लगता था। ब्राह्म ग्रीन बलकभ साफ लकीरदार वाले कागज पर लिखते थे। अगर उस पर जरा-सा भी कोई धब्बा लग जाता था तो वे उसे फौरन फाड देते थे और फिर नए साफ़ कागज़ पर लिखना शुरू करते थे। उनका यह भी मानना था कि जब वे ख़ुद को उदास महसूस करते थे और डेस्क पर बैठते तो शब्द झरने की तरह फूट पड़ते थे। उदासी भरा दिन उनके लेखन के लिए बेहद कारगर साबित होता था।
इसी तरह चार्ल्स आउडिलायर (1821-1867) नामक फ्रेंच कवि को हरा रंग लिखने की प्रेरणा देता था। इसलिए उन्होंने अपने बाल ही हरे रंग में रंग डाले थे। प्रख्यात समीक्षक डॉ। सैम्युअल जॉन्सन अपनी पालतू बिल्ली लिली को मेज पर बिठाकर ही लिख पाते थे। गार्डन सेल्फिज शनिवार को दोपहर में और शेष दिनों में रात के समय लिखते थे। शनिवार को दोपहर में वह खुद को विशेष उत्साहित महसूस करते थे।
विख्यात अंग्रेजी उपन्यासकार और समीक्षक मैक्स पैंबर सिर्फ सुबह दस बजे तक ही लिखते थे। इसलिए एक उपन्यास को पूरा करने में उन्हें बहुत ज्यादा समय लगता था। इटली के लेखक जियो ऑक्चिनी रौसिनी (1791-1868) लिखने का मूड बनाने के लिए हमेशा नकली बालों की तीन विग पहना करते थे। प्रसिध्द जर्मन कवि फेडरिक वान शिल्लर (1759-1805) की आदत भी कम अजीब नहीं थी। वे अपने पैरों को बर्फ के पानी में डुबोकर ही कविताएं लिख सकते थे। अगर वे ऐसा नहीं करते थे तो उन्हें कविता का एक भी शब्द नहीं सूझता था।
फ्रांसीसी भाषा के सुप्रसिध्द साहित्यकार तथा रमणी रसिक चिरकुमार मोंपासा मूड फ्रैश होने पर ही लिखते थे। अपने को तरोताजा करने के लिए वे नाव चलाते, मछलियां पकड़ते या फिर मित्रों के साथ हंसी-ठिठौली करते थे। राइज एंड फास्स ऑफ रोमन एंपायर के लेखक नाटककार गिब्सन को लिखने के लिए पहले एकाएक संजीदा होना पडता था। महान फ्रांसीसी लेखक बाल्लाजाक की आदत भी विचित्र थी। वह दिन में फैशन के कपड़े पहनते और रात को लिखते समय पादरियों जैसा लिबास पहनते थे।
सुप्रसिध्द लेखक बरटेड रसेल का अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में कहना था कि उनका लेखन मौसम पर ही आधारित होता है। खुशगवार मौसम में वे रात-दिन लिखते थे और गर्मी वाले उमस भरे दिन में वे लिखने से कतराते थे। एईडब्ल्यू मेसन भी मूडी स्वभाव के थे। जब उनका मन करता तभी लिखने बैठते। वे रात या दिन मूड होने पर कभी भी लिख सकते थे।
गोल्जस्मिथ को लिखने से पहले सैर करने का भी शौक था। अपने उपन्यास, कविताएं और नाटक रचने के दौरान उन्होंने दूर-दराज के इलाकों की यात्रा की। गिलबर्टफे्रंको सुबह नौ बजे से दोपहर दो बजे तक लिखा करते थे। दोपहर के भोजन के बाद एक घंटे लिखते थे और फिर वह शाम को भी दो घंटे तक लिखते थे। रात को लिखना उन्हें जरा भी पसंद नहीं था। सर ऑर्थर पिनेरी को केवल रात में ही लिखना पसंद था। दिन में अगर वे लिखने बैठते तो उन्हें कुछ सूझता ही नहीं था। इसी तरह की आदत लुई पार्कर को भी थी। वे दिनभर सोते और रात को जागकर लिखते थे। अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन को औंधे मुंह लेटकर लिखने की अजीब आदत थी।
अर्नेस्ट हेमिंगवे फ्रांस के क्रांतिकारी लेखक विक्टर ह्यूमो और पंजाबी के उपन्यासकार नानक सिंह को खडे होकर लिखने की आदत थी। विस्मयली लैक्स सुबह चार बजे से दिन के 11 बजे तक और शाम को साढे सात बजे तक तथा रात को फिर 11 बजे तक लिखते थे। उनका बाकी का समय सोने और चाय पीने में बीतता था। प्रख्यात रूसी लेखक फीडिन ने जब उपन्यास असाधारण ग्रीष्म ऋतु लिखा तब वह समुद्र किनारे रह रहे थे। उनका मानना था कि समुद्र की लहरों की गूंज की आवाज उन्हें निरंतर लिखने के लिए प्रेरित करती थी।
हैरसवासिल सुबह नौ बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम को पांच बजे से सात बजे तक लिखते थे। डेलिस ब्रेडकी केवल तीन घंटे ही लिखते थे और वह भी सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक। सर ऑर्थर कान डायल केवल सुकून महसूस करने पर ही लिखते थे। अगर किसी बात से उनका मन जरा भी विचलित होता तो वे एक पंक्ति भी नहीं लिख पाते थे। जर्मनी के कार्लबेन को लिखने की प्रेरणा संगीत से मिलती थी। उन्होंने अपनी पसंद के गाने रिकॉर्ड कर रखे थे। पहले वे टेप चलाते और फिर लिखने बैठते।
भैया भारत के लेखको के भी बहुत सारे टोटके है । वैसे अब ब्लॉग लेखकों के भी टोटके शुरू होने वाले हैं ।
कम रोमांचक नहीं है ये आलेख अच्छा लगा पढ़ कर .....
regards