प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर झारखंड राज्य के दस साल पूरे होने को हैं। बिहार से अलग कर बनाए गए इस राज्य में विकास की असीम और अपार संभावनाएं हैं, लेकिन नक्सली गतिविधियों और राजनीतिक अस्थिरताओं के चलते राज्य के विकास पर काफी असर पड़ा है।
वन संपदा और खदानों के इस राज्य में हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव जनता की ओर से नक्सिलयों को करारा जवाब है। राज्य में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं, जिनमें से 9 सीटें अनुसूचित जाति और 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। राज्य में कुल 1 करोड़ 80 लाख 27 हज़ार 476 मतदाता हैं। कुल 24 में से 22 जिले नक्सलियों की चपेट में हैं और आए दिन यहां नक्सलियों का तांडव दिखता रहता है। विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही सीपीआई ( माओवादी ) और अन्य उग्रवादी संगठनों ने इसके बहिष्कार का एलान कर दिया। साथ ही चुनाव के दौरान घर से बाहर निकलने वाले मतदाताओं को भी अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली, लेकिन राज्य की जागरूक जनता ने इन धमकियों को नजरअंदाज करते हुए जमकर चुनाव में भागीदारी दिखाई और वोट डालने के लिए मतदान केंद्रों पर काफी संख्या में पहुंचे।
राज्य में विधानसभा चुनाव कुल पांच चरणों में कराए गए, इस दौरान नक्सलियों ने कई जगह हिंसक कार्रवाई कर जनता को डराने और प्रशासन को नुकसान पहुंचाने की काफी कोशिश की, पर जनता ने मतकेंद्रों तक पहुंचकर नक्सलियों को करारा जवाब दिया और लोकतंत्र में पूरी आस्था प्रकट की। इसी का परिणाम है कि राज्य में कुल 58 प्रतिशत से ज्यादा वोट डाले गए। सभी लोग, चाहे वे युवा हों, महिलाएं हों या फिर बुजुर्ग, मतदान केंद्रों में काफी संख्या में पहुंचे।
नक्सलियों की धमकी और वोट लुटेरों से जनता न डरे और शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव हो, इसके लिए चुनाव आयोग ने भी अपनी तरफ से काफी कोशिशें कीं और सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए। इस छोटे से राज्य में चुनाव पांच चरणों में कराए गए। चुनाव आयोग की तरफ से कुल 78 फीसदी मतदाताओं को फोटो पहचान पत्र दिए गए। कहीं किसी तरह की चुनावी धांधली न हो, इसकी रोक के लिए सभी जिलों में वीडियो रिकॉर्डिंग भी करवाई गई। चुनाव आयोग की पूरी टीम राज्य में हर हिस्से में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराने की कोशिश में जुटी रही और जिस तरह से भारी मतदान हुआ उससे ये समझा जा सकता है कि चुनाव आयोग अपनी कोशिशों में सफल भी रहा।
झारखंड नक्सलियों का गढ माना जाता है और इसके पड़ोसी राज्य भी नक्सल प्रभावित हैं। यहां आए दिन नक्सली अपना तांडव दिखाते रहते हैं। नक्सली हिंसा और उनकी धमकियों के बाद हर किसी की नजर यहां के चुनाव पर टिकी थी। खासकर यहां गृह मंत्रालय की पैनी नजर थी। केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नक्सलियों से हिंसा और असहयोग की राह छोड़कर मुख्यधारा में लौटने और जनता से काफी संख्या में मतदान केंद्रों पर पहुंचने की अपील की। सरकार ने जनता को भरोसा दिलाया कि उन्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है और वो बिना डर के मतदान केंद्रों तक पहुंचें। सरकार की इस अपील का असर जनता पर पड़ा और वो काफी संख्या में मतदान केंद्रों तक पहुंचें। इस पर गृह मंत्री पी चिदंबरम ने खासकर खुशी जताई और जनता को धन्यवाद दिया।
राज्य में छिटपुट हिंसा को छोड़कर मतदान शांतिपूर्ण रहा। चुनाव के दौरान हिंसा में 12 पुलिसकर्मी शहीद हुए, जिसमें से केंद्रीय अर्ध-सैनिक बलों के 6 जवान, झारखंड राज्य के 5 पुलिसकर्मी और बिहार पुलिस का 1 जवान शहीद हुए। इन शहीद जवानों के परिवार वालों को गृह मंत्री ने जल्द से जल्द मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। साथ ही इसके अनुपालन की रिपोर्ट भी 15 जनवरी 2010 तक प्रस्तुत करने को कहा है।
नक्सलवादी जिस तरीके से अपना विस्तार करते जा रहे हैं उससे पूरा सरकारी तंत्र चिंतित है... यहां तक कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी इन नक्सलवादियों से मुख्यधारा में लौटने की अपील कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया है कि आदिवासी इलाकों का जितना विकास होना चाहिए था वो नहीं हुआ है और सरकार इस कोशिश में जुटी है कि इन्हें इनका वाजिव हक दिलाया जाए ताकि अब तक विकास की राह में पीछे रहे इन इलाकों में विकास की नई कहानी लिखी जाए और इनकी प्राकृतिक धरोहरों को बचा कर इन्हें नई दुनिया से जोड़ा जाए।
झारखंड में चुनाव पांच चरणों में कराने पर पहले तो सवाल उठे कि इस छोटे से राज्य में इतने लंबे चरणों में चुनाव कराने की क्या जरूरत है। पर जब चुनाव शांतिपूर्वक और निष्पक्ष तरीके से निपट गए तो चुनाव आयोग का ये निर्णय सही लगने लगा। चुनाव की रपऊतार पहले चरण में थोड़ी धीमी जरूर रही पर आखिरी यानि पांचवें चरण तक आते-आते चरम पर पहुंच गई। चुनाव आयोग की तरफ से जारी किए गए आकड़ों पर नजर डालते हैं तो हर चरण में कितने वोट पड़े ये साफ हो जाता है। पहले चरण में 30 सीटों के लिए करीब 53.1 प्रतिशत वोट पड़े। दूसरे चरण में 15 सीटों के लिए 58.8 प्रतिशत वोट, तीसरे चरण में 7 सीटों पर मतदान हुआ और 57.2 प्रतिशत वोट पड़े, चौथे चरण में 14 सीटों पर करीब 64.3 प्रतिशत वोट पड़े और पांचवें व आखिरी चरण में कुल बची 15 सीटों पर मतदान हुआ और 58.12 प्रतिशत जनता ने अपने वोट का इस्तेमाल किया।
झारखंड में लोकतंत्र का महापर्व यानि मध्यावधि चुनाव शांतिपूर्ण और निष्पक्ष तरीके से संपन्न हो गया। राज्य के आधे से ज्यादा लोगों ने इस महापर्व में अपनी आस्था बढ-चढक़र दिखाई है। ऐसे में लोकतंत्र का मजाक बनाने वाले सीपीआई (माओवादी ) और दूसरे उग्रवादी संगठनों को इस तरह के सफल चुनावों से सबक लेना चाहिए और सोचना चाहिए कि आखिरकार सरकारी संपत्तियों और जनता की जान को नुकसान पहुंचाकर वो क्या हासिल करना चाहते हैं ? आखिर इन चुनावों ने ये साफ कर दिया है कि जनता नक्सलियों के डर से न तो घबराती है और न ही उनके अलगाववाद और हिंसा के रास्ते का समर्थन करती है। तो सवाल अब नक्सलियों के सामने है कि वो कौन-सा रास्ता अपनाएं -- लोकतंत्र में विश्वास का या फिर हिंसा का।
झारखंड के सफल चुनाव नक्सलियों के लिए एक सबक साबित हो सकते हैं और दूसरे राज्य जो नक्सल प्रभावित हैं उनके लिए प्रेरणास्रोत। सरकार के बार-बार अपील करने के बावजूद नक्सल हिंसा की राह पर आगे ही बढ़ते जा रहे हैं। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। ऐसे में नक्सली अगर अपनी मांग को हिंसा की रणनीति से अलग कर सरकार के साथ बैठकर सुलझाएं तो शायद नक्सलियों का भी भला हो और देश की जनता का भी.... जो जाने - अनजाने में गलत रास्ते पर भटक गए हैं.... और उन्हें वही रास्ता सही लगता है। नक्सली अपने हक की लड़ाई लड़ने की बात करते हैं पर ये कैसी हक की लड़ाई है, जो जनता की जान लेकर लड़ी जा रही है। जिसमें हर किसी का नुकसान ही नुकसान है। तो फिर क्यों न हिंसा का रास्ता छोड़ लोकतंत्र में आस्था जताई जाए!
भारत की जनता का लोकतंत्र में पूरा विश्वास है और झारखंड के सफल चुनाव से ये विश्वास और पक्का और मजबूत होता है। अब नई सरकार की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो जनता के इस फैसले पर खरी उतरे और लोकतंत्र में जनता के विश्वास को और मजबूती दे। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)
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