ईश्वर धामु
चंडीगढ़ (हरियाणा). हरियाणा से राज्यसभा की खाली हुई दो सीटों के लिए चुनाव अधिसूचना जारी होने के साथ ही प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। राज्यसभा में जाने वाले नेताओं ने अपने राजनीतिक आकाओं की कोठियों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं। पार्टी टिकट पाने के लिए राजनीतिक गोटियां बैठाने में नेता लग गए हैं। गौर तलब होगा कि हरियाणा में इनेलो के पार्टी महासचिव अजय चौटाला द्वारा डबावाली से विधायक चुने जाने के बाद त्यागपत्र दिए जाने तथा इनेलो के सांसद तिरलोचन सिंह का कार्यकाल पूरा हो जाने से रायसभा की दो सीटें खाली हुई है। इन दो सीटों के लिए 23 जून से ही प्रक्रिया शुरू हो जायेगी और 10 जुलाई को मतदान होगा। विधानसभा में पार्टी विधायकों की संख्या के अनुसार इन दो सीटों में से एक सीट 45 विधायको वाली कांग्रेस पार्टी को और दूसरी 32 विधायकों वाली इनेलो को जानी निश्चित है।
कांग्रेस और इनेलो दोनों दलों के सामने प्रत्याशी चुनने का बड़ा दायित्व आन पड़ा है। इनेलो की अपेक्षा कांग्रेस के लिए यह कड़ी चुनौती का काम है। कांग्रेस की टिकट पाने के लिए लाईन में पूर्व वित्त मंत्री बीरेन्द्र सिंह सबसे आगे चल रहे हैं। यह इसलिए कहा जाता है कि बीरेन्द्र सिंह का भाग्य उनसे ऐन टाइम पर दगा करता है। चाहे वों समय उनको मुख्यमंत्री चुने जाने का हो या फिर मंत्री पद देने का। हर बार आपेक्षित राजनीतिक लाभ के पास पहुंच कर भी श्री सिंह की इच्छा पूरी नहीं हो पाती, लेकिन दिल्ली दरबार में बीरेन्द्र सिंह की बड़ी पहुंच का लाभ इस बार उनको मिल सकता है। विधानसभा चुनाव - 2009 अपने ही क्षेत्र उचाना कलां से हार जाने के बाद कांग्रेस ने उनको महत्व को कम नहीं होने दिया और हुड्डा सरकार की कार्य प्रणाली पर नजर रखने वाली कमेटी में ला कर उनका राजनीतिक कद ऊंचा रखा, लेकिन मुख्यमंत्री विरोधी होने का उनको लाभ कम और नुकसान अधिक हुआ है। चुनाव हार जाने के बाद श्री सिंह ने दिल्ली दरबार में अपनी पहुंच बढ़ाई है। ऐसे में बड़ी सम्भावना है कि कांग्रेस उनको राज्यसभा में भेज कर उनके गिले दूर कर दे ? अगर राजनीतिक नजरिए से देखा जाएं तो मुख्यमंत्रीं भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी उनको राज्यसभा में भेजे जाने पर अपनी सहमति की मोहर लगा ही देंगे। बीरेन्द्र सिंह के अलावा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष फूलचंद मुलाना, योजना बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष रणजीत सिंह, मुख्य संसदीय सचिव राव दानसिंह का नाम रायसभा सीट के लिए प्रबल दावेदारों में से है, लेकिन दिल्ली के कांग्रेस गलियारों में वीके हरि प्रसाद का नाम आने से हरियाणा के कांग्रेसियों की दिलो की धड़कन बढ़ गई है। इस बार एक नया मौड़ यह आया है कि हरियाणा के वैश्य समुदाय में राजनीतिक जागरूकता का अभियान चलाने में जूटी अग्रवाल वैश्य समाज नामक संगठन ने रायसभा सीट पर वैश्य समाज का दावा ठोक दिया है। मिली जानकारी के अनुसार अग्रवाल वैश्य समाज ने संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला का नाम पार्टी की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तक पहुंचा दिया है। अग्रवाल समाज की कई राष्ट्रीय संगठनों के उंचे औहदों पर रहे अशोक बुवानीवाला को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का विश्वसनीय होने का लाभ मिल सकता है, क्योंकि वे पिछले शासनकाल में मुख्यमंत्री के मीडिया को-ऑर्डिनेटर रह चुके हैं और उनके काम से मुख्यमंत्री पूरी तरह संतुष्ट बताए जाते हैं। सूत्रों पर विश्वास करें तो श्री बुवानीवाला को एक केंद्रय मंत्री और श्रीमती सोनिया गांधी की आंतरिक मंडली का एक कद्दावर नेता का आशीर्वाद प्राप्त है। इसी मुहिम को लेकर श्री बुवानीवाला इन दिनों दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं।
राज्यसभा में अपना प्रत्याशी बनाने के मुद्दे पर इनेलो भी अभी दुविधा में चल रही बताते हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इनेलो के थिंक टैंक अभी दो विकल्पों पर काम कर रहे हैं। बताया गया है कि इनेलो चाहती है कि इद्री से विधायक डाक्टर अशोक कश्यप को रायसभा में भेज दिया जाएं और उनके त्यागपत्र के साथ खाली होने वाली इस सीट से पहले कांग्रेस छोड़ हजकां के रास्ते इनेलो में आने वाले पूर्व विधायक राकेश कम्बोज को पार्टी प्रत्याशी बनाया जाएं। सूत्र कहते हैं कि इनेलो में शामिल होने से पूर्व पार्टी ने उनसे ऐसा वायदा किया था ? लेकिन पार्टी के नीति निर्धारक दूसरे विकल्प पर गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। दूसरा विकल्प यह बताया गया है कि पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला खुद ही रायसभा में चले जाएं ? पार्टी इस विकल्प पर आने वाले कल की राजनीति को ध्यान में रखकर विचार कर रही है। इस सोच के पीछे एक यह भी विचार बताया जाता है कि श्री चौटाला रायसभा पहुंच कर हरियाणा में अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी का अघोषित ऐलान कर देंगे। दूसरे यह बात भी सही है कि इनेलो की एक राजनीतिक कमजोरी केन्द्रीय राजनीति में प्रभावी हिस्सेदारी का ना होना भी है। कांग्रेस विरोधी दलों से ओम प्रकाश चौटाला रायसभा में पहुंच कर तालमेल बैठा सकते हैं। दूसरी ओर हरियाणा में उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को पूरा एक्सपोजर मिल जायेगा, जो उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने को साकार कर सकता है। वैसे भी राजनीति में आने वाला समय युवा नेतृत्व का है।
राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि इनेलो के मुकाबले कांग्रेसी प्रत्याशी की जीत का रास्ता इतना आसान नहीं है, क्योंकि कांग्रेस का विधायक दल कई विचारों में बंटा हुआ है। इसका लाभ भी इनेलो उठाने से नहीं चुकेगी। समान्यतय: यह समस्या उस समय आ सकती है, जब पार्टी प्रत्याशी मुख्यमंत्री का पशंदीदा न हो ? आने वाले दिनों में हालात चाहे जो भी बने लेकिन दोनो पार्टियां अपने पत्ते आखरी समय पर ही खोलेगी।
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