स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. देश के मुसलमानों की माली हालत बहुत खराब है. क़रीब एक तिहाई मुसलमान 550 रुपए प्रतिमाह से भी कम आमदनी में ज़िन्दगी गुज़ारने को मजबूर हैं. नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के मुताबिक़ साल 2004-05 में हर दस में तीन मुसलमान गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे थे, यानी उनकी मासिक आमदनी 550 रुपए से भी कम थी. गांवों में रहने वालों की आमदनी महज़ 338 रुपए प्रतिमाह ही थी.
गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में आंध्र प्रदेश के पिछड़े मुसलमानों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में चार फ़ीसदी आरक्षण दिए जाने देने को जायज़ करार दिया है. साथ ही रंगनाथ मिश्र आयोग ने मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश की है. मिश्र आयोग की रिपोर्ट में इस्लाम व ईसाई धर्म अपना चुके दलितों को अनुसूचित जाति में दर्ज करने की सिफ़ारिश भी शामिल है.
इससे पहले मुसलमानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आकलन के लिए बनी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट भी मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने की सिफ़ारिश कर चुकी है. रिपोर्ट में बताया गया था कि मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा दलित हिंदुओं और पिछड़े वर्ग से भी बदतर हालत में ज़िन्दगी बसर कर रहा है. कमेटी ने अपनी सिफारिशों में कहा था कि इस मुसलमानों के लिए अतिरिक्त अनुदान की व्यवस्था हो, जो इस समुदाय की शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किया जाए.