चांदनी रात में कुछ भीगे ख्यालों की तरह
मैंने चाहा है तुम्हें दिन के उजालों की तरह
साथ तेरे जो गुज़ारे थे कभी कुछ लम्हें
मेरी यादों में चमकते हैं मशालों की तरह
इक तेरा साथ क्या छूटा हयातभर के लिए
मैं भटकती रही बेचैन गज़ालों की तरह
फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह
तेरे आने की ख़बर लाई हवा जब भी कभी
धूप छाई मेरे आंगन में दुशालों की तरह
कोई सहरा भी नहीं, कोई समंदर भी नहीं
अश्क आंखों में हैं वीरान शिवालों की तरह
पलटे औराक़ कभी हमने गुज़श्ता पल के
दूर होते गए ख़्वाबों से मिसालों की तरह
-फ़िरदौस ख़ान
Firdaus's Diary
ये लखनऊ की सरज़मीं ... - * * *-फ़िरदौस ख़ान* लखनऊ कई बार आना हुआ. पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान...और फिर यहां समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद. हमें दावत दी गई थी क...