जगदीश्वर चतुर्वेदी
भारत में ‘ट्विटर’ को अभी भी बहुत सारे ज्ञानी सही राजनीतिक अर्थ में समझ नहीं पाए हैं, खासकर मीडिया से जुड़े लोग भारत के विदेश राज्यमंत्री शशि थरुर के ‘ट्विटर’ संवादों पर जिस तरह की बेवकूफियां करते हैं उसे देखकर यही कहने की इच्छा होती है कि हे परमात्मा इन्हें माफ करना ये नहीं जानते कि ये क्या बोल रहे है।
‘ट्विटर‘ मूलतः नयी संचार क्रांति का मानवाधिकार कार्यकर्ता है। यह महज संचार का उपकरण मात्र नहीं है। यह साधारण जनता का औजार है। यह ऐसे लोगों का औजार है जिनके पास और कोई अस्त्र नहीं है।
इन दिनों चीन में जिस तरह का दमन चक्र चल रहा है। उसके प्रत्युत्तर में चीन में मानवाधिकार कर्मियों के लिए ‘ट्विटर’ सबसे प्रभावशाली संचार और संगठन का अस्त्र साबित हुआ है। जगह-जगह साधारण लोग ‘ट्विटर’ के जरिए एकजुट हो रहे हैं। लेकिन एक परेशानी भी आ रही है। ‘ट्विटर’ में 140 करेक्टर में ही लिखना होता है और चीनी भाषा में यह काम थोड़ा मुश्किलें पैदा कर रहा है।
‘ट्विटर’ लेखन के कारण चीन में मानवाधिकार कर्मियों को ,खासकर नेट लेखकों को निशाना बनाया जा रहा है। नेट लेखक चीन की अदालतों में जनाधिकार के पक्ष में और चीनी प्रशासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के बारे में जमकर लिख रहे हैं उन्हें साइबर चौकीदारों की मदद से चीन की पुलिस परेशान कर रही है, गिरफ्तार कर रही है। गिरफ्तार नेट लेखकों ने ‘ट्विटर’ का प्रभावशाली ढ़ंग से इस्तेमाल किया है। मजेदार बात यह है कि चीन प्रशासन के द्वारा अदालतों में साधारण मानवाधिकार कर्मियों और चीनी प्रशासन के अन्यायपूर्ण फैसलों के खिलाफ जो मुकदमे चलाए जा रहे हैं उनकी सुनवाई के समय सैंकड़ों ब्लॉगर और ट्विटर अदालत के बाहर खड़े रहते हैं और अदालत की कार्रवाई की तुरंत सूचना प्रसारित करते हैं और प्रतिवाद में जनता को गोलबंद कर रहे हैं। इससे चीनी प्रशासन की समस्त सेंसरशिप धराशायी हो गयी है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो ब्लॉगर और ट्विटर नया संगठक है। यह ऐसा संगठनकर्ता है जो कानून और राष्ट्र की दीवारों का अतिक्रमण करके प्रतिवादी संगठन बनाने का काम कर रहा है।
(लेखक वामपंथी चिंतक और कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हैं)